PDA

View Full Version : ..गरीबी ..


Ranveer
24-04-2011, 05:40 PM
दोस्तों मेरा ये सूत्र बनाने का मकसद गरीबों का उपहास करना नहीं बल्कि आपलोगों के सामने उनकी दशा को समझाने का एक छोटा सा प्रयास है
हम में से कई लोग आज भी गरीबी ...भूख ..अभाव का मतलब नहीं जानतें हैं
जबकि कई लोग उस दशा में जी रहें हैं /
आखिर एक गरीब भी इंसान होता है जिसे इस दुनिया में उतना ही जीने का हक़ है जितना हमारा
हमारा देश कहने को तो विश्व के तेजी से विकास कर रहे देशों में शुमार है
पर यह भी एक तथ्य है की गरीबों की संख्या के मामले में भी ये देश सबसे आगे है
आज भी लोग भूख से मरतें हैं /

मेरा मकसद आपलोगों के अन्दर गरीबी का असली रूप दिखाना है
हम में से कई लोग इस दर्द तो समझतें भी हैं
शायद कुछ लोग इन चित्रों को देखने के बाद " इंडिया शाइनिंग " का अर्थ समझ जाएँ -

Ranveer
24-04-2011, 05:44 PM
http://bmbpixs.com/NEW%20WEB/India/India_SG_22.JPG

Ranveer
24-04-2011, 05:47 PM
http://www.merinews.com/upload/thumbimage/1214321612736_Poverty-in-India.jpg

Ranveer
24-04-2011, 05:48 PM
http://trendsupdates.com/wp-content/uploads/2009/10/Poverty-in-India.jpg

Ranveer
24-04-2011, 05:52 PM
http://www.spraguephoto.com/stock/images/4000_4500/4048%20Poverty%20India%20Homeless%20surviving%20at %20the%20Howrah%20railway%20station%20Calcutta.jpg

Ranveer
24-04-2011, 05:54 PM
http://india.targetgenx.com/files/2008/06/poverty.jpg

Ranveer
24-04-2011, 05:57 PM
http://www.asianews.it/files/img/INDIA_%28f%29_0731_-_Lavaoro_Minorile.jpg

sagar -
24-04-2011, 05:57 PM
बहुत अच्छा ज्वलनशील मुदा उठाया हे रणवीर भाई !

ndhebar
24-04-2011, 07:39 PM
सच कहूँ तो ये तस्वीर हम रोज अपनी आँखों के सामने देखते हैं
इनकी हालत पर अफ़सोस जताते हैं और अपना फर्ज पूरा समझते हैं
पर क्या सचमुच हमारा फर्ज पूरा होता है
सच तो ये है की इनमें से कुछ का इस्तेमाल तो हम खुद के स्वार्थ के लिए भी करते हैं

Kumar Anil
25-04-2011, 07:18 AM
सच कहूँ तो ये तस्वीर हम रोज अपनी आँखों के सामने देखते हैं
इनकी हालत पर अफ़सोस जताते हैं और अपना फर्ज पूरा समझते हैं
पर क्या सचमुच हमारा फर्ज पूरा होता है
सच तो ये है की इनमें से कुछ का इस्तेमाल तो हम खुद के स्वार्थ के लिए भी करते हैं

