PDA

View Full Version : शाकाहार या मांसाहार?


VIDROHI NAYAK
24-12-2010, 06:39 PM
हम हमारे खाने में शाकाहार अपनाएँ या मांसाहार ?


हमेशा से यह एक द्विपक्षीय प्रश्न रहा है ! दोनों के उनके हित में अनेक तर्क रहे हैं ! यह ज्ञात नहीं हो पाता की क्या सही है और क्या गलत ! परन्तु इस फोरम पर अनेक महानुभाव हैं जो शायद इस विषय पर प्रकाश डाल सकते है ! अतः मेरा सभी से निवेदन है की किसी की भी धार्मिक भावनाओं को छति पहुंचाए बिना कृपया इस विषय पर प्रकाश डालें !
कृपया ध्यान दें की बात दिशाहीन और जाती विशेष आदि से सम्बंधित न हो !

khalid
24-12-2010, 07:14 PM
मित्र श्री गणेश आप अपनी बातोँ से करेँ

VIDROHI NAYAK
24-12-2010, 07:20 PM
मित्र श्री गणेश आप अपनी बातोँ से करेँ
मित्र अगर इसका उचित उत्तर ही मेरे पास होता तो मै यह प्रश्न ही क्यों करता !

abhisays
25-12-2010, 10:35 AM
मेरा नॉन veg खाने के प्रति बहुत ही प्रेम है, हफ्ते में करीब ४-५ दिन इस तरह का खाना खाता हूँ, क्या इससे लॉन्ग टर्म में कोई नुक्सान है, कृपया विस्तार से बताये.

धन्यवाद.

pooja 1990
25-12-2010, 10:38 AM
Mas khane se kya aap mote ho sakte ho .nahi na. to kya aap jo mas khate hai bo aapko takat deta hai.nahi na. par lagatar mas khane se bo apko kai tarah qi bimari free me deta hai.

munneraja
25-12-2010, 10:40 AM
मनुष्य शरीर की बनावट
* मनुष्य के शरीर में आंतो की लम्बाई अधिक है, कम लम्बाई की आंते मांसाहार एवं लम्बी आंते शाकाहार को पचाने में अच्छा कार्य करती हैं. मांसाहार करने वाले पशुओं में आंते कम लम्बी होती हैं क्योंकि मांसाहार शाक के अपेक्षा जल्दी पच जाता है. लम्बी आंत में मांस का पाचन हो जाने के बाद उसके अपशिष्ट का भी पाचन होने लगता है.
* शरीर में किसी भी विजातीय वस्तु से घातक प्रभाव उत्पन्न होते हैं. मनुष्य के शरीर का प्रोटीन अन्य प्रजाति (विभिन्न पशु/जीव जंतु) के प्रोटीन से अलग होता है. खास तौर से विजातीय रक्त का शरीर में जाना, बेहद जटिल क्रियाएं करता है जिस से शरीर को हानि होती है
* मांसाहार से मस्तिष्क में क्रूरता बढती है
* मांसाहार के लिए किसी की जान जाती है सिर्फ स्वाद के लिए
* मांस जल्दी ख़राब हो जाता है.
* मांस में विषाणु आसानी से पनपते हैं जिनको समाप्त करना कठिन कार्य है
* मांस सिर्फ प्रोटीन है, जबकि शाकाहार सम्पूर्ण भोजन

......निर्णय आपका है.......
?? शाकाहार या मांसाहार ??

khalid
25-12-2010, 11:37 AM
माँस खाने से प्रहेज
लेकिन
लेदर का सामान इस्तेमाल करने वाले को आपलोग क्या कहेगेँ
जैसे जुता बैल्ड घड़ी का पट्टा जैकेट पर्स इत्यादी

munneraja
25-12-2010, 12:35 PM
माँस खाने से प्रहेज
लेकिन
लेदर का सामान इस्तेमाल करने वाले को आपलोग क्या कहेगेँ
जैसे जुता बैल्ड घड़ी का पट्टा जैकेट पर्स इत्यादी
यह वस्तुएं प्राकृतिक रूप से मरे हुए जानवरों के चमड़े की भी बन जाती हैं लेकिन भोजन में मांस मरे हुए जानवर का नहीं, मारे हुए जानवर का होता है

jitendragarg
25-12-2010, 03:41 PM
यह वस्तुएं प्राकृतिक रूप से मरे हुए जानवरों के चमड़े की भी बन जाती हैं लेकिन भोजन में मांस मरे हुए जानवर का नहीं, मारे हुए जानवर का होता है


ऐसा मानना गलत है. दरअसल जानवरों को चमड़े के लिए मारा जाता है! प्राकृतिक रूप से मरे हुए जानवर का चमड़ा काफी बिमारियों का कारण बन सकता है, इसलिए उसको उपयोग नहीं कर सकते.

:cheers:

munneraja
25-12-2010, 04:29 PM
ऐसा मानना गलत है. दरअसल जानवरों को चमड़े के लिए मारा जाता है! प्राकृतिक रूप से मरे हुए जानवर का चमड़ा काफी बिमारियों का कारण बन सकता है, इसलिए उसको उपयोग नहीं कर सकते.

:cheers:
चमड़े को काम में लेने से पहले चमड़े को कुछ रासायनिक क्रियाओं से निकला जाता है एवं धोया और सुखाया जाता है इसलिए बीमारी का कोई खतरा शेष नहीं रह जाता. जहां तक चमड़े के लिए पशुओं को मारने की बात है तो क्रूरता मानव के स्वभाव में है.
न सिर्फ चमड़े अपितु मांस के लिए पशुओं को मारा जाता है.

VIDROHI NAYAK
25-12-2010, 06:16 PM
चमड़े को काम में लेने से पहले चमड़े को कुछ रासायनिक क्रियाओं से निकला जाता है एवं धोया और सुखाया जाता है इसलिए बीमारी का कोई खतरा शेष नहीं रह जाता. जहां तक चमड़े के लिए पशुओं को मारने की बात है तो क्रूरता मानव के स्वभाव में है.
न सिर्फ चमड़े अपितु मांस के लिए पशुओं को मारा जाता है.
आपकी बात वाजिब है !

YUVRAJ
27-12-2010, 09:57 AM
यदि आप चमड़े से बनी वस्तुवों का प्रयोग करतें हैं तो देखभाल, रखरखाव पर विशेष ख्याल रखें...
:cheers:

ऐसा मानना गलत है. दरअसल जानवरों को चमड़े के लिए मारा जाता है! प्राकृतिक रूप से मरे हुए जानवर का चमड़ा काफी बिमारियों का कारण बन सकता है, इसलिए उसको उपयोग नहीं कर सकते.

