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View Full Version : Iconic speeches / प्रसिद्ध भाषण


Gopal
06-03-2011, 03:03 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=32711&stc=1&d=1392740840
Dr. Martin Luther King Jn.
Speech known as "I have a dream" delivered on August 28, 1963

प्रिय मित्रों ,

मैंने मार्टिन लूथर किंग का ऐतिहासिक भाषण " I have a dream" , जिसने अमेरिका को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया , को हिंदी में translate किया है:
उम्मीद है आपको पसंद आएगा.

"मैं खुश हूँ कि मैं आज ऐसे मौके पे आपके साथ शामिल हूँ जो इस देश के इतिहास में स्वतंत्रता के लिए किये गए सबसे बड़े प्रदर्शन के रूप में जाना जायेगा......(read full speech (http://achchikhabar.blogspot.com/2011/03/i-have-dream-speech-hindi-martin-luther.html))

Regards,
Gopal

एडिट नोट:
ऊपर दिया गया link कहीं ले कर नहीं जाता. अतः हम यहाँ पाठकों के सम्मुख डॉ. मार्टिन लूथर किंग जूनि. के भाषण का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत कर रहे हैं:

मार्टिन लूथर किंग का ऐतिहासिक भाषण ”I have a dream“ अर्थात् “मेरा एक सपना है”

“मैं खुश हूँ कि मैं आज ऐसे मौके पे आपके साथ शामिल हूँ जो इस देश के इतिहास में स्वतंत्रता के लिए किये गए सबसे बड़े प्रदर्शन के रूप में जाना जायेगा.

सौ साल पहले, एक महान अमेरिकी, जिनकी प्रतीकात्मक छायामें हम सभी खड़े हैं, ने एक मुक्ति उद्घोषणा (Emancipation Proclamation) पर हस्ताक्षर किये थे. इस महत्त्वपूर्ण निर्णय ने अन्याय सह रहे लाखों गुलाम नीग्रोज़ के मन में उम्मीद की एक किरण जगा दी थी. यह ख़ुशी उनके लिए लम्बे समय तक अन्धकार कि कैद में रहने के बाद दिन के उजाले में जाने के समान था.

परन्तु आज सौ वर्षों बाद भी , नीग्रोज़ स्वतंत्र नहीं हैं. सौ साल बाद भी, एक नीग्रो की ज़िन्दगी अलगाव की हथकड़ी और भेद-भाव की जंजीरों से जकड़ी हुई हैं. सौ साल बाद भी नीग्रो समृद्धि के विशाल समुन्द्रके बीच गरीबी के एक द्वीप पर रहता है. सौ साल बाद भी नीग्रो, अमेरिकी समाज के कोनों में सड़ रहा है और अपने देश में हीखुदको निर्वासित पाता है. इसीलिए आज हम सभी यहाँ इस शर्मनाक स्थिति को दर्शाने के लिए इकठ्ठा हैं.

एक मायने में हम अपने देश की राजधानी में एक चेक कैश करने आये हैं.जब हमारे गणतंत्र के आर्किटेक्ट संविधान और स्वतंत्रता की घोषणा बड़े ही भव्य शब्दों में लिख रहे थे, तब दरअसल वे एक वचनपत्र पर हस्ताक्षर कर रहे थे जिसका हर एक अमेरिकी वारिस होने वाला था. यह पत्र एक वचन था की सभी व्यक्ति , हाँ सभी व्यक्ति चाहे काले हों या गोरे, सभी को जीवन, स्वाधीनता और अपनी प्रसन्नता के लिए अग्रसर रहने का अधिकार होगा.

आज यह स्पष्ट है कि अमेरिका अपने अश्वेत नागरिकों से यह वचन निभाने में चूक गया है. इस पवित्र दायित्व का सम्मान करने के बजाय, अमेरिका ने नीग्रो लोगों को एक फ़र्ज़ी दिया है, एक ऐसा चेक जिसपर “अपर्याप्त कोष” लिखकर वापस कर दिया गया है.लेकिन हम यह मानने से करने इंकार करते हैं कि न्याय का बैंक बैंकरप्ट हो चुका है. हम यह मानने से इनकार करते हैं कि इस देश में अवसर की महान तिजोरी में ‘अपर्याप्त कोष’ है.इसलिए हम इस चेक को कैश कराने आये हैं- एक ऐसा चेक जो मांगे जाने पर हमें धनोपार्जन की आज़ादी और न्याय की सुरक्षा देगा. >>>

rajnish manga
14-02-2014, 06:00 PM
हम इस पवित्र स्थान पर इसलिए भी आये हैं कि हम अमेरिका को याद दिला सकें कि इसे तत्काल करने की सख्त आवश्यकता है. अब और शांत रहने या फिर खुद को दिलासा देने का वक़्त नहीं है. अब लोकतंत्र के दिए वचन को निभाने का वक़्त है. अब वक़्त है अँधेरी और निर्जन घाटी से निकलकर नस्ली न्याय (racial justice) के आलोकित पथ पर चलने का अब वक़्त है अपने देश को नस्ली अन्याय के दलदल से निकाल कर भाई-चारे की ठोस चट्टान खड़ा करने का. अब वक़्त है नस्ली न्याय को प्रभु की सभी संतानों के लिए वास्तविक बनाने का.

इस बात की तत्काल अनदेखी करना राष्ट्र के लिए घातक सिद्ध होगा. नेग्रोज़ के वैध असंतोष की गर्मी तब तक ख़तम नहीं होगी जब तक स्वतंत्रता और समानता की ऋतु नहीं आ जाती. उन्नीस सौ तिरसठ एक अंत नहीं बल्कि एक आरम्भ है. जो ये आशा रखते हैं कि नीग्रो अपना क्रोध दिखाने के बाद फिर शांत हो जायेंगे देश फिर पुराने ढर्रे पे चलने लगेगा मानो कुछ हुआ ही नहीं, उन्हें एक असभ्य जाग्रति का सामना करना पड़ेगा. अमेरिका में तब तक सुख-शांति नहीं होगी जब तक नीग्रोज़ को नागरिकता का अधिकार नहीं मिल जाता है. विद्रोह का बवंडर तब तक हमारे देश की नीव हिलाता रहेगा जब तक न्याय की सुबह नहीं हो जाती.

लेकिन मैं अपने लोगों, जो न्याय के महल की देहलीज पे खड़े हैं, से ज़रूर कुछ कहना चाहूँगा. अपना उचित स्थान पाने की प्रक्रिया में हमें कोई गलत काम करने का दोषी नहीं बनना है. हमें अपनी आजादी की प्यास घृणा और कड़वाहट का प्याला पी कर नहीं बुझानी है.

हमें हमेशा अपना संघर्ष अनुशासन और सम्मान के दायरे में रह कर करना होगा. हमें कभी भी अपने रचनात्मक विरोध को शारीरिक हिंसा में नहीं बदलना है. हमें बार-बार खुद को उस स्तर तक ले जाना है , जहाँ हम शारीरिक बल का सामना आत्म बल से कर सकें. आज नीग्रो समुदाय , एक अजीब आतंकवाद से घिरा हुआ है, हमें ऐसा कुछ नहीं करना है कि सभी श्वेत लोग हम पर अविश्वास करने लग जायें, क्योंकि हमारे कई श्वेत बंधु इस बात को जान चुके हैं की उनका भाग्य हमारे भाग्य से जुड़ा हुआ है , और ऐसा आज उनकी यहाँ पर उपस्थिति से प्रमाणित होता है. वो इस बात को जान चुके हैं कि उनकी स्वतंत्रता हमारी स्वतंत्रता से जुड़ी हुई है. हम अकेले नहीं चल सकते.

