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View Full Version : एक युग का अंत ...


YUVRAJ
24-01-2011, 11:39 PM
प्यारे दोस्तों ...
भीमसेन जोशी का निधन

वास्तव में राष्ट्र ने संगीत की एक महान किंवदंती को खो दिया है, पंडित जी ने जो गहराई हिन्दुस्तानी संगीत को दी उसे कोई भी नहीं दे सकता ...
हमारी प्राथना है कि उन्हें प्रभू बैकुण्ठ प्रदान करें ...

YUVRAJ
24-01-2011, 11:48 PM
हिन्दुस्तानी संगीत के दिग्गज पंडित भीमसेन जोशी को हमारी श्रद्धांजलि
:majesty:
LrrJFRtUNvg

amit_tiwari
25-01-2011, 01:41 AM
बेहद दुखी करने वाला समाचार है |

इश्वर पंडित जी की आत्मा को शांति दे |

YUVRAJ
25-01-2011, 06:22 AM
सच है अमित भाई जी ...
अब "देशराग" का कोई भी गवईया नहीं रहा ....

khalid
25-01-2011, 06:28 AM
सच है अमित भाई जी ...
अब "देशराग" का कोई भी गवईया नहीं रहा ....

क्या कर सकतेँ हैँ युवी भाई
मौत से किस की यारी हैँ
आज उनकी कल हमारी बारी हैँ
ॐ शांति शांति

amol
25-01-2011, 07:43 AM
भीमसेन जोशी का जीवन परिचय

पंडित भीमसेन गुरुराज जोशी शास्त्रीय संगीत के हिन्दुस्तानी संगीत शैली के सबसे प्रमुख गायकों में से एक है।

पंडित भीमसेन जोशी को बचपन से ही संगीत का बहुत शौक था। वह किराना घराने के संस्थापक अब्दुल करीम खान से बहुत प्रभावित थे। 1932 में वह गुरु की तलाश में घर से निकल पड़े। अगले दो वर्षो तक वह बीजापुर, पुणे और ग्वालियर में रहे। उन्होंने ग्वालियर के उस्ताद हाफिज अली खान से भी संगीत की शिक्षा ली। लेकिन अब्दुल करीम खान के शिष्य पंडित रामभाऊ कुंडालकर से उन्होने शास्त्रीय संगीत की शुरूआती शिक्षा ली। घर वापसी से पहले वह कलकत्ता और पंजाब भी गए। इसके पहले सात साल पहले शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला खान को भारत रत्न से अलंकृत किया गया था।

वर्ष 1936 में पंडित भीमसेन जोशी ने जाने-माने खयाल गायक और अब्दुल करीम खान के शिष्य सवाई गंधर्व पंडित रामभन कुंडगोलकर से गडग के नजदीक कुंडगोल में संगीत की विभिन्न विधाओं का एक समर्पित शिष्य की तरह प्रशिक्षण प्राप्त किया। वहाँ उन्होंने सवाई गंधर्व से कई वर्षो तक खयाल गायकी की बारीकियाँ भी सीखीं। पंडित भीमसेन जोशी ने अपनी विशिष्ट शैली विकसित करके किराना घराने को समृद्ध किया और दूसरे घरानों की विशिष्टताओं को भी अपने गायन में समाहित किया। उनको इस बात का त्री श्रेय जाता है कि उन्होंने कई रागों को मिलाकर कलाश्री और ललित भटियार जैसे नए रागों की रचना की। उन्हें खयाल गायन के साथ-साथ ठुमरी और भजन में भी महारत हासिल की है। पंडित भीमसेन जोशी का देहान्त २४ जनवरी २०११ को हुआ।


इन्हें ४ नवम्बर, २००८ को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न पुरस्कार के लिए चुना गया, जो कि भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। 'इन्हें भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में सन १९८५ में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।


कर्नाटक के गडक जिले में 4 फरवरी वर्ष 1922 को जन्मे पं. भीमसेन जोशी को इससे पहले भी पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री समेत कई अलंकरण और सम्मान दिए जा चुके हैं।

किराना घराना के 86 वर्षीय शास्त्रीय गायक पंडित भीमसेन जोशी ने 19 वर्ष की आयु में पहली बार किसी सार्वजनिक मंच से अपनी गायन कला का प्रदर्शन किया था और आज तक उनकी यह यात्रा अनवरत जारी थी। उन्होंने पहली बार अपने गुरु सवाई गंधर्व के 60वें जन्मदिवस पर जनवरी 1946 में पुणे अपना गायन प्रस्तुत किया था। उनके द्वारा गाए गए गीत पिया मिलन की आस, जो भजे हरि को सदा और मिले सुर मेरा तुम्हारा बहुत प्रसिद्ध हुए।


ईश्वर इनकी आत्मा को शांति दे.

VIDROHI NAYAK
25-01-2011, 08:40 AM
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे !

Sikandar_Khan
25-01-2011, 09:45 AM
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति और उनके परिवार को स्य्यम दे ।

arvind
25-01-2011, 09:51 AM
इनकी एक प्रस्तुति "मिले सुर मेरा तुम्हारा" जिसमे बहुत से महान कलाकारो ने भाग लिया था, आज भी दूरदर्शन पर सुनाई पड़ता है तो तन-मन "देश राग" मे डूब जाता है।

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YUVRAJ
27-09-2011, 08:55 PM
हाँ ...ये तो हकीकत है ...:)इनकी एक प्रस्तुति "मिले सुर मेरा तुम्हारा" जिसमे बहुत से महान कलाकारो ने भाग लिया था, आज भी दूरदर्शन पर सुनाई पड़ता है तो तन-मन "देश राग" मे डूब जाता है।

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