:cheers:

jeba2002
27-12-2010, 11:25 AM
पहले के दिनों, यह आम धारणा है कि गैर शाकाहारी भोजन शाकाहारी भोजन के लिए बेहतर हो गया है. इस्तेमाल लोगों को लगता है कि मांसाहारी भोजन हमें और अधिक शक्ति प्रदान करता है और यह ऊर्जावान सामग्री से भरा है. इस सिद्धांत को अधिक से अधिक लोगों और अंततः दुनिया के लोगों को मांसाहारी आहार अपनाया की एक बड़ी संख्या को आकर्षित किया. लेकिन अब इस अवधारणा को बदल रही है.

चिकित्सा विज्ञान में नए घटनाक्रम के अनुसार, शाकाहारी आहार के करीब है और अधिक मानव स्वभाव के लिए उपयोगी है. इसे और अधिक मानव शरीर के लिए वैज्ञानिक है. इस वजह से, लोगों को अब नया जीवन शैली के हिस्से के रूप शाकाहारी भोजन को अपना रहे हैं. यह एक तथ्य यह है कि मांसाहारी आहार कोलेस्ट्रॉल होता है और फैटी एसिड संतृप्त. इन कोरोनरी हृदय रोग की तरह, Cerebro नाड़ी दुर्घटनाओं समस्याओं (स्ट्रोक), नेत्र रोग और उच्च रक्तचाप के मूल कारण हैं. एक गैर शाकाहारी भोजन में, अपनी सामग्री के केवल 60% मानव शरीर के लिए उपयोगी है, बाकी 40% हानिकारक और विषैले उत्पाद शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, गैर शाकाहारी आहार आमतौर पर पेट के लिए भारी है और अम्लता, जो बारी में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम की कई बीमारियों का कारण बन सकती पैदा करता है.

शाकाहारी और मांसाहारी भोजन के बीच एक और महत्वपूर्ण महत्वपूर्ण अंतर यह है कि पूर्व मांसाहारी भोजन जबकि आहार फाइबर शामिल है फाइबर में कमी है. इन आहार फाइबर बहुत मानव शरीर के लिए उपयोगी होते हैं क्योंकि यह देखा गया है कि जो लोग इन आहार फाइबर में अमीर आहार खाने कोरोनरी हृदय रोग, आंत्र पथ, बवासीर, मोटापा, मधुमेह, कब्ज के कैंसर जैसे रोगों के कम भार hitatus हर्निया है , diverticulitis, चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम, दंत क्षय और gallstones. भोजन इन आहार फाइबर में अमीर सामग्री अनाज और अनाज, फलियां, बीज के साथ फल, खट्टे फल, गाजर, गोभी, अजवाइन, हरी पत्तेदार सब्जियों, सेब, तरबूज, आड़ू, नाशपाती आदि कर रहे हैं

कई रोग के कारण जीवों मांसाहारी आहार की खपत से इंसान के शरीर में यात्रा करते हैं और गंभीर बीमारियों का उत्पादन कर सकते हैं, जबकि एक शाकाहारी भोजन इनमें से मुक्त कर सकता है. उदाहरण के लिए, गोजातीय Spongi कारण encephalopathy और पागल गाय रोग भी मांसाहारी आहार की खपत का एक उत्पाद है. इसी प्रकार साल्मोनेला बैक्टीरिया के रूप में जाना अंडे की खपत है, जो बीमारियों का कारण, निमोनिया तरह कर सकते हैं, ब्रोंकाइटिस द्वारा इंसान के शरीर में यात्रा कर सकते हैं. इन जीवाणुओं टाइफाइड बीमारी उत्पादन जीवों के समूह के हैं.

एक अध्ययन के अनुसार, यह देखा गया है कि मांसाहारी पशुओं के शरीर से 10 गुना हाइड्रोक्लोरिक एसिड की अधिक मात्रा से शाकाहारी हैं, लेकिन मानव शरीर के हाइड्रोक्लोरिक एसिड का एक ही राशि नहीं करना चाहिए होते हैं. इस तथ्य यह है मानव शरीर मूलतः एक शाकाहारी भोजन के लिए है स्थापित करता है.

इन सभी तथ्यों से प्रभावित श्री Robins, अमेरिका के एक प्रसिद्ध लेखक ने अपनी पुस्तक "न्यू अमेरिका के लिए आहार" है कि अगर अमेरिका के लिए लंबे समय तक रहना चाहते हैं कि वे मांसाहारी भोजन और अंडों से बचना चाहिए में उल्लेख किया है. न केवल अमेरिका बल्कि अंग्रेजों और जर्मनों को भी अपने जीवन का आहार शैली के रूप में शाकाहारी अपना रहे हैं. एक नट खोल में इसलिए, हम अगर हम एक स्वस्थ और रोग मुक्त जीवन चाहते कहते हैं, हम अपने आहार पैटर्न के रूप में शाकाहारी आहार अपनाने चाहिए कर सकते हैं.

नोट- ये सभी नेट से लिया गया है. जरूरी नहीं सब इससे सहमत हों.

Hamsafar+
27-12-2010, 11:27 AM
शुक्र है भाई अपन मांसाहार से दूर है, हमारे घर में इस भोज़न के लिए कोई जगह नहीं है !:gm:

VIDROHI NAYAK
27-12-2010, 11:33 AM
इतने विचारों को पढ़ने के बात ये तो ज्ञात हुआ की अधिकतर लोग शाकाहार की तरफ प्रभावित हैं ! आमतौर पर मांसाहारी भी मांसाहार के दुष्प्रभाव और अनैतिकता को समझते होंगे ! फिर भी आज १० में ७ लोग मांसाहारी है ! ऐसे ही कुछ लोग सामाजिकता और मानव कल्याण की बात करते हैं ! क्या मांसाहार त्यागना उनका पहला कदम नहीं होना चाहिए? क्या मांसाहार शाकाहार की अपेक्षा सुगम और सस्ता है? क्या ये वास्तव में अनैतिक नहीं है ? सच तो यह है की हम सब ....वास्तव में सब जानते हैं! परन्तु फिर भी.....!!!!!!!

Hamsafar+
27-12-2010, 02:21 PM
इतने विचारों को पढ़ने के बात ये तो ज्ञात हुआ की अधिकतर लोग शाकाहार की तरफ प्रभावित हैं ! आमतौर पर मांसाहारी भी मांसाहार के दुष्प्रभाव और अनैतिकता को समझते होंगे ! फिर भी आज १० में ७ लोग मांसाहारी है ! ऐसे ही कुछ लोग सामाजिकता और मानव कल्याण की बात करते हैं ! क्या मांसाहार त्यागना उनका पहला कदम नहीं होना चाहिए? क्या मांसाहार शाकाहार की अपेक्षा सुगम और सस्ता है? क्या ये वास्तव में अनैतिक नहीं है ? सच तो यह है की हम सब ....वास्तव में सब जानते हैं! परन्तु फिर भी.....!!!!!!!