हम जैसे जैसे चलें, इस बात का प्रण करें कि हम हमेशा आगे बढ़ते रहेंगे. हम कभी वापस नहीं मुड़ सकते. कुछ ऐसे लोग भी हैं जो हम नागरिक अधिकारों के भक्तों से पूछ रहे हैं कि, “आखिर हम कब संतुष्ट होंगे?” >>>

rajnish manga
14-02-2014, 06:02 PM
हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक एक नीग्रो, पुलिस की अनकही भयावहता और बर्बरता का शिकार होता रहेगा. हम तब तक नहीं संतुष्ट होंगे जब तक यात्रा से थके हुए हमारे शरीर राजमार्गों के ढाबों और शहर के होटलों में विश्राम नहीं कर सकते. हम तब तक नहीं संतुष्ट होंगे जब तक एक नीग्रो छोटी सी बस्ती से निकल कर एक बड़ी बस्ती में नहीं चला जाता. हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक हमारे बच्चों से उनकी पहचान छीनी जाती रहेगी और उनकी गरिमा को, ” केवल गोरों के लिए” संकेत लगा कर लूटा जाता रहेगा. हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक मिस्सीसिप्पी में रहने वाला नीग्रो मतदान नहीं कर सकता और जब तक न्यूयॉर्क में रहने वाला नीग्रो ये नहीं यकीन करने लगता कि अब उसके पास चुनाव करने के लिए कुछ है ही नहीं. नहीं, नहीं हम संतुष्ट नहीं हैं और हम तब तक संतुष्ट नहीं होंगे जब तक न्याय जल की तरह और धर्म एक तेज धरा की तरह प्रवाहित नहीं होने लगते.

मैं इस बात से अनभिज्ञ नहीं हूँ कि आप में से कुछ लोग बहुत सारे कष्ट सह कर यहाँ आये हैं. आपमें से कुछ तो अभी-अभी जेल से निकल कर आये हैं. कुछ लोग ऐसी जगहों से आये हैं जहां स्वतंत्रता की खोज में उन्हें अत्याचार के थपेड़ों और पुलिस की बर्बरता से पस्त होना पड़ा है. आपको सही ढंग से कष्ट सहने का अनुभव है. इस विश्वास के साथ कि आपकी पीड़ा का फल अवश्य मिलेगा आप अपना काम जारी रखिये.

मिसिसिप्पी वापस जाइये , अलबामा वापस जाइये, साउथ कैरोलिना वापस जाइये , जोर्जिया वापस जाइये, लूजीआना वापस जाइये, उत्तरीय शहरों की झोपड़ियों और बस्तियों में वापस जाइये, ये जानते हुए कि किसी न किसी तरह यह स्थिति बदल सकती है और बदलेगी आप अपने स्थानों पर वापस जाइये. अब हमें निराशा की घाटी में वापस नहीं जाना है.

मित्रों, आज आपसे मैं ये कहता हूँ, भले ही हम आजकल कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, पर फिर भी मेरा एक सपना है (I have a dream), एक ऐसा सपना जिसकी जडें अमेरिकी सपने में निहित है.

मेरा एक सपना है कि एक दिन यह देश ऊपर उठेगा और सही मायने में अपने सिद्धांतों को जी पायेगा.” हम इस सत्य को मानते हैं कि: सभी इंसान बराबर पैदा हुए हैं”

मेरा एक सपना है कि एक दिन जार्जिया के लाल पहाड़ों पे पूर्व गुलामो के पुत्र और पूर्व गुलाम मालिकों के पुत्र भाईचारे की मेज पे एक साथ बैठ सकेंगे.

मेरा एक सपना है कि एक दिन मिस्सिस्सिप्पी राज्य भी , जहाँ अन्याय और अत्याचार की तपिश है , एक आजादी और न्याय के नखलिस्तान में बदल जायेगा.

मेरा एक सपना है कि एक दिन मेरे चारों छोटे बच्चे एक ऐसे देश में रहेंगे जहाँ उनका मूल्यांकन उनकी चमड़ी के रंग से नहीं बल्कि उनके चरित्र की ताकत से किया जायेगा.
>>>

rajnish manga
14-02-2014, 06:03 PM
आज मेरा एक सपना है.

मेरा एक सपना है कि एक दिन अलबामा में, जहाँ भ्रष्ट जातिवाद है, जहाँ राज्यपाल के मुख से बस बीच-बचाव और संघीय कानून को न मानने के शब्द निकलते हैं, एक दिन उसी अलबामा में, छोटे-छोटे अश्वेत लड़के और लड़कियां छोटे-छोटे श्वेत लड़के और लड़कियों का हाँथ भाई-बहिन के समान थाम सकेंगे.

मेरा एक सपना है.

मेरा एक सपना है कि एक दिन हर एक घाटी ऊँची हो जाएगी , हर एक पहाड़ नीचे हो जायेगा, बेढंगे स्थान सपाट हो जायेंगे, और टेढ़े-मेढ़े रास्ते सीधे हो जायेंगे, और तब इश्वर की महिमा दिखाई देगी और सभी मनुष्य उसे एक साथ देखेंगे.

यही हमारी आशा है, इसी विश्वास के साथ मैं दक्षिण वापस जाऊंगा.इसी विश्वास से हम निराशा के पर्वत को आशा के पत्थर से काट पाएंगे. इसी विश्वास से हम कलह के कोलाहल को भाई-चारे के मधुर स्वर में बदल पाएंगे.इसी विश्वास से हम एक साथ काम कर पाएंगे,पूजा कर पाएंगे,संघर्ष कर पाएंगे,साथ जेल जा पाएंगे , और ये जानते हुए कि हम एक दिन मुक्त हो जायंगे , हम स्वतंत्रता के लिए साथ- साथ खड़े हो पायंगे.

ये एक ऐसा दिन होगा जब प्रभु की सभी संताने एक नए अर्थ के साथ गा सकेंगी, “My country ’tis of thee, sweet land of liberty, of thee I sing. Land where my fathers died, land of the pilgrim’s pride, from every mountainside, let freedom ring.”
..... ..... .... ....
हर एक पर्वत से से आजादी की गूँज होने दीजिये.

