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View Full Version : अपूर्ण


ndhebar
27-02-2011, 10:57 AM
किसी कोने में

ऐसा नहीं की अब सब कुछ बदल गया
पर हाँ हमने खुद को जरुर बदल डाला है

कुछ हासिल नहीं होता छटपटाने से
सो खुद से ही खुद को संभाला है

ऐसा नहीं की अब आग बुझ चुकी है
वो तो आज भी सुलगती है किसी कोने में

हाथ से खोजते थे उसमे जाने क्या खोया हुआ
और ये हाथ अक्सर तब जल जाता था

बुझाने को फूंकते थे जब भी हम उसको
चेहरा एक बार फिर से झुलस जाता था

अब बस यही आदत बदल डाली है तबसे
जाते ही नहीं अब कभी उस कोने में

पर सुबह अपनी आँखे नम मिलने पे समझ आता है
आज क्या ख्वाब देखा है हमने सोने में ?

Sikandar_Khan
27-02-2011, 11:32 AM
बहुत ही सुन्दर
मजा आ गया भाई

ndhebar
28-02-2011, 08:59 AM
माँ

कभी-कभी खुद अपनी तरक्की से भी हो जाता नाराज हूँ मैं
इसी भाग दौड़ में खुद अपनों से दूर हो गया आज हूँ मैं
जिस आंचल के साये में रह के किसी लायक बन पाया
उस माँ से ही मिलने को चन्द छुट्टी का मोहताज हूँ मैं

ndhebar
01-03-2011, 02:27 PM
हालात

हालातो ने सुनहरे ख्वाब खोने ही नहीं दिया,

उन इश्क यादों ने फिर कभी सोने ही नहीं दिया,

उम्र गुजार देते उनके साथ बिताये कुछ लम्हों के सहारे,

पर किस्मत ने हमें साथ जी भर के रोने भी नहीं दिया|

ndhebar
03-03-2011, 06:12 PM
क्यों सोचता हूँ मै

हर कोई हर किसी के लिये इतना खास नहीं होता,
हर कोई हर किसी के इतना पास नहीं होता,
क्यों सोचता हूँ मै तुझे हर पल, हर वक्त,
क्या इससे भी तुझे कुछ एहसास नहीं होता |

खैऱ एहसास को ना होने दो,
मेरे दिल को तो अपने पास रहने दो,
चाहे तोड दो अब तो ये तुम्हारा है,
पर टुकडो को तो अपने साथ रहने दो|

ndhebar
04-03-2011, 11:39 AM
गर आँसू तेरी आँख का होता

गर आँसू तेरी आँख का होता,
गिरता गाल को चुमते हुए,
फिर गिर के तेरे होठों पर,
फना हो जाता वहीं हॅसते हुए,
पर
जो तुम होती मेरी आँख का आसु,
भले गुजरती उम्र गम सह-सह कर,
तुझे खो ना दूं कही, इस डर से
मै ना रोता ज़िदगी भर|

ndhebar
06-03-2011, 09:17 AM
कोशिश कर के हार गए

दिल में दर्द दबाने की
आँखों में नमी छुपाने की
हर कोशिश कर के हार गए
हम तेरी याद भूलाने की

तेरी चाहत में हमने
हर दर्द को समझा थोड़ा था
उस रोज बिखर गए टूट के हम
जब तुमने भी भी मुंह मोडा था
रोते रहे थे रात भर
बाकी फिर भी समंदर था
जाने कितना दर्द अभी भी
इस सीने के अंदर था

फिर आदत हो गयी दिल को
वक़्त गम के साथ बिताने की
हर कोशिश कर के हार गए
हम तेरी याद भूलाने की

ndhebar
09-03-2011, 08:35 AM
जीने का बहाना

तुमसे मिल के खुशी का कोई ठिकाना नहीं होता,

तेरे दिल के सिवा मेरा कहीं आशियानां नहीं होता,

ये दुबारा मिलना कि उम्मीद है जो मुझे जिन्दा रखती है,

वरना तुझसे बिछड के जीने का कोई बहाना नहीं होता|

Bond007
09-03-2011, 04:51 PM
ढेबर जी! बहुत अच्छी रचनाएं हैं| :)
:bravo:

sagar -
12-03-2011, 09:27 AM
गर आँसू तेरी आँख का होता

गर आँसू तेरी आँख का होता,
गिरता गाल को चुमते हुए,
फिर गिर के तेरे होठों पर,
फना हो जाता वहीं हॅसते हुए,
पर
जो तुम होती मेरी आँख का आसु,
भले गुजरती उम्र गम सह-सह कर,
तुझे खो ना दूं कही, इस डर से
मै ना रोता ज़िदगी भर|

http://content.sweetim.com/sim/cpie/emoticons/000203FA.gif (http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=10)

जारी रखो भाई





(http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=12)

ndhebar
12-03-2011, 05:32 PM
जरुरत किसको नहीं होती

एतबार की जरुरत किसको नहीं होती,

एक यार की जरुरत किसको नहीं होती,

मिलता नहीं कोइ हमसफर साथ निभाने के लिये,

वरना प्यार की जरुरत किसको नहीं होती|

sagar -
12-03-2011, 05:43 PM
बहुत खूब निशांत भाई http://content.sweetim.com/sim/cpie/emoticons/00020496.gif (http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=10)http://content.sweetim.com/sim/cpie/emoticons/0002049E.gif (http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=10)http://content.sweetim.com/sim/cpie/emoticons/0002049E.gif (http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=10)http://content.sweetim.com/sim/cpie/emoticons/00020493.gif (http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=10) http://content.sweetim.com/sim/cpie/emoticons/000204A6.gif (http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=10)http://content.sweetim.com/sim/cpie/emoticons/0002049E.gif (http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=10)http://content.sweetim.com/sim/cpie/emoticons/000204A1.gif (http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=10)http://content.sweetim.com/sim/cpie/emoticons/0002049A.gif (http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=10)









(http://www.sweetim.com/s.asp?im=gen&lpver=3&ref=12)

