View Full Version : अहसास
माँ में समर्पण है
माँ परिवार का दर्पण है
माँ हैं अनुभूति है
माँ संस्कारों कि विभूति है
माँ है तो श्रद्धा विशवास है
मै बस सुख का अहसास है
माँ जग्दात्री दुर्गा कल्याणी है
माँ करती जो उसने ठानी है
माँ प्रेम त्याग कि मूर्ति है
माँ हर क्षति कि पूर्ति है
माँ सिखाती स्वाभिमान से रहना
माँ जानती हर दुःख सुख सहना
माँ बचपन कि एक याद है
माँ प्रार्थना फरियाद है
ममता है माँ मै समता है
सब सुन लेने कि क्षमता है
माँ एक सुनहरी धूप है
माँ से ही मेरा स्वरूप है
माँ से मेरी पहचान है
माँ से ही कबीर ,रसखान है
माँ है तो काशी काबा क्या
माँ खुद गंगा का घाट है
माँ से ही चिंतन मनन है मेरा
माँ तो सपनो का हाट है
क्या कहूँ क्या है मेरी माँ
माँ है तो मेरी सांस है
तुझे पाक सिपारा कहूँ, या कहूँ मैं वज़ू का पानी.
तेरा मकाम सब से आला, है आला तेरी कहानी
कभी माँ बन के तूने,मुझे आँचल मे है छुपाया
कभी रो पड़ी थी तुम भी,किया मैने जब नादानी
मेरे इफलास के दिन मे,तूने मेरा हौसलो को सिंचा
तू बहन बन के देती रही, नई रोशनियो की रवानी
मैं जब भी हुआ तन्हा सा, तूने मुझे गले लगाकर
माशूकबन के मेरी, किया तूने ज़िंदगी को रूमानी
बिखेरी आँगन मे खुशिया और बुजुरगी का सहारा
आई बन के मेरी बेटी, जैसे खुदा की हो मेहरबानी
ये औरत तू मेरे लिए क्या है मैं कैसे बयां करूँ
तू उन आयतो सी हैं,जो खुदा से जोड़े हैं रिश्ता रूहानी
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न जाने तेरी याद क्यों फिर से आने लगी है,
दिल को बेवक्त बेवजह फिर से सताने लगी है,
खुश हो जाता है दिल मेरा अब ये सोच कर,
की तू मुझे और मेरी यादो को भुलाने लगी है,
शायद ये यादे मेरी तुजे बुहत सताने लगी है,
इसी लिए तू मेरा नाम अपने दिल से मिटाने लगी है,
अपने आपको हर-पल मुझसे छुपाने लगी है,
आहिस्ता-आहिस्ता मुझे गैर बनाने लगी है,
तुजसे बिचाद ने का गम नहीं है अब मुझे,
तन्हाई मुझे अब इस कदर बहाने लगी है. .
http://img40.imageshack.us/img40/8028/1412232a.jpg
तन्हाई भी अब दामन छुडाने लगी है
फिर से तुजे मेरे पास बुलाने लगी है
मेरे दिल पर इस कदर छाने लगी है
तस्वीर तेरी चारो और नज़र आने लगी है
मुझे उन लम्हों की याद दिलाने लगी है
दूरिय चुभन बनकर सताने लगी है
ख्वाबो की दुनिया जगह बनाने लगी है
हकीक़त से अब नजरे चुराने लगी है
ज़िन्दगी तू मेरी बनी है जबसे
ज़िन्दगी की खूबसूरती नज़र आने लगी है….
स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़ेखड़े बहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पातपात झर गये कि शाख़शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क बन गए,
छंद हो दफन गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँधुआँ पहन गये,
और हम झुकेझुके,
मोड़ पर रुकेरुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
क्या शबाब था कि फूलफूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठा
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कलीकली कि घुट गयी गलीगली,
और हम लुटेलुटे,
वक्त से पिटेपिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखरबिखर,
और हम डरेडरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे!
माँग भर चली कि एक, जब नई नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरनचरन,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयननयन,
पर तभी ज़हर भरी,
गाज एक वह गिरी,
पुँछ गया सिंदूर तारतार हुई चूनरी,
और हम अजानसे,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवाँ गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
पर काट दिए जिनके तुमने , छलनी कर डाली है छाती ,
सूरज को हसरत से तकते , फुटपाथों पर वे संपाती |
आवो इस नंगे मौसम कि , नंगे कि नब्ज टटोलेंगे ,
बारिश को झेलेंगे तन पर , क्यों ओढ़ रहे हो बरसाती |
मेरे कदमो को आवारा , होना हि था सों हो बैठे ,
अब समझाऊ कैसे तुमको , हर राह नहीं घर जाती |
मै पूछ रहा हू तुझसे ही , ऐ मेरे दौर बता मुझको ,
कितनी गर्मी से पिघलेगी , तेरी संगीने इस्पाती |
ये लोग बड़े है , होठो पर इनके है शब्द बड़े , लेकिन ,
कुछ अर्थ नहीं इनमे चाहे , ढूंढ़ो लेकर दिया -बाती |
आज रात मुझसे बोले
आसमा के सारे सितारे
की “कहाँ है वो?
जिसके लिए हर रात
निकलते हैं हम
वो हमें रात्रि के अन्धकार मे भी देख ले,
यही सोंचकर तो चमकते हैं हम”।
मैंने कहा “वो आज नहीं आया
वादा तो था पर
शायद इस रात
हमारी आखिरी मुलाक़ात होती
क्यूंकि तुम सब तो उसे देख ही लोगे
किसी और के साथ
पर मैं नहीं देख पाऊँगा
उसके नवीन जीवन की
वह नवीन रात…
मरने के बाद शायद
मैं भी बन जाऊं सितारा
पर चमकूंगा सबसे कम…
की जान जाए मेरा सनम…
की आज भी मेरी आँखें हैं नम”।
Bholu
11-05-2011, 01:49 PM
अहसास प्यार का एक अनोखा लव्ज
अहसास प्यार का एक अनोखा लव्ज
जी बिलकुल .....
Bholu
11-05-2011, 11:05 PM
जी बिलकुल .....
लगता है जनाब आपको भी प्यार का जुखाम हुआ है
लगता है जनाब आपको भी प्यार का जुखाम हुआ है
हा जी क्यों नहीं
Bholu
12-05-2011, 11:29 AM
हा जी क्यों नहीं
शादी के बाद ऐसी हरकते
घर पर भाभी माँ से अब सुताई होगी आपकी
हहहहह
शादी के बाद ऐसी हरकते
घर पर भाभी माँ से अब सुताई होगी आपकी
हहहहह
अगर वोह भाभी ही हो तो
Bholu
12-05-2011, 01:25 PM
अगर वोह भाभी ही हो तो
अब बात बदलो आप
Bholu
12-05-2011, 01:26 PM
अगर वोह भाभी ही हो तो
अब बात बदलो आप
आपने पहले और कुछ कहा था
अर्द्ध रात्रि में सहसा उठकर,
पलक संपुटों में मदिरा भर,
तुमने क्यों मेरे चरणों में अपना तन-मन वार दिया था?
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
‘यह अधिकार कहाँ से लाया!’
और न कुछ मैं कहने पाया -
मेरे अधरों पर निज अधरों का तुमने रख भार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
वह क्षण अमर हुआ जीवन में,
आज राग जो उठता मन में -
यह प्रतिध्वनि उसकी जो उर में तुमने भर उद्गार दिया था!
क्षण भर को क्यों प्यार किया था?
Bholu
15-05-2011, 05:26 PM
मै इक फर्ज हूँ
या इक अहसास हूँ
मै इक जिस्म हूँ
या रूह की प्यास हूँ
मै इक फर्ज हूँ
या इक अहसास हूँ
मै इक जिस्म हूँ
या रूह की प्यास हूँ
बहुत बदिया .................
Bholu
20-05-2011, 11:53 AM
बहुत बदिया .................
बदिया नही बढिया
फिर भी शुक्रिया
एक प्यारी सी प्रेम कहानि.
आज कहु मे एक छोटी कहानि .
बात है कुछ सालो पूरानी.
था एक लड़का भोला भाला.
थि एक लडकी छेल छबीली.
शरू हुइ थि जुब् येः कहानी.
दोनो ने दी थी खुद को ज़ुबनि
चाहे मुषिक्ले आये दिन रात
कभी न छोड़ेंगे एक दुजे का साथ
मगर इस कहानि ने लिया एक अनजन मोड्
अचानक व्हो लड़का चल बसा सब छोड़.
उसकि मौत पे कितने हि लोग रोये.
अपने कलेजे के टुकड़े को खोये.
मगर एक हादसा हुआ यह अजीब.
जब लड़के की रूह पोह्ची जन्नत की करीब.
उसने अपने कदमो को अन्दर जाने से रोका.
खेल यह था कुछ अजब और अनोखा.
कहा उस की रूह ने की करुगा में प्रवेश.
मगर उससे पहले मुझे देना है एक सन्देश.
ओह मेरी प्यारी चाहे दिन हो या रात.
हमने कही थे एक दूजे को यह बात.
"एक वादा था तेरे हर वादे के पीछे...
तू मिलेगी मुझे हर दरवाजे के पीछे...
पर तू मुझे रुसवा करगयी ....
एक तू ही न थी मेरे जनाज़े के पीछे."
तभी अचानक आयी पहचानी एक आवाज़.
कोई नहीं समजा इस गूँज का यह राज़.
किया था जो लड़के ने उससे यह सवाल.
मिला उसे एक जवाब कुछ इस हाल.
"एक वादा था मेरा हर वादे के पीछे...
मै मिलूंगी तुजे हर दरवाजे के पीछे...
पर तुने ही मुड़के ही न देखा...
एक और जनाज़ा था तेरे जनाज़े के पीछे."
दिया था जिसने उस लड़के के सवाल का जवाब.
व्हो थी उस लड़की की मोहब्बत बे-हिसाब.
चली आये काटे व्हो जीवन की डोर.
जब उसका आशिक चला था उसे छोड़.
यही तो नहीं पूरी होती मोहब्बत की ये बात.
यह अंत नहीं है हुई है एक शरूवात.
सुच्चे प्यार को कोई सीमा, पहरे, दीवार और भगवान् भी नहीं रोकता
अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूं तो चलूं
अपने ग़मख़ाने में एक धूम मचा लूं तो चलूं
और एक जाम-ए-मए तल्ख़ चढ़ा लूं तो चलूं
अभी चलता हूं ज़रा ख़ुद को संभालूं तो चलूं
जाने कब पी थी अभी तक है मए-ग़म का ख़ुमार
धुंधला धुंधला सा नज़र आता है जहाने बेदार
आंधियां चल्ती हैं दुनिया हुई जाती है ग़ुबार
आंख तो मल लूं, ज़रा होश में आ लूं तो चलूं
वो मेरा सहर वो एजाज़ कहां है लाना
मेरी खोई हुई आवाज़ कहां है लाना
मेरा टूटा हुआ साज़ कहां है लाना
एक ज़रा गीत भी इस साज़ पे गा लूं तो चलूं
मैं थका हारा था इतने में जो आए बादल
किसी मतवाले ने चुपके से बढ़ा दी बोतल
उफ़ वह रंगीं पुर-असरार ख़यालों के महल
ऐसे दो चार महल और बना लूं तो चलूं
मेरी आंखों में अभी तक है मोहब्बत का ग़ुरूर
मेरे होंटों को अभी तक है सदाक़त का ग़ुरूर
मेरे माथे पे अभी तक है शराफ़त का ग़ुरूर
ऐसे वहमों से ख़ुद को निकालूं तो चलूं
Kissi khush nigah si aankh ney
Yeh kamaal mujh pey karam kia
Meri loh e jaan pey raqam kia
Woh jo ek chand sa harf tha,
woh jo ek shaam sa naam tha
Woh jo ek phool si baat phirti thi dar ba dar
Ussey gulistaan ka pata dia
Mera dil key sheher e malaal tha,
Ussey roshni mey basaa diya
Meri aankh aur merey khuwaab ko
Kissi ek pal mey behem kia
Merey aainoun pey jo gard thi,
Mah o saal ki, woh utar gai
Woh jo dhund thi merey chaar soo
Woh bikhar gai
Sabhi roop aks jamaal key
Sabhi khuwaab shaam wisaal key
Jo ghubaar e wakt mey sar ba sar they uthey huey
Woh chamak uthey
Woh jo phool raah ki dhool thi
Woh mehek uthey
Liye saath rang bahaar key
Chala mey jo sang bahaar key
Kissi dast sha'abada saaz ney
Merey naam par merey waastey
Meri bey ghari ko panah dia
Meri justaju ko nishaan dia
Jo yaqeen sey bhi haseen hey mujhey
Ek aisa tu ney gumaan dia
Woh jo reza reza wajood tha
Usey ek nazar mey behem kia
Yeh kamaal mujh pey karam kia
Ho gayi hai peer parvat si pighalni chaahiye
Is Himalay se koi Ganga nikalni chaahiye
Aaj ye deewaar pardo ki tarah hilne lagi
Shart lekin thi ke ye buniyaad hilni chaahiye
Har sadak par har gali mein har nagar har gaanv mein
Haath lahraate huye har laash chalni chaahiye
Sirf hungaama khada karna mera maksad nahi
Saari koshish hai ke ye soorat badalni chaahiye
Mere seene mein nahi to tere seene mein sahi
Ho kahin bhi aag lekin aag jalni chaahiye
jai_bhardwaj
09-06-2011, 11:16 PM
तुम्हे हमसे मुहब्बत है, खुदा की यह सौगात है
ना मेरी इतनी जुर्रत है, और ना ही औकात है
क्या तुम जानते हो
पुरुष से भिन्न
एक स्त्री का एकांत
घर-प्रेम और जाति से अलग
एक स्त्री को उसकी अपनी ज़मीन
के बारे में बता सकते हो तुम ।
बता सकते हो
सदियों से अपना घर तलाशती
एक बेचैन स्त्री को
उसके घर का पता ।
क्या तुम जानते हो
अपनी कल्पना में
किस तरह एक ही समय में
स्वंय को स्थापित और निर्वासित
करती है एक स्त्री ।
सपनों में भागती
एक स्त्री का पीछा करते
कभी देखा है तुमने उसे
रिश्तो के कुरुक्षेत्र में
अपने...आपसे लड़ते ।
तन के भूगोल से परे
एक स्त्री के
मन की गाँठे खोलकर
कभी पढ़ा है तुमने
उसके भीतर का खौलता इतिहास
पढ़ा है कभी
उसकी चुप्पी की दहलीज़ पर बैठ
शब्दो की प्रतीक्षा में उसके चेहरे को ।
उसके अंदर वंशबीज बोते
क्या तुमने कभी महसूसा है
उसकी फैलती जड़ो को अपने भीतर ।
क्या तुम जानते हो
एक स्त्री के समस्त रिश्ते का व्याकरण
बता सकते हो तुम
एक स्त्री को स्त्री-दृष्टि से देखते
उसके स्त्रीत्व की परिभाषा
अगर नहीं
तो फिर जानते क्या हो तुम
रसोई और बिस्तर के गणित से परे
एक स्त्री के बारे में....।
प्यार ने पूछा ज़िन्दगी क्या है?
