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View Full Version : बुरी ख़बरें ही...


YUVRAJ
08-01-2011, 01:49 PM
दोस्तों .....:)
बुरी ख़बरें सनसनी पैदा करती हैं और इसीलिए उन्हें प्रमुखता से छापा भी जाता है/
किसी भी तारीख का कोई सा भी अखबार उठाकर देख लीजिए/ भ्रष्टाचार, हत्या, डकैती या बलात्कार जैसी बुरी ख़बरें ही प्रमुखता से छपी होंगी/ अच्छी खबर यदि कोई छपी भी होगी तो इस तरह कि उसे ढूँढने के लिए आपको अखबार बहुत ध्यानपूर्वक पढ़ना होगा/
लेकिन क्रोएशिया से निकलने वाले एक अखबार के संपादक की सोच कुछ अलग है/ उनका नाम एलन गेलोविक है और उनके अखबार में सिर्फ और सिर्फ अच्छी ख़बरें ही छापी जाती हैं/
वे मंत्रियों के भ्रष्टाचार की ख़बरें नहीं छापते, बल्कि उस हज्जाम के बारे में लिखते हैं जो अनाथ बच्चों के बाल मुफ्त में काटता है/ डाके और बलात्कार की रिपोर्टिंग करने के बजाय वे एक कुत्ते का जीवन बचाने के लिए चलाये गए बचाव अभियान को प्रमुखता से छापते हैं/
सच तो ये है कि हम सभी अच्छी ख़बरें ही पढ़ना-सुनना चाहते हैं लेकिन हमें बुरी ख़बरें ही ज्यादा परोसी जाती हैं/
बहरहाल, “२४ साता” नामक इस अच्छे अखबार से जुड़े सभी लोग साधुवाद :clap:के पात्र हैं/
हमारी शुभकामनायें...:thank-you:

:cheers:

Based on information from – Yahoo News, Dated 02/01/2011

Kumar Anil
08-01-2011, 03:04 PM
दोस्तों .....:)
बुरी ख़बरें सनसनी पैदा करती हैं और इसीलिए उन्हें प्रमुखता से छापा भी जाता है/
किसी भी तारीख का कोई सा भी अखबार उठाकर देख लीजिए/ भ्रष्टाचार, हत्या, डकैती या बलात्कार जैसी बुरी ख़बरें ही प्रमुखता से छपी होंगी/ अच्छी खबर यदि कोई छपी भी होगी तो इस तरह कि उसे ढूँढने के लिए आपको अखबार बहुत ध्यानपूर्वक पढ़ना होगा/
लेकिन क्रोएशिया से निकलने वाले एक अखबार के संपादक की सोच कुछ अलग है/ उनका नाम एलन गेलोविक है और उनके अखबार में सिर्फ और सिर्फ अच्छी ख़बरें ही छापी जाती हैं/
वे मंत्रियों के भ्रष्टाचार की ख़बरें नहीं छापते, बल्कि उस हज्जाम के बारे में लिखते हैं जो अनाथ बच्चों के बाल मुफ्त में काटता है/ डाके और बलात्कार की रिपोर्टिंग करने के बजाय वे एक कुत्ते का जीवन बचाने के लिए चलाये गए बचाव अभियान को प्रमुखता से छापते हैं/
सच तो ये है कि हम सभी अच्छी ख़बरें ही पढ़ना-सुनना चाहते हैं लेकिन हमें बुरी ख़बरें ही ज्यादा परोसी जाती हैं/
बहरहाल, “२४ साता” नामक इस अच्छे अखबार से जुड़े सभी लोग साधुवाद :clap:के पात्र हैं/
हमारी शुभकामनायें...:thank-you:

