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View Full Version : सबसे बड़ा सवाल ?


Sikandar_Khan
26-01-2011, 11:29 AM
आज के युग का
सबसे बड़ा सवाल ,
अल्ट्रासाउंड मे दिखाई दी कन्या
गर्भ के सागर मेँ
आ गया भूचाल।
मै पूछता हूँ आपसे
मुझे यह बताएं ?
क्योँ हो रहीँ गर्भ मे
कन्या भ्रूण की हत्याएं।
इस सवाल के उत्तर मे
हमे रात भर नीँद नहीँ आई
करवटेँ बदलते-बदलते
रात बिताई
भोर की मस्ती मेँ पलकेँ अलसाई
झुकीँ और नीँद आई।
क्या देखते हैँ हम कि गर्भ के सागर मे गोते लगा रहे है
सामने एक भ्रूण मेँ
कन्या के दर्शन पा रहे हैं।
कन्या जो गर्भ के सागर मे पलती है
कन्या एक खुशबू है
जो धरती की खुशबू पाने के लिए मचलती है।
कन्या जो सृष्टि का श्रंगार है कन्या जो कभी शीतल हवा तो कभी धधकता अंगार है कन्या जो कभी सीता तो कभी दुर्गा का अवतार है।
हमेँ उसको मारने का
क्या अधिकार है ?
कन्या जो कभी मदर
टेरेसा है
तो कभी रानी लक्ष्मी बाई
उसने मुझे देखा और मुस्कुराई
बोली-अरे कवि
तुम यहां ?
मैने कहा हाँ
जहां न पहुचे रवि
वहां पहुंचे कवि।
कवि के नूतन भावोँ से
जुड़ जाओगी
पृथ्वी पर जल्दी ही उजागर हो जाओगी।
उसने मुझे बताया
मैँ उसी संसार मे जाने के लिए यहां जप कर रही हूँ
अपनी जननी की सुरक्षा
के लिए व्रत और तप कर रही हूँ
जननी,
जिसके गर्भ मे पलता है सृष्टि की रचना का
महान बीज मंत्र।
मैने टोका- हाँ उसी बीज मंत्र को बाहर निकाल कर फेँक देते है
अदना - सा
एक मानवी यंत्र।
उस समय तुम्हारा भगवान कहां सोता है
कहते हैँ कि मारने वाले से बचाने वाला बलवान
होता है ?

Sikandar_Khan
26-01-2011, 11:47 AM
उसने मुझे बताया -
मेरा भगवान तो हर समय सुरक्षा करता है
मेरे गर्भ का कवच बनकर मेरी रक्षा करता है।
तभी वहां साक्षात मौत का शिकंजा आया
गर्भ के सागर मेँ
जैसे भूचाल आया
उसने झट उस कन्या के भ्रूण को वहीँ धर दबाया।
तब मुझे उसकी चीख
सुनाई दी
जो उसके अंतः करण से
आई थी -
सुनो कवि
तुम यह जानना चाहते हो
जिसको बनाने वाला भगवान होता है
फिर यहां उसका क्या बलिदान होता है
मैँ अपनी जननी की सुरक्षा के लिए खुद बलिदान कर देती हूँ
क्योकि वह मेरी मां है
मै उसकी बेटी हूँ
यह माना कि लड़के से वंश चलता है
लेकिन जननी के गर्भ मेँ तो वंश पलता है।
तभी मेरी छोटी बिटिया ने मुझे सोते से जगा दिया
मरते-मरते भी मुझे उसने यह सत्य समझा दिया
कि जननी का गर्भ ही मन्दिर से महान् होता है
जिससे सृष्टि का निर्माण होता है
जिसको बनाने वाला
खुद भगवान होता है......
_______________________
द्वाराः प्रेम किशोर पटाखा

YUVRAJ
26-01-2011, 12:14 PM
बहुत सही पटाखा भाई ...:clap:
पर ताकत हो तो खुद को बनाओ,
और जो जो क्रोम चाहिए वही बगिया में लगाओ ....
भगवान को बदनाम न करो .... बस कुछ अक्ल लगाओ ...
कि जननी का गर्भ ही मन्दिर से महान् होता है
जिससे सृष्टि का निर्माण होता है
जिसको बनाने वाला
खुद भगवान होता है......
_______________________
द्वाराः प्रेम किशोर पटाखा

