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View Full Version : प्रादेशिक लोकगीत


Sikandar_Khan
03-04-2011, 08:30 PM
बचपन मेँ मुहल्ले मेँ होने वाली शादियोँ मेँ ढोलक की थाप पर जब लोकगीतोँ की आलाप ली जाती थी , तब बरबस ही मेरी अम्मी के होँठ भी साथ निभाने लगते थे ।
होली मेँ गाया जाने वाला फगुआ बिना रंगोँ के ही , भीतर कोने कोने को रंगीन कर डालता था ।
अपने अब्बू के साथ गाँव जाने पर चौपाल मेँ आल्हा की तान सुनता था
तो मेरी माटी की ख़ुश्बू पूरी फ़िजां मे बिखरी मिलती थी ।
शादी के वक़्त गायी जाने वाली गालियोँ की मिठास शायद ही मेरे मुल्क़ के इलावा कहीँ और मिले ।
ये मेरा नसीब है कि मैँने इस मुल्क़ मेँ जन्म लिया
और कजरी , सोहर , बन्ना मेँ छिपी अपनी जड़ोँ को गौर से देखा ।
पर न जाने आज कैसी वक़्त की मार पड़ी कि हमारे ये लोकगीत हाशिये पर चले गये
और चली गयी हमारी तहज़ीब की मिठास ।
आपकी मीठी यादोँ को ताजा करने के लिये कुछ लोकगीत इस सूत्र मेँ लेकर आया हूँ ।
आपकी हौसला आफजाई इस सूत्र को बरक़रार रखने मेँ मेरी मदद करेगी ।

Sikandar_Khan
03-04-2011, 08:32 PM
विवाह–गीत

अन्दर से लाड्डो बाहर निकलो
कँवर चौंरी चढ़ गयौ
होय लो न रुकमण सामणी
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा बाबा मेरी सामणी।
तेरे बाबा को अपणी दादी दिला दूँ
होय लो न रुकमण सामणी।
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा ताऊ मेरी सामणी
तेरे ताऊ को अपणी ताई दिला दूँ
होय लो न रुकमण सामणी
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा भाई मेरी सामणी
तेरे भाई को अपणी बाहण दिला दूँ,
होय लो न रुकमण सामणी
-मैं कैसे निकलूँ मेरे कँवर रसिया
लखिया सा बाबुल मेरी सामणी
तेरे बाबुल को अपणी अम्मा दिला दूँ
होय लो न रुकमण सामणी।

Sikandar_Khan
03-04-2011, 09:40 PM
अँगना में रौरा मचाइल चिरैयाँ सत-बहिनी !
बिरछन पे चिक-चिक, किरैयन में किच-किच,चोंचें नचाइ पियरी पियरी !
चिरैयाँ सत-बहिनी !

एकहि गाँव बियाहिल सातो बहिनी,मइके अकेल छोट भइया,
'बिटियन की सुध लै आवहु रे बिटवा' कहि के पठाय दिहिल मइया !
'माई पठाइल रे भइया, मगन भइ गइलीं चिरैंयाँ सत-बहिनी !'

सात बहिन घर आइत-जाइत, मुख सुखला, थक भइला,
साँझ परिल तो माँगि बिदा भइया आपुन घर गइला!
अगिल भोर पनघट पर हँसि-हँसि बतियइली सत-बहिनी !

हमका दिहिन भैया सतरँग लहंगा, हम पाये पियरी चुनरिया,
सेंदुर-बिछिया हमका मिलिगा, हम बाँहन भर चुरियाँ !
भोजन पानी कौने कीन्हेल अब बूझैं सत-बहिनी !

का पकवान खिलावा री जिजिया? मीठ दही तू दिहली ?
री छोटी तू चिवरा बतासा चलती बार न किहली ?
तू-तू करि-करि सबै रिसावैं गरियावैं सत-बहिनी !