हमने कहा तेरे बिन कुछ नहीं.
उसने फिर पूछा दर्द क्या है?
हमने कहा जब तू संग नहीं.
प्यार ने पूछा मोहब्बत कहा है?
हमने कहा मेरे दिल में कही.
उसने फिर पूछा खुदा कहा है?
हमने ने कहा तुझमे कही.
प्यार ने पूछा हमसे इश्क क्यों है?
हमने कहा उसको भी पता नहीं
उसने फिर पूछा इतनी बेचैनी क्यों है?
हमने कहा इसमें कसूर मेरा नहीं.
प्यार ने पूछा एतबार करोगे मेरा ?
हमने कहा तुमसे बढकर कोई नहीं.
उसने फिर पूछा साथ दोगे मेरा ?
हमने कहा क्यों नहीं क्यों नहीं!!…
अब तो इतनी भी नहीं मिलती मैखाने में,
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में।
जो बन जाते हैं आदत के ग़ुलाम,
चलते रहते हैं रोज़ उन्*हीं राहों पर,
बदलती नहीं जिनकी कभी रफ़्तार,
जो अपने कपड़ों के रंग बदलने का जोखिम नहीं उठाते,
और बातें नहीं करते अनजान लोगों से,
वे मरते हैं धीमी मौत।
उठा सके आदमी तो पहले नजर से अपनी नकाब उठाए,
जमाने भर की तजल्लियों से नकाब उल्टी हुई मिलेगी।
अरमान है तेरे साथ जिंदगी बिताने का ,
शिकवा है खुद के खामोश रह जाने का |
दीवानगी इस से बड़ी क्या होगी ,
आज भी इन्तजार है तेरे आने का ||
ndhebar
02-08-2012, 12:41 PM
अब तो इतनी भी नहीं मिलती मैखाने में,
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में।
aaj lagta hai dipu ji sharabi dekhkar aaye hain.
Zindagi ki talaash mein hum
maut ke kitne paas aa gaye
jab yeh socha to ghabra gaye
aa gaye hum kahan aa gaye
Zindagi ki talaash mein hum
maut ke kitne paas aa gaye
Hum the aise safar pe chale
Jiski koi bhi manzil nahi
hum ne saari umar jo kiya
uska koi bhi haasil nahi -2
ik khushi ki talaash main the
kitne gam humko tadpa gaye
jab yeh socha to ghabra gaye
aa gaye hum kahan aa gaye
Socho hum kitne mazboor the
jo na karna tha vo kar gaye
Peechhe mud ke jo dekha zara
apne halaat se darr gaye - 2
khudh ke baare main soche jo hum
apne aap se sharma gaye
jab yeh socha to ghabra gaye
aa gaye hum kahan aa gaye
Zindagi ki talaash mein hum
maut ke kitne paas aa gaye
kabhi guzzro meri gali se to tum mere aashiyaane ko dekh jaanaa,
zaraa sa waqt nikaalke usme rehne waale deewaane ko dekh jaanaa,
umeed ka diyaa jalaayaa tha tumne kabhi aake usko dekh jaanaa,
tum aake us diye ke niche bas rahe har andherre ko dekh jaanaa,
kitaab ke panne palat ke usme chhipe sukhe gulaab ko dekh jaanaa,
tum mil na sako mujhse agar to wahaan pade sharaab ko dekh jaanaa,
kaagaz ke tumhe tukde milenge, tum har us tukde ko dekh jaanaa,
tukdo ko agar jod sako to unme apni tasveer ko dekh jaanaa,
puraane kuch tumhe khat milenge, tum har us khat ko dekh jaanaa,
har khat me tumhaaraa naam milega, tum apne naam ko dekh jaanaa,
khush ho tum ye maaloom hai mujhe, tum mere haalat ko dekh jaanaa,
aa naa sako tum mere jeete jee to aake mere laash ko dekh jaanaa.
All Love Of Mine
With A Song And A Whine
You're Harsh And Divine
Like Truths And A Lie
But The Tale Ends Not Here
I Have Nothing To Fear
For My Love Is Hell Of Giving And Hold On
And The Bright Emptiness
In A Room Full Of It
Is A Cruel Mistress
Woah Oh!
I Feel This Unrest
That Nest All Hollowness
For I Have Nowhere To Go In The Cold
And I Feel So Lonely
There's A Better Place Than This
:Emptiness
And I'm So Lonely
There's A Better Place Than This
Emptiness, Yeaheaeah!
Tune Mere Jaana
Kabhi Nahi Jaana
Ishq Mera, Dard Mera, Haaye..!
Tune Mere Jaana
Kabhi Nahi Jaana
Ishq Mera, Dard Mera
Aashiq Tera
Bheed Me Khoya Rehta Hai, Jaane Jahaan
Poochho To Itna Kehta Hai
That I Feel So Lonely
There's A Better Place Than This
:Emptiness
And I'm So Lonely
There's A Better Place Than This
:Emptiness, Yeaheah!
http://www.youtube.com/watch?v=R__TRLKc1z8&feature=player_embedded
gaye jo rooth ke wo humse ek baar fir aanaa na huwa,
chaaha to bahut magar humse fir gungunaanaa na huwa,
likhte rahe hum har geet unki yaad me unke naam se,
par sach kahun to un geeton ko kabhi gaanaa na huwa,
karte rahe koshish mitaane ki har ek nishaani unki,
par dil me chhipe unki yaadon ko bhulaanaa na huwa,
jalaate rahe chiraag har shaam unki yaad mein magar,
hamaari andheri zindagi me roshni ka aanaa na huwa,
chhipaate rahe aansoo apne, dil hi dil rote rahe hum,
jo gaye wo duur humse to humaaraa muskuraanaa na huwa,
bahaane banaate rahe ki khush hain hum apni zindagi me,
par is tanha zindagi ko zindagi kehne ka bahaanaa na huwa,
ghum is baat ka hai ki unka kabhi hume apnaanaa na huwa,
aur hamaare is paagal dil ka kabhi unko bhulaanaa na huwa,
tadapte rahe hum har pal unki yaad me unse juda ho ke,
aur unka kabhi hamaare baahon me laut ke aanaa na huwa.
paya main ne paya tumhain
rab ne milaya tumhain
honton pe sajaya tumhain
naghme sa gaya tumhain
paya main ne paya tumhain
sab se chupaya tumhain
sapna banaya tumhain
neendon mein bulaya tumhain
tum jo aaey zindagi mein baat ban gai
ishq mazhab, ishq meri zaat ban gai
paya main ne paya tumhain
rab ne milaya tumhain
honton pe sajaya tumhain
naghme sa gaya tumhain
paya main ne paya tumhain
sab se chupaya tumhain
sapna banaya tumhain
neendon mein bulaya tumhain
tum jo aaey zindagi mein baat ban gai
sapne teri chahaton ke..
sapne teri chahaton ke dekhti hun ab kai
din hai sona aur yeh chaandi raat ban gai
tum jo aaey zindagi mein baat ban gai
paya main ne paya tumhain
rab ne milaya tumhain
honton pe sajaya tumhain
naghme sa gaya tumhain
paya main ne paya tumhain
sab se chupaya tumhain
sapna banaya tumhain
neendon mein bulaya tumhain
chahaton ka maza faaslon mein nahi
aa chupa loon tumhain ghonslon mein kahin
sab se oopar likha hai tere naam ko
khuwahishon se jurre silsilon mein kahin
khuwahishain milne ki tum se...
khuwahishain milne ki tum se roz hoti hain nai
mere dil ki jeet meri maat ban gai
tum jo aaey zindagi mein baat ban gai
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zindagi bewafa hai, yeh mana magar
chorr kar raah mein jaoge tum agar
cheen laaonga main aasmaan se tumhain
soona hoga na yeh do dilon ka nagar
ronaqain hain dil ke dar pe...
ronaqain hain dil ke dar pe, dharkanain hain surmai
meri qismat bhi tumhari saath ban gai
tum jo aaey zindagi mein baat ban gai
ishq mazhab, ishq meri zaat ban gai
sapne teri chahaton ke..
sapne teri chahaton ke dekhti hun ab kai
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tumhain...
pal pal apke liye yeh dil bekraar kyun hai .
Aankhon ko apke deedar ka intzaar kyun hai .
Suna karte they mohabat mein lut jane ke kisse kabhi hum ,
Aaj mera khud ka hashre yeh haal kyun hai,
ehsaas na tha kabhi bhi dil mein kisi hulchul ka.
Na jane yeh dil aur dadhkan mein takraar kyun hai
Mandh parhi thi meri zindagi ke sagar ki lehrein
Apki saanson se magar aaj inmein jawaar kyun hai
Likhta tha kagaz par apne dil ke jazbaat ko main
Aaj apke dil par apni dadhkan ki dastan likhne ka khumaar kyun hai.
कब तलक बंद रक्खो गे -गब्बर शेर पिजड़े में |
एक दिन छोड़ दोगे या- वो पिजड़ा तोड़ ही देगा ||
कभी तो पूरी होती है -मन्नत दिल से जो माँगा |
या हम दर पे ही जायेंगे -या वो आकर ही दे देगा ||
कब तलक बंद रक्खो गे -गब्बर शेर पिजड़े में |
एक दिन छोड़ दोगे या -वो पिजड़ा तोड़ ही देगा ||
कई अरसा, अब बीता *ह्रदय *सह नहीं सकता |
या तो दिल दुट जायेगा -या दिल तोड़ ही देगा ||
कब तलक बंद रक्खो गे -गब्बर शेर पिजड़े में |
एक दिन छोड़ दोगे या -वो पिजड़ा तोड़ ही देगा ||
लगी है आग सीनों में -मचा कोहराम जैसा है |
कभी देखो जरा जाकर -गरीब बीमार कैसा है ||
तडपता दिल कोई हो तो -कभी मज़ाक न करना |
शरम से खुद मरेगा वो -या तो मार ही देगा ||
कब तलक बंद रक्खो गे -गब्बर शेर पिजड़े में |
एक दिन छोड़ दोगे या -वो पिजड़ा तोड़ ही देगा ||
कहते हैं कि नारी ताड़न की अधिकारी है
जन्मा तुम को जिसने वो भी एक नारी है
गाँव की पगडंडी,हो या शहर का परिवेश
हर ओर ही नारी का शोषण जारी है
गैरों की बात क्या करना दोस्तों
अपनों के बीच भी कहाँ सुरक्षित नारी है
बेटी हो तो सिर बाप के झुक जाते है
दहेज की कुछ इस कदर फैली महामारी है
बेटा घर का चिराग बेटी पराये घर का राग
बेटे बेटी का ये अंतरद्वंद्व अभी भी जारी है
पाप किसी का दोष इसके के सर मढ़ा जाता है
इस जुल्म को देख भी चुप रहती दुनिया सारी है
आने देते नहीं बाहर माँ की कोख से
जन्म से पहले कर देते मृत्यु हमारी है
बेटा हुआ तो पुरुष का ही है सारा कमाल
हो गई बेटी तो ये माँ की जिम्मेदारी है
बेटे की चाह में कुछ यूं गिर जाते है लोग
पहली के होते करते दूसरे विवाह की तैयारी है
चैन से जीने नहीं देगा ये समाज तुझे
यदि घर में बैठी तेरे बेटी कुंआरी है
बेटे को दिए ये महल दुमहलें तुमने
बेटी को मिली सिर्फ़ औरों की चाकरी है
आज़ादी का सारा सुख तो है मर्दों के लिए
औरत की दुनिया तो बस ये चारदीवारी है
एक साथ ख़त्म हो जायें यदि औरतें सारी
तो मिट जायेगी ये जो सृष्टि तुम्हारी है
लुट रही है जो हर ओर लाज ललनाओं की
समाज के ठेकेदारों बनती तुम्हारी भी जवाबदारी है
महिला दिवस मना के एक पल ये भी सोचो
क्या नारी सिर्फ इस एक दिन की अधिकारी है ?-रचना श्रीवास्तव
वो कैसा दृश्य हुआ होगा
जब वो कुकृत्य हुआ होगा
पाँचाली के चीर हरण का दृश्य जब मन मेँ आया होगा
भगवान कृष्ण ने फिर से अवतार लेने का विचार बनाया होगा
राक्षसोँ का सर गर्व से उँचा हुआ होगा
उनको भी खुद से नीच राक्षस मिला होगा
बुद्ध ने भी हमारी नपुँसकता को धिक्कारा होगा
तलवार उठाकर बलात्तकारियोँ को ललकारा होगा
गाँधी जी की भी रुह काँप गई होगी
उनको भी बन्दूक उठा लेने की इच्छा जाग गई हो
दूर जहा तक मेरी नजर जाती है
मुझे बस तू ही तू नजर आती है............
चाँद में तू सितारों में तू
फूलों में तू बहारों में तू
हर जगह खुसबू तेरी ही आती है....
दूर जहा तक मेरी नजर जाती है
मुझे बस तू ही तू नजर आती है............
महफ़िल में तू तन्हाई में तू
मिलने में तू जुदाई में तू..
गर्मिया हसरते नाकाम से जल जाते है
हम चिरागों की तरह शान से जल जाते है
समा जलती है जिस आग में नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते है
समा जलती जिस आग में नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते है
जब भी आता नाम तेरा मेरे नाम के साथ
जाने क्यों लोग मेरे नाम से जल जाते है
तुम नाहक ही टूटे हुए दिल के ....
शीशों को साथ लिए बैठे हो.
वो तो कब के दूर जा चुके...
फिर क्यूँ उनसे अब कुछ आस लगाये बैठे हो.
अश्को के मोती हम ने पिरोए तमाम रात,
एक बेवफा की याद में रोए तमाम रात,
ऐसी गिरी ज़ेहन पर यादो की बिजलियाँ,
बैठे रहे ख़यालो में खोए तमाम रात,
कहने लगे वो सुन के मेरा हाल-ए दिल के बस मेरा,
इतनी सी बात पे क्या रोए तमाम रात
आना मेरे जनाज़े में लेकर उसे ,
मेरी मोहब्बत से एक हसीं बात तो होगी
मेरे जिस्म में जान बेशक न हो
मेरी जान मेरे जिस्म के पास तो होगी ..
तुम जाओ मुझसे दूर तो एक काम करना
कुछ पल अपने मेरे नाम करना
अगर आजाये मौत मुझे तेरे आने से पहले
तो आकर मेरे जनाज़े का एहतराम करना
ना रोना इस कदर के तकलीफ हो मुझे
मौत को भी मजाक समझ कर अनजान बनजाना
मैं एक दिन सो जाउंगी सदा के लिए ..
फिर मुझे बेवफा कह के बदनाम करना
जो गुजरो मेरी कब्र से तो नज़रें ना फेरना
मेहमान ही बन कर दुआ सलाम करना
काश कुछ दिनों के लिए "मुझे" दुनिया छोड़ने की आजादी होती......
सुना है लोग दुनिया से चले जाने के बाद बहुत यात करते है....
"दिल में रहते थे जो कभी अब वो, दिल की जाँ ही निकाल देते हैं ,
इतना आसान हो गया हूं मैं ,लोग मुश्किल में डाल देते हैं ........."
दिल तड़पता रहा और वो जाने लगे
संग गुज़रे हर लम्हे याद आने लगे
खामोश नजरो से देखा जो उसने मुड कर
तो भीगी पलकों से हम बी मुस्कराने लगे
ज़िन्दगी की मुसाफ़त में हर कोइ रवां होता है
किसी के पैरों तले शबनम किसी के शोला दबा होता है
किसी के पैमाने में मयस्सर होत है सागर
किसी के हलक पे तश्ने सेहरा होता है
नूरानी चांद की नक्काशी आज की रात में ,
पूराने शराब की सरताबी आज की रात में,
आज की रात खुशनूमा बडा. मंज़र है ,
फ़िर भी ये चुभता है ऐसे जैसे खंज़र है ,
न जाने कैसी है उदासी आज की रात में ,
तन्हा दिल रोता है मेरा,जो तू नहीं साथ में
शबे तसव्वुर में जिसे हम चांद समझा करते थे
नींद से जागा तो पाया वह दहका अंगारा था
और जो था खामेख्याली का हंसी मनाज़िर
वो मेरे हीं किस्मत का टूटता सितारा था
तोड. दूं मैं हर आइना,अक्सबारी का हर साजोसामान
कि जिधर देखता हूं मुझे तू हीं तू नज़र आती है
मैं शीशा हूं तू पत्थर है,तू मेरा अहले मुकद्दर है
मैं जीयुंगा या मर जाउंगा,ये फ़ैसला तेरे ऊपर है
अपने हिस्से का सूरज हम बांटने गये थे
कल जिस अंधियारे के बाशिन्दे को ,
आज उसी को हमने किसी से
रौशनी की सौदागरी करते देखा,
किसी शिकस्ता दिल से पूछो कि
मुहब्बत किस शै का नाम है
ये वो अज़ाब(सज़ा) है जिसमे
सपने सलीब पे चढते हैं
बेमुरब्बत आंधियों के हवाले जो चराग ए यार करते हो
बडे. खुदफ़रेबी हो जो किसी हसीना से प्यार करते हो
अपने ज़िन्दगी का खस-ओ-खुशबू हम कब का बांट आये
अब जो सांसों में बचा है वो बस खुश्क हवाऒं का कतरा है
मुस्कुराकर मिला करो हमसे कुछ कहा और सूना करो हमसे बात करने से बात बढती है रोज़ बातें किया करो हमसे दुश्मनी से मिलेगा क्या तुमको दोस्त बनकर रहा करो हमसे देख लेते हैं सात पर्दों में यूं न पर्दा किया करो हम से
चलो एक काम करते हैं
जमाने भर में नफ़रत को
बहुत बदनाम करते हैं
मुहब्बत आम करते हैं
चलो छोडो ये ताज-ओ-तख़्त,
चलो बन जाएँ दीवाने
और इस दीवानगी को हम
वफ़ा के नाम करते हैं|
मुहब्बत आम करते हैं।
चलो पाते हैं फिर फुर्सत,
तस्सवुर यार का कर के,
बिठा लेते हैं पहलू में,
सहर से शाम करते हैं।
मुहब्बत आम करते हैं।
चलो यह अहद करते हैं,
किसी का दिल ना तोड़ेंगे,
इक दूजे की चाहत में,
अना बेदाम करते हैं।
मुहब्बत आम करते हैं।
सभी टूटे खिलौनों को,
चलो फिर जोड़ लेते हैं,
नयी मंजिल बना कर खुद,
उसे गुमनाम करते हैं।
मुहब्बत आम करते हैं।
चलो यादों की बारिश में,
जगा देते हैं माझी को,
हसीं बीते हुए लम्हे,
तवील आयाम करते हैं।
मुहब्बत आम करते हैं।
चलो कहते हैं अकबर से,
भले दीवार में चुन दें,
मुहब्बत के लिए मिट कर,
सदा आराम करते हैं।
मुहब्बत आम करते हैं।
-हक़ नवाज़ मुग़ल
सम्भाला है होश जब से, मुकद्दर सख्ततर निकला
पडा है जिससे वास्ता वही, तीर-ओ-तबर निकला
सबक देता रहा जो उम्रभर रोशन खयाली का
उसे भी जब पास से देखा तो तंग नज़र निकला
समझ कर जिन्दगी जिससे मुहब्बत कर रहे थे हम
उसे जब छू कर देखा तो फकत खाकी बशर निकला
मुहब्बत का खुमार उतरा तो साबित हुआ 'मोहसिन'
जिसे हम उम्र समझ रहे थे, फकत बे-मक्सद सफ़र निकला
मेरी चाहत था वो मेरी अना भी था
मेरे खामोश लहजों की एक सदा भी था
रहता था सुबहोशाम वो मेरे वजूद में
मेरी आवाज़,मेरा लहज़ा, वो मेरी अदा भी था
देता था वो मुझको ज़ख्म बेहिसाब मगर
हमदर्द भी था वो मेरा, वो मेरी वफ़ा भी था
अब उस के ज़िक्र पे मैं अक्सर बात बदल देती हूँ
कभी मेरी मोहब्बत की वो इन्तेहा भी था
अज़ब कश-म-कश में थी ज़िन्दगी मेरी
पूजना उसे था और दिल में खुदा भी था
किया करती हूँ तन्हाई में, अश्कों से वुजू अक्सर
तस्सवुर में रहा करती है, तुझ से गुफ्तगू अक्सर
तेरी आँखों के खुद को ढूंढती हूँ, इसलिए शायद
कि अपनी ही रहा करती है, मुझको जुस्तजू अक्सर
तका करती हूँ तनहा बैठ कर, पहरों जो फूलों को
तुम्हारी उनमे होती है शबाहत, हू-ब-हू अक्सर
वो राज-ए-दिल जिसे फूलों की सूरत, दिल में रखा था
उसी की तो महक फ़ैली है, जाना चार-सू अक्सर
'सदफ' दीन-ए-वफ़ा का दम, सभी भरते हैं लेकिन क्यों
इसी के नाम पर गलियों में बहता है, लहू अक्सर
-सदफ मिर्ज़ा
तन्हाई ---अकेलापन// अश्क --- आंसू,
वुजू -- मुंह धोना (नमाज पढने से पहले की एक आवश्यक क्रिया)
तस्सवुर - - कल्पना// गुफ्तगू - वार्तालाप
जुस्तजू -- खोज // तका -- देखा
शहाबत -- छवि, परछाईं // चार-सू -- हर तरफ
दीन-ए-वफ़ा ---- धर्मपरायण होने का
लहू - खून
पहलू-ए-शाह में ये दुख़्तर-ए-जमहूर की क़बर
कितने गुमगुश्ता फ़सानों का पता देती है
कितने ख़ूरेज़ हक़ायक़ से उठाती है नक़ाब
कितनी कुचली हुइ जानों का पता देती है
कैसे मग़रूर शहनशाहों की तस्कीं के लिये
सालहा-साल हसीनाओं के बाज़ार लगे
कैसे बहकी हुई नज़रों की ताइश के लिये
सुर्ख़ महलों में जवाँ जिस्मों के अम्बार लगे
सहमी सहमी सी फ़िज़ाओं में ये विराँ मर्क़द
इतना ख़ामोश है फ़रियादकुना हो जैसे
सर्द शाख़ों में हवा चीख़ रही है ऐसे
रूह-ए-तक़दीस-ओ-वफ़ा मर्सियाख़्वाँ हो जैसे
तू मेरी जाँ हैरत-ओ-हसरत से न देख
हम में कोई भी जहाँ नूर-ओ-जहाँगीर नहीं
तू मुझे छोड़ के ठुकरा के भी जा सकती है
तेरे हाथों में मेरा हाथ है ज़जीर नहीं |
सागर खय्यामी |
चाँद मद्धम है आसमाँ चुप है
नींद की गोद में जहाँ चुप है
दूर वादी में दूधिया बादल
झुक के पर्बत को प्यार करते हैं
दिल में नाकाम हसरतें लेकर
हम तेरा इंतज़ार करते हैं
इन बहारों के साये में आ जा
फिर मोहब्बत जवाँ रहे न रहे
ज़िन्दगी तेरे ना-मुरादों पर
कल तलक मेहरबाँ रहे न रहे
रोज़ की तरह आज भी तारे
सुबह की गर्द में न खो जायेँ
आ तेरे ग़म में जागती आँखें
कम से कम एक रात सो जायेँ
चाँद मद्धम है आसमाँ चुप है
नींद की गोद में जहाँ चुप है |
लब पे पाबन्दी नहीं एहसास पे पहरा तो है
फिर भी अहल-ए-दिल को अहवाल-ए-बशर कहना तो है
अपनी ग़ैरत बेच डालें अपना मसलक़ छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों को ये मन्शा तो है
है जिन्हें सब।से ज़्यादा दावा-ए-हुब्ब-ए-वतन
आज उनकी वजह से हुब्ब-ए-वतन रुसवा तो है
बुझ रहे हैं एक एक कर के अक़ीदों के दिये
इस अँधेरे का भी लेकिन सामना करना तो है
झूठ क्यूँ बोलें फ़रोग़-ए-मस्लहत के नाम पर
ज़िन्दगी प्यारी सही लेकिन हमें मरना तो है |
सात रंगों की धनक यों भी सजा कर देखना
मेरी परछाई ख़यालों में बसा कर देखना
आसमानों में ज़मीं के चाँद तारे फेंक कर
मौसमों को अपनी मुट्ठी में छिपा कर देखना
फ़ासलों की कैद से धुंधला इशारा ही सही
बादलों की ओट से आँसू गिरा कर देखना
लौट कर वहशी जज़ीरों से मैं आऊँगा ज़रूर
मेरी राहों में बबूलों को उगा कर देखना
जंगली बेलें लिपट जाएँगी सारे जिस्म से
एक शब, रेशम के बिस्तर पर गँवा कर देखना
मेरे होने या न होने का असर कुछ भी नहीं
मौसमी तब्दीलियों को आज़मा कर देखना
दूध के सोंधे कटोरे, बाजरे की रोटियाँ
सब्ज़ यादों के झुके चेहरे उठा कर देखना
ख़ाकज़ादे आज किस मंज़िल पे 'अंबर' आ गए
शहर में बिखरे हुए पत्थर उठा कर देखना |
सात रंगों की धनक यों भी सजा कर देखना
मेरी परछाई ख़यालों में बसा कर देखना
आसमानों में ज़मीं के चाँद तारे फेंक कर
मौसमों को अपनी मुट्ठी में छिपा कर देखना
फ़ासलों की कैद से धुंधला इशारा ही सही
बादलों की ओट से आँसू गिरा कर देखना
लौट कर वहशी जज़ीरों से मैं आऊँगा ज़रूर
मेरी राहों में बबूलों को उगा कर देखना
जंगली बेलें लिपट जाएँगी सारे जिस्म से
एक शब, रेशम के बिस्तर पर गँवा कर देखना
मेरे होने या न होने का असर कुछ भी नहीं
मौसमी तब्दीलियों को आज़मा कर देखना
दूध के सोंधे कटोरे, बाजरे की रोटियाँ
सब्ज़ यादों के झुके चेहरे उठा कर देखना
ख़ाकज़ादे आज किस मंज़िल पे 'अंबर' आ गए
शहर में बिखरे हुए पत्थर उठा कर देखना |
माना के उनके नेज़ों पे अब सर नहीं कोई
क्या उनके आस्तीन में भी ख़ंज़र नहीं कोई
मजबूरियों ने घर से निकलने न दिया
दुनिया समझ रही है मेरा घर नहीं कोई
अब क्या करेंगे हम नये सूरज की रोशनी
जब देखने के वास्ते मंज़र नहीं कोई
दिल हो रहा है देर से ख़ामोश झील सा
क्या दोस्तों के हाथ में पत्थर नहीं कोई
क़िस्मत सभी की वक़्त के हाथों में रहती है
इस दौर में किसी का मुक़द्दर नहीं कोई |
दुश्मन को भी सीने से लगाना नहीं भूले
हम अपने बुज़ुर्गों का ज़माना नहीं भूले
तुम आँखों की बरसात बचाये हुये रखना
कुछ लोग अभी आग लगाना नहीं भूले
ये बात अलग हाथ कलम हो गये अपने
हम आप की तस्वीर बनाना नहीं भूले
इक उम्र हुई मैं तो हँसी भूल चुका हूँ
तुम अब भी मेरे दिल को दुखना नहीं भूले |
काँटों से गुज़र जाना शोलों से निकल जाना
फूलों की बस्ती में जाना तो सम्भल जाना
दिन अपनी चिराग़ों की मानिन्द गुज़रते हैं
हर सुबह को बुझ जाना हर शाम जल जाना
बच्चों ही सि फ़ित्रत है हम अह्ल-ए-मुहब्बत की
ज़िद करना मचल जाना फिर ख़ुद ही सम्भल जाना
वो शख़्स भला मेरा क्या साथ निभायेगा
मौसम की तरह जिस ने सीखा है बदल जाना |
उसने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया
हिज्र की रात बाम पर माह-ए-तमाम रख दिया
आमद-ए-दोस्त की नवीद कू-ए-वफ़ा में आम थी
मैं ने भी इक चिराग़-सा दिल सर-ए-शाम रख दिया
देखो ये मेरे ख़्वाब थे देखो ये मेरे ज़ख़्म हैं
मैंने तो सब हिसाब-ए-जाँ बरसर-ए-आम रख दिया
उसने नज़र नज़र में ही ऐसे भले सुख़न कहे
मैंने तो उस के पाँवों में सारा कलाम रख दिया
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मैकशी रही
उसने जो फेर ली नज़र मैंने भी जाम रख दिया
और 'फ़राज़' चाहिये कितनी मुहब्बतें तुझे
के माओँ ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया
छीन लेगी नेकियाँ ईमान को ले जाएगी
भूख दौलत की कहाँ इंसान को ले जाएगी
आधुनिकता की हवा अब तेज़ आँधी बन गई
सोचता हूँ किस तरफ़ संतान को ले जाएगी
शहर की आहट हमें सड़कें दिखाएगी नई
फिर हमारे खेत को, खलिहान को ले जाएगी
बेचकर गुर्दे, असीमित धन कमाने की हवस
किस जगह इस दूसरे भगवान को ले जाएगी
सिन्धु हो, सुरसा हो, कुछ हो किन्तु इच्छाशक्ति तो
हैं जहाँ सीता वहाँ हनुमान को ले जाएगी
गाँव की बोली तुझे शर्मिंदगी देने लगी
ये बनावट ही तेरी पहचान को ले जाएगी |
"इस साल न हो पुर-नम आंखें, इस साल न वो खामोशी हो,
इस साल न दिल को दहलाने वाली बेबस वो बेहोशी हो,
इस साल मुहब्बत की दुनिया में, दिल-दिमाग़ की आखेँ हों,
इस साल हमारे हाथों में आकाश चूमती पाँखें हों,
ये साल अगर इतनी मुहलत दिलवा जाए तो अच्छा है,
ये साल अगर हमसे हम को मिलवा जाए तो अच्छा है,
चाहे दिल की बंजर धरती सागर भर आसूँ पी जाए,
ये साल मगर कुछ फूल नए खिलवा जाए तो अच्छा है,
ये साल हमारी क़िस्मत में कुछ नए सितारे टांकेगा,
ये साल हमारी हिम्मत को कुछ नई नज़र से आंकेगा,
इस साल अगर हम अम्बर से दु:ख की बदली को हटा सके,
तो मुमकिन है कि इसी साल हम सब में सूरज झाँकेगा.......
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो, अब गोपाला नहीं आएँगे
छोडो मेहँदी खड़ग संभालो, खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जाएँगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोपाला नहीं आएँगे।
कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से
कैसी रक्षा मांग रही हो दु:शासनी दरबारों से
स्वयं जो लज्जा हीन पड़े हैं, वे क्या लाज बचाएँगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोपाला नहीं आएँगे।
कल तक केवल अँधा राजा, अब गूंगा बहरा भी है
होठ सिल दिए जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे, किसको क्या समझाएँगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोपाला नहीं आएँगे।
..........................................
हे तात! ऐसा न कहें, गोपाला अवश्य ही आएँगे
दुःशासन का अंत करा जनतंत्र का मान बढ़ाएँगे
..........................................
देखें 'नवभारत' का युद्ध छिड़ चुका, रणभूम में हैं सेनाएँ
एक ओर राजनैतिक कौरव दमन पताका फहराए
दूजी ओर लाखों 'पांडव' स्व फिक्र किए बिन भिड़ जाएँ
उन पर है मुझे विश्वास, वो दुःशासन राज चलने नहीं देंगे
किसी और द्रौपदी का पट वो यूँ भरी सभा खिंचने नहीं देंगे
बहनों की रक्षा की खातिर एक कड़ा कानून बनवाएँगे
और उस कानून के रूप में मेरे गोपाला आएँगे।
बचपन से यही सुना था!!!!
मैँने माँ के मुँह से!!!!
ऐसा मत करो, वैसा मत करो!!!!
कुछ लोग क्या कहेँगे!!!!
लेकिन मैँ अब तक जान न पायी!!!!
कौन हैँ वे लोग!!!!
मुझे बढ़ता देखकर!!!!
हो जाता था माँ का चिन्तित चेहरा!!!!
भइया दिन भर बाहर खेलता!!!!
मुझ पर घर मेँ भी था पहरा !!!!
बचपन से यही सुना था!!!!
मैँने माँ के मुँह से!!!!
ऐसा मत पहनो, वैसा मत पहनोँ !!!!
कुछ लोग क्या कहेँगे!!!!
लेकिन मैँ अब तक जान न पायी!!!!
कौन हैँ वे लोग!!!!
जैसे-जैसे बढ़ती गयी मैँ!!!!
बँदिशोँ कि चारदीवारी का आवरण भी!!!!
साथ साथ बढ़ता गया!!!!
एक सीमा खुलते ही!!!!
नयी पाबँदी लग जाती थी!!!!
बँदिशो के साए मैँ पली मैँ!!!!
सिर्फ इसलिए!!!!
क्योकि मैँ एक लड़की थी!!!!
बचपन से यही सुना था!!!!
मैँने माँ के मुँह से!!!!
यहाँ मत जाओ, वहाँ मत जाओ!!!!
कुछ लोग क्या कहेँगे!!!!
लेकिन अब मैँ जान गयी हूँ!!!!
कौन हैँ वे लोग!!!!
न जाने कितनी सदियोँ से!!!!
आबरू लूटते आ रहै है वो!!!!
कितने मासूमोँ का अस्तित्व!!!!
मिटाते आ रहे हैँ जो!!!!
हाँ अब मैँ पहचान गयी हूँ!!!!
कौन हैँ वे लोग!!!!
इसी समाज मेँ छिपे हैँ वो!!!!
अब तुम भी पहचानोँ उनको!!!!
बचपन से यही तो सुना था!!!!
मैँने माँ के मुँह से!!!!
ऐसा मत बोलो, वैसा मत बोलो!!!!
कुछ लोग क्या कहेँगे!!!!
लेकिन मैँ अब जान गयी हृँ!!!!
कौन हैँ वे लोग!!!!
अब मैँ चुप नहीँ रहूँगी!!!!
मैँ पूछँगी ये सवाल तुमसे!!!!
मैरा कसूर क्या था!!!!
क्या सिर्फ ये!!!!
कि मैँ एक लड़की हूँ????
मैं अभी जीना चाहती हूँ, ओ जिंदगी! तुम भी मेरा साथ दो
कुछ सवाल हैं मेरे ज़ेहन में और खामोश हूँ मैं, तुम बस उनके जवाब दो
अभी तो मैं जीना चाहती हूँ, ओ जिंदगी! तुम भी तो मेरा साथ दो.....
एक सवाल मैं मौत से करती हूँ, जरा मेरा कसूर तो बता
मेरे इर्द-गिर्द मंडरा रही है तू, मुझसे हुई ऐसी क्या ख़ता?
एक सवाल उस भगवान के लिए भी, जिसने ये संसार रचा
क्या तुझे अपने लोगों की फिक्र नहीं?
जग की हालत देख के लागे, तुझे नहीं रही अब इसकी चिंता
मन के और सवालों का भी मुझे जवाब देखना है
कानून से है मुझको आस, मुझे उसका पयाम देखना है
मुझे अभी और जीना है 'माँ'...
और इंसानी शैतानों का होता है क्या हाल, अपनी आँखों से ये पूरा अंजाम देखना है........
rajnish manga
09-01-2013, 07:51 PM
गर्मिया हसरते नाकाम से जल जाते है
हम चिरागों की तरह शान से जल जाते है
समा जलती है जिस आग में नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते है
समा जलती जिस आग में नुमाइश के लिए
हम उसी आग में गुमनाम से जल जाते है
जब भी आता नाम तेरा मेरे नाम के साथ
जाने क्यों लोग मेरे नाम से जल जाते है
:gm:
दीपू जी, मुझे ख़याल आता है कि यह गज़ल मैंने पहले भी कहीं पढ़ी हुयी है. यदि शायर का नाम बता सकें तो इनायत होगी. बहरहाल, एक अच्छी गज़ल का रसास्वादन करवाने के लिए मैं आपका आभारी हूँ.
:gm:
दीपू जी, मुझे ख़याल आता है कि यह गज़ल मैंने पहले भी कहीं पढ़ी हुयी है. यदि शायर का नाम बता सकें तो इनायत होगी. बहरहाल, एक अच्छी गज़ल का रसास्वादन करवाने के लिए मैं आपका आभारी हूँ.
thanks ..................................................
jane kyun log muhabbat mei dagaa dete hain,
khud ki nazron se muhabbat ko giraa dete hain,
aasmano ki taraf dekh k chalne wale,
khud ko apni hi nigahon se gira dete hain
un ko maloom hai ahsaas-e-muhabbat kya hai,
log kis tarah muhabbat mei wafaa dete hain
dil ki basti k ujalon se hasad hai jinko,
dil ki basti ko wohi log jalaa dete hain
ab gawaraa nahin ye dard ka mausam ,
aao guzre hue mausam ko sadaa dete hain.
Kahin Aarzoo-E-Safar Nahi Kahin
Manziloon Ki Khabar Nahi
Kahin Rasta Hi Andher Hai Kahin Par
Nahee Khain Per Nahi
Mujhey Izterab Ki Chah Thi Mujhey Baykali Ki Talash Thi
Inhee Khawahishat Ke Jurm Main Koi
Ghar Nahee Koi Dar Nahi
Koi Chand Tootey Ya Dil Jaley Ya
Zameen Kahin Se Ubal Parey
Hum Aseeray Sauratey Hal Hain Humain Hadsat Ka Dar Nahi
Ay Haway-E-Mausam-E-Ghum Zara
Mujhey Sath Rakh Marey Sath Chal
Marey Pass Marey Kadam Nahee
Marey Pass Mari Nazar Nahi
Ya Jo Umer Bhar Ki Riaztain Ya Nagar Nagar Ki Musafitain
Ya To Roug Hain Mah-0-Sal Ke Yeh Tu
Gardashain Hain Safar Nahi …..
https://fbcdn-sphotos-h-a.akamaihd.net/hphotos-ak-prn1/s480x480/32161_414892468586537_97775483_n.jpg
नारी
कहाँ नहीं हारी
अस्मत की बाजी
दाँव पर लगाते रहे
सभी सिंहासन
सभी पण्डित ,सभी ज्ञानी
सतयुग हो या कि कलियुग
कायरों की टोली
देती रही
अपनी मर्दानगी का सुबूत
इज़्ज़त तार-तार करके
देवालयों में मठों में
नचाया गया
धर्म के नाम पर
कुत्सित वासना का
शिकार बनाया गया
विधवा हुई तो
उसे जानवर से बदतर
'सौ-सौ जनम' मरने का गुर सिखाया गया,
रूपसी जब रही
तब योगी -भोगी ॠषिराज -देवराज
सभी द्वार खटखटाते रहे
छल से बल से
अपना शिकार बनाते रहे ।
जब ढला रूप
मद्धिम हुई धूप
उसे दुरदुराया, लतियाया
दो टूक के लिए
बेटों ने , पति ने , सबने सदा ठुकराया !
व्यवस्था बदल देंगे
सत्ता बदल देंगे !
लेकिन एक यक्ष प्रश्न मुँह बाए खड़ा है-
क्या संस्कार बदल पाएँगे ?
किसी दुराचारी के
स्वभाव की अकड़ तोड़ पाएँगे
क्या धन -बल , भुज-बल के मद से टकराएँगे ?
कभी नहीं !!!
रिश्ते भी जब भेड़िए बन जाएँ
तब किधर जाएँगे ?
क्या किसी दुराचारी , पिता, मामा ,चाचा आदि को
घरों में घुसकर खोज पाएँगे ?
सलाखों के पीछे पहुँचाएँगे ? या
इज़्ज़त के नाम पर सात तहों में छुपाकर
आराम से सो जाएँगे !
और नई कुत्सित दुर्घटना का इन्तज़ार करके
समय बिताएँगे !
किसी कुसंस्कारी का संस्कार
किसी बदनीयत आदमी का स्वभाव
बदल पाएँगे ?
जब ऐसा करने निकलोगे
क्या सत्ता में बैठे जनसेवकों
मठों में छुपे महन्तों,
अनाप -शनाप बोलने वाले भाग्य विधाताओं,
शिक्षा केन्द्रों में आसीन भेड़ियों को
उनके क्रूर कर्मों की सज़ा दिलवा पाओगे ?
शायद कभी नहीं , क्योंकि
सत्ता के कानून औरों के लिए हैं,
मठों में घिनौनी सूरत छिपाए
वासना के कीड़ों पर उँगली उठाना
हमारी किताबों के खिलाफ़ है ।
अगर कुछ भी बदलना है तो
ज़हर की ज़ड़ें पहचानों
उसे काटोगे तो
वह फिर हरियाएगी
समूल उखाड़ो !
बहन को बेटी को , माँ को
उसका सम्मान दो
हर मर्द की एक माँ ज़रूर होती है
जब कोई भेड़ियों की गिरफ़्त में होता है
उस समय माँ ही लहू के आँसू रोती है ।
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रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Mere dil ke aangan mai aaj ye tapan kaisi hai,
Aag lagi thi barso pehle fhir ye jalan kaisi hai..
Teri yaado tak ko door rakha khud se fhir bhi,
Sab kuch bhulaye betha hu jaane ye lagan kaisi hai..
Koi kehta paani jaisi, koi kehta sharaab jaisi hai,
Main kehta zindagi behoshi mai guzar jaaye ye kuch aisi hai..
Bas ek ADHURA sawal jo dil ko ab bhi bechain karta hai,
Wo baat kya thi tujh mai jo meri halat ab bhi aisi hai.
Rona padta hai ek din muskurane ke baad..
Yad aate hain wo dur jane ke baad..
Dil to dukhta hee hai uske liye..
Jo apna na ho sake itni mohabbat jatane ke baad..
Mere Mohabbat ko azmana unki adat se ho gayi hai
Mere Mohabbat ko azmana unki adat se ho gayi hai
aye dost ab aur kya bataun...
iss mohabbat ke wajhe se mere zindagi kya se kya ho gayi hai...
Us Se Na Puchho
Meri Maut Ka Sabab
Wo Khud Ko Sambhal Na Payegi
Bhale Kuch Bhi Kahe Magar
Jaan-ta Hu Wo Dil Se
Mujh Ko Nikaal Na Payegi.!!
MOHABBAT Har insaan ko Aazmaati hai.
Kisi se rooth jaati hai,
Toh kisi pe Muskurati hai.
Mohabbat cheez hi aisi hai,
Kisi ka kuch nahi jaata..
Kisi ki jaan chali jati hai!!
Pyar Ki Tadap Ko Dikaya Nahi Jata
Dil Ki Aag Ko Bujaya Nahi Jata
Lakh Bewafa Ho Sanam,
Phir Bhi Zindagi Ka Pehla Pyar Bhulaya Nahi Jata..
Katra-Katra behte the ansu aur hum unhe sukha bhi na paaye.
Is se badi wafa ki saza kiya hogi.
Wo Roye hamse lipatkar kisi aur ke liye.
Aur hum unhe hata bhi na paaye.....
Barish Hui Or ghar k Dareechay se lag kar..
Chup chaap sogawaar tumhain sochty rahy..!! :
Mere Rooth Jane Se Ab Un Ko Koi FaraQ Nahi Parta
Be Chain Kar Deti Thi Kabhi Jin Ko Khamoshi Meri......
dil ki baat jo kabhi jubaa par aati
na thi.....
.
beparwah aankho se jo kabhi
behti na thi,,,,,,,,,,
.
fir kya hua aaz aisa ki ek sailaab
umad aaya hai........
.
roku chahe kitna bhi , par har
baar uska hi naam mere labo pe
laaya hai........
.
main nahi jaanta ki kya itni
mohobaat hai humein unse........
.
ki shyahi nahi h ranjogam ki
likhne ko,
.
fir bhi aaj yaad unka hi
kalaam aaya hai....!!
Bewajah Nahi rota Ishq mai koi.........
Jise Khud Se Badh k Chaho Wo Rulata Zarur Hai.......
Zinda rahain to kya hai? jo mar
jaayen hum to kya?
Duniya se khamoshi se guzar
jaayen hum to kya?
.
Hasti hi apni kya hai zamaane k
saamne,
Ik khuwab hain jahaan main
bikhar jaayen hum to kya?
.
Ab kon muntazir hai humare liye
wahaan?
Shaam aa gayi hai lot k ghar
jaayen hum to kya?
.
Dil ki khalish to sath rahegi
tamaam umar,
Daryaa-e gham k paar utar jaayen
hum to kya?...
Kitni zalim hoti hain ye pal do pal ki Chahtein , ,
Na chahty hoy bhi Dil ko kisi ka intezaar sa rehta hai...!!
Pooch Lo Khuda Se Tere Liye Hi Hamne Dua Mangi,
Pooch Lo Hawa Se Tere Liye Hamne Fiza Mangi,
Jab Bhi Hui Tujhse Koi Galti,
Hamne Dua Me Apne Liye Hi Saza Mangi.
Yaad me teri aahe bharta hai koi,
Har saans k saath tujhe yaad karta hai koi,
Maut to ek din aani hi hai,
Lekin teri judai me har roz marta hai koi…
Kash kuch Dino ke Liye Duniya ko
chod jana Mumkin hota....
suna hai Log bohat yaad kerte hai
Duniya se chale jane k baad..
Milte Hai Ghum Bhi Naseeb Walo Ko.........
Her Aik Ke Hath Yeh Khazane Kaha Laghte Hai......;(
https://fbcdn-sphotos-d-a.akamaihd.net/hphotos-ak-frc1/485598_391182611001187_1182507397_n.jpg
Seekh gaye hum bhi apne dard ko chupana,
Seekh gaye hum bhi bahaana banana,
Na seekh paaye to bas itna,
Apne dil ko khush kar auron ke dil ko dukhaana.
https://fbcdn-sphotos-b-a.akamaihd.net/hphotos-ak-frc3/971870_391184284334353_649353443_n.jpg
Naa karna kisi Se Pyar ki Umid,,
Khwahiso me Sab kuch Gawa doge,,
Har koi krega waada Saath Dene ka,,
Fir Itna Dhokha khaoge ki khud ko mita doge.
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Aap Khud Nahi Jante Aap Kitne Pyare Ho
Jaan Ho Humari Par Jaan Se Pyare Ho
Duriyon Ke Hone Se Koi Fark Nahi Padta
Aap Kal Bhi Humare The Or Aaj Bhi Humare Ho...
https://fbcdn-sphotos-c-a.akamaihd.net/hphotos-ak-frc1/270085_391182931001155_114794444_n.jpg
Dil Ke paas Aap ka Ghar Bana Liya....
Khwabo Me Aap ko Basa Liya....
Mat Puchho Kitna Chahte Hai Hum Aap ko.....
Aap ki Har Khata Ko Apna Mukaddar Bana Liya...** —
किस का रस्ता देखे, ऐ दिल, ऐ सौदाई
मीलों है खामोशी, बरसों है तनहाई
भूली दुनिया, कभी की, तुझे भी मुझे भी
फिर क्यों आँख भर आई..
मना ले जश्न ज़िंदगी का ..क़ि दिन चार हैं बाक़ी ...
फिसल गया वक़्त हाथों से तो कुछ ना हाथ आयेगा ...
उठा के सिर को वेदना में भी जरा जी के तो तुं दिखा ...
तेरे जज्बों के आगे गम तेरा खुद सर को झुकाएगा ...
भरोसा रख बाजूओं पे ,ये कदम बस थकने ना देना ...
तेरे हौंसलों को दाद देने, खुदा खुद सजदे को आयेगा
शायरी करनी है तो मुहब्बत कर...
दिल के जख्म
जरूरी है शायरी के लिए...
Hamare Liye Unke Dil Mein Koi Chahat Na Thi....
Kisi Khushi Mein Koi Dawat Na Thi...
Hum Rakh Aaye Dil Unke Kadmo Mein...
Jinko Zameen Par Deakhne Ki Aadat Na Thi......;((
Afsos Hota Hai Us Pal
Jab Apni Pasand Koi Chura Leta Hai........
Hum Khwabo Me Dekha Karte Hai Use
Aur Haqiqat Koi Aur Bana Leta Hai...;((
ख़ामोशी से मुसीबत और भी संगीन होती है,
तड़प ऐ दिल तड़पने से ज़रा तस्कीन होती है
(तस्कीन = तसल्ली, संतोष)
jai_bhardwaj
03-06-2013, 08:04 PM
हम जिस पे मर रहे हैं वोह है बात ही कुछ और
आलम में तुझ से लाख सही, तू मगर कहाँ
होती नहीं कुबूल दुआ तर्क-ए-इश्क की
दिल चाहता न हो तो जुबां में असर कहाँ
jai_bhardwaj
03-06-2013, 08:06 PM
तेरा ख़याल तो है पर तेरा वुजूद नहीं
तेरे लिए तो ये महफ़िल सजाई थी मैंने
तेरे अदम को गवारा न था वुजूद मेरा
सो अपनी बेखकुनी में कमी न की मैंने
jai_bhardwaj
03-06-2013, 08:07 PM
उल्टी हो गयीं सब तदबीरें कुछ न दवा ने काम किया
देखा, इस बीमारी-ए-दिल ने आखिर काम तमाम किया
अहद-ए-जवानी रो रो काटा, पीरी में ली आँखें मूँद
यानी रात बोहत थे जागे, सुबह हुई आराम किया
jai_bhardwaj
03-06-2013, 08:07 PM
मैं इसे शोहरत कहूं या अपनी रुसवाई कहूं
मुझ से पहले उस गली में मेरे अफ़साने गए
यूं तो वोह मेरी रग-ए-जां से भी थे नज्दीक-तर
आंसुओं की धुंध में लेकिन न पहचाने गए
jai_bhardwaj
03-06-2013, 08:08 PM
शमा-ए-हक़ से जो मुनव्वर हो ये वोह महफ़िल न थी
बारिश-ए-रहमत हुई, लेकिन ज़मीं काबिल न थी
jai_bhardwaj
03-06-2013, 08:11 PM
सितारे सिसकियाँ भरते थे ओस रोती थी
फ़साना-ए-जिगर लख्त लख्त ऐसा था
ज़रा न मोम हुआ प्यार की हरारत से
चटख के टूट गया, दिल भी सख्त ऐसा था
jai_bhardwaj
03-06-2013, 08:21 PM
मिसाल ऎसी है इस दौर-ए-खिरद के होश्मंदों की
न हो दामन में ज़र्रा और सहरा नाम हो जाये
शकेब अपने तार्रुफ़ के लिए ये बात काफी है
हम उस से बच के चलते हैं जो रास्ता आम हो जाये
jai_bhardwaj
03-06-2013, 08:24 PM
फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को
भूला हुआ था देर से में अपने आप को
रहते हैं कुछ मलूल से चेहरे पड़ोस में
इतना न तेज़ कीजिए ढोलक की थाप को
मलूल=sadness
jai_bhardwaj
06-06-2013, 06:15 PM
दर्द-ओ-ग़म का ना रहा नाम तेरे आने से
दिल को क्या आ गया आराम तेरे आने से।
शुक्र-सद-शुक्र के लबरेज़ हुआ ऐ साकी
मय-ए-इशरत से मेरा जाम तेरे आने से।
सहर-ए-ईद ख़जिल जिससे हो ऐ माह-ए-लका
वस्ल की फूली है ये शाम तेरे आने से
jai_bhardwaj
06-06-2013, 06:17 PM
दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया
इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बरबाद
इसका ग़म है कि बहुत देर में बरबाद किया
jai_bhardwaj
06-06-2013, 06:24 PM
उनके देखे से जो आ जाती है मुँह पे रौनक
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है।
देखिए पाते हैं उशशाक़ बुतों से क्या फ़ैज़
इक बराह्मन ने कहा है कि ये साल अच्छा है।
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीकत लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है।
कमाल का शख्स था जिस ने मेरी ज़िन्दगी तबह कर दी,
राज़ की बात तो ये है की दिल उस से खफा अब भी नही....!!!!!
bindujain
10-06-2013, 07:41 PM
हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे,
कभी चाहा था किसी ने,तुम ये खुद कहोगे,
न होगे हम तो किसी ने ,तुम ये खुद कहोगे,
मिलेगे बहुत से लेकिन कोई हम सा पागल ना होगा.
bindujain
10-06-2013, 07:41 PM
हम वो नहीं जो दिल तोड़ देंगे,
थाम कर हाथ साथ छोड़ देंगे,
हम दोस्ती करते हैं पानी और मछली की तरह,
जुदा करना चाहे कोई तो हम दम तोड़ देंगे …
bindujain
10-06-2013, 07:42 PM
जब आपका नाम ज़ुबान पर आता है,
पता नही दिल क्यों मुस्कुराता है,
तसल्ली होती है हमारे दिल को,
कि चलो कोई तो है अपना, जो
हर वक़्त याद आता है.
bindujain
12-06-2013, 03:48 PM
तेरी तस्वीर पर आँसू गिराए बैठा हूँ
तेरे ही जिक्र को दिल में सजाये बैठा हूँ
नींद आती नहीं पलकों से पलट जाती है
तेरा अरमान ही रातों में लिए बैठा हूँ
कब आयोगे सनम हमें ये मालूम नहीं
तुमको अपनी निगाहों में लिए बैठा हूँ
अब तेरा दीवाना कहते हैं मुझे सारे लोग
तेरे रुमाल को हाथों में लिए बैठा हूँ
टूट जाये न कहीं डोर आस की मेरी
तेरी बातों को नमाजों में लिए बैठा हूँ
इस कदर छाई है दिल और दिमाग पर तेरी याद की आंधी
इस तूफ़ान में उड़ कर भी तेरे पास क्यों नहीं आ पाती?
इस कदर छाई है तन बदन पर तुझसे मिलने की प्यास
इस प्यास में तड़प कर भी तुझमें खो क्यों नहीं पाती?
बस आ...कि अब तुझ बिन कोई भी मुझे संभाल नहीं सकता
गंगा की वेगवती लहरें शिव की बलिष्ठ जटाएं चाहती हैं
बस आ..कि अब तो आंखें बहुत प्यासी हैं...और....
तेरे दर्शनों के सिवा अब कुछ भी इस प्यास को बुझा नहीं सकता.
तेरी बाँहों के झूले में झूल जाऊं
तेरी आँखों की नमीं में घुल जाऊं
तेरे हाथों की छूअन से पिघल जाऊं
तेरे गर्म सांसो की आँच में जल जाऊं...
तब हाँ...तब....
तब मेरे बदन की सब गिरहें खुल जायेंगी
और मैं तेरी बाँहों में और भी हल्की हो जाऊँगी
एक नशा सा हावी होगा मेरी रग रग में
और मैं एक तितली की तरह
रंगों में सराबोर हो कर आकाश में उड़ जाऊँगी.
चाहे जब मुझे आकाश में उड़ाना, पर मुझे अपनी चाहत में बांधे रखना
ताकी तेरे बंधनों में बंध कर जी सकूँ, उड़ने का सुख पहचान सकूँ
मुझे प्यासी ही रखना, ताकी तेरे लिए हमेशां प्यासी रह सकूँ
मरते दम तक इस प्यास को जी सकूँ, और इसी प्यास में मर सकूँ
अजीब ही बनाया है मालिक ने मुझे
पास लाकर भी दूर ही रखा है तुझसे...
वो ही जानता है इसका राज़.
शायद इस लिए की मिलने की खुशबू तो पल दो पल की , और फिर ख़त्म....
पर जुदाई की तड़प रहती है बरकरार, पल पल और हर दम...
इसी तड़प और इसी प्यार में जी रही हूँ मैं...
हर पल, हर दिन....
तुझसे मिलने की आस में, इंतज़ार में, गुम हूँ मेरे हमदम.
bindujain
28-06-2013, 05:56 PM
Payar Karnay Ke Adaab
Payar Karnay Kay B Kuch Adaab Howa Kartay Hai
Jaagti Ankhoo Main B Kuch Khwaab Howa Kartay Hai
Rooo Kar Dekhaya Har Koi Yha Zaroori To Nahi
Kooshk Ankhoo Main B Saylaab Howa Kartay Hai
Galat Guman Na Kar Meri Khushk Aankhon Ka
Samandaron Main Jazeery Zaroor Mila Kartey Hai
jai_bhardwaj
30-06-2013, 07:15 PM
चले आओ कभी, टूटी हुयी चूड़ी के टुकड़े से
बचपन की तरह फिर से मोहब्बत नाप लेते हैं
jai_bhardwaj
30-06-2013, 07:15 PM
वो पत्थरदिल हैं तो क्या, हमारा भी ये दावा है
हमारे लब जिसे छू दें, वो पत्थर बोलने लगते
jai_bhardwaj
30-06-2013, 07:16 PM
इक ज़रा सा गर्दिशे दौरां का हक़ है जिस पर
मैंने वह सांस भी तेरे लिए रख छोडी है
rajnish manga
30-06-2013, 09:12 PM
दूर जाता हुआ आदमी
छटपटाता हुआ आदमी
ईद का चांद होने लगा
मुस्कुराता हुआ आदमी
(कवि: विनोद श्रीवास्तव)
rajnish manga
30-06-2013, 09:14 PM
आत्मा के सौन्दर्य का, शब्द रूप है काव्य.
मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य.
(नीरज)
सिर्फ दामन ही छुडाने को रुका था राह पर
और मेरा कारवाँ सौ कौस आगे बढ़ गया
तय करूँ जब तक कि किस तरु पर बनाऊं घोंसला
हाय इतनी देर में ही बाग पीला पड़ गया.
(नीरज)
rajnish manga
30-06-2013, 09:19 PM
हाथ छूटें भी तो रिश्ते नहीं तोड़ा करते
वक्त की शाख़ से लम्हे नहीं तोड़ा करते
(गुलज़ार)
मैं तो बस ज़िन्दगी से डरता हूं
मौत तो एक बार मारेगी
(गुलज़ार)
rajnish manga
30-06-2013, 09:23 PM
जहां मुश्किल पड़े ‘जगदीश’ को तुम याद कर लेना
बड़ा है मेहरबां हर वक़्त सब के काम आता है
(मेजर जगदीश चंद जैन – रिटायर्ड)
मैं न अन्दर से समंदर हूँ न बाहर आसमान
बस मुझे उतना समझ जितना नज़र आता हूँ मैं
(मेजर जगदीश चंद जैन – रिटायर्ड)
rajnish manga
30-06-2013, 09:28 PM
शायरी मेरी बराए बेत है सरवर कि मैं
हाशिया बरदा-ए-ग़ालिब, खोशा-चीं-ए-मीर हूं
(सरवर आलम राज ‘सरवर’)
(खोशा-चीं = बचे खुचे तिनके चुनने वाला)
क्या किसी से कम है सरवर अपनी रुदादे अलम
बात ऐसी कौन सी है ‘कैस’ और ‘फरहाद’ में
(सरवर आलम राज ‘सरवर’)
rajnish manga
30-06-2013, 09:45 PM
आबे-हयात पी के कई लोग मर गये
हम ज़हर पी के जिंदा हैं सुकरात की तरह
(शायरा: नुसरत मेहदी)
सिर्फ अज़दाद की तहज़ीब के धागे होंगे
ओढ़नी पर कोई गोटा न किनारी होगी
(शायरा: नुसरत मेहदी)
तारीकियों में सारे मनाज़िर चले गये
जुगनू सियाह रात में सच बोलता रहा
(शायरा: नुसरत मेहदी)
अज़दाद = पूर्वज
rajnish manga
30-06-2013, 09:51 PM
खुलूस और प्यार के जज्बे दिलों में गर नहीं होते
मकां होते, दर – ओ - दीवार होते, घर नहीं होते
(अज्ञात शायर)
ये तसल्ली है कि हैं नाशाद सब
मैं अकेला ही नहीं हैं बर्बाद सब
सब की खातिर हैं यहां सब अजनबी
और कहने को हैं घर आबाद सब
(अज्ञात शायर)
rajnish manga
30-06-2013, 09:56 PM
गलियों में वही लड़के, हाथों में वही पत्थर
क्या लोग मुहब्बत को हर दौर में मारेंगे
बेचारगी ने मार दिया उसको जीते जी
पकड़ा गया वो अपना कफ़न बेचता हुआ
अज़ल तो मुफ्त में बदनाम है ज़माने में
कुछ उनसे पूछ जिन्हें ज़िन्दगी ने मारा है
(अज्ञात)
rajnish manga
30-06-2013, 10:02 PM
इंसान की ख्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
पाया भी उसको खो भी दिया चुप भी हो रहे
इक मुख़्तसर सी रात में सदियां गुज़र गयीं
(कैफ़ी आज़मी)
rajnish manga
30-06-2013, 10:06 PM
मुझको दियार-ए-ग़ैर में मारा, वतन से दूर
रखली मेरे खुदा ने मेरी बेकसी की लाज.
अगले वक्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो
जो मय-ओ-नग्मा को अन्दोह -रुबा कहते हैं..
(अन्दोह –रुबा = दुःख दर्द हरने वाला)
मिर्ज़ा ग़ालिब
rajnish manga
30-06-2013, 10:12 PM
हज़ारों खिज्र पैदा कर चुकी है नस्ल आदम की
ये सब तस्लीम लेकिन आदमी अब तक भटकता है.
(शायर नामालूम)
तुम न मौसम थे न किस्मत थे न तारीख न दिन
किसको मालूम था तुम यूं भी बदल जाओगे
(तसनीम फ़ारुख)
rajnish manga
30-06-2013, 10:15 PM
रिंद-ए-खराब हाल को जाहिद न छेड़ तू
तुझको पराई क्या पड़ी अपनी निबेड़ तू
(इब्राहिम ज़ोक)
हुई मुद्दत कि ग़ालिब मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पे कहना कि यों होता तो क्या होता?
(मिर्ज़ा ग़ालिब)
खबर सुन कर मेरे मरने की वो कहते हैं रकीबों से
खुदा बख्शे बहुत सी खूबियाँ थी मरने वाले में
(मिर्ज़ा दाग़)
आओ गुनगुनाएं फिर वही गीत ....
जोड़े फिर टूटी सी प्रीत ......
संजोयें फिर से खंडहर से हुए अहसास ...
करे चलो फिर से एक दूजे के होने का आभास ...
भूली सी स्मृतियों को आओ दोहराएँ ....
बीती यादों पे जमीं धूल को हटा कर ....
सुप्त ,अलसाई सी यादों को फिर जगाएं ...
खंडित बिखरे से भावों को चलो फिर संवारें ....
जड़ से हुए वादों को आओ फिर निखारें ...
निकाल वक़्त फिर करें प्रणय निवेदन ....
की भर जाये नव आशा से तेरे -मेरे संवेदन ...
चलो स्वछंद भरने दे भावों को उड़ान ...
भूल वक़्त की दी हर वेदना थकान ...
दायित्वों ,फर्जों को आओ कर के दरकिनार ..
तलाशें खोजें फिर से एक दूजे में वही प्यार ...
छोड़ वजूद ,अस्तित्व का चितन ...
आओ करें फिर अपने रिश्ते का मंथन ....
हो अंतर में बस एक दूजे का सम्मान ..
दे आओ चलो निज भावों को मान ...
ना कहे तू है हारा न कहूँ मैं गयी जीत ..
आओ गुनगुनाएं जिए वही गीत वही बिसरी सी प्रीत
rajnish manga
03-07-2013, 11:54 AM
मोमबत्ती
-आकृति भार्गव
बाज़ार से खरीद कर लाई जाती है मोमबत्ती,
अलग अलग जगहों पर सजाई जाती है मोमबत्ती,
कहीं मेज़ पर रख दी जाती है,
तो कहीं शीशे की आलीशान अलमारी में सजाई जाती है मोमबत्ती |
लाल, पीले, हरे, नीले हर रंग में पाई जाती है,
आज कल तो सितारों से भी सजाई जाती है |
रोज़ किसी न किसी घर में
अँधेरा मिटाने को जलाई जाती है,
जलती है, गिरती है फिर भी रोशनी करती है,
एक धागे के सहारे जिंदा रहती है,
जलने पर हर बार पिघलती है |
छोटी तो आजकल मोमबत्ती स्टैंड पर जलती है मोमबत्ती
बड़ी शान से प्रकाश करती है,
पर फिर कुछ समय में मोम में कहीं खो जाती है वह मोमबत्ती |
ऊँची हो तो चाकू से काट कर इस्तेमाल की जाती है,
न हो काम की तो कूड़ेदान में कहीं फेंक दी जाती है,
सजाने को कुछ देर बर्थडे केक पर भी लगाई जाती है,
फूँक मार कर बुझाते है सबके सामने ,
और दुनिया तालियाँ भी बजाती है|
छोटे-बड़े हर घर में पाई जाती है
फ़र्क सिर्फ़ इतना है की बड़े घर में सजाई जाती है,
और छोटे घर से खरीद कर लायी जाती है मोमबत्ती |
साभार: पत्रिका (इन्टरनेट से) / lsr / delhi
rajnish manga
03-07-2013, 12:06 PM
ग़ज़ल
रचनाकार: प्राण शर्मा
अंधे को कभी अंधा न कहिये जनाब जी,
ऐसी ज़बां से दूर ही रहिये जनाब जी।
इच्छा बड़ी थी आपकी लड़ने-झगड़ने की,
अब सर पे आयी चोट को सहिये जनाब जी।
घोड़ा ही दौड़ सकने में तैयार है नहीं,
अब क्या चलेंगे तांगे के पहिये जनाब जी।
हमने सुनी है आपकी हर बात ध्यान से,
कुछ और मन में है वो भी कहिये जनाब जी।
हर दुश्मनी को भूल ही जाने में है भला,
क्यों व्यर्थ ऐसी आग में दहिये जनाब जी।
rajnish manga
03-07-2013, 12:12 PM
ग़ज़ल
रचनाकार: प्राण शर्मा
हँसता हुआ सा बच्चा रुलाया नहीं जाता,
हमसे तो खिलौनों को छुपाया नहीं जाता।
मिलना है तो मिलिए उन्हें बाहर कहीं जाकर,
घर दुश्मनों को अपने बुलाया नहीं जाता।
कुछ तौर-तरीका जहां का भी कभी सीखें,
दुःख में किसी के जश्न मनाया नहीं जाता।
क्या ख़ाक मुहब्बत को निभा पायेंगे मुझसे,
गर आपसे मिलने को भी आया नहीं जाता।
उपहास उड़ाना है तो उडाओ बुरों का आप,
उपहास भलों का तो उड़ाया नहीं जाता।
3 Crackston Close,
Coventry, CV2 5EB, UK
तेरी आँखों के नशे में डूब जाउ....
तेरी जुल्फ की छाव में खुद को भूल जाउ....
तेरी होंठों की हसी को पी लू सनम....
आ करीब मेरे तेरी भाहों में खुद को भूल जाउ…
कौन कहता है हो गया है खत्म दौर मोहब्बतों का .............
खत उसके आज भी महकते हैं गुलाबों की तरह
bindujain
03-07-2013, 08:16 PM
कौन कहता है हो गया है खत्म दौर मोहब्बतों का .............
खत उसके आज भी महकते हैं गुलाबों की तरह
गुलाबों की तरह दिल अपना शबनम में भिगोते हैं
मोहब्बत करने वाले खूबसूरत लोग होते हैं
bindujain
04-07-2013, 08:44 PM
मैं टूट कर गिरा.....जहाँ सब वहां देखते हैं,
किस बुलन्दी से गिरा.... ये कोई नहीं सोचता ..
bindujain
04-07-2013, 08:49 PM
अब मुझको रिहा करो इस झूठ सच के सवाल से ,
मुझको बेवफा कह के मसला ख़तम करो ......
जिंदगी एक आइना है, यहाँ पर हर कुछ छुपाना पड़ता है|
दिल में हो लाख गम फिर भी महफ़िल में मुस्कुराना पड़ता है |
ए चाँद मेरे दोस्त को एक तोहफा देना,
तारो की महफ़िल संग रोशनी करना,
छुपा लेना अंधेरे को,
हर रात के बाद एक खूबसूरत सवेरा देना…
तमन्नाओँ की भिड़ मेँ इक तमन्ना पुरी हो गाई
ज़ीन्दगी से उम्मीद खत्म और मौत की आरज़ू पुरी हो गई !!!
कभी किसी से प्यार मत करना
हो जाए तो इनकार मत करना
निभा सको तो चलना उसकी राह पर
वरना किसी की ज़िंदगी बरबाद मत करना
तुमको मिलके बीते हूए कल की याद आने लगी,
ज़िन्दगी जीने की तम्मना फिरसे खिल उठी,
लेकिन जब तुम्हारे लबो के किसी और का नाम सुना तो,
ज़िन्दगी में फिर से अमावस का अँधेरा छा गया
सादगी किसी श्रृंगार से कम नहीं होती ,
चिंगारी किसी अंगार से कम नहीं होती!
ये तो अपनी अपनी सोच का फर्क है बरना ,
दोस्ती किसी प्यार से कम नहीं होती !!
हम कहा थे इतने दिनों से …खुद हमको ही मालूम न था …
ये वक्त भी क्या गुल खिलाती हे हमको कुछ याद ही नहीं …
ज़िन्दगी के कुछ पल भी अजीब सी होती है खुद ही सो जाती हे…
जागना चाह तो आंख खुली ही नहीं जब जागा तो कुछ याद्द ही नहीं …
फुलो सा खुबसुरत चेहरा हैं आपका,
हर दिल दिवाना है आपका,
लोग कहते है चाँद का टुकडा है आप,
लेकिन हम कहते है चाँद टुकडा है आपका!
ये खुदा तूने इंसान को क्या से क्या बना दिया ,
किसी को हीर तो किसी को राँझा बना दिया !
कितना बेबकूफ़ था शायजहाँ…………..
एक फूल का बोझ उठा नहीं सकती थी मुमताज ,
और उसके ऊपर ताज महल बनबा दिया !!
अँधेरे का मुसाफ़िर / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
यह सिमटती साँझ,
यह वीरान जंगल का सिरा,
यह बिखरती रात, यह चारों तरफ सहमी धरा;
उस पहाड़ी पर पहुँचकर रोशनी पथरा गयी,
आख़िरी आवाज़ पंखों की किसी के आ गयी,
रुक गयी अब तो अचानक लहर की अँगड़ाइयाँ,
ताल के खामोश जल पर सो गई परछाइयाँ।
दूर पेड़ों की कतारें एक ही में मिल गयीं,
एक धब्बा रह गया, जैसे ज़मीनें हिल गयीं,
आसमाँ तक टूटकर जैसे धरा पर गिर गया,
बस धुँए के बादलों से सामने पथ घिर गया,
यह अँधेरे की पिटारी, रास्ता यह साँप-सा,
खोलनेवाला अनाड़ी मन रहा है काँप-सा।
लड़खड़ाने लग गया मैं, डगमगाने लग गया,
देहरी का दीप तेरा याद आने लग गया;
थाम ले कोई किरन की बाँह मुझको थाम ले,
नाम ले कोई कहीं से रोशनी का नाम ले,
कोई कह दे, "दूर देखो टिमटिमाया दीप एक,
ओ अँधेरे के मुसाफिर उसके आगे घुटने टेक!"
अँधेरे अकेले घर में / अज्ञेय
अँधेरे अकेले घर में
अँधेरी अकेली रात ।
तुम्हीं से लुक-छिप कर
आज न जाने कितने दिन बाद
तुम से मेरी मुलाक़ात ।
और इस अकेले सन्नाटे में
उठती है रह-रह कर
एक टीस-सी अकस्मात*
कि कहने को तुम्हें इस
इतने घने अकेले में
मेरे पास कुछ भी नहीं है बात ।
क्यों नहीं पहले कभी मैं इतना गूँगा हुआ ?
क्यों नहीं प्यार के सुध-भूले क्षणों में
मुझे इस तीखे ज्ञान ने छुआ
कि खो देना ओ देना नहीं होता-
भूल जाना और, उत्सर्ग है और बात :
कि जब तक वाणी हारी नहीं
और वह हार मैंने अपने में पूरी स्वीकारी नहीं,
अपनी भावना, संवेदना भी वारी नहीं-
तब तक वह प्यार भी
निरा संस्कार है,संस्कारी नहीं ।
हाय, कितनी झीनी ओट में
झरते रहे आलोक के सोते अवदात-
और मुझे घेरे रही
अँधेरे अकेले घर में
अँधेरी अकेली रात ।
rajnish manga
07-07-2013, 11:54 AM
तार सप्तक के इन दोनों कवियों की कविताये प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद. रॉबर्ट ब्राउनिंग की एक कविता पेश है:
Meeting at Night
रोबर्ट ब्राउनिंग द्वारा (1812–1889)
I
The grey sea and the long black land;
And the yellow half-moon large and low;
And the startled little waves that leap
In fiery ringlets from their sleep,
As I gain the cove with pushing prow,
And quench its speed i' the slushy sand.