Harshita Sharma
26-01-2011, 01:26 PM
जिस दिन कुंवारे रह जाओगे तब पता चलेगा की हमें मारकर कितनी बड़ी गलती की है तुम लोगों ने..................:cry:

bhoomi ji
26-01-2011, 04:13 PM
उसने मुझे बताया -
मेरा भगवान तो हर समय सुरक्षा करता है
मेरे गर्भ का कवच बनकर मेरी रक्षा करता है।
तभी वहां साक्षात मौत का शिकंजा आया
गर्भ के सागर मेँ
जैसे भूचाल आया
उसने झट उस कन्या के भ्रूण को वहीँ धर दबाया।
तब मुझे उसकी चीख
सुनाई दी
जो उसके अंतः करण से
आई थी -
सुनो कवि
तुम यह जानना चाहते हो
जिसको बनाने वाला भगवान होता है
फिर यहां उसका क्या बलिदान होता है
मैँ अपनी जननी की सुरक्षा के लिए खुद बलिदान कर देती हूँ
क्योकि वह मेरी मां है
मै उसकी बेटी हूँ
यह माना कि लड़के से वंश चलता है
लेकिन जननी के गर्भ मेँ तो वंश पलता है।
तभी मेरी छोटी बिटिया ने मुझे सोते से जगा दिया
मरते-मरते भी मुझे उसने यह सत्य समझा दिया
कि जननी का गर्भ ही मन्दिर से महान् होता है
जिससे सृष्टि का निर्माण होता है
जिसको बनाने वाला
खुद भगवान होता है......
_______________________
द्वाराः प्रेम किशोर पटाखा




मार्मिक प्रस्तुति सिकंदर जी
बहुत बहुत बधाई आपको सूत्र के लिए

:bravo::bravo:

Nitikesh
26-01-2011, 05:23 PM
मैंने एक जगह पढ़ा था "save girl child शेर को बचा कर क्या होगा."
पहली नजर में यह वाक्य पढने में बचकानी लगती है/लेकिन ज्यादा सोचने
पर यह वाक्य मुझे सही लगता है की यदि मानव जाति ना बची तो शेर को पूछेगा कौन/
मेरा कहने का यह तात्पर्य यह नहीं है की शेर को ना बचाए/लेकिन कहीं ऐसा ना हो की लड़कियों की हत्या करते करते मानव जाति भी कहीं लुप्त होने के कगार पर ना पहुँच जाये.

Sikandar_Khan
26-01-2011, 05:34 PM
बहुत सही पटाखा भाई ...:clap:
पर ताकत हो तो खुद को बनाओ,
और जो जो क्रोम चाहिए वही बगिया में लगाओ ....
भगवान को बदनाम न करो .... बस कुछ अक्ल लगाओ ...

जिस दिन कुंवारे रह जाओगे तब पता चलेगा की हमें मारकर कितनी बड़ी गलती की है तुम लोगों ने..................:cry:

मार्मिक प्रस्तुति सिकंदर जी
बहुत बहुत बधाई आपको सूत्र के लिए

:bravo::bravo:

मैंने एक जगह पढ़ा था "save girl child शेर को बचा कर क्या होगा."
पहली नजर में यह वाक्य पढने में बचकानी लगती है/लेकिन ज्यादा सोचने
पर यह वाक्य मुझे सही लगता है की यदि मानव जाति ना बची तो शेर को पूछेगा/
मेरा कहने का यह तात्पर्य यह नहीं है की शेर को ना बचाए/लेकिन कहीं ऐसा ना हो की लड़कियों की हत्या करते करते मानव जाति भी कहीं लुप्त होने के कगार पर ना पहुँच जाये.

:first:
सूत्र में आने के लिए आप सभी का हार्दिक आभार

Kumar Anil
26-01-2011, 06:26 PM
झकझोर देने वाली एक मार्मिक प्रस्तुति । काश हम भगवान न सही , कम से कम इंसान तो बन जायेँ । मानवीय संवेदनाओँ से तो मुँह न मोड़े । जिस घर मेँ लड़की नहीँ वहाँ खुशियोँ का बसेरा नहीँ , न तीज न कोई त्योहार की पदचाप । सूना सा आँगन और कुछ ढूँढती निगाहेँ । अपने पथराये भाग्य को कोसता हमारा अचेतन । न जाने क्यूँ कुछ अभागे इस खुशी से दूर रहने के लिये अपने ही पावँ पर कुल्हाड़ी मारने को तुले रहते हैँ ।

