PDA

View Full Version : करोड़पति बनना है तो नौकरी छोडिये.......


Gopal
15-03-2011, 11:53 PM
अगर Dheerubhai Ambani ने petrol pump की नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज Reliance जैसी company होती? अगर Narayan Murthy ने Patni Computers की अपनी नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज Infosys का कोई वजूद होता?Amitabh Bachchan ने भी पहले Shaw Wallace और बाद में Bird & Co, नमक एक shipping firm में काम किया, अगर उन्होंने भी अपने दिल कि आवाज़ नहीं सुनी होती तो भला भारत को कहाँ मिलता इतना बड़ा महानायक?.....(Read Full Article) (http://achchikhabar.blogspot.com/2011/01/how-to-become-crorepati-millionaire.html)


प्रिय मित्रों कृपया फोरम पे अपने विचार व्यक्त कर बताएं की ये article आपको कैसा लगा.

Kumar Anil
16-03-2011, 06:22 AM
एक सामान्य व्यक्ति की महत्वाकांक्षा जो साकार होने के लिये आकुल है और कहीँ न कहीँ बड़े नामोँ से स्वयं को तुष्ट करने का प्रयास कर रही है । सपनोँ को मूर्त रूप मेँ गढ़ने के लिये उद्दाम आवेग , एक ज़ुनून और उस ज़ुनून को लक्ष्य की प्राप्ति के लिये अतिरिक्त और बेशक़ीमती ऊर्ज़ा मेँ परिणत करने का नितान्त अभाव परिलक्षित हुआ । सफलता की पृष्ठभूमि मेँ निहित संघर्ष जो सामान्य और सफल को पृथक करता है , अनदेखा कर दिया गया है । सपने तो हैँ लेकिन उनके क्रियान्वन का मार्ग अस्पष्ट है । हिंदी ब्लॉग मेँ अँग्रेजी शब्दोँ की बहुतायत है , जिसे कम किया जा सकता है ।

sagar -
17-03-2011, 06:11 PM
अगर Dheerubhai Ambani ने petrol pump की नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज Reliance जैसी company होती? अगर Narayan Murthy ने Patni Computers की अपनी नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज Infosys का कोई वजूद होता?Amitabh Bachchan ने भी पहले Shaw Wallace और बाद में Bird & Co, नमक एक shipping firm में काम किया, अगर उन्होंने भी अपने दिल कि आवाज़ नहीं सुनी होती तो भला भारत को कहाँ मिलता इतना बड़ा महानायक?.....(Read Full Article) (http://achchikhabar.blogspot.com/2011/01/how-to-become-crorepati-millionaire.html)


प्रिय मित्रों कृपया फोरम पे अपने विचार व्यक्त कर बताएं की ये article आपको कैसा लगा.मुझे लगा आप हमे करोड़पति बनाने वाले हो भाई कुछ टिप्स देने वाले हो :cryingbaby::cryingbaby:

ishu
17-03-2011, 11:59 PM
मशहूर फिल्म स्टार अक्षय कुमार एक होटल में शैफ थे.वहां उनको कोई तीस हजार रुपया महीना मिलता था. वे वहां की नौकरी छोड़ कर फिल्मों में आए .. आज वो एक फिल्म के तीस करोड़ से ऊपर लेते हैं.

Gopal
18-03-2011, 12:14 AM
मशहूर फिल्म स्टार अक्षय कुमार एक होटल में शैफ थे.वहां उनको कोई तीस हजार रुपया महीना मिलता था. वे वहां की नौकरी छोड़ कर फिल्मों में आए .. आज वो एक फिल्म के तीस करोड़ से ऊपर लेते हैं.

धन्यवाद्. अक्षय कुमार का उदाहरण वाकई बहुत अच्छा है

Sikandar_Khan
18-03-2011, 12:14 AM
अगर Dheerubhai Ambani ने petrol pump की नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज Reliance जैसी company होती? अगर Narayan Murthy ने Patni Computers की अपनी नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज Infosys का कोई वजूद होता?Amitabh Bachchan ने भी पहले Shaw Wallace और बाद में Bird & Co, नमक एक shipping firm में काम किया, अगर उन्होंने भी अपने दिल कि आवाज़ नहीं सुनी होती तो भला भारत को कहाँ मिलता इतना बड़ा महानायक?.....(Read Full Article) (http://achchikhabar.blogspot.com/2011/01/how-to-become-crorepati-millionaire.html)


प्रिय मित्रों कृपया फोरम पे अपने विचार व्यक्त कर बताएं की ये article आपको कैसा लगा.

luck by chance
महोदय इस काम की सुरुवात पहले आप ही क्योँ नही करते हो विदेशी नौकरी को छोड़कर अपने देश मे अच्छा सा व्यापार डालकर विकास मे सहायक बनिए |
कथनी और करनी मे बहुत अंतर होता है |
अगर आपकी बात मानकर भारत का हर फौजी नौकरी छोड़कर बैठ जाए तो हो गया देश का कल्याण |
ये सब किस्मत का खेल है भाई

kuram
18-03-2011, 07:35 PM
गोपाल बंधू काहे बंसी बजवाने पे तुले हो ?
जब तक कुंवारे थे साल में दो चार नौकरी तो बदलते ही थे. अपना तो एक ही हाल रहा है - भूख मरे नहीं और पेट भरे नहीं.
अब बीवी भी आ गयी है तो नौकरी छोड़ने से इतना डर लगता है. जैसे कुते को ईंट से.
सब आंकड़ो का खेल है बंधू अभी एक पंडित जी कह रहे थे - शिवजी विष पीकर महान हो गए तो महान बनना है तो विष पी लो.