Kumar Anil
12-03-2011, 08:10 PM
गर आँसू तेरी आँख का होता

गर आँसू तेरी आँख का होता,
गिरता गाल को चुमते हुए,
फिर गिर के तेरे होठों पर,
फना हो जाता वहीं हॅसते हुए,
पर
जो तुम होती मेरी आँख का आसु,
भले गुजरती उम्र गम सह-सह कर,
तुझे खो ना दूं कही, इस डर से
मै ना रोता ज़िदगी भर|

बहुत ख़ूबसूरत ।

Bholu
13-03-2011, 04:36 AM
नफरत को मोहबत मे बदल दे

ऐ खुदा नफरत को मोहबत मे बदल दे मुझे तकलीफ दे मगर मेरे प्यार के आयाम को शक्ल दे|

ndhebar
16-03-2011, 12:01 PM
खुदा ये कैसा फैसला तेरा

खुदा ये कैसा फैसला तेरा,
क्या मेरी मोहब्बत थी झुठी,
उनको उनका प्यार मिला,
मुझसे किस्मत क्यों रूठी,
वो नही मिले क्यों मुझको?
इस पर जवाब खुदा का आया,
तुने सच्चे दिल से उसकी खुशीयाँ माँगी,
तभी तो उसे उसका प्यार मिल पाया.

pankaj bedrdi
16-03-2011, 02:29 PM
वाह वाह ......

Bholu
16-03-2011, 04:07 PM
करिशमा

मागी थी मौत तो जिन्दगी दे दी
हमे अन्धेरो मै भी रोशनी दे दी
मैने पुछा खुदा से की क्या नायाब चीज है आपके पास तो खुदा ने हमको आपकी दोस्ती दे दी|

ndhebar
16-03-2011, 04:56 PM
करिशमा

मागी थी मौत तो जिन्दगी दे दी
हमे अन्धेरो मै भी रोशनी दे दी
मैने पुछा खुदा से की क्या नायाब चीज है आपके पास तो खुदा ने हमको आपकी दोस्ती दे दी|

बहुत अच्छे भोलू जी
बस भाषा पर थोडा और ध्यान देना होगा
जैसे करिशमा की जगह "करिश्मा"
मागी की जगह "मांगी"
हमे अन्धेरो मै की जगह "हमें अंधेरो में"
क्योंकि कभी कभी एक छोटी सी गलती भी अर्थ का अनर्थ कर देती है
पर "गलती भी तो उसी से होती है जो कोशिश करता है"
इसलिए कोशिश करते रहिएगा


धन्यवाद

Kalyan Das
16-03-2011, 07:08 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=9482&stc=1&d=1300284494गर आँसू तेरी आँख का होता

गर आँसू तेरी आँख का होता,
गिरता गाल को चुमते हुए,
फिर गिर के तेरे होठों पर,
फना हो जाता वहीं हॅसते हुए,
पर
जो तुम होती मेरी आँख का आसु,
भले गुजरती उम्र गम सह-सह कर,
तुझे खो ना दूं कही, इस डर से
मै ना रोता ज़िदगी भर|

ndhebar
26-03-2011, 06:43 PM
गर मेरे इश्क का पता तेरी यादों को लग जाये

दर्द कितना हो पर आंखे आंसूओ को रोने नहीं देतीं

मेरी बेखुदी मेरे इश्क की खबर तेरी यादों को भी होने नहीं देतीं

गर मेरे इश्क का पता तेरी यादों को लग जाये तो परेशान हो जाये तू

क्युकी फिर ये हिचकियाँ रात भर तुझे सोने नहीं देतीं

ndhebar
01-04-2011, 09:26 PM
कोई अच्छा काम करेंगे

वो मेरा ही काम करेंगे
जब मुझको बदनाम करेंगे


अपने ऐब छुपाने को वो
मेरे क़िस्से आम करेंगे


क्यों अपने सर तोहमत लूं मैं
वो होगा जो राम करेंगे


दीवारों पर खून छिड़क कर
हाक़िम अपना नाम करेंगे


हैं जिनके किरदार अधूरे
दूने अपने दाम करेंगे


अपनी नींदें पूरी करके
मेरी नींद हराम करेंगे


जिस दिन मेरी प्यास मरेगी
मेरे हवाले जाम करेंगे


कल कर लेंगे कल कर लेंगे
यूँ हम उम्र तमाम करेंगे


सोच-सोच कर उम्र बिता दी
कोई अच्छा काम करेंगे

कोई अच्छा काम करेंगे
खुदको फिर बदनाम करेंगे !!

ndhebar
21-04-2011, 06:20 AM
जिंदगी और मौत

जब थे जिंदा तो नहीं था हमारे लिए,
किसी के भी पास दो पल का वक़्त,
और आज ये जनाजे में भीड़ बढती जा रही है,
दो कदम भी कोई साथ ना चला,
और आज चार कांधे उठाये जा रहे हँ,
जिंदगी भर ढूंढ़ते रहे अपनों में अपनों को,
और आज ये इतने अनजाने भी अपने हँ,
हंसकर बात करने का वक़्त नहीं था इनके पास,
और आज याद में हमारी सब बेसुध हो रहे हँ,
ए मौत आज दिल से तुझको है हमारा सलाम,
हम तो उम्र भर रोते रहे इस जिंदगी के लिए,
जिंदगी से तो ये मौत ही भली लगती है आज,
जो अपने हँ बस हमारे ही पास बस पास.

ndhebar
21-04-2011, 07:30 AM
जिंदगी और मौत

जिंदगी का क्या भरोसा कब तलक चल पायेगी
मौत का पक्का है वादा एक दिन वो आएगी

सांस के तारों के सुर जिस दिन कहीं खो जायेंगे
गोद में रख सर , सिरहाने मौत गुनगुनायेगी

रात भर जो जल चुका उस दीप सी वीरान आँखें
जिंदगी के पार कोई लौ सी टिमटिमाएगी

शब्द अंतिम कह चुके होठों पे इक मुस्कान होगी
इक वही मुस्कान सब कुछ, अनकही कह जाएगी

स्पर्श की सीमा में सीमित , प्रेम जब बंधन न होगा
आत्मा ब्रह्माण्ड में घुल , प्रेममय हो जाएगी

Ranveer
21-04-2011, 06:19 PM
खुदा ये कैसा फैसला तेरा

खुदा ये कैसा फैसला तेरा,
क्या मेरी मोहब्बत थी झुठी,
उनको उनका प्यार मिला,
मुझसे किस्मत क्यों रूठी,
वो नही मिले क्यों मुझको?
इस पर जवाब खुदा का आया,
तुने सच्चे दिल से उसकी खुशीयाँ माँगी,
तभी तो उसे उसका प्यार मिल पाया.

