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View Full Version : हिरासत में यातनाये ?????


Hamsafar+
29-12-2010, 01:38 PM
भारत में पुलिस का आतंक इस हद तक नकारात्मक है कि आम आदमी हमेशा पुलिस से बचने की कोशिश करता है। पुलिस की डर की वजह से ही हमारे देश में बहुत से घायल या बीमार सड़क पर पड़े-पड़े ही दम तोड़ देते हैं, पर उसे कोई अस्तपताल तक नहीं पहुँचाता है। अभी हाल ही में दिल्ली के कनॉट सर्कस के एम ब्लॉक के निकट शंकर मार्केट में एक औरत बच्चे को जन्म देकर मर गई। वह औरत वहाँ तीन दिनों से पड़ी थी, बावजूद इसके किसी की संवेदना नहीं जागी। अगर सच कहा जाए तो उस औरत की मौत का एक बहुत ही बडा कारण आम लोगों के मन में पुलिस के भय का होना भी है। आज की तारीख में सभी पुलिस के पचड़े से बचना चाहते हैं।

Hamsafar+
29-12-2010, 01:38 PM
आम लोगों को पुलिस परेषान तो पहले ही कर रही थी, लेकिन हाल ही के वर्षों में उनकी हिरासत में आरोपियों के मरने का ग्राफ तेजी बढ़ा है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों को यदि मानें तो केवल 2008 से 2009 के बीच ही 1000 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हो चुकी है। ज्ञातव्य है कि 1990 से लेकर 2007 तक के बीच तकरीबन 17000 हजार आरोपी पुलिस हिरासत में मर चुके थे। इस मामले में सबसे अधिक हालत बिहार और उत्तारप्रदेश में खराब है, परन्तु आंध्रप्रदेश तथा महाराष्ट्र की पुलिस भी थर्ड डिग्री के इस्तेमाल करने में किसी से कम नहीं है।

Hamsafar+
29-12-2010, 01:39 PM
हालांकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के यातना उन्मूलन समझौते पर 1997 में हस्ताक्षर किया था। फिर भी इस दिशा में अमल करने की कोशिश अभी तक भारत में नहीं हुई है, जबकि 140 से अधिक देशों ने संयुक्त राष्ट्र के यातना उन्मूलन समझौते के मसौदे को पूरी तरह से अपने यहाँ लागू कर दिया है।


भारत का प्रस्तावित यातना निवारण विधेयक 2010 खामियों की वजह से आजकल चर्चा में है। दरअसल यह बिल यातना निवारण की जगह यातना को बढ़ावा देने वाला है। यदि यह बिल अपने वर्तमान स्वरुप में कानून बनता है, तो उससे पुलिस का मनोबल बढ़ेगा और पुलिस हिरासत में बेखौफ होकर यातना दी जाएगी।

Hamsafar+
29-12-2010, 01:39 PM
आरोपी से सच उगलवाने के लिए पुलिस अक्सर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करती है और कभी-कभी यह थर्ड डिग्री जानलेवा साबित हो जाता है। इसमें दो मत नहीं है कि वास्तविक अपराधी थेथर होते हैं और वे आसानी से अपना मुहँ नहीं खोलते हैं, पर अधिकांशत: पुलिस अपने हिरासत में ऐसे लोगों को लेती है जो अपराधी नहीं होते हैं। अपनी आदत से लाचार पुलिस उनपर भी थर्ड डिग्री का प्रयोग करती है और निर्दोष आरोपी उनकी हिरासत में मारा जाता है। यदि वास्तविक अपराधी की मौत हिरासत में हो तो इतना हो-हल्ला नहीं मचे, किन्तु आज निर्दोष आरोपी ही हिरासत में ज्यादातर बेमौत मर रहे हैं।

Hamsafar+
29-12-2010, 01:40 PM
इस संदर्भ में सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि पुलिस हिरासत में यदि किसी की मौत होती है तो भी संबंधित पुलिस कर्मचारी या अधिकारी पर कत्ल का मुकदमा नहीं चलता है। अपराध साबित होने के बावजूद नये प्रस्तावित कानून में अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है। जबकि भारतीय दंड संहिता के अनुसार यदि किसी की हिरासत में मौत होती है तो दोषी को उम्रकैद या मौत की सजा तक दी जा सकती है।

Hamsafar+
29-12-2010, 01:40 PM
यातना निवारण विधेयक 2010 के विवाद में होने का मूल कारण यही है। आखिर दोषी पुलिसवाले को इतनी कम सजा देने का प्रावधान इस विधेयक में क्यों रखा गया है? दूसरी आपत्तिजनक प्रावधान इस विधेयक में यह है कि दोषी पुलिसवाले के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाने की समय सीमा 6 महीने रखी गई है। इतना ही नहीं इस प्रस्तावित कानून में अंग-भंग होने या मौत होने की स्थिति में ही हिरासत में रहने वाले आरोपी के रिष्तेदार दोषी पुलिसवाले के खिलाफ शिकायत दर्ज करवा सकते हैं। इसके विपरीत संयुक्त राष्ट्र के यातना उन्मूलन समझौते के मसौदे के अनुसार शारारिक और मानसिक प्रताड़ना दोनों ही यातना की परिभाषा के तहत आते हैं।


यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि यदि कोई दोषी पुलिसवाले के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाता है तो उसकी जाँच किसी स्वतंत्र एजेंसी से नहीं करवायी जा सकती है और न ही इस प्रस्तावित विधेयक में किसी तरह के मुआवजा देने का प्रावधान पीड़ित के परिवार को है।

Hamsafar+
29-12-2010, 01:40 PM
गौरतलब है कि लोकसभा में यह बिल 3 महीने पहले 6 मई 2010 को बिना किसी बहस के पास हो गया था। राज्यसभा में सीपीआई की वृंदा कारत, जेडयू के एन के सिंह, भाजपा के प्रकाश जावडेकर, सपा के मोहन सिंह इत्यादि सांसदों के जर्बदस्त विरोध के कारण राज्यसभा ने इस बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा है, लेकिन यहाँ यह प्रश्न उठता है कि क्या हमारे माननीय सांसदों का यह कर्तव्य नहीं है कि वे प्रत्येक विधेयक की महत्ता को समझकर उसके गुण-दोष की जाँच करें? वे कानून बना रहे हैं, कोई खेल नहीं खेल रहे हैं। विश्लेषण के अभाव में अगर कोई गलत कानून बनता है तो उसका कितना नकारात्मक असर आम आदमी पर पड़ेगा, इसके बारे में हमारे माननीय सांसदों को आम लोगों के नजरिये से सोचना चाहिए। केवल अपनी तनख्वाह और भत्ता बढ़ाने से देश नहीं चलता है।
जरुरत इस बात की है कि संसद में प्रत्येक कानून पर बहस हो और साथ ही साथ उसका सकारात्मक विश्लेषण भी। अगर जनता के प्रतिनिधि जनता का ही ख्याल नहीं रखेंगे और गुप्त समझौतों के द्वारा देश और जनता के लिए अहितकर कानून इसी तरह बनाते रहेंगे तो इस देश को भगवान भी नहीं बचा पायेगा।


-सतीश सिंह

jeba2002
29-12-2010, 02:52 PM
sir jee isme main apne hardoi ka ek video lagana chahta hu. izazat ho to you tube se laga du?

Hamsafar+
29-12-2010, 02:56 PM
sir jee isme main apne hardoi ka ek video lagana chahta hu. izazat ho to you tube se laga du?
यदि चलचित्र में क्रूरता दिखाई गयी हो तो मत दिखाइए .या एक बार प्रबंधन की राय लेलें. :cheers:

jitendragarg
29-12-2010, 02:59 PM
@हमसफ़र

कृपया जहाँ तक हो सके एक पोस्ट को अलग अलग टुकड़ों में न बाटें! पिछले कई पोस्ट में आपने हर ४ लाइन अलग अलग पोस्ट की है. ऐसे करने से सिर्फ पढने में ही दिक्कत होती है, फायदा तो होता नहीं! अगर सारी बात एक ही पोस्ट में करेंगे तो पढने में आसानी रहेगी.

:cheers:

Hamsafar+
29-12-2010, 03:03 PM
@हमसफ़र

कृपया जहाँ तक हो सके एक पोस्ट को अलग अलग टुकड़ों में न बाटें! पिछले कई पोस्ट में आपने हर ४ लाइन अलग अलग पोस्ट की है. ऐसे करने से सिर्फ पढने में ही दिक्कत होती है, फायदा तो होता नहीं! अगर सारी बात एक ही पोस्ट में करेंगे तो पढने में आसानी रहेगी.

:cheers:
जीतेंद्र बाबु एक साथ लिखने में तो पढ़ने में और जादा समस्या आएगी. वो कहते हे न उतना खाना खाना चाहिए जितना हज़म हो सके. इसलिए थोडा थोडा दे रहा था. परेशान मत होइए. अब जब दूंगा तो एक साथ दूंगा

jeba2002
29-12-2010, 03:39 PM
http://www.youtube.com/watch?v=enZ9Yr0twlM


http://www.youtube.com/watch?v=enZ9Yr0twlM

YUVRAJ
04-01-2011, 10:59 AM
अहा हा हा हा हा ...:lol:
गजब है यारों ऐसा भी होता है ...:eek:

sir jee isme main apne hardoi ka ek video lagana chahta hu. izazat ho to you tube se laga du?

http://www.youtube.com/watch?v=enZ9Yr0twlM


http://www.youtube.com/watch?v=enZ9Yr0twlM