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View Full Version : चर्चा पर खर्चा।


arvind
15-01-2011, 03:07 PM
दोस्तो, इस सूत्र पर हम सभी देश विदेश से जुड़े विभिन्न मुद्दो पर अपनी राय देंगे।

arvind
15-01-2011, 03:11 PM
सबसे पहले मै "कसाब" की तरफ आप सभी लोगो का ध्यान खिचना चाहता हूँ, जो एक आतंकवादी है और हमारे देश को काफी नुकसान पहुचा चुका है। लेकिन उसके ऊपर करोड़ो रुपये खर्च किए जा रहे है, और वो हमे हमारे देश और देश की न्याय व्यवस्था की खिल्ली उड़ा रहा है।

khalid
15-01-2011, 03:15 PM
ठिक हैँ हिरो भाई आप मुद्दे बताऐँ राय अवश्य देखेँ सभी सदस्य

arvind
15-01-2011, 03:20 PM
हत्यारे कसाब को फांसी की सज़ा सुना दी गई है। चार मामलों में फांसी दी गई है इस हत्यारे हो। लेकिन फिर भी मैं समझता हूं कि मौत के इस सौदागार के लिए ये सज़ा बहुत नरम है। ये तो आया ही मरने-मारने के इरादे से था। ऐसे में इसे पकड़ कर फांसी देना सही नहीं है। एक तो ये अपने पहले मकसद यानि लोगों को मारने में कामयाब हो गया और दूसरा मरने में कामयाब हो रहा है। इस जैसे घृणित शख्स के लिए कठोर से कठोर सज़ा देनी चाहिए। मानव अधिकारों को ताक पर रखते हुए इतनी कष्टदायक मौत देनी चाहिए कि हर आतंकी को सबक मिले। हां, इसके चीथड़े उड़ा देने चाहिए। नहीं, आज संयम खो देने दीजिए। इसे सरेआम सूली पर चढ़ा देना चाहिए। एक ऐसी मिसाल पेश की जानी चाहिए कि कोई भी हिन्दुस्तान की ओर आंख उठाकर न देख पाए। इतनी भयंकर मौत की एक बार किसी की भी रूह कांप उठे।

मेरे विचार से तो कसाब को एक बाड़े में बंद किया जाए जिसके चारों और दर्शक दीर्घा बनी हो। उस दर्शक दीर्घा में 26/11 हमले के भुक्तभोगी लोग होंगे। और उनके हाथ में पत्थर। ये लोग पत्थर मार-मारकर इसकी जान ले लें। इस घटना का सीधा प्रसारण किया जाए। भले ही आपको बचकानी सोच लगे या फिर आपको इस बात का डर हो कि कहीं ऐसा होने से हमारे विरोधी और युवाओं को उकसाएंगे, लेकिन हमें कठोर कदम उठाने ही होंगे। वरन्, इन लोगों ने तो हमें नपुंसक ही समझ लिया है।

YUVRAJ
15-01-2011, 03:44 PM
अरविन्द भाई जी ....
सूत्र के लिए शुभकामना ...
कुछ कहना चाहूँगा ...
सबसे पहले जड़ों को ख़त्म करना जरूरी है ताकी ऐसे दानव ही न पैदा हो...

Kumar Anil
15-01-2011, 05:48 PM
आपके विचारोँ से अक्षरशः सहमत हूँ । आतंकवादियोँ को किसी भी तरह का प्रश्रय नहीँ मिलना चाहिये । इनके लिये तो आदिमयुगीन कानून का निर्माण हो और कठोर कार्यवाही कर उनके निर्ममतापूर्वक दमन से अन्य के लिये एक संदेश प्रसारित होना चाहिये ताकि ऐसी मिसाल से , गतिविधियाँ करने से पूर्व उन्हेँ सौ बार सोचना पड़े ।
करना तो दूर कल्पना मात्र से ही उनकी रुह फना हो जाये ।
अरविन्द जी सूत्र का विषय स्पष्ट नहीँ हो पा रहा है ।

arvind
15-01-2011, 05:58 PM
आपके विचारोँ से अक्षरशः सहमत हूँ । आतंकवादियोँ को किसी भी तरह का प्रश्रय नहीँ मिलना चाहिये । इनके लिये तो आदिमयुगीन कानून का निर्माण हो और कठोर कार्यवाही कर उनके निर्ममतापूर्वक दमन से अन्य के लिये एक संदेश प्रसारित होना चाहिये ताकि ऐसी मिसाल से , गतिविधियाँ करने से पूर्व उन्हेँ सौ बार सोचना पड़े ।
करना तो दूर कल्पना मात्र से ही उनकी रुह फना हो जाये ।
अरविन्द जी सूत्र का विषय स्पष्ट नहीँ हो पा रहा है ।
अनिल भाई, इस सूत्र का नाम मैंने "चर्चा पर खर्चा" रखा है - यानि सभी सदस्यो को उठाए गए मुद्दे पर चर्चा करने ले लिए अपना "दिमाग" खर्चा करना पड़ेगा।

Kumar Anil
15-01-2011, 06:23 PM
अनिल भाई, इस सूत्र का नाम मैंने "चर्चा पर खर्चा" रखा है - यानि सभी सदस्यो को उठाए गए मुद्दे पर चर्चा करने ले लिए अपना "दिमाग" खर्चा करना पड़ेगा।

मान गये गुरु , बहुत होशियार हो । बाकी सूत्रोँ को पैदल कर दिया ।

amit_tiwari
18-01-2011, 09:49 AM
हत्यारे कसाब को फांसी की सज़ा सुना दी गई है। चार मामलों में फांसी दी गई है इस हत्यारे हो। लेकिन फिर भी मैं समझता हूं कि मौत के इस सौदागार के लिए ये सज़ा बहुत नरम है। ये तो आया ही मरने-मारने के इरादे से था। ऐसे में इसे पकड़ कर फांसी देना सही नहीं है। एक तो ये अपने पहले मकसद यानि लोगों को मारने में कामयाब हो गया और दूसरा मरने में कामयाब हो रहा है। इस जैसे घृणित शख्स के लिए कठोर से कठोर सज़ा देनी चाहिए। मानव अधिकारों को ताक पर रखते हुए इतनी कष्टदायक मौत देनी चाहिए कि हर आतंकी को सबक मिले। हां, इसके चीथड़े उड़ा देने चाहिए। नहीं, आज संयम खो देने दीजिए। इसे सरेआम सूली पर चढ़ा देना चाहिए। एक ऐसी मिसाल पेश की जानी चाहिए कि कोई भी हिन्दुस्तान की ओर आंख उठाकर न देख पाए। इतनी भयंकर मौत की एक बार किसी की भी रूह कांप उठे।

मेरे विचार से तो कसाब को एक बाड़े में बंद किया जाए जिसके चारों और दर्शक दीर्घा बनी हो। उस दर्शक दीर्घा में 26/11 हमले के भुक्तभोगी लोग होंगे। और उनके हाथ में पत्थर। ये लोग पत्थर मार-मारकर इसकी जान ले लें। इस घटना का सीधा प्रसारण किया जाए। भले ही आपको बचकानी सोच लगे या फिर आपको इस बात का डर हो कि कहीं ऐसा होने से हमारे विरोधी और युवाओं को उकसाएंगे, लेकिन हमें कठोर कदम उठाने ही होंगे। वरन्, इन लोगों ने तो हमें नपुंसक ही समझ लिया है।

मेरे विचार से तो यह इस 'वकील व्यवस्था' की नपुंसकता भी लगती है कि जिस व्यक्ति को पूरी दुनिया ने बन्दूक लिए गोली चलाते खुद देखा उसे भी दोषी सिद्ध करने की आवश्यकता लगी | काश इन अंग्रेजों ने एक भी चीज सही सलामत इजाद की होती |

खैर इसे जो भी सज़ा मिले वो कम है किन्तु लाल रंग की लाइनों पर मेरी आपत्ति है | मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि कसाब उसके लायक है या नहीं | वह कठोरतम मृत्यु का अधिकारी है किन्तु मैं निर्दोष लोगों को क्रूर हत्यारा बनाने के पक्ष में भी नहीं हूँ |

ndhebar
18-01-2011, 09:56 AM
मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि कसाब उसके लायक है या नहीं | वह कठोरतम मृत्यु का अधिकारी है किन्तु मैं निर्दोष लोगों को क्रूर हत्यारा बनाने के पक्ष में भी नहीं हूँ |

बहुत खूबसूरत बात कह डाली भाई
आखिर कुछ तो अंतर होना चाहिए इंसान और शैतान में

arvind
18-01-2011, 11:07 AM
आपके विचारोँ से अक्षरशः सहमत हूँ । आतंकवादियोँ को किसी भी तरह का प्रश्रय नहीँ मिलना चाहिये । इनके लिये तो आदिमयुगीन कानून का निर्माण हो और कठोर कार्यवाही कर उनके निर्ममतापूर्वक दमन से अन्य के लिये एक संदेश प्रसारित होना चाहिये ताकि ऐसी मिसाल से , गतिविधियाँ करने से पूर्व उन्हेँ सौ बार सोचना पड़े ।
करना तो दूर कल्पना मात्र से ही उनकी रुह फना हो जाये ।
अरविन्द जी सूत्र का विषय स्पष्ट नहीँ हो पा रहा है ।

मेरे विचार से तो यह इस 'वकील व्यवस्था' की नपुंसकता भी लगती है कि जिस व्यक्ति को पूरी दुनिया ने बन्दूक लिए गोली चलाते खुद देखा उसे भी दोषी सिद्ध करने की आवश्यकता लगी | काश इन अंग्रेजों ने एक भी चीज सही सलामत इजाद की होती |

खैर इसे जो भी सज़ा मिले वो कम है किन्तु लाल रंग की लाइनों पर मेरी आपत्ति है | मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि कसाब उसके लायक है या नहीं | वह कठोरतम मृत्यु का अधिकारी है किन्तु मैं निर्दोष लोगों को क्रूर हत्यारा बनाने के पक्ष में भी नहीं हूँ |

बहुत खूबसूरत बात कह डाली भाई
आखिर कुछ तो अंतर होना चाहिए इंसान और शैतान में
अमित जी और निशांत जी,

आपकी भावनाये बहुत ही संस्कारपूर्ण है, मै इसकी इज्ज़त करता हूँ, पर अब बहुत हो चुका निर्दोष लोगो का खून-खराबा, अब फिर कही इस तरह के नापाक कुकर्म देखता या सुनता हूँ तो आत्मा धिक्कारती है मुझे, पर अफसोस, एक कमजोर आदमी की तरह कुछ ना करके यहा मन की भड़ास निकाल लेता हूँ।

मै अनिल भाई के विचारो का पूर्णत समर्थन करता हूँ।

Kumar Anil
19-01-2011, 08:42 AM
शरीफ , शिक्षित और सज्जन के भीतर कायरता वास करती है क्योँकि हमे भले बुरे और नैतिक अनैतिक , विधिक अविधिक का ज्ञान भली भाँति बाँट दिया जाता है । आतंकवाद को उग्रवाद और अतिवाद की संज्ञा से विभूषित करने के लिये हम मानवाधिकारी मुखौटे लगा कर कहीँ न कहीँ मानवता के इन दरिन्दोँ की हिमायत कर उनकी नर्सरी को या यूँ कहेँ अब उनके विशाल दरख्तोँ को भयावह जंगल मेँ तब्दील कर रहे हैँ । पंजाब को राजनैतिक चश्मे की वजह से आतंकवाद का शिकार बनना पड़ा था । तथाकथित मानवाधिकारी दुकान चलाने वाले , बैठकोँ मेँ चाय की चुस्कियाँ ले रहे प्रबुद्धजन , पीत पत्रकारिता करने वाले पत्रकार , देश सेवा का खोमचा लगाये राजनीतिक दलोँ ने माहौल को अभूतपूर्व बनाते हुये नये शब्द नयी परिभाषायेँ भले ही गढ़ डाली लेकिन समस्या के छोटे छोटे भुनगोँ को आतंकवादी बनाने मेँ भी परोक्षतः कोई कसर नहीँ छोड़ी । नतीजा इसके पोषक की निर्मम हत्या और देश के प्रगतिचक्र की गतिहीनता के रूप मेँ सामने आया । आखिर इसके पीछे हमारे प्रशासकोँ की कमजोर इच्छाशक्ति और प्रबुद्धजन का बौद्धिक दिवालियापन नहीँ है ? जब हमारा शीर्ष निकम्मेपन से बाज नहीँ आयेगा तब कुढ़ते हुये जनसामान्य के भीतर प्रतिशोध की , प्रतिकार की भावनायेँ बलवती होकर क्या अरविन्द और अनिल के रूप मेँ सामने नहीँ आयेँगी । इनकी परिवर्तित मानसिकता के पीछे तन्त्र की नपुँसकता ही है शायद । नपुँसक किसी को जन्म तो नहीँ दे सकता । हाँ , केवल और केवल समस्या को पैदा कर सकता है और पुरुषार्थ दशा और दिशा को जन्म देकर समस्याओँ को मौत के मुँह मेँ सुलाता है । ऐसा ही हुआ था जब इच्छाशक्ति ने अँगड़ाई ली थी पुरुषार्थ जागा था और जे एफ रिबेरो के रूप मेँ आतंकवाद कुचला गया था । क्या गेँहू क्या घुन सब को पीस दिया था । आखिर घुन को भी तो साथ रहने की सजा मिलनी ही चाहिये ।

