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View Full Version : मेरी पसंदीदा हिंदी फिल्में


abhisays
09-01-2011, 06:57 PM
हिंदी फिल्मों में मेरी काफी रूचि रही है, शायद ही कोई नयी और पुरानी फिल्म ऐसी है जो मैंने ना देखी हो. इस सूत्र में अपनी कुछ चुनिन्दा हिंदी फिल्मों के बारे में लिखूंगा और उसपर अपने विचार और समीक्षा भी दूंगा. आशा है फोरम के सदस्यों के यह सूत्र पसंद आएगा. अपने व्यस्त दिनचर्या में से समय निकाल कर मैं हर हफ्ते कम से कम एक हिंदी फिल्म का विवरण देने की कोशिश करूंगा.

धन्यवाद.

abhisays
09-01-2011, 07:05 PM
तो आज जिस फिल्म की मैं चर्चा कर रहा हूँ, उस फिल्म का नाम है
सोलवा साल

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8011&stc=1&d=1294585481

abhisays
09-01-2011, 07:26 PM
सोलवा साल १९५८ में रिलीज़ हुई थी. इस फिल्म के director थे राज खोसला. मुख्या किरदार निभाए थे देव आनंद और वहीदा रहमान ने. फिल्म का संगीत दिया था सचिन देव बर्मन ने और गीत लिखे थे मजरूह सुल्तानपुरी ने. फिल्म की कहानी फ्रांक कापरा की कॉमेडी फिल्म "It Happened One Night" से प्रेरित थी. आपको यह जानकर काफी आश्चर्य होगा की इस अमेरिकी फिल्म से प्रेरणा लेकर कई हिंदी फिल्मे बन चुकी है जैसे राज कपूर और नर्गिस की चोरी चोरी, आमिर खान की दिल है की मानता नहीं, शम्मी कपूर की बसंत आदि.

देव आनंद और वहीदा रहमान के शानदार अभिनय और पंचम दा के संगीत से सजी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बहुत ही अच्छा बिज़नस किया था.

khalid
09-01-2011, 07:32 PM
अच्छा सुत्र बनाया आपने सिर्फ पुरानी फिल्मेँ पसन्द हैँ या नई फिल्मेँ भी देखतेँ हैँ

ABHAY
09-01-2011, 07:38 PM
भाई मै भी पुराने फिल्मो का सौख रखता हू अच्छी सूत्र है भाई :bravo::bravo:

abhisays
09-01-2011, 07:39 PM
अच्छा सुत्र बनाया आपने सिर्फ पुरानी फिल्मेँ पसन्द हैँ या नई फिल्मेँ भी देखतेँ हैँ

नयी फिल्में भी देखता हूँ. उनका भी जिक्र यहाँ पर जल्द ही करूंगा.

abhisays
09-01-2011, 07:43 PM
मज़े की बात यह है की मैंने "It Happened One Night" भी देखी है और सोलवा साल मुझे इसके अंग्रेजी version से ज्यादा अच्छी लगी.

आइयें अब जरा फिल्म की कथा पर प्रकाश डालते है.

abhisays
09-01-2011, 07:52 PM
लाज (वहीदा रहमान) एक खुबसूरत और जवान लड़की है जो अपने पिता, २ बहनों और १ भाई के साथ रहती है. कॉलेज के साथी श्याम (जगदेव) से उसका प्रेम चल रहा होता है. किसी बात पर श्याम लाज से नाराज़ हो जाता है तो लाज "यह भी कोई रूठने" गा कर उसे मनाती है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8012&stc=1&d=1294594805

abhisays
09-01-2011, 09:47 PM
श्याम लाज को भगा कर अहमदाबाद ले जाकर शादी करना चाहता और वो एक नादान लड़की की तरह तयार हो जाती है. लाज के घर में कुछ और चल रहा होता है. उसके पिता उसकी शादी अपने एक दोस्त के बताये हुए लड़के के साथ करना चाहते है. अगले दिन सुबह उनका लड़के से एअरपोर्ट पर मिलने का प्लान होता है. वो लाज को सुबह ५ बजे उठाने के लिए कह कर सो जाते है.

लाज भी प्यार में एकदम पागल हो चुकी होती है वो अपनी माँ का खुबसूरत मोतियों का हार लेकर श्याम के साथ भागने के लिए स्टेशन के लिए रात में ही चोरी छुपे निकल लेती है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8013&stc=1&d=1294595257

abhisays
09-01-2011, 09:54 PM
पहले तो मैंने सोचा था फिल्म की पूरी कहानी लिखू, मगर शायद पूरी कहानी पड़ने के बाद फिल्म देखने का मज़ा कम हो जायेगा. फिर भी कुछ और जानकारी दे देता हूँ.

श्याम स्टेशन पर लाज का मोतियों का हार ले कर भाग जाता है और लाज स्टेशन पर अकेली रह जाती है. ट्रेन में ही फिल्म के नायक प्राणनाथ कश्यप यानि देव साहब की इंट्री होती है. प्राणनाथ श्याम और लाज की बात सुन लेता है और उसे शक हो जाता है की दाल में कुछ कला है.

इस बीच प्राणनाथ "है अपना दिल तो आवारा" गुनगुनाते हैं.

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abhisays
09-01-2011, 10:00 PM
प्राणनाथ लाज और श्याम का पीछा करता है और इस बीच श्याम स्टेशन पर लाज का मोतियों का हार ले कर भाग जाता है और लाज स्टेशन पर अकेली रह जाती है.

पीछा करने की एक तस्वीर पेश करता हूँ. हिंदी फिल्मो में इस तरह के classic दृश्य कम ही देखने को मिलते है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8014&stc=1&d=1294595998

abhisays
09-01-2011, 10:10 PM
तो अब फिल्म की कहानी एक नया मोड़ लेती है.

श्याम लाज का कीमती मोतियो का हार लेकर भाग जाता है.
लाज प्राणनाथ के साथ स्टेशन पर अकेली रह जाती है.
तो अब कुछ सवाल ऐसे है जिनका उत्तर आपको फिल्म देखने के ही बाद पता चलेगा.

क्या लाज अपने घर सही सलामत पहुच पाएगी.
लाज को मोतियो का हार वापिस मिल पाएगा.
लाज अपने पिता को सुबह 5 बजे उठा पाएगी.
प्राणनाथ और लाज में क्या प्यार होगा?
लाज के पिता जिस लड़के से सुबह मिलने वेल है वो कौन है?
क्या श्याम को उसके धोखे की सज़ा मिलेगी?
एक ही रात में और क्या क्या होगा.

abhisays
09-01-2011, 10:14 PM
यह फिल्म आप क्यों देखे.

देव आनंद के शानदार अभिनय के लिए

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8015&stc=1&d=1294596819

प्यार के कुछ खास पलो के एहसास के लिए जो आजकल के नायक और नायिका तमाम हदें तोड़कर भी रुपहले पर्दे पर साकार नही कर पाते

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8016&stc=1&d=1294597116

प्यार और इकरार की शानदार कस्मकश के लिए

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8017&stc=1&d=1294597292

हेमंत कुमार के अमर गानो के लिए

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abhisays
09-01-2011, 10:39 PM
अगली फिल्म जिसका मैं यहाँ जिक्र करने वाला हूँ उसका नाम है बासु चटर्जी की एक रुका हुआ फ़ैसला

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8018&stc=1&d=1294598135


"एक रुका हुआ फ़ैसला" 1957 की हॉलीवुड फिल्म 12 Angry Men से प्रेरित है.


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8019&stc=1&d=1294598348

pritam
10-01-2011, 07:52 AM
तो आज जिस फिल्म की मैं चर्चा कर रहा हूँ, उस फिल्म का नाम है
सोलवा साल

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8011&stc=1&d=1294585481

Solva Saal is one of my favorite Hindi Movies. It has got a good mix of comedy and romance supported by superb camera work and songs. Anyway, your presentation of this movie is really too good. I must say, I have started searching this movie on internet. Can you help me?

YUVRAJ
10-01-2011, 07:57 AM
वाह क्या बात है ... :clap:...:clap:...:clap:...:bravo:
एक दमदार सूत्र...:hurray:

abhisays
10-01-2011, 07:59 AM
Solva Saal is one of my favorite Hindi Movies. It has got a good mix of comedy and romance supported by superb camera work and songs. Anyway, your presentation of this movie is really too good. I must say, I have started searching this movie on internet. Can you help me?

Thanks for appreciating this thread.You can watch this movie on YouTube. I am sharing the first part, rest you can easily find on youtube.

NAeRhtcUUAs

abhisays
10-01-2011, 08:03 AM
वाह क्या बात है ... :clap:...:clap:...:clap:...:bravo:
एक दमदार सूत्र...:hurray:

युवराज जी आपको यह सूत्र अच्छा लगा, इसके लिए धन्यवाद

मैं कोशिश करूंगा और भी कई फिल्मो के बारे में लिखू. आप से भी आशा अपने पसंदीदा फिल्मो की यहाँ चर्चा जरुर करे.

ABHAY
10-01-2011, 09:52 PM
अभिषेक जी बहुत अच्छे जा रहे है सूत्र को आगे बढ़ाये !:bravo::bravo::bravo:

abhisays
10-01-2011, 10:24 PM
अभिषेक जी बहुत अच्छे जा रहे है सूत्र को आगे बढ़ाये !:bravo::bravo::bravo:


जरुर अभय जी. मेरी पूरी कोशिश रहेगी की आप लोगो के लिए कुछ अच्छा पेश कर सकू.

abhisays
15-01-2011, 09:35 AM
तो आज मैं चर्चा करूंगा "एक रुका हुआ फैसला" फिल्म की

इस फिल्म में १२ पात्र थे जिन्हें कोर्ट ने फैसले की जिम्मेदारी सौपी थी और एक द्वारपाल भी था. कुल जमा १३ पात्र और एक कमरे में पूरी फिल्म शूट हुई थी. बासु चटर्जी ने फिल्म का निर्देशन किया था.