भूखा-पियासा गयेल मोर भइया , कोउ न रसोई जिमउली ,
दधि-रोचन का सगुन न कीन्हेल कहि -कहि सातों रोइली ,
उदबेगिल सब दोष लगावैं रोइ-रोइ सत-बहिनी !

'तुम ना खबाएल जेठी?', 'तू का किहिल कनइठी?' इक दूसर सों कहलीं
एकल हमार भइया, कोऊ तओ न पुछली सब पछताइतत रहिलीं !
साँझ सकारे नित चिचिहाव मचावें गुरगुचियाँ सत-बहिनी!

Sikandar_Khan
03-04-2011, 09:42 PM
अंगना में कुइयाँ खोनाइले, पीयर माटी नू ए,
ए ललना जाहिरे जगवहु कवन देवा, नाती जनम लिहले हो।
नाती जनमले त भल भइले, अब वंस बाढ़हू ए।
ए ललना देह घालऽ सोने के हँसुअवा,
बाबू के नार काटहु ए।
ए ललना देइ घालऽ सोने के खपड़वा,
बाबू के नहवाईवि ए।
ए ललना जाहि रे जगवहु कवन देवा,
नाती जनम लिहले ए ।
नाती जनमले त भल भइले, अब वंस बाढ़हु ए ।
ए ललना देई घालऽ रेशमऽ के कपड़वा,
जे बाबू के पेनहाइवि ए ।

Sikandar_Khan
03-04-2011, 09:45 PM
अंजन की सीटी में म्हारो मन डोले
चला चला रे डिलैवर गाड़ी हौले हौले ।।

बीजळी को पंखो चाले, गूंज रयो जण भोरो
बैठी रेल में गाबा लाग्यो वो जाटां को छोरो ।।
चला चला रे ।।

डूंगर भागे, नंदी भागे और भागे खेत
ढांडा की तो टोली भागे, उड़े रेत ही रेत ।।
चला चला रे ।।

बड़ी जोर को चाले अंजन, देवे ज़ोर की सीटी
डब्बा डब्बा घूम रयो टोप वारो टी टी ।।
चला चला रे ।।

जयपुर से जद गाड़ी चाली गाड़ी चाली मैं बैठी थी सूधी
असी जोर को धक्का लाग्यो जद मैं पड़ गयी उँधी ।।
चला चला रे ।।

शब्दार्थ:
डलेवर= ड्राईवर
गाबा= गाने लगना
डूंगर= पहाड़
नंदी= नदी
ढांडा= जानवर
जद= जब (जदी, जर और जण भी कहा जाता है)
असी= ऐसा, इतना

Sikandar_Khan
03-04-2011, 09:49 PM
अजी बाबा जी अजी ताऊ जी
हमारे आप वर ढूँढो
सास हो जैसी गऊ माता
ससुर हों दिल्ली के दादा जी।
पति हों बाल ब्रह्मचारी
जो राखै प्राणों से प्यारी जी
गड़ा दो केले के खम्बे जी
दिला दो वेद से फेरे जी।

( इस गीत में इसी प्रकार पिता ,चाचा, जीजा ,बड़े भाई से यह गीत सम्बोधित होकर आगे बढ़ता है)

फेरों के गीत-2

हम तो हो गए हैरान लाड्डो तेरे लिए…
गोकुल भी ढूँड्या लाड्डो मथुरा भी ढूँड्या
ढूँड्या- ढूँड्या शेरपुर लाड्डो तेरे लिए…
सारे कॉलिज के लड़के भी ढूँड्डे
ढूँड्या- ढूँड्या ये लल्लू लाड्डो तेरे लिए…
बिन्दी भी देंगे लाड्डो टिक्का भी देंगे
देंगे- देंगे ये झूमर लाड्डो तेरे लिए…

