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View Full Version : व्यंग्यबाण


great_brother
08-05-2011, 03:57 PM
मित्रों प्रस्तुत है एक और नया सूत्र ग्रेट ब्रदर के व्यंगबाण by Great_brother .......

मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ...............

great_brother
08-05-2011, 04:00 PM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

दोस्तों , आखिर मेरा मन भी हो गया ट्वेंटी-ट्वेंटी

विश्व कप जीतने के बाद देश एक बार फिर क्रिकेटमय है। वर्ल्ड कप चल रहा था तो अच्छा भला टाइम पास हो रहा था।

मन लग जाता था। खत्म हुआ तो यही चिंता सता रही थी कि अब क्या करें। कोई काम तो वैसे ही नहीं है। सचमुच परेशानी खड़ी हो जाती है। ऑफिस में घंटे-दो घंटे काम करते हैं तो बोर हो जाते हैं। फिर बाहर जाकर चाय पीओ, राजनीति पर बात करो, घर के रोने रोओ। प्रमिका के नखरों या अत्याचारों की कितनी बातें की जाए। इधर कुछ राज्यों में चुनाव हो भी रहे हैं तो उनके बारे में कोई आइडिया ही नहीं है।


मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ...............

great_brother
08-05-2011, 04:06 PM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

दोस्तों , आखिर मेरा मन भी हो गया ट्वेंटी-ट्वेंटी


हमारे तो समय काटने की दिक्कत खड़ी हो गई थी। अखबारों में भी अच्छी-अच्छी खबरें छपनी बंद हो गईं। विकीलीक्स को जितने रहस्य उधेड़ने थे, उधेड़ लिए। सरकार भी लोकपाल बिल के लिए जल्दी ही मान गई। न जाने कितने चिंतनों के दौर से भी गुजर गए। फिल्मी अभिनेताओं की पिक्चरें हिट-फलॉप होनी थीं, सो हो गईं। अब क्या करें।

मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ...............

great_brother
08-05-2011, 04:08 PM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

दोस्तों , आखिर मेरा मन भी हो गया ट्वेंटी-ट्वेंटी


पर कहते हैं न कि भगवान के घर में देर है अंधेर नहीं। इसलिए अब क्रिकेट का सहारा हो गया है। अब भ्रष्टाचार और घोटालों से हटकर ध्यान ट्वेंटी-ट्वेंटी पर केंद्रित कर लिया है। और फिर यह है भी बहुत मजेदार चीज। अब कुछ दिन तो मजे में निकल जाएंगे। रात को देर तक क्रिकेट देखो और सुबह आराम से उठो। अगर घर के काम-काजों की वजह से नींद पूरी नहीं हो पाए तो आराम से दफतर में सोओ। कोई क्या कहेगा। जब सभी लोग सामूहिक नींद लेंगे, तो काहे की परेशानी। बच्चे भी ज्यादा किट-किट नहीं करेंगे। प्रेमिका भी अधिक परेशान नहीं करेगी।

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great_brother
08-05-2011, 04:32 PM
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दोस्तों , आखिर मेरा मन भी हो गया ट्वेंटी-ट्वेंटी


अब साहब मजे क्यों नहीं आएंगे। एक ही एपिसोड में सब-कुछ देखने को मिल जाता है। क्रिकेट का क्रिकेट देख लो। टेस्ट मैच देखते थे तो लगता था कि कोई शास्त्रीय संगीत का सम्मेलन देख रहे हैं। लगता था कि कहीं नींद न लग जाए। पांच दिन तक खेलते जा रहे हैं, खेलते ही जा रहे हैं। बार-बार नींद में से उठकर पूछना पड़ता था कि क्या हुआ। कुछ परिणाम निकला क्या। बीवी बताती थी- जी, वो ड्रा हो गया।

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jitendragarg
08-05-2011, 04:34 PM
सही! :bravo:

वैसे पोल ठीक से नहीं दिख रहा. कृपया पूरा प्रश्न मुझे मेसेज करे, मैं उसको एडिट कर दूंगा.

great_brother
08-05-2011, 04:34 PM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

दोस्तों , आखिर मेरा मन भी हो गया ट्वेंटी-ट्वेंटी


लेकिन यहां मजे ही मजे हैं। क्रिकेट का क्रिकेट, नाच-गाने का नाच-गाना। वे अच्छा नहीं खेल रहे तो कोई बात नहीं। थोड़ी देर चिअर गर्ल्स को ही निहार लो। वो टीम का उत्साह कितना बढ़ा पाती है, यह तो पता नहीं। पर हमारा उत्साह तो सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। कई बार तो कैमरा बल्लेबाज पर आते ही लगने लग जाता है कि कमबख्त मेरे और चिअर गर्ल के बीच में क्यों आ गया है।

और फिर इन मैचों में हमारे मनपसंद हीरो - हीरोइन भी तो लगातार आते रहते हैं। मैं प्रीति जिंटा के इंतजार में दीवाना रहता हूं। तो प्रेमिका पीछे से कहती रहती है। कि शाहरुख के आते ही मुझे जरूर बुला लेना।


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great_brother
08-05-2011, 04:37 PM
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दोस्तों , आखिर मेरा मन भी हो गया ट्वेंटी-ट्वेंटी


मित्रों छोटे बच्चे अपना मनोरंजन चौकों - छक्कों में ढूंढते रहते हैं। पिताजी भी दबे पांव आकर चिअर गर्ल्स को निहार ही जाते हैं। भले ही सामने कुछ नहीं कहें पर माताजी पीछे से बड़बड़ाती रहती हैं - मुए रात भर सोने ही नहीं देते। ये लड़का इन मुई चिअर गर्लों के चक्कर में कहीं बावला न हो जाए। तो कुल मिलाकर देश ' ट्वेंटीमय ' हो रहा है। वैसे इसका और पहलू है जिस पर किसी का ध्यान नहीं है। यह बड़ा सौहार्दपूर्ण क्रिकेट है। किसी भी तरह के राग द्वेष से अलग।

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great_brother
08-05-2011, 04:40 PM
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दोस्तों , आखिर मेरा मन भी हो गया ट्वेंटी-ट्वेंटी


दोस्तों
किसी को पता ही नहीं चलता कि कौन किस तरफ से खेल रहा है। धोनी किधर है और युवराज किधर , यह कन्फ्यूजन बना रहता है। किसी विदेशी खिलाड़ी का अच्छा खेल देखकर भी चिढ़ नहीं होती क्योंकि पता चलता है कि वह सचिन की टीम को जिताने जा रहा है। कल तक साउथ अफ्रीका या ऑस्ट्रेलिया के जिन खिलाडि़यों को खलनायक की तरह देखते थे वे अब आत्मीय लगने लगे हैं। ऐसा मंगलमय माहौल किस खेल में होता है भाई ? देश , प्रांत और शहर सब एक - दूसरे में घुल मिल गए हैं। यहीं असली सेक्युलरिज्म भी मिलेगा। विश्व के नेतागण इससे कुछ सीखें। दोस्तो , आखिर मेरा मन भी हो गया ट्वेंटी - ट्वेंटी।

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ndhebar
08-05-2011, 05:45 PM
हम तो पहले से ही इस खेल के दीवाने हैं

great_brother
09-05-2011, 11:00 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

करप्शन से करप्ट सीडी तक......


दोस्तों ,
करप्शन के खिलाफ लड़ाई का मामला करप्ट सीडी तक पहुंच चुका है जी। जन लोकपाल बिल से ज्यादा इंटरेस्ट लोग अब सीडी में दिखा रहे हैं। खबरिया चैनलों पर स्पेशल प्रोग्राम बनने लगे हैं। ब्रेकिंग न्यूज आने लगी है। सीडी का रहस्य गहराने लगा है और उस पर सस्पेंस भरे प्रोग्राम बनने लगे हैं। हमेशा यही होता है। किसी बिल में किसी का आखिर कितना इंटरेस्ट होगा? पर सीडी में सबका इंटरेस्ट रहता है। लोगों को लगता होगा कि क्या पता वो वाली सीडी ही हो, देखें तो सही। हालांकि ऐसा नहीं है कि लोगों ने जन लोकपाल बिल में इंटरेस्ट नहीं दिखाया। संसद में पेश और पास होने वाले बिलों में भले ही उसका कोई इंटरेस्ट न रहता हो, हालांकि कहा यही जाता है कि वे उसी के इंटरेस्ट में बनाए जाते हैं, लेकिन उनमें तो उन्हीं का कोई इंटरेस्ट नहीं होता, जो उन्हें पेश और पास करते हैं, तो जनता का कहां होगा। पर इस बिल में जनता ने खूब इंटरेस्ट दिखाया। लोग जंतर-मंतर तक गए और इस ताक में भी रहे कि किसी तरह फोटो खिंच जाए।

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great_brother
09-05-2011, 11:10 AM
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करप्शन से करप्ट सीडी तक......


दोस्तों ,
उन बेचारों को क्या पता होगा कि फोटो खिंच जाता है तो सीडी बन जाती है। पर ये फोटो वाली सीडी नहीं है। यह वीडियो नहीं, ऑडियो है। अन्नाजी अड़े हुए थे कि जन लोकपाल बिल पर बनी कमेटी की बैठकों की वीडियोग्राफी हो। यहां ऑडियोग्राफी हो गई, जिसकी किसी ने मांग भी नहीं की थी। अब बहस यह नहीं है कि बिल में क्या सुधार किया जाए। उसमें क्या निकाला जाए और क्या जोड़ा जाए। अब बहस यह है कि सीडी में क्या-क्या जोड़ा गया है। जिनकी सीडी बताई जा रही है, वे भी और जिन पर आरोप लग रहा है वे भी, यही कह रहे हैं कि सीडी करप्ट है।

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great_brother
09-05-2011, 11:14 AM
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करप्शन से करप्ट सीडी तक......