Kumar Anil
19-01-2011, 05:14 PM
मेरे विचार से तो यह इस 'वकील व्यवस्था' की नपुंसकता भी लगती है कि जिस व्यक्ति को पूरी दुनिया ने बन्दूक लिए गोली चलाते खुद देखा उसे भी दोषी सिद्ध करने की आवश्यकता लगी | काश इन अंग्रेजों ने एक भी चीज सही सलामत इजाद की होती |

खैर इसे जो भी सज़ा मिले वो कम है किन्तु लाल रंग की लाइनों पर मेरी आपत्ति है | मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि कसाब उसके लायक है या नहीं | वह कठोरतम मृत्यु का अधिकारी है किन्तु मैं निर्दोष लोगों को क्रूर हत्यारा बनाने के पक्ष में भी नहीं हूँ |

कमजोर इच्छाशक्ति , दुर्बल और मूक प्रशासन की विकलांगता एवं लचर , लटकाऊ कानूनोँ मेँ घिरे 26 /11 के ह्रदयविदारक झंझावात मेँ यदि मैँने अपना अजीज खोया होता तो क्या मैँ प्रतिकार की भावना मेँ न जल रहा होता या फिर आजतक न्याय न मिल पाने की स्थिति मेँ मेरी मनोदशा क्या होती ? जब न्याय से भरोसा उठता है या न्याय मेँ विलम्ब होता है तभी व्यवस्था के प्रति उपजे प्रतीकात्मक विद्रोह के फलस्वरूप स्वयं को शोषित और सर्वहारा मानकर व्यक्ति अपना कानून बनाकर न्याय करने के लिये विवश होता है ।

YUVRAJ
19-01-2011, 09:26 PM
हम किसी को बुरा समझे इससे पहले हमें सजग होना होगा ..... आज जो भी स्थिती है उसके जिम्मेदार हम स्वयं हैं ...चन्द लोगों के लिए हमनें अपने ही घर में विभीसण पैदा किये ...क्या आपने कभी सोचा कि एक राष्ट्रीय धरोहर {bm या rm कहो} को हमनें नेस्ताबून्द क्यूँ किया !!! दोस्तों प्यार से कोई भी जंग जीती जा सकती है ...नफरत के लिए एक पल का हजारावां हिस्सा ही काफी है ...अभी भी वक्त है समाज को वर्गीकृत न करें और हर कौम को बराबर का सम्मान दें ...ताकी हम वापस से गंगा-जमुना संस्कृती को नयी जान दे सकें ...

YUVRAJ
19-01-2011, 10:35 PM
यह हमारी व्यक्तिगत राय है समाज के लिये... अतः आग्रह है कि फोरम परिवार इसे व्यक्तिगत न समझे ...:thank-you:

Kumar Anil
20-01-2011, 06:01 AM
युवी भाई ,
आपके विचार नेक हैँ और आज के दौर मेँ यदि सबके विचार ऐसे ही हो जायेँ तो जन्नत यहीँ बन जाये । मैँ आपके जज्बे को सलाम करता हूँ ।
लेकिन
सूत्र का जो विषय है उस सन्दर्भ मेँ आपकी प्रतिक्रिया अवशेष है , प्रतीक्षित है । मैँ आपकी सुसंगत सारगर्भित टिप्पणी का इन्तजार कर रहा हूँ

harigupta
20-01-2011, 10:28 AM
यह हमारी व्यक्तिगत राय है समाज के लिये... अतः आग्रह है कि फोरम परिवार इसे व्यक्तिगत न समझे ...:thank-you:

ye kya hai dosto ? agar vyaktigat hai to vyaktigat kyon naa samjhein kuch samajh nahi aaya ? kripya spasht kar dein.

mere vichar se kaanoon ke andar bhi pecheedgi bhi isliye hee hain ki ham log kisi bhi baat par ek mat nahi ho paate hain.

dhyan rakhein ki kaanoon ko sabka dhyan rakhna padtaa hai, isliye kaanoon se pecheedgi ko samapt karna mushkil hee nahin naamumkin hai.

thanks.

YUVRAJ
21-01-2011, 09:47 AM
आप इसे सिर्फ खुद के लिये न समझें ...:)
ye kya hai dosto ? Agar vyaktigat hai to vyaktigat kyon naa samjhein kuch samajh nahi aaya ? Kripya spasht kar dein.

.................................................. .
.......................
Thanks.

amit_tiwari
21-01-2011, 10:33 AM
अमित जी और निशांत जी,

आपकी भावनाये बहुत ही संस्कारपूर्ण है, मै इसकी इज्ज़त करता हूँ, पर अब बहुत हो चुका निर्दोष लोगो का खून-खराबा, अब फिर कही इस तरह के नापाक कुकर्म देखता या सुनता हूँ तो आत्मा धिक्कारती है मुझे, पर अफसोस, एक कमजोर आदमी की तरह कुछ ना करके यहा मन की भड़ास निकाल लेता हूँ।

मै अनिल भाई के विचारो का पूर्णत समर्थन करता हूँ।

शरीफ , शिक्षित और सज्जन के भीतर कायरता वास करती है क्योँकि हमे भले बुरे और नैतिक अनैतिक , विधिक अविधिक का ज्ञान भली भाँति बाँट दिया जाता है । आतंकवाद को उग्रवाद और अतिवाद की संज्ञा से विभूषित करने के लिये हम मानवाधिकारी मुखौटे लगा कर कहीँ न कहीँ मानवता के इन दरिन्दोँ की हिमायत कर उनकी नर्सरी को या यूँ कहेँ अब उनके विशाल दरख्तोँ को भयावह जंगल मेँ तब्दील कर रहे हैँ । पंजाब को राजनैतिक चश्मे की वजह से आतंकवाद का शिकार बनना पड़ा था ।


जब हमारा शीर्ष निकम्मेपन से बाज नहीँ आयेगा तब कुढ़ते हुये जनसामान्य के भीतर प्रतिशोध की , प्रतिकार की भावनायेँ बलवती होकर क्या अरविन्द और अनिल के रूप मेँ सामने नहीँ आयेँगी । इनकी परिवर्तित मानसिकता के पीछे तन्त्र की नपुँसकता ही है शायद । नपुँसक किसी को जन्म तो नहीँ दे सकता । हाँ , केवल और केवल समस्या को पैदा कर सकता है और पुरुषार्थ दशा और दिशा को जन्म देकर समस्याओँ को मौत के मुँह मेँ सुलाता है । ऐसा ही हुआ था जब इच्छाशक्ति ने अँगड़ाई ली थी पुरुषार्थ जागा था और जे एफ रिबेरो के रूप मेँ आतंकवाद कुचला गया था । क्या गेँहू क्या घुन सब को पीस दिया था । आखिर घुन को भी तो साथ रहने की सजा मिलनी ही चाहिये ।

कदाचित मैं स्वयं को स्पष्ट नहीं कर पाया |
मैंने दोषी को कठोर दंड दिए जाने का विरोध नहीं किया, मेरा विरोध मात्र जन सामान्य को हत्यारा बनाने पर है |
मेरे विचार से ज्यादा उचित है की हम कितनी जल्दी निर्णय लेते हैं, ना की कितना बर्बर निर्णय लेते हैं | यदि इसी कसाब को घटना के मात्र एक सप्ताह के अन्दर ही क़ानूनी प्रक्रिया से दोषी ठहरा कर तोप से उड़ा देते तो वह हमारी दृढ़ता को दर्शाता | डेढ़ साल तक बिरयानी खिलाके, उसे उर्दू का ट्रांसलेटर दिला के ऐसे भी तथाकथित नेतृत्व ने पिलपिले होने का प्रमाण दे ही दिया है |

अनिल भाई आपकी नेतृत्व की निकम्मेपन वाली बात से सहमत होना लाजिमी है | श्रीमती इंदिरा गाँधी और बेअंत सिंह की हत्या के बाद राजनीतिक इच्छाशक्ति राजनीतिक पटल से गायब हो चुकी है | अब राजनीति एक कैरियर है जिसे नेता और जनता दोनों ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करते हैं |
और खरी खरी कही जाये तो अभी भारतीय जनसामान्य उतना परिपक्व है भी नहीं कि उचित अनुचित को परख सके | शायद इसीलिए ये टुच्चे अनपढ़ नेता बने बैठे हैं | अन्यथा जब ४ साल पहले iit कानपुर के छात्रों ने मात्र प्रोफेशनल लोगों को मिला कर एक पार्टी बनायीं तो उन्हें लोकसभा, विधानसभा यहाँ तक कि पार्षद के चुनाव में भी विजय क्यूँ नहीं मिली ??? कोई एक कारण? कारण है कि उन्होंने नाला खुदवाने, हैंडपंप लगवाने और जाती बिरादरी की बातें नहीं की |

यदि मैं विषय से दूर जा रहा हूँ तो क्षमा चाहूँगा किन्तु आगे की पंक्तियाँ समस्या के दुसरे पहलु को उजागर करती हुई हैं |
हम अपनी औपनिवेशिक सोच से आगे बढ़ने को तैयार ही नहीं हैं | कोई स्वीकारे या ना स्वीकारे किन्तु आज भी आरक्षण का वादा करने वाला संसद विधायक चुनाव जीत जाता है और कोई माई का लाल प्रधानमंत्री आरक्षण हटाने का बूता नहीं रख पाया | कारण सीधा है कि लोग समझते हैं आरक्षण से बड़ा भला होने जा रहा है, क्या सच में ? जरा सोचिये अभी भी भारत में असंगठित क्षेत्र से ८० प्रतिशत रोजगार आता है और असंगठित क्षेत्र में सरकारी आरक्षण लागू हो नहीं सकती, बचे बीस प्रतिशत में भी सरकारी हिस्सा ४०% का ही है मतलब ९२% रोजगार के अवसरों में सरकारी आरक्षण का कोई दखल ही नहीं है, अब खुद सोचिये कि मात्र ८% के रोजगार में आधे का लालच दिखा कर यदि कोई दल, व्यक्ति सत्ता पर कब्ज़ा करता है तो वो धूर्त है या उस पर विश्वास करने वाला मतदाता | क्यों सरकारी नौकरी का इतना क्रेज़ है ? क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि बस एक बार जैसे तैसे करके घुस गए फिर तो जिंदगी भर खाते रहना है |
जब तक सुरक्षात्मक होना हमारे dna में है तब तक लूटने वाले लुटते रहेंगे, मारने वाले मारते रहेंगे |

दीर्घकालिक उपाय लोगों को लोगो को कुछ करने के लिए सिखाना नहीं उन्हें शिक्षित करना होगा कि उन्हें कैसे सही निर्णय लेना है | और वास्तविकता यह है कि अब वैश्विक चुनौती इतनी कठिन और दुरूह है कि जल्दी सीखते नहीं तो पिछड़ते ही चले जायेंगे |

amit_tiwari
21-01-2011, 10:45 AM
इस विषय के सामानांतर मैं दूसरा टोपिक उठाना चाहूँगा कि
अब आउटसोर्सिंग के बाद क्या? क्या समय अब आउटसोर्सिंग से आगे सोचने का नहीं है ? और क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ी को बस किसी विकसित देश का सस्ता श्रम करने वाला बनाना चाहते हैं या काम देने वाला !!!