और जब ऐसा होगा , जब हम आजादी की गूँज होने देंगे , जब हर एक गाँव और कसबे से, हर एक राज्य और शहर से आजादी की गूँज होने लगेगी तब हम उस दिन को और जल्द ला सकेंगे जब इश्वर की सभी संताने , श्वेत या अश्वेत, यहूदी या किसी अन्य जाती की , प्रोटेस्टंट या कैथोलिक, सभी हाथ में हाथ डालकर नीग्रोज का आध्यात्मिक गाना गा सकेंगे,”"Free at last! free at last! thank God Almighty, we are free at last!”“

मार्टिन लूथर किंग
(Martin Luther King)

rajnish manga
14-02-2014, 06:05 PM
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John F. Kennedy's Inaugural Speech

यूनाइटेड स्टेट्स कैपिटल
वॉशिंगटन, डी.सी.
20 जनवरी, 1961

उप राष्ट्रपति जॉन्सन, अध्यक्ष महोदय, माननीय मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति आइज़नहॉवर, उप राष्ट्रपति निक्सन, राष्ट्रपति ट्रूमैन, आदरणीय सीनेटरगण, साथी देशवासियों:

आज हम दल का विजयोत्सव नहीं मना रहे हैं, बल्कि आज़ादी का जश्न मना रहे हैं — जो समापन के साथ-साथ एक शुरुआत का प्रतीक है — जो नवीनीकरण के साथ-साथ परिवर्तन को दर्शाता है। मैंने आपके और सर्वशक्तिमान ईश्वर के समक्ष वही पवित्र शपथ ली है, जिसे हमारे पूर्वजों ने एक सौ पचहत्तर वर्ष पहले निर्धारित किया था।

दुनिया बहुत बदल चुकी है। मनुष्य के घातक हाथों में हर प्रकार की मानवीय ग़रीबी और हर प्रकार के मानवीय जीवन को नष्ट करने की शक्ति है। और फिर भी वही क्रांतिकारी मान्यताएँ जिनके लिए हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया आज भी दुनिया भर में समस्या का कारण बनी हुई हैं - यह मान्यता कि मनुष्य के अधिकार राजकीय उदारता न होकर भगवान की देन हैं।

हमें आज यह भूलने की बिल्कुल भी गलती नहीं करनी चाहिए कि हम उस पहली क्रांति के उत्तराधिकारी हैं। आज, इस समय और इसी जगह से, हमारे मित्र और शत्रु, दोनों तक यह संदेश पहुँचने दें कि अमरीका की नई पीढ़ी के हाथों मशाल को सौंप दिया गया है — जो इस सदी में जन्मी, युद्ध से प्रभावित, कठोर और कटु शांति द्वारा अनुशासित, हमारी प्राचीन संस्कृति के गौरव को महसूस करने वाली — और उन मानवाधिकारों का धीरे-धीरे सर्वनाश होते हुए देखने या अनुमति देने के लिए अनिच्छुक है जिनके प्रति यह देश हमेशा से प्रतिबद्ध रहा है, और जिनके प्रति आज हम और पूरी दुनिया प्रतिबद्ध है।

प्रत्येक राष्ट्र यह जान ले, भले ही वह हमारा भला चाहता हो या बुरा, कि हम स्वाधीनता बनाए रखने और उसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए कोई भी क़ीमत चुकाने, कोई भी बोझ उठाने, कोई भी कठिनाई झेलने, किसी भी मित्र की मदद करने, किसी भी शत्रु का सामना करने के लिए तैयार हैं।

हम इतना ही नहीं - इससे अधिक का वचन देते हैं।

हम उन पुराने मित्र राष्ट्रों के प्रति विश्वसनीय मित्रों की वफ़ादारी का वचन देते हैं, जिनके सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मूल हमारे जैसे हैं। साथ मिलकर शायद ही ऐसे कोई सहयोगी साहसिक कार्य होंगे, जिन्हें हम न कर पाएँ। विभक्त होकर हम शायद ही कुछ कर पाएँगे - क्योंकि ऐसे में विषम और अलग टुकड़ों में बँटकर हम किसी शक्तिशाली चुनौती का सामना नहीं कर सकते।

उन नए राष्ट्रों को, जिनका हम स्वाधीन वर्ग में स्वागत करते हैं, हम यह वचन देकर कहते हैं कि एक प्रकार के औपनिवेशिक नियंत्रण को केवल इसलिए नहीं हटाया गया है ताकि उससे भी अधिक क्रूर निरंकुश शासन उसकी जगह ले सके। हमें हमेशा इस बात की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वे हमारे दृष्टिकोण का समर्थन करेंगे। बल्कि हमें सदैव यह आशा करनी चाहिए कि वे दृढ़ता से अपनी स्वाधीनता का समर्थन करेंगे - और यह याद रखें कि अतीत में, जिन लोगों ने शेर पर सवार होकर अधिकार पाने की मूर्खता की है, वे उसी के आहार बन गए।
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rajnish manga
14-02-2014, 06:06 PM
सामूहिक गरीबी के बंधनों से मुक्त होने के लिए संघर्ष कर रहे दुनिया के आधे हिस्से में बसे झुग्गी-झोपड़ियों और गाँवों में रहने वाले लोगों के लिए, चाहे जितना भी समय लगे, हम उन्हें उनकी स्वयं की मदद करने में सहायता करने का वचन देते हैं - इसलिए नहीं कि साम्यवादी यह काम कर रहे हैं, या हम उनका मत चाहते हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि यह सही है। यदि मुक्त समाज उन लाखों ग़रीबों की मदद नहीं कर सकता, तो वह उन चंद धनवानों को भी नहीं बचा सकता।

हमारी सीमा के दक्षिण में स्थित सहयोगी गणराज्यों को - अपने उत्तम उद्देश्यों को उत्तम कार्यों में परिवर्तित करने – प्रगति के लिए एक नए सहयोग की दिशा में – मुक्त जनता और मुक्त सरकार को ग़रीबी की ज़ंजीरों को तोड़ने में सहायता करने का हम एक विशेष वचन देते हैं। लेकिन आशा की यह शांतिपूर्ण क्रांति, विरोधी शक्तियों का शिकार नहीं बन सकती। हमारे सभी पड़ोसी जान लें, कि हम अमेरिकास में कहीं भी आक्रमण या विध्वंस का मुक़ाबला करने में उनका साथ देंगे। और हर दूसरी शक्ति यह जान ले कि यह गोलार्ध अपने घर का ख़ुद ही मालिक बना रहना चाहता है।

स्वायत्त राज्यों के वैश्विक संघ, संयुक्त राष्ट्र, जो ऐसे युग में हमारी अंतिम श्रेष्ठ आशा है जहाँ युद्ध के साधनों ने शांति के उपकरणों को बहुत ही पीछे छोड़ दिया है - उसे केवल भर्त्सना का मंच बनने से बचाने - नए और कमज़ोर के लिए उसकी ढाल को मज़बूत करने - और उस क्षेत्र को विस्तृत करने जहाँ उसका शासन चले, के प्रति हम समर्थन के अपने वचन को दोहराते हैं।
अंत में, उन राष्ट्रों से, जो स्वयं को हमारा विरोधी बनाएंगे, हम वचन नहीं बल्कि अनुरोध करते हैं कि दोनों पक्ष शांति के लिए नई खोज प्रारंभ करें, इससे पहले कि विज्ञान द्वारा छोड़े गए विनाश के काले बादल नियोजित या आकस्मिक आत्म-संहार में पूरी मानवता को घेर लें।

हम कमज़ोर होकर उन्हें परख नहीं सकते। क्योंकि जब तक हमारे शस्त्रों की पर्याप्तता संदेह से परे न हो, हम इस बात से निश्चिंत नहीं हो सकते कि उनका कभी भी प्रयोग नहीं किया जाएगा।