Gopal
19-03-2011, 01:35 AM
luck by chance
महोदय इस काम की सुरुवात पहले आप ही क्योँ नही करते हो विदेशी नौकरी को छोड़कर अपने देश मे अच्छा सा व्यापार डालकर विकास मे सहायक बनिए |
कथनी और करनी मे बहुत अंतर होता है |
अगर आपकी बात मानकर भारत का हर फौजी नौकरी छोड़कर बैठ जाए तो हो गया देश का कल्याण |
ये सब किस्मत का खेल है भाई

कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद् .

यदि आपने पूरा लेख ठीक से पढ़ा होगा तो उसमे मैंने अपने नौकरी छोड़ने के प्लान के बार में बताया है,,,,और आपका कहना बिलकुल सही है...
अगर हर इंसान की कथनी करनी एक हो जाती तो हर इंसान महान हो जाता.
और मेरे इस लेख में नौकरी छोड़ो ही ऐसा नहीं कहा गया है... यदि आप
अपने काम से संतुष्ट हाँ तो फिर उसे करते रहना ही अच्छा है,,,,,लेकिन यदि आप वाकई में ढेरों पैसे कमाना चाहते हैं तो नौकरी से तो ये संभव नहीं है.

senior
19-03-2011, 09:25 PM
"लेकिन यदि आप वाकई में ढेरों पैसे कमाना चाहते हैं तो"
सब यहीं रह जाएगा--
पूत सपूत का धन संचय
पूत कपूत का धन संचय

amit_tiwari
20-03-2011, 02:33 AM
अहा भाई सब लोग इतना विरोध क्यूँ कर रहे हो!!!
कुछ गलत तो नहीं लिखा! ये संभव है की आपकी परिस्थिति में ऐसा करना संभव ना हो किन्तु उसके लिए लेखक को तो दोष ना दें !

नौकरी या बिजनेस? ये कुछ खास चीजों पर निर्भर करता है जैसे
१- आपका व्यक्तित्व! यही निर्णायक तत्व है, हर मनुष्य की अपनी प्रकृति अपना स्वभाव होता है और वो उसी के अनुरूप कार्य करना चाहता है तो यदि आपको एक नियमित १०-५ का जीवन पसंद है तो आप वही करेंगे और जिसे अनियमितता पसंद है वो वही करेगा |
२- आपका क्षेत्र! जरुरी नहीं की हर व्यक्ति की महारथ वाले क्षेत्र को एक व्यापार में बदला जा सके| जैसे एक जमाने में तलवार बनाना कोई व्यापर हो सकता था किन्तु आज नहीं!
३- महत्वकांक्षा का स्तर! यह एक विवाद का विषय हो सकता है किन्तु व्यापार या तो व्यक्ति मज़बूरी में करता है या फिर अति महत्वकांक्षा में |

@गोपाल : बन्धु लेख सही नब्ज़ पकड़ता हुआ है बस शायद इस थ्रेड का टाइटल गलत पड़ गया, लोग समझ के आये की कोई करोडपति बनने का नुस्खा मिलेगा और मिला लेख | खैर बढ़िया लिखा और बहुत सही लिखा | वैसे entrepreneurship की बात यहाँ की शिक्षा प्रणाली में वैसे ही है जैसे रेत को घिस के तेल निकालना | MBA स्कूलों से चूजे निकल रहे हैं जो बस सीधे डिग्री लेकर नौकरी ढूँढने निकल लेते हैं | किसी के मुंह से धोखे से भी एक यूनीक बिजनेस आइडिया कोई नयी शुरुआत का फंडा नहीं निकलेगा | मैं व्यक्तिगत रूप से एक ऐसी महान आत्मा से मिला जिन्होंने पहले IIT की एक सीट तबाह की और फिर आईआईएम की एक सीट स्वाहा की और अभी वेरिजोन कंपनी में सपत्नीक सेल्समैन हैं |क्या करियेगा ऐसी डिग्रियों का !!!

amit_tiwari
20-03-2011, 02:48 AM
"लेकिन यदि आप वाकई में ढेरों पैसे कमाना चाहते हैं तो"
सब यहीं रह जाएगा--
पूत सपूत का धन संचय
पूत कपूत का धन संचय

भाई धन कमाने का अर्थ एकमात्र पूत के लिए बचाना है क्या ?
खुद के ऊपर धन खर्च करने में क्या बुराई है ?

Gopal
20-03-2011, 04:25 AM
अहा भाई सब लोग इतना विरोध क्यूँ कर रहे हो!!!
कुछ गलत तो नहीं लिखा! ये संभव है की आपकी परिस्थिति में ऐसा करना संभव ना हो किन्तु उसके लिए लेखक को तो दोष ना दें !

