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View Full Version : आदमी को क्या चाहिये


saajid
05-04-2011, 09:58 PM
क्या आप जानते हैं कि एक आदमी को क्या चाहिये? अगर नही और जानना चाहते हैं तो हमारी शब्दों के साथ खेलने की कोशिश पर नजर दौड़ाईये:crazyeyes:

saajid
05-04-2011, 09:59 PM
आदमी को चाहिये चबाने को दाँत और पेट में आँत
नेता को चाहिये कुछ घूँसे और संसद में चलाने को लात।
आदमी को चाहिये दो वक्त की रोटी और पीने को पानी
मीडिया को चाहिये टीआरपी बढ़ाने को सनसनी और ऊटपटाँग कहानी।
आदमी को चाहिये एक अदद नौकरी और रहने को छत
सेना के जवान को चाहिये घर से आया एक प्यारा सा खत।
आदमी को चाहिये ढेर सारी खुशियाँ और जीने की आस
एकता कपूर को चाहिये एक आदर्श बहू और खड़ूस सी सास।
आदमी को चाहिये क्रिसमस-ईद-दिवाली और रंगों भरी होली
कट्टरपंथियों को चाहिये अलगाव-नफरत और बंदूकों में गोली।
आदमी को चाहिये खुबसूरत दिन और शांत सी रात
‘हमें ‘ तो चाहिये हरदम टिप्पणियों की बरसात।

Bholu
06-04-2011, 12:35 AM
आदमी को चाहिये पहले मुलाकाल
फिर बात
और जरूरत पडे तो लात

Bholu
10-04-2011, 10:06 AM
मजेदर सूत्र है फैज भाई
सूत्र को गति दे

ndhebar
10-04-2011, 10:14 AM
आदमी को चाहिये चबाने को दाँत और पेट में आँत
नेता को चाहिये कुछ घूँसे और संसद में चलाने को लात।
आदमी को चाहिये दो वक्त की रोटी और पीने को पानी
मीडिया को चाहिये टीआरपी बढ़ाने को सनसनी और ऊटपटाँग कहानी।
आदमी को चाहिये एक अदद नौकरी और रहने को छत
सेना के जवान को चाहिये घर से आया एक प्यारा सा खत।
आदमी को चाहिये ढेर सारी खुशियाँ और जीने की आस
एकता कपूर को चाहिये एक आदर्श बहू और खड़ूस सी सास।
आदमी को चाहिये क्रिसमस-ईद-दिवाली और रंगों भरी होली
कट्टरपंथियों को चाहिये अलगाव-नफरत और बंदूकों में गोली।
आदमी को चाहिये खुबसूरत दिन और शांत सी रात
‘हमें ‘ तो चाहिये हरदम टिप्पणियों की बरसात।


इसका मतलब है ये सब (जिसको बोल्ड किया गया है) आदमी कि श्रेणी में नहीं आते
:crazyeyes::crazyeyes:

Bholu
10-04-2011, 10:23 AM
इसका मतलब है ये सब (जिसको बोल्ड किया गया है) आदमी कि श्रेणी में नहीं आते
:crazyeyes::crazyeyes:

अब क्या कहे
वो तो सूत्र बना कर चले गये

Ranveer
22-04-2011, 04:30 PM
थोडा गंभीरता से देखा जाए तो आदमी को चाहिए -
१.-पेट भरने के लिए अनाज
२.-एक अच्छा परिवार
३.- एक मकान
४.-थोड़ी सी ख़ुशी
५.-थोडा सा धन
६.-थोड़ी सी संवेदना (दूसरों के लिए )

Kumar Anil
22-04-2011, 09:50 PM
थोडा गंभीरता से देखा जाए तो आदमी को चाहिए -
१.-पेट भरने के लिए अनाज
२.-एक अच्छा परिवार
३.- एक मकान
४.-थोड़ी सी ख़ुशी
५.-थोडा सा धन
६.-थोड़ी सी संवेदना (दूसरों के लिए )

इस थोड़े की व्याख्या कौन करेगा ?