दीपक केजरीवाल जूरी सदस्य #1
अमिताभ श्रीवास्तव जूरी सदस्य #2
पंकज कपूर जूरी सदस्य #3
स. म. ज़हीर जूरी सदस्य #4
सुभाष उद्घते जूरी सदस्य #5
हेमंत मिश्र जूरी सदस्य #6
ऍम के रैना जूरी सदस्य #7
के के रैना जूरी सदस्य #8
अन्नू कपूर जूरी सदस्य #9
सुब्बिराज जूरी सदस्य #10
शैलेन्द्र गोएल जूरी सदस्य #11
अज़ीज़ कुरैशी जूरी सदस्य #12
दी संधू गेट कीपर

abhisays
15-01-2011, 09:40 AM
गूगल विडियो पर पूरी फिल्म आप देख सकते है. पता है.

http://video.google.com/googleplayer.swf?docid=-4920568512416532465

abhisays
15-01-2011, 09:46 AM
जैसा की मैंने बताया फिल्म में मात्र १२ मेन किरदार थे. उन्ही के बीच संवाद चलता रहता था. मगर मजाल था जो दर्शक एक क्षण भी बोर हो, आज के फ़िल्मकार करोड़ों खर्च कर भी इतनी मनोरंजक और बढ़िया फिल्म नही बना पाते जो इस १२ किरदार वाली फिल्म ने कर दिखाया था

हालाँकि फिल्म भले ही रीमेक हो, लेकिन फिल्म के संवादों के ज़रिए वर्गीय पूर्वाग्रह को जो शानदार चित्रण किया गया है वह हमारे सामाजिक यथार्थ के बहुत करीब है.. और बारह के बारह कलाकारों ने क्या ज़बरदस्त अभिनय किया है... आप वाह-वाह किए बिना नहीं रह सकेंगे.. एक कमरे में फिल्मायी गई 15 मीटर रील की इस फिल्म को 2 घंटे 7 मिनट और 49 सेकेंड तक साँस रोके आप देखते रहते हैं.

abhisays
15-01-2011, 09:53 AM
फिल्म की कहानी कुछ इस तरह से है

सत्रह अठारह साल का एक किशोर पर अपने पिता की हत्या करने का मुक़दमा चल रहा है. वह झुग्गी-झौंपड़ी में जन्मा और बेहद गरीबी के बीच पल कर इतना बड़ा हुया है. उसका बाप शराबी और झगड़ालू है. बाप क्रूरता से बचपन से ही उसे पीटता रहा है. लड़का चाकूबाजी में माहिर माना जाता है. और लड़के पर आरोप है की उसने अपना बाप का चाकू से क़त्ल कर दिया है.

malethia
15-01-2011, 10:12 AM
मैं भी पुरानी फिल्मों का शौक़ीन हूँ,
आपने इन फिल्मों के बारे में अच्छी जानकारी दी इस् लिए धन्यवाद !

abhisays
15-01-2011, 10:24 AM
मैं भी पुरानी फिल्मों का शौक़ीन हूँ,
आपने इन फिल्मों के बारे में अच्छी जानकारी दी इस् लिए धन्यवाद !

धन्यवाद malethia जी.

malethia
15-01-2011, 10:30 AM
गूगल विडियो पर पूरी फिल्म आप देख सकते है. पता है.

http://video.google.com/googleplayer.swf?docid=-4920568512416532465

इस फिल्म को देखने के लिए कौनसे प्लेयर की जरूरत होगी ?

abhisays
15-01-2011, 10:32 AM
http://www.adobe.com/products/flashplayer/

malethia
15-01-2011, 10:35 AM
http://www.adobe.com/products/flashplayer/

फ्लेश प्लेयर तो मेने पहले से इन्स्टाल किया हुआ है ,लेकीन फिर भी ये मूवी नहीं चल रही ?

abhisays
15-01-2011, 03:26 PM
फ्लेश प्लेयर तो मेने पहले से इन्स्टाल किया हुआ है ,लेकीन फिर भी ये मूवी नहीं चल रही ?

मूवी तो चलनी चाहिए. क्या आपको मूवी का चित्र स्क्रीन पर दिख रहा है?

arvind
15-01-2011, 03:29 PM
अभिषेक जी, मेरा हर समय का पसंदीदा फिल्म "आनंद" के बारे मे जरूर लिखिएगा, मुझे इंतजार रहेगा।

khalid
15-01-2011, 04:23 PM
अभिषेक जी, मेरा हर समय का पसंदीदा फिल्म "आनंद" के बारे मे जरूर लिखिएगा, मुझे इंतजार रहेगा।

भाई आप अपने तरफ से लिख दिजीए ....?

arvind
15-01-2011, 04:31 PM
भाई आप अपने तरफ से लिख दिजीए ....?
आपकी इच्छा के अनुरूप कुछ चेपता हूँ।

arvind
15-01-2011, 04:33 PM
यह हिन्दी सिनेमा का सबसे उत्तम रचनाओं में से एक है। यह मुंबई शहर और राजकपूर को समर्पित है। मुंबई शहर भारत का सर्वोत्तम महानगर है जिसमें पूरे भारत के लोग रहते हैं, वह भी शांतिपूर्वक। यह 1966 में शुरू हुए शिवसेना की राजनीति का प्रतिलोभ है। आनंद सहगल पंजाबी है, भाष्कर बनर्जी बंगाली है, प्रताप कुलकर्णी मराठी है, मुरारीलाल और उसकी नाटक मंडली की नायिका गुजराती है, पहलवान दारा सिंह और नौकर रामु काका उत्तर भारतीय हैं। मैट्रन डीसा गोवा की हैं। हृशिकेष मुखर्जी की फिल्मों में खलनायक या खलनायिका नहीं होते। यह फिल्म एक ठेंठ भारतीय फिल्म है जिसमें आनंद सहगल का जिंदादिल चरित्र राजकपूर के व्यक्तित्व से प्रभावित है। राजकपूर वास्तविक जीवन में हृशिकेष मुखर्जी को बाबू मोशाय ही कहा करते थे। दोनो 1959 से घनिष्ठ मित्र थे। हिन्दी की अधिकांश फिल्मों में ऐलोपैथिक डाक्टर को नायकत्व दिया गया है। मुखर्जी की फिल्म अनुराधा का नायक एक ऐलोपैथिक डाक्टर है। इस फिल्म में एक रोगी नायक है, और होमियोपैथी, मोनी बाबा, सिध्द पीठ आदि की भी सकारात्मक प्रस्तुति है। फिल्म आंधी की तरह इस फिल्म के संवाद भी काव्यात्मक हैं। आंधी की तुलना में इसमें कम गीत हैं - 3 गीत + एक कविता। फिल्म का हर दृष्य और हर संवाद अर्थपूर्ण है। यह भारतीय संस्कृति के बहुआयामी स्वरूप को सम्पूर्णता में प्रस्तुत करता है। यह ट्रेजडी होते हुए भी ट्रेजडी नहीं है। यह कॉमेडी भी नहीं है। इसमें हर तरह के रस मिले हुए हैं। इसमें बौध्द दर्शन और वैश्णव भक्ति का मिला - जुला रूप है। दसमें हर क्षण को आनंदमय बनाने का बौध्द दर्शन है। इसमें संसार एक दिव्य लीला है। इसमें ईसाई (मैट्रन डीसा) और मुस्लिम (ईषाभाई सूरत वाला) पात्र भी हैं। प्रारंभ में भाष्कर बनर्जी नास्तिक है लेकिन आनंद सहगल के सोहबत में वह आस्तिक हो जाता है। मौनी बाबा और आनंद सहगल पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। आनंद के प्यार में मैट्रन डीसा भी पुनर्जन्म के विश्वास का अनादर नहीं करती। ईषाभाई भी स्वर्ग में मिलने की बात करता है।

arvind
15-01-2011, 04:37 PM
इसमें दोस्ती की गरिमा है। मौत पर जिन्दगी की जीत है। इसमें पारंपरिक अखाड़ा है। जब आनंद को पता चलता है कि डाक्टर भाष्कर बनर्जी की प्रेमिका रेणु को मुहल्ले के शोहदे तंग करते हैं तो वह पास के अखाड़े के गुरू के पास फरियाद लेकर जाता है और गुरू शोहदों को डांट - डपट कर भगा देता है। इसके बाद शोहदे डर कर तंग करना छोड़ देते हैं।

इस फिल्म में मुंबई (बम्बई) केवल मराठियों का शहर न होकर सम्पूर्ण भारत का महानगर है जिसमें भारत के भिन्न - भिन्न इलाकों के लोग शांतिपूर्वक एक - दूसरे के साथ मिल - जुल कर रहते हैं। 1966 में शुरू हुए शिवसेना की संकुचित राजनीति का यह फिल्म बड़ी शालीनता से जवाब देती है। फिल्म 1970 के अंत में रिलीज हुई थी। यह मुंबई शहर को एक नये रूप में प्रस्तुत करती है। 1950 के दशक की शुरूआत में नव केतन बैनर के तले देवआनंद अभिनित टैक्सी ड्राइवर फिल्म में अलग तरह का बम्बई शहर दिखता है। 20 वर्षों में बम्बई काफी बदल चुका है। गगन चुंबी इमारतों के साथ झुग्गी झोपड़ी और चॉलों की समानांतर दुनिया भी आनंद फिल्म में दिखती है। जिसमें डाक्टर भाष्कर बनर्जी रोग और गरीबी के बीच अपना डाक्टरी जंग जारी रखता है।

arvind
15-01-2011, 04:42 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8241&stc=1&d=1295095317