khalid
26-01-2011, 06:56 PM
कुमार भाई पता नहीँ लोग भ्रुन हत्या करते वक्त यह क्योँ भुल जाते हैँ की वह भी किसी के घर की लक्ष्मी बनेगी किसी औलाद भी यह कहने से चुक सकता हैँ मेरी माँ के पैरो के नीचे जन्नत हैँ किसी के आँगन मेँ उनकी पैरो की पायल की छम छम बजने से रह जाएगी

sagar -
17-02-2011, 08:04 AM
कुमार भाई पता नहीँ लोग भ्रुन हत्या करते वक्त यह क्योँ भुल जाते हैँ की वह भी किसी के घर की लक्ष्मी बनेगी किसी औलाद भी यह कहने से चुक सकता हैँ मेरी माँ के पैरो के नीचे जन्नत हैँ किसी के आँगन मेँ उनकी पैरो की पायल की छम छम बजने से रह जाएगी

१ इस दर्द को व्ही बया कर सकता जिस के घर में कई -२ लडकिया हे और शादी करने के लिए पैसे नही होते !

२ कोई लड़कियों के लिए तरसता हे ! तो कोई लडको के लिए तरसता हे किसी के पास इतने लडके हे की वो लड़की की तमना में ही रहता हे जिदगी भर !

३ हर चीज के दो पहलू होते हे अच्छे भी और बुरे भी

यहा पर लिखना बहुत आसान होता हे काश कोई उसके दिल से भी पूछे जिन पर ये बीतती हे !

में कई ऐसे दोस्तों को जनता हू जिनके साथ ये प्रोब्लम हे !

Kumar Anil
17-02-2011, 09:44 AM
१ इस दर्द को व्ही बया कर सकता जिस के घर में कई -२ लडकिया हे और शादी करने के लिए पैसे नही होते !

२ कोई लड़कियों के लिए तरसता हे ! तो कोई लडको के लिए तरसता हे किसी के पास इतने लडके हे की वो लड़की की तमना में ही रहता हे जिदगी भर !

३ हर चीज के दो पहलू होते हे अच्छे भी और बुरे भी

यहा पर लिखना बहुत आसान होता हे काश कोई उसके दिल से भी पूछे जिन पर ये बीतती हे !

में कई ऐसे दोस्तों को जनता हू जिनके साथ ये प्रोब्लम हे !

सागर भाई ! आपके विचारोँ मेँ दो बातेँ प्रतिध्वनित हो रही हैँ , प्रथम तो जाने अनजाने आपने भ्रूण हत्या को दहेज के कारण न्यायसंगत सिद्ध करने की कोशिश कर डाली और अन्ततोगत्वा लड़की के समस्त गुण , धर्म , भावनाओँ को दरकिनार करते हुये मात्र विवाह के लिये ही उसके वज़ूद को अपनी स्वीकृति प्रदान की । आदिकाल से ही पुरुष सामंती सोच का था । शायद इसीलिये हमारी स्त्रियोँ को हीनतर और कमतर होने का बोध कराया जाता रहा । परिणामतः इस हीन वर्ग से नाता जोड़ने के लिये ही क्षतिपूर्ति की अवधारणा के तहत दहेज नामक भस्मासुर को ईज़ाद कर लिया गया होगा । आप आज के सन्दर्भ मेँ जरा झाँक कर देखिये तो सही । कुछ एक लोगोँ को अपवादस्वरूप छोड़ दीजिये । क्या हमारे साझा मुद्दोँ पर भी निर्णय एकल नहीँ हुआ करते । अपनी मूर्खता और मूढ़ता पर बाहर लतिया जाने वाला पुरुष घर मेँ अपनी बीबी के सामने बुद्धिमत्ता का सिरमौर बना घूमता रहता है । अब भला हम इस पुरुषप्रधान देश मेँ अपनी सामंती सोच और हमारे द्वारा ही पोषित दहेज समस्या का ठीकरा इन लड़कियोँ के ऊपर क्योँ फोड़े ? इसमेँ इनका क्या दोष हैँ ? हमेँ समस्याओँ से लड़ना होगा न कि उसके शार्टकट अपनाने के लिये भ्रूणहत्या को बढ़ावा देना होगा । समस्या के लिये मानव देह की बलि हमारे पैशाचिक कृत्योँ का वो खूनी दलदल है जिसमेँ मानवता कराह रही है , हमारी कायरता हमेँ धिक्कार रही है और हमारी लड़कियोँ की चीखेँ हमसे पूछ रही हैँ कि तुम्हारी सज़ा भला हम क्योँ भुगतेँ ? जब तुम किसी को जीवन दे नहीँ सकते तो छीनने का हक़ किसने दिया ?