दोस्तों ,
हालांकि अभी यह पता नहीं चला है कि यह सीडी आई कहां से। अतीत में भी ऐसी सीडियों का कभी पता नहीं चला कि कहां से आई? हालांकि यह मांग बहुत रहती है कि पता लगाया जाए कि इस पप्पू का पापा कौन है? पर उन्हें कोई बर्थ सर्टिफिकेट थोड़े ही लेना होता है। उन्हें तो सिर्फ बर्थ लेना होता है। उन्हें जायज या नाजायज होने की चिंता भी नहीं होती। वैसे तो यह धंधा ही ऐसा है। इसमें जायज कुछ नहीं होता। फिर वे कोई बिल थोड़े ही होती हैं कि उन पर बहस कराई जाए। वे तो आती हैं और छा जाती हैं और पूरा राजनीतिक विमर्श बदल देती हैं।

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great_brother
09-05-2011, 11:15 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

करप्शन से करप्ट सीडी तक......


दोस्तों ,
अब देख लीजिए , कल तक पूरा विमर्श करप्शन पर केंद्रित था। अब सीडी पर केंद्रित है। हालांकि कहा यही जा रहा है कि यह भी करप्ट ही है। पर करप्शन से इसका सिर्फ इतना ही संबंध नहीं है। संबंध बड़ा गहरा है। संबंधों की खास बात यही होती है कि हो जाते हैं तो फिर गहराने लगते हैं। भ्रष्ट नेता और भ्रष्ट सीडी में कोई ताल्लुक होता है क्या ? वैसे होना तो चाहिए। होता भी रहा है। पर यहां तो सीडी का ताल्लुक वकील , जज , न्याय , सैटिंग वगैरह से है। हालांकि नेता भी इस दायरे से बाहर नहीं हैं।


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great_brother
09-05-2011, 11:17 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

करप्शन से करप्ट सीडी तक......


दोस्तों ,
कहां तो यह आजादी की दूसरी लड़ाई थी और कहां यह अपने मान और उसकी हानि की लड़ाई बन गई। अच्छा हुआ कि आजादी की जो पहली लड़ाई लड़ रहे थे उन्हें कभी अपनी मानहानि की लड़ाई नहीं लड़नी पड़ी। वरना हमें आजाद होने का मान शायद कभी न मिल पाता। पर उस जमाने में सीडी भी नहीं रही होगी न। जब जंतर - मंतर पर आजादी की यह दूसरी लड़ाई चल रही थी , तब एक नेता ने कहा था कि अब अगर गांधीजी भी होते तो उन्हें भी करप्शन करना पड़ता। इस संदर्भ में यह भी कहा जा सकता है कि आज अगर गांधीजी होते तो शायद उन्हें भी सीडी के फेर में पड़ना पड़ता। अच्छा हुआ कि तब सीडी नहीं थी। पर आज सीडी की महिमा देखिए कि अन्नाजी को भी सीडी युद्ध में कूदना पड़ रहा है। करप्शन के खिलाफ शुरू हुआ युद्ध देखिए कहां पहुंचा है। और देखिए कहां तक पहुंचेगा। अभी तो यह इब्तदाए इश्क है ।

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great_brother
09-05-2011, 11:42 AM
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अरे देखो प्याज की जवानी......


दोस्तों ,
जो लोग प्याज बिल्कुल नहीं खाते, वे इस व्यंग को ना ही पढ़ें तो अच्छा है। फिजूल में उनका धर्म भ्रष्ट होगा। उनके लिए एक सात्विक लेख मेरे दिमाग की प्रेस में है, जल्द ही मार्केट में आ जाएगा। उसका इंतजार करें।

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great_brother
09-05-2011, 11:44 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

अरे देखो प्याज की जवानी......


दोस्तों ,
प्याज खाने वालों, सुन लीजिए प्याज बड़ी जालिम है। एक अंगड़ाई लेती है और सरकारें गिरा देती है। एक भूतपूर्व सरकार से पूछ लो इस निगोड़ी का दर्द। वो आज भी इसी प्याज का रोना रो रही है और इसी की मार से आज भी विपक्ष में बैठी है। वर्तमान सरकार तो पहले से ही कॉमनवेल्थ और स्पेक्ट्रम जैसे आदर्श रोगों से पीडि़त थी, ऊपर से प्याज की जवानी उसके बुढ़ापे पर भारी पड़ रही है। उसने आनन-फानन में प्याज के घर से बाहर निकलने (निर्यात) पर रोक लगा दी है मगर प्याज की जवानी बाज नहीं आ रही है। उछाल पर उछाल मार रही है और विपक्ष के जख्मों पर काला मरहम लगा रही है। प्याज को जिद चढ़ गई है कि जब शीला की जवानी किसी के हाथ नहीं आ रही है तो वो किसी के हाथ क्यूं आए।

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great_brother
09-05-2011, 11:45 AM
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अरे देखो प्याज की जवानी......


दोस्तों ,
प्याज कह रही है- कालाबाजारियों के महलों की रानी बनी रहूंगी तुम्हारे हाथ कतई ना आऊंगी। चार दिन की जवानी है, आदमी अपने स्वाद के पीछे जवानी का लुत्फ नहीं लेने दे रहा। खुद जवान-जवान घोटाले कर रहा है तब कुछ नहीं। मेरी जवानी सबकी आंख में खटक रही है। मेरी जवानी की ज्यादा जलन है तो क्यों मुंह लगा रहे हो मुझे। पिछली सरकार हाथ जोड़ती फिर रही है मेरे आगे। ज्यादा मुझे छेड़ोगे तो मध्यावधि चुनाव करवा दूंगी। समझ लो।

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great_brother
09-05-2011, 11:46 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

अरे देखो प्याज की जवानी......


दोस्तों ,
जवानी शीला की हो या प्याज की, सबको प्यारी होती है। शीला की जवानी ने बाकी सब गानों को प्याज के छिल्कों की तरह मार्केट से उतार फेंका है। शीला ने सबको जवान और तरोताजा रहने का एक नया मंत्र दिया है। जिम क्लब और ब्यूटी पार्लर शीला नाम की महिलाओं से भरे पड़े है। शुक्र है मेरी पत्नी का नाम शीला नहीं है, वरना ये नया खर्चा और मेरी जान को बन आता। सात्विक भोजन करने वाले प्याज की हरकतों से बेशक बचे हुए हों लेकिन दूसरी सब्जियों, पेट्रोल और बिजली की चढ़ती जवानी से उनका सात्विक जीवन डिस्टर्ब हो रहा है। उनका मन अशांत है। उनकी आंखों में बिना प्याज कतरे ही आंसू हैं। मन में सरकार के प्रति बुरे-बुरे विचार आ रहे हैं।

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great_brother
09-05-2011, 11:47 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

अरे देखो प्याज की जवानी......


दोस्तों ,
वे जल्द से जल्द महंगाई बढ़ाने वाले तत्वों से छुटकारा चाहते हैं। सात्विक जीवन जी रहे एक व्यक्ति ने तो बौखलाकर यहां तक कह दिया कि देश में सरकार सिर्फ तीन वर्षों के लिए ही चुनी जानी चाहिए।

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great_brother
09-05-2011, 11:48 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

अरे देखो प्याज की जवानी......


दोस्तों ,
प्याज की जवानी बाकी सब्जियों के दिलों में भी आग लगा रही है। बैंगन मन ही मन भुन रहा है कि सारा मीडिया प्याज के पीछे बावला हो रहा है, उसकी जवानी कोई कवर नहीं कर रहा। अदरक का कहना है कि उसके पास प्याज जैसे गुलाबी गाल नहीं हैं इसीलिए उसे मीडिया की कवरेज नहीं मिल रही। उसकी टेढ़ी-मेढ़ी जवानी प्याज की जवानी के आगे हल्की पड़ रही है। और सब्जियां भी जवान होने के नुस्खे तलाश रही हैं।


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great_brother
09-05-2011, 11:48 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

अरे देखो प्याज की जवानी......


दोस्तों ,
वैसे , प्याज के लच्छों का मैं भी शौकीन हूं। जब तक दाल में प्याज के बघार की खुशबू नहीं आती , कटोरी की दाल साठ साल की बुढि़या की तरह लगती है। लेकिन मेरी प्रेमिका को मेरे महंगे शौक पसंद नहीं हैं । गलती से कोई महंगी चीज खरीद लाता हूं तो खुद भी पीछे नहीं रहती। अभी चार दिन पहले मैं जरा से महंगे मोजे खरीद लाया , तो अगले ही दिन वह अपना मोटापा कम करने के महंगे कैप्सूल और वजन बताने वाली मशीन खरीद लाई। प्याज महंगी होते ही वो दाल में प्याज की जगह लहसुन का तड़का लगाने लगी है।

मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ...............

great_brother
09-05-2011, 11:50 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

अरे देखो प्याज की जवानी......


दोस्तों ,
एक दिन झल्लाकर मैंने उससे कहा - दाल के लिए एक ही प्याज खरीद लाया करो। कहने लगी - ये महंगे शौक शीला के लिए रहने दो। मैंने पूछा कौन शीला , कहने लगी वही जिसकी जवानी किसी के हाथ नहीं आ रही।

हा हा हा हा ........

मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ...............

jitendragarg
09-05-2011, 07:11 PM
@great_brother

अपने सिग्नाचार का सीजे थोडा छोटा करे. कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया है!

Bholu
11-05-2011, 08:17 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

अरे देखो प्याज की जवानी......


दोस्तों ,
वैसे , प्याज के लच्छों का मैं भी शौकीन हूं। जब तक दाल में प्याज के बघार की खुशबू नहीं आती , कटोरी की दाल साठ साल की बुढि़या की तरह लगती है। लेकिन मेरी पत्नी को मेरे महंगे शौक पसंद नहीं हंै। गलती से कोई महंगी चीज खरीद लाता हूं तो खुद भी पीछे नहीं रहती। अभी चार दिन पहले मैं जरा से महंगे मोजे खरीद लाया , तो अगले ही दिन वह अपना मोटापा कम करने के महंगे कैप्सूल और वजन बताने वाली मशीन खरीद लाई। प्याज महंगी होते ही वो दाल में प्याज की जगह लहसुन का तड़का लगाने लगी है।

मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ...............

प्याज की जबानी
हा हहहहहहह

great_brother
11-05-2011, 10:22 AM
मित्रों अपने विचार देते रहे ...

great_brother
11-05-2011, 10:25 AM
@great_brother

अपने सिग्नाचार का सीजे थोडा छोटा करे. कुछ ज्यादा ही बड़ा हो गया है!