arvind
15-01-2011, 04:45 PM
1970 में बम्बई एक हरा - भरा खूबसूरत शहर था। समुद्र का पानी गंदा नहीं हुआ था। समुद्र का किनारा पानी और बालू पर पसरा एक खूबसूरत नजारा पेश करता है। उस पर मन्नाडे का गाया गाना 'जिन्दगी कैसी है सुहानी हाये, कभी तो हंसाये कभी ये रूलाये ' गाते हुए राजेश खन्ना का मस्त अभिनय। 1969 में राजेश खन्ना को सुपर सितारा का हैसियत प्राप्त हुआ था और हृशिकेष मुखर्जी के निर्देशन में आनंद उनके अभिनय का उँचाई प्रस्तुत करता है। अमिताभ बच्चन ने 1969 में जब अभिनय शुरू किया था तो राजेश खन्ना सुपर सितारा बन चुके थे। रमेश देव और सीमा, देव, सुमिता सान्याल और ललिता पवार, जॉनी वाकर, दुर्गा खोटे और दारा सिंह सभी ने अच्छा अभिनय किया है परन्तु आनंद मूलत: राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की फिल्म है। दोनों ने बहुत अच्छा अभिनय किया है। जयवंत पाठारे की फोटोग्राफी कमाल की है। उनका कैमरा उतना ही काव्यात्मक दृष्य रचता है जितना हृशिकेष मुखर्जी, गुलजार, बिमल दत्ता और डी. एन. मुखर्जी की पटकथा। हमेशा की तरह हृशिकेष मुखर्जी के निर्देशन एवं संपादन में दोष निकालना मुश्किल है। आनंद हृशिकेष मुखर्जी की नि:संदेह सर्वश्रेष्ठ कृति है जिसकी कहानी उन्होंने खुद लिखी थी। इस कहानी की प्रेरणा हृशिकेष मुखर्जी और राजकपूर की मित्रता पर आधारित है। राजकपूर और आनंद सहगल के चरित्र में कई समानता है। केवल एक प्रमुख अन्तर है। आनंद सहगल कैंसर रोग का मरीज है और वह जानता है कि उसे जीने के लिए मात्र 6 माह मिला है। जबकि स्वभाव से भोले और मस्त राजकपूर को बचपन से प्रेम का रोग था। उन्होंने अपने बचपन से बुढ़ापा तक कई महिलाओं से पवित्र प्रेम किया और अंत तक भोले बने रहे। जिस तरह आनंद पूरी जिन्दगी अपने अनदेखे सोलमेट मुरारीलाल को खोजता रहा उसी तरह राजकपूर विवाहित होते हुए भी हर सुन्दर स्त्री में अपना सोलमेट खोजते रहे।

arvind
15-01-2011, 04:47 PM
आनंद सहगल और भाष्कर बनर्जी की दोस्ती मात्र 6 माह पुरानी दोस्ती है। जबकि भाष्कर बनर्जी और प्रताप कुलकर्णी की पुरानी दोस्ती है। ईषाभाई सूरतवाला और आंनद सहगल की दोस्ती तो मात्र कुछ सप्ताह पुरानी है। वास्तव में भारत के बंटवारे का मारा रिफ्यूजी आनंद सहगल एक अनाथ है जिसे परायों और अपरिचितों से दोस्ती और संबंध बनाना खूब आता है। उसके व्यवहार की मस्ती के पीछे न सिर्फ कैंसर के रोग के कारण अपनी छोटी जिन्दगी का अहसास है बल्कि अपनी प्रेमिका से बिछुड़ने की उदासी भी है। परन्तु वह मानता है कि जिन्दगी बड़ी होनी चाहिए लम्बी नहीं। वह मानता है कि उदासी भी खूबसूरत हो सकती है।

arvind
15-01-2011, 04:49 PM
आनंद फिल्म का एक प्रमुख थीम विवाह है। डा. कुलकर्णी की शादी का साल गिरह, डा. बनर्जी और रेणु का विवाह, आनंद की प्रेमिका का दूसरे व्यक्ति से विवाह और ईषाभाई सूरतवाला की विवाह की समस्या। इन विवाहों की कथा को बहुत मनोरंजक ढंग से प्रेम विवाह बनाम माता - पिता द्वारा ठीक किये गए अरेन्जड मैरिज का मनोरंजक कॉनट्रास्ट प्रस्तुत किया गया है। रेणु की मां कहती भी है कि अब माता - पिता से कौन पूछता है अब तो प्रेम विवाह का जमाना है। पूरा भारत 1970 में भले ही मूलत: पारंपरिक रहा हो, बम्बई महानगर में 1970 तक आते - आते प्रेम विवाह का चलन काफी बढ़ गया था। अत: 1960 के दशक से हिन्दी सिनेमा में टेक्नीकलर प्रेम और रोमांस की कहानियां 1950 के दशक के सामाजिक सन्दर्भों वाले कथानकों की तुलना में काफी बढ़ गए थे। 1957 में बने मुसाफिर से हृशिकेष मुखर्जी ने हल्की फुल्की मनोरंजन की भाषा में मध्यवर्गीय भारतीय समाज के सामाजिक पहलुओं को अपनी फिल्मों में जगह देना जारी रखा था। वे एक तरफ विशुद्ध कॉमेडी (चुपके - चुपके, बाबर्ची, गोलमाल बनाया) तो दूसरी तरफ अनाड़ी, सत्यकाम, आशीर्वाद, आनंद, अभिमान और बेमिशाल जैसी सोदेश्य सामाजिक फिल्में भी बनायी। आनंद उनकी फिल्मों का सरताज है जिसमें उनकी रचनात्मक ऊर्जा का विष्फोट हुआ है। लाइलाज बीमारी पर आनंद उनकी एकमात्र फिल्म नहीं है। इसी थीम पर 1975 में उन्होंने मिली नामक फिल्म बनायी थी जिसमें जया भादुड़ी और अमिताभ बच्चन की मुख्य भूमिका थी। यह फिल्म आनंद की तरह सफलता नहीं पा सकी तो उसका प्रमुख कारण यही था कि मिली की बीमारी फिल्म की केन्द्रीय वस्तु है जबकि आनंद की बीमारी उसके जीवन और संबंधों की मात्र पृष्ठभूमि है। आनंद एक बहुआयामी फिल्म है और मिली मूलत: कारूणिक फिल्म है। एक कारण और भी है आनंद राजेश खन्ना के सुपर स्टारडम के समय बनी थी जबकि मिली की नायिका जया भादुड़ी सुपर सितारा नहीं थी और न 1975 तक अमिताभ बच्चन सुपर सितारा के रूप में स्थापित हुए थे। 1973 में जंजीर आ चुकी थी। अभिमान आ चुकी थी। 1975 में मिली और दीवार आ चुकी थी। परन्तु शोले साल के अंत में आयी थी। अमिताभ बच्चन की सितारा हैसियत बनने लगी थी लेकिन 1975 के अंत तक धर्मेन्द्र, संजीव कुमार, मनोज कुमार, शशि कपूर और विनोद खन्ना उनसे उन्नीस नहीं थे। केवल राजेश खन्ना का पराभव होना शुरू हुआ था। 1973 में बॉबी के रिलीज से ऋषि कपूर का उदय हुआ था। अमिताभ सुपर सितारा 1977 में आयी मुकद्दर का सिकंदर तथा डॉन से बने। उससे पहले उनके नाम से फिल्में नहीं बिकती थी। निर्देशक, कहानी, पटकथा, गीत - संगीत की भूमिका तब तक सुपर सितारे से कम नहीं होती थी। 1969 से 1973 के बीच राजेश खन्ना अकेले सुपर सितारा थे। 1973 से 1977 तक कई सितारों के बीच प्रतिस्पर्धा थी जिसमें अमिताभ बच्चन अंतत: विजयी हुए। अमिताभ बच्चन को सुपर सितारा बनाने में जितना योगदान सलीम - जावेद द्वारा गढ़ा यंग्री यंग मैन की इमेज का है उससे कम योग दान मनमोहन देसाई और हृशिकेष मुखर्जी की फिल्मों का नहीं है। अमिताभ बच्चन यदि अंतत: अपने समकालीनों पर भारी पड़े तो उसका कारण ही यही था कि वे एक ही काल खंड में गंभीर, हंसोड और यंग्री यंग मैन तीन तरह की भूमिका एक समान दक्षता से कर सकते थे। और नि:संदेह यह कहा जा सकता है कि इस दक्षता के बीज फिल्म आनंद में नजर आये थे। इसीलिए उन्हें इस फिल्म के लिए बेस्ट सहायक अभिनेता का पुरस्कार भी मिला था।

arvind
15-01-2011, 04:53 PM
आनंद की पटकथा और कास्टिंग दोनों में एक संतुलित सम्पूर्णता थी जिसकी तुलना में मिली की पटकथा और कास्टिंग उन्नीस पड़ती है। आनंद का किरदार राजेश खन्ना के अलावे अगर किसी और ने किया होता तो यह फिल्म संभवत: इतनी स्वाभाविक नहीं बन पाती। कास्टिंग के मामले में इसकी तुलना 1970 के दशक की फिल्मों में संभवत: केवल शोले से की जा सकती है जिसका निर्माण 1975 में हुआ था रमेश सिप्पी के शोले में हर चरित्र की कास्टिंग और पटकथा में स्थान भी एक संतुलित सम्पूर्णता में है। शोले एक भव्य फिल्म है जिसमें स्पेकटेकल नैरेटिव पर भारी पड़ जाता है। आनंद में नैरेटिव और स्पेकटेकल का संतुलन है। आनंद एक मध्यम बजट की कारपोरेट फिल्म है। इसे एन. सी. सिप्पी ने निर्माण करवाया था। जी. पी. सिप्पी व्यावसायिक सिनेमा के एक बड़े निर्माता थे। शोले उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है जो उनके बेटे रमेश सिप्पी ने निर्देशित किया था। एन. सी. सिप्पी मध्यम बजट की सोदेश्य फिल्मों के निर्माता थे। उन्होंने हृशिकेष मुखर्जी और गुलजार जैसे संवेदनशील तथा कलात्मक निर्देशकों के प्रोजेक्ट को फाइनेंस किया। इस मामले में एन. सी. सिप्पी की तुलना भारत सरकार की संस्था नेशनल फिल्म डेवलपमेंट कारपोरेशन (एन. एफ. डी. सी.) और राजश्री प्रोडक्संन से की जा सकती है। 1970 के दशक में एन. सी. सिप्पी, ताराचंद बड़जात्या (राजश्री प्रोडक्संन के मालिक) और एन. एफ. डी. सी. के प्रयास से छोटे और मध्यम बजट की स्वस्थ मनोरंजन देने वाली कलात्मक फिल्मों की बहार आ गई थी जिसके प्रभाव में हिन्दी भाषी समाज के भीतर एक रचनात्मक विष्फोट हुआ था। हृशिकेष मुखर्जी निर्देशित आनंद इस रचनात्मक विष्फोट का स्वर्णकलश है।