लेकिन राष्ट्रों के दो महान और शक्तिशाली समूह हमारी वर्तमान प्रगति से सुख-चैन नहीं ले सकते - दोनों ही पक्ष आधुनिक शस्त्रों की अधिक लागत के बोझ तले दबे हैं, दोनों उचित रूप से ही घातक परमाणु के सतत प्रसार से भयभीत हैं, फिर भी दोनों मानव-जाति के अंतिम युद्ध को रोकने वाले आतंक के अनिश्चित संतुलन को बदलने के लिए दौड़ रहे हैं।
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rajnish manga
18-02-2014, 07:36 PM
अब बिगुल हमें फिर से बुला रहा है - यह शस्त्र धारण करने का बुलावा नहीं, हालाँकि हमें हथियारों की आवश्यकता है - युद्ध करने के आह्वान के रूप में नहीं, हालाँकि हम युद्ध करने के लिए तैयार हैं - बल्कि एक लंबे ढलते हुए संघर्ष का बोझ उठाने के लिए, हर वर्ष "आशा में प्रसन्न होते हुए, संकट में धीरज रखते हुए" – मानव के आम शत्रुओं के प्रति संघर्ष: अत्याचार, गरीबी, रोग और स्वयं युद्ध के प्रति बुलावा है।

क्या हम इन शत्रुओं के विरुद्ध एक विशाल और वैश्विक सहयोग बना सकते हैं, उत्तर और दक्षिण, पूरब और पश्चिम, जो समस्त मानवता के लिए अधिक लाभकारी जीवन का आश्वासन दे? क्या आप इस ऐतिहासिक प्रयास में शामिल होंगे?

विश्व के लंबे इतिहास में, केवल चंद पीढ़ियों को घोर संकट की घड़ी में स्वतंत्रता की रक्षा करने की भूमिका निभाने का अवसर मिला है। मैं इस ज़िम्मेदारी से नहीं झिझकता - मैं उसका स्वागत करता हूँ। मैं यह नहीं मानता कि हममें से शायद ही कोई, किसी अन्य व्यक्ति या किसी अन्य पीढ़ी के साथ जगह बदलना चाहेगा। इस प्रयास में लगने वाली हमारी शक्ति, विश्वास, समर्पण हमारे देश और उसकी सेवा करने वाले लोगों को प्रकाशित करेंगी - और इस ज्वाला से निकलने वाली ज्योति सही मायनों में पूरी दुनिया को आलोकित करेगी।

तो, मेरे साथी देशवासियो: यह मत पूछें कि आपका देश आपके लिए क्या कर सकता है - पूछें कि आप अपने देश के लिए क्या कर सकते हैं।

दुनिया के मेरे साथी नागरिकों: यह मत पूछें कि अमरीका आपके लिए क्या करेगा, बल्कि यह पूछें कि हम मिलकर मानव-जाति की स्वतंत्रता के लिए क्या कर सकते हैं।

अंत में, चाहे आप अमरीका के नागरिक हैं या विश्व के नागरिक, हमसे यहाँ उन्हीं शक्ति और त्याग के उच्च मानकों की माँग करें, जो हम आपसे चाहते हैं। इतिहास हमारे कार्यों का अंतिम न्यायकर्ता है, सद्विवेक हमारा केवल निश्चित पुरस्कार है, ईश्वर से आशीष और मदद चाहते हुए, चलिए हम उस भूमि का नेतृत्व करने के लिए आगे बढ़ें, जिससे हम प्यार करते हैं, लेकिन यह जानते हुए कि धरती पर ईश्वर का कार्य वास्तव में हमारा कार्य हो।
(John F. Kennedy)
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rajnish manga
21-02-2014, 02:27 PM
Abraham Lincoln' famous Gettysburg speech delivered on November 19, 1863

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इस सम्बोधन को अब्राहम लिंकन ने बृहस्पतिवार, 19 नवम्बर 1863 को पेन्सिल्वेनिया राज्य के गेटिज़बर्ग शहर में राष्ट्रिय सैनिक क़ब्रिस्तान के समर्पण दिवस के मौक़े पर पढ़ा जब अमरीकी गृहयुद्ध को ख़त्म हुए साढ़े-चार महीने हुए थे और अमेरिका दो हिस्सों में खण्डित होते-होते बचा था। पूरा संबोधन केवल लगभग दो मिनट का था.

rajnish manga
21-02-2014, 02:30 PM
गेटिज़बर्ग का प्रसिद्ध भाषण या सम्बोधन



“सत्तासी वर्ष पहलेहमारे पूर्वजों ने इस महाद्वीप पर एक नये राष्ट्र की नींव रखी, जिसकी संकल्पना स्वतंत्रता के आदर्श में ढली थी, और जो इस सोच को समर्पित था कि सभी इंसान समान बनाए गए हैं।

आज हम एक भयंकर गुहयुद्ध लड़ रहें हैं, यह आज़माने के लिये कि क्या यह राष्ट्र, या कोई भी राष्ट्र, जो ऐसे संकल्पित हो और समर्पित हो, लंबे समय तक क़ायम रह सकता है? हम उस जंग के एक महान युद्धस्थलपर खड़े हैं। हम उस भूमि का एक अंश उनकी अंतिम विश्राम स्थली के रूप में समर्पित करने आये हैं जो यहाँ शहीद हुये ताकि राष्ट्र जीवित रह सके। यह सर्वथा उपयुक्त है और सही भी है कि आज हम ऐसा करें।

लेकिन, बड़े मायनों में, हम इस ज़मीन को न तो उनकी याद में समर्पित कर सकते हैं और न ही उसे पवित्रता दे सकते हैं। वे वीर पुरुष, जीवित और मृत, जो यहाँ जूझे, इसको इतना पवित्र बना चुके हैं कि हम में इसको कम या ज़्यादा करने की क्षमता है ही नहीं। हम आज यहाँ क्या कहते हैं, इसकी दुनिया को न ज़्यादा परवाह होगी और न ही ज़्यादा देर उसे याद रखेगी, लेकिन वे जो काम कर गए हैं वह सदा अविस्मरणीय रहेगा। बल्कि हम, जो पीछे जीवित रह गये हैं, स्वयं उस अधूरे कार्य के निमित्त समर्पित हो जायें जिसे यहाँ लड़ने वालों ने इतनी शान से आगे बढ़ाया – उन महान शहीदों से श्रद्धापूर्वक प्रेरणा लेते हुये उस ध्येय के लिये और भी अधिक समर्पण-भाव से जुट जायें जिस के लिए वे अपना सर्वस्व न्यौछावर कर गए – आज हम यहाँ ठान लें कि अपनी जान की बाज़ी लगा देने वाले शहीदों की कुर्बानियां व्यर्थ नहीं गयीं – कि यह राष्ट्र, ईश्वर के अधीन, एक नई स्वतंत्रता में जन्म लेगा – जहाँ जनता की सरकार होगी, जनता के द्वारा और जनता के लिए, वह इस दुनिया से कभी ख़त्म नहीं होगी।“


उक्त भाषण से जुड़ी प्रमुख बातें:


1. "सतास्सी वर्ष पहले" से लिंकन का अर्थ था सन् 1776, जब अमेरिका स्वतंत्र हुआ और आधुनिक विश्व का पहला लोकतंत्र बना।

2.गॅटीस्बर्ग में अमेरिकी गृहयुद्ध के दौरान तीन दिन (जुलाई 1 से जुलाई 3, 1863 तक) भयंकर लड़ाई हुई थीं, जिसमें लगभग 8,000 लोग मारे गए और 42,000 ज़ख़्मी हुए। इस मुठभेड़ के बाद उत्तरी संघीय सेना की दक्षीणी परिसंघीय सेना के ऊपर जीत निश्चित हो ग​ई थी।

