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View Full Version : शोले - फिल्मी इतिहास का एक अनमोल पन्ना।


arvind
07-02-2011, 04:42 PM
35 साल पहले 1975 के स्वतंत्रता दिवस पर फिल्म शोले रिलीज़ हुई थी। इस फिल्म की शुरुआत तो बहुत मामूली थी लेकिन कुछ ही दिनों में यह फिल्म पूरे देश में चर्चा का विषय बन गयी। देखते ही देखते सुपर हिट और फिर ऐतिहासिक फिल्म हो गई शोले।

पहले बात करते हैं शोले के पात्रों और पर्दे के पीछे के कलाकारों की। उस फिल्म में आनंद और ज़ंजीर जैसी फिल्मों से थोड़ा नाम कमा चुके अमिताभ बच्चन थे तो उस वक़्त के ही-मैन धर्मेन्द्र भी थे। लेकिन फिल्म सबसे ज्यादा चर्चा में अमजद खां की वजह से आई। व्यापारिक लिहाज़ से फिल्म बहुत ही सफल रही। बहुत सारी व्याख्याएं हैं यह बताने के लिए कि क्यों यह फिल्म इतनी सफल रही लेकिन जो सबसे बड़ी बात है वह उसकी कहानी और उसकी भाषा है. आज के सबसे बेहतरीन फिल्म लेखक जावेद अख्तर के इम्तिहान की फिल्म थी यह। 'यक़ीन' जैसी फ्लॉप फिल्मों से शुरू करके उन्होंने सलीम खां के साथ जोड़ी बनायी थी। जीपी सिप्पी के बैनर के मुकामी लेखक थे। अंदाज़, सीता और गीता जैसी फिल्मों के लिए यह जोड़ी कहानी लिख चुकी थी। और जब शोले बनी तो कम दाम देकर इन्हीं लेखकों से कहानी और संवाद लिखवा लिए गए। और उसके बाद तो जिधर जाओ वहीं इस फिल्म के डायलाग सुनने को मिल जाते थे।

वीडियो का चलन तो नहीं था लेकिन शोले के डायलाग बोलते हुए लोग कहीं भी मिल जाते थे। किसी बेवक़ूफ़ अफसर को अंग्रेजों के ज़माने का जेलर कह दिया जाता था। क्योंकि अपने इस डायलाग की वजह से असरानी सरकारी नाकारापन के सिम्बल बन गए थे। अमजद खां के डायलाग पूरी तरह से हिट हुए। इतने खूंखार डाकू का रोल किया था अमजद खां ने लेकिन वह सबका प्यारा हो गया। मीडिया का इतना विस्तार नहीं था, कुछ फ़िल्मी पत्रिकाएं थीं, लेकिन धर्मयुग और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के ज़रिये आबादी की मुख्यधारा में फिल्मों का ज़िक्र पंहुचता था। ऐसे माहौल में शोले का एक कल्ट फिल्म बनना एक पहेली थी जो शुरू में समझ में नहीं आती थी।

arvind
07-02-2011, 04:58 PM
सन् 1975 में निर्माता जी.पी. सिप्पी द्वारा निर्मित “शोले” आज तक बनी हिन्दी फिल्मों में सबसे अधिक लोकप्रिय फिल्म है। इसकी लोकप्रियता का अनुमान सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि यह फिल्म बंबई (अब मुंबई) के मिनर्वा टाकीज़ में 286 सप्ताह तक चलती रही। “शोले” ने भारत के सभी बड़े शहरों मे रजत जयंती (सिल्व्हर जुबली) मनाया और इस फिल्म ने रु.2,13,45,00,000/- की कमाई की।

फिल्म शोले के कुछ यादगार संवाद:


कितने आदमी थे?
वो दो थे, और तुम तीन । फिर भी खाली हाथ लौट आये।
कितना इनाम रखे है, सरकार हम पर।
यहाँ से पचास पचास गाँवो में, जब बच्चा नहीं सोता हैं, तो माँ कहती हैं - सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जायेगा।
बहुत नाइंसाफी हैं।
अब तेरा क्या होगा कालिया?
ये हाथ नहीं फाँसी का फंदा हैं।
ये हाथ हमको दे दे , ठाकुर।
तेरे लिए तो मेरे पैर ही काफी हैं।
तेरा नाम क्या है, बसंती?
बसंती, इन कुत्तो के सामने मत नाचना।
आधे दाये जाओ, आधे बाये , बाकी मेरे पीछे आओ।
हम अंग्र्जों के जमाने के जेलर हैं।
इतना सन्नाटा क्यों है भाई?