Ranveer
22-04-2011, 09:59 PM
इस थोड़े की व्याख्या कौन करेगा ?
मुझे लगता है की इस " थोड़े " की व्याख्या करना जटिल है
हाँ इतना ही कह सकता हूँ की " मानवता " प्रदर्शित होनी चाहिए
अब " ख़ुशी " "धन " और " संवेदना " मानवता रहित हो तो बेमानी है

ndhebar
22-04-2011, 11:57 PM
हाँ इतना ही कह सकता हूँ की " मानवता " प्रदर्शित होनी चाहिए
अब " ख़ुशी " "धन " और " संवेदना " मानवता रहित हो तो बेमानी है


यही तो दुर्भाग्य है की मानवता सिर्फ प्रदर्शन के लिए ही होती है

jokes0
23-04-2011, 12:54 AM
money or money

Ranveer
23-04-2011, 01:27 AM
यही तो दुर्भाग्य है की मानवता सिर्फ प्रदर्शन के लिए ही होती है

आप '' न्याय '' शब्द को कैसे परिभाषित करेंगे ..
अर्थात कैसे कहेंगे की न्याय " हुआ " या " हो रहा है ".....ऐसा तभी होगा जब वो दिखेगा
तो उसी तरह मानवता को लीजिये
ये जब तक प्रदर्शित नहीं होगी आप कैसे मानेंगे की " मानवता '' है

मेरे ख्याल से यहाँ जिस प्रदर्शन की बात मैंने कही उसका अर्थ थोड़ा व्यापक था
आपने जिस प्रदर्शन का जिक्र किया वो संवेदनारहित होता है जो देर सवेर अपनी पहचान बता ही देता है

Kumar Anil
23-04-2011, 07:23 AM
मुझे लगता है की इस " थोड़े " की व्याख्या करना जटिल है
हाँ इतना ही कह सकता हूँ की " मानवता " प्रदर्शित होनी चाहिए
अब " ख़ुशी " "धन " और " संवेदना " मानवता रहित हो तो बेमानी है



संवेदनाओँ का आधार ही मानवीय है जबकि ख़ुशी और धन का अर्जन स्वयं के लिये है ।
अब इस थोड़े की व्याख्या जटिल ही नहीँ असम्भव है । इस थोड़े का कोई सार्वभौमिक फ़ार्मूला ईज़ाद हो ही नहीँ सकता । इस थोड़े पर सर्वसम्मति हमारी प्रगति और विकास के लिये बाधक सिद्ध होगी । हम इस थोड़े से के प्लेटफॉर्म पर सन्तुष्ट , तृप्त भाव से खड़े होकर स्थिर , गतिहीन हो जायेँगे । इतिहास उठाकर देख लीजिये , हमारी कुछ ज़्यादा की भूख हमेशा जिंदा रही और वास्तव मेँ यही भूख हमेँ जिँदा रखती है । इस भूख के साथ कदमताल मिलाने वाले अग्रणी होते हैँ , नायक होते हैँ । आंशिक रूप से यूटोपिया की इस अवधारणा के तहत हम सबके भीतर अगर इस थोड़े से संतृप्त होने का बोध जगा तो मानव प्रजाति को विलुप्त होने मेँ समय नहीँ लगेगा । समय के साथ परिभाषायेँ बदलती रहती हैँ और ये थोड़ा कब व्यापक होता जाता है , हमेँ पता भी नहीँ चलता । हाँ , इस बात से इत्तेफाक़ जरूर रखूँगा कि भूख और हवस मेँ फर्क़ अवश्य बनाये रखना है क्योँकि भूख मानवीय है और हवस दानवीय ।

Bholu
23-04-2011, 07:59 AM
आदमी को चाहिये सुविधाये बल्कि अनन्त सुविधाये

ndhebar
23-04-2011, 10:14 AM
आदमी को चाहिये सुविधाये बल्कि अनन्त सुविधाये
इच्छाओं का कोई अंत नहीं होता है भोलू
संतोषम परम सुखं

ndhebar
23-04-2011, 10:20 AM
आप '' न्याय '' शब्द को कैसे परिभाषित करेंगे ..
अर्थात कैसे कहेंगे की न्याय " हुआ " या " हो रहा है ".....ऐसा तभी होगा जब वो दिखेगा
तो उसी तरह मानवता को लीजिये
ये जब तक प्रदर्शित नहीं होगी आप कैसे मानेंगे की " मानवता '' है