Bholu
17-02-2011, 10:19 AM
बहुत बढिया अनिल जी

Sikandar_Khan
17-02-2011, 10:26 AM
सागर भाई ! आपके विचारोँ मेँ दो बातेँ प्रतिध्वनित हो रही हैँ , प्रथम तो जाने अनजाने आपने भ्रूण हत्या को दहेज के कारण न्यायसंगत सिद्ध करने की कोशिश कर डाली और अन्ततोगत्वा लड़की के समस्त गुण , धर्म , भावनाओँ को दरकिनार करते हुये मात्र विवाह के लिये ही उसके वज़ूद को अपनी स्वीकृति प्रदान की । आदिकाल से ही पुरुष सामंती सोच का था । शायद इसीलिये हमारी स्त्रियोँ को हीनतर और कमतर होने का बोध कराया जाता रहा । परिणामतः इस हीन वर्ग से नाता जोड़ने के लिये ही क्षतिपूर्ति की अवधारणा के तहत दहेज नामक भस्मासुर को ईज़ाद कर लिया गया होगा । आप आज के सन्दर्भ मेँ जरा झाँक कर देखिये तो सही । कुछ एक लोगोँ को अपवादस्वरूप छोड़ दीजिये । क्या हमारे साझा मुद्दोँ पर भी निर्णय एकल नहीँ हुआ करते । अपनी मूर्खता और मूढ़ता पर बाहर लतिया जाने वाला पुरुष घर मेँ अपनी बीबी के सामने बुद्धिमत्ता का सिरमौर बना घूमता रहता है । अब भला हम इस पुरुषप्रधान देश मेँ अपनी सामंती सोच और हमारे द्वारा ही पोषित दहेज समस्या का ठीकरा इन लड़कियोँ के ऊपर क्योँ फोड़े ? इसमेँ इनका क्या दोष हैँ ? हमेँ समस्याओँ से लड़ना होगा न कि उसके शार्टकट अपनाने के लिये भ्रूणहत्या को बढ़ावा देना होगा । समस्या के लिये मानव देह की बलि हमारे पैशाचिक कृत्योँ का वो खूनी दलदल है जिसमेँ मानवता कराह रही है , हमारी कायरता हमेँ धिक्कार रही है और हमारी लड़कियोँ की चीखेँ हमसे पूछ रही हैँ कि तुम्हारी सज़ा भला हम क्योँ भुगतेँ ? जब तुम किसी को जीवन दे नहीँ सकते तो छीनने का हक़ किसने दिया ?

अनिल भाई जी
आपके विचारों को शत -शत नमन

Kumar Anil
17-02-2011, 03:40 PM
अनिल भाई जी
आपके विचारों को शत -शत नमन

शुक्रिया मित्र ! परन्तु विचार क्रियान्वन मेँ परिणत न हो सकने पर अर्थहीन हो जाते हैँ । आवश्यकता तो इस बात की है कि दहेजरूपी नासूर को समाप्त कर भ्रूणहत्या जैसे जघन्य अपराध से बच सकेँ ।

Bholu
18-02-2011, 06:44 AM
शुक्रिया मित्र ! परन्तु विचार क्रियान्वन मेँ परिणत न हो सकने पर अर्थहीन हो जाते हैँ । आवश्यकता तो इस बात की है कि दहेजरूपी नासूर को समाप्त कर भ्रूणहत्या जैसे जघन्य अपराध से बच सकेँ ।
मान गाये अनिल भाईया आप तो नायक के अनिल कपूर निकले