arvind
15-01-2011, 04:54 PM
आनंद एक ठेंठ हिन्दू फिल्म है। हृशिकेष मुखर्जी बिमल रॉय के साथ न्यू थियेटर्स कोलकाता से मुंबई आये थे। न्यू थियेटर्स में तीन तरह की फिल्में बनती थी। एक देबकी कुमार बोस की ठेंठ हिन्दू फिल्में थीं जिस पर चण्डीदास, विद्यापति, रामकृष्ण परमहंस और भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव था। दूसरी पी. सी. बरूआ की रोमांटिक त्रासदी वाली फिल्में थी। तीसरी नितिन बोस की राममोहन राय और रबीन्द्रनाथ टैगोर जैसे ब्रहम समाजी समाज सुधारकों से प्रभावित फिल्में थीं। बिमल रॉय और हृशिकेष मुखर्जी ने तीनों प्रकार की फिल्मों के बीच एक संतुलन स्थापित किया जबकि केदार शर्मा, राजकपूर और लेख टंडन देबकी कुमार बोस की परंपरा के विस्तार थे। राजकपूर के पटकथा लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास मार्क्सवादी परंपरा के सुधारवादी थे अत: नितिन बोस के सुधारवाद और राजकपूर की प्रारंभिक फिल्मों के सुधारवाद में महीन अंतर है। राजकपूर के दूसरे पटकथा लेखक वी. पी. साठे मार्क्सवादी नहीं थे। इन्दरराज आनंद और रामानंद सागर ने भी राजकपूर के लिए लेखन किया था। परंतु राजकपूर अपने लेखकों से अपनी तरह का काम लेते थे। एक निर्देशक के रूप में ख्वाजा अहमद अब्बास राजकपूर की तुलना में व्यावसायिक रूप से असफल थे। मेरा नाम जोकर और बॉबी का लेखन अब्बास ने राजकपूर की मांग को पूरा करने के लिए किया था। राजकपूर पर अपने गुरू केदार शर्मा और दादागुरू देबकी बोस का गुणात्मक प्रभाव अंत तक बना रहा। उन पर एक प्रभाव अमिय चक्रवर्ती का भी थ जो मूलत: हिमांषु रॉय के बाम्बे टॉकिज के एक निर्देशक थे।

arvind
15-01-2011, 04:55 PM
राजकपूर की तुलना में हृशिकेष मुखर्जी न्यू थियेटर्स के ज्यादा प्रतिनिधि फिल्मकार थे। वे बिमल रॉय के साथ - साथ देबकी बोस और पी. सी. बरूआ से भी प्रभावित थे। बिमल रॉय ने अपने कैरियर का प्रारंभ एक कैमरामैन के रूप में किया था। सिनेमैटोग्राफी उनके निर्देशन को प्रारंभ से ही नियंत्रित करती थी। जबकि हृशिकेष मुखर्जी ने अपनी शुरूआत एक संपादक के रूप में की थी। अत: एक निर्देशक के रूप में या पटकथा लेखक के रूप में उनका दृष्टिकोण संपादक की तरह किफायती बना रहता है। गुलजार के निर्देशन एवं लेखन पर उनका गीतकार वाला रूप हावी रहता है। आनंद केदार शर्मा के जोगन या चित्रलेखा की तरह नैरेटिव प्रधान फिल्म नहीं है। इसमें नैरेटिव और स्पेकटेकल का संपादकीय कौशल से किया गया किफायती संतुलन है। यह मूलत: प्रतीकात्मक एवं लाक्षणिक रूप से हिन्दू दृष्टि में जीवन एवं मृत्यु तथा भाग्य एवं पुनर्जन्म की आनंद - दायक कहानी कहती है। इसमें हिन्दू संस्कृति का उदात्त रूप पेश किया गया है जिसमें मुसलमान और ईसाई पात्रों को भी सहजता से जीवन जीने और संबंध बनाने में दिक्कत नहीं होती। आनंद फिल्म का हिन्दू धर्म भारतीय संस्कृति की तरह बहुआयामी, सहनशील एवं लचीला है।

arvind
15-01-2011, 04:58 PM
आनंद फिल्म 1970 में बनी। इसकी कहानी हृशिकेष मुखर्जी ने खुद लिखी थी। अमेरिका में 1969 में द गॉड फादर उपन्यास का प्रकाशन हुआ था इसके लेखक मारियो पूजो थे। 1969 में शक्ति सामंत ने आराधना फिल्म बनायी थी जिससे राजेश खन्ना सुपर सितारा बने। इतालवी मूल के फ्रांसिस फोर्ड कपोला ने 1972 में 'द गॉड फादर' फिल्म का पहला भाग बनाया था। 1975 में इससे प्रेरित दो फिल्में बनीं फिरोज खान की धर्मात्मा और रमेश सिप्पी की शोले। भारत में अपराध का महिमामंडन 1975 से ही हुआ। लेकिन 'द गॉड फादर' में केवल अपराध का महिमामंडन नहीं था, फ्रांसिस फोर्ड कपोला ने माफिया को अमेरिकी पूंजीवाद के रूपक में बदल दिया था। गॉडफादर में अमेरिका में रहते आए एक इतालवी माफिया परिवार के 1945 से 1955 तक के दस सालों का वृतांत उकेरा गया है। यह दरअसल द्वितीय विश्वयुध्द के बाद उभरी विश्व व्यवस्था में अमेरिकी पूंजीवाद का उत्कर्ष काल है। द गॉडफादर का नायक एक बूढ़ा डॉन विटो कॉरलेऑन है जो अमेरिकी पूंजीवाद के प्रतीक माफिया परिवार का मुखिया है। बूढ़ा होता डॉन विटो हिंसा के आदेश देता है, जो दरअसल पूंजी और ताकत को हासिल करने की युक्तियां भी हैं। लेकिन फिल्म में माफियाओं के बीच खूनी खेल ही नहीं चलता, वहां अपराध के बीच परिवारों में मानवीय संबंधों के वृतांत भी दिखते हैं। यह फिल्म अपराध करने वालों के परिवारों में फैले प्रेम संबंधों, तनावों, इर्ष्या, वात्सल्य और रहस्यों की भूल भुलैया में भी उसी खूबी के साथ जाती है, जिस तरह वह हिंसा के नरक में उतरती है। एक बड़े माफिया परिवार के शीर्ष पर बैठे डॉन विटो का अपने परिवार से गजब का जुड़ाव है। विटो का अभिनय मार्लन ब्रैंडो ने निभाया था। इसके लिए उन्हें सबसे अच्छे अभिनेता का ऑस्कर भी मिला था। आनंद और गॉडफादर की तुलना करके भारतीय और अमेरिकी संस्कृति के अंतर को समझ सकते हैं। आनंद की मृत्यु के बाद पूरी फिल्म में करूणा की लहर फैल जाती है जबकि माफिया के दो गुटों के बीच लड़ाई में जब विटो के बेटे सनी की हत्या होती है तो बेटे का शव विराग नहीं और गहरी हिंसा का उत्प्रेरक बन जाता है। यह अधिकार क्षेत्र और शक्ति बनाए रखने का दुष्चक्र और विवशता है। भारत की पहली फिल्म ' राजा हीरश्चन्द्र' थी जबकि अमेरिका की पहली फिल्म ' द ग्रेट ट्रेन रॉबरी' थी। तब से भारतीय सिनेमा और अमेरिकी सिनेमा का मूल स्वर नहीं बदला है। 1970 के दशक में आनंद और द गॉडफादर इसका उदाहरण है।

(साभार: डा० अमित कुमार शर्मा, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली)

ndhebar
15-01-2011, 05:56 PM
आनंद की पटकथा और कास्टिंग दोनों में एक संतुलित सम्पूर्णता थी जिसकी तुलना में मिली की पटकथा और कास्टिंग उन्नीस पड़ती है। आनंद का किरदार राजेश खन्ना के अलावे अगर किसी और ने किया होता तो यह फिल्म संभवत: इतनी स्वाभाविक नहीं बन पाती।

आनंद के लिए राजेश खन्ना हृशि दा की पहली पसंद नहीं थे बल्कि तीसरी पसंद थे
पहले वे इस किरदार को निभाने के लिए शशि कपूर के पास गए फिर किशोर कुमार के पास
पर "जब जब जो जो होना है तब तब वो वो होता है" की तर्ज पर दोनों के मना करने पर उनकी तलाश राजेश खन्ना पर आकर रुक गयी
इसके बाद आगे भी हृशि दा ने राजेश खन्ना के साथ दो बार काम किया
बावर्ची(1972) और नमक हराम(1973) में

ndhebar
15-01-2011, 06:08 PM
किसी एक फिल्म के बारे में क्या कहूँ, मुझे तो बस फ़िल्में पसंद है
भाई लोग मैं तो फ़िल्मी कीड़ा हूँ
मेरा मानना है की कोई फिल्म अच्छी या बुरी नहीं होती, अच्छा या बुरा तो उसे देखने वालों का नजरिया होता है बस
कोई किसी को पसंद आती है किसी को नहीं
बुरी से बुरी फिल्म(आलोचक की नजर में) को भी परदे पर देखना उसके निर्देशक का सपना होता है और उसके लिए तो कम से कम वो सबसे अच्छी फिल्म होती है
आप लोग अपनी चर्चा जारी रखिये अगर मुझे कुछ पता हुआ तो मैं अवश्य लिखूंगा
जैसे

तो आज मैं चर्चा करूंगा "एक रुका हुआ फैसला" फिल्म की

इस फिल्म में १२ पात्र थे जिन्हें कोर्ट ने फैसले की जिम्मेदारी सौपी थी और एक द्वारपाल भी था. कुल जमा १३ पात्र और एक कमरे में पूरी फिल्म शूट हुई थी. बासु चटर्जी ने फिल्म का निर्देशन किया था.
पूरी फिल्म एक कमरे में शूट नहीं है कुछ दृश्य बहार के हैं मसलन

कोर्ट का दृश्य,
ट्रेन का दृश्य,
और उस चाल का दृश्य जिसमे खून हुआ होता है/

abhisays
15-01-2011, 06:19 PM
पूरी फिल्म एक कमरे में शूट नहीं है कुछ दृश्य बहार के हैं मसलन

कोर्ट का दृश्य,
ट्रेन का दृश्य,
और उस चाल का दृश्य जिसमे खून हुआ होता है/

correction के लिए धन्यवाद. लगभग ९० प्रतिशत दृश्य एक ही कमरे में थे.

abhisays
15-01-2011, 06:34 PM
फिल्म की कहानी कुछ इस तरह से है

सत्रह अठारह साल का एक किशोर पर अपने पिता की हत्या करने का मुक़दमा चल रहा है. वह झुग्गी-झौंपड़ी में जन्मा और बेहद गरीबी के बीच पल कर इतना बड़ा हुया है. उसका बाप शराबी और झगड़ालू है. बाप क्रूरता से बचपन से ही उसे पीटता रहा है. लड़का चाकूबाजी में माहिर माना जाता है. और लड़के पर आरोप है की उसने अपना बाप का चाकू से क़त्ल कर दिया है.