परन्तु फिर भी....................... thanks

amit_tiwari
27-12-2010, 11:55 PM
मेरा नॉन veg खाने के प्रति बहुत ही प्रेम है, हफ्ते में करीब ४-५ दिन इस तरह का खाना खाता हूँ, क्या इससे लॉन्ग टर्म में कोई नुक्सान है, कृपया विस्तार से बताये.

धन्यवाद.

As long as you're having at good place, Its all okay. If it wasn't half of the world would be either dead or zombie as some answers are referring 555.

I remember few funny facts related to topic, in Vegas i ordered a veg burger in my hotel and i got burger or cow's meat. Because in most of the american parts thats how they call it.
In Italy or Germany, if you order Veg food you'll get ALIVE SEA FOOD like alive crabs and all. Thats how they understand veg term.

I am vegetarian (though i eat eggs) and also agree that being vegetarian is better because of simple reason. The more you're near to nature, more healthy you'll be. So Veg. rocks but that doesn't means you're gonna be dead or turn into some zombie or demon if you have non veg. Thats bullshit. ;)

ndhebar
31-12-2010, 12:42 PM
यह वस्तुएं प्राकृतिक रूप से मरे हुए जानवरों के चमड़े की भी बन जाती हैं लेकिन भोजन में मांस मरे हुए जानवर का नहीं, मारे हुए जानवर का होता है

मैं यहाँ पर एक बात कहना चाहूँगा

ऐसा नहीं है की हम मांस खाकर पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं/
प्रमुखतः हम उन्ही जानवरों का मांस खाते हैं जिन्हें पाला ही मांस तैयार करने के लिए जाता है/

शिकार करके मांस खाने वालों की संख्या नगण्य ही है और जो भी ऐसा करते हैं गलत करते हैं/

munneraja
01-01-2011, 01:11 PM
मैं यहाँ पर एक बात कहना चाहूँगा

ऐसा नहीं है की हम मांस खाकर पशुओं को नुकसान पहुंचाते हैं/
प्रमुखतः हम उन्ही जानवरों का मांस खाते हैं जिन्हें पाला ही मांस तैयार करने के लिए जाता है/

शिकार करके मांस खाने वालों की संख्या नगण्य ही है और जो भी ऐसा करते हैं गलत करते हैं/
मेरे कहने का तात्पर्य था कि मांस के लिए पशु को मारा जाता है, ना कि मरे हुए जानवर का मांस खाया जाता है. मरे हुए जानवर का मांस वैसे भी अखाद्य है क्योंकि उसमे कई प्रकार के जीवाणु, जो मानव शरीर के लिए खतरा हैं, पैदा होने का खतरा रहता है.

arvind
01-01-2011, 01:26 PM
प्राकृतिक रूप से मनुष्य एक शाकाहारी प्राणी है। अगर शाकाहारी और मांसाहारी जीवो मे तुलना की जाय तो पाएंगे कि ......

1. शाकाहारी जीव स्वभाव से शांत होते है, जबकि मांसाहारी जीव उग्र होते है।
2. शाकाहारी जीवो के दाँतो कि बनावट बिलकुल सपाट होती है, जबकि मांसाहारी जीव के आगे के तरफ के दो दाँत नुकीले और बड़े होते है।
3. शाकाहारी जीव यदि मांसाहार कर भी ले तो उन्हे पचाने मे काफी दिक्कत होती है, जबकि मांसाहारी आसानी से हजम कर जाते है।

shyammohan
02-01-2011, 07:59 PM
मेरा मानना है की आदमी को अगर रोगों और अकाल मृत्यु से बचना है तो शाकाहार खाने का ही सेवन करना चाहिए. मांसाहार जीव हत्या के बराबर है उससे हम सभी को बचना चाहिए.

chhotu
05-01-2011, 06:40 PM
गाओ में कहते हैं की जैसा खाओ अन्न वैसा हो मन इसलिए मांस खाना अच्छा नहीं होता है i

VIDROHI NAYAK
05-01-2011, 06:57 PM
इतने विचारों को पढ़ने के बात ये तो ज्ञात हुआ की अधिकतर लोग शाकाहार की तरफ प्रभावित हैं ! आमतौर पर मांसाहारी भी मांसाहार के दुष्प्रभाव और अनैतिकता को समझते होंगे ! फिर भी आज १० में ७ लोग मांसाहारी है ! ऐसे ही कुछ लोग सामाजिकता और मानव कल्याण की बात करते हैं ! क्या मांसाहार त्यागना उनका पहला कदम नहीं होना चाहिए? क्या मांसाहार शाकाहार की अपेक्षा सुगम और सस्ता है? क्या ये वास्तव में अनैतिक नहीं है ? सच तो यह है की हम सब ....वास्तव में सब जानते हैं! परन्तु फिर भी.....!!!!!!!
__________________

YUVRAJ
05-01-2011, 08:39 PM
हमारी वधसालाओं की खस्ताहाल व्यवस्था को देखते हुये न खाने की सलाह ही सही लगती है।
यदि पश्चिम की बात करें तो वहाँ इन्हें व्यवस्थित रखा जाता है और छात्रों को शैक्षणिक भ्रमण के लिये भी लाया जाता है।
यदि हाईजनिक व्यवस्था हो और उन जीवों का वध किया जाता हो जिन्हें खाने के लिए ही पाला जाता है तो कुछ खास बुरी बात नहीं है।

YUVRAJ
09-01-2011, 09:56 AM
शाकाहारी होने का सिर्फ ये मतलब नहीं है कि आप पशु-पक्षियों के प्रति दयाभाव रखते हैं,
बल्कि इसका मतलब ये भी है कि आप पेड़-पौधों के प्रति शत्रुभाव रखते हैं...
:cheers:

VIDROHI NAYAK
09-01-2011, 10:38 AM
शाकाहारी होने का सिर्फ ये मतलब नहीं है कि आप पशु-पक्षियों के प्रति दयाभाव रखते हैं,
बल्कि इसका मतलब ये भी है कि आप पेड़-पौधों के प्रति शत्रुभाव रखते हैं...
:cheers:
वाह क्या बात कही आपने युवराज जी ! आप तो मुह ही बंद करना चाहते हैं ! चलिए कोई बात नहीं पर पेड्पौधो से शत्रुभाव मजबूरी वश होता है क्योंकि कोई और विकल्प नहीं ! अब विकल्प न होने पर एक ही से शत्रुभाव ठीक है न की सर्वाहारी होकर पेड्पौधो और पशुपक्षियो दोनों से !

YUVRAJ
09-01-2011, 12:02 PM
वैचारिक मतभेद hai aur sighr hi vyakt karuga.
वाह क्या बात कही आपने युवराज जी ! आप तो मुह ही बंद करना चाहते हैं ! चलिए कोई बात नहीं पर पेड्पौधो से शत्रुभाव मजबूरी वश होता है क्योंकि कोई और विकल्प नहीं ! अब विकल्प न होने पर एक ही से शत्रुभाव ठीक है न की सर्वाहारी होकर पेड्पौधो और पशुपक्षियो दोनों से !

