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View Full Version : जिस रोज मुझे भगवान मिले


saajid
05-04-2011, 01:28 PM
‘ना माया से ना शक्ति से भगवन मिलते हैं भक्ति से’, एक खुबसूरत गीत है और इसको सुनने के बाद लगा कि अगर मिलते होते तो भी प्रभु हमको मिलने से रहते :iloveyou:, क्योंकि माया हमें वैसे ही नहीं आती, शक्ति हममें इतनी है नहीं और भक्ति हम करते नहीं , तो कुल जमा अपना चांस हुआ सिफर। :crazyeyes:लेकिन वो कहते हैं ना कि बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख तो एक दिन बिन बुलाय मेहमान से भगवान हम से टकर ही गये।:bang-head: अब इससे आगे का हाल अति धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत सज्जन और देवियाँ ना पढ़ें, इसको पढ़कर आपके मन के क्षीरसागर में उठने वाले तूफान के हम जिम्मेदार नहीं होंगे और हमें गालियाँ देने को उठने वाले उफान के आप खुद जिम्मेदार होंगे।:cryingbaby:

saajid
05-04-2011, 01:29 PM
भयानक रात में ट्रैक से लौटते हुए जंगल में जब रास्ता भटक गये तो ऐसी परेशानी में हमेशा की तरह अपने खुदा को सोते से जगाने की गुहार लगायी और तभी एक आदमी हमें दिख गया। साधारण से कपड़े पहने थे उसने, एक दो जगह से हवा आने के लिये कपड़ों में बनायी खिड़कियाँ भी नजर आ रही थीं । मिलते ही हमने कहा, भैय्या हम रास्ता भटक गये हैं सही रास्ते पर कैसे आयें पता हो तो जरा बता दो। वो आदमी बोला ठीक है तुम मेरे पीछे-पीछे चलो तुम्हें रास्ता अपने आप मिल जायेगा। उत्सुकता वश जंगल पार करते - करते टाईम पास करने की गरज से या अंधेरी रात के सन्नाटे से उठने वाले अपने मन के डर को कम करने के लिये हमने पूछ लिया वो कौन है और इस जंगल में रात के वक्त क्या कर रहा है। आदमी बोला, “मैं भगवान हूँ” और यहाँ शांति के साथ आराम करने आया हूँ, हमें तुरंत महाभारत के समय की याद आ गई (याद है मैं समय हूँ) लेकिन हम पूछ ही बैठे, “शांतिजी दिखायीं नहीं दे रहीं”। आदमी यानि कि भगवान थोड़ा सकपकाये फिर बोले, मेरा मतलब मन की शांति से है। हमने भी तू शेर तो मैं सवा शेर की तर्ज पर एक और सवाल पूछ लिया, “तो कौन से भगवान हो?” अगर शिव हो तो ये कपड़े क्यों पहने हैं, ना साँप ना अर्धचन्द्र ना भस्म और तो और गंगा भी नहीं दिखायीं दे रही , और अगर विष्णु तो ये साधारण से वस्त्र क्यों? ना मुकुट ना गहने बगैर शेषनाग कैसे और ब्रहमा हो तो पैदल क्यों? कमल कहाँ है? बोले ये लोग कौन हैं? मैंने कहा, बड़े पहुँचे हुए भगवान हैं, भगवन बोले लेकिन मैं तो एक ही हूँ ये कैसे हो सकता है। ये ही नहीं अपने यहाँ तो सुनते हैं 33 करोड़ देवी देवता हैं जिन्हें हम भगवान कहते हैं, कहने की बारी हमारी थी। हमारी बात सुन भगवान का मुँह खुला का खुला, हमने सोचा हमारी बात दोहरा रहे हों, फिर लगा 33 कहने में मुँह तो नहीं खुलता । इसलिये थोड़ा हिलाया, भगवान जैसे नींद से जागें हों बोले अच्छा गिनाओ। अब चित होने की बारी हमारी थी हमें तो जैसे साँप सूँघ गया।

MANISH KUMAR
05-04-2011, 01:40 PM
जो बात तो म्हारे दिमाग में बी आवे है, जनसँख्या १२० करोड़ और देवी-देवता ३३ करोड़. उनको पूजेगा कौन?:bang-head::think:

saajid
05-04-2011, 01:59 PM
अभिमन्यू की तरह चक्रव्यूह में घूस तो गये अब निकलें कैसे ये सूझ नहीं रहा था। 33 करोड़ सुना था, कौन हैं ये तो अपने फरिश्तों को भी शायद ही मालूम हो। द्रोपदी की तरह लाज बचाने वाला कोई नहीं था अपनी इज्जत खुद ही बचानी थी सो हिम्मत कर गिनती शुरू करी। लेकिन 25 से ऊपर जाने के वांदे दिखने लगे (हालत खराब होने लगी) फिर बड़ी कोशिश कर गंगा, जमुना, सरस्वती जैसी नदियाँ और चंद्र, मंगल, सूर्य जैसे ग्रह जोड़ संख्या किसी तरह 40 तक पहुँचायी। फिर सोचा दक्षिण में लोग फिल्मी हिरोईनों के भी मंदिर बना देते हैं क्यों ना उनकी भी गिनती कर ली जाय लेकिन अंदर से हमें लग गया था कि अपने पूर्वजों के साथ-साथ दुनिया की प्रमुख हस्तियाँ भी गिनवायेंगे तो भी शायद ही 33 करोड़ का टच डाउन कर पायें। हम उस घड़ी को कोस रहे थे जब किसी ने हमें 33 करोड़ देवी देवता होने की बात बतायी थी।

saajid
05-04-2011, 02:01 PM
जो बात तो म्हारे दिमाग में बी आवे है, जनसँख्या १२० करोड़ और देवी-देवता ३३ करोड़. उनको पूजेगा कौन?:bang-head::think:
देखते जाओ मित्र सर पीट लोगे

saajid
05-04-2011, 02:07 PM
नेताओं की देखा देखी बात बदलने की गरज से हमने दूसरा मुद्दा छेड़ दिया। हमने पूछा, अच्छा ये बतायें कि खुदा से रोज मुलाकात होती रहती है या आप लोगों का भी वही रिश्ता है जो आप लोगों के बंदों का यानि मैं बड़ा, मैं बड़ा । हमारे खुदा का मतलब विस्तार से समझाने के पश्चात भगवन नाराजगी भरे शब्दों में बोले, “मैने कहा ना मैं एक हूँ”। हमने नहले पर दहला मारते हुए तुरंत कहा, “जरा ठीक से याद कर लीजिये हो सकता है कुंभ के मेले में आप लोग बिछुड़ गये हों”।
ये सुन भगवन की भृकुटी तन गयी, अपनी हालत उस मेमने की तरह हो गयी जिसने अचानक शेर देख लिया हो, बदकिस्मती ऐसी कि अपने भगवान को भी याद नहीं कर सकते थे डर था कि कहीं ये आग में घी का काम ना कर दे। तभी गरजती सी आवाज सुनायी दी जैसे कोई नेता सरकार की पतलून उतारने के लिये या जनता से वोट माँगने के लिये गरजता है, ‘मैं एक ही हूँ, मैं ही हूँ जिसे तुम भगवान या खुदा कह रहे हो, मैं ही प्रारंभ मैं ही अंत। मैं ही नारी मैं ही पुरूष, मेरा कोई रूप नही मैं हूँ निराकार। मैं ही हूँ शक्ति पुंज, अंनत शक्तियों का संगम।” अपनी सिटीपिटी गुम, दिल इतने जोर से धड़कने लगा जैसे सैकड़ों मलिक्का शेरावत सामने आ खड़ी हों लेकिन मन में कहीं अपने अर्जुन होने का एहसास हो रहा था।

saajid
05-04-2011, 02:09 PM
नेताओं की तरह तुरंत पाला बदलते हुए अपना आत्म सम्मान, अपना दिल-दिमाग सब कुछ अपनी जेब में रख हाथ जोड़ के हम बोल पड़े, “बस भगवन बस सब समझ गया। लेकिन शक का इलाज तो किसी वैध के पास है नहीं मन अभी भी शक कर रहा था कि ये भगवान कैसे हो सकते हैं, इतनी देर से हम से बात कर रहे हैं और हमको अभी तक एक बार भी “वत्स” कहकर संबोधित नहीं किया। बातें तो बहुत पूछनी थी लेकिन डर इस बात का था कि कहीं कोई श्राप ना दे दें। वैसे श्राप से ज्यादा इस बात का डर था कि कहीं जंगल में अकेला छोड़ दिया तो जंगली जानवर सूदखोरों की तरह बोटी बोटी नोच डालेंगे।