मेरे ख्याल से यहाँ जिस प्रदर्शन की बात मैंने कही उसका अर्थ थोड़ा व्यापक था
आपने जिस प्रदर्शन का जिक्र किया वो संवेदनारहित होता है जो देर सवेर अपनी पहचान बता ही देता है

हरेक बार ये जरूरी नहीं की जो दिखाई दे वही सत्य हो

Ranveer
23-04-2011, 10:39 AM
संवेदनाओँ का आधार ही मानवीय है जबकि ख़ुशी और धन का अर्जन स्वयं के लिये है ।
अब इस थोड़े की व्याख्या जटिल ही नहीँ असम्भव है । इस थोड़े का कोई सार्वभौमिक फ़ार्मूला ईज़ाद हो ही नहीँ सकता । इस थोड़े पर सर्वसम्मति हमारी प्रगति और विकास के लिये बाधक सिद्ध होगी । हम इस थोड़े से के प्लेटफॉर्म पर सन्तुष्ट , तृप्त भाव से खड़े होकर स्थिर , गतिहीन हो जायेँगे । इतिहास उठाकर देख लीजिये , हमारी कुछ ज़्यादा की भूख हमेशा जिंदा रही और वास्तव मेँ यही भूख हमेँ जिँदा रखती है । इस भूख के साथ कदमताल मिलाने वाले अग्रणी होते हैँ , नायक होते हैँ । आंशिक रूप से यूटोपिया की इस अवधारणा के तहत हम सबके भीतर अगर इस थोड़े से संतृप्त होने का बोध जगा तो मानव प्रजाति को विलुप्त होने मेँ समय नहीँ लगेगा । समय के साथ परिभाषायेँ बदलती रहती हैँ और ये थोड़ा कब व्यापक होता जाता है , हमेँ पता भी नहीँ चलता । हाँ , इस बात से इत्तेफाक़ जरूर रखूँगा कि भूख और हवस मेँ फर्क़ अवश्य बनाये रखना है क्योँकि भूख मानवीय है और हवस दानवीय ।

मै अपनी बात को थोड़ा आगे ले चलता हूँ -
मानवता रहित संवेदना - वैसी संवेदना जो केवल खुद के स्वार्थ के लिए हो ..दुसरे से जिसका कोई सरोकार न हो ..केवल मेरा मेरा और मेरा ....कभी दुसरे के बारे में सोचा ही गया हो /
मानवता रहित ख़ुशी - केवल अपनी ख़ुशी को देखना ..मुझे फलां मिल जाए ..मेरा ये काम हो जाए ..मै ऐसा बन जाऊं ...आदि आदि /
मानवता रहित धन - वैसा धन जो गलत तरीके से कमाया गया हो ... किसी के हक़ को छिनकर ..किसी गरीब से अवैध तरीके से लिया गया ...गलत कार्य करके कमाया गया /
तो ये सीमा है ( कुछ हद तक ) इस '' थोड़े " की
प्रगति और विकास हमेशा सकारात्मक होनी चाहिए ...अगर सकारात्मक न हो तो वो केवल वृद्धि कहलाएगी /
ये यूटोपिया नहीं है ...कई लोग हमारे आस पास ही मिल जायेंगे /
हमारे आस्तित्व के लिए ही इस तरह की भूख हमेशा से हमें नुक्सान पहुंचाती रही है / इतिहास में ऐसा ही प्रदर्शित हुआ है /
संतृप्त होना निश्चय ही विकास का मार्ग अवरुद्ध करता है पर हमें संतुष्ट होना ही नहीं है ...हमें तो सकारात्मक विकास करना है / जैसे अगर हम विस्फोटक का प्रयोग किसी को मारने के लिए करतें हैं तो ये सकारात्मक तो नहीं कहलाएगी /
परन्तु अब जबकि हम आदिम युग से निकल चुकें है तो इस स्तिथि में हमें मानवतावादी होना ही चाहिए क्यूंकि यही भूख हमें विनाश की और अग्रसर कर रही है /

ndhebar
23-04-2011, 11:00 AM
जैसे अगर हम विस्फोटक का प्रयोग किसी को मारने के लिए करतें हैं तो ये सकारात्मक तो नहीं कहलाएगी /