Sikandar_Khan
03-04-2011, 09:52 PM
अपना बन्ना फूल गुलाबी, बन्नो चम्पे की कली
इनकी मनोहर जोड़ी लागे कितनी भली
अपना बन्ना फूल गुलाबी, बन्नो चम्पे की कली
बहना के घर में ये पहली ख़ुशी है
पहली ख़ुशी बड़ी देर से मिली है
सपना पूरा हुआ, मन की आशा फली
इनकी मनोहर जोड़ी लागे कितनी भली
अपना बन्ना फूल गुलाबी, बन्नो चम्पे की कली
दिन रंग भरे आएँगे, होगी हर रात दिवाली
संग ले के चली अपने घर, अब दिया जलाने वाली
प्यारे भैया ने पाई दुल्हन साँचे में ढली
इनकी मनोहर जोड़ी लागे कितनी भली
अपना बन्ना फूल गुलाबी, बन्नो चम्पे की कली

Kumar Anil
03-04-2011, 09:59 PM
शुक्रिया जनाब ! ख़ालिस देशी लोकगीतोँ के माध्यम से एक ताज़ा हवा का झोँका आया है जो हमारी पोर पोर को शीतलता का अहसास करायेगा । इन लोकगीतोँ की रचना किसने की , किसी को भी नहीँ मालूम , बस विरासत मेँ ये मिलते गये । हमारे ये परम्परागत गीत हमारी अमूल्य थाती हैँ । इन गीतोँ मेँ छिपी है भारतीय संस्कृति और बसा है जीवन दर्शन । आपके सूत्र की सफलता के लिये मेरी शुभकामनायेँ ।

Sikandar_Khan
03-04-2011, 10:14 PM
शुक्रिया जनाब ! ख़ालिस देशी लोकगीतोँ के माध्यम से एक ताज़ा हवा का झोँका आया है जो हमारी पोर पोर को शीतलता का अहसास करायेगा । इन लोकगीतोँ की रचना किसने की , किसी को भी नहीँ मालूम , बस विरासत मेँ ये मिलते गये । हमारे ये परम्परागत गीत हमारी अमूल्य थाती हैँ । इन गीतोँ मेँ छिपी है भारतीय संस्कृति और बसा है जीवन दर्शन । आपके सूत्र की सफलता के लिये मेरी शुभकामनायेँ ।

कुमार भाई
उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार

Sikandar_Khan
04-04-2011, 06:59 AM
अमवा के लागेला टकोरवा रे संगिया
गूलर फरे ले हड़फोर
गोरिया के उठेलाहा छाती के जोबनवाँ
पिया के खेलवना रे होइ

भावार्थ

'आमों के टिकोरे लग गए, ओ संगी !
गूलर भी हड्डियों को फोड़कर फलों से लद गए हैं
गोरी के उरोज भी उभर आए हैं
अरे ये तो प्रियतम के लिए खिलौने बनेंगे !'

Sikandar_Khan
04-04-2011, 07:02 AM
अरे चन्दा !
तेरी निरमल कहिए चाँदनी,
राजा की बेटी पानी नीकरी

अरे कुँअटा!
तेरे ऊँचे-नीचे घाट रे,
जा ऊपर धोवै छोरा धोवती

अरे छोरा!

तू मारू बैंगन तोरि
ला जौं लौ मैं धोऊँ तेरी धोवती

अरे छोरी!
तेरे गोबर लिसरे हाथ रे,
दाग लगैगो मेरी धोवती

अरे छोरा!
मेरे मेंहदी रचि रहे हाथ रे,
रंग चुयेगी तेरी धोवती

अरे छोरा!
तू मन को बड़ो मलूक रे,
इत्ते बड़े पै क्वाँरो चौं (क्यों) रह्यौ (रहो) ?

अरे छोरी!
मेरे मरि गए माई बाप रे,
भैया भरोसे क्वाँरे हम रहे

अरे छोरी!
तू मन की बड़ी मलूक री,
इतनी बड़ी तौ क्वाँरी चौं रही?