नौकरी या बिजनेस? ये कुछ खास चीजों पर निर्भर करता है जैसे
१- आपका व्यक्तित्व! यही निर्णायक तत्व है, हर मनुष्य की अपनी प्रकृति अपना स्वभाव होता है और वो उसी के अनुरूप कार्य करना चाहता है तो यदि आपको एक नियमित १०-५ का जीवन पसंद है तो आप वही करेंगे और जिसे अनियमितता पसंद है वो वही करेगा |
२- आपका क्षेत्र! जरुरी नहीं की हर व्यक्ति की महारथ वाले क्षेत्र को एक व्यापार में बदला जा सके| जैसे एक जमाने में तलवार बनाना कोई व्यापर हो सकता था किन्तु आज नहीं!
३- महत्वकांक्षा का स्तर! यह एक विवाद का विषय हो सकता है किन्तु व्यापार या तो व्यक्ति मज़बूरी में करता है या फिर अति महत्वकांक्षा में |

@गोपाल : बन्धु लेख सही नब्ज़ पकड़ता हुआ है बस शायद इस थ्रेड का टाइटल गलत पड़ गया, लोग समझ के आये की कोई करोडपति बनने का नुस्खा मिलेगा और मिला लेख | खैर बढ़िया लिखा और बहुत सही लिखा | वैसे entrepreneurship की बात यहाँ की शिक्षा प्रणाली में वैसे ही है जैसे रेत को घिस के तेल निकालना | MBA स्कूलों से चूजे निकल रहे हैं जो बस सीधे डिग्री लेकर नौकरी ढूँढने निकल लेते हैं | किसी के मुंह से धोखे से भी एक यूनीक बिजनेस आइडिया कोई नयी शुरुआत का फंडा नहीं निकलेगा | मैं व्यक्तिगत रूप से एक ऐसी महान आत्मा से मिला जिन्होंने पहले IIT की एक सीट तबाह की और फिर आईआईएम की एक सीट स्वाहा की और अभी वेरिजोन कंपनी में सपत्नीक सेल्समैन हैं |क्या करियेगा ऐसी डिग्रियों का !!!

आपक बहुत-बहुत धन्यवाद.
आपके बताये गए तीनो बिंदु बिलकुल सही लगे. और शायद आपने सही कहा ,,,Title.. कुछ और रखना चाहिए था.. sorry for the confusion guys :)

senior
20-03-2011, 01:18 PM
भाई धन कमाने का अर्थ एकमात्र पूत के लिए बचाना है क्या ?
खुद के ऊपर धन खर्च करने में क्या बुराई है ?
हर्ज है मेरे भाई !
आवश्यकता से अधिक खर्च करने में हर्ज है।
हम जितना खर्च करते हैं, किसी ना किसी रूप में हम प्राकृतिक संसाधनों को ही खर्च करते हैं। आप जानते ही होंगे कि आजकल प्राकृतिक संसाधनों का कितना दोहन बल्कि यों कहें कि शोषण हो रहा है।
मेरा विचार है कि 1980 से पहले तक सभी(अधिकतर) भारतीयों की सोच थी बचत करो !
इसी सोच से हमारे प्राकृतिक संसाधन काफ़ी हद तक बचे हुए थे।
अगर हम यों ही खर्च करते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हमारे हाथ में रुपए तो बहुत होंगे लेकिन बाज़ार में सामान नहीं होगा।

Kumar Anil
20-03-2011, 01:44 PM
अहा भाई सब लोग इतना विरोध क्यूँ कर रहे हो!!!
कुछ गलत तो नहीं लिखा! ये संभव है की आपकी परिस्थिति में ऐसा करना संभव ना हो किन्तु उसके लिए लेखक को तो दोष ना दें !

नौकरी या बिजनेस? ये कुछ खास चीजों पर निर्भर करता है जैसे
१- आपका व्यक्तित्व! यही निर्णायक तत्व है, हर मनुष्य की अपनी प्रकृति अपना स्वभाव होता है और वो उसी के अनुरूप कार्य करना चाहता है तो यदि आपको एक नियमित १०-५ का जीवन पसंद है तो आप वही करेंगे और जिसे अनियमितता पसंद है वो वही करेगा |
२- आपका क्षेत्र! जरुरी नहीं की हर व्यक्ति की महारथ वाले क्षेत्र को एक व्यापार में बदला जा सके| जैसे एक जमाने में तलवार बनाना कोई व्यापर हो सकता था किन्तु आज नहीं!
३- महत्वकांक्षा का स्तर! यह एक विवाद का विषय हो सकता है किन्तु व्यापार या तो व्यक्ति मज़बूरी में करता है या फिर अति महत्वकांक्षा में |

@गोपाल : बन्धु लेख सही नब्ज़ पकड़ता हुआ है बस शायद इस थ्रेड का टाइटल गलत पड़ गया, लोग समझ के आये की कोई करोडपति बनने का नुस्खा मिलेगा और मिला लेख | खैर बढ़िया लिखा और बहुत सही लिखा | वैसे entrepreneurship की बात यहाँ की शिक्षा प्रणाली में वैसे ही है जैसे रेत को घिस के तेल निकालना | mba स्कूलों से चूजे निकल रहे हैं जो बस सीधे डिग्री लेकर नौकरी ढूँढने निकल लेते हैं | किसी के मुंह से धोखे से भी एक यूनीक बिजनेस आइडिया कोई नयी शुरुआत का फंडा नहीं निकलेगा | मैं व्यक्तिगत रूप से एक ऐसी महान आत्मा से मिला जिन्होंने पहले iit की एक सीट तबाह की और फिर आईआईएम की एक सीट स्वाहा की और अभी वेरिजोन कंपनी में सपत्नीक सेल्समैन हैं |क्या करियेगा ऐसी डिग्रियों का !!!