Kumar Anil
21-01-2011, 11:44 AM
कदाचित मैं स्वयं को स्पष्ट नहीं कर पाया |
मैंने दोषी को कठोर दंड दिए जाने का विरोध नहीं किया, मेरा विरोध मात्र जन सामान्य को हत्यारा बनाने पर है |
मेरे विचार से ज्यादा उचित है की हम कितनी जल्दी निर्णय लेते हैं, ना की कितना बर्बर निर्णय लेते हैं | यदि इसी कसाब को घटना के मात्र एक सप्ताह के अन्दर ही क़ानूनी प्रक्रिया से दोषी ठहरा कर तोप से उड़ा देते तो वह हमारी दृढ़ता को दर्शाता | डेढ़ साल तक बिरयानी खिलाके, उसे उर्दू का ट्रांसलेटर दिला के ऐसे भी तथाकथित नेतृत्व ने पिलपिले होने का प्रमाण दे ही दिया है |

अनिल भाई आपकी नेतृत्व की निकम्मेपन वाली बात से सहमत होना लाजिमी है | श्रीमती इंदिरा गाँधी और बेअंत सिंह की हत्या के बाद राजनीतिक इच्छाशक्ति राजनीतिक पटल से गायब हो चुकी है | अब राजनीति एक कैरियर है जिसे नेता और जनता दोनों ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार करते हैं |
और खरी खरी कही जाये तो अभी भारतीय जनसामान्य उतना परिपक्व है भी नहीं कि उचित अनुचित को परख सके | शायद इसीलिए ये टुच्चे अनपढ़ नेता बने बैठे हैं | अन्यथा जब ४ साल पहले iit कानपुर के छात्रों ने मात्र प्रोफेशनल लोगों को मिला कर एक पार्टी बनायीं तो उन्हें लोकसभा, विधानसभा यहाँ तक कि पार्षद के चुनाव में भी विजय क्यूँ नहीं मिली ??? कोई एक कारण? कारण है कि उन्होंने नाला खुदवाने, हैंडपंप लगवाने और जाती बिरादरी की बातें नहीं की |

यदि मैं विषय से दूर जा रहा हूँ तो क्षमा चाहूँगा किन्तु आगे की पंक्तियाँ समस्या के दुसरे पहलु को उजागर करती हुई हैं |
हम अपनी औपनिवेशिक सोच से आगे बढ़ने को तैयार ही नहीं हैं | कोई स्वीकारे या ना स्वीकारे किन्तु आज भी आरक्षण का वादा करने वाला संसद विधायक चुनाव जीत जाता है और कोई माई का लाल प्रधानमंत्री आरक्षण हटाने का बूता नहीं रख पाया | कारण सीधा है कि लोग समझते हैं आरक्षण से बड़ा भला होने जा रहा है, क्या सच में ? जरा सोचिये अभी भी भारत में असंगठित क्षेत्र से ८० प्रतिशत रोजगार आता है और असंगठित क्षेत्र में सरकारी आरक्षण लागू हो नहीं सकती, बचे बीस प्रतिशत में भी सरकारी हिस्सा ४०% का ही है मतलब ९२% रोजगार के अवसरों में सरकारी आरक्षण का कोई दखल ही नहीं है, अब खुद सोचिये कि मात्र ८% के रोजगार में आधे का लालच दिखा कर यदि कोई दल, व्यक्ति सत्ता पर कब्ज़ा करता है तो वो धूर्त है या उस पर विश्वास करने वाला मतदाता | क्यों सरकारी नौकरी का इतना क्रेज़ है ? क्या सिर्फ इसलिए नहीं कि बस एक बार जैसे तैसे करके घुस गए फिर तो जिंदगी भर खाते रहना है |
जब तक सुरक्षात्मक होना हमारे dna में है तब तक लूटने वाले लुटते रहेंगे, मारने वाले मारते रहेंगे |

दीर्घकालिक उपाय लोगों को लोगो को कुछ करने के लिए सिखाना नहीं उन्हें शिक्षित करना होगा कि उन्हें कैसे सही निर्णय लेना है | और वास्तविकता यह है कि अब वैश्विक चुनौती इतनी कठिन और दुरूह है कि जल्दी सीखते नहीं तो पिछड़ते ही चले जायेंगे |

मानसिक खुराक पूरी करने के लिये मित्र शुक्रगुजार हूँ । शीघ्र ही विश्लेषण का हिस्सा बनना चाहूँगा ।

Kumar Anil
21-01-2011, 08:18 PM
@ amit ना की कितना बर्बर निर्णय लेते हैं | यदि इसी कसाब को घटना के मात्र एक सप्ताह के अन्दर ही क़ानूनी प्रक्रिया से दोषी ठहरा कर तोप से उड़ा देते तो वह हमारी दृढ़ता को दर्शाता |.......


दृढ़ता नहीँ आपके भीतर के द्वन्द को दर्शा रहा है । बर्बरतापूर्वक निर्णय न लेने के हिमायतियोँ की पंक्ति मेँ कतारबद्ध होकर तोप से उड़ाने का परामर्श कतई विरोधाभासी है । आप अपना प्रतिशोध कानून के माध्यम से लेना चाहते हैँ लेकिन हाथ मेँ पत्थर लेने से गुरेज कर रहे हैँ । न्यायिक उदारता के दौर मेँ जहाँ फाँसी की सजा पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे हैँ आप वहाँ अपने प्रतिकार के लिये उसके हाथोँ मेँ तोप पकड़ा दे रहे हैँ ।

Kumar Anil
22-01-2011, 07:03 AM
@amit
और खरी खरी कही जाये तो अभी भारतीय जनसामान्य उतना परिपक्व है भी नहीं कि उचित अनुचित को परख सके |........
आपकी बात सोलह आने सही है । अन्यथा किसी पार्टी की औकात नहीँ थी कि वह फूलन देवी जैसी डकैत को माननीय साँसद बनवा देती । जनसामान्य परिपक्व नहीँ है और जो बचे खुचे परिपक्व हैँ विवेकशील हैँ वो अपने सोये हुये जमीर के साथ अपने ड्राइंगरूम मेँ मात्र और मात्र गुफ्तगू कर कर्तव्योँ की इतिश्री समझ ले रहे हैँ । अन्यथा बाला साहब ठाकरे का परचम न लहरा रहा होता ।

Kumar Anil
22-01-2011, 07:34 AM
@amit अन्यथा जब ४ साल पहले iit कानपुर के छात्रों ने मात्र प्रोफेशनल लोगों को मिला कर एक पार्टी बनायीं तो उन्हें लोकसभा, विधानसभा यहाँ तक कि पार्षद के चुनाव में भी विजय क्यूँ नहीं मिली ??? ........
इसका जबाब तो शायद आपके ही पास है । जब अदनी सी एक सोशल साइट को चलाने के लिये ऐसे ही प्रोफेशनल्स को तथाकथित हीन लोगोँ से हाथ मिलाने पड़ते हैँ । तो इससे सिद्ध होता है कि इन तथाकथित हीन लोगोँ के पास या तो ताकत है अथवा संचालन / प्रशासन का कौशल । परिणामतः ऐसी निराशायेँ देश संचालन जैसी बड़ी बातोँ मेँ इनकी कामयाबी पर स्वतः प्रश्नचिन्ह लगा जाती हैँ क्योँकि प्रशासन एक अलग विषय है और शायद इसीलिये ये निर्वाचित न हो सके ।

amit_tiwari
22-01-2011, 11:04 AM
@ amit ना की कितना बर्बर निर्णय लेते हैं | यदि इसी कसाब को घटना के मात्र एक सप्ताह के अन्दर ही क़ानूनी प्रक्रिया से दोषी ठहरा कर तोप से उड़ा देते तो वह हमारी दृढ़ता को दर्शाता |.......


दृढ़ता नहीँ आपके भीतर के द्वन्द को दर्शा रहा है । बर्बरतापूर्वक निर्णय न लेने के हिमायतियोँ की पंक्ति मेँ कतारबद्ध होकर तोप से उड़ाने का परामर्श कतई विरोधाभासी है । आप अपना प्रतिशोध कानून के माध्यम से लेना चाहते हैँ लेकिन हाथ मेँ पत्थर लेने से गुरेज कर रहे हैँ । न्यायिक उदारता के दौर मेँ जहाँ फाँसी की सजा पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे हैँ आप वहाँ अपने प्रतिकार के लिये उसके हाथोँ मेँ तोप पकड़ा दे रहे हैँ ।

:help: मैं फिर से स्वयं को स्पष्ट नहीं कर पाया | मैं उदारता की बात नहीं कर रहा अनिल जी, मैं मात्र जन samanya के हाथ में पत्थर देने का विरोधी हूँ |
मैं इसका थोडा सरल भाषा में उदाहरण देना चहुँ तो कुछ ऐसा होगा की यदि मेरे बच्चे की चप्पल मंदिर से चोरी हो जाये तो दो विकल्प हैं:
मैं chor को उसकी करनी का दंड दूँ और अपने बच्चे को नयी चप्पल दिला दूँ
दूसरा मार्ग है की मैं अपने बच्चे को किसी और की चप्पल चुराने को कह दूँ |

मैं बस इतना कहना चाह रहा हूँ की चोर को सबक सिखाने के चक्कर में हम अपने बच्चे को चोर ना बनायें |


@amit अन्यथा जब ४ साल पहले iit कानपुर के छात्रों ने मात्र प्रोफेशनल लोगों को मिला कर एक पार्टी बनायीं तो उन्हें लोकसभा, विधानसभा यहाँ तक कि पार्षद के चुनाव में भी विजय क्यूँ नहीं मिली ??? ........
इसका जबाब तो शायद आपके ही पास है । जब अदनी सी एक सोशल साइट को चलाने के लिये ऐसे ही प्रोफेशनल्स को तथाकथित हीन लोगोँ से हाथ मिलाने पड़ते हैँ । तो इससे सिद्ध होता है कि इन तथाकथित हीन लोगोँ के पास या तो ताकत है अथवा संचालन / प्रशासन का कौशल । परिणामतः ऐसी निराशायेँ देश संचालन जैसी बड़ी बातोँ मेँ इनकी कामयाबी पर स्वतः प्रश्नचिन्ह लगा जाती हैँ क्योँकि प्रशासन एक अलग विषय है और शायद इसीलिये ये निर्वाचित न हो सके ।

प्रशासन/नेतृत्व सिर्फ एक कौशल है जो या तो मनुष्य में होता है या नहीं होता |
आपका अर्थ मैं समझ रहा हूँ किन्तु आप सहमत होंगे की वह प्रशासन का कौशल नहीं 'तुम्हारी भी जय जय, हमारी भी जय जय है'
ये मात्र बहुमत व्यवस्था का एक साइड इफेक्ट है क्यूंकि इसमें एक जल्लाद और डॉक्टर को समान मताधिकार होता है |
इसलिए जन्मजात नेतृत्व शक्ति वाले अधिकांश स्वयंकेन्द्रित होते हैं |


@amit
और खरी खरी कही जाये तो अभी भारतीय जनसामान्य उतना परिपक्व है भी नहीं कि उचित अनुचित को परख सके |........
आपकी बात सोलह आने सही है । अन्यथा किसी पार्टी की औकात नहीँ थी कि वह फूलन देवी जैसी डकैत को माननीय साँसद बनवा देती । जनसामान्य परिपक्व नहीँ है और जो बचे खुचे परिपक्व हैँ विवेकशील हैँ वो अपने सोये हुये जमीर के साथ अपने ड्राइंगरूम मेँ मात्र और मात्र गुफ्तगू कर कर्तव्योँ की इतिश्री समझ ले रहे हैँ । अन्यथा बाला साहब ठाकरे का परचम न लहरा रहा होता ।

नहीं अनिल जी | बचे खुचे परिपक्व शील बड़े खुराफाती होते हैं, ये अपने काम को छोड़ कर क्रांति का सहस तो नहीं करते किन्तु बात को आसानी से जाने भी नहीं देते, धीरे धीरे तिनका तिनका करके जन समर्थन जुटाते रहते हैं और उचित व्यक्ति के आने की बात देखते हैं | फ्रेंच क्रांति में इन्हें बुर्जुआ वर्ग कहा गया और इस समय ये भारत में भी बन रहा है |

ndhebar
22-01-2011, 11:31 AM
बचे खुचे परिपक्व शील बड़े खुराफाती होते हैं, ये अपने काम को छोड़ कर क्रांति का सहस तो नहीं करते किन्तु बात को आसानी से जाने भी नहीं देते, धीरे धीरे तिनका तिनका करके जन समर्थन जुटाते रहते हैं और उचित व्यक्ति के आने की बात देखते हैं | फ्रेंच क्रांति में इन्हें बुर्जुआ वर्ग कहा गया और इस समय ये भारत में भी बन रहा है |

बहुत बड़े बोल बोल रहे हो भाई

Kumar Anil
22-01-2011, 01:53 PM
अमित तिवारी जैसे व्यक्ति के हाथ मेँ help का बोर्ड एक प्रशंसक को कुछ अच्छा नहीँ लगा ।
गुरु आपसे सीखने को मिलता है । इसीलिये छेड़ छेड़कर कुछ ज्ञान अर्जित करने का प्रयास कर रहा था ।
हाँ टिप्पणी अवश्य करुँगा ।

Kumar Anil
22-01-2011, 02:09 PM
दोस्तो, इस सूत्र पर हम सभी देश विदेश से जुड़े विभिन्न मुद्दो पर अपनी राय देंगे।

आग लगाके जमालो दूर खड़ी ।

amit_tiwari
22-01-2011, 02:34 PM
बहुत बड़े बोल बोल रहे हो भाई

नहीं एकदम ठोस बात कही है भाई, जो रुझान इस समय दिख रहा है वही कहा है |
भाई मेरा काम ही लोगों से दिन रात बात करने का है, सिर्फ भारत ही नहीं वैश्विक रूप से युवा वर्ग राजनेताओं से ऊब चुका है | ये फेरारी को राजदूत के इंजन से चलने का प्रयास कर रहे हैं और हमें फरारी में रोकेट इंजन चाहिए |