रूलाने का पूरा इंतज़ाम किया है आपने ........................

ndhebar
24-04-2011, 10:03 AM
खुशनसीब …… या बदनसीब….



वो अक्सर मेरे पास मुस्कुराते हुए आता
और बड़े गुमान से बताता
यार !
मुझे तो कभी हुआ ही नहीं
‘ये प्यार’ ….
एक दिन मुझसे भी जवाब निकल ही गया
जाने तुझे क्या कहना चाहिए

खुशनसीब ……
की तुझे कभी
गुजरना नहीं पड़ा
दर्द के उस सैलाब से
जो कई बार दे जाता है उम्र भर की उदासी

या
बदनसीब….
की तुझे कभी
एहसास ही नहीं हुआ
दुनिया की उस सबसे खुबसूरत चीज़ का
जिसके लिए लोग
जानते हुए भी
हर दर्द को उठाने के लिए तैयार हो जाते हैं ………
सिर्फ उस एहसास के लिए …
वही एहसास …
जो इन्सान को…. इन्सान बनाता है

ndhebar
25-04-2011, 07:54 PM
किसी ने अल्लाह कह के मारा किसी ने राम कह के मारा


किसी ने अल्लाह कह के मारा किसी ने राम कह के मारा
जो बच गए इससे उन्हें सद्दाम कह के मारा
जो आये थे घर छोड़ शहर दो रोटी कमाने को
“क्यों छिनने आये हो हमारा काम” कह के मारा
कहते हैं जिससे बड़ी नहीं कोई और इबादत दुनिया में
हाँ इसी इश्क करने की खातिर कितनो को सरेआम कर के मारा

ndhebar
03-05-2011, 07:18 AM
हाँ,.. अब हम खामोश हैं

इस कदर चाहा है तुझ कि खुद प्यार से महरूम हो गये,
तुम्हारे पास आने के लिये हम खुद से दूर हो गये,
पूछते हो कि आज हम खामोश क्यों हैं कुछ बोलते क्यों नहीं ?
क्या करें, तेरी ठोकरों से टूट के हम चूर-चूर हो गये|

ndhebar
03-05-2011, 07:27 AM
खोना...........
कभी अपनी धुन में खोया रहा
और कभी तुम्हारी यादों में
कभी तुम्हे बातों में खोया रहा
तो कभी अधूरे ख्वाबों में
शायद एक ही चीज मुझे आती है
.........खोना.......
पहले खुद को
और फिर तुम्हे
और फिर शायद जीने की वजह भी
जनता हूँ अब कुछ भी नहीं है मेरे पास
...................................
पर जाने क्यों लगता है
मैं अभी भी....
शायद अभी भी....
कुछ... खो रहा हूँ......

ndhebar
06-05-2011, 11:59 AM
''हसरत''



हमने मांगी थी अक्सर दुआए बहुत,

हसरतो को मगर,उम्र दे न सके !

तेरे दामन को भर देते फूलों से हम,
कांटो को पर अलग उनसे कर न सके!
बेखुदी में जिए तो क्या गम है,
कभी ख़ुद को जुदा तुमसे कर न सके!
दर्द की सीप में बंद मोती मिले,
कतरे उन अश्को के जो गिर न सके!!

ndhebar
18-05-2011, 09:16 PM
घृणा…!
-----------
तुम तो नहीं,
तुम्हारी वह बात,
आज भी रह-रह,
खूब याद आती है,
और मजबूर कर देती है,
सोचने के लिए,
कि…
तुम वास्तव में पक्की थी,
अपनी कथनी और करनी की.

तुम्हीं ने ही तो सिखाया था मुझे,
घृणा करना,
खोखलेपन से,
और मैं तुम्हारी हाँ में हाँ मिलाता ,
तुम्हारी हर बात मानता,
अपना सब कुछ तुम्हें सौंपता,
खुद ही तो खोखला हुआ था.

गलती तो मेरी ही थी ना !
तुम तो पक्की निकली,
अपनी बात की .

prashant
19-05-2011, 07:11 AM
अच्छी कविता डाली है/

Bholu
19-05-2011, 07:16 AM
अच्छी कविता डाली है/

आप भी कुछ डाल दो

prashant
19-05-2011, 12:38 PM
आप भी कुछ डाल दो

मैं डालूँगा तो तेरे साथ सभी का भेजा फ्राय हो जायेगा/
इसीलिए यह काम निशांत जी पर छोड़ देते हैं/

ndhebar
25-05-2011, 09:39 PM
http://apurn.files.wordpress.com/2010/10/untitled-3.jpg?w=369&h=375 (http://apurn.files.wordpress.com/2010/10/untitled-3.jpg) (http://apurn.wordpress.com/2010/10/14/khwahis/)
ख्वाहिश (http://apurn.wordpress.com/2010/10/14/khwahis/)

बेसबब जूझना थकना और फिर से खुद से लड़ जाना
टूट जाने की हद तक चुप-चाप हर गम को सह जाना
तब होती है उसकी बाँहों में बिखर जाने की वो ज़िन्दगी सी तलब
पर आखिरी ख्वाहिश की तरह उस ख्वाहिश का भी आखिर तक रह जाना

ndhebar
27-05-2011, 11:47 PM
कुछ तो पिला दे


रे साकी बहुत ही प्यासा हूँ बैठा
कुछ तो शरम कर, कुछ तो पिला दे

तेरे करम से ये गमगीन सारे
ये मिट्टी के प्याले, में अमृत गिरा दे.