न तो कोई विरोध है न ही आपत्ति । एक लेखक ने सदस्योँ से विचारोँ की अपेक्षा की और पक्ष और विपक्ष दोनोँ मेँ ही विचार आये । लेखक को दोनोँ को ही खुले दिल से स्वीकार करते हुये अपने तर्कोँ से सन्तुष्ट करना चाहिये । लेखक एक विजन देखता है और अपने कल्पनालोक मेँ ही उसे मूर्तरूप प्रदान करते हुये पाठकोँ के सम्मुख रखता है । लेखन का धर्म विचारोँ के क्रियान्वन मेँ निहित है । हर व्यक्ति सपने देखता है , उन सपनोँ को साकार करना चाहता है । परन्तु सपनोँ को साकार करने के मध्य आने वाली कठिनाईयोँ अथवा सपनोँ को हक़ीकत से जोड़ने वाले पुल का अभाव इस लेख मेँ दिख रहा था । टाटा , बिड़ला , अम्बानी या बच्चन बनने की ख़्वाहिश तो हर कोई सँजोये रहता है लेकिन इस मुक़ाम तक पहुँचने के संघर्ष का माद्दा कितनोँ मेँ होता है और उस संघर्ष से क्या लेख ने परिचित करवाया , शायद नहीँ । मंजिल तो बतायी गयी पर रास्ता नहीँ । रास्ते की दुश्वारियाँ बताना भी पथ प्रदर्शक का कर्तव्य बनता है ।

Gopal
20-03-2011, 10:47 PM
न तो कोई विरोध है न ही आपत्ति । एक लेखक ने सदस्योँ से विचारोँ की अपेक्षा की और पक्ष और विपक्ष दोनोँ मेँ ही विचार आये । लेखक को दोनोँ को ही खुले दिल से स्वीकार करते हुये अपने तर्कोँ से सन्तुष्ट करना चाहिये । लेखक एक विजन देखता है और अपने कल्पनालोक मेँ ही उसे मूर्तरूप प्रदान करते हुये पाठकोँ के सम्मुख रखता है । लेखन का धर्म विचारोँ के क्रियान्वन मेँ निहित है । हर व्यक्ति सपने देखता है , उन सपनोँ को साकार करना चाहता है । परन्तु सपनोँ को साकार करने के मध्य आने वाली कठिनाईयोँ अथवा सपनोँ को हक़ीकत से जोड़ने वाले पुल का अभाव इस लेख मेँ दिख रहा था । टाटा , बिड़ला , अम्बानी या बच्चन बनने की ख़्वाहिश तो हर कोई सँजोये रहता है लेकिन इस मुक़ाम तक पहुँचने के संघर्ष का माद्दा कितनोँ मेँ होता है और उस संघर्ष से क्या लेख ने परिचित करवाया , शायद नहीँ । मंजिल तो बतायी गयी पर रास्ता नहीँ । रास्ते की दुश्वारियाँ बताना भी पथ प्रदर्शक का कर्तव्य बनता है ।

जिन लोगों का नाम मैंने लिया है उनके बारे में शायद ही कोई माननीय सदस्य ना जानता हो...हम सब उनकी सफलता और संघर्ष को पहले से जानते हैं.....
और मैं यह कहना चाहूँगा कि हर एक व्यक्ति में ये माद्द्दा होता है,,चाहे वो इस बात से परिचित हो या अपरिचित ...स्वामी विवेकानंदा (http://achchikhabar.blogspot.com/2011/03/swami-vivekananda-quotes-in-hindi.html)ने कहा भी है....:"कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है.अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं."

और हम सब आत्मा ही तो हैं..हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है..हो सकता है अभी आप मेरी बात को हलके में लें..शायद हँसे भी लेकिन कल जब मैं अपनी कर्मठता से ये सच कर दिखाऊंगा तब शायद आप भी मेरे ऊपर गर्व करें.

और एक बात और मैं पथ प्रदर्शक नहीं हूँ मैं तो खुद उस मार्ग का एक पथिक हूँ. पर हाँ जब मैं एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लूँगा तो पथ प्रदर्शक भी बन जाऊँगा.

amit_tiwari
20-03-2011, 11:23 PM
न तो कोई विरोध है न ही आपत्ति । एक लेखक ने सदस्योँ से विचारोँ की अपेक्षा की और पक्ष और विपक्ष दोनोँ मेँ ही विचार आये । लेखक को दोनोँ को ही खुले दिल से स्वीकार करते हुये अपने तर्कोँ से सन्तुष्ट करना चाहिये । लेखक एक विजन देखता है और अपने कल्पनालोक मेँ ही उसे मूर्तरूप प्रदान करते हुये पाठकोँ के सम्मुख रखता है । लेखन का धर्म विचारोँ के क्रियान्वन मेँ निहित है । हर व्यक्ति सपने देखता है , उन सपनोँ को साकार करना चाहता है । परन्तु सपनोँ को साकार करने के मध्य आने वाली कठिनाईयोँ अथवा सपनोँ को हक़ीकत से जोड़ने वाले पुल का अभाव इस लेख मेँ दिख रहा था । टाटा , बिड़ला , अम्बानी या बच्चन बनने की ख़्वाहिश तो हर कोई सँजोये रहता है लेकिन इस मुक़ाम तक पहुँचने के संघर्ष का माद्दा कितनोँ मेँ होता है और उस संघर्ष से क्या लेख ने परिचित करवाया , शायद नहीँ । मंजिल तो बतायी गयी पर रास्ता नहीँ । रास्ते की दुश्वारियाँ बताना भी पथ प्रदर्शक का कर्तव्य बनता है ।