महोदय

मैंने आपके सुझाव को अंगीकार कर लिया है ..........

great_brother
12-05-2011, 02:50 PM
रिटर्न ऑफ ओनियन - एक प्याज प्रेम कथा


जिस प्रकार क्रिकेटर अपने अनुकूल पिच की आस लगाए बैठे रहते हैं, उसी प्रकार फिल्म के निर्माता-निर्देशक एक अदद स्टोरी के लिए टीवी और न्यूजपेपर खंगालते रहते हैं कि शायद कोई हॉट टॉपिक टपक पड़े। पिछले दिनों भ्रष्टाचार और स्पेक्ट्रम के साथ अचानक प्याज की टीआरपी बढ़ी तो बॉलिवुड में खुशी की लहर दौड़ गई। प्याज जैसे मौलिक विषय पर फिल्म की कल्पना ने साकार रूप ले लिया, जिसके कुछ लीक हुए अंशों को जोड़कर संपूर्ण कथा प्रस्तुत है -

great_brother
12-05-2011, 02:52 PM
रिटर्न ऑफ ओनियन - एक प्याज प्रेम कथा


नायक, नायिका के गांव आसपास हैं पर कुछ पुरानी दुश्मनी के कारण आपस में प्याज-बेटी का संबंध नहीं है। नायक की जमीन बंजर है, नायिका की उपजाऊ जिस पर प्याज की खेती होती है। नायिका का बाप बेवड़ा है, भाई आवारा, इसलिए सारा काम नायिका ही संभालती है। नायिका नकचढ़ी है। नायक घर से रोज प्याज -रोटी लाता है और लंच टाइम में मेड़ पर बैठकर खाता है। खाते हुए वह नायिका को ताकता रहता है। एक दिन उसकी मां रोटी के साथ प्याज रखना भूल जाती है, तब वह गाना गाकर नायिका से प्याज मांगता है- दे दे प्याज दे प्याज दे प्याज दे रे, हमें ... । पहला गाना हो जाता है पर नायिका घास नहीं डालती। तब वह बेचारा दूसरा गाना गाने लगता है - प्याज मांगा है तुम्हीं से न इनकार करो ...।

great_brother
12-05-2011, 02:53 PM
रिटर्न ऑफ ओनियन - एक प्याज प्रेम कथा

मित्रों ,

नकचढ़ी नायिका सोचती है कि यह कहीं तीसरा गाना न गाने लग जाए। इस डर से वह दूसरा गाना खत्म होने से पहले ही उसे प्याज दे देती है। पर आदत से मजबूर नायक एक गाना और गाता है- क्या यही प्याज है ...। नायक को नायिका का प्याज बहुत अच्छा लगता है। वह प्याज-रोटी के स्वाद में खो जाता है। सपने में भी उसको नायिका और प्याज ही दिखते हैं। अगले दिन वह खेत पर जल्दी पहुंच कर नायिका का इंतजार करता है। उसे देखते ही वह गाने लगता है- मैं तेरे प्याज में पागल ...। तब नायिका शरमा जाती है फिर दोनों साथ-साथ गाना गाते है- प्याज बिना चैन कहां रे ...। उधर नायिका का बेवड़ा बाप दारू के लालच में उसकी शादी कहीं और करना चाहता है पर नायिका को इसकी भनक लग जाती है । वह नायक को खत लिखती है और गाती है- प्याज तुझे भेजा है खत में ...। नायिका का यह खत खलनायक के हाथ लग जाता है । वह खत को मसलकर फेंक देता है और नायिका का अपहरण कर लेता है। किसी तरह नायक को इसका पता चलता है तो वह खलनायक से लड़कर नायिका को छुड़ा लेता है और उसे सही सलामत घर छोड़ आता है। फिर दोनों प्याज के खेत में उछल- उछल कर गाते हैं- प्याज बांटते चलो ...। नायिका के घर वाले नायक से बहुत इंप्रेस होते है। गाने के प्रभाव से बाप-बेटा दोनों सुधर जाते है..

great_brother
12-05-2011, 02:55 PM
रिटर्न ऑफ ओनियन - एक प्याज प्रेम कथा

मित्रों ,

यहां आकर दर्शक सोच सकते हैं कि अभी तो डेढ़ घंटा हुआ है और फिल्म खत्म होती लग रही है। पर तभी एक टर्निंग पॉइंट सामने आता है। प्याज की कीमतें आसमान छूने लगती है। इधर नायक की बहन की शादी तय हो जाती है। पर ससुराल वाले एक पोटली प्याज दहेज में मांगते है। इस समस्या के निदान लिए अपना कंगाल नायक भगवान की मूर्ति के सामने गाता है- इतना प्याज हमें देना दाता ...। वहां एक बैंक मैनेजर उसकी पीड़ा समझ जाता है और उसे लोन लेने के लिए प्रेरित करता है। नायक भगवान को धन्यवाद देता है और बैंक में जमीन गिरवी रखकर प्याज की एक गठरी ले आता है। पर दुष्ट खलनायक ऐन मौके पर आ धमकता है। वह नायक से गठरी छीन लेता है। इस छीना-झपटी में गठरी नायक के सिर पर लग जाती है और वह याददाश्त खो बैठता है। तब चतुर नायिका उसे अस्पताल न ले जाकर खुद ही उसका इलाज करती है। वह नायक को गाना सुनाती है- जीत जाएंगे हम जब प्याज संग है ...। गाना सुनकर नायक ठीक हो जाता है। ठीक होते ही नायक प्याज की गठरी से खलनायक को पीट-पीट कर अधमरा कर देता है। फिर नायक-नायिका दोनों खलनायक को ठेंगा दिखाकर शादी कर लेते हैं.....


दोस्तों बताना जरुर कैसा लगा मेरा ये प्रयास ?

abhisays
12-05-2011, 02:57 PM
बहुत ही बढ़िया...++..

great_brother
12-05-2011, 11:07 PM
गाना आए या न आए गाना चाहिए, पर क्यों?

मित्रों ,

वर्ष 1978 में कमलेश्वर की कहानी पर बनी बी. आर. चोपड़ा की फिल्म 'पति, पत्नी और वो' का एक गाना है: ठंडे -ठंडे पानी से नहाना चाहिए, गाना आए या न आए गाना चाहिए। गीतकार आनंद बख्शी, संगीतकार रवींद्र जैन और गायक महेंद्र कपूर को इस गाने के आफ्टर इफेक्ट्स का जरा-सा भी अहसास हो जाता तो वे तौबा करते हुए भाग खड़े होते। खैर, जो होना था, सो हुआ। इस गाने के बाद हर कोई अपना-अपना राग अलापने लगा और 30 दिन में एक बार नहाने वाले भी सिंगर बन गए। बाथरूम में गाते-गाते कई तो मुंबई पहुंच गए। फास्ट फूड की तरह फास्ट म्यूजिक को भी जनता ने गले में उतार लिया। 'कूल' कहे जाने वाले हॉट म्यूजिक पर हर कोई नाचने लगा। लेकिन कब तक? धीरे-धीरे उसने असर दिखाना शुरू किया। लोगों के गले बैठ गए, टांगें अकड़ने लगीं और सिर घूमने लगे....


दोस्तों बताना जरुर कैसा लगा मेरा ये प्रयास ?

great_brother
12-05-2011, 11:18 PM
गाना आए या न आए गाना चाहिए, पर क्यों?

मित्रों ,
तभी एक मुन्नी आ गई और बोली : 'मैं झंडू बाम हुई डार्लिंग तेरे लिए।' आई तो है वह दुख-दर्द दूर करने के लिए, लेकिन मेरा सिरदर्द बढ़ गया। आगे क्या होगा, यह सोचकर डिप्रेशन होने लगा। आज तो एक मुन्नी बाम हो गई, कल कोई मुनिया एनासिन और एस्प्रो हो जाएगी और परसों हाजमोला या पुदीन हरा की गोली। इसके बाद किसी मुन्नी को एंटी-बायोटिक दवा का कैप्सूल होने से कौन रोकेगा? यह भी तो हो सकता है कि बाबा रामदेव से प्रेरित कोई मुन्नी लौकी, करेले या नीम का जूस हो जाए! यह सिलसिला कहां जाकर थमेगा, कौन जाने। किसी मंच पर कोई कवि फटे-फटाए गले से अपनी बेहूदा-सी कविता गाएगा और उसके बाद मुन्नीनुमा कोई कवयित्री गा उठेगी : 'तेरे गले की खिचखिच दूर करने को मैं भोलीभाली हो गई विक्स की गोली......


दोस्तों बताना जरुर कैसा लगा मेरा ये प्रयास ?

great_brother
12-05-2011, 11:21 PM
गाना आए या न आए गाना चाहिए, पर क्यों?

मित्रों ,
आज का फिल्मी गीतकार कुछ भी लिख सकता है। कभी-कभी तो पता ही नहीं चलता कि गीत किस भाषा में लिखा गया है। कुछ गानों को तो सुनकर लगता है कि अफ्रीका के किसी दूरदराज जंगल में एक आदमी को आग पर रखी बड़ी-सी हांडी में डालकर आदमखोर नाच-गा रहे हैं। आखिर ऐसे गीत लिखे ही क्यों जाते हैं? मेरा ख्याल है कि चार भले लोगों के बीच जिस बात को कहते हुए गीतकार को शर्म महसूस होती है तो उसे वह गाने का रूप दे देता है। उधर गायक को कौन समझाए कि शरीफ आदमी वह है, जो गाना जानता तो है, लेकिन गाता नहीं.................

दोस्तों बताना जरुर कैसा लगा मेरा ये प्रयास ?

great_brother
12-05-2011, 11:24 PM
गाना आए या न आए गाना चाहिए, पर क्यों?

मित्रों ,
यही हाल पुराने गानों के रीमिक्स का है। सुनकर लगता है कि घर में हुई दावत के बचे-खुचे पकवानों को फ्रिज में रख दिया गया था और दस-बारह दिन के बाद सबको अच्छी तरह मिलाकर ताजा मसाले डालकर परोसा जा रहा है। ऐसा गीत-संगीत भी सुनने को मिल जाता है, जिससे लगता है कि पत्थर-कंकड़ डालकर घडे़ को हिलाया जा रहा है..............

दोस्तों बताना जरुर कैसा लगा मेरा ये प्रयास ?

great_brother
12-05-2011, 11:26 PM
गाना आए या न आए गाना चाहिए, पर क्यों?