तेरे ही पहलू में मर जाऊँगा मैं
पर उसके पहले, इक पल जिला दे.

ये रात की सुर्खी, दिल को जलाये
जरा मय तो बरसा, ये आतिश बुझा दे.

वो काज़ी है कहता कि दोज़ख यहाँ है
उसे क्या पता? मय, ये जन्नत हिला दे.

मेरी तन्हाइयों का भी ये कहना
कि अच्छा उन्हें भी लगे पीते रहना

उनको भी अपने सनम से मिला दे
कुछ तो शरम कर, कुछ तो पिला दे

dipu
28-05-2011, 06:21 PM
बहुत ही बढिया तारीफ के काबिल सूत्र

ndhebar
30-05-2011, 06:48 PM
दर्द हद से बढ़ गया

ख्वाबों और ख़्यालों का चमन सारा जल गया,
ज़िंदगी का नशा मेरा धुआ बन कर उड़ गया...
जाने कैसे जी रहे है, क्या तलाश रहे है हम,
आँसू पलकों पर मेरी ख़ुशियों से उलझ गया...
सौ सदियों के जैसे लंबी लगती है ये ग़म की रात,
कतरा कतरा मेरी ज़िंदगी का इस से आकर जुड़ गया...
मौत दस्तक दे मुझे तू, अब अपनी पनाह दे दे,
ख़तम कर ये सिलसिला, अब दर्द हद से बढ़ गया...

ndhebar
04-06-2011, 12:04 AM
कहाँ जाऊं?

कहाँ जाऊं, किस ओर जाऊं,
हर तरह है घना अँधेरा
नग्न होती इंसानियत है
हर वृक्ष पर है सर्पों का बसेरा
कहीं सत्ता-लोलुपों की टोली है
कहीं तार-तार हो रही चोली है
कहाँ जाऊं, किस ओर जाऊं
यहाँ हर शख्स मुझसे अंजान है
घने जंगलों में तलाशता
मुझे कलयुगी शैतान है.
मैं छुप रहा, अपनों से बचकर चल रहा
कल की तलाश है मुझे,
मैं कल से आगे चल रहा,
आह, द्वेष की आग में राष्ट्र मेरा जल रहा.
कहाँ जाऊं, किस ओर जाऊं
घने कोहरे से राह दिखती नहीं
काले बादलों के बीच गुम
मेरे बचने की अब उम्मीद नहीं
स्वर्ण-स्वप्न में बचपन बीता
यौवन ने देखा व्यभिचार
प्रोढ़ कभी मैं हुआ नहीं
मेरी मौत ने देखा अत्याचार.
कहाँ जाऊं, किस ओर जाऊं
मेरी सांसें अब रुकने को है,
कलयुगी इन रावणों के समक्ष
आज सत्य झुकने को है.
अपने शब्दों को तुम्हें दिए जा रहा
आह, करुण क्रंदन, मैं जीवन से पा रहा,
भस्म हो रहा हूँ मैं, मेरी आत्मा ने छोड़ा साथ,
मेरे इस मिटटी के पुतले ने, मृत्यु से मिलाया हाथ.
कहाँ जाऊं, किस ओर जाऊं

ndhebar
08-06-2011, 10:39 PM
जागो

क्यों बने हुए हो दीन-हीन,
क्यों मायूसी तुम पे छाई,
क्यों देख के यूँ डर जाते हो,
ख़ुद अपनी ही परछाई|

क्या भूल गए कि कौन हो तुम ,
या भूले अपने अंतर को,
तुम उस पूर्वज के वंसज हो,
जो पी गए सारे समन्दर को|

जीवन में दुःख को सहे बिना,
कौन बड़ा हैं बन पाया,
बिन अग्नि में तपे बिना,
क्या सोना कभी चमक पाया|

जग ने कब उनको पूछा है,
जो तकलीफें गिनते रहते हैं,
होते हैं फूलों में काटें भी,
पर वो काटें ही चुनते रहते हैं|

तुम राणा-शिवा के वंसज हो,
जो माने कभी भी हार नहीं,
वीरगति को प्राप्त हुए,
पर छोड़ी कभी तलवार नहीं|

अब तो छोडो ये मायूसी,
अब तो होश में आओ तुम,
पाने के लिए अपना लक्ष्य,
अब तो जान लगाओ तुम|

आज दिखा दो दुनिया को,
साहस की तुम में कमी नहीं,
हार रहे थे अब तक लेकिन,
अभी लड़ाई थमी नहीं|

हर एक लड़ाई जीतोगे,
आज ही ये संकल्प करो,
अपने न सही औरो के लिए,
संसार का काया-कल्प करो|

अपने पे अगर आजाओ तो,
आंधी में दीप जल जायेंगे,
मन में हो सच्ची लगन अगर,
पत्थर पे फूल खिल जायेंगे|
तो,
क्यों बने हुए हो दीन हीन,
क्यों छाई तुम पे ये मायूसी,
वीर को कैसे सुहा सकती है,
कायर सी ये खामोशी,

ndhebar
19-06-2011, 06:40 PM
तन्हाईयाँ

ढूंढ़ता था कि कौन मेरा साथ निभायेगा साये की तरह,
सोचता था कि कौन मेरे जज्बातों को समझेगा यहाँ,
पर जब खयाल आया उनका जिन्होने हमे कभी अकेला नही छोडा,
तो लगा इन " तन्हाइयों " से अच्छा साथी मुझे मिलेगा कहाँ

ndhebar
23-06-2011, 12:25 AM
क्यों मयूरा सबके सम्मुख रो रहा

अब हकीकत आ गयी है सामने,
जब खुली लोई सभी के सामने .

दाग बदनामी का फ़िर तोहफ़ा दिया,
हम से जुड़ कर इस तुम्हारे नाम ने .

क्यों खिलौना बीच रस्ते में रुका,
कम भरीं फ़िर चाभियाँ क्या राम ने .

क्यों मयूरा सबके सम्मुख रो रहा,
दिख चुके क्या पैर सबके सामने .