नहीं ऐसी बात नहीं है, हमेशा नकारात्मक होगा ये जरूरी नहीं
हम विस्फोटक का प्रयोग किसे मारने के लिए कर रहे हैं इससे फर्क पड़ता है

Ranveer
23-04-2011, 11:10 AM
नहीं ऐसी बात नहीं है, हमेशा नकारात्मक होगा ये जरूरी नहीं
हम विस्फोटक का प्रयोग किसे मारने के लिए कर रहे हैं इससे फर्क पड़ता है

हाँ ऐसा कह सकतें हैं
परन्तु मै मानता हूँ की अगर अस्तित्व की बात जब तक नहीं आये तब तक उस विस्फोटक का प्रयोग किसी के लिए भी करना सकारात्मक तो नहीं ही कहलायेगा /
जहां तक इस्तेमाल की बात है तो उसे यदि हम सड़क बनाने के लिए पहाड़ काटने में करतें हैं जिससे लोगों का आवागमन सुगम हो सके तो ये उसका मानवीय पहलु हुआ /

ndhebar
23-04-2011, 11:15 AM
और अगर पशु रुपी मनुष्य को मारने के लिए करते हैं तो

Ranveer
23-04-2011, 11:23 AM
और अगर पशु रुपी मनुष्य को मारने के लिए करते हैं तो

तब तक... जब तक की आपका आस्तित्व संकट में न आये
उसके बाद करना आपको एक मनुष्य होने के नाते फ़र्ज़ बन जाता है
क्या ये शोभा देगा ऐसा काम व्यक्ति केवल आनद के लिए ...दूसरों पर अपना रौब दिखाने के लिए ...या अनावश्यक रूप से करें

ndhebar
23-04-2011, 11:26 AM
तब तक... जब तक की आपका आस्तित्व संकट में न आये
उसके बाद करना आपको एक मनुष्य होने के नाते फ़र्ज़ बन जाता है
क्या ये शोभा देगा ऐसा काम व्यक्ति केवल आनद के लिए ...दूसरों पर अपना रौब दिखाने के लिए ...या अनावश्यक रूप से करें


मैंने पशु रुपी मनुष्य कहा था
और अगर कोई ये कार्य आनंद के लिए करता है तो वह स्वैम पशु समान होगा

rafik
25-04-2014, 03:45 PM
आदमी को चाहिये चबाने को दाँत और पेट में आँत
नेता को चाहिये कुछ घूँसे और संसद में चलाने को लात।
आदमी को चाहिये दो वक्त की रोटी और पीने को पानी
मीडिया को चाहिये टीआरपी बढ़ाने को सनसनी और ऊटपटाँग कहानी।
आदमी को चाहिये एक अदद नौकरी और रहने को छत
सेना के जवान को चाहिये घर से आया एक प्यारा सा खत।
आदमी को चाहिये ढेर सारी खुशियाँ और जीने की आस
एकता कपूर को चाहिये एक आदर्श बहू और खड़ूस सी सास।
आदमी को चाहिये क्रिसमस-ईद-दिवाली और रंगों भरी होली
कट्टरपंथियों को चाहिये अलगाव-नफरत और बंदूकों में गोली।
आदमी को चाहिये खुबसूरत दिन और शांत सी रात
‘हमें ‘ तो चाहिये हरदम टिप्पणियों की बरसात।


आदमी को 3 मूलभूत आवश्यकता रोटी,कपड़ा और मकान ये तो पुरानी आवयश्कता हे आजकल 1 नई आवश्यकता जुड़े गई हे वह हे ,सुरक्षा