मित्रों ,
कहते हैं कि संगीत स्वर्ग से उतर कर आत्मा में प्रवेश कर जाता है। यह कई रोगों का इलाज भी है। पहली बात का तजुर्बा मुझे नहीं है, लेकिन आज के गीत-संगीत के बारे में दावे के साथ कह सकता हूं कि इलाज की बात सौ फीसदी सच है। मुझे लो ब्लडप्रेशर रहता है। जब कभी लगता है कि खून ठंडा हो चला है तो मैं ठकाठकनुमा गाना लगा देता हूं। बस, सुनते ही मेरा खून खौलने लगता है। और ऐसे ही संगीत से कुछ लोगों का ब्लडप्रेशर हाई भी हो जाता है.............

दोस्तों बताना जरुर कैसा लगा मेरा ये प्रयास ?

great_brother
12-05-2011, 11:28 PM
गाना आए या न आए गाना चाहिए, पर क्यों?

मित्रों ,
हमारा एक दोस्त रॉक संगीत पर फिदा है। खूब गाता-बजाता है। पिछले दिनों उसकी बर्थडे पार्टी में उससे गाने की फरमाइश की गई तो साफ इनकार कर गया। बाद में मैंने पूछा तो उसने बताया : 'मैंने घर में गाना-बजाना बंद कर दिया है।' वजह जाननी चाही तो बोला : 'मेरा गला।' मैंने सलाह दी कि किसी अच्छे डॉक्टर से इलाज कराओ। कहने लगा : 'नहीं, बात ऐसी नहीं है। दरअसल मेरे पहलवान पड़ोसी ने कहा है कि गाओगे तो गला दबा दूंगा'...........

दोस्तों बताना जरुर कैसा लगा मेरा ये प्रयास ?

great_brother
16-06-2011, 04:51 PM
मुद्दा नेता को जूता मारने का

मित्रों मुद्दा नेता को जूता मारने का पिछला कुछ दिन में, कई देश में नेता लोग पर जूता फेंका गया। हिंदुस्तान में बी एक नेता पर जूता तान दिया गया। इससे एक सवाल पैदा होता है - क्या नेता लोग को जूता मारना सही है? ये विषय पर नेता लोग का राय अलग है और जनता का अलग। जूता लोग का राय क्या है, ये जानने का वास्ते 'जूता महासंघ' ने जूता लोग का जनरल बॉडी मीटिंग बुलाया।

great_brother
16-06-2011, 05:05 PM
मुद्दा नेता को जूता मारने का

मित्रों अध्यक्ष ने मीटिंग का एजेंडा का घोषणा किया, 'प्यारा जूता भाइयों, जूता महासंघ का ये मीटिंग एक अहम विषय पर चर्चा करने का वास्ते बुलाया गया है - क्या नेता लोग को जूता मारना सही है? ये मुद्दा पर मीडिया में तरह-तरह का विचार प्रकट किया गया है। लेकिन, आज तक किसी चैनल ने जूता लोग का विचार जानने का कोशिश नहीं किया।' जूता लोग का विचार बताने का वास्ते मीटिंग में मीडिया को बी बुलाया गया। चूंकि, कई जगह नेता लोग पर जूता पत्रकार लोग ने ईच चलाया था, इसलिए पंडाल में घुसने से पहले पत्रकार लोग का जूता उतरवा लिया गया।

great_brother
16-06-2011, 05:06 PM
मुद्दा नेता को जूता मारने का

मित्रों सबसे पहले, खादी ग्रामोद्योग का बहिन चप्पल जी बोलने को खड़ा हुआ। वो बोला, 'प्यारे जूता भाइयों, हम लोग भारत का जूता है। भारत एक गांधीवादी देश है। एक अहिंसावादी देश है। भारत का जूता को ये शोभा नहीं देता कि वो किसी को मारे। चाहे वो कोई नेता ईच क्यों न होवे।' गांधीवादी चप्पल का बात सुन कर एक क्रांतिकारी किसिम का जूता तैश में आ गया, 'इधर गांधीवाद-गांधीवाद नईं करने का। गांधीवाद बस अंग्रेज लोग का सामने चल सकता था। अब तो गांधीवाद, गांधी का नाम रटने वाला लोग का सामने बी नहीं चलता। आजकल तो ऐसा-ऐसा लोग गांधीवादी हो गयेला है जो सिरफ जूता खाने लायक है।'

great_brother
16-06-2011, 05:10 PM
मुद्दा नेता को जूता मारने का

मित्रों ये क्रांतिकारी किस्म का जूता को कुछ सेकुलर किसिम का जूता बड़ा गौर से देख रहेला था। एक सेकुलर ने उसको पहचान लिया। वह जोर से चिल्लाया, 'अरे, ये तो वो ईच जूता है जो वंदे मातरम बोलता है। भारतमाता का जय बोलता है। ये कम्यूनल जूता है।' जूता मारने का मुद्दा, अचानक सांप्रदायिकता का मुद्दा में बदल गया। कुछ जूता लोग, जो सिरफ जूता था, सोचने लगा- जूता मारने का सेकुलर तरीका क्या होता है?

great_brother
16-06-2011, 05:11 PM
मुद्दा नेता को जूता मारने का

मित्रों मीटिंग में एक इकॉनमिस्ट जूता भी आया था। इकॉनमिस्ट लोग हर काम का आर्थिक पहलू पहले देखता है। इकॉनमिस्ट जूता बोला, 'नेता को जूता मारना सही है या नहीं, ये बारे में मेरा कोई राय नहीं है। मेरे को तो बस इतना बोलना है कि कुछ भी मारने से पहले, मारने का आर्थिक पहलू पर विचार करना जरूरी है। मेरा अपना विचार है कि किसी को भी नया जूता नहीं मारने चाहिए। आजकल जूता बहुत महंगा हो गया है। मारपीट कैसा भी होवे, उससे अर्थव्यवस्था को चोट नहीं पहुंचना चाहिए। इसलिए अगर ये तय कर लियेला है कि नेता को जूता मारना ईच है, तो कोई फटा-पुराना जूता ले कर जाने का। जूता ऐसा होना मांगता है जिसको किसी का सिर पर फेंकने से कोई आर्थिक नुकसान नहीं होवे।'

great_brother
16-06-2011, 05:12 PM
मुद्दा नेता को जूता मारने का

मित्रों जूता महासंघ का मीटिंग किसी निर्णय पर पहुंचता, उसका पहले पुलिस का पास खबर पहुंच गया कि शहर में नेता लोग को जूता मारने पर विचार हो रहेला है। बस, पुलिस उधर दनदनाता हुआ पहुंच गया। पुलिस का इरादा चाहे जो भी होवे, वो सब जगह दनदनाता हुआ ईच पहुंचता है। पुलिस को देख कर जूता लोग में भगदड़ मच गया। एक जूता का फीता दूसरा जूता का नीचू दब गया। वो मुंह का बल गिर पड़ा। कुछ जूता, भागता हुआ जूता लोग का नीचू दब गया। कुछ पुलिस का बूट का नीचू कुचल गया। सभा तितर-बितर हो गया। पंडाल खाली हो गया। बस, कुछ कुचला हुआ जूता ये इंतज़ार में पड़ा रहा कि कोई आवे और वो लोग को मरम्मत का वास्ते किसी मोची के पास पहुंचा देवे। जूता महासंघ का मीटिंग बिना ये निर्णय लिए ईच खलास हो गया कि नेता लोग को जूता मारना सही है या नहीं। क्या जूता महासंघ फिर से कोई मीटिंग बुलाएंगा? यह तो समय ईच बताएंगा!

great_brother
16-06-2011, 05:20 PM
मित्रों पेश है मेरे तरकस से एक और व्यंगबाण .................

नाच न जाने आंगन टेढ़ा

great_brother
16-06-2011, 05:22 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
जब नाच न जाने आंगन टेढ़ा तो नाच राजघाट को ही क्यों जाने? वह यह क्यों ध्यान रखे कि वहां आज तक कोई नाच नहीं हुआ। वह क्यों याद रखे कि वह समाधि स्थल है और वहां पर नाच-गाना नहीं होता। वह यह क्यों सोचे कि वहां मौन रखा जाता है, या सिर्फ भजन गाए जाते हैं, प्रार्थना की जाती है। वहां बस फूल चढ़ाए जाते हैं और ज्यादा से ज्यादा यादगार के लिए पौधे रोपे जाते हैं। हालांकि, यह सब याद रखने की बातें थी, पर नाच जब टेढ़ा आंगन नहीं देखता तो वह यह सारी बातें याद भी क्यों रखता।

great_brother
16-06-2011, 05:23 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
हालांकि, यह कोई होली का त्यौहार नहीं था कि मर्यादाओं को कुछ देर के लिए भुला दिया जाता और ढोलक की थाप पर थिरकन शुरू हो जाती। कोई बारात भी नहीं निकल रही थी कि नाचे बिना रहा ही न जाए। बच्चे के जन्म जैसा खुशी का ऐसा कोई मौका भी नहीं था कि रुका ही न जाए। न कोई पार्टी हो रही थी, न कोई जश्न हो रहा था। सो यह भी नहीं कहा जा सकता कि मौका भी था और दस्तूर भी। पर नाच ने जब राजघाट ही नहीं देखा तो दस्तूर भी क्यों देखता।

great_brother
16-06-2011, 05:24 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
पर समस्या यह है कि इस नाच को तो नाच ही नहीं माना जा रहा है। सुषमा जी इस बात से बेहद नाराज हैं कि देशभक्ति के एक गाने पर उनके झूमने को नाच कहा जा रहा है। वे यह तो कह रही हैं कि कांग्रेसियों के नाचने की क्लिपों से इंटरनेट भरा पड़ा है। वे आदिवासियों के साथ इंदिरा जी और सोनिया जी के थिरकने को तो नाच कह रही हैं, पर अपने नाच को नाच मानने से ही इनकार कर रही हैं........

great_brother
16-06-2011, 05:25 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
इंदिरा जी या सोनिया जी के अपने यहां आगमन पर या उनके स्वागत में अगर आदिवासियों ने कोई नृत्य किया और उनका हौसला बढ़ाने के लिए वे उनके साथ थिरकने लगीं, तो ऐसे तो सभी नेता करते हैं। हो सकता है सुषमा जी ने भी कभी किया हो, पर उस पर तो कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई। क्योंकि वहां मर्यादा और गरिमा दोनों कायम रहती है.......