अपने कर्मों से कभी वह मर चुका,
बन खडा हैं प्रेत सबके सामने .

खोखले वादों का झोला फ़ट गया,
उफ़ ,फ़ज़ीहत कर दई इस झाम ने .

GAURAV SAHU
07-07-2011, 02:38 AM
" dar lagta hai "

sapna pura hone se dar lagta hai
ab to rone se bhi dar lagta hai


jivan ka aarth na samjh aaya mujhe
ab to khud ke hone se bhi dar lagta hai


jhund se bhi paresha hota hu
ab to ek chote se kone se bhi dar lagta hai


samandar ki lahro ko dekhta hu
ab to kinare se bhi dar lkagta hai


waqt bhi bechain karta hai
ab to sone se bhi dar lkagta hai


sapna pura hone se dar lagta hai
ab to rone se bhi dar lagta hai

GAURAV SAHU
07-07-2011, 02:44 AM
meri aankho mai koi sapna to nahi hai'
jo aaj dekha khawab apna to nahi hai'

aankhe dekhti hai kushi jinki khatir
wo meri aankho ka jhukna to nahi hai'

lagta hai simat rahi hai jindgi meri
wo meri saanso ka rukna to nahi hai'

juba khamosh hui ja rahi hai
wo meri aatma ka tapna to nahi hai'

jo dikhai dete hai aansu ke moti mujko
kahi wo mere apno ke aasu ka bahna to nahi hai'

meri aankho mai koi sapna to nahi hai'
jo aaj dekha khawab apna to nahi hai'

ndhebar
09-07-2011, 04:13 PM
मेरा मुकद्दर

कोई आँसू बहाता है, कोई खुशियाँ मनाता है
ये सारा खेल उसका है, वही सब को नचाता है।
बहुत से ख़्वाब लेकर के, वो आया इस शहर में था
मगर दो जून की रोटी, बमुश्किल ही जुटाता है।
घड़ी संकट की हो या फिर कोई मुश्किल बला भी हो
ये मन भी खूब है, रह रह के, उम्मीदें बँधाता है।
मेरी दुनिया में है कुछ इस तरह से उसका आना भी
घटा सावन की या खुशबू का झोंका जैसे आता है।
बहे कोई हवा पर उसने जो सीखा बुज़ुर्गों से
उन्हीं रस्मों रिवाजों, को अभी तक वो निभाता है।
किसी को ताज मिलता है, किसी को मौत मिलती है
ये देखें, प्यार में, मेरा मुकद्दर क्या दिखाता है।

ndhebar
10-08-2011, 01:11 PM
कोई खास

हर किसी को किसी की तलाश है,
हर कोई ढुंढता अपने लिए कोई खास है,
साफ नजर आ जायेगा जरा गौर से देखो,
शायद वो कहीं तुम्हारे ही आस-पास है |

ndhebar
18-09-2011, 01:11 PM
‘काश’

‘काश’ मिली होती आजादी हमें ………….,
विषाक्त सामाजिक कुप्रथा से ……..,
राजनीतिक कुरीतियों से …………..
धर्म के मक्कार ठेकेदारों से …………..,
भ्रूण हत्याओं के ,हत्यारों से ……..,
मासूम के बलात्कारों से ……,
भूख ,गरीबी ,महंगाई से ………,
आतंकवाद के आतंक से ………..,
तो शायद हम आज आजाद होतें ………….
वरना गुलाम पहले भी थे …
आज भी हैं ……………….,
फ़र्क इतना हैं के पहले …
फिरंगियों ने कोड़े बरसाए……..,
आज अपनों ने खंजर भोंके हैं ………….
लहू तो कल भी बहा था ……………..,
लहूलुहान तो आज भी हम हैं ……….,
फिर कैसे कहें हम आजाद हैं ……………,
काश मिली होती आजादी हमें …………,
गर्व से हम भी कहते हम आजाद हैं ……………

ndhebar
09-10-2011, 01:30 PM
दर्द


हां, देखा है मैंने दर्द..
जब कोई अचानक पास आकर
हो जाता है दूर
तब होता है दर्द

जब
कोई बहुत खास होने का दावा कर
नहीं रह जाता है आम
तब होता है दर्द

जब
किसी के बहुत पास होकर भी
सताता है दूर होने का गम
तब होता है दर्द

ndhebar
16-10-2011, 10:58 AM
मोहब्बत क्या है....?

मोहब्बत क्या है ये अब तक मै जान ना पाया
कही दीवानगी कभी पागलपन है बतलाया

कोई कहता मोहब्बत नाम हर दम साथ रहने का
जो बाँटे हर खुशी मिलके हर गम साथ सहने का
चले हर राह तेरे साथ जैसे हो तेरा साया

मोहब्बत क्या लैला और मजनू की कहानी मे
या मुमताज की यादों भरी इस निशानी मे
के है जो हीर और रांझे के किस्सों मे पाया

मोहब्बत नाम अपने प्यार पर सब कुछ लुटाने का
ना हो अफ़सोस खातिर यार के सब कुछ गवाने का
रहे वो दूर जितना और मन के पास ही आया

ये वो अहसास जो रिश्तों मे बंध कर रह नही सकता
करे महसूस ना कोई ख़ुद है क्या कह नही सकता
समझ आया न बिन जाने ज़माने भर ने समझाया

ndhebar
14-11-2011, 08:47 PM
शुक्रिया

चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया
पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया

जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए
ऐ नींद आज तेरे न आने का शुक्रिया