अरे छोरा!
वर देखे देश-विदेश में,
मेरी जोड़ी को वर ना मिल्यौ

अरे छोरी!
चल चल तू सोरों घाट री,
ह्वाँ चलिके डारें दोनों भाँवरी

अरे छोरा!
वहाँ बहुत जुरैंगे लोग रे,
मोहि तो आवै देखौ लाज री।

Sikandar_Khan
04-04-2011, 07:04 AM
अरे बरसन लागे बुंदिया चला भागा पिया,

अरे घूंघटा भीगे तो भिजन दे अरे अंखिया ले चल बचाई पिया,

अरे नथ भीजे तो भीजन दे...अरे होंठवां ले चल बचाई पिया

अरे चोलीया भीजे तो भीजन दे अरे जुबना ले चल बचाइ पिया.

अरे लहंगा भीजे तो भीजन दे...अरे जंघिया ले चल बचाइ पिया

Sikandar_Khan
04-04-2011, 07:07 AM
आई सावन की बहार मोरे बारे बलमू

छाई घटा घनघोर बन में, बोलन लागे मोर।

रिमझिम पनियां बरसै जोर मोरे प्यारे बलमू।।

धानी चद्दर सिंआव, सारी सबज रंगाव।

वामें गोटवा टकाव, मोरे बारे बलमू।।

मैं तो जइहों कुंजधाम, सुनो कजरी ललाम।

जहाँ झूले राधे-श्याम, मोरे बारे बलमू।।

बलदेव क्यों उदास पुनि अइहौ तोरे पास।

मानो मोरा विसवास, मोरे बारे बलमू।।

Sikandar_Khan
04-04-2011, 07:11 AM
आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे,
आहे तोहे शिव धरु नट भेष कि डमरू बजावथ हे ।
तोहे गौरी कहई छी नाचय कि हम कोना क नाचब हे,

चारी सोच मोही होय कि हम कोना बांचब हे।
अमिय चूई भूमि खसत बाघम्बर जागत हे,
आहे होयत बाघम्बर बाघ बसहो धरि खायत हे।
सिर स संसरत सांप कि भूमि लोटायत हे,
आहे कार्तिक पोसल मयुर सेहो धरि खायत हे।
जटा स छलकत गंगा दसो दिस पाटत हे,
आहे होयत सहस्र मुख धार समेटलो नै जायत हे।
मुंडमाल छूटि खसत मसानी जागत हे,
आहे तोहे गौरी जेबहु पराय कि नाच के देखत हे।
भनहि विद्यापति गाओल गावि सुनाओल हे,
आहे राखल गौरी के मान चारु बचावल हे।

Sikandar_Khan
04-04-2011, 07:18 AM
बन्नी –गीत( माँ की सीख -हास –परिहस)