great_brother
16-06-2011, 05:25 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
एक तो सुषमा जी पहले ही नाराज थीं कि कि राजघाट पर उनकी पार्टी के धरने को कवरेज देने की बजाय मीडिया ने सिर्फ उनके नाचने, सॉरी, झूमने की क्लिपें ही दिखाईं। हालांकि, मीडिया ने यह भी बताया था कि गडकरी जी ने थकान उतारने के लिए पुरानी दिल्लीवाली फेमस मालिश भी कराई थी। फिर मीडिया ने यह भी दिखाया कि आडवाणी जी वहीं धरने पर बैठे दूध पी रहे हैं। इसमें कुछ बुरा नहीं था। खान-पान की आदतें बिगड़नी नहीं चाहिए। मीडिया ने यह भी दिखाया कि रविशंकर प्रसाद, शाहनवाज हुसैन और पार्टी की दूसरी पंक्ति के अन्य कई नेता राजघाट बस स्टॉप पर बैठे नारे लगा रहे थे, जिससे यह साफ था कि वे सिर्फ कैमरे को देखकर ही नारे लगा रहे हैं.......

great_brother
16-06-2011, 05:26 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
पर सुषमा जी इस बात को लेकर बेहद खफा रहीं कि मीडिया ने सिर्फ उनके नाचने, सॉरी झूमने की क्लिपें ही दिखाई। वैसे हो सकता है कि अगर ये क्लिपें न दिखाई जातीं तो भी शिकायत हो जाती, जो कि मीडिया से नेताओं की अक्सर ही होती है......

great_brother
16-06-2011, 05:27 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
नाचना कोई इतना खराब शब्द तो नहीं है कि उसे अपने साथ जोड़ा ही न जाए। नाच को अगर कुछ ज्यादा ही सुसंस्कृत करना हो तो उसे नृत्य तो कहा जा सकता है, पर झूमना नहीं कहा जा सकता। फिर कृष्ण भी नाचते ही थे, गोपियां भी नाचती ही थीं। झूमता तो कोई नहीं था। पर सुषमा जी का कहना है कि वे देशभक्ति के गीतों पर बस झूम रही थीं.......

great_brother
16-06-2011, 05:28 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
पर इस नाचने, गाने और झूमने का अवसर क्या था? अगर रामलीला ग्राउंड में लाठीचार्ज हुआ तो उस पर या तो रोष प्रकट किया जा सकता था या गमगीन हुआ जा सकता था। रोष में विरोध के नारे लगाए जा सकते थे और गम में मौन रखा जा सकता था। फिर यह खुशी किस बात की मनायी जा रही थी? क्या इस बात की कि -आह, देखो राज हमारी झोली में आ रहा है.....

great_brother
16-06-2011, 05:29 PM
मजबूरी से ही आती है मजबूती

मित्रों ,
विश्वास करें, प्रधानमंत्री की तरह कुछ मामलों में मैं भी 'मजबूर' हो जाना चाहता हूं। आज के समय में 'मजबूरी' ही 'मजबूती' का प्रतीक है। सरकार और राजनीति के बीच मजबूरी का दावा कितना सफल हो सकता है, यह प्रधानमंत्री हमें बता ही चुके हैं। तमाम मजबूरियों का बोझा उठाते-उठाते प्रधानमंत्री साल-दर-साल और मजबूत होते जा रहे हैं। जब कभी उनसे इस्तीफे की बात कीजिए तुरंत 'अभी नहीं' का मजबूत सा जवाब दे देते हैं। मजबूर हो-होकर उन्होंने अपनी गद्दी, सरकार, नेता और गठबंधन को काफी मजबूत कर लिया है......

great_brother
16-06-2011, 05:30 PM
मजबूरी से ही आती है मजबूती

मित्रों ,
वाकई प्रधानमंत्री के पास बहुत विशाल जिगर है। जिगर में सब कु छ समाहित है। उन्हें या उन पर विपक्ष कु छ भी कह ले मान्यवर मजबूती के साथ खामोश ही बने रहते हैं। उकसाने पर भी नहीं उखड़ते। मजबूरियों के आधार पर मजबूती का एहसास देने वाला प्रधानमंत्री हिंदुस्तान के अतिरिक्त किसी दूसरे देश में नहीं हो सकता। इस आधार पर क्या हमें खुद को धन्य नहीं मानना चाहिए? ? ?

great_brother
16-06-2011, 05:31 PM
मजबूरी से ही आती है मजबूती

मित्रों ,
अपने देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि हमारे प्रधानमंत्री बहुत कम कहते-बोलते हैं। कहना-बोलना तो छोडि़ए बंधु, मुद्दत हो जाती है उनके चेहरे पर हंसी को देखे हुए। बस, मन ही मन अपनी मनमोहिनी करामातें करते हैं। फिर सवाल यह भी है कि वह बेचारे क्या कहें-बोलें! मैडम ही उनसे इतना कु छ कह-बोल देती हैं कि उन्हें बोलने का कोई मौका ही नजर नहीं आता। पर, अभी पत्रकारों से भ्रष्टाचार के सवालों पर वह बोले। मगर जो बोले भी, तो क्या बोले। वह जो बोले हम उन बोलों से बहुत पहले से परिचित हैं। उन्होंने अपनी मजबूरी बता दी और बता दिया कि जितना दोषी उन्हें कहा-बोला जा रहा है, उतना वह हैं नहीं..............

great_brother
16-06-2011, 05:31 PM
मजबूरी से ही आती है मजबूती

मित्रों ,
अब तमाम दबावों से बंधा मजबूर प्रधानमंत्री इसके अतिरिक्त और कह-बोल भी क्या सकता है! एक प्रधानमंत्री और इतने मंत्री। अब कौन मंत्री अपने विभाग में क्या कर रहा है, क्यों कर रहा है और किसलिए कर रहा है, यह सब मजबूर प्रधानमंत्री को क्या मालूम! आखिर वह प्रधानमंत्री हैं, कोई जासूस थोड़ी ही हैं। अगर बच्चे गार्जियन की बात न मानें तो इसमें गार्जियन का क्या दोष? कैसी रीत है इस संसार की कि करे कोई भरे कोई। घपले-घोटाले किए नेताओं-मंत्रियों ने, सफाई देनी पड़ रही है बेचारे प्रधानमंत्री को। इन तमाम उलझावों के मध्य उलझा प्रधानमंत्री अब खुद को 'मजबूर' न बताए तो फिर क्या बताए! कृ पया आप ही बताएं.............

great_brother
16-06-2011, 05:32 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
महंगाई के मामले में ही देख लें। अब प्रधानमंत्री इसमें क्या करें कि महंगाई का तूफान नहीं थम रहा। दनादन खा-पचा आप रहे हैं और दोष सरकार व प्रधानमंत्री को दे रहे हैं। वह तो मजबूर हैं। वह सिर्फ अपने पेट पर कंट्रोल कर सकते हैं, आप पर नहीं। असल में महंगाई का बढ़ना एक अर्थशास्त्रीय प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है, इसे हमारे प्रधानमंत्री से बेहतर कोई नहीं जान-समझ सकता। मैं पुन: कह रहा हूं कि बात चाहे महंगाई की हो या घपले-घोटाले की, दोषी प्रधानमंत्री नहीं दोषी तो कोई और है, वह तो इस सब के लिए 'सिर्फ मजबूर' हैं......

great_brother
16-06-2011, 05:34 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
मजबूरी शब्द ने मेरे दिल में उनकी साफगोई के प्रति सम्मान को बहुत अधिक बढ़ा दिया है। उनके मजबूरी शब्द से मैं इस कदर प्रभावित हुआ हूं कि अपने घर - परिवार और आस - पड़ोस के हर गलत - सलत कामों पर सब कु छ देखते - समझते हुए भी मजबूरी का कंबल डालने का निर्णय कर चुका हूं। मुझे कितना भी गरियाए या उकसाए मैं तो अपनी मजबूरी को उसके समक्ष रख दूंगा। बंदा खुद ही चुप्पी मार जाएगा.....

great_brother
16-06-2011, 05:36 PM
नाच न जाने आंगन टेढ़ा

मित्रों ,
आपने भी कभी ना कभी ये महसूस किया होगा और आप मेरा यकीन करें कि प्रेमिका और पत्नियों से जुड़े हर मामले में बचाव का सबसे उत्तम साधन है , यह मजबूरी। आप अपने विचारों , कार्यों , शब्दों , नैतिक - अनैतिकताओं में जितना अधिक मजबूर होंगे उतना ही मजबूत होंगे। मजबूरी से हासिल की गई मजबूती ही आज के समय में श्रेष्ठता की प्रतीक है। बस , मजबूर बने रहिए मजबूती खुद - ब - खुद आपके पास दौड़ी चली आएगी। हमारे प्रधानमंत्री इसकी जीती - जागती एक ' उम्दा तस्वीर ' हैं। इसके बाद अब कु छ बचता नहीं प्रधानमंत्री से कहने - पूछने को क्योंकि वह अपनी तमाम तरह की मजबूरियां बता चुके हैं। पर एक बात है जेहन में। खुदा - ना - खास्ता अगर कहीं जनता मिस्र की मानिंद ' मजबूर ' हो गई तो ...?

हा हा हा .............मित्रों मेरा ये बाण आपको कैसा लगा बताना जरुर ............................

jitendragarg
16-06-2011, 05:41 PM
mahaaan bhaiyaa, bahut hi badhiya! :bravo:

great_brother
16-06-2011, 08:59 PM
कानून का हाथ, गुनाह की टांग

मित्रों ,
कानून का हाथ लंबा होता है। गुनाह की टांग लंबी होती है। कानून एक हाथ आगे बढ़ाता है, गुनाह दो कदम आगे निकल जाता है। हिंदुस्तान में बड़ा गुनाह पकड़ने का ये ईच गणित है। इधर बड़ा गुनाह कानून से हमेशा दो कदम आगे रहता है। गुनाह की टांग लंबी होती है, ये अकेला कारण नहीं है, जिससे कानून उसको नहीं पकड़ पाता। उसका और पन कई कारण है...........