निःसंदेह , तस्वीरेँ ह्रदयविदारक हैँ । पर क्या करूँ जब अपनी नीयत ही संदेह की परिधि मेँ हो । इनकी नियति और हमारी नीयत दोनोँ ही खोटी हैँ । सत्यजित रे इसी गरीबी का चित्रण कर महान फिल्मकार बन गये और हम उन तथाकथित कलात्मक फिल्मोँ का रसास्वादन कर , रोमांचित हो घड़ियाली आँसू बहाने वाले दर्शकमात्र । हम इतने मक्कार निकले कि उस गरीबी मेँ भी मुनाफ़ा कमाने लगे या फिर ड्राईँगरूम से लेकर नेट तक चर्चा कर ख़ुद पर विशिष्ट होने का ठप्पा लगाते रहे । पर अपनी व्यस्तता को जस्टिफाई करने के लिये बीबी की नाज़ुक कलाईयोँ को आराम देने के लिये कितनी धूर्तता से इन्हीँ लाचार हाथोँ मेँ चन्द सिक्के थमाकर अपनी ज़िन्दगी साधने लगे । कुत्ते पालने के साथ ही इन्हेँ भी नौकरोँ के रूप मेँ पालना स्टेटस सिँबल बन गया । हो भी क्योँ न , आख़िर वर्तमान जनगणना के आँकड़े बोल रहे हैँ कि गरीबी घटी है मगर गरीब बढ़े हैँ । कभी कभी तो हम इतनी कमीनगी पर उतर आते हैँ कि झौव्वा भर बच्चोँ के गरीब माँ बाप से उनका सुनहरा भविष्य बनाने के नाम पर , रोटी को मोहताज बच्चोँ को , अपने बच्चे के फेँके हुये बर्गर का स्वाद चखाकर , उन्हेँ दासता का पट्टा पहनने पर विवश कर देते हैँ । हम उनके उत्थान की नहीँ अपितु अपने रॉ मैटीरियल की तलाश करते हैँ । ये कोई आज की त्रासदी नहीँ , बरसोँ से है । शायद तभी निराला जी ने कहा होगा कि श्वानोँ को मिलता दूध वस्त्र , औ भूखे बच्चे अकुलाते हैँ ।

Ranveer
25-04-2011, 08:17 AM
निःसंदेह , तस्वीरेँ ह्रदयविदारक हैँ ।

मैंने इन्ही शब्दों को सुनने के लिए ये सूत्र बनाया था
पुनः आकर कुछ विचार भी रखता हूँ
कृपया अन्य लोगों से निवेदन है की कुछ विचार अपने भी रखें ( केवल देखकर न जाएँ )

ndhebar
25-04-2011, 11:54 AM
निःसंदेह , तस्वीरेँ ह्रदयविदारक हैँ । पर क्या करूँ जब अपनी नीयत ही संदेह की परिधि मेँ हो । इनकी नियति और हमारी नीयत दोनोँ ही खोटी हैँ । सत्यजित रे इसी गरीबी का चित्रण कर महान फिल्मकार बन गये और हम उन तथाकथित कलात्मक फिल्मोँ का रसास्वादन कर , रोमांचित हो घड़ियाली आँसू बहाने वाले दर्शकमात्र । हम इतने मक्कार निकले कि उस गरीबी मेँ भी मुनाफ़ा कमाने लगे या फिर ड्राईँगरूम से लेकर नेट तक चर्चा कर ख़ुद पर विशिष्ट होने का ठप्पा लगाते रहे । पर अपनी व्यस्तता को जस्टिफाई करने के लिये बीबी की नाज़ुक कलाईयोँ को आराम देने के लिये कितनी धूर्तता से इन्हीँ लाचार हाथोँ मेँ चन्द सिक्के थमाकर अपनी ज़िन्दगी साधने लगे । कुत्ते पालने के साथ ही इन्हेँ भी नौकरोँ के रूप मेँ पालना स्टेटस सिँबल बन गया । हो भी क्योँ न , आख़िर वर्तमान जनगणना के आँकड़े बोल रहे हैँ कि गरीबी घटी है मगर गरीब बढ़े हैँ । कभी कभी तो हम इतनी कमीनगी पर उतर आते हैँ कि झौव्वा भर बच्चोँ के गरीब माँ बाप से उनका सुनहरा भविष्य बनाने के नाम पर , रोटी को मोहताज बच्चोँ को , अपने बच्चे के फेँके हुये बर्गर का स्वाद चखाकर , उन्हेँ दासता का पट्टा पहनने पर विवश कर देते हैँ । हम उनके उत्थान की नहीँ अपितु अपने रॉ मैटीरियल की तलाश करते हैँ । ये कोई आज की त्रासदी नहीँ , बरसोँ से है । शायद तभी निराला जी ने कहा होगा कि श्वानोँ को मिलता दूध वस्त्र , औ भूखे बच्चे अकुलाते हैँ ।