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो

जै तेरा ससुरा मन्दी ऐ बोल्लै

पत्थर की बण जाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो


जो तेरी सासु गाळी ऐ देगी

ले मूसळ गदकाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो

जो तेरा जेठा मन्दी ऐ बोल्लै

घूँघट मैं छिप जाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो

जो तेरी जिठाणी गाळी देगी

ले सोट्टा गदकाइयो मेरी लाड्डो ।

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो


जो तेरा देवरा मन्दी ऐ बोल्लै

हाँसी मैं टळ जाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो


जो तेरी नणदा गाळी ऐ देगी

चुटिया पकड़ घुमाइयो मेरी लाड्डो

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो


जो तेरा राजा मन्दी ऐ बोल्लै

कुछ न पलट कै कहियो मेरी लाड्डो ।

आर्यों का प्रण निभाइयो मेरी लाड्डो

Sikandar_Khan
04-04-2011, 07:23 AM
आल्हा
लागल कचहरी जब आल्हा के बँगला बड़े-बड़े बबुआन
लागल कचहरी उजैनन के बिसैनन के दरबार
नौ सौ नागा नागपूर के नगफेनी बाँध तरवार
बैठल काकन डिल्ली के लोहतमियाँ तीन हजार
मढ़वर तिरौता करमवार है जिन्ह के बैठल कुम्ह चण्डाल
झड़ो उझनिया गुजहनिया है बाबू बैठल गदहियावाल
नाच करावे बँगला में मुरलिधर बेन बजाव
मुरमुर मुरमुर बाजे सरंगी जिन्ह के रुन रुन बाजे सितार
तबला चटके रस बेनन के मुखचंद सितारा लाग
नाचे पतुरिया सिंहल दीप के लौंड़ा नाचे गोआलियरवाल
तोफा नाचे बँगला के बँगला होय परी के नाच
सात मन का कुण्डी दस मन का घुटना लाग
घैला अठारह सबजी बन गैल नौ नौ गोली अफीम
चौदह बत्ती जहरन के आल्हा बत्ती चबावत बाय
पुतली फिर गैल आँखन के अँखिया भैल रकत के धार
चेहरा चमके रजवाड़ा के लड़वैया शेर जवान
अम्बर बेटा है जासर के अपना कटले बीर कटाय
जिन्ह के चलले धरती हीले डपटै गाछ झुराय
ओहि समन्तर रुदल पहुँचल बँगला में पहुँचल जाय
देखल सूरत रुदल के आल्हा मन में करे गुनान
देहिया देखें तोर धूमिल मुहवाँ देखों उदास
कौन सकेला तोर पड़ गैल बाबू कौन ऐसन गाढ़
भेद बताब तूँ जियरा के कैसे बूझे प्रान हमार
हाथ जोड़ के रुदल बोलल भैया सुन धरम के बात
पड़ि सकेला है देहन पर बड़का भाइ बात मनाव
पूरब मारलों पुर पाटन में जे दिन सात खण्ड नेपाल
पच्छिम मारलों बदम जहौर दक्खिन बिरिन पहाड़
चार मुलुकवा खोजि ऐलों कतहीं नव जोड़ी मिले बार कुआँर
कनियाँ जामल नैना गढ़ में राजा इन्दरमन के दरबार
बेटी सयानी सम देवा के बर माँगल बाघ जुझर
बड़ि लालसा है जियरा में जो भैया के करौं
बियाह करों बिअहवा सोनवा से
एतना बोली आल्हा सुन गैल आल्हा मन मन करे गुनान
जोड़ गदोइ अरजी होय गैल बबुआ रुदल कहना मान हमार
जन जा रुदल नैनागढ़ में बबुआ किल्ला तूरे मान के नाहिं
बरिया राजा नैना गढ़ के लोहन में बड़ चण्डाल
बावन दुलहा के बँधले बा साढ़े सात लाख बरियात
समधी बाँधल जब गारत में अगुआ बेड़ी पहिरलन जाय
भाँट बजनियाँ कुल्हि चहला भैल मँड़वा के बीच मँझार
एकहा ढेकहो ढेलफुरवा मुटघिंचवा तीन हजार
मारल जेबव् नैनागढ़ में रुदल कहना मान हमार
केऊ बीन नव्बा जग दुनिया में जे सोनवा से करे बियाह
जन जा रुदल नैना गढ़ में बबुआ कहना मान हमार
प्रतना बोली रुदल सुन गैल रुदल बर के भैल अँगार
हाथ जोड़ के रुदल बोलल भेया सुनी बात हमार
कादर भैया तूँ कदरैलव् तोहरो हरि गैल ग्यान तोहार
धिरिक तोहरा जिनगी के जग में डूब गैल तरवार
जेहि दिन जाइब नैना गढ़ में अम्बा जोर चली तरवार
टूबर देहिया तूँ मत देखव् झिलमिल गात हमार
जेहि दिन जाइब नैना गढ़ में दिन रात चली तरवार
एतना बोली आल्हा सुन गैल आल्हा बड़ मोहित होय जाय
हाथ जोड़ के आल्हा बोलल बाबू सुनव् रुदल बबुआन
केत्त मनौलों बघ रुदल के बाबू कहा नव् मनलव् मोर
लरिका रहल ता बर जोरी माने छेला कहा नव् माने मोर
जे मन माने बघ रुदल से मन मानल करव् बनाय
एतना बोली रुदल सुन गैल रुदल बड़ मंड्गन होय जाय
दे धिरकारीरुदल बोलल भैया सुनीं गरीब नेवाज
डूब ना मूइलव् तूँ बड़ भाइ तोहरा जीअल के धिरकार
बाइ जनमतव् तूँ चतरा घर बबुआ नित उठ कुटतव् चाम
जात हमार रजपूतन के जल में जीबन है दिन चार
चार दिन के जिनगानी फिर अँधारी रात
दैब रुसिहें जिब लिहें आगे का करिहें भगवान
जे किछु लिखज नरायन बिध के लिखल मेंट नाहिं जाय