VIDROHI NAYAK
09-01-2011, 08:42 PM
वैचारिक मतभेद hai aur sighr hi vyakt karuga.
आपका स्वागत है युवराज जी !

VIDROHI NAYAK
09-01-2011, 08:47 PM
वैचारिक मतभेद hai aur sighr hi vyakt karuga.
आपका स्वागत है युवराज जी !

YUVRAJ
10-01-2011, 08:21 AM
सबसे पहली बात शत्रुभाव किसी से भी न रखा जाये और पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों के प्रति समानभाव रखा जाये/

VIDROHI NAYAK
10-01-2011, 08:34 AM
सबसे पहली बात शत्रुभाव किसी से भी न रखा जाये और पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों के प्रति समानभाव रखा जाये/
युवराज जी शत्रुभाव आपके शब्दों में है ! वैसे शत्रुभाव तो किसी से नही होना चाहिए !

YUVRAJ
10-01-2011, 08:51 AM
सभी की भावनाओं को शब्द दिए है नायक जी और कुछ खास नहीं लिखा है ...:cheers:

पहले ही सूचित कर चुका हूँ अतः इन प्रविष्टियों को गौर से देखें ...
http://myhindiforum.com/showpost.php?p=34378&postcount=12
http://myhindiforum.com/showpost.php?p=37210&postcount=24

अब मुद्दे पर आता हूँ ...
हमारी तमाम जरूरतें इन वध किए जानावारों से ही पूरी होती हैं , जो की मरे जानावारों की संख्या से नहीं हो सकती ... न ही जूतों की आवश्यकता पूरी होगी न ही कमर में बाधी जाने बाली बेल्ट की /
यदि जरूरत के लिए पेड़ काटा जा सकता है तो भोजन और जरूरत के लिए पाले जाने वाले पशु-पक्षियों ko क्यू नहीं ...

ABHAY
10-01-2011, 10:39 AM
बात तों आपकी बिलकुल सही है मगर आज के यूग में मानब से बड़ा दानब कोई नहीं है ! अगर पीछे से सोचा जाये तों १०० में से ५० लोग राछस योनी में आते है ! मगर आज का इतिहास ही दूसरा है ! दुनिया में कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आज के मानब ने नहीं खाया हो ! अब यहाँ पे शाकाहार मानब न के बराबर है ! चाणक्य ने कहा है ज्ञान के लिए कुसल गुरु की जरुरत होती है उसी तरह सरीर में मांस की पूर्ति के लिए मांस की जरुरत होती है ! चाणक्य ने तों कुछ और कहा था मगर मैंने इसे बदल के कुछ इस तरह लिखा है !

VIDROHI NAYAK
10-01-2011, 12:25 PM
यदि जरूरत के लिए पेड़ काटा जा सकता है तो भोजन और जरूरत के लिए पाले जाने वाले पशु-पक्षियों ko क्यू नहीं ...
वो इसलिए युवराज जी की पशुओ की वेदनाओ की अनुभूति करना सहज है क्योंकि वो चिल्लाकर , चीखकर हमें आहसास करते हैं ! दूसरी बात यह की वनस्पतियो का ज़न्म स्रष्टि में भोज्य के लिए ही हुआ है जिसका सबसे बड़ा प्रमाण मनुष्यों के दांत हैं ! स्रष्टि भी हमें शाकाहारी होने का ही संकेत देती है!

बात तों आपकी बिलकुल सही है मगर आज के यूग में मानब से बड़ा दानब कोई नहीं है ! अगर पीछे से सोचा जाये तों १०० में से ५० लोग राछस योनी में आते है ! मगर आज का इतिहास ही दूसरा है ! दुनिया में कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे आज के मानब ने नहीं खाया हो ! अब यहाँ पे शाकाहार मानब न के बराबर है ! चाणक्य ने कहा है ज्ञान के लिए कुसल गुरु की जरुरत होती है उसी तरह सरीर में मांस की पूर्ति के लिए मांस की जरुरत होती है ! चाणक्य ने तों कुछ और कहा था मगर मैंने इसे बदल के कुछ इस तरह लिखा है !
क्या अभय जी कोई शाकाहारी मनुष्य अपना पूरा जीवन नहीं जीता? क्या वो दूसरों (मांसाहारियो ) से निर्बल होता है ? पर वैसे भी चाणक्य का राजनीतिशास्त्र अच्छा था न की शरीरविज्ञान !

YUVRAJ
10-01-2011, 01:12 PM
अहा हा हा हा ...:lol:
आप ये ही बताओ कि जो जूते या बेल्ट आप पहनते हैं उनसे किस जानवर की वेदना आती है ??? यदि आती है तो आप क्या सोच कर उसका उपयोग करते हैं !!!
आजकल जो भी खाने का समान बजार में मिलते हैं, सामान्यतः रसायनों से भरे होते हैं और आपके लिए "स्लो प्वाइजन" से कम नहीं हैं/
मांसाहारी न होने के किस तरह के संकेत मिलते हैं जरा विस्तार से जानकारी प्रदान करें !!!
वो इसलिए युवराज जी की पशुओ की वेदनाओ की अनुभूति करना सहज है क्योंकि वो चिल्लाकर , चीखकर हमें आहसास करते हैं ! दूसरी बात यह की वनस्पतियो का ज़न्म स्रष्टि में भोज्य के लिए ही हुआ है जिसका सबसे बड़ा प्रमाण मनुष्यों के दांत हैं ! स्रष्टि भी हमें शाकाहारी होने का ही संकेत देती है!

VIDROHI NAYAK
10-01-2011, 01:33 PM
अहा हा हा हा ...:lol:
आप ये ही बताओ कि जो जूते या बेल्ट आप पहनते हैं उनसे किस जानवर की वेदना आती है ??? यदि आती है तो आप क्या सोच कर उसका उपयोग करते हैं !!!
आप यकीं करे या न करे मै व्यक्तिगत रूप से सामान्यतः चमड़े की बनी वस्तुओ से परहेज करता हूँ ! रही बात वेदना की तो...देख कर तो मक्खी भी नहीं निगली जा सकती !