जी तो करता है आपकी बात पर आपको धन्यवाद दूँ, तालियाँ बजाऊं
पर दिल इसकी इजाजत नहीं देता
अगर हम ऐसा करेंगे तो नया क्या करेंगे, ये तो हम हमेशा से करते आयें है
अभी अभी मेरे ऑफिस में ८ साल का लड़का चाय पहुँचाने आया है, लोग चुस्कियां लेकर चाय का आनंद ले रहे है और वो कोने में खड़ा ये इन्तजार कर रहा है की कब चाय खत्म हो और वो गिलास लेकर वापस जाये. उसके मालिक ने उसे हिदायत दे रखी है की अगर एक भी गिलास फूटा तो पैसे तेरे कटेंगे.
और मैं उस पर लिख रहा हूँ
हाय रे प्रालब्ध

Kumar Anil
25-04-2011, 12:33 PM
जी तो करता है आपकी बात पर आपको धन्यवाद दूँ, तालियाँ बजाऊं
पर दिल इसकी इजाजत नहीं देता
अगर हम ऐसा करेंगे तो नया क्या करेंगे, ये तो हम हमेशा से करते आयें है
अभी अभी मेरे ऑफिस में ८ साल का लड़का चाय पहुँचाने आया है, लोग चुस्कियां लेकर चाय का आनंद ले रहे है और वो कोने में खड़ा ये इन्तजार कर रहा है की कब चाय खत्म हो और वो गिलास लेकर वापस जाये. उसके मालिक ने उसे हिदायत दे रखी है की अगर एक भी गिलास फूटा तो पैसे तेरे कटेंगे.
और मैं उस पर लिख रहा हूँ
हाय रे प्रालब्ध

दिल इजाजत न दे तो ताली मत बजाईये और दिमाग़ इजाजत दे तो चाय की चुस्कियोँ मेँ बौद्धिक चिँतन साझा कर लीजिये । दिल और दिमाग़ के इस द्वन्द मेँ हमारे पल्ले से क्या गया ? वो तो अपनी नियति की विडम्बना लिये वहीँ खड़ा रहा । शिक्षा के अधिकार के युग मेँ उसके हाथ मेँ किताबोँ की जगह खाली गिलास थमा रहे हैँ और ऊपर से तुर्रा ये कि नया क्या करेँगे । आख़िर ईमानदारी से उसके प्रति अपने नज़रिये को स्वीकार करने मेँ क्या दिक़्कत है । उसके प्रारब्ध के साथ इस कोरी सहानुभूति का क्या अर्थ ? अगर वो अपना प्रारब्ध बदलेगा भी तो अपने बल पर न कि यहाँ हो रही चर्चा से ।

ndhebar
25-04-2011, 02:55 PM
आख़िर ईमानदारी से उसके प्रति अपने नज़रिये को स्वीकार करने मेँ क्या दिक़्कत है । उसके प्रारब्ध के साथ इस कोरी सहानुभूति का क्या अर्थ ? अगर वो अपना प्रारब्ध बदलेगा भी तो अपने बल पर न कि यहाँ हो रही चर्चा से ।

कोई अर्थ नहीं है
यही तो विडम्बना है
हम करते कुछ नहीं सिर्फ बातों के अलावा
इसे मेरी स्विकिरोक्ति ही समझिये गुरुदेव

Kumar Anil
25-04-2011, 03:26 PM
कोई अर्थ नहीं है
यही तो विडम्बना है
हम करते कुछ नहीं सिर्फ बातों के अलावा
इसे मेरी स्विकिरोक्ति ही समझिये गुरुदेव

मान्यवर , सम्बोधन दुरुस्त कीजिये । बुद्ध का चोला आपने धारण किया है तो गुरु तो आप ही हुये । मुझे तो आपसे ज्ञान चाहिये ।

kamesh
25-04-2011, 07:05 PM
http://trendsupdates.com/wp-content/uploads/2009/10/poverty-in-india.jpg

वाह वाह क्या सूत्र बनाया आप ने मेरी तो हिम्मत नहीं हो रही है इन चित्रों के ऊपर टिका टिप्पड़ी करने की

निस्तब्ध कर देने वाला भयावह

अब इसी चित्र को देखें

थोड़े से अन्न के दानो के साथ ये कोमल बचपन

जब की आप और हमारे कई घरो में इस से कहीं ज्यादा खाना फेक दिया जाता होगा ,कभी आप ने किसी भूखे को खाना खिलाया है?