:cheers:

based on information from – yahoo news, dated 02/01/2011

प्रिन्ट मीडिया जब सनसनीखेज खबरोँ को प्रमुखता से छापता है तो वह पीत पत्रकारिता की श्रेणी मेँ आता है और उसकी भर्त्सना होनी ही चाहिये मगर हर सिक्के के दो पहलू होते हैँ और हर समाज अच्छे और बुरे दोनोँ ही लोगोँ से मिलकर बनता है । जब कोई अखबार अच्छी खबर छाप कर समाज के लिए सकारात्मक माहौल पैदा कर लोगोँ को अच्छे कार्योँ की प्रेरणा देता है । तब फिर उसी अखबार का यह पुनीत दायित्व भी बनता है कि सफेदपोश लोगोँ के काले चेहरोँ , पुरुषोँ की खाल मेँ छिपे बलात्कारी भेड़ियोँ के चेहरोँ को बेनकाब कर उनका वास्तविक रूप उजागर करे ताकि हम उनसे सावधान रहकर बुरे कार्योँ से दूर रहेँ । बशर्ते अखबारोँ का यह कृत्य पीत पत्रकारिता से दुष्प्रेरित न हो ।

YUVRAJ
08-01-2011, 03:18 PM
साही बात की आपने ... :clap:
खुदा बेवकूफों को महफूज रखे, उन्हें खत्म न हो जाने दे; क्योंकि अगर वो न रहे तो समझदारों की रोजी मुश्किल हो जायेगी।प्रिन्ट मीडिया जब सनसनीखेज खबरोँ को प्रमुखता से छापता है तो वह पीत पत्रकारिता की श्रेणी मेँ आता है और उसकी भर्त्सना होनी ही चाहिये मगर हर सिक्के के दो पहलू होते हैँ और हर समाज अच्छे और बुरे दोनोँ ही लोगोँ से मिलकर बनता है । जब कोई अखबार अच्छी खबर छाप कर समाज के लिए सकारात्मक माहौल पैदा कर लोगोँ को अच्छे कार्योँ की प्रेरणा देता है । तब फिर उसी अखबार का यह पुनीत दायित्व भी बनता है कि सफेदपोश लोगोँ के काले चेहरोँ , पुरुषोँ की खाल मेँ छिपे बलात्कारी भेड़ियोँ के चेहरोँ को बेनकाब कर उनका वास्तविक रूप उजागर करे ताकि हम उनसे सावधान रहकर बुरे कार्योँ से दूर रहेँ । बशर्ते अखबारोँ का यह कृत्य पीत पत्रकारिता से दुष्प्रेरित न हो ।

Kumar Anil
08-01-2011, 03:34 PM
साही बात की आपने ... :clap:
खुदा बेवकूफों को महफूज रखे, उन्हें खत्म न हो जाने दे; क्योंकि अगर वो न रहे तो समझदारों की रोजी मुश्किल हो जायेगी।

हालाँकि आपके लेखकीय मेँ हास्य का पुट है और व्यवहारिक जीवन मेँ इनकी गुँजाइश बनी रहनी चाहिए अन्यथा सामाजिक परिस्थितयाँ अत्यन्त दुरूह एवं विषम हो जायेँगी । वैसे भी किसी भी समाज के लिए यूटोपिया की अवधारणा नितान्त कल्पना मात्र है ।

YUVRAJ
08-01-2011, 03:38 PM
अहा हा हा हा ...:lol:
अब क्या लिखता कुमार भाई जी जब साहित्य और पत्रकारिता में फर्क है कि पत्रकारिता पढ़ने लायक नहीं होती और साहित्य पढ़ा नहीं जाता।

हालाँकि आपके लेखकीय मेँ हास्य का पुट है और व्यवहारिक जीवन मेँ इनकी गुँजाइश बनी रहनी चाहिए अन्यथा सामाजिक परिस्थितयाँ अत्यन्त दुरूह एवं विषम हो जायेँगी । वैसे भी किसी भी समाज के लिए यूटोपिया की अवधारणा नितान्त कल्पना मात्र है ।