सूखा पुराना जख्म नए को जगह मिली
स्वागत नए का और पुराने का शुक्रिया

आती न तुम तो क्यों मैं बनाता ये सीढ़ियाँ
दीवारों, मेरी राह में आने का शुक्रिया

आँसू-सा माँ की गोद में आकर सिमट गया
नजरों से अपनी मुझको गिराने का शुक्रिया

अब यह हुआ कि दुनिया ही लगती है मुझको घर
यूँ मेरे घर में आग लगाने का शुक्रिया

गम मिलते हैं तो और निखरती है शायरी
यह बात है तो सारे जमाने का शुक्रिया

अब मुझको आ गए हैं मनाने के सब हुनर
यूँ मुझसे `’ रूठ के जाने का शुक्रिया

ndhebar
06-01-2012, 12:14 PM
छलक जाते है आंसू

छलक जाते है आंसू
मेरी आंखों से
जब देखता हूं तुमको
बंद आंखों से
दिल होता है बैचेन
जब सोचता हूं
तुम्हारे बारे में
काश!
न देखा होता तुमको
न जाना होता तुमको
न आते दिल के करीब
न होता प्यार तुमसे
न होते जुदा हम
तब होती
एक ही बात
तुम भी रहती खुश
हम भी न रोते
और
न छलकते आंसू
मेरी आंखों से
अब
आती हो तुम यादों में
और कर जाती हो
महफिल में तन्हा मुझे
और
छलक जाते है आंसू
मेरी आंखों से.

ndhebar
20-01-2012, 05:37 PM
कहानी दीवार की


एक परत सी उखड गयी है दीवार से,
अभी बरसी बारिश की बौछार से |
खामोश सी खड़ी है ऐसे,
शिकवा नहीं कोई वक़्त की इस मार से |


बेरंग सी दीवार पर ना नज़र पड़ी कभी प्यार की,
रंग भर के जिंदा कर दे आस है एक फनकार की,
मुमताज़ इसको कर देगा,वो मुन्तज़र अब हाथ से ,
एक परत सी उखड गयी है दीवार से |


ज़ख्म -ए- रुख में ज़िन्दगी ढूंढ ली फनकार ने,
हस्ती अपनी हासिल ही कर ली फिर से इस बेकार ने,
जज्बा हो गर जीने का तो कुछ होता नहीं तलवार से,
एक परत सी उखड़ गयी है दीवार से |


कहानी नहीं दीवार की, ये जिंदगी का फलसफा है,
मिलेगी कैसे राहे मंज़िल कोई गर खुद से खफा है ,
ज़ख्म नहीं नेमत है तेरी कह दो परवरदीगार से,
बस , एक परत सी उखड गयी है दीवार से |

malethia
21-01-2012, 07:19 PM
जिन्दगी का सफ़र

जिन्दा थे तो किसी ने पास बिठाया नहीं,
अब खुद मेरे चारो और बैठे जा रहे है !
पहले कभी किसी ने मेरा हाल पूछा नहीं ,
अब बैठे सभी आंसू बहाए जा रहे है !
एक रुमाल भी भेंट नहीं किया किसी ने जब हम जिन्दा थे ,
अब शालें और कपडे ऊपर से ओढ़ाये जा रहे है !
सबको पता है की शालें और कपडे इसके काम के नहीं है ,
मगर भी बेचारे दुनियादारी निभाए जा रहे है !
कभी किसी ने एक वक्त का खाना तक नहीं खिलाया ,
अब देशी घी मुंह में उड़ेले जा रहे है !
जिन्दगी में एक कदम भी साथ कोई चल न सका ,
अब फूलों से सजाये कंधे पर उठाये जा रहे है !

ndhebar
19-10-2012, 07:24 PM
तुम जिंदगी मे आओ


तुम जिंदगी ना सही
दोस्त बनकर तो जिंदगी मे आओ।

तुम हँसी ना सही
मुस्कान बनकर तो जिंदगी मे आओ।

तुम हकीकत ना सही
ख्याल बनकर तो जिंदगी मे आओ।

तुम नज़र ना सही
याद बनकर तो जिंदगी मे आओ।

तुम दिल ना सही
धड़कन बनकर तो जिंदगी मे आओ।

तुम गज़ल ना सही
शायरी बनकर तो जिंदगी मे आओ।

तुम खुशियाँ ना सही
गम बनकर तो जिंदगी मे आओ।

तुम पास ना सही
एहसास बनकर तो जिंदगी मे आओ।

ndhebar
24-10-2012, 10:30 AM
श्वेत और श्याम

कहाँ गए वो रंग,
जो लाये थे हम और तुम,
चुन चुन कर,
इस झोली में .

तुमने भी तो नहीं चुराए हैं,
फीके-फीके जो लग रहे हो,
कुछ तो बताओ,
क्यों रह गए अब,
सिर्फ..
श्वेत और श्याम .

ndhebar
26-10-2012, 02:31 PM
मैं

मैं ख़ुद अपनी ही ख्वाहिश हूँ

मैं ख़ुद अपना ही मुंसिफ़ हूँ


मैं कश्ती हूँ , मैं दरिया हूँ
मैं ही अपना नजरिया हूँ
मैं जिन्दा हूँ तो मैं ही हूँ
जो मर जाऊँ तो मैं ही हूँ
विजेता हूँ तो मैं ही हूँ
पराजित भी मैं ख़ुद से हूँ
मैं मालिक हूँ, मसीहा हूँ
मेरा क़ातिल भी मैं ही हूँ |

ndhebar
02-11-2012, 01:05 PM
तुम मेरी कविता हो |

कभी सोचता हूँ
मैं नहीं लिखता तुमको,
तुम लिख देती हो
मुझे,
मेरे मन को,
इन हलचलों को
आकार देती हो,
वर्ना भटकती फिरती
जो कहीं,
शायद तुम मेरी हो
मैं तुम्हारा
और तुम्हारे बिन
मैं अपूर्ण|

rajnish manga
20-11-2012, 10:16 PM
बहुत सुन्दर कोशिश की है ढेबर जी आपने अपनी इन कविताओं के ज़रिये क्रियात्मक अभिव्यक्ति की. कई स्थान पर पीड़ा और टीस महसूस होती है. किसी शायर का यह शे’र याद आ रहा है:

जाती हुई मैय्यत देख के भी अल्लाह तुम उठ कर आ ना सके.
दो चार घड़ी तो दुश्मन भी तकलीफ़ गवारा करते हैं.

ndhebar
09-02-2014, 06:09 AM
फिसलते अर्थ

जन जन कैसे जी रहा है, उमस के वातावरण में
दुःस्वप्न में दिन बीतते रात बीतती जागरण में