Sikandar_Khan
04-04-2011, 07:28 AM
एके कोखी[1] बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया
दू रंग नीतिया[2]
काहे कईल[3] हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

बेटा के जनम में त सोहर गवईल अरे सोहर गवईल[4]
हमार बेरिया, काहे मातम मनईल हमार बेरिया[5]

दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

बेटा के खेलाबेला[6] त मोटर मंगईल अरे मोटर मंगईल
हमार बेरिया, काहे सुपली मऊनीया[7] हमार बेरिया

दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

बेटा के पढ़ाबेला[8] स्कूलिया पठईल अरे स्कूलिया पठईल[9]
हमार बेरिया, काहे चूल्हा फूँकवईल हमार बेरिया

दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

बेटा के बिआह में त पगड़ी पहिरल[10] अरे पगड़ी पहिरल
हमार बेरिया, काहे पगड़ी उतारल[11] हमार बेरिया

दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी
दू रंग नीतिया

एके कोखी बेटा जन्मे एके कोखी बेटिया
दू रंग नीतिया
काहे कईल हो बाबू जी दू रंग नीतिया

शब्दार्थ:

1. ↑ कोख से पैदा
2. ↑ दुरंगी नीति
3. ↑ क्यों किया
4. ↑ सोहर गीत गवाए
5. ↑ हमारी बारी में
6. ↑ खेलने के लिए
7. ↑ सूप और डलिया
8. ↑ पढ़ाने के लिए
9. ↑ स्कूल भेजा
10. ↑ पगड़ी पहनी
11. ↑ पगड़ी उतारी

Sikandar_Khan
04-04-2011, 07:31 AM
काँकर ऊपर काँकरी, मेरी मैया रे जाए
मैं थारै आई पावहणी
जो मेरा रखोगे मान रे, मेरी मैया रे जाए

-मान राखैगी तेरी मायड़ी
जिसकी तू लाडो धीयड़ रे
-मायों के राखै न रहै
बीरणों की लम्बी पंसाल रे, मेरी मैया रे जाए

-जिब हम घर के नित छोटे
जिब क्यूं नी करा था बुहार , मेरी मैया री जाए
-इब तुम घर के लखपति
इब हमनै कर्या बुहार रे राम, मेरी मैया रे जा
फलसे का गाड्डा बेच कै, मेरी मैया रे जाए

तौं मेरे मँढ़ा चढ़ आइ रे
फलसे का गाड्डा ना बिकै, मेरी मैया री जाइ
फलसे की सोभा जाइ रे राम

-खूँटे की भुरिया बेच कै मेरी मैया रे जाए
तौं मेरे मँढा चढ़ आवै
-खूँटे की भुरिया ना बिकै
खूंटे की सोभा जाइ रे, मेरी मैया री जाए

-भावज का हँसला बेचकै
तौं मेरे मँढा चढ़ आवै तौं मेरे मँढा चढ़ आवै
-भावज का हँसला ना बिकै
हँसला तो बहू के बाप का, मेरी मैया री जाए