चलिए एक रुका हुआ फैसला की कहानी आगे बढ़ाते है.

कोर्ट समाज के १२ जाने माने लोगो को आखिरी फैसला लेने के लिए नियुक्त करती है. और यह १२ लोग एक कमरे में बैठ कर काफी घंटो की बहस के बाद फैसला लेते है.

हालाँकि फिल्म के शुरु में ज्यूरी के ११ सदस्य इस बात पर पूरी मजबूती से सहमत हैं कि लड़का अपराधी मानसिकता वाला एक नौजवान है और उसने झगड़ा होने पर अपने बाप की हत्या कर दी.

ज्यादातर सदस्यों के लिये इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि लड़के के साथ न्याय हो रहा है या अन्याय. उन्होने तो चौकन्ने होकर अदालत में केस भी नहीं सुना है। उनके दिमाग इस बात से ज्यादा प्रभावित हैं कि चूँकि पुलिस ने लड़के को पकड़ा है और उसके घर के नीचे और सामने रहने वाले दो गवाहों ने उसके खिलाफ गवाही दी है तो लड़के को अपने बाप का हत्यारा होना ही चाहिये. इसमें कोई दो राय हो नहीं सकतीं और लड़का बेकसूर होता तो उसका वकील सिद्ध न कर देता अदालत में? पर वह तो चुप ही रहा सरकारी वकील के सामने क्योंकि उसके पास कोई तर्क था ही नहीं. जब एक गवाह ने बाप-बेटे के बीच होने वाले झगड़े की पुष्टि की और लड़के को झगड़े के फौरन बाद घर से नीचे भागते हुये देखा और लड़के के घर के सामने वाले घर में रहने वाली एक औरत ने अपनी खिड़की से उस लड़के को चाकू मारते हुये देखा तो शक की कोई गुँजाइश बचती ही नहीं कि लड़का ही अपने बाप का कातिल है.

किसी को अपने परिवार के साथ फिल्म देखने जाना है, किसी को कुछ और काम निबटाने हैं और ऐसे सब सदस्य जल्दी में हैं, इस केस पर राय देने में.

जब सभी लोगों की राय से समूह का अध्यक्ष लड़के के मुजरिम होने या न होने के बारे में वोटिंग करवाता है तो जल्दी से घर जाने की सोच रखने वाले लोगों को एक बड़ा झटका लगता है जब वे पाते हैं कि एक महोदय यानि K K Raina ने अपना वोट लड़के को बेकसूर मानते हुये दिया है.

और इस तरह एक आदमी ही उस लड़के का support करता है, फिर आगे क्या होता है आखिरी फैसला क्या होता है. इसके लिए आप यह फिल्म देखे. लोगों के समूह में बहुत मुश्किल होता है किसी एक व्यक्ति का समूह में शामिल अन्य लोगों की राय के खिलाफ अकेले खड़ा होना. लेकिन यह इस फिल्म में दिखाया गया है.

abhisays
16-01-2011, 08:36 AM
अधिकतर लोग कहते है B grade फिल्में बकवास होती हैं और उनका बॉक्स ऑफिस पर सफल होना बहुत ही मुश्किल होता है. आज मैं एक बी grade फिल्म की चर्चा करूंगा जो की बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट साबित हुई थी.


फिल्म का नाम है
सुरक्षा

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8270&stc=1&d=1295152583

abhisays
16-01-2011, 08:57 AM
यह फिल्म एक अँग्रेज़ी फिल्म 'Man with the Golden Gun' से प्रेरित थी. "Man with the Golden Gun 1974 में बनी एक जेम्स बॉन्ड series की 9वी जासूसी फिल्म थी. इसके हीरो रोजर मूर थे, उन्होने जेम्ज़ बॉन्ड का किरदार निभाया था.

सुरक्षा 1979 में release हुई थी, इसका direction रविकान्त नागाईच ने किया था. मिथुन, रंजीता, जीवन, जगदीप, इफ़्तेखार, अरुणा ईरानी ने मुख्य किरदार निभाए थे.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8271&stc=1&d=1295153776


सुरक्षा की खास बातें थी ::

इसका कम बजट
मधुर संगीत
मिथुन का किरदार (Gun Master G9) , जीतेंद्र के फिल्म फ़र्ज़ के बाद पहली बार किसी सीक्रेट एजेंट पर बनी फिल्म को लोगो ने इतना सराहा था. Gun Master G9. हिन्दी फिल्म का एक जाना माना सीक्रेट एजेंट बन गया था.
बाद में इसी फिल्म का sequel (वारदात) भी आया.
फिल्म में शानदार dance और स्टंट सीन्स थे.
फिल्म की कसी हुई पटकथा जो शायद उस ज़माने में काफ़ी प्रासंगिक थी.
इसका देसी जेम्स बॉन्ड हॉलीवुड के जेम्स बॉन्ड से कही से भी कम नही था.

abhisays
16-01-2011, 09:08 AM
इस फिल्म की कहानी कुछ इस तरह से थी. गन मास्टर g9 यानि मिथुन दा भारत सरकार के सेक्रेट agent होते है. इनकी केवल एक ही कमजोरी है वो है लडकिया. एक अन्य सेक्रेट agent का क़त्ल दुश्मन के लोग कर देते है और उसके बाद सरकार गन मास्टर को उस गिरोह का पता लगाने और कुछ सेक्रेट फाइल जो पुराने agent के पास थी तो दूंदने का काम सौपती है.

फिर गन मास्टर इस कार्य को अंजाम देते है और जैसा की इस तरह की फिल्मों में होता है दुश्मन की हार होती है और सेक्रेट agent २ लडकियों के साथ प्यार करते करते अपने मिसन को complete करता है. इस बीच गन मास्टर पर कई सारे हमले होते है और वो बहादुरी से उनका सामना करके दुश्मनों को हरा देता है. फिल्म की कहानी तो आज के दर्शको को शायद ज्यादा पसंद ना आये लेकिन इस फिल्म के कुछ खास दृश्य मैं यहाँ शेयर करना चाऊँगा.

abhisays
16-01-2011, 09:13 AM
जब गन मास्टर को चीफ का फ़ोन आता है नए मिशन के लिए और अपने सेक्रेट agent की छुटियाँ बीच में ही ख़त्म हो जाती है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8272&stc=1&d=1295154724

abhisays
16-01-2011, 09:16 AM
forest क्लब में मिथुन दा को अपने डांस के जलवे दिखने का मौका मिलता है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8273&stc=1&d=1295154872

डांस का विडियो


4COsmEpDfZI

abhisays
16-01-2011, 09:19 AM
फिल्म का title गाना भी काफी अच्छा है जो एक तरह से फिल्म का थीम भी है. ७० के दशक के नए संगीत (बप्पी लाहिरी) के एक अच्छा उदहारण है.

LEH3qxNmlNg

abhisays
16-01-2011, 09:22 AM
फिल्म की मुख्य हीरोइन को पटाने में गन मास्टर को काफी मेहनत करनी पड़ती है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8274&stc=1&d=1295155309

abhisays
16-01-2011, 09:26 AM
जब गन मास्टर को दुश्मन महिला जासूस क़ैद कर लेती है तो उसके बाद का कमरे वाला scene काफ़ी रोचक है. ख़ासकर तब जब गन मास्टर बोलता है

"एक बँधा हुआ आदमी और एक आज़ाद औरत रात कैसे अच्छी तरह गुज़ार सकते है"


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8275&stc=1&d=1295155554

abhisays
16-01-2011, 09:31 AM
फिल्म का विलेन जिसके पास पूरी दुनिया को ख़त्म कर देनी की ताक़त है.

http://memsaabstory.files.wordpress.com/2010/02/surakksha_dr_shiva.jpg

khalid
16-01-2011, 11:20 AM
थेँक्स अरविन्द पाजी मजा आ गया
एक डाँयलाग तो बहुत फेमस हैँ
हमसब तो कटपुतली हैँ

malethia
21-01-2011, 09:37 AM
तो आज मैं चर्चा करूंगा "एक रुका हुआ फैसला" फिल्म की

इस फिल्म में १२ पात्र थे जिन्हें कोर्ट ने फैसले की जिम्मेदारी सौपी थी और एक द्वारपाल भी था. कुल जमा १३ पात्र और एक कमरे में पूरी फिल्म शूट हुई थी. बासु चटर्जी ने फिल्म का निर्देशन किया था.

दीपक केजरीवाल जूरी सदस्य #1
अमिताभ श्रीवास्तव जूरी सदस्य #2
पंकज कपूर जूरी सदस्य #3
स. म. ज़हीर जूरी सदस्य #4
सुभाष उद्घते जूरी सदस्य #5
हेमंत मिश्र जूरी सदस्य #6
ऍम के रैना जूरी सदस्य #7
के के रैना जूरी सदस्य #8
अन्नू कपूर जूरी सदस्य #9
सुब्बिराज जूरी सदस्य #10
शैलेन्द्र गोएल जूरी सदस्य #11
अज़ीज़ कुरैशी जूरी सदस्य #12
दी संधू गेट कीपर

कल रात ही मैंने इस फिल्म को टीवी पर देखा ,वास्तव में बहुत ही शानदार फिल्म है,
फिल्म में पंकज कपूर व अन्नू कपूर के कार्य मैं प्रभावित हुआ !

abhisays
06-02-2011, 07:03 AM
आज जो मैं अपनी एक और पसंदीदा फिल्म ले कर आया हूँ, उसका नाम है ज्वेल थीफ
७० के दशक की एक क्लास्सिक, थ्रिलर, सस्पेंस और ड्रामा से भरपूर देव आनंद की यादगार फिल्म.


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=8612&stc=1&d=1296961403

abhisays
06-02-2011, 07:12 AM
ज्वेल थीफ १९६७ में रिलीज़ हुई थी. देव आनंद के production हाउस नवकेतन के बैनर तले. फिल्म के निर्देशन देव साहब के भाई विजय आनंद ने किया था. इस फिल्म का कर्णप्रिय संगीत दिया था S.D. बर्मन ने और गीत लिखे थे मजरूह सुल्तानपुरी ने. इस फिल्म की कहानी कीमती हीरे-जवाहरात की चोरी के इर्द-गिर्द बुनी गई थी।


मुख्य किरदारों में थे

देव आनंद
व्यंजन्तिमाला
अशोक कुमार
तनूजा
अंजू महेन्द्रू
सचिन
हेलेन

ज्वेल थीफ बॉक्स ऑफिस पर सुपर हिट हुई थी. बाद में ९० के दशक में इसका sequel भी बना को कोई खास सफलता हासिल नहीं कर सका.

http://upload.wikimedia.org/wikipedia/en/c/cb/Jewel_Thief_poster.jpg

abhisays
06-02-2011, 07:27 AM
ज्वेल थीफ एक जबरदस्त सफल थ्रिलर फिल्म थी. ज्वेल थीफ, हीरो की चोरी और रहस्य रोमांच की अनोखी दास्ताँ.