है यदि बेशर्म आँखें, घूँघट व्यर्थ ही क्या करेगा
मानवता नग्न घूमती सौजन्यता के आवरण में

कपटयुग है घोर यह, हुये राम औ रावण एक हैं
लक्षमणों का ही हाथ रहता आज सीताहरण में

शब्द को पकड़ो यदि तो, सहसा अर्थ फिसल छूटते
सन्धि कम विग्रह अधिक आज क्यों व्याकरण में

छल-बल के माथे मुकुट है, सत्य की है माँग सूनी
क्यों कोयल गीत सीखती बैठ कौव्वों के चरण में

चिढ़ा रहे ये तुच्छ जुगनू, चाँदनी के चिर यौवन को
भगत बगुले हैं मेंह हड़पते हंस के छद्म आवरण में

rajnish manga
09-02-2014, 07:54 PM
फिसलते अर्थ

जन जन कैसे जी रहा है, उमस के वातावरण में
दुःस्वप्न में दिन बीतते रात बीतती जागरण में

है यदि बेशर्म आँखें, घूँघट व्यर्थ ही क्या करेगा
मानवता नग्न घूमती सौजन्यता के आवरण में

कपटयुग है घोर यह, हुये राम औ रावण एक हैं
लक्षमणों का ही हाथ रहता आज सीताहरण में

शब्द को पकड़ो यदि तो, सहसा अर्थ फिसल छूटते
सन्धि कम विग्रह अधिक आज क्यों व्याकरण में

छल-बल के माथे मुकुट है, सत्य की है माँग सूनी
क्यों कोयल गीत सीखती बैठ कौव्वों के चरण में

चिढ़ा रहे ये तुच्छ जुगनू, चाँदनी के चिर यौवन को
भगत बगुले हैं मेंह हड़पते हंस के छद्म आवरण में


लगभग सवा साल बाद एक अति सुन्दर ग़ज़ल पढने को मिली. बहुत बहुत धन्यवाद, निशांत जी. ग़ज़ल में भावों की अभिव्यक्ति के साथ साथ वर्तमान जीवन की विद्रूपता भी दर्शाई गयी है. कृपया सूत्र का क्रम जारी रखें.

ndhebar
11-02-2014, 01:27 AM
पिछली प्रविष्टि को सवा साल हो गए
वक्त इतनी जल्दी बीत जाता है कि पता ही नहीं चलता
आगे से सूत्र को निरंतरता देने की कोशिश करूँगा

pushpa soni
17-02-2014, 06:55 PM
ऐसा नहीं की अब सब कुछ बदल गया
पर हाँ हमने खुद को जरुर बदल डाला है............veryy nice lines

ndhebar
22-02-2014, 11:30 PM
मेरे सब्र का ना ले इम्तेहान, मेरी खामोशी को सदा ना दे!
जो तेरे बगैर मर भी ना सके, उसे जीने की दुआ तो ना दे!
तू अज़ीज़ दिल-ओ-नज़र से है, तू करीब रग-ओ-जान से है!
मेरे दिल-ओ-जान का फैसला, कहीं वक़्त और बढ़ा ना दे!
तुझे भूल के भी भुला ना सकूं, तुझे चाह के भी ना पा सकूँ!
मेरी हसरतों को शुमार कर, मेरी चाहतों का सिला तो दे!
वो तड़प जो शोला-ए-जान में थी, मेरे तन बदन से लिपट गयी
जो बुझा सके तो बुझा इसे, ना बुझा सके तो हवा ना दे!
मुझे क़त्ल करना है तो क़त्ल कर, यूं जुदाइयों की सज़ा ना दे!

By : Amit tiwary

rajnish manga
23-02-2014, 10:17 AM
मेरे सब्र का ना ले इम्तेहान, मेरी खामोशी को सदा ना दे!
जो तेरे बगैर मर भी ना सके, उसे जीने की दुआ तो ना दे!
जो बुझा सके तो बुझा इसे, ना बुझा सके तो हवा ना दे!
मुझे क़त्ल करना है तो क़त्ल कर, यूं जुदाइयों की सज़ा ना दे!

by : Amit tiwary

अपने वादे के मुताबिक़ एक सुन्दर ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद. उक्त ग़ज़ल पढ़ते हुये मुझे बेग़म अख्तर की गाई हुई निम्नलिखित ग़ज़ल याद आ गयी:

मेरे हमनफस, मेरे हमनवा, मुझे दोस्त बनके दगा न दे!
मैं हूँ दर्द-ए-इश्क से जां-बलब, मुझे ज़िंदगी की दुआ न दे!

rajnish manga
26-02-2014, 10:31 PM
ग़ज़ल:
तेरी यादों से तिरे ग़म से वफ़ादारी की
(कलाम:अक़ीम नौमानी)

तेरी यादों से तिरे ग़म से वफ़ादारी की
बस यही इक दवा थी मेरी बीमारी की

खुद हवा आई है चलकर चलो बुझ जायें
इक तमन्ना ही निकल जायेगी बीमारी की

उम्रभर ज़हन रहा दिल की अमलदारी में
उम्रभर बात न की हमने समझदारी की

फ़र्क कुछ ख़ास नहीं था मेरे हमदर्दों में
कुछ ने मायूस किया कुछ ने दिलाज़ारी की

गुफ्तगू अम्न की दोनों में बार-बार हुई
और इस बार भी दोनों ने अदाकारी की

जंग से पहले अजीब उलझन है ‘अक़ील’
मेरे दुश्मन को खबर है मेरी तैयारी की.

rajnish manga
26-02-2014, 10:33 PM
ग़ज़ल
जहां हम थे हमारी ज़िन्दगी थी
(कलाम:अक़ीम नौमानी)

जहां हम थे हमारी ज़िन्दगी थी
वहां हर शय पे तारी ज़िन्दगी थी

वो कुछ लम्हे मयस्सर हो भी जाते
मगर आगे तो सारी ज़िन्दगी थी

मुहब्बत में जो थी बेईख्तियारी
वही बेईख्तियारी ज़िन्दगी थी

हमें आसायिशों ने मार डाला
परेशानी हमारी ज़िन्दगी थी

हमें भी ज़िन्दगी के ग़म बहुत थे
तुम्हें भी हम से प्यारी ज़िन्दगी थी

मिला करते थे सबसे मुस्कुराकर
बहुत ही कारोबारी ज़िन्दगी थी

यही ग़म ज़िन्दगी ले कर रहेगा
इसी ग़म ने संवारी ज़िन्दगी थी

‘अकील’ इक दौर ऐसा भी रहा है
फ़कत हम थे हमारी ज़िन्दगी थी.