मुद्दे की बात करूँ तो ये सूत्र बनाने वाले अरविन्द भाई, चर्चा को आगे बढ़ने वाले अनिल भाई या पढने वाले आप ही क्या बुर्जुआ वर्ग में नहीं हैं? आप पढ़े लिखे हैं, समस्या समझते हैं और निदान चाहते हैं | अभी हाल ही में अयोध्या पे फैसला हुआ उसके बाद कहीं कोई प्रतिक्रिया दिखी? इस पीढ़ी का यह सीधा सन्देश है की उसे मंदिर या मस्जिद नहीं कोलेज चाहिए, कंपनी चाहिए, प्रोफेशनल कोर्स चाहिए |

मुझे खीज आती है खुद की कोलर ऊँची किये उन नेताओं पर जो खुद को सिर्फ इसलिए सम्माननीय समझते हैं क्यूंकि वो पहले पैदा हुए थे(अर्थात अब बुढा चुके हैं )
असली बात तब है जब आप समस्या समझ के समाधान दे सकें और अफ़सोस अभी ऐसे लोग गिने चुने हैं |

अमित तिवारी जैसे व्यक्ति के हाथ मेँ help का बोर्ड एक प्रशंसक को कुछ अच्छा नहीँ लगा ।
गुरु आपसे सीखने को मिलता है । इसीलिये छेड़ छेड़कर कुछ ज्ञान अर्जित करने का प्रयास कर रहा था ।
हाँ टिप्पणी अवश्य करुँगा ।

मैं आपसे बहुत छोटा हूँ और मेरी शिक्षा दीक्षा भी टुकड़ों में हुई है | अक्सर मेरा रिज्युमे देख के लोगों की हंसी निकल जाती थी इसलिए मैं ज्ञान देने लायक नहीं हूँ भाई | ये मैं नम्र हो के नहीं कह रहा, ये वास्तविकता है हेहेहेहे |

आग लगाके जमालो दूर खड़ी ।

अरविन्द भाई बहुत ऊंची हस्ती हैं, अभी ये शब्दों की धार तेज कर रहे हैं, पूर्ण विरामों को बत्तीसी लगवा रहे हैं, हलंतों को पैना कर रहे हैं फिर एक साथ एक ही पोस्ट में हमला बोलेंगे |

arvind
22-01-2011, 02:44 PM
अरविन्द भाई बहुत ऊंची हस्ती हैं, अभी ये शब्दों की धार तेज कर रहे हैं, पूर्ण विरामों को बत्तीसी लगवा रहे हैं, हलंतों को पैना कर रहे हैं फिर एक साथ एक ही पोस्ट में हमला बोलेंगे |
हे भगवान.... ऐसी रेपों है मेरी।
दरअसल मै व्यस्तता के वजह से फोरम के समय नहीं दे पा रहा हूँ। कल (21.01.2011) को मै जमशेदपुर मे था, माइक्रोसॉफ़्ट का नमक खा रहा था। ससुरी मार्च का टेंशन अभी से शुरू हो गया है।

arvind
22-01-2011, 03:36 PM
पहले जो भी समाज सेवा की परिभाषा मे आते थे वो सभी अब व्यासायिक हो गए है, जैसे देश सेवा, शिक्षा, धर्म इत्यादि। पहले के लोग इन सब कार्यो को निस्वार्थ सेवा भाव से करते थे, परंतु अब ये सभी चीजे पूर्णत: व्यासायिक हो गए है। पहले लोग मंदिर निर्माण के लिए अपनी जमीन दान मे दिया करते थे परंतु अब मंदिर का निर्माण जमीन हथियाने की मंशा से किया जाता है, पहले शिक्षा देना एक सामाजिक कार्य था परंतु अब शिक्षा के नाम पर जबर्दस्त व्यासाय चल रहा है। पहले अस्पताल भी समाज सेवा हेतु खोलते थे परंतु अब ये भी उच्च श्रेणी का व्यासाय है। पहले देश सेवा के नाम पर अपना तन मन धन सब न्योछावर कर देते थे परंतु अब देश सेवा के नाम पर सबसे ज्यादा देश को ही लूटने का कार्य कर रहे है। ये हमारे नैतिक मूल्यो का ह्रास के कारण है। अगर हम कुछ विशेष परिस्थितियों मे तटस्थ रहते है तो हम भी दोषी है और इतिहास हमे भी माफ करने वाला नहीं है।

आज लोग राजनीति मे क्यों जाना चाहते है? - सीधा सा जवाब मिलेगा पावर और पैसा।
आज राजनीति के कैसे लोग है? - 99% असामाजिक तत्व और निकम्मे लोग(जिनसे कोई कार्य नहीं हो सकता है)।
अब ऐसे लोग राजनीति मे रहेंगे तो आप खुद ही कलपना कर लीजिये कि क्या होगा?
हमारे केन्द्रीय मंत्री मण्डल मे तीन-तीन अर्थशास्त्री है और देखिये देश का हाल क्या हो रहा है।
देश कि अर्थव्यस्था हमारे दिये टैक्स के ऊपर चलती है - मगर सारा पैसा स्विस बैंक मे जमा हो रहा है।
कृषि प्रधान देश मे जब कोई किसान आत्महत्या करता है तो वहा भी वोट बैंक कि ओछी राजनीति होती है।
और भी लंबी लिस्ट है......

इसका सीधा सा कारण है - हम सोये हुये है।
सोये हुये मे हमारे हाथ मे टीवी का रिमोट है - जिस पर 12 महीने क्रिकेट, सिनेमा, कॉमेडी शो, नृत्य और गीत का महसंग्राम, धमाकेदार सेरियल्स आदि है। चौक-चौराहो पर हालात के ऊपर हमारी लाजवाब धमाकेदार टिप्पणी है। घरेलू जिम्मेदारिया है। - ये सब हमे सोये से उठने नहीं दे रही है।

अब इन परिस्थियों मे कसाब नाम का "छुछुंदर" अगर मुंबई पर हमला कर देता है तो क्या बिगड़ गया, जो मै सूत्र बनाकर यहा बखेड़ा खड़ा कर रहा हूँ। उन दिनो कम से तीन दिनो तक यह अमूमन सभी चैनलो पर "ब्रेकिंग न्यूज" के रूप मे मुझे सोये से उठने नहीं दिया। रिमोट नामक "जन्तु" को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। फिर भी आत्मा कुछ और "सनसनी" के लिए तरसती रही।

अब भी हर दिन किसी ना किसी चैनल के लिए कसाब एक सनसनी बनकर चैनल कि टीआरपी बढ़ा रहा है - क्या उनका धंधा बंद करना ठीक होगा।

कसाब कैसे उर्दू अनुवादक कि मांग करता है? कसाब कैसे कैमरे पर थूकता है? कसाब कैसे कोर्ट रूम जज के सामने हसता रहता है? आदि... आदि... इत्यादि....

ये सब चलता ही रहेगा और एक दिन..... एक और कांधार जैसा कोई कांड होगा और कसाब... हेहेहेहे समझ गए ना.... ।
फिर विपक्ष के लिए एक और मुद्दा....

सोचो इसके लिए हम कितने जिम्मेदार है? अरे अब तो नींद से जागो।

Kumar Anil
22-01-2011, 04:08 PM
@arvind और एक दिन..... एक और कांधार जैसा कोई कांड होगा और कसाब... हेहेहेहे समझ गए ना.... ।
फिर विपक्ष के लिए एक और मुद्दा....
और शायद इसीलिये कसाब को पाला जा रहा है । दुकानेँ दोनोँ की चलेँगी चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष।
या यूँ कहेँ कि हमारे नेतागण इतने दूरदर्शी हैँ कि आने वाली समस्या का निदान अपनी होशियारी से अभी से किये बैठे हैँ ।
कसाब जिन्दा रहेगा मुद्दे बने रहेँगे । आज भी और कल भी।

Kumar Anil
22-01-2011, 04:18 PM
@amit अभी हाल ही में अयोध्या पे फैसला हुआ उसके बाद कहीं कोई प्रतिक्रिया दिखी? इस पीढ़ी का यह सीधा सन्देश है की उसे मंदिर या मस्जिद नहीं कोलेज चाहिए, कंपनी चाहिए, प्रोफेशनल कोर्स चाहिए |


सहमत ।

arvind
22-01-2011, 04:26 PM
@arvind और एक दिन..... एक और कांधार जैसा कोई कांड होगा और कसाब... हेहेहेहे समझ गए ना.... ।
फिर विपक्ष के लिए एक और मुद्दा....
और शायद इसीलिये कसाब को पाला जा रहा है । दुकानेँ दोनोँ की चलेँगी चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष।
या यूँ कहेँ कि हमारे नेतागण इतने दूरदर्शी हैँ कि आने वाली समस्या का निदान अपनी होशियारी से अभी से किये बैठे हैँ ।
कसाब जिन्दा रहेगा मुद्दे बने रहेँगे । आज भी और कल भी।
ये हमारा दुर्भाग्य है कि निकम्मे और नकारा लोग देश के कर्णधार बने हुये है और हर मुद्दे पर इनके पास बेशर्मी से भरे हुये कुतर्क और जवाब हाजिर रहते है, मगर कुछ काम करने के नाम पर - "टाय-टाय फिस्स...."।

VIDROHI NAYAK
22-01-2011, 06:11 PM
ये हमारा दुर्भाग्य है कि निकम्मे और नकारा लोग देश के कर्णधार बने हुये है और हर मुद्दे पर इनके पास बेशर्मी से भरे हुये कुतर्क और जवाब हाजिर रहते है, मगर कुछ काम करने के नाम पर - "टाय-टाय फिस्स...."।
पूर्णता सहमति के साथ कहना चाहूँगा ...की आज इस देश में शायद गांधी तो मिल जायेंगे ...पर उनके पीछे की वो हज़ारो की भीड़ नहीं !

Kumar Anil
23-01-2011, 08:27 AM
@amitफ्रेंच क्रांति में इन्हें बुर्जुआ वर्ग कहा गया और इस समय ये भारत में भी बन रहा है .......


और वो सनसनी की तलाश मेँ रिमोट नाम के जन्तु को पीट पीटकर अधमरा कर रहा है और तिस पर भी मन नहीँ भरा तो सूत्र बनाकर बखेड़ा खड़ा करने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ रहा है । पता नहीँ सोये हुये को जगाने के लिये या ........ ?

amit_tiwari
23-01-2011, 12:06 PM
@amitफ्रेंच क्रांति में इन्हें बुर्जुआ वर्ग कहा गया और इस समय ये भारत में भी बन रहा है .......


और वो सनसनी की तलाश मेँ रिमोट नाम के जन्तु को पीट पीटकर अधमरा कर रहा है और तिस पर भी मन नहीँ भरा तो सूत्र बनाकर बखेड़ा खड़ा करने मेँ कोई कोर कसर नहीँ छोड़ रहा है । पता नहीँ सोये हुये को जगाने के लिये या ........ ?

तो मैं कहूँगा कि इन्ही सनसनी की तलाश वालों की कशमकश और मज़बूरी से मेरे जैसे अकडू और घमंडी उपजे हैं जो बिना बहुमत का मुंह देखे, बिना विरोध करने वालों की संख्या और आयु देखे अपना कार्य करने में विश्वास करते हैं !!!
और कार्य का अर्थ फोरम नहीं :) इससे बहुत वृहद् स्तर पर किये गए प्रयास हैं |

amit_tiwari
23-01-2011, 12:17 PM
सभी सभ्रान्तों से मेरा एक छोटा सा अग्रिम अनुरोध है की चर्चा/वाद-विवाद को फोरम पर केन्द्रित ना होने दें, उससे हम गोल गोल चक्कर में घूमने लगेंगे और मैं मानसिक समागम में कुतर्कों से बचना चाहता हूँ |

ndhebar
23-01-2011, 05:40 PM
पहले जो भी समाज सेवा की परिभाषा मे आते थे वो सभी अब व्यासायिक हो गए है, जैसे देश सेवा, शिक्षा, धर्म इत्यादि। पहले के लोग इन सब कार्यो को निस्वार्थ सेवा भाव से करते थे, परंतु अब ये सभी चीजे पूर्णत: व्यासायिक हो गए है। पहले लोग मंदिर निर्माण के लिए अपनी जमीन दान मे दिया करते थे परंतु अब मंदिर का निर्माण जमीन हथियाने की मंशा से किया जाता है, पहले शिक्षा देना एक सामाजिक कार्य था परंतु अब शिक्षा के नाम पर जबर्दस्त व्यासाय चल रहा है। पहले अस्पताल भी समाज सेवा हेतु खोलते थे परंतु अब ये भी उच्च श्रेणी का व्यासाय है। पहले देश सेवा के नाम पर अपना तन मन धन सब न्योछावर कर देते थे परंतु अब देश सेवा के नाम पर सबसे ज्यादा देश को ही लूटने का कार्य कर रहे है। ये हमारे नैतिक मूल्यो का ह्रास के कारण है। अगर हम कुछ विशेष परिस्थितियों मे तटस्थ रहते है तो हम भी दोषी है और इतिहास हमे भी माफ करने वाला नहीं है।