3. "वह सरकार जो जनता की हो, जनता से हो, जनता के लिए हो" अब लोकतान्त्रिक शासन की एक अनौपचारिक परिभाषा बन ग​ई है। "जनता की सरकार" का अर्थ हुआ के शासक साधारण जनता के ही सदस्य हैं, किसी विशेष शाही वर्ग के नहीं।

(विकिपीडिया आधारित)

rajnish manga
28-02-2014, 10:37 PM
पं. जवाहरलाल नेहरू

https://encrypted-tbn2.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQT9-R2EzxEJgp1HmnRefyGVwE5NibR9FOtPChpPwER9rMDqQdjXg


14 अगस्त 1947 की रात संविधान परिषद्, नई दिल्ली में दिया गया जवाहरलाल नेहरू का भाषण:

बहुत वर्ष हुए, हमने भाग्य से एक सौदा किया था, और अब अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का समय आ गया है। पूरी तौर पर या जितनी चाहिए उतनी तो नहीं, फिर भी काफी हद तक। जब आधी रात के बारह बजेंगे, जबकि सारी दुनिया सोती होगी, उस समय भारत जागकर जीवन और स्वतंत्रता प्राप्त करेगा। एक ऐसा क्षण होता है, जो कि इतिहास में कम ही आता है, जबकि हम पुराने को छोड़कर नए जीवन में पग धरते हैं, जबकि एक युग का अंत होता है, जबकि राष्ट्र की चिर दलित आत्मा उद्धार प्राप्त करती है। यह उचित है कि इस गंभीर क्षण में हम भारत और उसके लोगों और उससे भी बढ़कर मानवता के हित के लिए सेवा-अर्पण करने की शपथ लें।

इतिहास के उषाकाल में भारत ने अपनी अनंत खोज आरंभ की। दुर्गम सदियाँ उसके उद्योग, उसकी विशाल सफलता और उसकी असफलताओं से भरी मिलेंगी। चाहे अच्छे दिन रहे हों, चाहे बुरे, उसने इस खोज को आँखों से ओझल नहीं होने दिया। न उन आदर्शो को ही भुलाया, जिनसे उसे शक्ति प्राप्त हुई। आज हम दुर्भाग्य की एक अवधि पूरी करते हैं और भारत ने अपने आप को फिर पहचाना है। जिस कीर्ति पर हम आज आनंद मना रहें हैं,वह और भी बड़ी कीर्ति और आने वाली विजयों की दिशा में केवल एक पग है, और आगे के लिए अवसर देने वाली है। इस अवसर को ग्रहण करने और भविष्य की चुनौती स्वीकार करने के लिए क्या हममें काफी साहस और काफी बुद्धि है?

स्वतंत्रता और शक्ति जिम्मेदारी लाती है। वह जिम्मेदारी इस सभा पर है, जो कि भारत के संपूर्ण सत्ताधारी लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाली संपूर्ण सत्ताधारी सभा है। स्वतंत्रता के जन्म से पहले हमने प्रसव की सारी पीड़ाएँ सहन की हैं और हमारे हृदय इस दु:ख की स्मृति से भरे हुए हैं। इनमें से कुछ पीड़ाएँ अब भी चल रही है। फिर भी, अतीत समाप्त हो चुका है और अब भविष्य हमारा आह्वान कर रहा है।

rajnish manga
28-02-2014, 10:39 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=32729&stc=1&d=1393664912

यह भविष्य आराम करने और दम लेने के लिए नहीं है, बल्कि निरंतर प्रयत्न करने के लिए है, जिससे कि हम उन प्रतिज्ञाओं को, जो हमने इतनी बार की हैं और उसे जो आज कर रहे हैं, पूरा कर सकें। भारत की सेवा का अर्थ करोड़ों पीडितों की सेवा है। इसका अर्थ दरिद्रता और अज्ञान और अवसर की विषमता का अंत करना है। हमारी पीढ़ी के सबसे बड़े आदमी की यह आकांक्षा रही है कि प्रत्येक आँख के प्रत्येक आँसू को पोंछ दिया जाए। ऐसा करना हमारी शक्ति से बाहर हो सकता है, लेकिन जब तक आँसू हैं और पीड़ा है, तब तक हमारा काम पूरा नहीं होगा।

इसलिए हमें काम करना हैं और परिश्रम से करना है, जिससे कि हमारे स्वप्न पूरे हों। ये स्वप्न भारत के हैं,लेकिन ये संसार के लिए भी हैं, क्योंकि आज सभी राष्ट्र और लोग आपस में एक-दूसरे से इस तरह गुँथे हुए हैं कि कोई भी बिलकुल अलग होकर रहने की कल्पना नहीं कर सकता। शांति के लिए कहा गया है कि वह अविभाज्य है। स्वतंत्रता भी ऐसी ही है और अब समृद्धि भी ऐसी है और इस संसार में, जिसका अलग-अलग टुकड़ों में विभाजन संभव नहीं, संकट भी ऐसा ही है।

भारत के लोगों से, जिनके हम प्रतिनिधि हैं, हम अनुरोध करते हैं कि विश्वास और निश्चय के साथ वे हमारा साथ दें। यह क्षुद्र और विनाशक आलोचना का समय नहीं है, असद्भावना या दूसरों पर आरोप लगाने का भी समय नहीं है। हमें स्वतंत्र भारत की विशाल इमारत का निर्माण करना है, जिसमें आपकी संतानें रह सकें।

महोदय मैं यह प्रस्ताव उपस्थित करने की आज्ञा चाहता हूँ -

यह निश्चय हो कि -

1. आधी रात के अंतिम घंटे के बाद, इस अवसर पर उपस्थित संविधान सभा के सभी सदस्य यह शपथ लें -

‘इस पवित्र क्षण में जबकि भारत के लोगों ने दु:ख झेलकर और त्याग करके स्वतंत्रता प्राप्त की है, मैं, जो कि भारत की संविधान सभा का सदस्य हूँ, पूर्ण विनयपूर्वक भारत और उसके निवासियों की सेवा के प्रति, अपने को इस उद्देश्य से अर्पित करता हूँ कि यह प्राचीन भूमि संसार में अपना उपयुक्त स्थान ग्रहण करे और संसार व्यापी शांति और मनुष्य मात्र के कल्याण के निमित्त अपना पूरा और इच्छापूर्ण अनुदान प्रस्तुत करे।’

2. जो सदस्य इस अवसर पर उपस्थित नहीं हैं, वे यह शपथ (ऐसे शाब्दिक परिवर्तनों के साथ जो कि सभापति निश्चित करें) उस समय लें, जबकि वे अगली बार इस सभा के अधिवेशन में उपस्थित हों।
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rajnish manga
17-03-2014, 04:40 PM
लाल बहादुर शास्त्री
1965

https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTThto59I7HbGlzmKzrWDgWCnSlmpOX-YmYWuyly6SRjfKSZuK_

जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद देश के प्रधानमंत्री बने लाल बहादुर शास्त्रीने 1965 में पाकिस्तान युद्ध के समय एक जनसभा में 'जय जवान, जय किसान' का नारा दियाथा। उन्होंने अनाज के संकट से जूझ रहे देश से हफ्ते में एक दिन उपवास रखने कानिवेदन किया था। शास्त्री खुद भी एक दिन उपवास रखते थे।