आजकल जो भी खाने का समान बजार में मिलते हैं, सामान्यतः रसायनों से भरे होते हैं और आपके लिए "स्लो प्वाइजन" से कम नहीं हैं/
मांसाहारी न होने के किस तरह के संकेत मिलते हैं जरा विस्तार से जानकारी प्रदान करें !!!
आपकी बात बिलकुल उचित है इसलिए बड़ेबुज़ुर्ग घर के खाने की ही सलाह देते रहे हैं ! और इन्ही सलाहों पर अमल भी करना चाहिए ! मै खुद पूरी तरह से अमल तो नहीं कर पता परन्तु कोशिश हमेशा किसी को कष्ट न देने की रहती है ! और जहाँ तक संकेत की बात है तो श्रष्टि का सबसे बड़ा संकेत मांसाहारी न होने का हमारी बुद्धि है इसी की समझ से हम निर्णय कर सकते हैं !
युवराज जी एक बात आप ध्यान रखियेगा ...मै आपके नहीं बल्कि मांसाहार के विरोध में हूँ !!!

Kumar Anil
11-01-2011, 06:15 AM
मैँ विद्रोही जी के तथ्योँ और तर्कोँ से अक्षरशः सहमत हूँ कि हमारी शारीरिक संरचना शाकाहार के ही अनुरूप है । मासाँहार के सम्बन्ध मेँ मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि इसमेँ एक अलग स्वाद के अतिरिक्त और कुछ नहीँ जो शायद मसालोँ की वजह से ही होगा । इतनी ही प्रोटीन और शक्ति हमेँ दालोँ और शाकभाजी मेँ भी प्राप्य है । हमारे भीतर की तामसिक मनोवृत्ति हमेँ माँसाहार के लिये उकसाती है अन्यथा जो आनन्द शाकाहार मेँ है वो भला माँसाहार मेँ कहाँ । शाकाहार सुपाच्य है जबकि माँसाहार की गरिष्ठता , मसालोँ की अधिकता सर्वविदित है । जहाँ तक बेल्ट इत्यादि की बात उठायी गयी तो वो चर्म शिल्प का हिस्सा है न कि माँसाहार का ।

YUVRAJ
11-01-2011, 10:24 AM
इस बात की बहुत ही खुशी है कि आप की जीवनशैली बहुत ही सुन्दर है, रही वेदना की बात तो क्या आप सोचते हैं कि मांसाहार करने वालों में इस की कमी या होती ही नहीं !!!
आपको आश्चर्य होगा कि मांसाहार करने वाले भी मख्खी को नहीं निगलते/
विरोध तो हम .... न आपका, न शाकाहार करने वालों का या मांसाहार करने वालों का .... किसी का भी नहीं...
आप यकीं करे या न करे मै व्यक्तिगत रूप से सामान्यतः चमड़े की बनी वस्तुओ से परहेज करता हूँ ! रही बात वेदना की तो...देख कर तो मक्खी भी नहीं निगली जा सकती !

आपकी बात बिलकुल उचित है इसलिए बड़ेबुज़ुर्ग घर के खाने की ही सलाह देते रहे हैं ! और इन्ही सलाहों पर अमल भी करना चाहिए ! मै खुद पूरी तरह से अमल तो नहीं कर पता परन्तु कोशिश हमेशा किसी को कष्ट न देने की रहती है ! और जहाँ तक संकेत की बात है तो श्रष्टि का सबसे बड़ा संकेत मांसाहारी न होने का हमारी बुद्धि है इसी की समझ से हम निर्णय कर सकते हैं !
युवराज जी एक बात आप ध्यान रखियेगा ...मै आपके नहीं बल्कि मांसाहार के विरोध में हूँ !!!
कुमार भाई जी,
मसाले से नुक्सान तभी है जब आप अत्यधिक मात्रा में ग्रहण करें और इस का चलन कुछ ही व्यंजनों और रसोई घरों में है/ संसार भर की रेसेपी अलग-अलग है और मसाले का प्रयोग भी अलग-अलग मात्रा में होता है/
चर्म शिल्प का एक अभिन्न हिस्सा मांसाहार भी है/ आप खुद ही सोचो शिल्पकार काम कैसे करता होगा यदि कच्चा माल ही न मिले !!! टेनरी कैसे चलेगी ...आदि-आदि...


मैँ विद्रोही जी के तथ्योँ और तर्कोँ से अक्षरशः सहमत हूँ कि हमारी शारीरिक संरचना शाकाहार के ही अनुरूप है । मासाँहार के सम्बन्ध मेँ मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि इसमेँ एक अलग स्वाद के अतिरिक्त और कुछ नहीँ जो शायद मसालोँ की वजह से ही होगा । इतनी ही प्रोटीन और शक्ति हमेँ दालोँ और शाकभाजी मेँ भी प्राप्य है । हमारे भीतर की तामसिक मनोवृत्ति हमेँ माँसाहार के लिये उकसाती है अन्यथा जो आनन्द शाकाहार मेँ है वो भला माँसाहार मेँ कहाँ । शाकाहार सुपाच्य है जबकि माँसाहार की गरिष्ठता , मसालोँ की अधिकता सर्वविदित है । जहाँ तक बेल्ट इत्यादि की बात उठायी गयी तो वो चर्म शिल्प का हिस्सा है न कि माँसाहार का ।

VIDROHI NAYAK
11-01-2011, 11:07 AM
इस बात की बहुत ही खुशी है कि आप की जीवनशैली बहुत ही सुन्दर है, रही वेदना की बात तो क्या आप सोचते हैं कि मांसाहार करने वालों में इस की कमी या होती ही नहीं !!!
आपको आश्चर्य होगा कि मांसाहार करने वाले भी मख्खी को नहीं निगलते/
विरोध तो हम .... न आपका, न शाकाहार करने वालों का या मांसाहार करने वालों का .... किसी का भी नहीं...

कुमार भाई जी,
मसाले से नुक्सान तभी है जब आप अत्यधिक मात्रा में ग्रहण करें और इस का चलन कुछ ही व्यंजनों और रसोई घरों में है/ संसार भर की रेसेपी अलग-अलग है और मसाले का प्रयोग भी अलग-अलग मात्रा में होता है/
चर्म शिल्प का एक अभिन्न हिस्सा मांसाहार भी है/ आप खुद ही सोचो शिल्पकार काम कैसे करता होगा यदि कच्चा माल ही न मिले !!! टेनरी कैसे चलेगी ...आदि-आदि...
युवराज जी वेदना तो सभी में होती है चे वो शाकाहारी हो या मांसाहारी ! यहाँ वेदना होना और दूसरों की वेदना की अनुभूति करना..दोनों बाते अलग अलग हैं ! और जहाँ तक विरोध की बात है तो मेरे शब्द पर ध्यान दीजिए ...मै मांसाहार के विरोध में हूँ न की मांसाहारियो के ! मक्खी वाली बात तो अतिशियोक्ति थी जिसे आपने कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया ! अनिल जी की बात का थोडा स्पष्टीकरण देना चाहूँगा की इस बात को तो आप भी मानते होंगे की मांसाहार भोज्यो में मसाले का प्रयोग शाकाहार भोज्यो की अपेक्षा ज्यादा होता है ! शायद इसी बात को अनिल जी ने स्पष्ट करना चाहा है ! हो सकता है की चर्मशिल्प मांसाहार का हिस्सा हो परन्तु चर्मशिल्प प्राकृतिक रूप से मरे हुए जानवरों के इस्तेमाल से भी की जा सकता है परन्तु मांसाहार नहीं !
वह अलग बात है की व्यवहारिक रूप से चर्मशिल्प के लिए भी पशुओ की हत्या की जाती है !

