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View Full Version : अघोषित आलसी का इकबालनामा


ABHAY
28-12-2010, 12:07 PM
उफ़ कहाँ से शुरू करूँ........ सर्दी बहुत थी, आलस का समय....... रजाई से बहुत ज्यादा प्रेम....... घर में ही बैठकर कोहरे के बारे में सोचना...... गाँव में सरसों बढ़ रही है......... पाणी लग रहा होगा..... बाजरे की रोटी ... सरसों के साग के साथ साथ गुड या फिर लहसुन की चटनी और बथुए का रायता... सब कुछ रजाई में बैठ कर ही याद आता है.... आलसपन ही हद........ १०० किलोमीटर दूर गाँव जाने से भी कतरा रहा हूँ........ ऊपर से मेरी जोगन (श्रीमती) को भी सुनाम-पंजाब जाना है – उसकी तयारी अलग से – कब छोड़ने जायूँगा..... कुछ पक्का नहीं है........

ABHAY
28-12-2010, 12:08 PM
घर में आये...... भांजे-भांजियों की मस्ती......... एक त्यौहार का वातावरण............ कितना बढ़िया लग रहा है......... सबसे छोटी भांजी में तो मुझे नानू कहना शुरू कर दिया है....... और मैं दिमागी रूप से उम्र का एक और पड़ाव पार कर रहा हूं.......

ABHAY
28-12-2010, 12:09 PM
ऊपर से कार्य का दबाव........ ६ तरीक तक एक और मगज़िने छाप कर देनी है....... अभी डिज़ाइन भी शुरू नहीं किया....... राम जी खैर करे.........

ABHAY
28-12-2010, 12:10 PM
और इसी सब के इस चिटठा जगत के मित्रों से दूरी......... आलस्य भारी पड़ता है.... सभों और. आज सीट पर बैठे है तो देखते है सभी भई लोग कार्यशील हैं..... एक मुझ आघोषित आलसी को छोड़ कर ....कहाँ से शुरू करूँ...... किस ब्लॉग पर पहले जाऊ.... क्या क्या पढूं...... सभी तो मनपसंद है.... पोसिशन उसी सावन में गधे जैसी........... पुराने दिन याद आते हैं, ऐसे लगता है...... १ सप्ताह स्कूल नहीं गया........ होम वर्क बहुत रह गया है... कौन से सब्जेक्ट पहले कवर करूँ....... इसी उहापोह में कुछ भी नहीं करता था..... और बस सरजी के २ थप्पड़ का इन्तेज़ार रहता था...... वो पड़े और दिल को चैन मिले....... बुद्धि बहुत थी, कोई जरूरी नहीं है कापी भरना..... बस थप्पड़ से बचने के लिए ही तो भरता था..... दिल-दिमाग तो पढ़ाई से कोसों दूर रहता था....... राम जी, इतनी बुद्धि के साथ साथ थोड़ी सद्बुद्धि भी दे देते...... पर अब ऐसा नहीं है... पढ़े-लिखे विद्वान ब्लोगर भाइयों का साथ है, ..... जो पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया आज इन्ही सब के बीच पूरी करने का प्रयत्न करता हूं.