असर

शास्त्री का नारा बहुत मशहूर हुआ और आज भी लोग इसे दोहराते हैं। भारत ने तमाममुश्किलों के बावजूद खाद्यान्न संकट का भी सामना किया और 1965 में पाकिस्तान कोपरास्त भी किया।

rajnish manga
17-03-2014, 04:42 PM
इंदिरा गांधी
1971

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इंदिरा गांधी ने 1971 के आम चुनावों में अपने विरोधियों को चौंकाते हुए इंदिराहटाओ के नारों के जवाब में एक जनसभा में कहा था, 'वे कहते हैं इंदिरा हटाओ। मैंकहती हूं गरीबी हटाओ।'

असर
इंदिरा गांधी की अगुवाई में उनकी पार्टी ने 1971 के आम चुनावों में शानदार जीतदर्ज कर केंद्र में सरकार बनाई थी।
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rajnish manga
17-03-2014, 04:47 PM
जयप्रकाश नारायण द्वारा सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान

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5 जून, 1974
गांधी मैदान, पटना

जयप्रकाश नारायण ने पटना के गांधी मैदान में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था, 'यह क्रांति है, दोस्तो। हम यहां सिर्फ विधानसभा भंग कराने नहीं आए हैं। यह हमारे रास्ते का सिर्फ एक पत्थर भर है। हमें बहुत आगे जाना है। आज़ादी के 27 सालों बाद भी इस देश के लोग भूख, महंगाई, भ्रष्टाचार और नाइंसाफी से तंग हैं। हमें संपूर्ण व्यवस्था बदलनी होगी। इसके लिए संपूर्ण क्रांति चाहिए। इससे कम कुछ भी नहीं।'

असर
जयप्रकाश नारायण के आंदोलनों से घबराकर इंदिरा गांधी की सरकार ने 1975 में देश में आपातकाल लगा दिया था। लेकिन 1977 में इंदिरा को आपातकाल हटाना पड़ा और आम चुनावों में उनकी करारी हार हुई।
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rajnish manga
17-03-2014, 05:00 PM
अटल बिहारी वाजपेयी

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पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बीजेपी ने 1996 में पहली बार केंद्र में सरकार बनाई थी। लेकिन बहुमत न जुटा पाने की वजह से 13 दिनों में यह सरकार एक वोट से गिर गई थी। प्रधानमंत्री के तौर पर अपने 13 दिनों के पहले कार्यकाल के बाद इस्तीफा राष्ट्रपति को सौंपने से पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में कहा था, 'हमारा क्या अपराध है। हमें क्यों कठघरे में खड़ा किया जा रहा है? यह जनादेश ऐसे ही नहीं मिला है। इसके पीछे वर्षों की संघर्ष है, साधना है। एक-एक सीटों वाली पार्टियां कुकुरमुत्ते की तरह उग आती हैं। राज्यों में आपस में लड़ती हैं, दिल्ली में आकर एक हो जाती हैं। हम देश की सेवा के कार्य में जुटे रहेंगे। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि जो कार्य हमने अपने हाथों में लिया है, उसे पूरा किए बिना विश्राम नहीं करेंगे। अध्यक्ष महोदय, मैं अपना त्यागपत्र राष्ट्रपति को देने जा रहा हूं।'

असर
बतौर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के इस जज्बाती भाषण का दूरगामी असर हुआ। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी 1998 और 1999 में प्रधानमंत्री बने।

arunjoshi123
19-03-2014, 06:34 PM
The specific MP whose vote defeated BJP govt was from Manipur.

rajnish manga
21-03-2014, 08:52 PM
सिंगापूर मे आजाद हिंद फ़ौज के सामने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का दिया गया एतिहासिक भाषण


https://encrypted-tbn0.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQJmkWqG8tIt5TvM90wLcA5WGPVaUXjN QBDrA9wPCQqNdK_lHgg


[सन् 1941 में कोलकाता सेनेताजी सुभाष चन्द्र बोसअपनी नजरबंदी से भागकर ठोस स्थल मार्ग से जर्मनी पहुंचे, जहां उन्होंने भारत सेना का गठन किया। जर्मनी में कुछ कठिनाइयां सामने आने पर जुलाई 1943 में वे पनडुब्बी के जरिए सिंगापुर पहुंचे। सिंगापुर में उन्होंने आजाद हिंद सरकार (जिसे नौ धुरी राष्ट्रों ने मान्यता प्रदान की) और इंडियन नेशनल आर्मी का गठन किया। मार्च एवं जून 1944 के बीच इस सेना ने जापानी सेना के साथ भारत-भूमि पर ब्रिटिश सेनाओं का मुकाबला किया। यह अभियान अंत में विफल रहा, परंतु बोस ने आशा का दामन नहीं छोड़ा। जैसा कि यह भाषण उद्घाटित करता है, उनका विश्वास था कि ब्रिटिश युद्ध में पीछे हट रहे थे और भारतीयों के लिए आजादी हासिल करने का यही एक सुनहरा अवसर था। यह शायद बोस का सबसे प्रसिद्ध भाषण है। इंडियन नेशनल आर्मी के सैनिकों को प्रेरित करने के लिए आयोजित सभा में यह भाषण दिया गया, जो अपने अंतिम शक्तिशाली कथन के लिए प्रसिद्ध है]

rajnish manga
21-03-2014, 08:58 PM
दोस्तों! बारह महीने पहले पूर्वी एशिया में भारतीयों के सामने 'संपूर्ण सैन्य संगठन' या 'अधिकतम बलिदान' का कार्यक्रम पेश किया गया था। आज मैं आपको पिछले साल की हमारी उपलब्धियों का ब्योरा दूंगा तथा आने वाले साल की हमारी मांगें आपके सामने रखूंगा। परंतु ऐसा करने से पहले मैं आपको एक बार फिर यह एहसास कराना चाहता हूं कि हमारे पास आजादी हासिल करने का कितना सुनहरा अवसर है। अंग्रेज एक विश्वव्यापी संघर्ष में उलझे हुए हैं और इस संघर्ष के दौरान उन्होंने कई मोर्चो पर मात खाई है। इस तरह शत्रु के काफी कमजोर हो जाने से आजादी के लिए हमारी लड़ाई उससे बहुत आसान हो गई है, जितनी वह पांच वर्ष पहले थी। इस तरह का अनूठा और ईश्वर-प्रदत्त अवसर सौ वर्षो में एक बार आता है। इसीलिए अपनी मातृभूमि को ब्रिटिश दासता से छुड़ाने के लिए हमने इस अवसर का पूरा लाभ उठाने की कसम खाई है।

हमारे संघर्ष की सफलता के लिए मैं इतना अधिक आशावान हूं, क्योंकि मैं केवल पूर्व एशिया के30लाख भारतीयों के प्रयासों पर निर्भर नहीं हूं। भारत के अंदर एक विराट आंदोलन चल रहा है तथा हमारे लाखों देशवासी आजादी हासिल करने के लिए अधिकतम दु:ख सहने और बलिदान देने के लिए तैयार हैं।