khalid
11-01-2011, 11:29 AM
मित्रोँ जिनके मन को जो भाए वो खाए
जो माँस का सेवन करतेँ हैँ वो भी जिन्दा हैँ जो नहीँ करतेँ वो भी जिन्दा रहतेँ हैँ कुछ लोग अण्डे तक का सेवन को मना करतेँ हैँ
कुछ लोग कहतेँ हैँ संडे हो या मंडे रोज खाओ अंडे
अब जिनको जैसे संस्कार मिलेगा वो वैसे हीँ करतेँ हैँ
एक बात ध्यान देने योग्य हैँ दोनो तरह के लोग बिमार भी होता हैँ और डाक्टर के पास भी जातेँ हैँ

Kumar Anil
12-01-2011, 07:58 AM
युवराज जी !
चूँकि बात भारतीयोँ के मध्य हो रही थी इसलिये मसालोँ की बात भी भारतीय सन्दर्भ मेँ ही की गयी और जिसके बाबत विद्रोही जी ने मेरा पक्ष रख दिया है । विद्रोही जी द्वारा वेदना को मक्खी निगलने से कोरिलेट करने पर आपकी असहमति से मैँ स्वयं सहमत हूँ । माँसाहारियोँ मेँ भी संवेदनायेँ होती है । यदि उनके समक्ष जीवित पशु को कत्ल किया जाये तो शायद उनका करुण क्रन्दन आधे से अधिक लोगोँ को माँसाहार छोड़ने पर विवश कर दे जैसाकि मेरे साथ पूर्व मेँ घटित हो चुका है । हाँ एक बात और कहना चाहूँगा कि माँसाहार के उपरान्त हैवीनेस के कारण मैँ सहज नहीँ महसूस करता जैसा कि शाकाहार मेँ शांतचित्त , सामान्य रहता हूँ । यही असहजता इसके असामान्य होने का द्योतक है । इसके बावजूद मेरी स्वाद ग्रन्थियाँ माँसाहार के लिये मुझे उकसाती हैँ ।

YUVRAJ
13-01-2011, 08:40 PM
चर्मशिल्प के लिए कच्चा माल मिलना भी संभव नहीं होगा इतने जानवर रोजाना मरते ही नहीं भाई नायक जी/ मसालों का प्रयोग इस भूभाग में कुछ जादा ही है चाहे वो शाकाहार हो या मांसाहार ...
युवराज जी वेदना तो सभी में होती है चे वो शाकाहारी हो या मांसाहारी ! यहाँ वेदना होना और दूसरों की वेदना की अनुभूति करना..दोनों बाते अलग अलग हैं ! और जहाँ तक विरोध की बात है तो मेरे शब्द पर ध्यान दीजिए ...मै मांसाहार के विरोध में हूँ न की मांसाहारियो के ! मक्खी वाली बात तो अतिशियोक्ति थी जिसे आपने कुछ ज्यादा ही गंभीरता से ले लिया ! अनिल जी की बात का थोडा स्पष्टीकरण देना चाहूँगा की इस बात को तो आप भी मानते होंगे की मांसाहार भोज्यो में मसाले का प्रयोग शाकाहार भोज्यो की अपेक्षा ज्यादा होता है ! शायद इसी बात को अनिल जी ने स्पष्ट करना चाहा है ! हो सकता है की चर्मशिल्प मांसाहार का हिस्सा हो परन्तु चर्मशिल्प प्राकृतिक रूप से मरे हुए जानवरों के इस्तेमाल से भी की जा सकता है परन्तु मांसाहार नहीं !
वह अलग बात है की व्यवहारिक रूप से चर्मशिल्प के लिए भी पशुओ की हत्या की जाती है !

कुमार भाई जी ...
पूर्व में घटित वाकये का जिक्र करें यदि आपको सही लगे तो युवराज जी !
चूँकि बात भारतीयोँ के मध्य हो रही थी इसलिये मसालोँ की बात भी भारतीय सन्दर्भ मेँ ही की गयी और जिसके बाबत विद्रोही जी ने मेरा पक्ष रख दिया है । विद्रोही जी द्वारा वेदना को मक्खी निगलने से कोरिलेट करने पर आपकी असहमति से मैँ स्वयं सहमत हूँ । माँसाहारियोँ मेँ भी संवेदनायेँ होती है । यदि उनके समक्ष जीवित पशु को कत्ल किया जाये तो शायद उनका करुण क्रन्दन आधे से अधिक लोगोँ को माँसाहार छोड़ने पर विवश कर दे जैसाकि मेरे साथ पूर्व मेँ घटित हो चुका है । हाँ एक बात और कहना चाहूँगा कि माँसाहार के उपरान्त हैवीनेस के कारण मैँ सहज नहीँ महसूस करता जैसा कि शाकाहार मेँ शांतचित्त , सामान्य रहता हूँ । यही असहजता इसके असामान्य होने का द्योतक है । इसके बावजूद मेरी स्वाद ग्रन्थियाँ माँसाहार के लिये मुझे उकसाती हैँ ।

Kumar Anil
22-01-2011, 09:11 PM
युवी भाई , एकबार मैँ एक कस्बे की साप्ताहिक बाजार मेँ कार्यवश बैठा था । तभी मेरे बगल मेँ एक कसाई ( चिकवे ) ने एक बकरे को जिबह किया । मेरे कौतुक ने मुझे अपना ध्यान उस ओर आकृष्ट करने के लिये प्रेरित किया । उस बकरे की दर्दनाक चीखेँ , उसकी छटपटाहट , उस भयानक मंजर ने मेरा ह्रदय विदीर्ण कर डाला और मैँ कई माह उस जड़ता से मुक्त न हो सका । माँसाहार तो दूर उस खौफनाक दृश्य की कल्पना मात्र से ही मेरे रोँगटे खड़े हो जाया करते थे । लेकिन वक्त भूलने की कारगर दवा है ।

ndhebar
23-01-2011, 05:49 PM
बहुत नरम दिल वाले हो अनिल भाई

YUVRAJ
23-01-2011, 10:42 PM
aha ha ha :lol:
jarur ...kya aap ko kai shak hai???बहुत नरम दिल वाले हो अनिल भाई

Kumar Anil
26-01-2011, 03:41 PM
बहुत नरम दिल वाले हो अनिल भाई

सही कह रहे हो निशाँत भाई । दूसरे का दर्द मुझसे देखा नहीँ जा पाता । उस दर्द को मैँ भी उसी शिद्दत से महसूस करने लगता हूँ ।