हा हा हा .............मित्रों मेरा ये बाण आपको कैसा लगा बताना जरुर ............................

great_brother
16-06-2011, 09:02 PM
कानून का हाथ, गुनाह की टांग

मित्रों ,
एक कारण ये है कि कानून नियम से बंधा होता है। अपना मुलुक में आठ घंटा काम करने का नियम है। जो ड्यूटी नौ बजे चालू होता है, वो पांच बजे खलास हो जाता है। जिस दिन गुनाह को पकड़ना होता है, कानून नौ बजे दफ्तर जाता है। उधर मस्टर पर साइन करता है। फिर, गुनाह को पकड़ने का वास्ते निकलता है। जब तक कानून गुनाह का पास पहुंचता है, अकसर पांच बज जाता है। पांच बजे ड्यूटी खलास होने का नियम है। कानून नियम का पालन करता है। वो घर चला जाता है...........

great_brother
16-06-2011, 09:03 PM
कानून का हाथ, गुनाह की टांग

मित्रों ,
अगला सुबह कानून फिर दफ्तर जाता है। फिर मस्टर पर साइन करता है। फिर से गुनाह को पकड़ने को निकलता है। कानून अपना बाजू से पूरा कोशिश करता है। बार-बार कोशिश करता है, फिर भी गुनाह को पकड़ नहीं पाता। कारण ये देश में रोज पांच बजता है। कोई दिन ऐसा नहीं होता जब पांच नहीं बजे। ऐसे में कानून क्या कर सकता है..........

great_brother
16-06-2011, 09:32 PM
कानून का हाथ, गुनाह की टांग

मित्रों ,
ये देश में सभी का कुछ न कुछ बजता रहता है। किसी का बैंड बजता है, किसी का कुछ और बजता है, कानून का पांच बजता है। दिन पर दिन गुजरता जाता है। महीना पर महीना बीत जाता है। पच्चीस-पच्चीस साल हो जाता है, पर पांच बजना बंद नहीं होता। जिस दिन लगता है कि अब कानून गुनाह को जरूर पकड़ लेंगा, उस दिन भी कोई न कोई कानून का पांच बजा ही देता है। पांच बजने के बाद कानून कुछ नहीं कर सकता। आखिर नियम का सवाल है। अगर कानून ईच नियम नहीं मानेंगा तो और कौन मानेंगा!!!!!!!!!!!!!!!!

great_brother
16-06-2011, 09:36 PM
कानून का हाथ, गुनाह की टांग

मित्रों ,
हिंदुस्तान में कानून अकसर बड़ा गुनाह को नहीं पकड़ पाता। कारण, कानून का पास रबर का सोल वाला जूता नहीं होता। अगर आपको साइंस का थोड़ा सा पन जानकारी है, तो आपको पता होएंगा कि रबर सोल का जूता पहनने से बिजली का झटका नहीं लगता। अबी, कानून को रबर सोल वाला जूता कायकू मांगता है? कारण, हिंदुस्तान में बड़ा गुनाह का तार बड़ा-बड़ा पावरहाउस से जुड़ा होता है। ये तार का दो खास काम है - गुनाह को पावर देना और कानून को झटका। इस कारण, जिस गुनाह से बड़ा तार जुड़ा होता है, कानून उसको हाथ लगाने में डरता है। आपका क्या खयाल है, हिंदुस्तान में कानून को कभी रबर सोल वाला जूता मिलेंगा? ? ? ? ?

great_brother
16-06-2011, 09:38 PM
कानून का हाथ, गुनाह की टांग

मित्रों ,
हिंदुस्तान में कानून अकसर बड़ा गुनाह को नहीं पकड़ पाता। कारण, कानून को भागना नहीं आता। इमर्जेंसी का टाइम में एक खबर बहुत सुनने में आता था - 'कानून ने स्मगलर लोग का पीछा किया। जोरदार पीछा किया। स्मगलिंग का माल से भरा गाड़ी पकड़ लिया। पन स्मगलर लोग अंधेरा का फायदा उठा कर भाग गया।' कानून स्मगलर लोग का गाड़ी तो पकड़ लेता था, पर स्मगलर लोग को नहीं पकड़ पाता था। कारण, गुनाह को भागना आता है, कानून को नहीं आता। कानून को भागना कायकू नहीं आता? किसी को जाकर देखना चाहिए कि कानून का पास टांग भी है कि नहीं ! ! ! !

great_brother
16-06-2011, 09:40 PM
कानून का हाथ, गुनाह की टांग

मित्रों ,
हिंदुस्तान में कानून अकसर बड़ा गुनाह को नहीं पकड़ पाता। कारण , कानून को कलेंडर देखना नहीं आता। इस कारण , अगर कानून कभी किसी बड़ा गुनाह को पकड़ भी लेवे , तो उसको छोड़ना पड़ जाता है। कानून में खास दिन तक चार्जशीट दाखिल करने का नियम है। लेकिन , कानून तय तारीख से पहले चार्जशीट दाखिल नहीं कर पाता। कारण , उसको कलेंडर देखना नहीं आता। समय पर चार्जशीट दाखिल न करने से , गुनाह को जमानत मिल जाता है। आपने देखा होएंगा बड़ा अपराधी जमानत मिलने पर कैसा मुस्कुराता हुआ जेल से बाहर आता है। अपना मुलुक में आजादी का दूसरा नाम जमानत है............

ndhebar
17-06-2011, 04:55 PM
बहुत बढ़िया बंधू
व्यंग कुछ तीखा है पर सत्य कड़वा ही तो होता है

great_brother
26-06-2011, 12:13 PM
सूत्र पसंद करने का धन्यवाद मित्रों,

आपका सहयोग भी अपेक्षित है अत: आप भी अपने अपने विचार और व्यंग दे कर सूत्र को आगे बदाये ............

एक बार फिर आप सब का धन्यवाद ................

great_brother
29-06-2011, 09:59 AM
नए जमाने की गीता का नया ज्ञान

मित्रों ,
भ्रष्टाचार के विरुद्ध रण दुंदुभि बज चुकी थी। सर्वत्र कोलाहल व्याप्त था। भीषण समर की आशंकाएं सम्मुख थीं। बहुमत प्राप्त भ्रष्टाचारियों और अल्पमत सदाचारियों के समूह आमने-सामने थे। दोनों को ही देखकर कुछ ऐसा प्रतीत होता था, जैसे एक तरफ मशाल की लपटें हो और दूसरी तरफ मोमबत्ती की लौ।

great_brother
29-06-2011, 10:00 AM
नए जमाने की गीता का नया ज्ञान

मित्रों
आम जन हतप्रभ था। वह गीता के पार्थ की तरह युद्ध स्थल पर किंकर्तव्यविमूढ़ खड़ा था। चूंकि यह समर उस का ही नाम लेकर हो रहा था, अत: वह सर्वथा चकित भी था। वह एक दूसरे की आंखों में धूल झोंकते इन संग्रामोत्सुक नर नाहरों को अपलक निहार रहा था। वातावरण में आरोपों-प्रत्यारोपों के गगनचुंबी बगूले उठ रहे थे। उसकी आंखें धूल के झोंके से मिचमिचाने लग गई थीं............

great_brother
29-06-2011, 10:05 AM
नए जमाने की गीता का नया ज्ञान

मित्रों,
ऐसे में बारंबार अपने नयन मलता हुआ वह आम जन न्यूज कवरेज के निमित्त उद्यत तथा अपने कैमरादिक आयुधों को सज्जित कर रहे, अपने एक हाथ में माइक थामे रणभूमि में खड़े हुए एक मीडियाकर्मी से प्रश्न करता है- हे फटाफट समाचार प्रदाता, मेरा अंतर्मन आज बहुत ही व्यथित है। आप ज्ञानियों में श्रेष्ठ हैं। अद्यतन स्थितियों से भलीभांति अवगत रहते हैं। प्रत्येक घटना की भीतरी जानकारियों पर अपनी पैनी दृष्टि रखते हैं। कृपया मुझको बतलाने की कृपा करें कि शूरवीर सदाचारियों की इस व्यूह रचनायुक्त सेना और भ्रष्टाचारियों की भारी भरकम फौज के परम पराक्रमी और महारथी योद्धाओं तथा अनेक प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सज्जित निर्लज्ज वाक् युद्ध में निपुण अजेय अमरादि समान सहयोगी नर पुंगवों के मध्य आज जो यह संग्राम होने जा रहा है, उसमें किसकी जय होगी? कौन पराजित होगा तथा मेरा क्या होगा? तब आम जन के इस आर्त वचन को सुनकर उस मीडियाकर्मी ने प्रत्युत्तर में कुछ इस प्रकार के वचन कहे, जिस प्रकार भगवान कृष्ण मोहग्रसित अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे हों...........

great_brother
29-06-2011, 10:06 AM
नए जमाने की गीता का नया ज्ञान

मित्रों,
अथ मीडियाकर्मी उवाच- हे जनश्रेष्ठ, मैं तुम्हारी वर्तमान दुरावस्था से भलीभांति अवगत हूं। मैं देख रहा हूं कि इनकी लीला देखकर तुम्हारे शरीर में अनायास ही कंप और रोमांच हो रहा है। इन सदाचारियों और भ्रष्टाचारियों के वर्तमान कार्यकलापों को देखकर तुम व्यर्थ में भ्रमित न हो। इसलिए मैं तुम्हें गूढ़ तत्वज्ञान देता हूं। वस्तुत: सदाचार और भ्रष्टाचार का अंतर्संबंध दूध और पानी के समान होता है। जिस प्रकार दूध से जल को पृथक नहीं किया जा सकता, उसी भांति सदाचार और भ्रष्टाचार को भी विलग किया जा पाना असंभव है.........