दुर्भाग्यवश, सन्1857के महान् संघर्ष के बाद से हमारे देशवासी निहत्थे हैं, जबकि दुश्मन हथियारों से लदा हुआ है। आज के इस आधुनिक युग में निहत्थे लोगों के लिए हथियारों और एक आधुनिक सेना के बिना आजादी हासिल करना नामुमकिन है। ईश्वर की कृपा और उदार नियम की सहायता से पूर्वी एशिया के भारतीयों के लिए यह संभव हो गया है कि एक आधुनिक सेना के निर्माण के लिए हथियार हासिल कर सकें।
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rajnish manga
21-03-2014, 09:01 PM
इसके अतिरिक्त, आजादी हासिल करने के प्रयासों में पूर्वी एशिया के भारतीय एकसूत्र में बंधे हुए हैं तथा धार्मिक और अन्य भिन्नताओं का, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने भारत के अंदर हवा देने की कोशिश की, यहां पूर्वी एशिया में नामोनिशान नहीं है। इसी के परिणामस्वरूप आज परिस्थितियों का ऐसा आदर्श संयोजन हमारे पास है, जो हमारे संघर्ष की सफलता के पक्ष में है - अब जरूरत सिर्फ इस बात की है कि अपनी आजादी की कीमत चुकाने के लिए भारती स्वयं आगे आएं। 'संपूर्ण सैन्य संगठन' के कार्यक्रम के अनुसार मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की मांग की थी। जहां तक जवानों का संबंध है, मुझे आपको बताने में खुशी हो रही है कि हमें पर्याप्त संख्या में रंगरूट मिल गए हैं। हमारे पास पूर्वी एशिया के हर कोने से रंगरूट आए हैं - चीन, जापान, इंडोचीन, फिलीपींस, जावा, बोर्नियो, सेलेबस, सुमात्रा, मलाया, थाईलैंड और बर्मा से।

आपको और अधिक उत्साह एवं ऊर्जा के साथ जवानों, धन तथा सामग्री की व्यवस्था करते रहना चाहिए, विशेष रूप से आपूर्ति और परिवहन की समस्याओं का संतोषजनक समाधान होना चाहिए। हमें मुक्त किए गए क्षेत्रों के प्रशासन और पुनर्निर्माण के लिए सभी श्रेणियों के पुरुषों और महिलाओं की जरूरत होगी। हमें उस स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए, जिसमें शत्रु किसी विशेष क्षेत्र से पीछे हटने से पहले निर्दयता से 'घर-फूंक नीति' अपनाएगा तथा नागरिक आबादी को अपने शहर या गांव खाली करने के लिए मजबूर करेगा, जैसा उन्होंने बर्मा में किया था। सबसे बड़ी समस्या युद्धभूमि में जवानों और सामग्री की कुमुक पहुंचाने की है। यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम मोर्चो पर अपनी कामयाबी को जारी रखने की आशा नहीं कर सकते, न ही हम भारत के आंतरिक भागों तक पहुंचने में कामयाब हो सकते हैं।
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rajnish manga
21-03-2014, 09:03 PM
आपमें से उन लोगों को, जिन्हें आजादी के बाद देश के लिए काम जारी रखना है, यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वी एशिया - विशेष रूप से बर्मा - हमारे स्वातंय संघर्ष का आधार है। यदि यह आधार मजबूत नहीं है तो हमारी लड़ाकू सेनाएं कभी विजयी नहीं होंगी। याद रखिए कि यह एक 'संपूर्ण युद्ध है - केवल दो सेनाओं के बीच युद्ध नहीं है। इसलिए, पिछले पूरे एक वर्ष से मैंने पूर्व में 'संपूर्ण सैन्य संगठन' पर इतना जोर दिया है। मेरे यह कहने के पीछे कि आप घरेलू मोर्चे पर और अधिक ध्यान दें, एक और भी कारण है। आने वाले महीनों में मैं और मंत्रिमंडल की युद्ध समिति के मेरे सहयोगी युद्ध के मोरचे पर-और भारत के अंदर क्रांति लाने के लिए भी - अपना सारा ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। इसीलिए हम इस बात को पूरी तरह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि आधार पर हमारा कार्य हमारी अनुपस्थिति में भी सुचारु रूप से और निर्बाध चलता रहे। साथियों एक वर्ष पहले, जब मैंने आपके सामने कुछ मांगें रखी थीं, तब मैंने कहा था कि यदि आप मुझे 'संपूर्ण सैन्य संगठन' दें तो मैं आपको एक 'एक दूसरा मोरचा' दूंगा। मैंने अपना वह वचन निभाया है। हमारे अभियान का पहला चरण पूरा हो गया है। हमारी विजयी सेनाओं ने निप्योनीज सेनाओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शत्रु को पीछे धकेल दिया है और अब वे हमारी प्रिय मातृभूमि की पवित्र धरती पर बहादुरी से लड़ रही हैं।
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rajnish manga
21-03-2014, 09:05 PM
https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcQZmwlHUUH3UYlQUHe7-b4yTdBXFwwHMVp7s1MobVZ5bJdvFXXunw
Subhash Chandra Bose


अब जो काम हमारे सामने हैं, उन्हें पूरा करने के लिए कमर कस लें। मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की व्यवस्था करने के लिए कहा था। मुझे वे सब भरपूर मात्रा में मिल गए हैं। अब मैं आपसे कुछ और चाहता हूं। जवान, धन और सामग्री अपने आप विजय या स्वतंत्रता नहीं दिला सकते। हमारे पास ऐसी प्रेरक शक्ति होनी चाहिए, जो हमें बहादुर व नायकोचित कार्यो के लिए प्रेरित करें। सिर्फ इस कारण कि अब विजय हमारी पहुंच में दिखाई देती है, आपका यह सोचना कि आप जीते-जी भारत को स्वतंत्र देख ही पाएंगे, आपके लिए एक घातक गलती होगी। यहां मौजूद लोगों में से किसी के मन में स्वतंत्रता के मीठे फलों का आनंद लेने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। एक लंबी लड़ाई अब भी हमारे सामने है। आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिए - मरने की इच्छा, ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत करने की इच्छा, जिससे स्वतंत्रता की राह शहीदों के खून बनाई जा सके। साथियों, स्वतंत्रता के युद्ध में मेरे साथियो! आज मैं आपसे एक ही चीज मांगता हूं, सबसे ऊपर मैं आपसे अपना खून मांगता हूं। यह खून ही उस खून का बदला लेगा, जो शत्रु ने बहाया है। खून से ही आजादी की कीमत चुकाई जा सकती है। तुम मुझे खून दो और मैं तुम से आजादी का वादा करता हूं।
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mayerfona
26-04-2014, 05:08 PM
I like the thread and it is good one.I like this politician very much.His speech is wonderful and i like it.

rafik
28-04-2014, 03:13 PM
बहूत अच्छा

rajnish manga
10-11-2014, 10:07 AM
चर्चिल का प्रसिद्ध भाषण / Famous Speech of Sir Winston Churchill
ब्लड, टॉयल, टीयर्स एंड स्वैट / Blood, Toil, Tears & Sweat
(13 मई, 1940)

https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcTy8MNASJEV6t4JnjUnMBrQtK79wD89f f8I-9kWnl5qXKWIO4LvVA^https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSF3vgRrvcmz54pVmWW611oOsWTZ8Wja jqlHTxZID8uSDy9S-UTKA

rajnish manga
10-11-2014, 10:13 AM
चर्चिल का प्रसिद्ध भाषण / Famous Speech of Sir Winston Churchill
ब्लड, टॉयल, टीयर्स एंड स्वैट / Blood, Toil, Tears & Sweat
(13 मई, 1940)

https://encrypted-tbn3.gstatic.com/images?q=tbn:ANd9GcSFVhLJgpVDok5dTXjDe5QVDGWiW3LyU ZpMWpyVHIf4133cN8MY