ABHAY
28-12-2010, 12:11 PM
रविवार को संजोग से पुस्तक मैले के दर्शन भी कर आया...... और कुछ किताबें भी खरीदी – उसमे सबसे उल्लेखनीय ....... आवारा मसीहा....... पिछले कई वर्षों से पढ़ने की सोच रहा था. छोटे बहनोई (सुनील जी) साथ थे...... गेट पर हेलिकोप्टर (बच्चों के खिलोने) बिक रहे थे ७५ रुपे का एक..... जब तक मैं टिकट ले कर आया तो सुनील जी ने भाव बनाया.... १०० के ४. मैंने मना कर दिया कहाँ अंदर ले कर घुमते रहेंगे....... राकेस (खिलोने बेचने वाला) का मुंह उतर आया.... अंकल जी आपसे ही बोहनी करनी थी...... रेट भी ठीक लगा दिए..... मैंने २० रुपे उसे दिए...... भई जब बाहर आयेंगे तो ले लेंगे.... और हम लोग अंदर चले गए..... बाहर लौटे तो ७ बज़ रहे थे..... और खिलोनेवाले को भूल गए थे..... पर वो हमारी इन्तेज़ार में बैठा था..... सारा सामान समेट कर. भागता भागता पीछे आ गया..... बोला अंकलजी खिलोने नहीं लेने...... मैंने फिर मना कर दिया....... बोला अपने पैसे वापिस ले लो... आपके इन्तेज़ार में इतनी सर्दी में बैठा था......... उसकी इमानदारी ने सोचने पर मजबूर कर दिया..... सर्दी बहुत थी सही में वो जा सकता था.... .. सुनील जी ने उसे १०० रुपे और दिए ...... हेलिकोप्टर घर को तहस-नहस करने घर आ गए........ राकेस तुम्हारी इमानदारी को प्रणाम

ABHAY
28-12-2010, 12:13 PM
सितम ढहती कुछ चुटकियाँ........
बहुत कविता कर ली, पर चैन नहीं आया..... ख़बरें और आ रही है..... दिल को झंझ्कोर कर रख रही है..... वास्तविकता है ...... चुटकियाँ है.... अरे नहीं आपके लिए नहीं .......... पर दौलतमंद दलालों के लिए तो मात्र चुटकियाँ हैं .......
पढ़ लीजिए...... और दर्द महसूस कीजिए...... क्योंकि जो दर्द था वो तो सौदागर ले गया....

ABHAY
28-12-2010, 12:14 PM
श्रीमती जी जब प्याज काट रही थी ... तो बातों बातों में दाम पूछने लगी..... मैं मुस्कुरा उठा...... उनको मेरी मुस्कराहट कुछ रहस्यमई लगी..... बोली कि हम प्याज का भाव पूछ रहे है..... और तुम विष्णु भगवान की तरह मुस्कुरा रहे हो..... अजीब लग रहा है तुम्हारा ये मुस्कुराना ...... दाम काहे नहीं बताते..... मैंने जवाब दिया आज तक तो पूछा नहीं आज किस बात की जिद्द है..... वो बोली, आज प्याज काटने पर आंसू ज्यादा आ रहे है..... मैंने मन को मज़बूत करते हुए जवाब दे ही दिया ७० रुपे किलो....... तो उसका हाथ एकदम अपने गाल पर चला गया....... पूछने पर बताने लगी.... कांग्रेस का हाथ अपने गाल पर महसूस कर रही हूँ..

ABHAY
28-12-2010, 12:14 PM
दिल्ली से १०० किलोमीटर दूर गाँव मानका (राजस्थान) से आया एक किसान बहुत खुश है...... आजादपुर मंदी में उसके खेत के प्याज २२ रुपे ७५ पैसे किलो के हिस्साब से बिके है...... कम से कम बीजों और कीटनाशक, खाद और पानी के पैसे तो निकल आये....... अपनी मजदूरी तो गई तेल लेने ...... पहले कभी मिली है क्या.

Hamsafar+
28-12-2010, 12:14 PM
वह कविले तारीफ प्रयास ...सूत्र के नाम "थैंक्स (5)"

ABHAY
28-12-2010, 12:15 PM
महान लोकतान्त्रिक देश की राजमाता ने अपनी पार्टी के महाधिवेशन के शुरू में शर्मो-शर्मा वंदे मातरम गाने का आदेश दिया....... सभी लोग खड़े होकर वन्देमातरम गाने लगे ..... पर माईक से अजीब अजीब आवाजे आने लग गयी....... पता नहीं गले के शर्मनिरपेक्ष सुर आदेश का साथ नहीं दे रहे थे या फिर साउंड के ठेकेदार को पैसे की चिंता थी......कि वंदे मातरम गाया तो गया पब्लिक तक नहीं पहुंचा और ........ राजमाता की नाक बच गई..... नहीं तो मुस्लिम वोटरों को क्या जवाब देती.