Sikandar_Khan
26-03-2011, 09:26 PM
धनिया लेटी है अपनी खाट पर
देख रही है सुंदर सपना
सोच रही है इस दुनिया में
कोई तो होगा अपना,
वो खुश है आज, बहुत खुश
क्योंकि कुछ ही महीनों के बाद
वो बनने वाली है माँ
उसके मन में
माँ बनने की उमंग है
दिल में ममता की तरंग है,
सोच रही है
मेरे जैसी होगी मेरी बेटी
जो घूमेगी घर के आँगन में
रुनझुन-रुनझुन,
जो बोलेगी
अपनी तोतली बोली में
और कहेगी ‘माँ जला छुन
जब मेली छादी होदी न
सुंदल-सा दूल्हा आएदा
मैं दोली में बैठतल
अपनी छुछराल चली जाऊँदी !
पर माँ लोना नईं
जब तू बुलाएगी ना
मैं झत से दौलतल
तेरे पास चली आऊँगी
या फिल तुझे बुला लूँदी अपने पाछ !’
धनिया खुश थी मन ही मन
उसके दिल में
प्रसन्नता की हिलोरें उठ रही थीं
उसने पहले ही सोच लिया था
कि अपनी चाँद-सी बेटी को
पढ़ना सिखाऊँगी,
लिखना सिखाऊँगी
और उससे खत लिखवाऊँगी,
फिर मैं अपने मन की बात को
अपनी अम्मा और बापू तक
पहुँचा सकूँगी !
इन्हीं विचारों में उलझी
धनिया बड़ी बेसब्री से
सुबह होने का
कर रही थी इंतज़ार
सोच रही थी बारंबार
कल जब अल्ट्रासाउंड की
रिपोर्ट आएगी घर पर
तो खुश होंगे
मेरे साथ-साथ सभी परिवारी-जन
करेंगे इंतज़ार
नन्ही-सी परी के आने का !
पास-पड़ौस के सभी लोग
देने आएँगे बधाई
मेरे माँ-बापू भी मनाएँगे उत्सव
गाए जाएँगे मंगलगीत
मिलेगी मुझे सबकी प्रीत !
अपनी परी का नाम
रखूँगी चमेली जो बड़ी होकर बनेगी
अनोखी, अलबेली
रक्षाबंधन के दिन
भैया की सूनी कलाई पर
बाँधेगी राखी
भैया भी उसको
देगा रक्षा का वचन !
मेरे सपनों की परी
जब और बड़ी होगी
तो घर के कामों में
बटाएगी मेरा हाथ
मेरे थकने पर प्यार से
मेरा सिर सहलाएगी,
अपने दादी-बाबा की
वो बनेगी लाडली
घर में बनेगी सबकी दुलारी
दोपहर को खेत पर
अपने बापू के लिए
लेकर जाएगी रोटी
तब मेरे बुझे मन को
और थके तन को
मिलेगा थोड़ा-सा आराम
मुझे मिलेगा मेरा खोया हुआ
अपना ही सुंदर नाम !
यही सोचते-सोचते धनिया
न जाने कब सो गई
मीठे-मीठे सपनों में खो गई
मुँह अँधेरे ही वो उठकर बैठ गई
जब उठी तो थी बहुत
उल्लसित और प्रफुल्लित,
जल्दी-जल्दी कर रही थी
घर के सारे काम
कामों से निपटकर
वह बैठी ही थी
कि अल्ट्रासाउंड की रिपोर्ट लेकर
उसका पति मुँह लटकाए आया
समझ नहीं आ रहा था
उसकी उदासी का राज़
पूछने पर उसने बताया
‘रिपोर्ट नहीं है अच्छी’
सभी थे चिंतामग्न
सभी थे परेशान
अनहोनी की आशंका से
सब तरफ थी खामोशी ,चुप्पी
और सभी कर रहे थे इंतज़ार
रिपोर्ट को जानने का !
छाई हुई खामोशी को तोड़ते हुए
धनिया का पति बोला ¬–
‘ रिपोर्ट में तो लड़की बताई है ‘
घर के सभी सदस्यों ने
ठंडी साँस ली और बोले-
‘ इसमें चिंता की क्या बात है
अब तो हमारे देश ने
बड़ी उन्नति कर ली है ‘
घर के बुजुर्ग बोले-
‘ चिंता मतकर
डॉक्टर से मिलकर
इस आफत से मुक्ति पा लेंगे
इस बार नहीं
तो कोई बात नहीं
अगली बार
घर का चिराग पा लेंगे !’
पर किसी ने
उस माँ के दिल की पीड़ा को
न समझा, न जाना
न उसकी मन:स्थिति को पहचाना !
वह बुझी-सी, टूटी-सी
उठकर चली गई अंदर
और बहाती रही आँसू
वह अपने मन की टीस को
किसी से बाँट भी तो नहीं सकती
अपने मन की बात
किसी से कह भी तो नहीं सकती
कहेगी तो सुनेगा कौन
इसीलिए तो वो है मौन !
धनिया की आँखें निरंतर
बरस रही थीं झर-झर
मानो कह रही हों, सुनो,
समाज के कर्णधारो ! सुनो
समाज के सुधारको सुनो,
बेटों के चाहको सुनो न !
मेरा तो बस यही है कहना
ऐसे सोच को समाज के
दिलो-दिमाग से पूरी तरह
निकालकर फेंक दो न !
और उन सबको समझाओ
जो बेटी नहीं, चाहते हैं बेटा !
यदि देश में इसी तरह
सताई जाती रहेंगी बेटियाँ
होती होती रहेंगी भ्रूण हत्याएँ
तो एकदिन ऐसा आएगा
जब हमारे चारों ओर
होंगे केवल बेटे-ही-बेटे
दु:ख-दर्द को मिटाने वाली
बेटियाँ कहीं दूर तक
नज़र नहीं आएँगीं,
और एकदिन ऐसा आएगा
जब पुरुष रह जाएगा अकेला
अच्छा नहीं लगेगा
उसे दुनिया का मेला,
और फिर वह अकेले ही अकेले
ढोएगा जीवन का ठेला !