Sikandar_Khan
07-04-2011, 01:22 PM
काला पति

काले री बालम मेरे काले,

काले री बालम मेरे काले ।

जेठ गए दिल्ली ससुर बम्बई,

काला गया री कलकता नगरिया ,

काले री बालम मेरे काले ।

जेठ लाए लड्डू ,ससुर लाए बर्फ़ी,

काला लाया री काली गाजर का हलुआ,

काले री बालम मेरे काले ।

जेठ लाए साड़ी , ससुर लाए अँगिया ,

काला लाया री ,काली साटन का लहँगा ,

काले री बालम मेरे काले ।

जेठ लाए गुड्डा ,ससुर लाए गुड़िया

काला लाया री ,काली कुत्ती का पिल्ला ,

काले री बालम मेरे काले ।

Sikandar_Khan
09-04-2011, 10:00 AM
कोऊ दिन उठ गयो मेरा हाथ
बलम तोहे ऐसा मारूँगी
ऐसा मारूँगी बलम तोहे ऐसा मारूँगी

चकला मारूँ, बेलन मारूँ, फुँकनी मारूँगी
जो बालम तेरी मैया बचावै
वाकी चुटिया उखाड़ूँगी

थाली मारूँ, कटोरी मारूँ, चम्मच मारूँगी
जो बालम तेरी बहना बचावै
वाकी चुनरी फाड़ूंगी

लाठी मारूँ डंडा मारूँ थप्पड़ मारूँगी
जो बालम तेरो भैया बचावै
वाकी मूँछे उखाड़ूँगी

Sikandar_Khan
11-04-2011, 08:04 AM
अपना बन्ना फूल गुलाबी, बन्नो चम्पे की कली
इनकी मनोहर जोड़ी लागे कितनी भली
अपना बन्ना फूल गुलाबी, बन्नो चम्पे की कली
बहना के घर में ये पहली ख़ुशी है
पहली ख़ुशी बड़ी देर से मिली है
सपना पूरा हुआ, मन की आशा फली
इनकी मनोहर जोड़ी लागे कितनी भली
अपना बन्ना फूल गुलाबी, बन्नो चम्पे की कली
दिन रंग भरे आएँगे, होगी हर रात दिवाली
संग ले के चली अपने घर, अब दिया जलाने वाली
प्यारे भैया ने पाई दुल्हन साँचे में ढली
इनकी मनोहर जोड़ी लागे कितनी भली
अपना बन्ना फूल गुलाबी, बन्नो चम्पे की कली

Sikandar_Khan
11-04-2011, 08:06 AM
केसरिया बन्ना बागों में आया रे, केसरिया बन्ना बागों में आया रे
आवो री सज धज कर आवो री,
सखियन सब आवो री, माला पहनावो री
केसरिया बन्ना बागों में आया रे ।।

ये मेरे हाथ फूलों की डाली, ये मेरे हाथ फूलों की डाली
मैं जो मालन बन कर आई, बागों में ऐसी छाई
केसरिया बन्ना बागों में आया रे

ये मेरे हाथ चौमुखी दियना, ये मेरे हाथ चौमुखी दियना
मैं तो ज्योति बन कर आई, महलों में ऐसी छाई
केसरिया बन्ना बागों में आया रे

ये मेरे हाथ पानों के बीडे, ये मेरे हाथ पानों के बीडे,
मैं जो लाली बन कर आई, रंगों में ऐसी छाई
केसरिया बन्ना बागों में आया रे,
केसरिया बन्ना बागों में आया रे

आवो री सज धज कर आवो री,
सखियन सब आवो री, माला पहनावो री
केसरिया बन्ना बागों में आया रे ।।

Sikandar_Khan
18-04-2011, 11:41 PM
अँगना में रौरा मचाइल चिरैयाँ सत-बहिनी !
बिरछन पे चिक-चिक, किरैयन में किच-किच,चोंचें नचाइ पियरी पियरी !
चिरैयाँ सत-बहिनी !

एकहि गाँव बियाहिल सातो बहिनी,मइके अकेल छोट भइया,
'बिटियन की सुध लै आवहु रे बिटवा' कहि के पठाय दिहिल मइया !
'माई पठाइल रे भइया, मगन भइ गइलीं चिरैंयाँ सत-बहिनी !'