ABHAY
28-12-2010, 12:17 PM
नटखट राजा भागता भागता घर आया और अपने पिताजी से दिक् करने लगा “पापा पापा हमारा नाम बदल दो” क्या हुआ बेटा..... पापा सकूल में सभी छात्र कभी मुझे ऐ राजा और कभी दिग्गी राजा कह कर बुलाते हैं.......
अरे बेटा तेरा नाम तो बदल दूँगा....... पर पहले दरवाज़े से वो स्टिकर हटा दो..... “गर्व से कहो हम हिंदू हैं.”
क्यों पापा,
कहीं पुलिस वाले हमें आंतकवादी समझ कर गिरफ्तार न कर लें.....

ABHAY
28-12-2010, 12:17 PM
और जाते जाते एक और चुटकी ......
बस का ड्राइवर टाटा नैनो को देख कर मुस्कुरा उठा...... और मुझ से मुताखिब होकर बोला...... बाऊजी, ये देखो टाटा का एक और मजाक......
मैंने कहा, पहला और कौन सा मजाक था.....
बाऊजी, याद करो टाटा मोबाइल फोन, ....... गरीब आदमी को १२०० १२०० रुपे में चाइनीज़ घटिया सेट पकड़ा दिया...... और वो हर २ महीने बाद २००–२०० रुपे की बैटरी उसमे डलवाता रहता था.

ABHAY
28-12-2010, 12:18 PM
दर्द का खरीदार हूं

दर्द का खरीदार हूं,
दर्द खरीदता हूँ......
जितने दर्द हो दे दीजिए.......


बहुत अजीब लगा.... ये फेरी वाला


मैडम ....... ढूंढ लीजिए..
दिलों दिमाग में,
कल फिर आ जायूँगा...
क्यों भई, क्या रेट खरीदोगे.. दर्द
मैडम, दर्द का कोई भाव नहीं......
ये तो बेमोल है....
जितना संभाल सकते हो ....
उतना ही संभालिए.....
न संभले तो हमें दीजिए.....
बराबर तौल कर खुशियाँ दे जाऊँगा...
आपका दर्द ले जाऊँगा.

नहीं भई, आजकल जमाना कैश का है...
खुशियाँ क्या करनी है.....
उन्हीं खुशियों के बदले ही तो दर्द लिया है...
तुम दर्द ले जायो ...और कैश दे जाना...
ठीक है, बीवी जी, जैसे आपकी मर्ज़ी.....
मैं नहीं देखता... नफा नुकसान..
मुझे नहीं मालूम सही पहचान....
बस ऐसा ही सौदागर हूं.

ABHAY
28-12-2010, 12:19 PM
वैश्या और रिक्शेवाला

जमा देने वाली सर्दी और उफ़ ये धुंध...
वो बैठी है रिक्शे में....
बेकरारी से निहार रही है –
आस पास गुजरते गाडी वालों को.
५० रुपे का ठेका है...
रिक्शे वाले के साथ....
ग्राहक न मिलने तक...
यूँ ही घुमाता रहेगा
इस महानगर के राजमार्ग पर

ABHAY
28-12-2010, 12:20 PM
वह कविले तारीफ प्रयास ...सूत्र के नाम "थैंक्स (5)"

शुक्रिया भाई बैसे हम लोगो के सूत्र पे गिने चुने लोग ही आते है :hi:

ABHAY
28-12-2010, 12:20 PM
.... मेरे मौला, कोई गाहक भेज..
रिक्शे वाला भी दुआ कर रहा है...
एक गाड़ी से चेहरा बाहर निकलता है..
रेट ?
३०० रूपये एक के..
और गाड़ी चल देती है.
रिक्शे वाला गुस्सियाता है...
काहे, बाई कित्ता घुमाएगी...
चल देती इसके साथ २०० में...

ABHAY
28-12-2010, 12:21 PM
अरे, तू क्या जाने औरत कर दर्द
मुए चार बैठे है गाड़ी में..
बाई, २०० तो मिलते.........
थोड़ी देर बाद फ्री में ले जायेंगे तेरे को...
कल सुबह टीवी में मुंह छुपाती फिरेगी.....