डॉ. मीना अग्रवाल

Sikandar_Khan
26-03-2011, 09:34 PM
अपने सपनों को नई ऊँचाई देने के लिये
मैंने बड़े जतन से टुकड़ा टुकडा आसमान जोडा था
तुमने परवान चढ़ने से पहले ही मेरे पंख
क्यों कतर दिये माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने भविष्य को खूबसूरत रंगों से चित्रित करने के लिये
मैने क़तरा क़तरा रंगों को संचित कर
एक मोहक तस्वीर बनानी चाही थी
तुमने तस्वीर पूरी होने से पहले ही
उसे पोंछ क्यों डाला माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने जीवन को सुख सौरभ से सुवासित करने के लिये
मैंने ज़र्रा ज़र्रा ज़मीन जोड़
सुगन्धित सुमनों के बीज बोये थे
तुमने उन्हें अंकुरित होने से पहले ही
समूल उखाड़ कर फेंक क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
और अगर हूँ भी तो क्या यह दोष मेरा है ?

साधना वैद

VIDROHI NAYAK
26-03-2011, 09:49 PM
अपने सपनों को नई ऊँचाई देने के लिये
मैंने बड़े जतन से टुकड़ा टुकडा आसमान जोडा था
तुमने परवान चढ़ने से पहले ही मेरे पंख
क्यों कतर दिये माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने भविष्य को खूबसूरत रंगों से चित्रित करने के लिये
मैने क़तरा क़तरा रंगों को संचित कर
एक मोहक तस्वीर बनानी चाही थी
तुमने तस्वीर पूरी होने से पहले ही
उसे पोंछ क्यों डाला माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने जीवन को सुख सौरभ से सुवासित करने के लिये
मैंने ज़र्रा ज़र्रा ज़मीन जोड़
सुगन्धित सुमनों के बीज बोये थे
तुमने उन्हें अंकुरित होने से पहले ही
समूल उखाड़ कर फेंक क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?

अपने नीरस जीवन की शुष्कता को मिटाने के लिये
मैंने बूँद बूँद अमृत जुटा उसे
अभिसिंचित करने की कोशिश की थी
तुमने उस कलश को ही पद प्रहार से
लुढ़का कर गिरा क्यों दिया माँ ?
क्या सिर्फ इसलिये कि मैं एक बेटी हूँ ?
और अगर हूँ भी तो क्या यह दोष मेरा है ?

साधना वैद
क्या रुलाने का इरादा है सिकंदर भाई ?

Sikandar_Khan
26-03-2011, 09:58 PM
क्या रुलाने का इरादा है सिकंदर भाई ?

क्या कुछ गलत लिख
दिया है ?

VIDROHI NAYAK
26-03-2011, 10:04 PM
क्या कुछ गलत लिख
दिया है ?
नहीं कुछ मार्मिक लिखा है ! वास्तव में हम आज भी इन चीजों को समझ नहीं पाए हैं !

Sikandar_Khan
26-03-2011, 10:11 PM
नहीं कुछ मार्मिक लिखा है ! वास्तव में हम आज भी इन चीजों को समझ नहीं पाए हैं !

समझ नही पा रहे है या फिर अनदेखा कर देते हैँ

VIDROHI NAYAK
26-03-2011, 10:16 PM
समझ नही पा रहे है या फिर अनदेखा कर देते हैँ
हम मतलब मै तो नहीं है ! मेरे ख्वाब तो पहले बेटी ही पाने का है ! अब बस ये दहेज नाम के अभिशाप की म्रत्यु हो जाए यकीनन 'हम' बहुत कुछ समझने लगेंगे !