arvind
07-02-2011, 05:04 PM
मोबाइल की रिंगटोन पर भी "होली के दिन दिल खिल जाते..." के बगैर होली नही होती। वहीं "ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे..." के बगैर तो फ्रेंडशिप डे" नहीं मनाया जाता। "शोले" ने कई नई बातों की बॉलीवुड में शुरुआत की। "खलनायक" के डायलॉग की "रिकॉर्ड" या "मेकिंग ऑफ शोले" सुनाने वाली किताब इसका सबूत हैं। केवल शहर ही नहीं दूर दराज कस्बों में भी लोग इसके डायलॉग का मजा लेते थे। "कितने आदमी थे?" गब्बर यानी अमजद खान का यह डायलॉग इतना लोकप्रिय है कि आज भी मिमिक्री शोज में यह डायलॉग अलग-अलग कलाकार किस लहजे, अंदाज में बोलेंगे का प्रयोग आज भी तालियाँ हासिल करता है। इतना ही नहीं इस डायलॉग पर ही कई अलहदा तरह के व्यंग्यों की भी पेशकश होने लगी है।

जीपी सिप्पी और रमेश सिप्पी निर्मित "शोले" कई मायनों में खास रही। जिसके चलते उसने सभी मोर्चों पर बाजी मारी। अकिरा कुरोसोवा के "सेवन सामुराई" और जॉन स्टजेंस के "द मॅग्निफिशियंट" फिल्मों पर आधारित "शोले" की कथा, पटकथा और संवाद सलीम जावेद ने लिखे।

मजबूत कथा, खटकेबाज डायलॉग, जीते-जागते साहसी दृश्य, चंबल के डाकुओं का चित्रण, गब्बर बने अमजद द्वारा संवादों की दमदार अदायगी, ठाकुर बने संजीवकुमार का जबर्दस्त अभिनय और उसे मिला अमिताभ और धर्मेंद्र का अचूक साथ। जया बच्चन और हेमा मालिनी के परस्पर विरोधी किरदारों का लाजवाब अभिनय कहानी के माफिक उम्दा संगीत और आरडी बर्मन के गीतों में और कहीं नजाकत भरे दृश्यों में माउथऑर्गन का लाजवाब इस्तेमाल उस पर हेलन का "मेहबूबा मेहबूबा" ऐसी तमाम खासियतें रहीं।

मुख्य किरदारों के साथ "साँबा", "कालिया" इन डाकुओं के किरदारों में मॅकमोहन और विजू खोटे की भी अलहदा पहचान कायम हुई। वहीं छोटे अहमद (सचिन) की डाकुओं द्वारा हत्या के करुण दृश्य में इमाम (एके हंगल) का भावपूर्ण अभिनय और पार्श्व में नमाज की अजान के सुर गमगीन माहौल की पेशकश का चरम बिंदु रहे।

बसंती को शादी के लिए राजी करते वीरू का "सुसाइड नोट", जय के जेब में दो अलहदा सिक्के, राधा की नजाकत भरी खामोशी, वहीं ठाकुर के हाथ काटने का दर्दनाक दृश्य, जेलर असरानी, केश्टो मुखर्जी और जगदीप के व्यंग्य ऐसे तमाम अलहदा रंगों से सजे "शोले" ने दर्शकों के दिल पर असर नहीं किया होता तो ही आश्चर्य था।

फिल्म में गब्बर के मशहूर किरदार के लिए पहले डैनी डेग्जोंप्पा को अहमियत दी गई थी। वहीं वीरू का किरदार संजीव कुमार तो जेलर को धर्मेंद्र निभाने वाले थे। लेकिन कहानी में वीरू के बसंती से प्रेम प्रसंगों पर नजर पड़ते ही धर्मेंद्र ने वीरू के किरदार को हरी झंडी दिखाई यह चर्चा उन दिनों रही।

"कितना इनाम रक्खे हैं सरकार हम पर?" गब्बर के इस सवाल का जवाब देने साँबा का किरदार ऐन वक्त पर शामिल किया गया। रेल नकबजनी दृश्यों की शूटिंग पूरे सात हफ्ते चली। और "कितने आदमी थे?" डायलॉग 40 रिटेक के बाद शूट हुआ।