जवाब ना में होगा ,या तो आप ने उसे दुत्कार के भगा दिया होगा

मगर दोस्तों आज से ये ठान लो की एक भूखे और कमजोर को आप खाना जरुर खिलाएं और अगर वो काम करने लायक ही तो कार्य करवाए

क्यों की कोई भी भीख मांग के नहीं गुजरा करना चाहता उसे अहसाश कराएँ और काम करने के लिए प्रेरित करें

हो सकता है आप के देखा देखि कई लोग ये कार्य करने लगे और ये भी हो सकता है की आप के इस कार्य से कई घरों की गरीबी दूर हो जाये और आज नहीं तो कल हमारे देश से आप के छोटे प्रयाशो से गरीबी दूर हो जाये सुरुवात हमें अपने से ही करनी होगी फिर तो कारवा बनता जायेगा और मंजिले मिलती जाएगी

तो बोलो दोस्तों

"भूखे नहीं तुम्हे मरने देंगे

गरीबी दूर कर के रहेंगे "
जय हिंद

ndhebar
25-04-2011, 07:15 PM
मान्यवर , सम्बोधन दुरुस्त कीजिये । बुद्ध का चोला आपने धारण किया है तो गुरु तो आप ही हुये । मुझे तो आपसे ज्ञान चाहिये ।
आज फिर लगता है कल वाला हंटर निकाल लाये
उ चोला तो कबका निकाल दिए, आखिर रंगा सियार कितने दिनों छुप सकता है

Ranveer
25-04-2011, 07:18 PM
मित्रों प्रतिक्रिया देने का बहुत बहुत शुक्रिया
मै चाहता हूँ और लोग आयें इस बारें में कुछ जरुर लिखें

Nitikesh
25-04-2011, 07:51 PM
एक चित्र लाखो में बिक गया/
जिसमे एक बच्चा भूख से रो रहा था/

कहने का तात्पर्य यह है की हम चित्र देखते है थोड़ा अफ़सोस जताते है/
बाद में अपनी वही पुरानी जिंदगी में लौट जाते है/