Sikandar_Khan
26-03-2011, 10:22 PM
हम मतलब मै तो नहीं है ! मेरे ख्वाब तो पहले बेटी ही पाने का है ! अब बस ये दहेज नाम के अभिशाप की म्रत्यु हो जाए यकीनन 'हम' बहुत कुछ समझने लगेंगे !

बिल्कुल सही बात कही है
आपने ये दहेज का अभिशाप को हमारे समाज से निकाल फेँकने की
जरूरत है
मै खुद दो बेटियोँ का
पिता हूँ

Sikandar_Khan
26-03-2011, 11:01 PM
मातृ दिवस पर
माँ को करते हैं सलाम
और मातृ दिवस पर ही
कहीं किसी बेटी को करते हैं हलाल

जब भी कहीं कोई बेटी मरती हैं
एक माँ को भी तो आप ख़तम करते हैं
एक बच्चे का ममत्व आप छिनते हैं


आज से कुछ और साल बाद
शायद ना कोई माँ होगी
और ना ही होगी कोई संतान

मातृ दिवस ना मनाये
ऐसी परम्पराए क्यूँ बनाये
जिनेह आगे चल कर
ख़तम ही होना हैं

चलिये मानते हैं
ऑनर किल्लिंग दिवस
कन्या भुंण ह्त्या दिवस
दहेज के नाम पर जलती बहु - दिवस

क्या रखा हैं
मातृ दिवस मे
बालिका दिवस मे

जब मन मे स्नेह नहीं
बेटी के लिये
केवल सम्पत्ति हैं बेटी
कभी अपने घर तो
कभी ससराल
उसका मरना निश्चित हैं
दिवस बस अनिश्चित हैं
सो करिये घोषणा

कब मारेगे अपनी बेटी को
कुछ जश्न फिर नया हो

Sikandar_Khan
27-03-2011, 11:36 AM
मेरा होना या न होना
मैं तभी भली थी
जब नहीं था मालूम मुझे
कि मेरे होने से
कुछ फर्क पड़ता है दुनिया को
कि मेरा होना, नहीं है
सिर्फ औरों के लिए
अपने लिए भी है.
मैं जी रही थी
अपने कड़वे अतीत,
कुछ सुन्दर यादों,
कुछ लिजलिजे अनुभवों के साथ
चल रही थी
सदियों से मेरे लिए बनायी गयी राह पर
बस चल रही थी ...
रास्ते में मिले कुछ अपने जैसे लोग
पढ़ने को मिलीं कुछ किताबें
कुछ बहसें , कुछ तर्क-वितर्क
और अचानक ...
अपने होने का एहसास हुआ
अब ...
मैं परेशान हूँ
हर उस बात से जो
मेरे होने की राह में रुकावट है...
हर वो औरत परेशान है
जो जान चुकी है कि वो है
पर, नहीं हो पा रही है अपनी सी
हर वो किताब ...
हर वो विचार ...
हर वो तर्क ...
दोषी है उन औरतों का
जिन्होंने जान लिया है अपने होने को
कि उन्हें होना कुछ और था
और... कुछ और बना दिया गया ..

ABHAY
27-03-2011, 12:34 PM
सबसे बड़ा सवाल ये है की सवाल क्या है ?

Sikandar_Khan
27-03-2011, 12:43 PM
सबसे बड़ा सवाल ये है की सवाल क्या है ?

सवाल ये है कि क्योँ अजन्मी कन्याओँ को गर्भ मे ही मार दिया जाता है ?
जिस स्त्री से हमारा वंश आगे बढ़ता है
क्योँ हम उसे तिरस्कार भरी नजरोँ से देखते है |
क्योँ उसे दहेज के नाम पर अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है

ishu
30-03-2011, 12:29 AM
सिकंदर भाई द्वारा बहुत बेमिसाल सूत्र. मेरी तरफ से शुभकामनाएं.