great_brother
29-06-2011, 10:08 AM
नए जमाने की गीता का नया ज्ञान

मित्रों ,
नित्य सत्य तो यह है कि जो सदाचारी है, वह भी भ्रष्टाचारी है। और जो भ्रष्टाचारी है, वह भी सदाचारी है। क्योंकि सास भी कभी बहू थी और बहू भी आगे चलकर सास बन सकती है। इसी भांति सदाचारी भी कभी न कभी भ्रष्टाचारी रहा होगा और आज का भ्रष्टाचारी भी जीवन के किसी मोड़ पर सदाचार में अवश्य संलिप्त रहा होगा।

great_brother
29-06-2011, 10:09 AM
नए जमाने की गीता का नया ज्ञान

हे सखे, जिस प्रकार आत्मा और परमात्मा अपने मूल स्वभाव में एक हैं, तथापि पृथक दिखलाई पड़ते हैं। उसी प्रकार इस भ्रष्टाचार और सदाचार को भी समझो। द्वैत और अद्वैत के दर्शन की गुत्थी के समान ही ये भी एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हैं। हे प्रिय बंधु, यह मनुष्य का जीवन भोग के निमित्त निमिर्त है। यह ज्ञान भ्रष्टाचारी को अंत:प्रेरणा और अवसर की उपलब्धता से प्राप्त होता है। सदाचारी को इसके लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है। जब सदाचारी को इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है, वह भी भ्रष्टाचरण में प्रवृत्त हो जाता है। इसलिए तुम मेरे इन वचनों का ध्यानपूर्वक श्रवण करो। तत्पश्चात इस पर शांत मन से मनन करो। सब कुछ स्वत: स्पष्ट हो जाएगा..........

great_brother
29-06-2011, 10:09 AM
नए जमाने की गीता का नया ज्ञान

मित्रों,
तब उस मीडियाकर्मी के इस भांति कहे गए वचनों को सुनकर आम जन की लगभग बंद हो चुकी आंखें आधी खुल गईं। वह ठहाके लगाता हुआ बोला- अहा, आज मेरे दिव्यचक्षु खुल गए। मैं जान गया हूं कि सदाचार और भ्रष्टाचार समय, स्वार्थ और सुविधा के अनुसार स्वीकार्य और त्याज्य होते हैं। अतएव सिद्धांत में सदाचारियों के साथ और व्यवहार में भ्रष्टाचारियों के साथ रहना ही इस जीवन की सफलता के लिए श्रेयस्कर है..........

great_brother
29-06-2011, 10:15 AM
मोटेलाल से बच के

मित्रों,
अमेरिका में एक योग शिविर के बाद चार लड़के मुझसे मिलने घर पर आए। वे आपस में दोस्त थे और सब हंसी-मजाक के मूड में थे। उनमें से एक ने मुझ से पूछा, सर जी, मुझे पतला होना है, बताइए क्या करूं? मेरा ध्यान इस ओर गया, वे चारों सचमुच ही मोटे थे। सबने अपना वजन बढ़ा रखा था! मैं ने भी हंसते हुए ही जवाब दिया, देखो भाई! कहावत है कि खरबूजा खरबूजे को देख कर रंग बदलता है। संगत का असर हमारे ऊपर सबसे ज्यादा होता है। इसलिए ध्यान रखना कि तुम्हारे आसपास कोई मोटा आदमी न हो। .........

great_brother
29-06-2011, 10:16 AM
मोटेलाल से बच के

मित्रों,
उसने आश्चर्य से पूछा मतलब? बच्चे असमंजस में पड़ गए। मैंने कहा, मतलब ऐसी जगह नौकरी नहीं करना जहां आपका बॉस मोटा हो। अगर आपका अपना कारोबार हो, तो उसमें किसी मोटे व्यक्ति को नौकरी नहीं देना। कभी किसी मोटे आदमी के साथ बैठकर खाना नहीं खाना, नहीं तो ज्यादा खा जाओगे। अपने लिए जब लड़की देखने जाओ तो ध्यान रखना कि वो भी मोटी न हो। क्योंकि शादी के बाद वह तुम को भी खिला-खिला कर मोटा करना चाहेगी। और हां, एक बार लड़की की मां को भी जरूर देख लेना, कहीं वह भी मोटी न हो। .........

great_brother
29-06-2011, 10:17 AM
मोटेलाल से बच के

मित्रों,
लड़के तो मुझसे कुछ आसन वगैरह पूछने आए थे। इधर शादी का जिक्र निकल आया तो उनकी दिलचस्पी और बढ़ गई। लेकिन लड़की की मां मोटी हुई तो उससे क्या होगा? उनमें से एक ने बड़े ही मासूम ढंग से पूछा.........

great_brother
29-06-2011, 10:18 AM
मोटेलाल से बच के

मित्रों,
अगर लड़की की मां मोटी होगी तो गारंटी है कि लड़की भी शादी के बाद वैसी ही मोटी हो जाएगी। अगर नहीं हुई तब भी उसकी मां बार-बार कहती रहेगी, कुछ खाता-पीता क्यों नहीं? कितना कमजोर लगता है। ऐसा कह-कह कर वो हमेशा तुमको खिलाती रहेगी। चारों लड़के हो....हो कर के हंस पड़े........

great_brother
29-06-2011, 10:19 AM
मोटेलाल से बच के

मित्रों,
मैं ने कहा, और इस तरह आपका कोई दोस्त भी मोटा नहीं होना चाहिए ...और फिर दिल चाहे तो कुछ योगाभ्यास बता रहा हूं, वो भी कर लेना। चारों एक-दूसरे को देखने लगे। चारों मोटे थे और आपस में दोस्त भी। अंत में एक ने शिकायत के से अंदाज में पूछा, पर दोस्तों के मोटे होने से क्या होगा? ? ? ?

great_brother
29-06-2011, 10:20 AM
मोटेलाल से बच के

मित्रों,
यदि तुम पतले हो गए, तो तुम्हारे मोटे दोस्त कहेंगे कि पहले तू सेठ लगता था, खाते-पीते घर का लगता था। अब बड़ा कमजोर हो गया है। फिर वो तुझे समझाएंगे कि ऐसा कोई सेठ नहीं, जिसका पेट नहीं निकला हो। इस तरह वे तुम्हारा ब्रेनवाश कर देंगे और तुम उनकी बातों में आ जाओगे।

फिर तो हमारी दोस्ती ही खत्म हो जाएगी, उसने कातर भाव से कहा।

सब चुप हो गए। हंसी गायब हो गई। मैं भी चुप ही रहा। फिर अचानक उनमें से एक खुशी से उछलता हुआ बोला, लेकिन अगर हम चारों पतले हो गए तो फिर से दोस्त हो जाएंगे! उनकी उलझन दूर हो गई। मैं उन्हें हंसते हुए जाते देखता रहा...........

great_brother
29-06-2011, 10:23 AM
आखिर कैसे लड़ें कमबख्त भ्रष्टाचार से ......

मित्रों,
भ्रष्टाचार मिटाने के लिए गठित 'कमर कसो समिति' की बैठक में भीड़ बहुत थी। बैठक में शामिल अधिकतर सदस्यों के चेहरे भ्रष्टाचार के खिलाफ आक्रोश से तरबतर थे। वे दांत किटकिटाते, गाली बकते, हवा में मुक्के उछालते, भ्रष्टाचार को जड़- मूल से उखाड़ फेंकने के लिए कमर कसने की कोशिश कर रहे थे पर सफलता हाथ नहीं लग रही थी...........

great_brother
29-06-2011, 10:24 AM
आखिर कैसे लड़ें कमबख्त भ्रष्टाचार से

मित्रों,
वे करप्शन को उखाड़ तो फेंकते पर बुनियादी दिक्कत यह आ रही थी जड़ का सही पता ठिकाना नहीं मिल पा रहा था। इसलिए वे सभी भोगे हुए यथार्थ की तर्ज पर भोगे हुए भ्रष्टाचार की बातें आपस में शेयर कर अपना-अपना दुख हल्का कर रहे थे..........

great_brother
29-06-2011, 10:25 AM
आखिर कैसे लड़ें कमबख्त भ्रष्टाचार से

मित्रों,
पिछली परंपरा निभाते हुए बैठक की शुरुआत हंगामे के साथ बमुश्किल हो पाई। औपचारिक माल्यार्पण में सभी को संतुष्ट करने की कोशिश की गई। नतीजन लगभग हर कंठ में माला नजर आने लगी। फिर औपचारिक उद्बोधन हुआ। इसके बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए ठोस सुझाव आमंत्रित किए गए। सुझाव देने के लिए अनेक सदस्य खडे़ हो गए और अपनी बात रखने लगे। इस पर एक ऊंची आवाज वाले शख्स ने बाजी मारी.........

great_brother
29-06-2011, 10:26 AM
आखिर कैसे लड़ें कमबख्त भ्रष्टाचार से

मित्रों,
उनका सुझाव यह था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जंगी प्रदर्शन किया जाए। जिसमें अनेक दुपहिया ,चौपहिया वाहनों का इस्तेमाल हो। इसमें एक धड़ा पुतला जलाने पर जोर दे रहा था। उसका कहना था कि भ्रष्टाचार का एक रावण सरीखा पुतला बनाया जाए और उसे पूरे शहर में घुमाया जाए। खासतौर पर तब जब यातायात ज्यादा हो, जिससे अधिक संख्या में लोग उससे जुड़ सकें। अंत में पूरे धूम-धड़ाके के साथ पुतला दहन किया जाए........

great_brother
29-06-2011, 10:27 AM
आखिर कैसे लड़ें कमबख्त भ्रष्टाचार से

मित्रों,
प्रस्ताव पर बात चल ही रही थी कि किसी ने अनशन की बात पटक दी। चर्चा के दौरान भूख हड़ताल पर सभी सहमत थे पर आमरण अनशन के लिए कोई भी सामने नहीं आ रहा था। पिछली बार महंगाई के खिलाफ आमरण अनशन पर बैठे दद्दाजी ने साफ मना कर दिया। वह खासे नाराज भी लग रहे थे। उनका कहना था कि पिछली बार सभी के कहने पर मैं राजी हो गया था, पर समय बीतने के साथ मेरी हालत पतली होती चली गई ..........

great_brother
29-06-2011, 10:27 AM
आखिर कैसे लड़ें कमबख्त भ्रष्टाचार से

मित्रों,
सरकार ने भी अपनी समिति की मांगों पर घास तक न डाली। एक-दो दिन बाद तुम सब लोग भी पतली गली से खिसक लिए। मैं बैठ तो गया पर कोई उठाने को तैयार न था। उनकी दुख भरी बातें सुनकर माहौल में असुरक्षा और भय व्याप्त हो गया। आमरण अनशन का सुझाव रद्दी की टोकरी में जाते ही कुछ उत्साही कार्यकर्ताओं ने दौड़ का प्रस्ताव रखा। उस पर आपत्ति जताते हुए कुछ लोगों ने कहा कि भैया, उम्र और शरीर ऐसा है कि चार कदम पैदल चलने में ही हांफने लग जाते है। दौड़ लगाना बड़ा कठिन काम है। ढंग से दौड़ नहीं पाए तो किरकिरी होगी सो अलग.........