(आसायिशों = सुख-सुविधा)
**

ndhebar
27-02-2014, 10:50 PM
रजनीश जी बहुत ही बेहतरीन रचनाऍ

ndhebar
30-03-2014, 11:40 AM
इश्क की ख़लिश

न जाने क्या हुआ अहसास इस तन्हाई में
जो मातम-सा सुर मिल गया है शहनाई में

वो भी क्या वक्त था जो सादगी के चर्चे थे
अब मेकअप बोलता, हर तरफ रानाई में

सबकी जुबां पर हैं उनके जमाल के किस्से
शेरों की शोखियां हैं उनकी अंगड़ाई में

अब कटती नहीं है रातें तारें गिन-गिनकर
न ही दिन ही गुजर पाते हैं इस जुदाई में

इश्क की ख़लिश उन्हें समझ में आये कैसे
जो कभी डूबे नहीं इश्क की गहराई में

rajnish manga
30-03-2014, 10:58 PM
वाह! निशांत जी, एक बहुत अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत करने के लिये धन्यवाद.

ndhebar
13-04-2014, 05:45 PM
जिंदगी के रंग

करते रहे इश्क की बातें हम तमाम उम्र
पर खत्म नहीं हुए वो फसाने तमाम उम्र

ख्वाहिश ये थी साथ तेरे चार डग चलें
तन्हा ही कट गये वो लम्हे तमाम उम्र

उचटती रही है नींद तेरे इंतजार में
तकते रहे हम आपकी राहें तमाम उम्र

कैसी थी प्यास जो मेरी अब तक बुझी नहीं
दरिया के पास ही रहे बैठे तमाम उम्र

ये जिन्दगी तो रोज दिखाती है कई रंग
ऐ काश ! कि गुजर जाती हंस के तमाम उम्र

bindujain
13-04-2014, 07:01 PM
जिंदगी के रंग

करते रहे इश्क की बातें हम तमाम उम्र
पर खत्म नहीं हुए वो फसाने तमाम उम्र

ख्वाहिश ये थी साथ तेरे चार डग चलें
तन्हा ही कट गये वो लम्हे तमाम उम्र

उचटती रही है नींद तेरे इंतजार में
तकते रहे हम आपकी राहें तमाम उम्र

कैसी थी प्यास जो मेरी अब तक बुझी नहीं
दरिया के पास ही रहे बैठे तमाम उम्र

ये जिन्दगी तो रोज दिखाती है कई रंग
ऐ काश ! कि गुजर जाती हंस के तमाम उम्र:bravo::bravo::bravo::bravo::bravo:

ndhebar
05-05-2014, 04:57 PM
दिन में जैसे रात हो गई

कितनी लंबी रात हो गई
कल तुमसे मुलाकात हो गई

आंखों ही आंखों में तुमसे
दिल की सारी बात हो गई

इंसानों की इस बस्ती में
जान से बढ़ कर जात हो गई

देखी भी अनदेखी हो गई
दिन में जैसे रात हो गई

लगी आग दिल में कुछ ऐसी
बिन बादल बरसात हो गई

ndhebar
30-05-2014, 01:01 PM
आदमी

कुछ नया खोज करता रहा आदमी
जब परेशानियों से घिरा रहा आदमी

सांच की आंच में रोज जलते हुए
और निखरता गया है सदा आदमी

यूं कही-अनकही बात चलती रही
भावनाओं में बहता रहा आदमी

हर तरफ शोर औ होड़ है मच रही
मूक बनकर खड़ा है छला आदमी

वह नजरें मिलायेगा गैरों से क्या
जो है अपनी नजर से गिरा आदमी

जिंदगी को न तुम यूं ही जाया करो
यही कहता गया है मरा आदमी

rafik
09-06-2014, 10:38 AM
आदमी

कुछ नया खोज करता रहा आदमी
जब परेशानियों से घिरा रहा आदमी

सांच की आंच में रोज जलते हुए
और निखरता गया है सदा आदमी

यूं कही-अनकही बात चलती रही
भावनाओं में बहता रहा आदमी

हर तरफ शोर औ होड़ है मच रही
मूक बनकर खड़ा है छला आदमी

वह नजरें मिलायेगा गैरों से क्या
जो है अपनी नजर से गिरा आदमी

जिंदगी को न तुम यूं ही जाया करो
यही कहता गया है मरा आदमी


बहुत सुंदर

ndhebar
11-06-2014, 11:44 AM
बहुत सुंदर
धन्यवाद रफीक जी

ndhebar
05-09-2014, 10:24 AM
मैंने पुछा




मैंने पुछा कैसे घिरती है घटा
उसने रुख पर अपने जुल्फें सजा दी


मैंने पुछा कैसे चमकते हैं सितारे
उसने माथे पर पसीने की बूँदे दिखा दी


मैनें पुछा कैसे ढलता है सूरज
उसने हौले से अपनी पलकें झुका दी


मैंने पुछा कैसे गिरती है बिजली
उसने नजरें मिलाई.. मिला के झुका दी


मैंने पुछा कैसे बरसता है सावन
उसने सुर्ख लबों से सरगम सुना दी


मैनें पुछा कहाँ मिलेगा मुझे सुकून
उसने धीरे से अपनी बाँहें फैला दी


मैंने पुछा क्या होती है महोब्बत
उसने धङकनों की बढी रफतार सुना दी


मैंने पुछा शराब से नशीला क्या है
उसने हँस के अपनी अदाएँ दिखा दी

सौजन्य : चच्चा की चौपाल