saajid
05-04-2011, 02:21 PM
अपनी सोच में डूबे हम चुपचाप वैसे ही चल रहे थे जैसे सीता और लक्ष्मण राम के पीछे पीछे वनवास को चल दिये थे। तभी आवाज आयी ‘तुम्हारा नाम क्या है वत्स’? हमारे पैर से जैसे जमीन खिसक गयी हो ऐसा झटका लगा जैसे किसी नेता को कुर्सी छीन जाने पर लगता है। हमें लग गया कि ये जो भी है हमारा दिमाग पढ़ सकता है इसलिये सोचने का काम तो करना ही नहीं है, बस बोलते जाओ अगर सोचने वाली बात इसने पढ़ ली तो हम तो सौ प्रतिशत काम से गये। तुरंत बोले, “निठल्ला“। भगवन ऐसे देख रहे थे जैसे कह रहे हों ये भी कोई नाम हुआ, अच्छा काम क्या करते हो? अगला सवाल था। हमने कहा “चिंतन“, क्या? हमने फिर जोर देकर कहा, “निठल्ला चिंतन“। भगवन किसी नासमझ प्रेमिका जैसे बोले, “वो क्या होता है”? हमने समझाया, “कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा” ये होता है। जनता की तरह भगवन बोले अच्छा जाने दो जैसे कह रहे हों जब निठल्ला चिंतन समझ में नहीं आया तो भानुमती के कुनबे की बात कैसे समझ में आयेगी।


अब जवाब दो मित्रों वर्ना आगे नहीं लिखूंगा

MANISH KUMAR
05-04-2011, 02:25 PM
अब जवाब दो मित्रों वर्ना आगे नहीं लिखूंगा

ये गन्दी बात है दोस्त. कोई जवाब दे या ना दे आप तो लिखते जाओ.
हम तो लगातार पढ़ रहे हैं आपकी हर पोस्ट.:cheers:

saajid
05-04-2011, 02:39 PM
फिर प्यार से बोले, अच्छा अब हमारे भगवान होने पर यकीन आया कि नहीं । हाथ जोड़ अपनी सारी हिम्मत जुटा हम बोलें, “क्षमा प्रभु, लेकिन मन में कई संशय हैं”। जैसे?, रहने दो प्रभु मान लिया आप ही हो पालनहार, हमारी इस जंगल से नैय्या पार लगा दो बस। भगवन किसी प्राइवेट बैंक का लोन लेने के लिये समझाने वाले एजेंट की तरह मिठास घोलते हुए बोले, “कोई संशय लेकर यहाँ से मत जाओ, पूछो क्या पूछना है।” हमने हिम्मत कर कहा, अपना विराट स्वरूप मत दिखाईयेगा मैं कोई अर्जुन नहीं, समझ और झेल नहीं पाऊँगा।

saajid
05-04-2011, 07:31 PM
थोड़ा साहस दिखा मैं फिर से शुरू हुआ, एक बात बताओ भगवन, मस्जिद में औरतों और आदमियों के लिये अलग-अलग स्थान क्यों, उनके लिये समान नियम क्यों नहीं। अब ये तो उन्हीं से पूछो जिसने मस्जिद बनाई मेरा काम तो सिर्फ आदमी बनाना (जन्म देना) और मिटाना (मारना) है, भगवन बोले। अच्छा ये बताईये कि किसी-किसी मंदिर में रजस्वला स्त्री के प्रवेश में प्रतिबंध क्यों? भगवन बोले एक बार कहा ना ये मस्जिद बनाने वाले जाने, मैंने बीच में टोका भगवन मैं मंदिर की बात कर रहा हूँ, दोनों में फर्क है। क्या फर्क है भगवन बोले, दोनों में तुम मुझे ही पूजते हो बावजूद इसके कि मैं ना किसी मंदिर में रहता हूँ ना किसी मस्जिद में।

saajid
05-04-2011, 07:32 PM
भगवन ने उल्टा सवाल दाग दिया, अच्छा ये बताओ कि एक शहर में कुल मिलाकर कितने मंदिर मस्जिद होंगे? मैंने जवाब दिया सारे धार्मिक स्थल मिला कम से कम 30-40 तो होंगे ज्यादा भी हो सकते हैं। ये सुन भगवन मुस्कराने लगे, मैंने इसकी वजह पूछी तो जवाब मिला, “अब मैं तुम्हारे 33 करोड़ भगवानों का गणित समझ गया इसलिये”। बात काट हमने कहा फिर काहे मंदिर के अंदर की मूर्त को इतना सजा के क्यों रखा जाता है जब आप वहाँ नहीं रहते। तुम खुद सोचो कोई किसी पत्थर के अंदर कैसे रह सकता है, भगवन ने पलट वार किया। हर इंसान के अंदर मेरा भी एक अंश रहता है लेकिन उसे कोई नहीं ढूंढता, तुमने जो राम कृष्ण गिनाये थे वो क्या पत्थर से निकले थे।