आजकल ऐसी सनसनी के लिए
टी वी चैनल भी तो बहुत तेज है.

ABHAY
28-12-2010, 12:22 PM
विद्रोही का ब्रह्मज्ञान और कविता

देखो विद्रोही, कितनी मस्ती है दिल्ली में, गुलाबी ठण्ड का मौसम है, लोगबाग दिव्य मार्केटों में घूम रहे हैं, चिकन-बिरयानी और मक-डोनाल के साथ मौसम का मज़ा ले रहे हैं. सरकार ने इतने बड़े-बड़े माल बनवा रखे हैं, ऐसे-ऐसे सिनेमा हाल बना रखे है की इन्द्र देवता भी फिल्म देखने को तरसे- क्या है कि अब वो भी तो अपनी अप्सराओं के नृत्य से परेशान हो गए हैं – क्योंकि वो अप्सराएं मुन्नी बदनामी और शीला की जवानी से डिप्रेशन की शिकार हो गयी हैं. उनमे अब वो लय और गति नहीं रह गयी. और एक तुम हो, कि मुंह लटका कर बेकार ही परेशान होते रहते हो. सरकार कि समस्त सुविधाओं का मज़े लो..... नए-नए मनभावन ठेके और बार खुले हैं – अच्छी वराइटी की दारू मिल रही है – जाओ खरीदो और पान करो. पर क्या करें? हम हैं तो कर्महीन ही – कर्महीन: अरे भाई, तुलसी दास जी फरमा गए है : सकल पदार्थ इ जग माहि – कर्महीन पावत नाहीं. तो भाई सभी पदार्थ मौजूद हैं – थोड़ी अंटी ढीली करो और मौज लो.

ABHAY
28-12-2010, 12:22 PM
ये ब्रह्मज्ञान आज ही राजौरी गार्डन की मार्केट में मिला है, रोज-रोज व्यवस्था को कोसना अच्छी बात नहीं. छोड़ दिया है कोसना ....... जैसा है–जहाँ है के आधार पर सब ठीक है.... पर पता नहीं कब तक? कब तक ये ज्ञान मेरे विद्रोही स्वर को दबा कर रखेगा... कुछ भी नहीं कह सकते ... दूसरा पैग लगाते ही की-बोर्ड की दरकार हो उठती है और बन्दा बेकरार हो उठता है..... चलो कविता ही सही. नहीं आती लिखनी तो भी लिखो.

ABHAY
28-12-2010, 12:23 PM
सामने अलाव सेंकते मजदूर
सीधे साधे अच्छे लगते है
कम से कम सीने में सुलगती भावनाओं को
इंधन दे - भडका तो सकते हैं.
अपने सुख-दुःख इक्कट्ठे बैठकर
झोंक देते हैं उस अग्नि में
और, सब कुछ धुआं बन उड़ जाता है.

ABHAY
28-12-2010, 12:24 PM
उधर उस मरघट में
उठती लपटें भी सकूं देती है
चलो, अच्छा ही हुआ,
एक व्यक्ति अपनी मंजिल तक पहुंचा...
तमाम चिंताएं, दुश्वारियां
अग्नि के हवाले कर.
वो निश्चित होकर चल दिया...
और, सब कुछ धुंए में उड़ जाता है.

ABHAY
28-12-2010, 12:24 PM
दूर घाट के पार अघोरी
जो चिता की आग से
अपनी धूनी जमाये बैठा है
खुनी खोपड़ी - कटा निम्बू,
कुछ सिन्दूर – शास्वत सा.
और मदिरा... आहुति के लिए
अपने कर्म-दुष्कर्म,
मदिरा बन होम कर दिए अग्नि में
और
सब कुछ धुंए में उड़ जाता है.