सात बहिन घर आइत-जाइत, मुख सुखला, थक भइला,
साँझ परिल तो माँगि बिदा भइया आपुन घर गइला!
अगिल भोर पनघट पर हँसि-हँसि बतियइली सत-बहिनी !

हमका दिहिन भैया सतरँग लहंगा, हम पाये पियरी चुनरिया,
सेंदुर-बिछिया हमका मिलिगा, हम बाँहन भर चुरियाँ !
भोजन पानी कौने कीन्हेल अब बूझैं सत-बहिनी !

का पकवान खिलावा री जिजिया? मीठ दही तू दिहली ?
री छोटी तू चिवरा बतासा चलती बार न किहली ?
तू-तू करि-करि सबै रिसावैं गरियावैं सत-बहिनी !

भूखा-पियासा गयेल मोर भइया , कोउ न रसोई जिमउली ,
दधि-रोचन का सगुन न कीन्हेल कहि -कहि सातों रोइली ,
उदबेगिल सब दोष लगावैं रोइ-रोइ सत-बहिनी !

'तुम ना खबाएल जेठी?', 'तू का किहिल कनइठी?' इक दूसर सों कहलीं
एकल हमार भइया, कोऊ तओ न पुछली सब पछताइतत रहिलीं !
साँझ सकारे नित चिचिहाव मचावें गुरगुचियाँ सत-बहिनी!

Sikandar_Khan
14-06-2011, 08:10 PM
अरे बरसन लागे बुंदिया चला भागा पिया,

अरे घूंघटा भीगे तो भिजन दे अरे अंखिया ले चल बचाई पिया,

अरे नथ भीजे तो भीजन दे...अरे होंठवां ले चल बचाई पिया

अरे चोलीया भीजे तो भीजन दे अरे जुबना ले चल बचाइ पिया.

अरे लहंगा भीजे तो भीजन दे...अरे जंघिया ले चल बचाइ पिया

Sikandar_Khan
14-06-2011, 08:32 PM
अजी बाबा जी (फ़ेरों का गीत)



अजी बाबा जी अजी ताऊ जी
हमारे आप वर ढूँढो
सास हो जैसी गऊ माता
ससुर हों दिल्ली के दादा जी।
पति हों बाल ब्रह्मचारी
जो राखै प्राणों से प्यारी जी
गड़ा दो केले के खम्बे जी
दिला दो वेद से फेरे जी।

( इस गीत में इसी प्रकार पिता ,चाचा, जीजा ,बड़े भाई से यह गीत सम्बोधित होकर आगे बढ़ता है)

फेरों के गीत-2

हम तो हो गए हैरान लाड्डो तेरे लिए…
गोकुल भी ढूँड्या लाड्डो मथुरा भी ढूँड्या
ढूँड्या- ढूँड्या शेरपुर लाड्डो तेरे लिए…
सारे कॉलिज के लड़के भी ढूँड्डे
ढूँड्या- ढूँड्या ये लल्लू लाड्डो तेरे लिए…
बिन्दी भी देंगे लाड्डो टिक्का भी देंगे
देंगे- देंगे ये झूमर लाड्डो तेरे लिए…

Bhuwan
14-06-2011, 11:33 PM
अजी बाबा जी (फ़ेरों का गीत)



...
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( इस गीत में इसी प्रकार पिता ,चाचा, जीजा ,बड़े भाई से यह गीत सम्बोधित होकर आगे बढ़ता है)

फेरों के गीत-2

हम तो हो गए हैरान लाड्डो तेरे लिए…
...
...देंगे- देंगे ये झूमर लाड्डो तेरे लिए…

:clap: :clap:
सिकंदर भाई, फेरों के समय तो थोड़े खतरनाक वाले गीत चलते हैं, सुने होंगे.......?:think:
:cheers:

jeba2002
15-06-2011, 12:18 PM
सिकंदर जी किस क्षेत्र के गीत हैं ये और कहाँ कब गाये जाते हैं मैंने तो कभी नहीं सुने इस प्रकार के गीत