मेरा नजरिया थोडा सा अलग है

मुझे व्यवसायिक होने में कोई बुराई नजर नहीं आती, ये तो अच्छा है की लोग इसे व्यवसाय के रूप में लें ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ सकें/ व्यवसाय का सीधा और सरल मतलब है की आपको जिस कार्य के एवज में मूल्य मिल रहा है उसके प्रति आपकी ईमानदारी और समर्पण/ पर यहाँ तो जिसके हाथ में पॉवर है उसका बस एक ही कार्य और मकसद होता है/ अपने पॉवर का चाहे जैसे भी हो सही या गलत इस्तमाल करके कम से कम समय में अधिक से अधिक धन उपार्जन/

लोगों के दिमाग में बस एक ही बात है की देश का तो कुछ हो नहीं सकता कम से कम अपना तो भला कर लो/

arvind
25-01-2011, 09:38 AM
जितने लोग, उतनी बात... परंतु विडम्बना यह है कि आज देश की लचर व्यवस्था ही है की कसाब जैसे आतंकवादियो के हौसले बुलंद है, वो सरकारी मेहमान बनकर करोड़ो खर्च करवा रहे है। हम न्याय-अन्याय, मानवाधिकार, संविधान, धारा, कोर्ट, वकील इत्यादि के चक्कर मे ही लगे हुये है। जबकि उस घटना के हजारो गवाह है। एक भुक्तभोगी लड़की, जो की 26/11 के हादसे मे अपना एक पैर गवा चुकी है, कोर्ट मे कसाब को पहचान भी चुकी है। फिर भी.... क्या संदेश जा रहा है देश के जनता के बीच और देश के दुश्मनों के बीच।

"छुछुंदर" खुले आम कह रहे है की हम तो तुम्हें ऐसे ही मारेंगे, देखते है तुम मेरा क्या बिगाड़ लेते हो।

अब इस चर्चा को यही विराम देते है।

हमारा अगला विषय है - क्या देश मे महंगाई सरकार प्रायोजित है या कोई और प्रकृतिक या कृत्रिम वजह।

VIDROHI NAYAK
25-01-2011, 09:44 AM
जितने लोग, उतनी बात... परंतु विडम्बना यह है कि आज देश की लचर व्यवस्था ही है की कसाब जैसे आतंकवादियो के हौसले बुलंद है, वो सरकारी मेहमान बनकर करोड़ो खर्च करवा रहे है। हम न्याय-अन्याय, मानवाधिकार, संविधान, धारा, कोर्ट, वकील इत्यादि के चक्कर मे ही लगे हुये है। जबकि उस घटना के हजारो गवाह है। एक भुक्तभोगी लड़की, जो की 26/11 के हादसे मे अपना एक पैर गवा चुकी है, कोर्ट मे कसाब को पहचान भी चुकी है। फिर भी.... क्या संदेश जा रहा है देश के जनता के बीच और देश के दुश्मनों के बीच।

"छुछुंदर" खुले आम कह रहे है की हम तो तुम्हें ऐसे ही मारेंगे, देखते है तुम मेरा क्या बिगाड़ लेते हो।

अब इस चर्चा को यही विराम देते है।

हमारा अगला विषय है - क्या देश मे महंगाई सरकार प्रायोजित है या कोई और प्रकृतिक या कृत्रिम वजह।
अरविन्द जी कृपया विकिलिक्स के भारतीय व्यक्तियो के स्विस बैंक में खता होने के खुलासे के साथ साथ भारतीय केन्द्रीय सरकार की इस विषय पर चुप्पी पर भी प्रकाश डालिए !

arvind
25-01-2011, 09:47 AM
अरविन्द जी कृपया विकिलिक्स के भारतीय व्यक्तियो के स्विस बैंक में खता होने के खुलासे के साथ साथ भारतीय केन्द्रीय सरकार की इस विषय पर चुप्पी पर भी प्रकाश डालिए !
बंधु, इस विषय पर चर्चा के लिए यहा पधारे।
http://myhindiforum.com/showthread.php?t=1512

YUVRAJ
26-01-2011, 10:47 AM
और शायद मतदान भी आप ही करते हैं !!!
तो मैं कहूँगा कि इन्ही सनसनी की तलाश वालों की कशमकश और मज़बूरी से मेरे जैसे अकडू और घमंडी उपजे हैं जो बिना बहुमत का मुंह देखे, बिना विरोध करने वालों की संख्या और आयु देखे अपना कार्य करने में विश्वास करते हैं !!!
और कार्य का अर्थ फोरम नहीं :) इससे बहुत वृहद् स्तर पर किये गए प्रयास हैं |

arvind
27-01-2011, 03:20 PM
हमारा अगला विषय है - क्या देश मे महंगाई सरकार प्रायोजित है या कोई और प्रकृतिक या कृत्रिम वजह।
लगता है सारे सदस्य "महंगाई" से समझौता कर चुके है।

arvind
27-01-2011, 03:25 PM
महंगाई का शोर चीख पुकार में बदलने को है, पता नहीं किस दिन जनता मंहगाई के भूत से लड़ने के लिये अराजकता का रास्ता अपना ले, लेकिन इन सबसे बेफिकर केन्द्र की राजसत्ता विफल बैठकों के आयोजन भर कर रही है। विपक्ष सहयोग के स्थान पर सरकार की खिल्ली उड़ाने की मुद्रा में है। बेबस सरकार के प्रधानमत्री जितने गुना कोशिश की घोषणा करते है उतने ही गुना महंगाई बढ जाती है। खाद्य वस्तुओं की मंहगाई दर 18 प्रतिशत के आकड़े पार कर गई है। ऐसे में मनमोहन सिंह की आर्थिक विकास की दस प्रतिशत दर की घोषणा गरीबों के जले पर नमक छिडकती सी लगती है।

महंगाई का आइना व प्रतीक प्याज बन गया है, पिछले वर्ष चीनी ने कड़वाहट भर दी थी। शरद पवार साहब की कोशिशें सफल होती तो सरकार अब तक चीनी के मुद्दे पर ही विफल हो जाती पर सरकार की कोशिशे सफल हुई ,पर कितनी? बीस इक्कीस रूपये से जाकर बत्तीस रूपये पर थम गई यानि कि लगभग डेढ गुना पर जाकर रूकी। जनता ने पचास रूपये के बदले कुछ राहत पर संतोष किया फिर दालों ने आम आदमी को दल कर रख दिया आम दाल अस्सी से सौ तक चढ गई इस पर भी कुछ काबू हुआ तो प्याज परत दर परत सरकार को उधेड़ती नजर आ रहीं है।

arvind
27-01-2011, 03:27 PM
किसी सब्जी का रेट बढना नया नही है सीजन के आधार पर आलू प्याज टमाटर महगे होते है तो जिसकी औकात हो वही खाता है बाकी सस्ता होने का इतजार करते है, भिंडी जब अस्सी और सौ के भाव बिकती है तो कोई मध्यम वर्ग का आदमी इसकी और देखता भी नहीं, आस्ट्रेलिया और रूस के सेव अभी तक हाईप्रोफाइल लोगों तक ही सीमित है। ऐसे में अकेले प्याज पर ही इतना बाबेला क्यो?

प्याज यदि चाहे तो लोग न भी खरीदे या कम खरीदे सम्भव है पर ऐसा नहीं है कि मंहगा सिर्फ प्याज ही है, आटा दाल चावल चीनी तेल घी नमक आलू जैसी सभी खाद्य वस्तुओं के दाम बढे ही नही रोज बढ रहे है। प्याज के दाम बहुत ही ज्यादा बढे तो लोगो ने उसे ही मुद्दा बना लिया खाद्य वस्तुए ही नही स्कूल पढाई कपडा सिलाई पहनना ओढना सब कुछ आम लोगो की पहुंच से बाहर होता जा रहा है। वैज हो या नान वेज सब पर महगाई की मार है।

arvind
27-01-2011, 03:28 PM
केन्द्र सरकार राज्य सरकारों पर जिम्मेवारी थोपने के प्रयास में है पर आम आदमी इस तर्क को मानने को तैयार नहीं है। केन्द्र की बात कुछ सही भी नजर आती है, राज्यों के काम काज में दखल का अधिकार केन्द्र के पास नही है तभी तो केन्द्र को प्याज व्यापारियों पर छापे के लिये आयकर विभाग के अफसरों को लगाना पडा छापों को असर पडता नजर आया पर लोभी व्यापारियों ने हडताल के हथियार से इसे विफल करने का सफल प्रयास कर लिया अब या तो केन्द्र की सरकार तानाशाही के आस पास जाकर एस्मा जैसे अगले हथियार इस्तेमाल करें या कार्यवाही के लिये राज्यों का मुंह ताकती रहे। पर केन्द्र के नेताओं को ऐसे बेशर्म बयान देने से पहले सोचना चाहिये कि जहां-जहां व्यापारियो ने हडताल की नासिक और दिल्ली में वहां दोनों ही जगह राज्य सरकार भी कांग्रेस की ही है। ऐसे में मंहगाई का ठीकरा राज्य सरकारों पर थोपना अजीब सा लगता है। सरकार केन्द्र की हो या राज्य की इच्छाशक्ति गंवा चुकी है, बाजार को बाजार के हाल पर और आम आदमी को बेहाल छोड़कर सरकार विकास दर के आंकडों का राग गाने के अलावा कुछ भी तो करती नजर नहीं आती।

सरकार ऐसी बचकानी घोषणाएं करती है जिनसे लगता है कि भारत एक देश नही अलग अलग राज्य भर है। दिल्ली में प्याज पर सबसीडी देने का ऐलान कितना अलगाववादी है, कालाबाजारी करें दिल्ली का व्यापारी, सस्ता प्याज खाये दिल्ली की जनता बाकी देश जाये भाड़ में. राहुल गांधी हमेशा से ही दो भारत की बात कहते आये है यहॉ यह दो भारत वही सरकार बना रही है जिसकी अहम पार्टी के ताकतवर महासचिव राहुल जी ही है। कश्*मीर के लोगो को सस्ता सामान मुहैया कराने पर शोर मचाने वाली भाजपा दिल्ली मे हो रही इस अलगाववादी कोशिश पर शायद इसी लिये खामोश है क्योंकि उसके भी सारे बडे नेता दिल्ली में ही रहते है।

arvind
27-01-2011, 03:31 PM
सरकार को गभीर होना होगा मंहगाई रोकने की ईमानदार कोशिश करनी होगी, सरकार को चाहिये कि खाद्य पदार्थो का खरीद मूल्य निर्धारित करते समय उसका विक्रय मूल्य भी घोषित करने की नीति अपनाये यह कोई ज्यादा मशक्कत का काम भी नहीं है।और यदि प्राकृतिक आपदाओं या अन्य किन्ही भी कारणों से यदि खरीद मुल्य और समर्थन मूल्य में बढोतरी हो तो उसे सब्सीडी का अन्तर देकर पूरा किया जाये इससे सरकार का कोई नुकसान भी नहीं होने वाला। यदि सब्सिडी देनी पडी तो मंहगाई भत्ते कम होंगे और सरकार कुल मिलाकर फायदे में ही रहेगी।

सरकार को होने वाली फसलों का सही अनुमान लगाना होगा जिससे की मूल्य निर्धारित करने में निश्चितता हो और आम आदमी अपना बजट सही बना सके।

arvind
27-01-2011, 03:32 PM
सरकार को खाद्य पदार्थो के वायदा बाजार और सट्टेबाजी पर पूरी तरह रोक लगानी होगी जिससे की व्यापारी इन पदार्थो की नकली किल्लत दिखाकर मनमाने दाम वसूल न कर सके।

दलहन और तिलहन की फसलों को बढावा देना होगा और इन वस्तुओं को सही समय पर पर्याप्त आयात कर देश की जरूरत के मुताबिक भंडारण की नीति अपनानी होगी। खाद्य पदार्थों के निर्यात को निरूत्साहित करने के उपाय करने होंगे।

खाद्य पदार्थों के अपमिश्रण और उनसे सम्बन्धित सभी अपराधो के लिय कडे दण्ड निर्धारित करने होंगे, खाद्य सुरक्षा बिल जैसे उपाय जल्दी से जल्दी अपनाने होंगे इसके लिये राजनेताओं को भी पक्ष विपक्ष के पचडे से बाहर आकर देश हित मे एकता दिखानी होंगी। सरकार संकल्प तो करे देश के लोग उसके साथ होंगे।

amit_tiwari
27-01-2011, 04:31 PM
लगता है सारे सदस्य "महंगाई" से समझौता कर चुके है।

सरकार को खाद्य पदार्थो के वायदा बाजार और सट्टेबाजी पर पूरी तरह रोक लगानी होगी जिससे की व्यापारी इन पदार्थो की नकली किल्लत दिखाकर मनमाने दाम वसूल न कर सके।

दलहन और तिलहन की फसलों को बढावा देना होगा और इन वस्तुओं को सही समय पर पर्याप्त आयात कर देश की जरूरत के मुताबिक भंडारण की नीति अपनानी होगी। खाद्य पदार्थों के निर्यात को निरूत्साहित करने के उपाय करने होंगे।