Sikandar_Khan
11-04-2011, 08:48 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=10231&stc=1&d=1302493649


लड़की होने पर दुनिया वाले क्यों मनाते है शोक
लड़की को बोझ क्यों समझते है लोग
हर काम में ये आगे है ये मर्दों से
कभी पीछे नहीं हटती अपने फर्जो से
इसके जन्म पर क्यों नहीं बांटता कोई भोग |
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एक पडोसी थे मेरे, न थी उनके कोई औलाद
हाथ जोड़कर ईश्वर से करते थे वो फ़रियाद
कर्म खुदा का उनके आँगन में खिली एक कली
मायूस होकर बोले कि हुई है एक लड़की
मैंने कहा अंकल कुछ खिला पिला तो जाते
कहने लगे लड़का होता तो जरूर खिलाते |
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सुनते ही दिल मेरा तड़प उठा
ये क्या उल्टा रिवाज़ है दुनिया का
कभी देते है देवी या कन्या का नाम इसे
कभी पैदा होते ही करते है बदनाम इसे
चाहते हुए भी कुछ न कर सकी
दुखी ह्रदय से कविता लिख डाली |
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मैं न किसी पर बोझ बनूंगी , जग में ऊँचा नाम करूंगी
फिर देखूँगी कौन करेगा लड़की होने पर मातम |
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अरे नादान लोगो , जरा समझ लो
न होगी लड़की तो समाप्त हो जायेगा जीवन
इसके जज्बात को न कोई समझा है
न कोई समझ सकेगा ..............!
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संजय कुमार भास्कर

Sikandar_Khan
23-09-2011, 07:58 PM
गुडिया द्वारा चावल , (http://myhindiforum.com/showthread.php?p=104039#post104039)मुट्ठी में भरते ही (http://myhindiforum.com/showthread.php?p=104039#post104039)
आँख छलछला उठीं
अपनी लाडली का यह स्वरुप
कैसे देख पाऊंगा ..मैं पिता
कैसी यह घडी, कैसा यह चलन

नहीं समझ सका, कभी यह मन !
मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाली ही ,
इस घर में सबसे कमज़ोर है, मेरे होते हुए भी
शायद सबसे अधिक, उसे ही मेरी जरूरत है !
और सबसे पहले, उसे ही निकाल रहा, मैं खुद
कह रहा कि , यह तेरा घर नहीं !
भाई को सौंपती, अपने पिता को
कि भैया ! पापा का ख़याल रखना

(http://3.bp.blogspot.com/_xTgQQS5-rNY/TRSdk-7bFXI/AAAAAAAAC9I/WWqDjX0AYiQ/s1600/rabri.jpg)
कहती, यह मासूम जा रही है
एक नयी जगह , मेरी बेटी !
जिसको, भय वश मैंने, कभी नयी जगह,
अकेला नहीं जाने दिया ....
यह जा रही है , नए लोगों के बीच रहने
अकेली ! बिना अपने पिता ...
जिसे मैंने कभी नए लोगों से नहीं मिलने दिया
क्योंकि यहाँ भेडिये ज्यादा मिलते हैं, इंसान कम
मेरे कठोर शरीर का , सबसे कोमल टुकड़ा
मुझसे अलग होकर जा रहा है, घने जंगल में
यह पिता क्या करे ??

bhavna singh
23-09-2011, 08:28 PM
गुडिया द्वारा चावल , (http://myhindiforum.com/showthread.php?p=104039#post104039)मुट्ठी में भरते ही (http://myhindiforum.com/showthread.php?p=104039#post104039)
आँख छलछला उठीं
अपनी लाडली का यह स्वरुप
कैसे देख पाऊंगा ..मैं पिता
कैसी यह घडी, कैसा यह चलन

नहीं समझ सका, कभी यह मन !
मुझे सबसे अधिक प्यार करने वाली ही ,
इस घर में सबसे कमज़ोर है, मेरे होते हुए भी
शायद सबसे अधिक, उसे ही मेरी जरूरत है !
और सबसे पहले, उसे ही निकाल रहा, मैं खुद
कह रहा कि , यह तेरा घर नहीं !
भाई को सौंपती, अपने पिता को
कि भैया ! पापा का ख़याल रखना

(http://3.bp.blogspot.com/_xtgqqs5-rny/trsdk-7bfxi/aaaaaaaac9i/wwqdjx0ayiq/s1600/rabri.jpg)
कहती, यह मासूम जा रही है
एक नयी जगह , मेरी बेटी !
जिसको, भय वश मैंने, कभी नयी जगह,
अकेला नहीं जाने दिया ....
यह जा रही है , नए लोगों के बीच रहने
अकेली ! बिना अपने पिता ...
जिसे मैंने कभी नए लोगों से नहीं मिलने दिया
क्योंकि यहाँ भेडिये ज्यादा मिलते हैं, इंसान कम
मेरे कठोर शरीर का , सबसे कोमल टुकड़ा
मुझसे अलग होकर जा रहा है, घने जंगल में
यह पिता क्या करे ??


अत्यंत मार्मिक वर्णन ..................
मेरे पास सब्द नहीं है /