अनिल जी आप आयु और अनुभव में मुझसे ज्यादा हैं अतः आप भी स्वीकारेंगे कि सफलता का सिर्फ एक तरीका होता है 'कठोर मेहनत और पक्का इरादा' | जिन्हें अपने लक्ष्य का पता है और जिन्हें वहाँ तक पहुचने से कम कुछ भी किसी भी हालत में मंजूर नहीं है उन्हें करोडपति क्या अरबपति बनने से कोई नहीं रोक सकता| अम्बानी ने रात रात सिक्के पिघला के पहली फैक्टरी के लिए धन जुटाया, सुब्रत सहारा ने टूटे स्कूटर, १ मेज और २ कुर्सी से धंधा जमाया, अमिताभ बच्चन ने एक एंकर की नौकरी के लिए ठोकर खायी, गोविंदा ने सरोज खान से विनती करके फ्री में डांस सीखा, बिल गेट्स ने झूठ बोल कर तब पहले सोफ्टवेयर बनाने का कोंट्रेक्त लिए जब उन्हें खुद पता ही नहीं था कि वो बनेगा भी या नहीं | यहाँ ये ध्यान देने योग्य नहीं है कि उन्होंने कितनी तकलीफे झेली, बिलकुल ध्यान मत दीजिये, ध्यान दीजिये सिर्फ इस बात पर कि उन्होंने जिस चीज के लिए ये सब कठिनाई देखि आज वही चीज उनकी पहचान है, अम्बानी आज भी पेट्रोलियम के रजा हैं, सुब्रत आज भी फाइनेंसिंग किंग हैं, अमिताभ कि आवाज पहचान है, गोविंदा डांस का दूसरा नाम है, बिल गेट्स को सोफ्टवेयर के लिए ही जाना जाता है | इन सबको तब अपने ऊपर भरोसा था जब उन्हें वो काम आता भी नहीं था | जिस किसी में भी इतना पागलपन है उसे कोई रोक ही नहीं सकता | गाँव में हो या शहर में, पढ़ा लिखा हो या नहीं, मौका मिले या नहीं वो सफल होगा | जो खुद को प्रतिभाशाली मानते हैं और रोना रोते हैं कि उन्हें अवसर नहीं मिला उन्हें मैं कहूँगा कि चुल्लू भर पानी तो मिला ना !!!! गोपाल जी ने एकदम ठीक उधृत किया कि असंभव सिर्फ मन कि कमजोरी को छिपाने का साधन है और कुछ भी नहीं | यदि सब कुछ करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती तो हमें स्वीकारना चाहिए कि हमारे अन्दर वो बात ही नहीं थी कि हम सफल हो सकते|


जिन लोगों का नाम मैंने लिया है उनके बारे में शायद ही कोई माननीय सदस्य ना जानता हो...हम सब उनकी सफलता और संघर्ष को पहले से जानते हैं.....
और मैं यह कहना चाहूँगा कि हर एक व्यक्ति में ये माद्द्दा होता है,,चाहे वो इस बात से परिचित हो या अपरिचित ...स्वामी विवेकानंदा (http://achchikhabar.blogspot.com/2011/03/swami-vivekananda-quotes-in-hindi.html)ने कहा भी है....:"कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है.अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं."

और हम सब आत्मा ही तो हैं..हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है..हो सकता है अभी आप मेरी बात को हलके में लें..शायद हँसे भी लेकिन कल जब मैं अपनी कर्मठता से ये सच कर दिखाऊंगा तब शायद आप भी मेरे ऊपर गर्व करें.

और एक बात और मैं पथ प्रदर्शक नहीं हूँ मैं तो खुद उस मार्ग का एक पथिक हूँ. पर हाँ जब मैं एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लूँगा तो पथ प्रदर्शक भी बन जाऊँगा.



+1 :iagree::iagree:

Kumar Anil
23-03-2011, 09:53 AM
जिन लोगों का नाम मैंने लिया है उनके बारे में शायद ही कोई माननीय सदस्य ना जानता हो...हम सब उनकी सफलता और संघर्ष को पहले से जानते हैं.....
और मैं यह कहना चाहूँगा कि हर एक व्यक्ति में ये माद्द्दा होता है,,चाहे वो इस बात से परिचित हो या अपरिचित ...स्वामी विवेकानंदा (http://achchikhabar.blogspot.com/2011/03/swami-vivekananda-quotes-in-hindi.html)ने कहा भी है....:"कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है. ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है.अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं."

और हम सब आत्मा ही तो हैं..हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है..हो सकता है अभी आप मेरी बात को हलके में लें..शायद हँसे भी लेकिन कल जब मैं अपनी कर्मठता से ये सच कर दिखाऊंगा तब शायद आप भी मेरे ऊपर गर्व करें.

और एक बात और मैं पथ प्रदर्शक नहीं हूँ मैं तो खुद उस मार्ग का एक पथिक हूँ. पर हाँ जब मैं एक दिन अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लूँगा तो पथ प्रदर्शक भी बन जाऊँगा.