खाद्य पदार्थों के अपमिश्रण और उनसे सम्बन्धित सभी अपराधो के लिय कडे दण्ड निर्धारित करने होंगे, खाद्य सुरक्षा बिल जैसे उपाय जल्दी से जल्दी अपनाने होंगे इसके लिये राजनेताओं को भी पक्ष विपक्ष के पचडे से बाहर आकर देश हित मे एकता दिखानी होंगी। सरकार संकल्प तो करे देश के लोग उसके साथ होंगे।


नया विषय बाकी सारी पोस्ट में छुप गया था भाई | मेरी तरह लगता है बाकी भाईलोग भी देख नहीं पाए |
मंहगाई का आलम ये है जब मनमोहन और चिदंबरम खुद को अर्थशास्त्री होने का दावा करते हैं | मोबाइल फोन और इन्टरनेट सस्ता लेकिन राशन मंहगा | कम से कम आधारभूत चीजों के दाम तो नियमित रखने ही चाहिए | किन्तु मुनाफाखोरों ने भी गालियों को बौना दिखने का बीड़ा उठाया हुआ है, नमक, शक्कर, मिर्च,मसाला, आटा, दूध कहाँ कहाँ नहीं मिलावट करते | यदि मंहगा करती है सरकार तो उसका फायदा उठा कर ये मजे लेते हैं |

ndhebar
31-01-2011, 11:54 AM
हमारा अगला विषय है - क्या देश मे महंगाई सरकार प्रायोजित है या कोई और प्रकृतिक या कृत्रिम वजह।

मैं इस विषय को नहीं देख पाया था वर्ना ये कैसे हो सकता है की इस डायन के बारे में अपनी राय नहीं देता
*देश मे महंगाई सरकार प्रायोजित है - बिलकुल है जी
सरकार कोरपोरेट दिवस मनाकर जाता भी चुकी है की भई हम तो पूंजीवाद के साथ हैं गरीब जाये चूल्हे में
खाने पिने के सामानों के महगाई की प्रमुख वजह है जमाखोर
अब जमा कौन करेगा, जिसके पास प्रयाप्त पूंजी हो बल्कि प्रयाप्य से ज्यादा हो
और ऐसे लोगों को सरकार का समर्थन प्राप्त है

arvind
18-02-2011, 10:43 AM
घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों से बुरी तरह घिर चुकी यूपीए सरकार की तरफ से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जब सफाई पेश की तो इस बार भी उन्होंने गठबंधन की मजबूरी बताते हुए कोई ठोस जवाब नहीं दिया लेकिन यह माना कि गठबंधन की राजनीति के चलते कुछ समझौते करने पड़े हैं। पीएम की यह सफाई विपक्ष को रास नहीं आई। भाजपा ने एनडीए के शासन में पीएम रहे अटल बिहारी बाजपेयी का हवाला देते हुए कहा कि उन्होंने भी गठबंधन की सरकार चलाई थी।

न्यूज चैनलों के संपादकों के साथ पीएम आवास पर प्रेस कांफ्रेंस में मनमोहन सिंह ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर एक सवाल के जवाब में कहा, ‘हमने ए. राजा को पत्र लिखा था। लेकिन ‘पहले आओ, पहले पाओ’ की नीति पर मुझसे उनकी बात नहीं हुई।’ उन्होंने बताया कि राजा ने भरोसा दिलाया था कि वह नियम का पूरी तरह पालन करेंगे।

2जी घोटाले सहित बड़े घपलों की जांच जेपीसी से कराए जाने की विपक्ष की मांग के बीच प्रधानमंत्री ने एक बार फिर कहा कि वह जेपीसी सहित किसी भी जांच समिति के सामने पेश होने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भरोसा भी दिलाया कि घोटालों में शामिल लोगों को बख्शा नहीं जाएगा।

एस-बैंड घोटाले पर पीएम ने कहा कि देवास-इसरो डील में परदे के पीछे कोई बात नहीं हुई। गठबंधन धर्म निभाने का राग अलापते हुए एक बार पीएम ने कहा, ‘गठबंधन की मजबूरी के चलते ए राजा मंत्री बने। वह डीएमके की पसंद थे। गठबंधन की कुछ मजबूरियां हैं और जैसा मैं चाहूं, वैसा ही तो नहीं हो सकता है।’

पीएम ने अपनी गलतियां मानी लेकिन कहा कि इस्तीफा देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। उन्*होंने कहा, ‘एक साझा सरकार की कुछ मजबूरियां होती हैं। लेकिन मैंने कभी प्रधानमंत्री पद छोडऩे के बारे में नहीं सोचा। मुझे काम करना है। देश ने मुझे प्रधानमंत्री बनाया है। बहुत से काम हैं जो अभी मुझे करने हैं। हमने कभी पीछे हटने की नहीं सोची।’

यह पूछे जाने पर कि सारे घोटालों पर सरकार की नींद तब क्यों खुलती है जब घोटाले मीडिया में सामने आते हैं? पीएम ने हंसते हुए कहा, मैं उतना दोषी नहीं जितना मीडिया ने प्रचार किया है। मुझसे भी गलतियां हुई हैं लेकिन जितना प्रचार किया जा रहा है, उतना दोषी नहीं हूं। देश के सामने यह गलत छवि बन रही है कि मैं जेपीसी बनाने में बाधक हूं।’

केंद्र सरकार पर किसी तरह के खतरे से इनकार करते हुए पीएम ने कहा कि मध्यावधि चुनाव की अटकलें लगाना जल्दबाजी होगी और सरकार पर कोई खतरा नहीं। उन्होंने कहा कि बजट सत्र के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल होगा। बजट सत्र को सुचारू रूप से चलने देने के लिए सरकार प्रयास कर रही है।

अपनी सरकार की तारीफ करते हुए पीएम ने कहा कि अलगाववादियों से बातचीत जारी है। उल्फा का उदाहरण देते हुए पीएम ने कहा कि उल्फा नेतृत्व से बातचीत सकारात्मक चल रही है और उन लोगों ने हिंसा छोड़ने का भरोसा दिया है। पीएम ने जम्मू-कश्मीर में रोजगार के साधन बढ़ाने का भरोसा दिया है। उन्होंने कहा कि आतंरिक सुरक्षा के मोर्चे पर सफलता का श्रेय यूपीए सरकार को जाता है।

आपकी बात
प्रधानमंत्री के जवाब से आप कितने संतुष्ट हैं? क्या गठबंधन की मजबूरी के नाम पर भ्रष्*टाचार को जायज ठहराया जा सकता है? क्या प्रधानमंत्री की बात का मतलब यह निकाला जाए कि उन्होंने एक तरह से साफ कर दिया है कि इस सरकार के रहते भ्रष्टाचार पर रोक संभव नहीं है? क्या प्रधानमंत्री ने एक तरह से घोटालों का दोष जनता पर ही मढ़ दिया है, क्योंकि जनता ने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत से सत्ता में नहीं लौटाया? प्रधानमंत्री ने अपनी गलती तो मानी लेकिन इस्तीफे से इनकार किया? क्या वह अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं? इन सभी सवालों पर अपनी राय संयमित, तार्किक, संसदीय भाषा में लिखें।

ndhebar
18-02-2011, 11:30 AM
Q:-प्रधानमंत्री के जवाब से आप कितने संतुष्ट हैं?

कुछ हद तक संतुष्ट हूँ, अब आखिर एक लाचार रिमोट संचालित व्यक्ति वाही कर सकता है जो रिमोट चलाने वाला करवाना चाहेगा.

Q:-क्या गठबंधन की मजबूरी के नाम पर भ्रष्टाचार को जायज ठहराया जा सकता है?

कतई नहीं
Q:-क्या प्रधानमंत्री की बात का मतलब यह निकाला जाए कि उन्होंने एक तरह से साफ कर दिया है कि इस सरकार के रहते भ्रष्टाचार पर रोक संभव नहीं है?

ये तो पहले से ही साफ़ है.

Q:-क्या प्रधानमंत्री ने एक तरह से घोटालों का दोष जनता पर ही मढ़ दिया है, क्योंकि जनता ने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत से सत्ता में नहीं लौटाया?

अब कसाई को दोष देने की हिम्मत कौन करे, गाय को जीतनी मर्जी चाहे कोष लो. कोई रोकने वाला थोड़े ना है.

Q:-प्रधानमंत्री ने अपनी गलती तो मानी लेकिन इस्तीफे से इनकार किया? क्या वह अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं?

जिम्मेदारी को मानने को कौन तैयार है बंधू. हाँ अगर उनका मकसद इस्तीफा ना देकर अपनी गलती सुधारने की कोशिश करना है तो उनकी हिम्मत के लिए दुआ करता हूँ और अगर मकसद सत्ता की मलाई खाना है तो फिर इस देश की मदद देवता ही कर सकते हैं.

इन सभी सवालों पर अपनी राय संयमित, तार्किक, संसदीय भाषा में में लिखें।

इस भाषा का इस्तेमाल फोरम पर :ko2::ko2::ko2::ko2:

arvind
18-02-2011, 11:46 AM
इन सभी सवालों पर अपनी राय संयमित, तार्किक, संसदीय भाषा में में लिखें।

इस भाषा का इस्तेमाल फोरम पर :ko2::ko2::ko2::ko2:
कभी-कभी कुछ लोग जोश मे आकर ऐसी की तैसी कर देते है, इसीलिए एडवांस मे सचेत कर दिया।

ndhebar
18-02-2011, 02:15 PM
कभी-कभी कुछ लोग जोश मे आकर ऐसी की तैसी कर देते है, इसीलिए एडवांस मे सचेत कर दिया।
देखिएगा कहीं इस नोटिस का हाल उस नोटिस की तरह ना हो जाये जो सड़क किनारे लगा होता है और लोग उसी को उपयुक्त स्थान मान लेते हैं

arvind
18-02-2011, 02:21 PM
देखिएगा कहीं इस नोटिस का हाल उस नोटिस की तरह ना हो जाये जो सड़क किनारे लगा होता है और लोग उसी को उपयुक्त स्थान मान लेते हैं
बात तो आपकी सोलह आने सच है, लेकिन फोरम पर वैसे लोग नहीं है।

ndhebar
18-02-2011, 02:23 PM
बात तो आपकी सोलह आने सच है, लेकिन फोरम पर वैसे लोग नहीं है।
लोग बाग़ तो आते जाते रहते है गुरु

arvind
19-02-2011, 01:16 PM
तनिक चर्चा पर भी दिमाग खर्चा कर लिया करो भाईयों।

VIDROHI NAYAK
19-02-2011, 01:56 PM
Q:-प्रधानमंत्री के जवाब से आप कितने संतुष्ट हैं?

वही रटारटाया जवाब...संतुष्टि के सिवा कोई और रास्ता ही नहीं..!!!आखिर जनता के मन में भी तो कोई कोमल हिस्सा है...!!

Q:-क्या गठबंधन की मजबूरी के नाम पर भ्रष्टाचार को जायज ठहराया जा सकता है?

हाँ एक हद तक...ममता बनर्जी का बचपना सामने आया था ! कठोर कदमो के लिए एकाधिकार की आव्यशकता तो पड़ती ही है !
Q:-क्या प्रधानमंत्री की बात का मतलब यह निकाला जाए कि उन्होंने एक तरह से साफ कर दिया है कि इस सरकार के रहते भ्रष्टाचार पर रोक संभव नहीं है?

हाँ ये बात तो उन्होंने साफ़ ही की ये अलग बात है की भरोसेमंद सरकार तो कोई भी नहीं !

Q:-क्या प्रधानमंत्री ने एक तरह से घोटालों का दोष जनता पर ही मढ़ दिया है, क्योंकि जनता ने कांग्रेस को पूर्ण बहुमत से सत्ता में नहीं लौटाया?

बिलकुल उनका तात्यपर्य तो यही है...''अब अगर हमें पूरी तरह से बहुमत से सत्ता में लौटाया होता...तो ये सब काहे को होता...? हम तो बहुत बेचारे हैं !''

q:-प्रधानमंत्री ने अपनी गलती तो मानी लेकिन इस्तीफे से इनकार किया? क्या वह अपनी जिम्मेदारी से बच सकते हैं?
बिलकुल नहीं और वैसे भी इस्तीफे से क्या होगा? फिर से कभी...फिर कोई....फिर आखिर में दोषी जनता !

ndhebar
01-03-2011, 02:20 PM
अपने विचार प्रकट करें :-

क्या इस देश को देवालयों से ज्यादा शौचालयों की आवश्यकता है ?