सर विंस्टन चर्चिल द्वारा 13 मई 1940 के दिन द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान दिये गए भाषण का संक्षिप्त रूप:

We are in the preliminary stage of one of the greatest battles in history....... >>>
हम इतिहास की सब से भयंकर युद्धों में से एक की दहलीज़ पर खड़े हैं .... हम बहुत सी जगहों पर जूझ रहे हैं - नोर्वे में और होलैंड में - और हमें भूमध्य में तैयार रहना है। हवाई जंग लगातार जारी है और यहाँ घर पर भी बहुत सी तैयारियाँ करनी हैं।

मैं इस सदन से वही कहूँगा जो मैंने उन सब से कहा जो इस सरकार में शामिल हुए हैं - मेरे पासलहू, मेहनत, आंसू और पसीनेके सिवा कुछ देने को नहीं है। हमारे आगे सबसे घोर क़िस्म की कठिनाइयाँ हैं। हमारे आगे संघर्ष और दुखों के कई, कई महीने हैं।

आप पूछेंगे, हमारा मक़सद क्या है? मैं एक शब्द में जवाब दे सकता हूँ: जीत। हर क़ीमत पर जीत - हर भय के बावजूद जीत - जीत, चाहे रस्ता कितना लम्बा और कठिन ही क्यों न हो, क्योंकि बिना जीत के जीवन नहीं है।

rajnish manga
14-03-2016, 11:14 PM
KING EDWARD VIII (r. Jan – December 1936)
Broadcast after his abdication, 11 December 1936

राजाधिराज एडवर्ड VIII (जनवरी 1936 – दिसम्बर 1936)
राजगद्दी छोड़ने के बाद प्रसारित हुआ भाषण, 11 दिसम्बर 1936

http://raylemire.com/wp-content/uploads/2014/12/king-edward-viii.jpg
अंततः मैं आपसे वह बात करने जा रहा हूँ जो मैं कहना चाहता हूँ. मैंने कभी कुछ छिपाना नहीं चाहा. किंतु अभी तक यह मेरा बोलना संविधान के अनुसार संभव नहीं था.

कुछ ही घंटों पहले मैंने राजा और सम्राट की हैसियत से अपना अंतिम कार्य निष्पादित किया, और अब जबकि मेरे भाई, ड्यूक ऑफ़ यॉर्क, गद्दी संभाल चुके हैं, सबसे पहले मैं उनके प्रति अपनी वफ़ादारी घोषित करता हूँ. यह मैं अपने पूरे दिल से कह रहा हूँ.

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rajnish manga
14-03-2016, 11:16 PM
आप सभी उन कारणों से अवगत हैं जिनकी वजह से मुझे गद्दी छोड़नी पड़ी है. परन्तु मैं चाहता हूँ कि आप इसे समझे कि यह निर्णय लेते हुये मैं इस देश को या इस साम्राज्य को कभी नहीं भूला जिसकी विगत 25 वर्ष के अंतराल में प्रिंस ऑफ़ वेल्स, और बाद में राजा के रूप में खिदमत करने की कोशिश करता रहा. लेकिन आप यकीन करें कि अपनी जिम्मेदारियों का बोझ उठाना और राजा के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना, जो मैं करना चाहता था, परन्तु उस महिला की सहायता या सहयोग के बिना जिसे मैं प्यार करता हूँ यह मेरे लिये असंभव हो गया था.

और मैं चाहता हूँ कि आप इसे समझ ले कि जो निर्णय मैंने लिया है वह मेरा और केवल मेरा है. यह एक ऐसी बात थी जिस पर निर्णय लेना पूरी तरह मेरे वास्ते ज़रूरी हो गया था. इस मामले में दूसरे सबसे अधिक प्रभावित होने वाले व्यक्ति ने मुझे अंत तक इस रास्ते को छोड़ने की कोशिश की. मैंने जो निर्णय लिया है वह मेरी ज़िंदगी का सबसे गंभीरतापूर्वक लिया गया निर्णय है, यह सोचते हुये कि अंत में हम सभी के लिये यह सर्वोत्तम रहेगा.

मुझे यह निर्णय लेने में अधिक कठिनाई इस लिये नहीं हुयी क्योंकि मैं अपने भाई द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के कामों में ली गई ट्रेनिंग से तथा उसकी खूबियों से भली भांति अवगत हूँ जिसके आधार पर वह बिना किसी रुकावट या साम्राज्य के जीवन व प्रगति को नुक्सान पहुंचाये अविलम्ब मेरी जगह ले सकता है. उसे एक और अतुल्य वरदान प्राप्त है, जैसा कि आप में से बहुतों को प्राप्त है लेकिन जो मुझे अब तक नहीं मिल सका- एक खुशहाल घर जिसमें उसकी बीवी और बच्चे रहते हैं.

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rajnish manga
14-03-2016, 11:18 PM
कठिनाई भरे इन दिनों में मुझे अपनी महिमामयी माता तथा मेरे परिवार से बहुत सांत्वना मिली. राज्य के मंत्रियों, और विशेषकर प्रधानमंत्री मिस्टर बाल्डविन ने, मेरी बात को पूरी तरह समझते हुये व्यवहार किया. मुझमें और उनमें या मुझमे और संसद के बीच कभी कोई संवैधानिक मतभेद पैदा नहीं हुआ. अपने पिता द्वारा छोड़ी गई संवैधानिक परम्पराओं को निभाते हुए मैं ऐसा कोई मसला उत्पन्न होने ही न देता.

जब से मैं प्रिंस ऑफ़ वेल्स बना, और बाद में जब मुझे राजगद्दी सौंपी गई, मैं राज्य के जिस भी भाग में रहा या यात्रा पर गया, मुझे हर वर्ग के लोगों का भरपूर प्यार मिला. इस बात के लिये मैं बहुत आभारी हूँ.

अब मैं सार्वजनिक कार्यों से अवकाश ले रहा हूँ, और अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो रहा हूँ. हो सकता है मुझे अपने क्षेत्र में जाने में कुछ समय लग जाये, लेकिन मैं ब्रिटिश कौम तथा साम्राज्य की मर्यादाओं का निष्ठापूर्वक पालन करता रहूँगा. और भविष्य में किसी भी समय यदि महामहिम को किसी निजी मुकाम पर मेरी सेवाओं की आवश्यकता पड़े, तो मैं पीछे नहीं हटूंगा.

और अब हमें एक नया राजा मिल गया है. मैं उनकी और आपकी, जो उनकी प्रजा हैं, की खुशी और ख़ुशहाली की कामना करता हूँ. ईश्वर आप पर कृपा करे. ईश्वर राजा की रक्षा करे.

(मूल अंग्रेजी भाषण का हिंदी अनुवाद रजनीश मंगा द्वारा)

rajnish manga
14-03-2016, 11:25 PM
http://i.dailymail.co.uk/i/pix/2015/03/01/0F6F92D100000578-2973681-Military_leaders_had_serious_concerns_about_the_Du ke_of_Windsor_-a-3_1425237164667.jpg

rajnish manga
14-03-2016, 11:48 PM
http://res.cloudinary.com/dk-find-out/image/upload/q_80,w_1440/A-Alamy-A4JEYK_gb8kdh.jpg

King Edward the VIII who abdicated his throne for the sake of his Lady Love Wallis Simpson in December 1936