ईश्वर करे आप अपने लक्ष्य को शीघ्र हासिल कर लेँ , मेरी सद्भावनायेँ आपके साथ हैँ ।
मुझे दुःख इस बात का है कि आपने मेरी बातोँ को अन्यथा लिया । मैँ पुनः उद्धृत करना चाहूँगा कि एक लेखक ने अपने article पर विचार माँगे थे , मैँने उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की और तदोपरान्त वह बहस के रूप मेँ परिणत हो गयी और बहस विषयपरक होनी चाहिये । जो सफलता के शीर्ष को प्राप्त करते हैँ , उनके भीतर पागलपन की हद तक की एक धुन होती है , अर्जुन की तरह लक्ष्य पर निगाहेँ रहती हैँ , लक्ष्य के लिये एकनिष्ठ भाव से समर्पण रहता है , आवेग होता है , एक जुनून होता है और यही उनको सामान्यजनोँ से भिन्न करते हुये औरोँ की अपेक्षा अतिरिक्त ऊर्जा से लबरेज़ करता है जिसकी सहायता से वे अपने लक्ष्य की प्राप्ति करते हैँ । फिर वो चाहे करोड़पति होने की उत्कंठा हो या चाँद पर जाने का उद्दाम आवेग । चूँकि आपने लेखक की हैसियत से विचार माँगे थे और लेखक हमेशा पथप्रदर्शक होता है , रहनुमा होता है चाहे क्यूँ न वो बाबा नागार्जुन की तरह फक्खड़ी जीवन बिताता हो । विवेकानन्द ने क्या कहा था , नेपोलियन ने क्या कहा था , हम सब जानते हैँ । गीता , उपनिषद जो ज्ञानपूर्ण बात करते हैँ हममेँ से कितने अपने व्यवहारिक जीवन मेँ उतार पाते हैँ । हमारे भीतर छिपी असीम ऊर्जा का कितने प्रतिशत उपभोग कर पाते हैँ , यह बहस का अलग विषय है । प्रत्येक व्यक्ति का रंग रूप एक जैसा नहीँ होता , उसके विचार भिन्न होते हैँ , चिन्तन पृथक होता है , रुचियाँ असमान होती हैँ , तो ऐसी दशा मेँ अपने अनुरूप चीजोँ का चयन करते हैँ । आत्मा की बात की है तो आत्मा माया के फेर मेँ नहीँ रहती , उसे तो बस निराकार ब्रह्म से मिलने की चाह होती है ।
आपके स्टीव जोब्स वाले प्रकरण से भिज्ञ हूँ और आप एक ब्लॉगर हैँ , ऐसा मेरे संज्ञान मेँ लाया गया , अस्तु एक विद्वजन से अपेक्षायेँ कुछ ज़्यादा ही हो जाती हैँ जो आपके इस article से पूर्ण न हो सकीँ ।

senior
24-03-2011, 06:47 AM
अमित जी
क्या आप सोचते है कि अपना काम होना चाहिए येन केन प्रकारेण
आपने उदाहरण दिया अम्बानी का ! क्या सिक्के गला कर या झूठ बोल कर बिल गेट्स की भान्ति? या इसी प्रकार का कोई भी अवैध कार्य करके सफ़लता पाना उचित लगता है आपको?

Kumar Anil
24-03-2011, 08:18 AM
अनिल जी आप आयु और अनुभव में मुझसे ज्यादा हैं अतः आप भी स्वीकारेंगे कि सफलता का सिर्फ एक तरीका होता है 'कठोर मेहनत और पक्का इरादा' | जिन्हें अपने लक्ष्य का पता है और जिन्हें वहाँ तक पहुचने से कम कुछ भी किसी भी हालत में मंजूर नहीं है उन्हें करोडपति क्या अरबपति बनने से कोई नहीं रोक सकता| अम्बानी ने रात रात सिक्के पिघला के पहली फैक्टरी के लिए धन जुटाया, सुब्रत सहारा ने टूटे स्कूटर, १ मेज और २ कुर्सी से धंधा जमाया, अमिताभ बच्चन ने एक एंकर की नौकरी के लिए ठोकर खायी, गोविंदा ने सरोज खान से विनती करके फ्री में डांस सीखा, बिल गेट्स ने झूठ बोल कर तब पहले सोफ्टवेयर बनाने का कोंट्रेक्त लिए जब उन्हें खुद पता ही नहीं था कि वो बनेगा भी या नहीं | यहाँ ये ध्यान देने योग्य नहीं है कि उन्होंने कितनी तकलीफे झेली, बिलकुल ध्यान मत दीजिये, ध्यान दीजिये सिर्फ इस बात पर कि उन्होंने जिस चीज के लिए ये सब कठिनाई देखि आज वही चीज उनकी पहचान है, अम्बानी आज भी पेट्रोलियम के रजा हैं, सुब्रत आज भी फाइनेंसिंग किंग हैं, अमिताभ कि आवाज पहचान है, गोविंदा डांस का दूसरा नाम है, बिल गेट्स को सोफ्टवेयर के लिए ही जाना जाता है | इन सबको तब अपने ऊपर भरोसा था जब उन्हें वो काम आता भी नहीं था | जिस किसी में भी इतना पागलपन है उसे कोई रोक ही नहीं सकता | गाँव में हो या शहर में, पढ़ा लिखा हो या नहीं, मौका मिले या नहीं वो सफल होगा | जो खुद को प्रतिभाशाली मानते हैं और रोना रोते हैं कि उन्हें अवसर नहीं मिला उन्हें मैं कहूँगा कि चुल्लू भर पानी तो मिला ना !!!! गोपाल जी ने एकदम ठीक उधृत किया कि असंभव सिर्फ मन कि कमजोरी को छिपाने का साधन है और कुछ भी नहीं | यदि सब कुछ करने के बाद भी सफलता नहीं मिलती तो हमें स्वीकारना चाहिए कि हमारे अन्दर वो बात ही नहीं थी कि हम सफल हो सकते|