Sikandar_Khan
05-02-2011, 02:14 AM
मांसाहार और शाकाहार किसी बहस का मुद्दा नहीं है
ना ही यह किसी धर्म विशेष की जागीर है
और ना ही यह मानने और मनवाने का विषय है|
कुल मिला कर इन्सान का जिस्म इस क़ाबिल है
कि वह सब्जियां भी खा सकता है
और माँस भी, तो जिसको जो अच्छा लगे खाए |
इससे न तो पर्यावरण प्रेमियों को ऐतराज़ होना चाहिए,
ना ही इससे जानवरों का अधिकार हनन होगा |
अगर आपको मासं पसंद है तो माँस खाईए और अगर आपको सब्जियां पसंद हों तो सब्जियां |
आप दोनों को खाने के लिए अनुकूल हैं|

Ranveer
17-04-2011, 07:20 PM
मेरी नजर में यदि नैतिकता (धार्मिक लोगों के लिए ) तथा पशु के लिए सहानुभूति वाली बात हटाकर सोचा जाए तो मांस से कोई वैसा नुक्सान नहीं है /

मांस खाने के फायदे में केवल प्रोटीन ही शामिल नहीं है इसके अतिरिक्त बिटामिन (बी ६),पोटेशियम ,फास्फोरस आदि भी प्राप्त होतें हैं
तार्किक बात तो यह है की वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार मानव शरीर के उचित पोषण के लिए एनिमल प्रोटीन आवश्यक है ( हालांकि दूध में भी ये मिलता है )
मानव शरीर की बनावट वैसी नहीं है ये कहना उपयुक्त नहीं है /आधुनिक विकसित मानव के विकास के ५ लाख वर्ष के इतिहास में मात्र इधर के ५००० वर्षों में ही इसने ठीक से कृषि करना सिखा है /इसके पूर्व उनका आहार मुख्य रूप से मांस ही रहा है / और जहां तक मेरी जानकारी है आग के आविष्कार के पूर्व तो मांस को पकाकर भी नहीं खाया जाता था /अगर मनुष्य के पाचन तंत्र की बनावट वैसी नहीं होती तो इनका अस्तित्व ही नहीं होता /

नैतिक रूप के कहें तो मै भी इसका समर्थन नहीं करता
पर डार्विन के सिद्धांत याद आती है तो सब भूल जाता हूँ और मजे से खाता हूँ /:crazyeyes:

VIDROHI NAYAK
17-04-2011, 08:54 PM
कुल मिलकर एक बात स्पष्ट होती है , यह बहुत तार्किक विषय है ! खाने वालो के अपने तर्क और ना खाने वालो के अपने ! कुल मिलकर जमात दोनों में से किसी की कम नहीं है , कुपोषित वो भी होते हैं जो इसका इस्तेमाल करते हैं और वो भी जो शाकाहारी हैं ! अब ये कहना उचित नहीं है की किसी एक पक्ष के समर्थन में जाया जाए !
परन्तु व्यक्तिगत रूप से मै इसके विरोध में हूँ , और अपने आप को हमेशा विरोध में ही रखना चाहूँगा !

ndhebar
18-04-2011, 01:59 PM
कुल मिलकर एक बात स्पष्ट होती है , यह बहुत तार्किक विषय है ! खाने वालो के अपने तर्क और ना खाने वालो के अपने ! कुल मिलकर जमात दोनों में से किसी की कम नहीं है , कुपोषित वो भी होते हैं जो इसका इस्तेमाल करते हैं और वो भी जो शाकाहारी हैं ! अब ये कहना उचित नहीं है की किसी एक पक्ष के समर्थन में जाया जाए !
परन्तु व्यक्तिगत रूप से मै इसके विरोध में हूँ , और अपने आप को हमेशा विरोध में ही रखना चाहूँगा !

आप ही के हस्ताक्षर से ये विचार :-
''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'
फिर जो जिसके मन में आये करो

Kumar Anil
18-04-2011, 02:42 PM
मानव शरीर की बनावट वैसी नहीं है ये कहना उपयुक्त नहीं है /आधुनिक विकसित मानव के विकास के ५ लाख वर्ष के इतिहास में मात्र इधर के ५००० वर्षों में ही इसने ठीक से कृषि करना सिखा है /इसके पूर्व उनका आहार मुख्य रूप से मांस ही रहा है / और जहां तक मेरी जानकारी है आग के आविष्कार के पूर्व तो मांस को पकाकर भी नहीं खाया जाता था /अगर मनुष्य के पाचन तंत्र की बनावट वैसी नहीं होती तो इनका अस्तित्व ही नहीं होता /

बात तो एकदम तार्किक है । इस नज़रिये से सोचा ही नहीँ था । आपका यह तथ्यपरक दृष्टिकोण माँसाहारियोँ को अपना पक्ष मजबूत रखने मेँ सहायक सिद्ध होगा ।

Kalyan Das
20-04-2011, 08:10 AM
पर डार्विन के सिद्धांत याद आती है तो सब भूल जाता हूँ और मजे से खाता हूँ /:crazyeyes:



ज़रा विस्तार से बताएं, रणवीर भाई !!

ndhebar
04-06-2011, 12:37 AM
शाकाहारियों के लिए सुखद सूचना

एक अध्यन के अनुसार भारत में

पूर्णतः शाकाहारी आबादी( जो कभी अंडा मांस मछली नही खाते) – 50 प्रतिशत
पूर्णतः मांसाहारी आबादी (जिनको रोजाना ही मांस चाहिए) – 15 प्रतिशत
सप्ताह में एक दिन मांस खाने वाली आबादी – 10 प्रतिशत
शराब के साथ मांस का सेवन करने वालों की आबादी – 15 प्रतिशत
केवल किसी उत्सव या समारोह में मांस खाने वालों की आबादी – 5 प्रतिशत
अन्य अनिर्णीत ग्रुप जहाँ कोई खास वर्गीकरण नही है की आबादी – 5 प्रतिशत

सुज्ञ
19-12-2011, 11:47 AM
मेरा नॉन veg खाने के प्रति बहुत ही प्रेम है, हफ्ते में करीब ४-५ दिन इस तरह का खाना खाता हूँ, क्या इससे लॉन्ग टर्म में कोई नुक्सान है, कृपया विस्तार से बताये.

धन्यवाद.