कई तरह से खासियतों का रिकॉर्ड कायम करने वाले "शोले" ने टिकट खिड़की पर भी कामयाबी का इतिहास रचा। यह सुनकर तो आज भी कइयों को विश्वास नहीं होगा कि "शोले" प्रदर्शन के पहले कुछ दिनों तक नहीं चली थी।

arvind
07-02-2011, 05:22 PM
फिल्म शोले के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि फिल्म इतनी जबरदस्त हिट रहा है कि 2005 मे इसे "Best Film of 50 year" का पुरस्कार दिया गया, परंतु इस पुरस्कार को छोड़ कर कोई अन्य पुरस्कार इस फिल्म को कभी नहीं मिला। शायद यह फिल्म पुरस्कार कि सीमा मे आता ही नहीं है।

ndhebar
07-02-2011, 07:33 PM
फिल्म शोले के साथ सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि फिल्म इतनी जबरदस्त हिट रहा है कि 2005 मे इसे "best film of 50 year" का पुरस्कार दिया गया, परंतु इस पुरस्कार को छोड़ कर कोई अन्य पुरस्कार इस फिल्म को कभी नहीं मिला। शायद यह फिल्म पुरस्कार कि सीमा मे आता ही नहीं है।
फिल्म को बेस्ट एडिटिंग के लिए अवार्ड मिला था

arvind
19-02-2011, 02:24 PM
जैसा कि आप जानते है कि शोले जब रिलीज हुई, तब इसे बहुत ही ठंडा रेस्पोंस मिला था। इसपर फिल्म के निर्देशक ने सलीम-जावेद से कहा की इसका क्लाइमैक्स चेंज कर देते है और जय (अमिताभ बच्चन) को जिंदा रखते है, पर लेखक जोड़ी ने साफ मना कर दिया। फिर तो बिना किसी परिवर्तन के फिल्म ने जो इतिहास रचा, इसे पूरी दुनिया ने देखा।

A-TO-Z
19-02-2011, 03:54 PM
इस फिल्म की सबसे महत्त्वपूर्ण बात की पूरी फिल्म में मेक मोहन द्वारा एक ही डायलोग बोला गया था और वो भी सुपर हिट हुआ !

A-TO-Z
19-02-2011, 04:00 PM
फिल्म शोले के कुछ यादगार संवाद:


कितने आदमी थे?
वो दो थे, और तुम तीन । फिर भी खाली हाथ लौट आये।
कितना इनाम रखे है, सरकार हम पर।
यहाँ से पचास पचास गाँवो में, जब बच्चा नहीं सोता हैं, तो माँ कहती हैं - सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जायेगा।
बहुत नाइंसाफी हैं।
अब तेरा क्या होगा कालिया?
ये हाथ नहीं फाँसी का फंदा हैं।
ये हाथ हमको दे दे , ठाकुर।
तेरे लिए तो मेरे पैर ही काफी हैं।
तेरा नाम क्या है, बसंती?
बसंती, इन कुत्तो के सामने मत नाचना।
आधे दाये जाओ, आधे बाये , बाकी मेरे पीछे आओ।
हम अंग्र्जों के जमाने के जेलर हैं।
इतना सन्नाटा क्यों है भाई?


सबसे हिट डायलोग :-
जो डर गया समझो मर गया !

sagar -
21-02-2011, 06:09 PM
फिल्म शोले के कुछ यादगार संवाद:


कितने आदमी थे?
वो दो थे, और तुम तीन । फिर भी खाली हाथ लौट आये।
कितना इनाम रखे है, सरकार हम पर।
यहाँ से पचास पचास गाँवो में, जब बच्चा नहीं सोता हैं, तो माँ कहती हैं - सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जायेगा।
बहुत नाइंसाफी हैं।
अब तेरा क्या होगा कालिया?
ये हाथ नहीं फाँसी का फंदा हैं।
ये हाथ हमको दे दे , ठाकुर।
तेरे लिए तो मेरे पैर ही काफी हैं।
तेरा नाम क्या है, बसंती?
बसंती, इन कुत्तो के सामने मत नाचना।
आधे दाये जाओ, आधे बाये , बाकी मेरे पीछे आओ।
हम अंग्र्जों के जमाने के जेलर हैं।
इतना सन्नाटा क्यों है भाई?


बहुत ही यादगार डायलोग्स :bravo: