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View Full Version : मनोहर कविताओ का संग्रह


great_brother
09-05-2011, 07:20 AM
प्रस्तुत है एक और नया सूत्र मनोहर कविताओ का संग्रह by Great_Brother.....



मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ...............

great_brother
09-05-2011, 07:32 AM
' मित्रो सबसे पहली कविता का शीर्षक है "मां एक रिश्ता नहीं एक एहसास है"


मां ' एक रिश्ता नहीं एक एहसास है '
भगवान मान लो या खुदा,
खुद वह मां के रूप में हमारे आस-पास है
इस एक शब्द में पूरे जीवन का सार समाया है
जब भी रहा है दिल बेचैन मेरा,
सुकून इसके आंचल तले ही पाया है।

पलकें भीग जाती हैं पल में,
' मां ' को जब भी याद किया है तन्हाई में,
जब भी पाया है खुद को मुश्किलों से घिरा,
साथ दिखी है वह मुझे मेरी परछाई में।

न जाने कौन सी मिट्टी से
' मां ' को बनाया है ऊपर वाले ने,
कि वह कभी थकती नहीं, कभी रुकती नहीं,
उसे अपने बच्चों से कभी शिकायत नहीं होती...
आंसुओं का सैलाब है भीतर,
पर आंखों से वह कभी नहीं रोती।
उसे टुकड़ा-टुकड़ा होकर भी,
फिर से जुड़ना आता है,
अपने लिए कुछ किसी से नहीं उससे मांगा जाता है।
कितना भी लिखो इसके लिए कम है,
सच है ये कि ' मां ' तू है, तो हम हैं।

बड़े खुशनसीब हैं वो जिन के सिर पर मां का साया है
और बड़े बदनसीब हैं वो जिन्होंने अपनी मां को ठुकराया है
मुझे दौलत नहीं चाहिए, शोहरत नहीं चाहिए,
नहीं चाहिए मुझे वरदान कोई
मुझे चाहिए ' मां ' के चेहरे पे सुकून के दो पल
और उसके होठों पे मुस्कान।
करना चाहूंगा मैं कुछ ऐसा कि
मेरे नाम से मिले मेरी मां को पहचान।

great_brother
09-05-2011, 09:57 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई !



जब दिन रात खेलब ना करब पढ़ाई,
बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई !
दोस्तों के संगें घुमिके समय गुजारेल !
ऊंच नीच कछू ना मन में विचारेल !
अबो से सुधरब की खाली करब घुमाई,
बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई !
मन के तहरा सपना साकार कईसे होई ,
जब तू बीतयब दिन रात सोई सोई !
माई बाप के धोखा दे के करब बेहयाई ,
बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई !
आज कल बावे कमपतीशन के ज़माना ,
लिखब ना पढ़ब त तोहरा परी लजाना ,
बात अनसुनी कके करतार मुरखतई ,
बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई!
केतनों समझाव मानत नईख केहुके ,
ऐसे त बीतयब तू ज़िंदगी कुहुकिके ,
वर्मा तबे तोहारा हमार बात याद आई !
बताव बबुवा कईसे परीक्षा दीयाई !

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great_brother
09-05-2011, 10:22 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

न जाने किस बात से ये दिल डरता है.....


कुछ करने का मन करता है,
पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है
कोई कर न सके जिस सवाल को
क्यूं फिर भी तू,
उसके जवाब का इंतज़ार करता है।

कुछ करने का मन करता है,
पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है
दूसरों पर ऐतबार करता है
और खुद अपनी दुआओं से डरता है।

कुछ करने का मन करता है,
पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है
यह रास्ता तो तूने ही चुना था
फिर क्यूं अब
सफ़र ख़त्म होने का इंतज़ार करता है।

कुछ करने का मन करता है,
पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है,
कल का तो तू इंतज़ार करता है
पर, रात न गुज़रने की भी बात करता है।

कुछ करने का मन करता है,
पर न जाने किस बात से ये दिल डरता है
बिना बोले जो समझे तेरे दिल की बात
क्यूं उन सुनने वालों का अब तक इंतज़ार करता है।

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great_brother
09-05-2011, 10:24 AM
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गुमां नहीं होता...


दिल हमारा ही नहीं, हर किसी का नाज़ुक होता है
किसी को गुमां होता है, किसी को गुमां नही होता
समझाने से पहले किसी को समझना बहुत जरूरी है
सहर से पहले कभी कोहरे को गुमां नहीं होता
रात भर फूल ओस की इक बूंद के लिए ठिठुरता रहा
किस पंखुडी पर गिरेगी ओस, उसको गुमां नहीं होता
कौन पूछता है आईने से चाहत उसकी
किस सूरत को वो भला लगे, उनको गुमां नहीं होता।


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great_brother
09-05-2011, 10:28 AM
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नदी डूब गई .......


आधुनिक भारतीय समाज में
सुदूर विदेशों की तमाम सोशल नेटवर्किंग साइटों को
बड़े ही जोशो खरोशों से
अपनाने का उपक्रम
बड़ी ही तेजी से चल रहा है।
पर अपने ही नीचे की
जमीन खिसक रही है।
इसका पता हमें क्या लग रहा है?
वर्चुअल वर्ल्ड के स्वागत को
तत्पर दिखते हैं
रियल वर्ल्ड से कोसों दूर हो रहे हैं
अपनों की ही नेटवर्किंग से
अंजान और क्रमशः दूर हो गए हैं।
एकाकी जीवन में इस कदर खो गए हैं

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great_brother
09-05-2011, 10:29 AM
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नदी डूब गई .......


टूटते घर और छीजते परिवार
इस व्यथा को चीख कर कह रहे हैं
फेसबुक पर तो सिस्टर वीक
उद्यमता से सेलिब्रेट कर रहे हैं।
पर, अपनी सगी बहनों की
खबर से अंजान हो रहे हैं
अपने जीवन के न जाने
कितने मूल्यवान बसंत को जिसने
अजीज भाई के लिए बड़े ही
तत्परता से बलिदान कर डाला
भाई को युवा करने के लिए
अपने यौवन का गला घोंट डाला
उस भाई ने इस मर्यादा को ही
बड़े ही सिद्दत से धो डाला।
रहे होंगे उन बहनों के
भी कितने अरमान
कभी कम नहीं थे सोसाइटी में।
उनके भी मान सम्मान
जब एक अज्ञात अनिष्ट की
आशंका ने उन्हें स्वयं घर में
कैद के लिए विवश कर दिया था।

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great_brother
09-05-2011, 10:30 AM
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नदी डूब गई .......


क्या उस दशा में उस भाई का
कोई फर्ज नहीं था
उस भाई ने अपने को
अपने सपनों की दुनिया में ही सिमटा लिया
जिनकी बिनाह पर वह सपने देख रहा था
उन्हीं को ठुकरा दिया
न जाने कितनी फ़िल्मी और
गैर फिल्मी गीत भाई बहन के
रिश्ते पर लिखी गयी होगी
जिन्हें पढ़ लिख कर कितनी बार
हमारी आंखे नम हो गयी होगी
पर नम क्यों नहीं होती इन
रियल भाइयों की आंखे
क्या रह जाएंगी ये सिर्फ
किताब की बातें
जिन्हें जब चाहा पढ़ा और
आंसूं गिरा आँखों को धो लिया
दिल के बोझ को इच्छानुसार
जब चाह कम कर लिया
फिर उन भावनाओं को
पन्नों में दफ़न कर दिया

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great_brother
09-05-2011, 10:31 AM
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नदी डूब गई .......


दूर करना होगा हमें
इन विसंगतियों को
गहराई से समझना होगा
इन रक्त के रिश्तों को
जीवन में एक दिन ऐसा
हर किसी के जीवन में आता है
जीवन के सबसे करीबी और कीमती
रिश्तों के रूप में
माँ बापू का साया
सर से उठ जाता है
ऐसे में मात्र एक बहन ही
रक्त के रिश्ते के रूप में शेष रहती है
बाकी रिश्ते तो बस
रिश्तों के अवशेष सी दिखती है
बहन अगर बड़ी है तो
माँ का प्यार देती है

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great_brother
09-05-2011, 10:33 AM
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नदी डूब गई .......


छोटी बहन का क्या कहना
वह तो बेटियों सी होती है
आंगन का श्रृंगार होती है
जो कितनी भी आपदा से घिरी हो
पर पापा पर अपने जान को
बेहिचक न्यौछावर करती है
आइए सुदृढ़ करे इन
रिश्तों के जीव को
सजीव करे पुनः निर्जीव हो चुके
रिश्तों की नीव कोष।

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great_brother
09-05-2011, 10:35 AM
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तुम ही तुम हो...

तुम हो धूप , तुम छांव की तरह
इस रेगिस्तान जिंदगी में, गांव की तरह।
तुम्हें भूले से भी मैं, भुला नहीं पाता
तुम हो मेरे जिस्म पर, लगे पुराने घाव की तरह।

जिंदगी में तूफानों की, अब आदत-सी हो गई
जो दामन है तेरा महफूज, नाव की तरह।
ख्वाबों-ख्यालों में, रात और उजालों में
तुम ही तुम हो सारा आलम, कोई नहीं है मुझमें।

कैसे कहूं, तुम क्या हो?
जीने की वजह, मरने का बहाना हो।
तुम हो राज दिल का
तुम ही जवाब की तरह।


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great_brother
09-05-2011, 10:54 AM
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सभ्यता के गलियारों में.........


आधुनिकता की ज्वाला में, दम तोड़ दिया संस्कारों ने
लज्जा का आवरण ओढ़ लिया, अंधकार में दीवारों ने।
चहूं ओर एक क्रन्दन है, और है विकार विचारों में
दानव हंसी अब गूंजती, निशा के उजियारों में।

नहीं मान कोई आयु का, अब है उद्दंडता विचारों में
दुदुम्भी शालीनता की बज रही, और छेद हुए संस्कारों में।
गजब हुआ जो नारी का, पल्लू सिर से सरक गया
बचा सकी न लाज अपनी, विकृत दृष्टी के बाजारों में।

बना दिया है इक विज्ञापन, नारी को अखबारों में
पल-पल होता चीर-हरण अब, सभ्यता के गलियारों में।

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great_brother
09-05-2011, 10:55 AM
मेरा विश्वास है कि ये सूत्र भी आपका पूरा मनोरंजन करते हुए उपयोगी सिद्ध होगा .....

इक्कीसवीं सदी के फूल की चाह...........


चाह नहीं किसी मंत्री की अचकन में टांका जाऊं,
चाह नहीं सुंदर बाला के जूड़े में मुस्काऊँ,

चाह नहीं किसी नेता के शव पर डाला जाऊं,
चाह नहीं नौकरशाहों के आँगन की शोभा बढ़ाऊं,

चाह नहीं ऐश्वर्य राय की मैं हँसी बन जाऊं,
चाह नही अभिनेत्रियों को अपने गले लगाऊं!

चाह नहीं गुलशन में मैं अपनी सुगंध फैलाऊ,
चाह नहीं सेठों के घर का गुलदस्ता बन जाऊं !

चाह नहीं मतवाले भंवरे को रंगों से ललचाऊं !
या साचीन के शतकों पर मैं अपनी खुशी लुटाऊं,

चाह मेरी सरदार पटेल की समाधि में डाला जाऊं,
या सुभाषचंद्र की कुर्बानी पर मैं अपनी पंखुड़ी गिराऊं,

राजगुरु शुकदेव भगतसिंह या चंद्रशेखर कहलाऊं,
इनकी राख की ढेर में अपनी खूशबू फैलाऊँ !


मुझे जोड़ कविता में हे कवि करगिल में देना फेंक,
मातृ भूमि की रक्षा करते कटे पड़े हैं शीश अनेक !

मित्रों आपका स्वागत है इस सूत्र को जारी रखने के लिए अपने विचार को देते रहे ...............

great_brother
16-06-2011, 10:18 PM
लक्ष्य प्रबल गंभीर संग, अनुभव हुआ विराट

लक्ष्य प्रबल गंभीर संग , अनुभव हुआ विराट
क्रिकेट वाली क्रीज का, हिंद बना सम्राट।

जोश, जुनूं और जतन का अनुपम हुआ मिलाप
पूरा भारत का हुआ, विश्व विजय का जाप।

सांस-सांस गाने लगी, मधुरम-मधुरम गीत
याद रहेगी उम्र भर, टर्निंग पिच की जीत।

बल्ला बोला गेंद से, छाया है मधुमास
जर्रा-जर्रा चमकता, रच डाला इतिहास।

क्या भज्जी युवराज क्या, क्या वीरू श्रीशांत
क्रिकेटिया मौसम हुआ, अद्भुत हुआ बसंत।

खेल खिलाड़ी का नहीं, क्रिकेट अजब खुमार
नशा मजा दोनों मिले, ले ले मेरे यार।

नहीं चूकते हम कभी, ले लेते हैं रिस्क
चूम चेतना के अधर, मारा अंतिम सिक्स।

रन गंगा युवराज है, वीरू है रनवीर
क्रिकेट अपना धर्म है भारत की तस्वीर।

जनता, शासन, मीडिया, सबकी यही पुकार
क्रिकेट हंस कर जोड़ता दिल से दिल का तार।

बांहों में संघर्ष का थाम लिया तूफान
हवा जगत की कर रही मार लिया मैदान।

great_brother
16-06-2011, 10:19 PM
काम न आया गुलगुला, यूसुफ हुए उदास

काम न आया गुलगुला, यूसुफ हुए उदास
मन्नू दे मुंडे हुए, हर हालत में पास
हर हालत में पास, लिखी नायाब कहानी
देख देश की हार, हुए मायूस गिलानी
दिव्यदृष्टि धोनी ने ऐसा खेल दिखाया
यूसुफ हुए उदास, गुलगुला काम न आया।

great_brother
16-06-2011, 10:20 PM
देख पराजय राबड़ी पीटें खूब कपार

मिला न सोना सोनपुर राघोपुर में रार
देख पराजय राबड़ी पीटें खूब कपार
पीटें खूब कपार दिलाएं धीरज लालू
अंडा जीमो प्रिये छोड़कर सूखे आलू
दिव्यदृष्टि मट्ठा पीयेंगे भर-भर दोना
राघोपुर में रार सोनपुर मिला न सोना

great_brother
16-06-2011, 10:22 PM
सत्ताधारी सांड़ से सहम सलोनी गाय

सत्ताधारी सांड़ से सहम सलोनी गाय
फिरे बचाती आबरू सूझे नहीं उपाय
सूझे नहीं उपाय, निरन्तर करे तकाजा
सुनता नहीं पुकार मगर मतिमंदी राजा
दिव्यदृष्टि इत-उत दौड़े बरबस बेचारी
सहम सलोनी गाय सांड़ से सत्ताधारी।

great_brother
16-06-2011, 10:23 PM
काहे का आदर्श अब काहे का ईमान

कदाचार पर दीखती कांग्रेस खामोश
महंगाई की बाढ़ पर उसे न आए रोष
उसे न आये रोष मजा मारें व्यभिचारी
दूध पी रहे स्वान क्षुब्ध जनता बेचारी
दिव्यदृष्टि है रोक न कोई लूटमार पर
कांग्रेस खामोश दीखती कदाचार पर
चैनलवाले खींचते बेमतलब ही कान
काहे का आदर्श अब काहे का ईमान
काहे का ईमान, किसे कहते हैं निष्ठा
नैतिकता है व्यर्थ चाहिए उन्हें प्रतिष्ठा
दिव्यदृष्टि इसलिए करें घपले-घोटाले
बेमतलब ही कान खींचते चैनलवाले..........

great_brother
29-06-2011, 12:03 PM
सत्ताधारी सांड़ से सहम सलोनी गाय

सत्ताधारी सांड़ से सहम सलोनी गाय
फिरे बचाती आबरू सूझे नहीं उपाय
सूझे नहीं उपाय, निरन्तर करे तकाजा
सुनता नहीं पुकार मगर मतिमंदी राजा
दिव्यदृष्टि इत-उत दौड़े बरबस बेचारी
सहम सलोनी गाय सांड़ से सत्ताधारी......

malethia
07-09-2011, 06:27 PM
अच्छा संग्रह है........
निरन्तरता बनाये रखें...........