आज मैंने लेख पढ़ा जिससे मुझे एक अच्छी शिक्षा मिली/
कहानी यह थी की छत्रों का ग्रुप गर्मी जाता है/
वहाँ पर वे लोग होटल में खाने जाते है/
हिटल में जाने के बाद वे सभी खाने का आर्डर देते है/
आर्डर इतना लंबा था की वेटर को आर्डर पर आश्चर्य होता है/
खाना आता है जिससे पूरा टेबल भर जाता है/इतने सारे खानों को देखकर आसपास के लोग लोग उन्हें आश्चर्य भरी निगाहों से देखते है/लेकिन ग्रुप तो अपनी मस्ती में था/वे लोग खाना खाते है/लेकिन खाना इतना सारा था की वे लोग खत्म नहीं कर पते है/ग्रुप खाना का बिल मांगता है तो होटल मेनेजर आता है और कहता है की यदि आप खाना ना बिगरे तो बेहतर होगा/ग्रुप को ये बात थोड़ी अजीब लगाती है/वे कहते हैं की हमारा पेट भर गया है अत: अब हम नहीं खा सकते है/तो मेनेजर बोलता है की आप इस तरह से खाना नहीं बिगर सकते है/आपको खाना खत्म करना ही पडेगा/इस बात पर ग्रुप बोलता है की हम पैसे तो दे रहे हैं ना तो हम खाना के साथ कुछ भी करे आपको क्या आपत्ति है!अब दोनों पक्ष अपनी बात पर अड़े रहते हैं/लेकिन कोई भी ठस से मश होने को तैयार नहीं था/ग्रुप के साथ वहाँ का एक सदस्य भी थी/उसने फोन पर जर्मन में किसी के कुछ बात की थोड़ी ही देर में समाज सुधारक की तरफ से पुलिस आती है/वो ग्रुप पर ५० यूरो का जुरमाना लगाती है/इस पर ग्रुप का एक सदस्य कहता है की यह तो सरासर अन्याय है/जब हमने खाना का पैसा दे दिया तो यह जुरमाना किस बात का है/तब पुलिस बोलती है की आपकी बात बिल्कुल सही है की आपने कहना का बिल दे दिया लेकिन जो आपने खाना के रिसोर्स का दुरूपयोग किया है उसका उसका क्या!हमारे देश में रिसौर्स की कमी है/अत: हम उतना ही मंगाते है जितना हम खा सकते है/हमें खाना को इस तरह से बर्बाद करने का कोई हक नहीं है/क्योकि आपने जो खाना बर्बाद किया है/वह किसी के काम नहीं आने वाला है/यदि आपने यही कम मंगाया होता तो यही किसी का पेट भार रहा होता और इससे हमारा रिसोर्स भी बर्बाद नहीं होता/दुनियाँ में कैसे बहुत देश है जहाँ रिसोर्स की कमी के कारण वहाँ के बहुत लोगों को खाने की कमी होती है/हमरे देश में भुखमरी नहीं है क्युकी हम रिसोर्स का सही इस्तेमाल करते है/
पुलिस की यह बाते सुनकर ग्रुप की गर्दन शर्म से झुक जाती है/पुलिस के द्वारा काटे गए जुर्माने की पर्ची को ग्रुप के सभी सदस्य उस पर्ची का जेरोक्स करवाते है/ताकि उन्हें अपनी गलती का बोध हो/इससे हमें यह शिक्षा तो जरुर मिलाती है की हमें अपने हिस्से का खाना बर्बाद नहीं करना चाहिए/

मेरे कहने का मतलब यह है की यदि हम किसी को खाना नहीं दे सकते है तो हम इतना जरुर कर सकते है की हम अपने हिस्से का खाना बर्बाद ना करें/मेरी नानी ने बचपन में एक बार कहा था की जो खाना हम बर्बाद करते है/वह हिस्सा हमारे आने वाली पीढ़ी के हिस्से से कट जाता है/अत: हम अपने लिए नहीं तो अपने आने वाली पीढ़ी के लिए तो खाना बचा ही सकते है/

आप सभी का क्या विचार है!

ndhebar
25-04-2011, 08:29 PM
आप सभी का क्या विचार है!
अति उत्तम विचार है और इसपर तो मैं दृढ़ता से अमल भी करता हूँ
भूखा रह जाऊं सो कबूल है पर बर्बादी तो कतई नहीं करता हूँ, कहीं भी चाहे घर चाहे बाहर

Kumar Anil
26-04-2011, 07:34 AM
उसे अहसाश कराएँ और काम करने के लिए प्रेरित करें


बात तो पते की है । हम शिक्षित हैँ , सम्पन्न हैँ और सामाजिक हैँ तो समाज के इस हिस्से के लिये भी हमारी उत्तरदेयता है , हमारा दायित्व बनता है कि हम उनके उन्नयन के लिये प्रेरक का कार्य करेँ न कि कोरी सहानुभूति प्रदर्शित कर अथवा उन्हेँ चंद सिक्के दान कर अपने मोक्ष की ख़ातिर उन्हेँ निठल्ला बनाकर । समाज की इस बड़ी हिस्सेदारी का एक तबका जानबूझकर काम नहीँ करना चाहता और रेल , मंदिर , फुटपाथ पर बैठ अपना वर्तमान काट लेना चाहता है । आवश्यकता है उन्हेँ सन्मार्ग दिखाकर उनका भविष्य प्रशस्त करने की । भविष्य उन्हीँ का सुधरता है जिनका वर्तमान कर्म करना जानता है ।