ABHAY
28-12-2010, 12:25 PM
और मैं यहाँ ....
अपने घर में....
जहाँ सास-बहु के रिश्तों की सनक
नहीं देखने देती राष्ट्रीय नेताओं की हरकत....
कसमकसा रहा हूँ ...
उस मजदूर का, मरघट का और अघोरी का
धुंवा अंदर भर रहा हूँ..
विद्रोह दबा रहा हूँ...
अग्नि अंदर ही अंदर सुलगा रहा हूँ.
-:-

ABHAY
28-12-2010, 12:31 PM
सच इस महंगाई में तो पतिव्रता नारी बनना भी कित्ता मुश्किल है....
जाते जाते ......
संता सिंह जब घर पहुंचा तो बीवी ने पूजा की तैयारी कर रखी थी.... घर का वातावरण बहुत आलौकिक लग रहा था..
मैं क्यया भागवान ऐ की कर रही है...
कुज नई, तुवाडा ही स्यापा कर रही हाँ.......


और हाँ, अभी एक मित्र का sms आया है, बिलकुल सटीक बैठ रहा है इस मौके पर :
लक्ष्मी जी का वाहन, उल्लू एक बार नाराज़ हो गया.... बोला ... ये माता, आपकी पूजा दुनिया करती है पर मुझे कोई नहीं पूजता..
इस पर माता बोली... परेशान मत हो.... आज तुने शिकायत की है तो ठीक है. अब मेरी पूजा से ठीक ११ दिन पहले तेरी भी पूजा होगी.. और इसी प्रकार उस दिन को "करवाचौथ" कहा जाने लगा.

ABHAY
28-12-2010, 12:45 PM
एक पोस्ट गंगा राम की तरफ से.......
बाबा मेरी बात सुनो......, गधा बनना मंज़ूर है ........ पर खुदा किसी को छोटा भाई न बनाये.......
रे गंगा राम के बात हो गयी.

कुछ नहीं बाबा, बस एक बात गधा बनना मंज़ूर है ........ पर खुदा किसी को छोटा भाई न बनाये.......
अरे फिर भी कुछ तो बोलेगा...

अब क्या बोलूं बाबा, घर में हम पांच भाई, मैं सबसे छोटा - गंगा राम..
ठीक है, इसमें के... एक न एक ने तो छोटा होना ही था....... तू हो गया.

नहीं बाबा, तेरा कोई बड़ा भाई है...
नहीं - गंगा राम..... न तो मेरा कोई बड़ा भाई है न ही कोई छोटा...पण तेरे जीसे छोटे-बड़े घने भाई से.....

बाबा, मैं असल की बात करूँ और तू बातां की खान लग रहा....
नहीं गंगा राम, मेरो कोई बड़ो भाई कोणी......
जी बात....

बाबा.... इब मैं अपना दर्द सुनाऊं .......
सुना भाई छोरे....

ABHAY
28-12-2010, 12:46 PM
पहला बोला, रे गंगाराम, भैंसों ने सानी कर दे हमने सूट और बूट पहन रखे हैं....
ठीक है भैया.....
दूसरा बोला, रे गंगाराम, जा जीजी ने घर छोड़ आ, और हाँ जे सूट और बूट पहर जईओ - इज्जत का सवाल है .... हमने काम ज्यादा है....
ठीक है भैया.....
तीसरा बोला, रे गंगाराम, जा खेता में चला जा, पानी लगा दिए.... आज बिजली रात की है.
ठीक है भैया.....
चोथा बोला, रे गंगा राम, अब ये सूट और बूट तू पहन ले, मेरे पे छोटे हो गए.
ठीक hai
और हाँ, रात चला जाईये, प्रधान जी ने दारू पी राखी होगी.... उने राम राम कर दिए - जरूर, बापू ने मने कही थे.... पर मेरे कपडे ठीक कोणी - तने सूट और बूट पहर रखे हैं

भाई जे है छोटे भाई की दास्ताँ, अगर खुद सूट और बूट पहने तो कोई काम न करे ..... और हमने पहर लिए तो प्रधान जी तैयार........

Hamsafar+
28-12-2010, 12:58 PM
बहुत अच्छे . शानदार काम