+1 :iagree::iagree:

अमित जी , निश्चय ही उम्र मेँ बड़ा हूँ , सो पाँच दस बसंत , अनुभव के कुछ अधिक होँगे और ज्ञान एक सामान्य व्यक्ति जितना । मुझे कठोर मेहनत पक्का इरादा से कभी असहमति न थी , भाग्य का निर्माता सही दिशा मेँ किया गया कर्म ही है , ऐसा मैँ जानता हूँ । लेकिन मैँने लेख की परिधि मेँ , लेखक की भावना के दृष्टिगत ही , पाठक के रूप मेँ विचार व्यक्त किये थे । बहस का मुद्दा वह लेख है न कि उसमेँ समावेश न की गयी वो बातेँ जो लेख की समग्रता / पूर्णता के लिये अपरिहार्य हैँ । शेष चीजेँ गोपाल जी को सम्बोधित प्रविष्टि से स्पष्ट हैँ ।

amit_tiwari
26-03-2011, 03:24 AM
अमित जी
क्या आप सोचते है कि अपना काम होना चाहिए येन केन प्रकारेण
आपने उदाहरण दिया अम्बानी का ! क्या सिक्के गला कर या झूठ बोल कर बिल गेट्स की भान्ति? या इसी प्रकार का कोई भी अवैध कार्य करके सफ़लता पाना उचित लगता है आपको?

मैं तीन सौ रुपैये के लिए चोरी करने वाले को बेवक़ूफ़ कहूँगा और तीन सौ करोड़ की चोरी छोड़ने वाले को बड़ा बेवक़ूफ़ कहूँगा |

अमित जी , निश्चय ही उम्र मेँ बड़ा हूँ , सो पाँच दस बसंत , अनुभव के कुछ अधिक होँगे और ज्ञान एक सामान्य व्यक्ति जितना । मुझे कठोर मेहनत पक्का इरादा से कभी असहमति न थी , भाग्य का निर्माता सही दिशा मेँ किया गया कर्म ही है , ऐसा मैँ जानता हूँ । लेकिन मैँने लेख की परिधि मेँ , लेखक की भावना के दृष्टिगत ही , पाठक के रूप मेँ विचार व्यक्त किये थे । बहस का मुद्दा वह लेख है न कि उसमेँ समावेश न की गयी वो बातेँ जो लेख की समग्रता / पूर्णता के लिये अपरिहार्य हैँ । शेष चीजेँ गोपाल जी को सम्बोधित प्रविष्टि से स्पष्ट हैँ ।

मैं आपके द्वारा प्रारंभ की गयी चर्चा को विस्तार दे रहा था अनिल जी | आपके विचारों से मेरा मतभेद नहीं है |मुझे काफी सीमित विषय पसंद आते हैं इसलिए उन्हें ही विस्तार देता हूँ जिससे ज्यादा से ज्यादा गुणीजनों के विचार मिलें | गोपाल जी के लेख मुझे अच्छे लगे और उस पर आपकी समीक्षा ने इस सूत्र को जीवंत कर दिया | निश्चित ही आपके टिपण्णी गोपाल जी को अगली बार अपना लेख सम्पूर्ण करने को प्रेरित करेगी |

senior
26-03-2011, 05:43 AM
मैं तीन सौ रुपैये के लिए चोरी करने वाले को बेवक़ूफ़ कहूँगा और तीन सौ करोड़ की चोरी छोड़ने वाले को बड़ा बेवक़ूफ़ कहूँगा |
यानि आप पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं ? अपने असूल भी तोड़ सकते हैं !
मुझे तो लगा था कि आप में आदर्श?........ आपने लिए आदर्श, असूल इन श्ब्दों के कोई मायने नहीं !!!!!!!!!

ndhebar
26-03-2011, 06:34 PM
आदर्श ............
दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है
दूसरों के बारे कहने से पहले खुद के भीतर झांक कर देखिये
कितना आदर्श बाकि है
(ये टिपण्णी सभी के लिए है स्वैम मेरे लिए भी अतः इसे व्यक्तिगत आक्षेप ना समझें)

VIDROHI NAYAK
26-03-2011, 10:28 PM
भाई मै तो नौकरी ही नहीं करूँगा

amit_tiwari
27-03-2011, 04:46 AM
मैं तीन सौ रुपैये के लिए चोरी करने वाले को बेवक़ूफ़ कहूँगा और तीन सौ करोड़ की चोरी छोड़ने वाले को बड़ा बेवक़ूफ़ कहूँगा |
यानि आप पैसे के लिए कुछ भी कर सकते हैं ? अपने असूल भी तोड़ सकते हैं !
मुझे तो लगा था कि आप में आदर्श?........ आपने लिए आदर्श, असूल इन श्ब्दों के कोई मायने नहीं !!!!!!!!!