ज्वेल थीफ विनय नाम के एक ऐसे लड़के की कहानी है जो हीरो जवाहरातो का पारखी है. विनय के पिता बम्बई के कमिश्नर हैं. विनय अपने एक हम्सकल की साजिश का शिकार हो जाता है जिसे लोग प्रिंस अमर के नाम से जानते हैं. प्रिंस अमर एक चोर है और कीमती हीरो की चोरी करता है. ऐसी ही एक चोरी के बाद देश भर की पुलिस विनय को प्रिंस अमर समझकर उसके पीछे पर जाती है.

आखिरकार तमाम मुसीबतों को झेलते हुए विनय ना खुद को बेगुनाह साबित करता है बल्कि ज्वेल थीफ के पुरे रैकेट का पर्दाफाश करता है.

abhisays
05-03-2011, 09:54 AM
आज जो मैं अपनी एक और पसंदीदा फिल्म ले कर आया हूँ, उसका नाम है

नदिया के पार

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=9271&stc=1&d=1299304433

abhisays
05-03-2011, 09:57 AM
नदिया के पार १९८२ में रिलीज़ हुई थी. राजश्री के बैनर तले इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे सचिन, साधना सिंह, इन्दर ठाकुर, मिताली, सविता बजाज, शीला डेविड, लीला मिश्र और सोनी राठोड.

मेरे शहर मुजफ्फरपुर में यह फिल्म करीब १ साल से ज्यादा चली थी. बाद में इस फिल्म को दुबारा "हम आपके है कौन" के नाम से बनाया गया, इसने भी सफलता का नया इतिहास रचा था.

abhisays
05-03-2011, 10:00 AM
“नदिया के पार” ने हिंदी सिनेमा के इतिहास में वो मकाम प्राप्त किया है जो बहुत ही कम फिल्मो को नसीब होता है.
ग्रामीण परिवेश में फिल्माई गयी इस फिल्म की ख़ास बातें थी, इसकी रोचक कहानी, कासी हुई पटकथा, मधुर गीत संगीत, नया कलाकारों द्वारा किया गया शानदार अभिनय, दर्शक के दिल में उतर जाने वाले दृश्य.

bhoomi ji
05-03-2011, 10:02 AM
नदिया के पार १९८२ में रिलीज़ हुई थी. राजश्री के बैनर तले इस फिल्म के मुख्य कलाकार थे सचिन, साधना सिंह, इन्दर ठाकुर, मिताली, सविता बजाज, शीला डेविड, लीला मिश्र और सोनी राठोड.

मेरे शहर मुजफ्फरपुर में यह फिल्म करीब १ साल से ज्यादा चली थी. बाद में इस फिल्म को दुबारा "हम आपके है कौन" के नाम से बनाया गया, इसने भी सफलता का नया इतिहास रचा था.
बहुत अच्छी जानकारी
पुरानी फिल्मो के बारे में काफी जानकारी रखते हो:cheers::cheers:

abhisays
05-03-2011, 10:05 AM
फिल्म की कहानी कुछ इस तरह से थी.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक किसान अपने २ बेटो के साथ रहता था. एक बार वो बीमार पर गया. फिर उसके छोटे बेटे चन्दन (सचिन) पास के गाँव से एक वैद को लेने जाता है. और वो वैद इलाज़ करता है और फीस के बदले अपनी बड़ी बेटी रूपा की शादी का प्रस्ताव उस किसान के बड़े लड़के ओमकार (इन्द्र ठाकुर) से रखता है. फिर दोनों की शादी हो जाती है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=9272&stc=1&d=1299306886

khalid
14-03-2011, 05:33 PM
अभि जी कृप्या इस सुत्र को आगे बढाए

abhisays
19-03-2011, 08:12 PM
खालिद जी खास माँग पर चलिए आज इस सूत्र को आगे बढाया जाये. नदिया के पार की पूरी कहानी के लिए फिल्म देखे. उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगा.

abhisays
19-03-2011, 08:16 PM
आज जो मैं फिल्म ले कर आया हूँ उसका नाम है प्यासा.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=9520&stc=1&d=1300547792

abhisays
19-03-2011, 08:29 PM
साहित्य समाज का दर्पण होता है| इसी प्रकार फ़िल्में भी समकालीन परिस्तिथियों से प्रभावित होती हैं| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की यह फिल्म भी तत्कालिक प्रभावों से अछूती नहीं रही है| समाज के विद्रूप, छल और कपट से आक्रोशित नायक द्वारा अपना मौलिक अस्तित्व को ही अस्वीकार कर देना चरम सीमा ही कहा जा सकता है| कुछ इसी हताशा को गुरुदत्त ने बेहतरीन तरीके से परदे पर दिखाया है|

abhisays
19-03-2011, 08:29 PM
आज़ादी के 10 वर्ष बाद 1957 में रिलीज फिल्म "प्यासा" संघर्षरत कवि विजय (गुरुदत्त) की कहानी है,जो श्रेष्ठ होते हुए भी अपनी कृतियों को स्थान नहीं दिला पाए| विजय की रचनाएँ अमीरों के अत्याचारों का विरोध व गरीबों के समर्थन में हैं|पर प्रकाशकों ने उनका महत्व न समझा और स्वयं उनके भाई उनके लेखन को व्यर्थ समझते हैं तथा उनकी रचनाओं को एक कबाड़ी को बेच देते हैं| ये रचनाएं संयोग से गुलाबो (वहीदा रहमान) खरीदती है तथा इन पंक्तियों को गुनगुनाती है| समाज के ढर्रे से त्रस्त विजय घर छोड़ देता है और उसका अधिकांश समय सड़कों पर ही गुजरता है| एक संयोगवश गुलाबो की भेंट विजय की मित्र मीना से होती है जिसने विजय की गरीबी के कारण एक प्रकाशक घोष बाबू (रहमान)से शादी कर ली| परन्तु वह अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं है और वापस विजय के जीवन में आना चाहती है,परन्तु विजय को मंज़ूर नहीं|

abhisays
19-03-2011, 08:30 PM
दूसरी ओर विजय को एक दुर्घटना में चोट लगती है और वह एक संयोगवश मृत समझ लिया जाता है| गुलाबो अपने कुछ अन्य प्रभावशाली परिचितों की सहायता से विजय की रचनाएं प्रकाशित करा देती है|ये कवितायेँ घोष इस आशा से प्रकाशित करता है कि वह विजय की मृत्यु से उपजी सहानुभूति का लाभ उठाकर धन कमा लेगा पर उसके भाई(महमूद) घोष के पास जाते है वो पैसा हथियाने के लिए|

परन्तु विजय जीवित है और उसका इलाज़ एक मानसिक रोग अस्पताल में चल रहा है| एक दिन नर्स से अपनी ही प्रकाशित रचना सुन कर तथा अपनी प्रसिद्धि का समाचार जान कर विजय सामान्य हो जाता है|परन्तु कोई उसका विश्वास नहीं करता तथा उसको पागलों वाले कमरे में ही रखा जाता है|घोष को जब यह पता चलता है तो वह विजय के मित्र श्याम व भाईयों को अपने रचे षड्यंत्र में शामिल कर लेता है तथा सब मिल कर उसको पहचानने से मना कर देते हैं|फिर शुरू होती है विजय की दुनिया के सामने अपना अस्तित्व साबित करने की कशमकश|

अबरार अली की लिखी यह कहानी एक सन्देश समेटे हुए है और ये सन्देश अपने उत्कृष्ट अभिनय के माध्यम से गुरुदत्त,वहीदा रहमान ,जोनी वाकर ,रहमान व माला सिन्हा ने प्रस्तुत किया है|

गुरु दत्त का निर्देशन ठोस है और उन्होंने बेहद उम्दा पटकथा दी है| फिल्म का चरम दिल छु लेने वाला है और पूरे फिल्म की जान है| गुरु दत्त ने एक बेहतरीन और भावुक चरम से दुनिया की सच्चाई सामने रखने की कोशिश की है|

फिल्म में संगीत ठोस है और फिल्म की थीम पर जचता है| एस. डी. बर्मन का संगीत तथा मोहम्मद रफ़ी के गाये कुछ गीत आज भी उतने ही पसंद किये जाते हैं|

abhisays
19-03-2011, 08:31 PM
फिल्म में संवाद भी अबरार अल्वी के हैं,जो फिल्म की जान हैं| "अपने शौक के लिए प्यार करती है और अपने आराम के लिए प्यार बेचती है" संवाद विजय के साथ हुई बेवफ़ाई बयान करती है| वही "तो मै यहाँ क्या कर रहा हूँ मैं जिन्दा क्यों हूँ ,गुलाबो" निराश हताश विजय की दुर्दशा दिखाती है| हालाँकि फिल्म एक दृष्टि से बहुत ही धीमे चलती है और कुछ स्थानों पर थोड़ी बोरियत सी लगती है| पर गीत, संगीत, अभिनय, संवाद शेष सभी कसोटियों पर खरी उतरती है|

गुरुदत्त की 'प्यासा' आज भी उतना ही महत्व रखती और और शायद इसलिए ही इस फिल्म की आज भी उतनी ही महता है|

abhisays
19-03-2011, 08:32 PM
कुछ रोचक बातें:

1) व्यवसायिक दृष्टिकोण से सफल कुछ फ़िल्में बनाने के बाद गुरुदत्त कुछ फ़िल्में अपनी रूचि के अनुसार बनाना चाहते थे,जो उनके मन को सुकून दे सके| इनमे से ही एक फिल्म प्यासा थी|
2) फिल्म की कहानी हिमाचल के एक असफल कवि चन्द्रशेखर प्रेम की अपनी कहानी है जिसको अपनी रचना को बम्बई जाकर बेचनी पडी|उसने उर्दू हिंदी में बहुत सी किताबें लिखी परन्तु उनके लिए वह कभी प्रसिद्ध न हो सका |
3) फिल्म का अंत परिस्तिथियों से समझौता कर किया जाय या नहीं इस पर भी बहुत विचार विमर्श हुआ| अंत में फिल्म का अंत गुरुदत्त ने अपनी पसंद से किया|
5) अपनी इस विख्यात फिल्म के लिए गुरु दत्त ट्रेजेडी किंग दिलीप साहब को लेना चाहते थे परन्तु उनके मना करने पर उन्होंने स्वयं इस रोल को निभाया |
6) एक धीमी शरुआत के बाद फिल्म सफल रही | विडंबना ही कहा जाए गा कि गुरुदत्त के जीवन काल में तो नहीं परन्तु उनके बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत सराहना मिली| फ्रांस,जर्मनी में फिल्म बहुत पसंद की गयी| फ्रेंच प्रीमियर में इसका शो हुआ , तद्पश्चात नौवें अंतर्राष्ट्रीय एशियन फिल्म फेस्टिवल में भी इसको प्रदर्शित किया गया|
7) टाईम्स रीडर्स ने इसको सर्वकालिक टॉप दस फिल्मों में सम्मिलित किया| आज भी इस फिल्म को पसंद करने वाले दर्शक हैं |

abhisays
19-03-2011, 08:33 PM
फिल्म के मुख्य कलाकार.