great_brother
29-06-2011, 10:28 AM
आखिर कैसे लड़ें कमबख्त भ्रष्टाचार से

मित्रों,
इससे तो अच्छा होगा कि कुछ प्रैक्टिकल सोल्यूशन ढूंढो। ऐसा करते है कि दौड़ के बजाय पदयात्रा कर लेते हैं। कोई ज्यादा फर्क भी नहीं है। गांधी जी ने भी तो की थी पदयात्रा, क्या कहते हैं उसे ! अरे वो नमक के लिए की थी न...! अच्छा सा नाम है याद नहीं आ रहा। अभी तो जुबान पर था। अरे हां दांडी यात्रा। इस पर किसी ने टोका - पर भैया। वो तो कई किलोमीटर लंबी थी। कर पाओगे इतनी लंबी यात्रा... बीच में ही तो टें नहीं बोल जाओगे। तो छोटी काहे नहीं कर देते यात्रा को! गांधी जी कौन सा लिख कर गए थे कि सौ किलोमीटर ही चलो। दो किलोमीटर कर देते है। दो भी नहीं चलेगा तो एक कर दें। और कम चाहिए। ठीक है आधा किलोमीटर कर देते है........

great_brother
29-06-2011, 10:29 AM
आखिर कैसे लड़ें कमबख्त भ्रष्टाचार से

मित्रों,
किसी ने कहा-पर भैया, पहले प्रशासन से परमिशन अवश्य ले लेना। नहीं तो कहीं पुलिस ने लाठी भांजी तो ....। लेकिन वो परमिशन दिलवाने वाला बाबू आवेदन पुटअप करने के लिए चढ़ावा मांगता है। सभी सहमत हो तो दे दें। सभी ने एक स्वर में कहा-दे दो भैया। अब भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा। इससे पुलिस के डंडे का डर तो नहीं रहेगा। और अंत में चढ़ावे के लिए चंदा एकत्र करने की प्रक्रिया शुरू हो गई.......

great_brother
29-06-2011, 10:31 AM
मित्रों बताना जरुर कि मेरी प्रस्तुति कैसी लगी ...............

ndhebar
29-06-2011, 10:58 AM
बहुत ही जबरदस्त प्रस्तुति है मित्र
मनोरंजक

bhoomi ji
29-06-2011, 08:53 PM
हमेशा की तरह बहुत अच्छी प्रस्तुति है......

ऐसे ही निरंतरता बनायें रखें
धन्यवाद

Bhuwan
30-06-2011, 12:17 PM
महान भाई, बहुत अच्छी प्रस्तुति है. ऐसे ही आगे भी निरंतर जारी रखो.

arvind
30-06-2011, 04:11 PM
Happy Birth Day Kasab...!!!!

You are two years old now staying in INDIA.You can continue to be our guest.INDIA Loves you Darling.."Atithi Devo Bhava".Your Staying Expenses are on us.Your Lawyer is free.You have more security than 99% of Indians & Foreigners..Promise,We will interrogate you as long as you live & breathe.Everybody copy and Paste on your wall so that India govt feels ashamed.I did it its ur turn now!!!!!

Bhuwan
09-07-2011, 09:38 AM
..................Everybody copy and Paste on your wall so that India govt feels ashamed.I did it its ur turn now!!!!!

इतनी शर्म अगर होती तो अब तक तो कबके डूबकर मर चुके होते ये लोग. :tomato::tomato:

great_brother
02-02-2012, 11:03 AM
प्लीज, आप आएं और हमें राजा बनाएं

मित्रों,
गठबंधन का जमाना है। वे दिन लद गए जब कोई पार्टी अपने दम पर सरकार बना लेती थी। कुछ ने तो अपनी सहयोगी पार्टियों के साथ फेरे ले लिए हैं या राखी बंधा ली है, जीवन भर के लिए। :elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:09 AM
मित्रों,
फिर भी कोई सरकार बनाने को लेकर निश्चिंत नहीं है। ऐसे में लोकसभा या विधानसभा चुनावों के बाद संसद और विधानसभाओं के आसपास के इलाके के खंभों या कुछ संवेदनशील स्थानों पर ऐसे इश्तहार खुलेआम चिपके दिख सकते हैं - 'आवश्यकता है बिकने वाले सांसदों-विधायकों की, जो हमें राजा बना सकें।:elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:11 AM
मित्रों,
बिना शर्त समर्थन देने वालों और निर्दलियों को प्राथमिकता।' नीचे दलालों के मोबाइल नंबर दिए जाते होंगे। ऐसे में तमाम अधिकृत-अनाधिकृत दलाल सक्रिय हो जाते होंगे। दलाल अमर है। किसी भी धंधे में दलालों की भूमिका अहम होती है। एक बार महाजन की मौत हो जाए, उसका दीवाला पिट जाए मगर दलाल कभी नहीं मरता।:elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:13 AM
मित्रों,
शहीद तो मरकर अमर होता है लेकिन दलाल जीते जी ही अमर हो जाते हैं। दरअसल हरेक बाजार में इतना माल है कि उसकी पहली जरूरत दलाल है। हर माल बिकाऊ है लेकिन हर किसी की पहुंच असली खरीदार तक नहीं होती। फिर खरीदार भी सामने आना नहीं चाहता, उसमें खतरा है।:elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:16 AM
मित्रों,
दलाल को तो, पकड़ा जाए तो बेगाना बता दो मगर खुद ही मंडी में खड़े हो और सैंपल हाथ में हो, तो क्या कहोगे कि ये हाथ मेरा नहीं है। मेरा इससे कोई संबंध नहीं। हालांकि ऐसा कहने पर भी बहुतों को कोई शर्म नहीं आती, फिर भी दलाल के मार्फत डील करने में सेफ्टी है। कल को विवाद हो जाए तो दलाल बीच में पड़कर, सुलझाने में मदद करेगा, आखिर उसने दलाली खाई है। ये दलाल लोग बड़े शातिर होते हैं, कब किसको कहां फोड़ लें, कोई ठिकाना नहीं। इसलिए छोटी पार्टियां हों या बड़ी, चुनाव परिणाम के बाद और सरकार बनने से पहले, अपने सब चुने हुए सांसदों, विधायकों को चाय पार्टी, मीटिंग या दावतों के नाम पर आलीशान होटलों में बुलाती हैं और सरकार बनने तक बंद रखती हैं।:elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:18 AM
मित्रों,
छोटी पार्टियों के अध्यक्ष को भरोसा नहीं होता कि उनके लोग कब किसके हाथ बिक जाएं। इसलिए अपनी पार्टी की तरफ से डील अध्यक्ष ही करता है। ऐसा करने से सांसदों का संख्या बल दिखाकर वो एकाध मंत्री पद झटक लेता है। उसने क्षेत्रीय पार्टी बनाई ही इसलिए है। वो जानता है कि राज्य में सरकार वो कभी नहीं बना पाएगा, सो मंत्री पद तो लपक ही ले। उधर उसकी पार्टी के सांसद उसे कोसते होंगे कि स्वतंत्र होते तो मुंहमांगे दाम लेते।:elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:20 AM
मित्रों,
जगह - जगह लगे इश्तहारों को देखकर दूरदराज से एक फोन आता है - ' अम् राजा। ' दलाल कहता है - ' हमें राजा की नहीं , राजा बनाने वालों की जरूरत है। ' जवाब मिलता है - ' अम् राजा , दयालु , करुणा। अम् सपोर्ट देगा। राजा बनाएगा। ' और फिर दलाल उसे डील के लिए दिल्ली बुला लेता है। कैबिनेट में मंत्री पद पर डील फिक्स होती है और ' ग्रामसिंह राजा ', ' सिंह ' को राजा बनवा देता है। लेकिन गांव की गली का राज छोड़ कर दिल्ली के दरबार में आकर ये खुद को राजा समझने लगता है और असली राजा पर ही सिंह की तरह दहाड़ने लगता है। सिंह बेचारा चुपचाप रह जाता है। कर भी क्या सकता था , अपने दम पर राजा बना होता तो उसकी परछाईं से भी डरते ये ग्रामंसिंग ।:elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:22 AM
मित्रों,
मगर ऐसा है नहीं , तो फिर सिंह अपने आसपास मंडराने वाले सियारों को उसे समझाने भेजता है। वे कहते हैं , ' ए राजा , तू अपनी गली में शेर होगा , यहां मत ग़ुर्रा। तू हमारे पास दुम हिलाता आया था , हमने तुझे टुकड़ा डाला , अब तू हम पर ही ग़ुर्राता है , टुकड़ा धर्म भुलाता है। ' तो राजा का जवाब मिलता है - ' टुकड़ा तुमारा नईं , अमारा है। तुमारे सिंह की तीन लैग की कुर्सी का फोर्थ लैग अमारे टुकड़ों से बना है। इफ आई मूव , यू विल फ़ॉल। ' बात में दम है। अब तमाशा देखने वाले सोचते हैं कि असली राजा कौन है , सिंह या ग्रामसिंह। इस घटनाक्रम से सीखने की बात यह है कि राजा बनने के लिए सियारों जैसे दलाल नहीं , सिंह सा दम चाहिए यानी इच्छाशक्ति ।:elephant::elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:24 AM
:think:मित्रों प्रस्तुति कैसी लगी बताना जरुर.......:elephant::elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:28 AM
:bye:इन्डियन पतंगबाजी के कुछ जरूरी नियम

मित्रों,
इन दिनों पतंगों का मौसम चल रहा है। देश के आसमान में चारों ओर पतंगें ही पतंगें दिखाई दे रही हैं। सारा आकाश पतंगों से अटा पड़ा है। सभी का रंग अलग - अलग है , वे भिन्न - भिन्न धागों से बंधी हुई है |:elephant::elephant:

great_brother
02-02-2012, 11:30 AM
क्रमश::::::