क्यूंकि यह सूत्र गोपाल भाई के लेख पर है अतः मैं अपने विचारों के बारे में अधिक लिख कर सूत्र को विषय से अलग नहीं करूँगा किन्तु आपकी शंका निवारण के लिए सिर्फ इतना कहूँगा कि मेरा ध्यान सक्सेस पर अधिक रहता है, तरीकों पर नहीं| सही तरीके से मिल जाये तो बेहतर है वरना जुगाड़ ही सही | जो लोग मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं उन्हें पता है कि मैं दिन रात काम करता हूँ, आप फोन करेंगे तो मैं sms से जवाब दूंगा और sms का जवाब हफ्ते भर बाद मिलता है तो ऐसे व्यक्ति से आदर्श आदि की आशा करना व्यर्थ है |

Bholu
28-03-2011, 05:27 AM
अगर dheerubhai ambani ने petrol pump की नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज reliance जैसी company होती? अगर narayan murthy ने patni computers की अपनी नौकरी नहीं छोड़ी होती तो क्या आज infosys का कोई वजूद होता?amitabh bachchan ने भी पहले shaw wallace और बाद में bird & co, नमक एक shipping firm में काम किया, अगर उन्होंने भी अपने दिल कि आवाज़ नहीं सुनी होती तो भला भारत को कहाँ मिलता इतना बड़ा महानायक?.....(read full article) (http://achchikhabar.blogspot.com/2011/01/how-to-become-crorepati-millionaire.html)


प्रिय मित्रों कृपया फोरम पे अपने विचार व्यक्त कर बताएं की ये article आपको कैसा लगा.

आपकी बात सत्य है मित्र लेकिन आगे बडा जाता है एक बडे आइडिये से दिल की आबाज भी सच है लेकिन इस आवाज मे कोन्फिडेन्स होना जरूरी है
मेरे हिसाब से बा करने बाला आदमी बाते करता है और काम करने बाला व्यक्ति काम से वक्त ही नही रहता

senior
29-03-2011, 08:54 PM
आदर्श ............
दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है
दूसरों के बारे कहने से पहले खुद के भीतर झांक कर देखिये
कितना आदर्श बाकि है
(ये टिपण्णी सभी के लिए है स्वैम मेरे लिए भी अतः इसे व्यक्तिगत आक्षेप ना समझें)

अगर आदर्श जूते की नोक पर ही रखने हैं तो आदर्शों की बात करना ही बेकार है।
यहां पर मैंने काफ़ी आदर्शपति (आदर्शवादी नहीं) देखे हैं तो लिखा था।
हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और।
act before you preach.
देश को सुधारने से पहले खुद को तो सुधारो !
देश सुधारने की बात करते हैं और खुद उल्टे सीधे ढंग से पैसा कमाने की सोच को सही बताते हैं।
मैंने सुना था कि उस तथाकथित दुनिया के सबसे बड़े अमीर ने किसी दूसरे की तकनीक चुरा कर पेटेंट करा ली थी?

senior
29-03-2011, 09:00 PM
क्यूंकि यह सूत्र गोपाल भाई के लेख पर है अतः मैं अपने विचारों के बारे में अधिक लिख कर सूत्र को विषय से अलग नहीं करूँगा किन्तु आपकी शंका निवारण के लिए सिर्फ इतना कहूँगा कि मेरा ध्यान सक्सेस पर अधिक रहता है, तरीकों पर नहीं| सही तरीके से मिल जाये तो बेहतर है वरना जुगाड़ ही सही | जो लोग मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं उन्हें पता है कि मैं दिन रात काम करता हूँ, आप फोन करेंगे तो मैं sms से जवाब दूंगा और sms का जवाब हफ्ते भर बाद मिलता है तो ऐसे व्यक्ति से आदर्श आदि की आशा करना व्यर्थ है |

अपराध दो तरह के होते हैं :
1 सरकार के बनाए कानून को तोड़ कर
2 मानवता के विरूद्ध अपराध
कुछ अपराध सरकार की नज़र में तो अपराध होते हैं लेकिन लेकिन मानवता के विरुद्ध नहीं होते
और कुछ अपराध अमानवीय होते हैं लेकिन सरकार की नज़र में अपराध नहीं होते।
आप बड़े लाभ के लिए ये दोनों तरह के अपराध करने को तैयार हैं ?

VIDROHI NAYAK
29-03-2011, 09:10 PM
क्यूंकि यह सूत्र गोपाल भाई के लेख पर है अतः मैं अपने विचारों के बारे में अधिक लिख कर सूत्र को विषय से अलग नहीं करूँगा किन्तु आपकी शंका निवारण के लिए सिर्फ इतना कहूँगा कि मेरा ध्यान सक्सेस पर अधिक रहता है, तरीकों पर नहीं| सही तरीके से मिल जाये तो बेहतर है वरना जुगाड़ ही सही | जो लोग मुझे व्यक्तिगत रूप से जानते हैं उन्हें पता है कि मैं दिन रात काम करता हूँ, आप फोन करेंगे तो मैं sms से जवाब दूंगा और sms का जवाब हफ्ते भर बाद मिलता है तो ऐसे व्यक्ति से आदर्श आदि की आशा करना व्यर्थ है |
आपका अपनी सफलता के लिए व्यस्त होना सही गलत का तो निर्धारण नहीं करता है ! ऐसे में फोन सम्बंधित विषय को यहाँ रखना तो उचित ही नहीं है ! जहाँ तक जुगाड की बात आप करते हैं तो उससे जाहिर होता है की आप काफी घातक इंसान हैं जो वक्त आने पर अपनी सफलता को देखते हुए सारे मानवीय नियमों को ताख पर रखकर ' गहरी चोट ' दे सकते है ! औरो का तो मुझे पता नहीं परन्तु मै ऐसे मौकापरस्त इंसान से तो कभी किसी प्रकार का सम्बन्ध नहीं रखना चाहूँगा !क्या पता कब मुझे ही डस लिया जाए !
आशा है आप मेरी बात को अन्यथा नहीं लेंगे !