saajid
05-04-2011, 07:33 PM
ने कहा नहीं, बात में वजन था, सोचने लगा बात तो सही है वो भी हमारी ही तरह इंसान थे और अंत में इंसानों की तरह मृत्यु को प्राप्त हुए अब भला भगवान कैसे मर सकते हैं। कैसे भला एक बहलिया एक तीर से भगवान को मार सकता है, भगवान की संतान भी भगवान होनी चाहिये फिर लव-कुश को काहे लोग नहीं पूजते। भगवान के माँ-बाप भी भगवान होने चाहिये फिर दशरथ सिर्फ एक राजा बनके क्यों रह गये इतिहास के पन्नों पर। मैं खुद ही अपने सवालों में उलझने लगा था।
सामने रोड दिखायी देने लगी थी यानि कि मैं फिर सही रास्ते पर आने वाला था। रोड पर पहुँच मैं किसी गाड़ी का इंतजार करने लगा। दूर से एक गाड़ी आ रही थी, सोचा जब तक गाड़ी पास आती है क्यों ना एक सवाल और दाग दिया जाय। अच्छा प्रभु ये बताईये कि यहाँ इंसान एक दूसरे के खून के प्यासे क्यों हो रहे हैं, आतंकवाद, धार्मिक उन्माद, भूकंप, बाढ़, प्राकृतिक आपदायें ये सब क्यों? सुख और खुशी के साथ सब मिलकर क्यों नहीं रहते ? भगवन बोले, “बेवकूफ अगर ये सब ठीक कर दिया तो धरती स्वर्ग ना हो जायेगी, जब कोई दुख ही नहीं रहेगा तो फिर मुझे कौन पूछेगा“।

saajid
05-04-2011, 07:33 PM
मुझे अपने को बेवकूफ कहे जाने पर बड़ा गुस्सा आया, जंगल निकल चुका था अब इतना डर भी नहीं था इसलिये नाराजगी दिखाने के लिये पीछे मुड़ा तो देखा वहाँ कोई नहीं । जो इतनी देर से अपने को भगवान बता रहा था उसका दूर-दूर तक कोई पता नहीं । सिर्फ जंगल दिखायी दे रहा था, अपनी तो खोपड़ी ही घूम गई तभी बस वाले ने जोर से होर्न बजाया, मैं हड़बड़ा कर उठ बैठा। घड़ी का अलार्म बज रहा था, 7 बज गये थे यानि कि काम पर जाने का वक्त हो गया था । मैं आँखें मलता बाथरूम की ओर चल दिया। पड़ोस से कहीं गाने की आवाज आ रही थी
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सन्मति दे भगवान।
मांगों का सिंदूर ना छूटे, माँ बहनों की आस ना टूटे,
देह बिना भटके ना प्राण, सबको सन्मति दे भगवान।
ओ सारे जग के रखवाले, निर्बल को बल देने वाले,
बलवानों को दे दे ज्ञान, सबको सन्मति दे भगवान।।
मैं तैयार हो आफिस को चल दिया, रास्ते में हर आदमी को गौर से देखता जा रहा था सोच रहा था आज से सबके साथ प्यार से पेश आना है, सबको इज्जत देनी है क्योंकि किसे क्या पता ना जाने किस भेष में नारायण मिल जाय।

sagar -
05-04-2011, 07:36 PM
बहुत बढिया फेज भाई जारी रखो ..

naman.a
05-04-2011, 08:38 PM
बहुत ही बढिया प्रस्तुति फ़ेज भाई । भगवान और आपकी भेट की दास्ता तो हमे मालूम चल गयी । बहुत अच्छा अनुभव रहा आपका ।

क्या आपको कभी इंसान भी मिला क्या । मै तो ढुढ रहा हूं इस दुनिया में कही मुझे इंसान ही नही मिला अगर आपको मिला हो तो उसकी भी दास्तान हमे सुनाये ।

ndhebar
05-04-2011, 09:16 PM
बहुत बढिया फेज भाई जारी रखो ..
अब तो ख़तम हो गया सागर भाई

@ फैज भाई मजा आ गया, भाई किस्मत वाले हो जो इतनी आसानी से भगवान् मिल गए

saajid
05-04-2011, 09:21 PM
अब तो ख़तम हो गया सागर भाई

@ फैज भाई मजा आ गया, भाई किस्मत वाले हो जो इतनी आसानी से भगवान् मिल गए
मैं समझ गया जनाब अप ही का तो अनुसरण कर रहा हूँ शायद कोई मिल जाए :banalema:

ndhebar
05-04-2011, 09:22 PM
मैं समझ गया जनाब अप ही का तो अनुसरण कर रहा हूँ शायद कोई मिल जाए :banalema:
आमीन ................

rajnish manga
09-11-2012, 10:18 PM
साजिद भाई, भगवान से आपकी मुलाक़ात और उनसे सवाल-जवाब चलते रहे चलते रहे. यात्रा कब अपनी मंजिल पर पहुँच गयी ज्ञात ही न हुआ. कृपया खोजबीन जारी रखें और विवरण देते रहें. हमें प्रतीखा रहेगी.