माला सिन्हा - मीना
गुरु दत्त - विजय
वहीदा रहमान
रहमान
जॉनी वॉकर - अब्दुल सत्तार
कुमकुम
लीला मिश्रा
श्याम
महमूद
टुन टुन
मोनी चटर्जी



यह जानकारी यहाँ से ली गयी है.

http://filmkahani.com/50-decade/pyaasa.html

abhisays
19-03-2011, 08:43 PM
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abhisays
22-04-2011, 04:55 PM
बहुत लोग धर्मेन्द्र को केवल मार धार वाली फिल्मो का हीरो मानते हैं, इसके पीछे कारण यह है की उन्होंने ऐसी ही फिल्में की हैं. लेकिन एक फिल्म मैंने आज ही youtube पर राजश्री productions की जीवन मृत्यु फिल्म देखी, इसमें मैंने धर्मेन्द्र का अलग ही रूप पाया, फिल्म में उन्होंने काफी संजीदगी से अभिनय किया है, फिल्म अपने ज़माने में सुपर हिट हुई थी.

http://2.bp.blogspot.com/-vQYS3Ui2SBo/TskYFg5zg5I/AAAAAAAAMnU/UrnqksmyhYc/s1600/1970+Bollywood++Poster+JEEWAN+MRITYU+2.jpg

abhisays
22-04-2011, 05:00 PM
जीवन मृत्यु १९७० में रिलीज़ हुई थी, इस फिल्म के निर्माता थे राजश्री फिल्मो के जनक ताराचंद बर्जात्या. फिल्म के मुख्या कलाकार थें धर्मेन्द्र, राखी (यह राखी की पहली फिल्म थी), अजित, राजेन्द्रनाथ और लीला चिटनिस. फिल्म का संगीत दिया था लक्ष्मी कान्त प्यारेलाल ने और गीत लिखे थे आनंद बक्षी ने.

फिल्म का एक गाना झिलमिल सितारों का आँगन होगा काफी लोकप्रिय हुआ था.

abhisays
22-04-2011, 05:05 PM
फिल्म की कहानी कुछ इस तरह से है.

अशोक टंडन (धर्मेन्द्र) बैंक में मेनेजर है, और उसे दीपा नाम की लड़की से प्यार है, उन दोनों की शादी होने वाली थी, तभी अशोक के खिलाफ बैंक में गबन का मुकदमा चल जाता है और उसे ७ साल की सजा हो जाती है, जेल से निकल जाने के बाद अशोक को पता चलता है की दीपा की शादी हो चुकी है, और उसकी माँ भी मर चुकी होती है. तभी कुछ ऐसा होता है की राजा रणबीर सिंह, उसे नौकरी देते है और एक नयी पहचान. अशोक अब विक्रम सिंह बन जाता है, फिर वो दीपा का पता लगाता है और अपने बैंक के सहकर्मियों से धोखे का बदला लेता है.

abhisays
22-04-2011, 05:12 PM
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abhisays
22-04-2011, 05:17 PM
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abhisays
29-04-2012, 06:34 PM
एक रुका हुआ फैसला इस अंग्रेजी फिल्म की नक़ल थी.

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ndhebar
29-04-2012, 08:18 PM
आपको धरम पाजी की फिल्म सत्यकाम देखनी चाहिए
हृषी da की ye फिल्म kai मामलो में बेहतरीन है
dharmendra is in this movie at his best

abhisays
30-10-2012, 09:05 AM
आपको धरम पाजी की फिल्म सत्यकाम देखनी चाहिए
हृषी da की ye फिल्म kai मामलो में बेहतरीन है
dharmendra is in this movie at his best

कल ही मैंने यह फिल्म देखी, फिल्म काफी अच्छी थी।

abhisays
05-10-2013, 05:18 AM
http://www.webmallindia.com/img/film/hindi/rajnigandha_1325669345.jpg

रजनीगंधा

भारत में कहानियों और उपन्यासों पर आधारित कम ही फिल्में बनी हैं. अभी हाल में ही चेतन भगत ने उपन्यास थ्री मिस्टेक्स ऑफ़ माय लाइफ से प्रेरणा ले कर "काई पो चे" रिलीज़ हुई, जिसे दर्शको और फिल्म समीक्षकों ने काफी सराहा। ऐसा क्यों होता है जब भी फिल्म किसी कहानी और उपन्यास पर आधारित होती है ओवरआल अच्छी बन जाती है. चलिए एक उदहारण देता हूँ, अगर आप आई एम् डी बी के टॉप २५० (http://www.imdb.com/search/title?groups=top_250&sort=user_rating&my_ratings=exclude) फिल्मों की लिस्ट को देखेंगे तो पायेंगे तो इस लिस्ट की अधिकतर फिल्में किसी ना किसी उपन्यास पर आधारित या प्रेरणा लेकर बनी हैं. इसपर कभी किसी और दिन विस्तार से चर्चा करेंगे। फिलहाल इस वीकेंड पर जो मैंने फिल्म देखी, उसके बारे में यहाँ ब्लॉग करने जा रहा हूँ. फिल्म का नाम था, रजनीगंधा, हमारी पीढ़ी के बहुत सारे लोग इसको शायद रजनीगंधा पान मसाले के साथ कंफ्यूज ना कर जाए, तो मैं उनके लिए बता दूं, यह फिल्म १९७४ में रिलीज़ हुई थी, इसके निर्देशक थे बासु चटर्जी। फिल्म की पठकथा मन्नू भंडारी के एक प्रसिद्ध कहानी यही सच है (http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1602) पर आधारित थी. इसमें अमोल पालेकर, विद्या सिन्हा और दिनेश ठाकुर ने मुख्य भूमिकाएँ निभाई थी. इस फिल्म को १९७५ का बेस्ट फिल्म का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था. जब पूरा देश अमिताभ की मार धाड़ वाली फिल्मों के मज़े ले रहा था तो ऐसे में रजनीगंधा ने यथार्थवादी फिल्मों का एक नया ट्रेंड शुरू किया था और अमोल पालेकर उसके नायक बनकर उभरे थे.

abhisays
05-10-2013, 05:18 AM
यह फिल्म असल में एक प्रेम त्रिकोण है. फिल्म की नायिका दीपा कपूर दिल्ली में अपने भैया भाभी के साथ रहकर पढ़ रही है. दिल्ली में उसकी मुलाक़ात संजय (अमोल पालेकर) से होती है, जल्द ही दोनों में प्रेम हो जाता है और दोनों शादी के विषय में सोचने लगते हैं इसी बीच दीपा को नौकरी के इंटरव्यू के लिए बम्बई जाना पड़ता है. बम्बई में दीपा की मुलाकात अपने एक पुराने प्रेमी नवीन(दिनेश ठाकुर) से होती है. नवीन दीपा को नौकरी दिलाने में, बम्बई घुमाने में तथा अन्य कार्यों में बहुत मदद करता है. दीपा के मन में नवीन के प्रति पुराना प्यार फिर से जाग जाता है. दीपा अब मन ही मन संजय और नवीन की तुलना करने लगती है. फिर दीपा दिल्ली लौट आती है और बम्बई से उसकी नौकरी लगने की सूचना आती है, वह बहुत खुश हो जाती है. इधर संजय को भी प्रमोशन मिल जाता है और वो ये समाचार देने दीपा के पास जाता है दीपा फिर उलझन में फंस जाती है, एक ओर उसका पुराना प्रेमी नवीन तो दूसरी ओर संजय , जिसको वह काफी चाहती है| अंत में दीपा किस को चुनती है, नवीन को या संजय को, यह जानने के लिए यह फिल्म जरुर देखें।

abhisays
05-10-2013, 05:20 AM
फिल्म में केवल दो ही गाने हैं, और दोनों ही सुपरहिट। मुकेश की आवाज़ में "कई बार यू ही देखा है" मेरे पसंदीदा गानों में से एक है. इस गाने के लिए मुकेश को नेशनल अवार्ड भी मिला था. फिल्म का दुसरा गाना "रजनीगंधा फूल तुम्हारे" भी काफी अच्छा है. लता की आवाज़ और सलिल चौधरी के संगीत ने इसमें चार चाँद लगा दिए हैं.

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abhisays
05-10-2013, 05:32 AM
फिल्म की शुरुआत होती है, ट्रेन के सीन से जिसमे दीपा की ट्रेन छुट जाती है, हालांकि यह एक सपना होता है, हरेक सपने की तरह यह भी टूट जाता है और फिल्म की कहानी आगे बढती हैं.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30833&stc=1&d=1380933098

abhisays
05-10-2013, 05:33 AM
दीपा अपने भैया और भाभी के साथ में रहती है, अभी दोनों पटना जाने वाले हैं. कमरे में आपको किताबें, साड़ियाँ और एक अलमारी दिखाई पड़ेगी, बासु दा ने उस समय के मिडिल क्लास के घर को फिल्म में बड़े ही अच्छे तरीके से दिखाया है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30834&stc=1&d=1380933098

abhisays
05-10-2013, 05:33 AM
इसमें कोई शक नहीं कि रजनीगंधा एक नायिका प्रधान फिल्म है, और फिल्म के कास्टिंग में यह बात अच्छी तरह जाहिर हो जाती है. काले गौगल और सफ़ेद-लाल साड़ी और सफ़ेद हैण्ड बैग का मेल और सिनेमा हॉल का बैकग्राउंड, उस समय के फैशन को बड़े अच्छी तरह दर्शा रहे हैं. फिल्म की कास्टिंग अंग्रेजी और हिंदी दोनों में है.