VIDROHI NAYAK
01-03-2011, 04:10 PM
अपने विचार प्रकट करें :-

क्या इस देश को देवालयों से ज्यादा शौचालयों की आवश्यकता है ?
जरा प्रश्न स्पष्ट कीजिए निशांत भाई !

ndhebar
03-03-2011, 05:46 PM
देखो गदहे की औलाद पेशाब कर रहा है – गदहे के पूत यहां मत मूत – जो भी यहां पेशाब करते पाये गये, सौ रुपये जुर्माना जैसे निर्देश एक जमाने में यहां पेशाब करना सख्त मना है का ही विस्तार है। जैसे-जैसे कहीं भी कभी भी की तर्ज पर पेशाब करनेवालों की जमात ढीठ होती चली गयी वैसे-वैसे इन निर्देशों में सख्ती आती चली गयी। शुरुआती दौर में जो निर्देश अपील का असर पैदा करती थी, एक किस्म का अनुरोध किया जाता था, धीरे-धीरे उसमें आदेश, हिदायत, जुर्माना और अपमानित करने के भाव समाते चले गये। लेकिन इन सबसे भी पेशाब करने का सिलसिला नहीं थमा और इन निर्देशों के आगे बर्बर तरीके के पेशाब अड्डे बनते चले गये। एक बार जिस बाउंडरी वॉल, खाली जगहों, गलियों के आगे कुछ लोगों ने धार बहायी कि समझदार हिंदुस्तानी समाज जो कि महाजनो येन गतः सः पंथः की धारणा पर भरोसा करता है, उसे ताल का रूप देने में लग गये। फिर लाख निर्देश लिखे जाएं, जुर्माने की बात की जाए, कुछ खास फर्क नहीं पड़ता। बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ जैसे शहरों में मैंने देखा है कि कई लोग ऐसी जगहों पर देवी-देवतओं की तस्वीर लगा देते हैं। तस्वीर लगाने का ये काम दिल्ली में भी खूब होता है। मैंने देखा है कि जहां सारे निर्देश बेअसर हो जाते हैं, वहां गणेश मार्का, हनुमान या शिव छाप कोई फोटो या टूटी हुई तस्वीर लगा दो तो फिर लोग वहां अपने आप पेशाब करना बंद कर देते हैं। ये देवी-देवता एक अदनी सी मूर्ति में अपने अस्तित्व की रक्षा करते हुए भी असर पैदा करते हैं। घरों, दुकानों के लिए बेकार हो गयी ये मूर्तियां और तस्वीरें हजारों रुपये की लागत से बनी साईनबोर्डों की ड्यूटी बजाते हैं। पेशाब करने और लोगों को थूकने से मना करने के लिए तस्वीर वाला ये काम रामबाण जैसा असर करता है। इसी क्रम में कई जगहों पर लोगों का पेशाब करना बंद भी हुआ है। इसलिए अब तक जिन लोगों को इस बात की दुविधा रही है कि देवी-देवताओं ने इस देश को क्या दिया है, उन्हें यहां पेशाब न करो अभियान के असर को समझना चाहिए। सफाई अभियान में इन देवी-देवताओं के आगे सारे प्रयास बेकार हैं।
लेकिन पेशाब अड्डों की शर्तों पर लगी इन मूर्तियों और तस्वीरों के आगे की कार्यवाही को समझना कम दिलचस्प नहीं है। जहां-तहां धार बहाते हुए, रेड एफएम के लोगों को लाइन पर लाइन लाने और कंट्रोल कर लोगे जैसे फीलर जनहित में जारी विज्ञापनों से बेपरवाह हम भूल जाते हैं कि हम पेशाब करते हुए इस शहर में, इस देश में मंदिर बनने की भूमिका तय कर रहे हैं। इस देश में पेशाब करने का मतलब है कि आप मंदिर बनाने की नींव तैयार कर रहे हैं। यहां ऐसे शुभचिंतकों, सफाई के महत्व को समझनेवाले और अव्वल दर्जे के धार्मिक लोगों की कमी नहीं है। दर्जन भर लोगों ने भी जहां कहीं लगातार धार बहानी शुरू की और उन्हें वहां स्थायी तौर पर पेशाब किये जाने के चिन्ह मिल गये कि समझिए वहां मंदिर बनाने और शिलान्यास का काम जरूरी हो गया।

इस देश में जितने भी मंदिर हैं, उनके पीछे कोई न कोई मिथ, पौराणिक कथा या फिर दावे के साथ इतिहास जुड़ा हुआ है। कहीं बैठकर राम सुस्ताने लगे थे, तो कहीं रावण लगातार शू शू करता जा रहा था सो देवघर बन गया। कहीं पार्वती जली थी… वगैरह, वगैरह। वो तमाम कहानियां मंदिरों के बनने के तर्क को मजबूत करते हैं जो उल्टे आप ही से सवाल करे कि अब वहां मंदिर नहीं बनाते तो क्या करते? मैंने तो यहां तक देखा है कि मेनरोड पर कोई बंदर करंट लगकर मर गया तो लोगों ने उसे साक्षात हनुमान का अवतार मानकर आनन-फानन में मंदिर बना दिया। नतीजा अब वो रोड दिनभर जाम रहता है।

बहरहाल आप देशभर के मंदिरों के केयरटेकर पंडों से उसके बनने का इतिहास पूछें तो हरेक के पास कोई न कोई अलग किस्म की कथा होगी। लेकिन अपनी आंखों के सामने जो दर्जनों मंदिर मैंने बनते देखे हैं, अगर उन मंदिरों के पंडों ने ईमानदारी से जबाव देने शुरू किये तो सबों का जवाब लगभग एक होगा कि यहां पर आज से चार / पांच / छह / सात / आठ साल पहले लोग बहुत पेशाब करते थे। रास्ते से गुजरती हुई माताओं-बहनों को बहुत परेशानी होती थी। दिनभर भभका उठता था इसलिए स्थानीय भक्तजनों ने तय किया कि यहां मंदिर बना दिया जाए। देशभर में ऐसे दर्जनों मंदिर हैं जहां कभी किसी देवी-देवता ने अवतार नहीं लिया (वैसे अवतार लेते कब हैं) और सिर्फ पेशाब करने से रोकने के लिए उन जगहों पर मंदिर बने हैं।

अब असल सवाल है कि ये मंदिर किस हद तक जनहित का काम करते हैं। तमाम इलाकों में इस अभियान के तहत जितने भी मंदिर बने हैं, वो पहले के बर्बर पेशाब अड्डों से कहीं ज्यादा गंदगी फैला रहे हैं। पेशाबघर तो छोड़िए, दड़बेनुमा इन मंदिरों में पंडों के लिए पखाने से लेकर किचन तक की जो स्थायी/अस्थायी सुविधा जुटायी गयी है, उससे किस हद तक की गंदगी निकलती है – उसे आप खुद मेन रोड पर बहती गंदगियों को देखकर अंदाजा लगा सकते हैं। अवैध पेशाब के अड्डे सिर्फ बदबू पैदा करते हैं लेकिन ये मंदिर कभी माता जागरण तो कभी रामलला के नाम पर नियमित शोर। पेशाब अड्डों की बदबू फिर भी बर्दाश्त कर लें लेकिन जीना हराम कर देनेवाले हो-हल्लों का क्या किया जाए। ये पूरे महौल का सत्यानाश कर रहे हैं, उसे कैसे रोका जाए? लोगों के आने-जाने और इस्तेमाल की जानेवाली चीजों से जो गंदगी बढ़ती है वो तो अलग है।

पॉश इलाके के लोगों ने तो अपनी हैसियत से, स्पॉन्सर कराकर फाइव स्टार टाइप के मंदिर जरूर बना लिये, ये मंदिर भी टनों में कचरा पैदा करने के अड्डे बने लेकिन ये खोमचेनुमा सैकड़ों मंदिर जिस गंदगी को बढ़ा रहे हैं, उस पर कहीं कोई बात नहीं होती। ऐसे में आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि अवैध तरीके से बनाये गये मंदिरों के मुकाबले इस देश को कहीं ज्यादा मूत्राशय और पखाने की जरूरत है।

सीधे शब्दों में कहूं, तो वैसे तो ये पूरा देश ही शौचालय है लेकिन अफसोस कि यहां शौचालय नहीं है, इसे लेकर बहुत दिक्कत है। मन का मैल तो इन खोंमचेनुमा मंदिरों में पाखंड के रास्ते निकलकर डंप हो जाता है – लेकिन शरीर से जो मल निकल रहा है, उसका क्या? अगर इस देश में मूत्राशय से होड़ करके ही मंदिर बनना है तो – प्लीज आप ही कुछ पहल कीजिए।

VIDROHI NAYAK
03-03-2011, 08:34 PM
बहुत ही विस्फोटक बात बताई आपने ! वास्तव में धार्मिक अंधविश्वास के कारण इसके विपरीत जाने की सोची ही नहीं कभी , परन्तु एक बात तो हमेशा रही की कोई भी कार्य सिर्फ यूँ या ऐसे ही नहीं किया गया ! हो सकता हो की अधिकतर यही कारण हो !

ndhebar
05-03-2011, 08:57 AM
बहुत ही विस्फोटक बात बताई आपने ! वास्तव में धार्मिक अंधविश्वास के कारण इसके विपरीत जाने की सोची ही नहीं कभी , परन्तु एक बात तो हमेशा रही की कोई भी कार्य सिर्फ यूँ या ऐसे ही नहीं किया गया ! हो सकता हो की अधिकतर यही कारण हो !
पर आपने अपना विचार नहीं रखा

VIDROHI NAYAK
29-03-2011, 04:31 PM
कल ही अखबार में पढ़ा की , '२५ साल से पकिस्तान की जेल में बंद गोपाल दास को माफ़ी !'
बहुत अच्छा लगा इसे पढकर ! परन्तु एक विषय ने तो चौका ही दिया , गोपाल दास की सजा का यह अंतिम वर्ष था ! अगर यह उपाकर उस पर न किया जाता तो वह वैसे भी इस साल छूट जाता !
प्रश्न उठता है गलती का ! दास को पाक सैनिको ने गलती से सीमा पार करने पर गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें इस मानवीय छोटी सी भूल के लिए १९८६ में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई !
क्या बात है .. कितनी तेज़ी है कानूनों में ! गिलानी को भारत आमंत्रण मिला तो उन्होंने यह तोहफा दिया ! परन्तु गोपाल दास की मनोदशा का क्या? २५ साल से क्यों सुध नहीं ली गई उसकी? हर बार कोई न कोई ऐसे ही उपकार के साहरे क्या जताना चाहता है हमारा पड़ोसी मुल्क ? क्या हुआ हमारे देश के अगुवाईओ को? किसे फ़िक्र रही है उसकी ? कौन जान पाया इस चूक की इतनी बड़ी सजा को ? अब तो शायद उसे कारावास में ही अच्छा लगता होगा ! सच तो यह है सब रोटी सेंक रहे हैं !धन्यवाद गिलानी जी इस उपकार के लिए !

Bholu
29-03-2011, 05:07 PM
विनायक जी आनन्द आ गया

arvind
28-11-2011, 10:38 AM
किस्सा कुर्सी का।

e9y3xIDnwsE

arvind
28-11-2011, 10:51 AM
आज का "किस्सा कुर्सी का"

पी एम की कुर्सी के लिए, जब सब जोर लगाय ।
अटल बिहारी दूर बैठकर, मंद मंद मुस्काय ॥

सोनिया जी पी एम सेट करे,
आडवानी जी वेट करे,
मनमोहन का मोह छोड़कर,
लालू उसको अपसेट करे ।

लाल कृष्ण की आँखों में भी, चमक उभरकर आये ।
नींद से जागे, मनमोहन भी मीठी तान सुनाये ॥

माया कहे मै ही बनूँगी,
शरद कहे मै भी बनूँगा,
कुर्सी से हम ही दूर रहे क्यों,
वाम कहे हम ही बनेंगे ।

गाँधी के इस देश में गाँधी, गाँधी से टकराय ।
राहुल लगे नरम - नरम से, वरुण गरम हो जाय ॥

abhisays
28-11-2011, 05:08 PM
arvind ji yeh kissa kuri ka wahi 1978 ki film hai jise indira gandhi je ban kar diya tha.

ndhebar
28-11-2011, 05:15 PM
arvind ji yeh kissa kuri ka wahi 1978 ki film hai jise indira gandhi je ban kar diya tha.
फिर भी हमने देखा ना
Ban is a just part of promotion my friend

arvind
28-11-2011, 05:20 PM
arvind ji yeh kissa kuri ka wahi 1978 ki film hai jise indira gandhi je ban kar diya tha.
जी हां, ये वही फिल्म है....
एक बार जरूर देखिये, फिर चर्चा करने मे दिमाग खर्चा कर सकते है।

sombirnaamdev
19-01-2012, 12:51 PM
एक ऐसी मिसाल पेश की जानी चाहिए कि कोई भी हिन्दुस्तान की ओर आंख उठाकर न देख पाए। इतनी भयंकर मौत की एक बार किसी की भी रूह कांप उठे।

मेरे विचार से तो कसाब को एक बाड़े में बंद किया जाए जिसके चारों और दर्शक दीर्घा बनी हो। उस दर्शक दीर्घा में 26/11 हमले के भुक्तभोगी लोग होंगे। और उनके हाथ में पत्थर। ये लोग पत्थर मार-मारकर इसकी जान ले लें। इस घटना का सीधा प्रसारण किया जाए। भले ही आपको बचकानी सोच लगे या फिर आपको इस बात का डर हो कि कहीं ऐसा होने से हमारे विरोधी और युवाओं को उकसाएंगे, लेकिन हमें कठोर कदम उठाने ही होंगे। वरन्, इन लोगों ने तो हमें नपुंसक ही समझ लिया है।

arvind
25-05-2012, 06:07 PM
एक ऐसी मिसाल पेश की जानी चाहिए कि कोई भी हिन्दुस्तान की ओर आंख उठाकर न देख पाए। इतनी भयंकर मौत की एक बार किसी की भी रूह कांप उठे।

मेरे विचार से तो कसाब को एक बाड़े में बंद किया जाए जिसके चारों और दर्शक दीर्घा बनी हो। उस दर्शक दीर्घा में 26/11 हमले के भुक्तभोगी लोग होंगे। और उनके हाथ में पत्थर। ये लोग पत्थर मार-मारकर इसकी जान ले लें। इस घटना का सीधा प्रसारण किया जाए। भले ही आपको बचकानी सोच लगे या फिर आपको इस बात का डर हो कि कहीं ऐसा होने से हमारे विरोधी और युवाओं को उकसाएंगे, लेकिन हमें कठोर कदम उठाने ही होंगे। वरन्, इन लोगों ने तो हमें नपुंसक ही समझ लिया है।
मेरे पास इससे भी जबरदस्त आइडिया है...... कहे तो पेश करू.....

khalid
25-05-2012, 06:18 PM
मेरे पास इससे भी जबरदस्त आइडिया है...... कहे तो पेश करू.....