दूरगामी प्रभाव के अंतर्गत, आर्थराइटिस, गालब्लैडर की पथरी, अल्जाइमर्स, आंतो का केंसर, एन्जाईना, पाचन तंत्र खराबी आदि रोगों की सम्भावना शाकाहारी की तुलना में माँसाहारी को अधिक होती है।

सुज्ञ
19-12-2011, 11:50 AM
माँस खाने से प्रहेज
लेकिन
लेदर का सामान इस्तेमाल करने वाले को आपलोग क्या कहेगेँ
जैसे जुता बैल्ड घड़ी का पट्टा जैकेट पर्स इत्यादी


हिंसा की सम्भावनाएँ देखते हुए, चमडे का उपयोग भी न करना चाहिए

सुज्ञ
19-12-2011, 12:04 PM
शाकाहारी होने का सिर्फ ये मतलब नहीं है कि आप पशु-पक्षियों के प्रति दयाभाव रखते हैं,
बल्कि इसका मतलब ये भी है कि आप पेड़-पौधों के प्रति शत्रुभाव रखते हैं...
:cheers:


तब तो माँसाहारी का दोनों पशु-पक्षियों और पेड़-पौधों दोनो से शत्रुभाव है। क्योंकि बिना शाकाहार संयोजन के मांसाहारी मात्र मांस का आहार नहीं कर सकता। दोनों में में से किसी एक से परहेज रखना उस एक आहार की हिसा के प्रति सम्वेदनशीलता तो होगी ही। सर्वाहारी का तो पूरी सृ्ष्टि से ही शत्रुभाव है।

सुज्ञ
19-12-2011, 01:13 PM
मेरी नजर में यदि नैतिकता (धार्मिक लोगों के लिए ) तथा पशु के लिए सहानुभूति वाली बात हटाकर सोचा जाए तो मांस से कोई वैसा नुक्सान नहीं है /

मांस खाने के फायदे में केवल प्रोटीन ही शामिल नहीं है इसके अतिरिक्त बिटामिन (बी ६),पोटेशियम ,फास्फोरस आदि भी प्राप्त होतें हैं
तार्किक बात तो यह है की वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार मानव शरीर के उचित पोषण के लिए एनिमल प्रोटीन आवश्यक है ( हालांकि दूध में भी ये मिलता है )
मानव शरीर की बनावट वैसी नहीं है ये कहना उपयुक्त नहीं है /आधुनिक विकसित मानव के विकास के ५ लाख वर्ष के इतिहास में मात्र इधर के ५००० वर्षों में ही इसने ठीक से कृषि करना सिखा है /इसके पूर्व उनका आहार मुख्य रूप से मांस ही रहा है / और जहां तक मेरी जानकारी है आग के आविष्कार के पूर्व तो मांस को पकाकर भी नहीं खाया जाता था /अगर मनुष्य के पाचन तंत्र की बनावट वैसी नहीं होती तो इनका अस्तित्व ही नहीं होता /

नैतिक रूप के कहें तो मै भी इसका समर्थन नहीं करता
पर डार्विन के सिद्धांत याद आती है तो सब भूल जाता हूँ और मजे से खाता हूँ /:crazyeyes:



अगर अहिंसा के प्रति नैतिकता और पशु जीवन के प्रति सहानुभूति को निकाल भी दिया जाय तब भी पोषण, आरोग्य और पर्यावरण के दृष्टिकोण से मांसाहार अनुचित है।

प्रोटीन वही उत्तम है जो हमारा शरीर स्वयं निर्मित करे, पशु- प्रटीन सेच्युरेटेड होता है, क्यों कि वह पूर्व ही पूर्णता पा चुका होता है। ऐसे प्रोटीन के मस्तिक्ष में जमा हो जाने की अधिक सम्भावनाएं होती है। जिस से अल्जाईमर्स नामक बिमारी की सम्भावनाएं प्रबल होती है।

नवीनत्तम शोध कहती है कि प्रागैतिहासिक मानव शाकाहारी भी था।

डार्विन का सिद्धांत तो विकासवाद का है, एक कोशिय जीव से पंचेन्द्रीय पशु और मानव तक का, उन के सिद्धांत से तो अधिक विकसित जीव को आहार बनाना प्रकृति का क्रूरत्तम शोषण है। विकसित का विनाश है। संसाधनों का दुरपयोग है। अगर इस बात को नज़रअंदाज़ किया जाता है तो यह आग मानव के पेरों तक पहुंचेगी।

सुज्ञ
19-12-2011, 01:16 PM
शाकाहारियों के लिए सुखद सूचना

एक अध्यन के अनुसार भारत में

पूर्णतः शाकाहारी आबादी( जो कभी अंडा मांस मछली नही खाते) – 50 प्रतिशत
पूर्णतः मांसाहारी आबादी (जिनको रोजाना ही मांस चाहिए) – 15 प्रतिशत
सप्ताह में एक दिन मांस खाने वाली आबादी – 10 प्रतिशत
शराब के साथ मांस का सेवन करने वालों की आबादी – 15 प्रतिशत
केवल किसी उत्सव या समारोह में मांस खाने वालों की आबादी – 5 प्रतिशत
अन्य अनिर्णीत ग्रुप जहाँ कोई खास वर्गीकरण नही है की आबादी – 5 प्रतिशत


यह शोध वास्तव में भारत के सन्दर्भ में विवेकशीलता की द्योतक है।:think:

सुज्ञ
19-12-2011, 03:27 PM
यह शोध वास्तव में भारत के सन्दर्भ में विवेकशीलता की द्योतक है।:think:

मांसाहार और शाकाहार किसी बहस का मुद्दा नहीं है
ना ही यह किसी धर्म विशेष की जागीर है
और ना ही यह मानने और मनवाने का विषय है|
कुल मिला कर इन्सान का जिस्म इस क़ाबिल है
कि वह सब्जियां भी खा सकता है
और माँस भी, तो जिसको जो अच्छा लगे खाए |
इससे न तो पर्यावरण प्रेमियों को ऐतराज़ होना चाहिए,
ना ही इससे जानवरों का अधिकार हनन होगा |
अगर आपको मासं पसंद है तो माँस खाईए और अगर आपको सब्जियां पसंद हों तो सब्जियां |
आप दोनों को खाने के लिए अनुकूल हैं|

क्यों पर्यावरण प्रेमियों को एतराज़ न होना चाहिए? क्या पर्यावरण के प्रति सभी का उत्तरदायित्व नहीं बनता?

दुनियाभर में शाकाहार को बढ़ावा देने वाली प्रतिष्ठित संस्था ‘पेटा’ की प्रवक्ता बेनजीर सुरैया ने कहा- "लेकिन शाकाहार के पक्ष में यह बात सबसे महत्वपूर्ण साबित होती है कि इसके जरिये प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचने की बजाय लाभ होता है।"

sombirnaamdev
17-03-2012, 08:07 PM
यह वस्तुएं प्राकृतिक रूप से मरे हुए जानवरों के चमड़े की भी बन जाती हैं लेकिन भोजन में मांस मरे हुए जानवर का नहीं, मारे हुए जानवर का होता है ye baat ek dum sahi or satik hai