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30835&stc=1&d=1380933098

abhisays
05-10-2013, 05:34 AM
लीजिये अपने हीरो भी अपनी फटी चप्पल चटकाते हुए आ पहुचे, लेकिन हीरोइन की मीठी डाट खानी पड़ी. अमोल पालेकर यानी संजय फिल्म की टिकट अपने दुसरे पैंट की जेब में भूल आते हैं.


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30836&stc=1&d=1380933098

abhisays
05-10-2013, 05:36 AM
ओपन कॉफ़ी हाउस में प्रेमी-प्रेमिका एक साथ.


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30837&stc=1&d=1380933098

abhisays
05-10-2013, 05:37 AM
लड़का लड़की को साथ देखा तो लगे दुनिया वाले बातें बनानें।


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30838&stc=1&d=1380933424

abhisays
05-10-2013, 05:38 AM
अगर प्रेमी अपनी प्रेमिका को छोड़कर अपने दोस्तों के बीच मशगुल हो जाएगा तो प्रेमिका को गुस्सा तो आएगा ही.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30839&stc=1&d=1380933424

abhisays
05-10-2013, 05:38 AM
७० के दशक की दिल्ली, बैकग्राउंड में लेम्ब्रेटा स्कूटर, हरे भरे पेड़ आदि.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30840&stc=1&d=1380933424

abhisays
05-10-2013, 05:39 AM
बस स्टॉप पर प्रणय वार्ता


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30841&stc=1&d=1380933424

abhisays
05-10-2013, 05:40 AM
इंतज़ार के वो पल


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30842&stc=1&d=1380933424

abhisays
05-10-2013, 05:41 AM
रूठना और मनाना

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30843&stc=1&d=1380933661

abhisays
05-10-2013, 05:41 AM
दीपा संजय का पसीना अपना साड़ी के पल्लू से पोछते हुए. प्यार के यह हसीन पल, आजकल के फिल्मों में कहाँ देखने को मिलते हैं.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30844&stc=1&d=1380933661

abhisays
05-10-2013, 05:42 AM
सिगरेट, बिखरे बाल और खुला छत

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30845&stc=1&d=1380933661

abhisays
05-10-2013, 05:42 AM
बस बाग़ के ही दृश्य की कसर रह गयी थी, वो भी पूरी हो गयी.


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30846&stc=1&d=1380933661

abhisays
05-10-2013, 05:43 AM
रेलवे स्टेशन पर सी ऑफ.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30847&stc=1&d=1380933661

abhisays
05-10-2013, 05:45 AM
पांच साल बाद नवीन से मुलाक़ात

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30848&stc=1&d=1380933894

abhisays
05-10-2013, 05:46 AM
फाँसी लगाने का यह तरीका शायद भौतिकी के सिद्धांत के खिलाफ है :-)


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30849&stc=1&d=1380933894

abhisays
05-10-2013, 05:46 AM
प्रेम पत्र



http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30850&stc=1&d=1380933894

abhisays
05-10-2013, 05:47 AM
पहला पहला प्यार


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30851&stc=1&d=1380933894

abhisays
05-10-2013, 05:48 AM
पुरानी सहेलियाँ


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30852&stc=1&d=1380933894

abhisays
05-10-2013, 06:54 AM
फटा छाता निकला हीरो


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30853&stc=1&d=1380934148

abhisays
05-10-2013, 06:55 AM
आखिरकार हीरोइन हीरो के फटे छाते के नीचे आ ही गयी.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30854&stc=1&d=1380934148

abhisays
05-10-2013, 06:55 AM
७० के दशक का फैशन।


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30855&stc=1&d=1380934148

abhisays
05-10-2013, 06:57 AM
पहले आप सिगरेट कही भी पी सकते थे, अब तो हर जगह रोक लग गयी है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30856&d=1380934148


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30857&d=1380934148

abhisays
05-10-2013, 06:58 AM
संजय और नवीन।


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30858&stc=1&d=1380938304

abhisays
05-10-2013, 06:59 AM
एक बार फिर से रेलवे स्टेशन आ गया और इस बार संजय की जगह नवीन से जुदा होने का वक़्त था.


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30859&stc=1&d=1380938304

abhisays
05-10-2013, 06:59 AM
यही सच है. आखिरकार दीपा की उलझन का अंत होता है.

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=30860&stc=1&d=1380938304

इस फिल्म की सबसे अच्छी बात यह है कि इसकी कहानी पूरी तरह से “यही सच है” पर आधारित है, निर्देशक ने जरा भी पठकथा में बदलाव नहीं किया है. फिल्म में दो बातें दिखाई गयी हैं, पहला तो यह कि कोई भी लड़की अपना पहला प्यार कभी नहीं भूलती, दूसरा यह कि जब भी ज़िन्दगी में कभी दिल टूट जाए तो निराश नहीं होना चाहिए, आगे की ज़िन्दगी पुरे जोश से गुजारनी चाहिए, पता नहीं कब आपको आपका सच्चा प्यार मिल जाए.

dipu
05-10-2013, 08:21 AM
great story

rajnish manga
05-10-2013, 09:58 AM
:bravo:

बहुत सुन्दर. यहां आपने एक story teller और समीक्षक के रूप में कमाल कर दिया है, अभिषेक जी. फिल्म के हर नाटकीय मोड़ को आपने चित्रों और शब्दों की सहायता से जीवंत किया है. इसी प्रकार की अन्य फिल्म कथाओं का इन्तज़ार रहेगा.

Deep_
21-05-2014, 01:03 PM
रजनीगंधा फिल्म बेशक एक मास्टरपीस है। पीछले चार सालोंमें यह फिल्म कई बार देखी है.....आज कल मेरे मोबाईल में भी यह फिल्म रखी हुई है! जब मन चाहा देख लिया! देखीए एक नमुने का नमुना!

Q09LzhhhyC8

Deep_
21-05-2014, 01:05 PM
मेरे बनाए हुए एक-दो स्केच....


http://2.bp.blogspot.com/-RaG1wAewvZU/U3xZq0xhFeI/AAAAAAAAAB4/MIRXvv3WMHE/s640/1.jpg

Deep_
21-05-2014, 01:05 PM
http://1.bp.blogspot.com/-Jp6NcrtYS5s/U3xarR_-0MI/AAAAAAAAACA/4esEVLebohY/s1600/2.jpg

Deep_
27-03-2015, 08:50 PM
http://www.vlovemovies.com/online/wp-content/uploads/2010/02/rajnigandha-01.jpg
आज थोडी देर यह फिल्म की कहानी पढ रहा था। फिर थोडी फिल्म भी देख ली!

Deep_
27-03-2015, 08:53 PM
http://drop.ndtv.com/albums/ENTERTAINMENT/cinema-100films/90-rajnigandha.jpg

ईस फिल्म देखना भी एक मज़ा है । रानी फेशन और पुरानी यादें। पुरानी खुली खुली सी दील्ली! चौडे रास्ते और हरियाली। कार, बस, और ट्रेन का सफर। ट्रेन से दिखाई देती है बारिश के बाद वाली हरी हरी घास और पहाड। दिल्ली की गरमी से ले कर मुंबई की बारिश तक का यह कोन्ट्रास्ट/व्यतिरेक कितना अच्छा लगता है!

Deep_
27-03-2015, 08:54 PM
http://i.ytimg.com/vi/Za2zZRQBM7k/hqdefault.jpg

मै उस पुराने दौर में चला जाता हुं जो कभी देखा ही नहीं है। विध्या सिंहा अब चाहे कैसी भी दिखती हो, कुछ भी करती हो...मैने तो उस दीपा को ही सत्य मान लिया है। वह सादी सी शर्मीली लडकी और उसके खोए खोए से खयाल। उसकी बेहद, बेहद खुबसुरत आंखे और उतनी ही सुंदर साडीयां। उसके लंबे बाल और मीठी मुस्कान। संजय का बेफिक्रपन, व्यवहार, नवीन के प्रति उदारता, ओफिस का टेन्शन, कितना एक्सेप्टेबल/स्वीकार्य है!

Deep_
27-03-2015, 08:54 PM
http://www.iada.in/images/Vidya-Sinha-in-Rajnigandha.jpg
ईब सव के बीच रजनीगंधा के वह फुल!

Deep_
27-03-2015, 08:55 PM
मनु भंडारी की यह कहानी बासु दा को कैसे मिल गई और यह खुबसुरत फिल्म कैसे बन गई? नहीं 'छोटी सी बात' में 'रजनीगंधा' की छोटी सी बात भी नहीं लगती। वह फिल्म बहूत अलग है और यह बहूत अलग।
http://www.indiablooms.com/big_images/2857_post-6151-1207982411.jpg

Deep_
27-03-2015, 08:55 PM
http://vlovemovies.com/online/wp-content/uploads/2010/02/rajnigandha-02.jpg

मुल कहानी और फिल्म में फर्क तो होता ही है। संजय के केरेक्टर को यहां नवीन की लंबाई का कर दिया गया है। ईरा की बच्ची फिल्म में नहीं है। उसका व्यक्तित्व मुंबईया दिखाया गया है। नवीन को एड फिल्म का डिरेक्टर दिखाया गया है। फिर भी सब कुछ एकदम यथायोग्य है,स्वयं मनु भंडारी भी यह बात तो मानेंगे।

Deep_
27-03-2015, 08:58 PM
http://4.bp.blogspot.com/-1LTLnyu0P1s/UzwllZxiyVI/AAAAAAAAC9Q/p4wqKVoru0g/s1600/Kai+Baar+Yun+Hi+Dekha+Hai+Song+Lyrics.jpg

फिर भी आज मन में यह गुस्ताख सी ख्वाहिश कैसे जागी? की एक फिल्म बनाउ? मुल कहानी में बदलाव किए बिना? यही कहानी फिर से मल्टीप्लेक्स के पर्दों पर दिखे तो? लेकिन विध्या सिंन्हा की जगह कौन ले सकता है? और अमोल की जगह किसी की कल्पना की जा सकती है? आज कल एक्सरिमेन्टल फिल्में भी चल रही है। क्या खयाल है?