इरशाद इरशाद
फरमाइऐ फिर मैँ भी कुछ सोचता हुँ

abhisays
25-05-2012, 06:43 PM
मेरे पास इससे भी जबरदस्त आइडिया है...... कहे तो पेश करू.....


jaldi se pesh kariye.. :gm:

arvind
25-05-2012, 06:48 PM
इरशाद इरशाद
फरमाइऐ फिर मैँ भी कुछ सोचता हुँ
अरे भाई, बहुत आसान है.....

आजकल के हम हिंदुस्तानी ब्रांड के लोग क्रिकेट के मैदान मे, या टीवी पर चिपक कर क्रिकेट, या गिल्ली-डंडा छाप क्रिकेट खेल कर पूरे विश्व पर अपना परचम (अभी डिजाइन फ़ाइनल नहीं हुआ है) लहरा ही चुके है। वैसे भी तो अभी आईपीएल विश्व युद्ध चल ही रहा है। पूरा देश इसी युद्ध की विभीषिका मे जल रहा है। लोगो को समझ मे नहीं आ रहा है कि क्या किया जाय। कल ऑफिस मे बॉस ने क्या लाने को कहा था, वो तो याद नहीं है, पर धोनी ने एम्पायर से क्या कहा था, वो पूरा का पूरा, फूल स्टॉप, और कोमा के साथ याद है। ऐसा लगता है, जैसे - अगर इस बार का कप चेन्नई सुपर किंग ले जाती है, तो सरकार पेट्रोल, गॅस, करोसिन के दामो पर से सभी टैक्स हटा देगी, जैसे "लगान" मे भुवन के टीम के जीतने के बाद चम्पानेर गाव कि लगान माफ कर दी गई थी। दरअसल इसी ऐतिहासिक मैच के बाद हम हिंदुस्तानियों की सारी की सारी देशभक्ति क्रिकेट के मैदान मे सिमट गई है।

अरे हम भी कहा से कहा निकल गए।

कसाब के लिए तो यही बेहतर होगा कि आईपीएल मैच के दौरान हर रन बनाने पर उसे तीन "अंडा" खाने को दिया जाय। फिर देखिये मैदान मे क्या होता है।

khalid
25-05-2012, 07:13 PM
अरे भाई, बहुत आसान है.....

आजकल के हम हिंदुस्तानी ब्रांड के लोग क्रिकेट के मैदान मे, या टीवी पर चिपक कर क्रिकेट, या गिल्ली-डंडा छाप क्रिकेट खेल कर पूरे विश्व पर अपना परचम (अभी डिजाइन फ़ाइनल नहीं हुआ है) लहरा ही चुके है। वैसे भी तो अभी आईपीएल विश्व युद्ध चल ही रहा है। पूरा देश इसी युद्ध की विभीषिका मे जल रहा है। लोगो को समझ मे नहीं आ रहा है कि क्या किया जाय। कल ऑफिस मे बॉस ने क्या लाने को कहा था, वो तो याद नहीं है, पर धोनी ने एम्पायर से क्या कहा था, वो पूरा का पूरा, फूल स्टॉप, और कोमा के साथ याद है। ऐसा लगता है, जैसे - अगर इस बार का कप चेन्नई सुपर किंग ले जाती है, तो सरकार पेट्रोल, गॅस, करोसिन के दामो पर से सभी टैक्स हटा देगी, जैसे "लगान" मे भुवन के टीम के जीतने के बाद चम्पानेर गाव कि लगान माफ कर दी गई थी। दरअसल इसी ऐतिहासिक मैच के बाद हम हिंदुस्तानियों की सारी की सारी देशभक्ति क्रिकेट के मैदान मे सिमट गई है।

अरे हम भी कहा से कहा निकल गए।

कसाब के लिए तो यही बेहतर होगा कि आईपीएल मैच के दौरान हर रन बनाने पर उसे तीन "अंडा" खाने को दिया जाय। फिर देखिये मैदान मे क्या होता है।

वो तेरी की अण्डा का रेट भी बढाना पडेगा

ndhebar
26-05-2012, 08:17 PM
मेरे पास इससे भी जबरदस्त आइडिया है...... कहे तो पेश करू.....

अरे भाई, बहुत आसान है.....

कसाब के लिए तो यही बेहतर होगा कि आईपीएल मैच के दौरान हर रन बनाने पर उसे तीन "अंडा" खाने को दिया जाय। फिर देखिये मैदान मे क्या होता है।

इहे आइडिया को आप जबरदस्त कह रहे थे :tomato::tomato:

abhisays
14-06-2012, 08:05 AM
आजकल चर्चा पर खर्चा नहीं हो रहा है, लोग कंजूस हो गए हैं.. :giggle:

arvind
04-08-2012, 02:28 PM
जे० पी० बनाम अन्ना आंदोलन

जनलोकपाल के मुद्दे पर अंततः टीम अन्*ना राजनीतिक दल बनाने जा रही है। जयप्रकाश नारायण ने भी इमरजेंसी के विरोध में जनता पार्टी का गठन किया था, लेकिन इंदिरा गांधी को सत्*ता से उखाड़ने के महज तीन साल के अंदर ही यह पार्टी बिखर गई और सत्*ता से बाहर चली गई।

क्या अन्ना जन लोकपाल के मुद्दे पर राजनीति के रास्ते से सफल हो पाएंगे?

arvind
04-08-2012, 02:30 PM
अन्ना हजारे का अनशन खत्म हो गया। टीम अन्ना ने राजनीतिक विकल्प देने का वायदा कर 16 महीने चले जन आंदोलन को समाप्त करने की घोषणा कर दी। टीम अन्ना के इस आंदोलन की तुलना 1975 में जयप्रकाश नारायण द्वारा इमरजेंसी के खिलाफ चलाए गए आंदोलन से की जा रही है। खुद टीम अन्ना के सदस्य अरविंद केजरीवाल देश के मौजूदा हालात को इमरजेंसी जैसा बता रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो मौजूदा आंदोलन 1975 के बाद देश का सबसे बड़ा जनउभार था। 'टाइम' पत्रिका ने इस आंदोलन को '2011 की टॉप 10 न्यूज स्टोरीज' में से एक बताया।

16 अगस्*त, 2011 को अन्*ना हजारे द्वारा शुरु किये गए अनशन को अगस्त क्रांति का नाम भी दिया गया। अन्ना का अनशन 12 दिनों तक लगातार चला था। यह अनशन तब टूटा, जब संसद के दोंनों सदनों ने अन्ना की मांगों का समर्थन किया और उनसे अनशन तोड़ने की अपील की। लेकिन यही सरकार टीम अन्*ना के मौजूदा अनशन के प्रति संवेदनहीन बनी रही।

arvind
04-08-2012, 02:34 PM
अन्ना हजारे व उनकी टीम को लेकर भी यही आशंका जताई जा रही है। माना जा रहा है कि राजनीति में कदम रखते ही टीम अन्ना का डूबना तय है। खैर, भविष्य जो भी हो यहां हम 1975 के आपातकाल विरोधी आंदोलन और टीम अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की कुछ खास बातों से रूबरू करा रहे हैं-

arvind
04-08-2012, 02:36 PM
हाईटेक है अन्*ना का आंदोलन,इमरजेंसी में मीडिया पर भी बैन

21वीं सदी में भारतीय लोकतंत्र का यह पहला जनांदोलन है, जिसे देश के कई हिस्*सों से समर्थन मिला। आंदोलन में आधुनिक युग के सभी हाईटेक संसाधनों का इस्तेमाल हो रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए टीम अन्ना की खुद की वेबसाइट www.indiaagainstcorruption.org है।

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर भी टीम अन्ना ने समर्थन की जबर्दस्त मुहिम चला रखी है। इनका फेसबुक पेज indiaagainstcorruption अब तक 6,30,665 लोगों द्वारा पसंद किया जा चुका है। ट्वीटर पर मौजूद इनके एकाउंट के 2,16,410 फॉलोअर्स है। इन्होंने अपने आंदोलन के प्रचार-प्रसार के लिए एसएमएस कैंपेन का भी इस्तेमाल किया।

वहीं इमरजेंसी के दौरान सरकार विरोधी खबरों और लिटरेचर पर पूरी तरह प्रतिबंध था। हालात ये थे कि इमरजेंसी के विरोध में बनी अमृत नाहटा की फिल्म 'किस्सा कुर्सी का' के सभी प्रिंट सरकार ने जला दिए थे। इस फिल्म में शबाना आजमी ने गूंगी जनता का प्रतीकात्*मक चरित्र निभाया था।

arvind
04-08-2012, 02:37 PM
यहां सभी हैं समाजसेवी, वहां थे राजनीतिज्ञ

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का नेतृत्व कर रही टीम अन्ना के अधिकांश सदस्य समाजसेवी हैं। इनमें से कई एनजीओ भी चलाते हैं और उन्हें समाजसेवा से जुड़े महत्वपूर्ण पुरस्कार भी मिल चुके हैं। मसलन टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल को रेमन मैगसेसे पुरस्कार और आईआईएम गोल्ड मेडल मिल चुका है। टीम की सदस्य किरण बेदी खुद भी एनजीओ चलाती हैं और रेमन मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित हो चुकी हैं। स्वयं अन्ना हजारे को 1992 में भारत सरकार समाज सेवा के लिए पद्मभूषण से सम्मानित कर चुकी है।

वहीं 1975 की इमरजेंसी के विरोध में उतरने वाले सभी सदस्य खांटी राजनीतिज्ञ थे। पुराने सोशलिस्ट और इंदिरा गांधी के धुर विरोधी जयप्रकाश्*ा नारायण ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया था। इस आंदोलन से निकले अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्*ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिज, शरद यादव, रामकृष्ण हेगडे़* आदि बाद में भारतीय राजनीति की धुरी बने।

arvind
04-08-2012, 02:39 PM
यहां भ्रष्टाचार है मुद्दा, वहां था चुनाव में धांधली

टीम अन्*ना मौजूदा सरकार के घोटालों और भष्टाचार का विरोध कर रही है। टीम ने इस मुहिम की शुरुआत 29 अक्*टूबर, 2010 को एक प्रेस कांफ्रेंस से की थी। तब टीम ने कॉमनवेल्*थ गेम्स में भ्रष्टाचार के मुद्दे को उठाया था। संगठन ने बाद में हाउसिंग लोन स्कैम, आदर्श हाउसिंग स्कैम, 2 जी स्कैम और राडिया टेप स्कैंडल को जोरशोर से उठाया। अंततः इस टीम ने अन्ना हजारे के नेतृत्व में 5 अप्रैल 2011 से जनलोकपाल कानून के पक्ष में आमरण अनशन की शुरूआत की। इसके बाद से यह आंदोलन पिछले डेढ़ सालों से जारी है।

जेपी का आंदोलन इमरजेंसी के विरोध में था। इसकी शुरुआत तब हुई जब 25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। यह सब हुआ इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले से जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फैसले को मानने से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।

आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा कानून (मीसा) के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ्तारी की गई। इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फर्नांडिज और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे। आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई। खुद इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गईं। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।

ndhebar
14-09-2012, 04:08 PM
वो आन्दोलन जहाँ सफल हुआ था
इसकी तो मुझे हवा निकलती नजर आ रही है

Sameerchand
22-11-2012, 07:32 AM
अब लगता है लोग कंजूस हो गए हैं। कोई चर्चा पर खर्चा नहीं करता :crazyeyes:

Sikandar_Khan
22-11-2012, 08:24 AM
समीर भाई ! आजकल मंहगाई बहुत ज्यादा है इसलिए लोग खर्चा कम कर रहे हैँ |