II
Then a mile of warm sea-scented beach;
Three fields to cross till a farm appears;
A tap at the pane, the quick sharp scratch
And blue spurt of a lighted match,
And a voice less loud, thro' its joys and fears,
Than the two hearts beating each to each!
https://fbcdn-sphotos-c-a.akamaihd.net/hphotos-ak-ash3/944162_10201415559894682_386395774_n.jpg
https://fbcdn-sphotos-f-a.akamaihd.net/hphotos-ak-ash4/1016777_10201400022706262_1726140217_n.jpg
https://fbcdn-sphotos-b-a.akamaihd.net/hphotos-ak-ash4/999890_10201392030186454_1423653785_n.jpg
https://fbcdn-sphotos-c-a.akamaihd.net/hphotos-ak-prn1/1017277_10201389754649567_345548622_n.jpg
jai_bhardwaj
07-07-2013, 06:28 PM
हम नाज़ुक नाज़ुक दिल वाले
कभी हँसते हैं कभी रोते हैं
कभी दिल में ख्वाब पिरोते हैं
कभी महफ़िल महफ़िल फिरते हैं
कभी जात में गुम हो जाते हैं
कभी चुप की मोहर सजाते हैं
कभी गीत लबों पर आते हैं
कभी सब का दिल बहलाते हैं
कभी खुद तनहा हो जाते हैं
कभी शब् भर जागते रहते हैं
कभी लम्बी तान के सोते हैं
हम नाज़ुक नाज़ुक दिल वाले
बस अपने आप में रहते हैं
हम नाज़ुक नाज़ुक दिल वाले
कभी हँसते हैं कभी रोते हैं
कभी दिल में ख्वाब पिरोते हैं
कभी महफ़िल महफ़िल फिरते हैं
कभी जात में गुम हो जाते हैं
कभी चुप की मोहर सजाते हैं
कभी गीत लबों पर आते हैं
कभी सब का दिल बहलाते हैं
कभी खुद तनहा हो जाते हैं
कभी शब् भर जागते रहते हैं
कभी लम्बी तान के सोते हैं
हम नाज़ुक नाज़ुक दिल वाले
बस अपने आप में रहते हैं
:hello::hello::bravo:
jai_bhardwaj
08-07-2013, 07:54 PM
एक पल में एक सदी का मज़ा हम से पूछिए
दो दिन की ज़िन्दगी का मज़ा हम से पूछिए
भूले हैं उन्हें रफ्ता रफ्ता मुद्दतों में हम
किश्तों में खुदकुशी का मज़ा हम से पूछिए
आगाज़ ए आशिकी का मज़ा आप जानिये
अंजाम ए आशिकी का मज़ा हम से पूछिए
जलते दियों में जलते घरों जैसी लौ कहाँ
सरकार रोशनी का मज़ा हम से पूछिए
वो जान ही गए कि हमें उनसे प्यार है
आँखों की मुखबरी का मज़ा हमसे पूछिए
हँसने का शौक हमको भी था आप की तरह
हँसिये मगर हँसी का मज़ा हम से पूछिए
हम तौबा कर के मर गए बे मौत ऐ 'खुमार'
तौहीन ए मयकशी का मज़ा हम से पूछिए
rajnish manga
09-07-2013, 10:05 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=28456&stc=1&d=1373389447
rajnish manga
09-07-2013, 10:07 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=28457&stc=1&d=1373389568
rajnish manga
09-07-2013, 10:15 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=28458&stc=1&d=1373390066
rajnish manga
09-07-2013, 10:18 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=28459&stc=1&d=1373390202
rajnish manga
09-07-2013, 10:45 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=28461&stc=1&d=1373391803
https://fbcdn-sphotos-a-a.akamaihd.net/hphotos-ak-prn2/969491_215132941971823_1286848544_n.jpg
!!!! रेत पे लिख के मेरा नाम मिटाया ना करो ,, आँखे सच बोलती है प्यार छुपाया ना करो ,,लोग हर बात का अफसाना बना लेते है,, प्यार के जख्म अमानत है दिखाया ना करो !!!!!!!!!!!!!!!!!!!
कह दो फरिश्तों से अब दरकार नहीं जन्नत की
जब से उसकी आँखों में ऩजर आ गया चेहरा मेरा
jai_bhardwaj
10-07-2013, 08:42 PM
जुल्म के पावों से जो फूल मसल जाते हैं
खार बन कर वही पत्थर पे निकल आते हैं
फिर बहारों की जरूरत नहीं रहती उन को
ये खिजां में भी बड़ी शान से खिल जाते हैं
(खार>काँटे। बहार>बसंत। खिजां>पतझड़)
jai_bhardwaj
10-07-2013, 08:48 PM
गुजर चुका है उम्मीदों का काफिला कब का
राह ए यकीं पे अब भी गुबार बाकी है
हमें पुकार लो जब चाहो हम मिलेंगे यहीं
मिले हैं ख़ाक में लेकिन वकार बाकी है
(राह ए यकीं>विश्वास की डगर। गुबार>उडती हुयी धूल। ख़ाक>राख । वकार> स्वाभिमान)
क्या कभी तुमने अपने कानो से दीवारों में पड़ी
दरारों का चिल्लाना सुना हें?
अगर नहीं सुना हो तो तुम बहरें हों
क्या कभी तुम्हारी आँखों ऩे खून से लाथ्बथ,
चीखों का जुंड देखा हें?
अगर न देखा हो तो तुम अंधे हों
के तुमने किसी कुछ नहीं के साथ,
दो घडी बात करने की कोशिश की हें?
अगर न की हों तो तुम बेजुबान हों
मुझे सुच में अफ़सोस हें की
तुम्हे बोलते, सुनते और देखता करने के लिएँ
में सिर्फ कविता लिख सकता हूँ .. और-कुछ नहीं कर सकता ...
हम देख कर अँधे , सुन कर बहरे , और जुबां हों कर भी बेजुबान कुन हों जाते हें?...
मेरे सवाल का जवाब हें किसी अँधे बहरे या बेज़ुबांके पास ?
rajnish manga
14-07-2013, 01:52 PM
क्या कभी तुमने अपने कानो से दीवारों में पड़ी
दरारों का चिल्लाना सुना हें?
अगर नहीं सुना हो तो तुम बहरें हों
क्या कभी तुम्हारी आँखों ऩे खून से लथपथ,
चीखों का झुंड देखा हें?
अगर न देखा हो तो तुम अंधे हों
के तुमने किसी कुछ नहीं के साथ,
दो घडी बात करने की कोशिश की हें?
अगर न की हों तो तुम बेजुबान हों
मुझे सच में अफ़सोस हें कि
तुम्हे बोलते, सुनते और देखता करने के लिएँ
में सिर्फ कविता लिख सकता हूँ .. और-कुछ नहीं कर सकता ...
हम देख कर अँधे , सुन कर बहरे , और जुबां हों कर भी बेजुबां क्यों हों जाते हें?
मेरे सवाल का जवाब है किसी अँधे, बहरे, या बेज़ुबांके पास ?
जी नहीं है
जी नहीं है
:thinking::thinking::thinking:
jai_bhardwaj
20-07-2013, 07:41 PM
जब गर्दिशों में जाम थे
कितने हसीं अयाम थे
हम ही न थे रुसवा फकत
वो आप भी बदनाम थे
आयाम = दिन
रुसवा = कुख्यात
rajnish manga
20-07-2013, 08:25 PM
जब गर्दिशों में जाम थे
कितने हसीं अयाम थे
हम ही न थे रुसवा फकत
वो आप भी बदनाम थे
आयाम = दिन
रुसवा = कुख्यात
दिन ही थे जो शहदो-शराबो-शबाब थे
दिन ही तो हैं जो गर्दिशे-अय्याम बन गये
अपनी हक-आश्कारियाँ इल्हाद हो गईं
दैरो-हरम के झूठ भी इल्हाम बन गये
(शायर का नाम याद नहीं)
गर्दिशे-अय्याम = वक़्त की गर्दिश / हक-आश्कारियां = सच्चे अनुभव /
इल्हाद = झूठी / दैरो-हरम = मंदिर-मस्जिद / इल्हाम = ईश्वरीय वाणी
तेरी मुहब्बत की हरदम ज़ुस्तज़ु मैने करी.,!
क्यूँ गैर पर प्यार अपना बरसाने लगी है.!!
हमे हँसने हँसाने की आदत है,
नज़रों से नज़रें मिलाने की आदत है,
पर हमारी नज़र तो उनसे है जा मिली,
जिन्हें नज़रें झुका के शर्माने की आदत है
jai_bhardwaj
12-08-2013, 05:58 PM
ख़ुद चढ़ा रखे थे तन पर अजनबीयत के गिलाफ़
वर्ना कब एक दूसरे को हमने पहचाना न था।
याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी’अदीम’
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था।
Dr.Shree Vijay
12-08-2013, 06:45 PM
खुबसूरत सूत्र............................................. ..............
वो इश्क रहा, या मेरी जका जिम्मेवारी
बेगैरत ही निकले, हर एतबार पे हम
https://m.ak.fbcdn.net/sphotos-h.ak/hphotos-ak-prn2/1234243_524164534320783_1980081654_n.jpg
बुरे समय को देखकर, गंजे तू क्यों रोय,
किसी भी हालत में तेरा, बाल न बांका होय...
Advo. Ravinder Ravi Sagar'
12-09-2013, 12:10 AM
वाह वाह बहुत खूब.
Poonam Dahiya
यूँ तो रोज
मिलता है वो रूबरू
पर जुबाँ पे लाता नहीं
दिल की बात ..
हर बार अनकहे निशब्द
ही कहीं ह्रदय में ...
ही घूमते रहे उसके जज़्बात
कभी आँखों ने चाहा जताना
तो ह्रदय ने बना लिया ....
झूठा कोई बहाना .............
और हर बार लौट आयी..........
चाह मेरी लिए निराशाओं को साथ
जानती हूँ वैसे तो मोहताज नहीं ..
भाव ,अनुभाव मेरे किसी भी
दिखावे ,इजहार के ..............
जानते हैं मन हमारे भाव
स्नेह प्यार के ...............
फिर भी चाहती हूँ कभी
थाम हाथ मेरा ..एक बार
वो कहे ..हाँ ,तुझ से है दुनिया मेरी
हर पल हूँ मैं बस तेरे साथ
वाह वाह बहुत खूब.
:think::think:
बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये
के अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये
करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला
यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये
मगर किसी ने हमे हमसफ़र नही जाना
ये और बात के हम साथ साथ सब के गये
अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिये
ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये
गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नही हारा
गिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये
तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो "फ़राज़"
इन आँधियों मे तो प्यारे चिराग सब के गये
https://m.ak.fbcdn.net/sphotos-f.ak/hphotos-ak-ash4/s403x403/1151013_523685191047339_93109149_n.jpg
तेरे आने से मैं अपना चमन भूल गई
जो निभाना था घर से, वो वचन भूल गई
सात जनमों की भला कौन खबर रखे
तेरी दहलीज़ पे जब मैं ये जनम भूल गई
क्या जमाना भी करेगा हमसे शिकवा
जब जमाने के कीए सारे सितम भूल गई
बांवरी होके तेरे पास चली आई हूं
तुमको देखा तो मैं दिल की लगन भूल गई
https://m.ak.fbcdn.net/sphotos-b.ak/hphotos-ak-prn2/1383025_207518869431170_1437231175_n.jpg
ए ताज तेरी खूबसूरती पर,
छीटे लहू के क्यो पड़े है,
दीवारें तो मुस्कुराती है,
पर दर्द जमी में गड़े है.
वो बस्तियां जलाते है
नई बिल्डिंग बनते
उजाडके मेरा आशियाना
सपने महल के दिखाते है
मै उनसे बूझता रहता हूँ
यूँ अक्सर
लोगो की बात करते करते
क्यों लोगो को ही जाते हो
गरीबो के महीसा हो तुम
ये चर्चा ए ख़ास है
मदद आया पास तेरे
तो क्यों मुह चढाते हो
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब दिल हैं न आँखें न साँसें कि जो
रेज़ा-रेज़ा[1] हुए तो बिखर जाएँगे
जिस्म की मौत से ये भी मर जाएँगे
ख़्वाब मरते नहीं
ख़्वाब तो रोशनी हैं नवा हैं[2] हवा हैं
जो काले पहाड़ों से रुकते नहीं
ज़ुल्म के दोज़खों से भी फुकते नहीं
रोशनी और नवा के अलम
मक़्तलों[3] में पहुँचकर भी झुकते नहीं
ख़्वाब तो हर्फ़[4] हैं
ख़्वाब तो नूर[5] हैं
ख़्वाब सुक़रात [6] हैं
ख़्वाब मंसूर[7]हैं.
बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये
के अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये
करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला
यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये
दिल को धडकना तूने सिखाया, दिल को तडपना तूने सिखाया,,,
आखों में आंसू छुपे थे कहीं इनको छलकना तूने सिखाया,,,
सिने में बसाया क्यूँ दिल से जब खेलनाही था,,,
हम से दिल लगाया क्यूँ हमसे मुंह मोड़ना ही था,,,
मोहब्बत हो जाये या मच्छर काटे अंजाम एक ही होता है; रात को नींद नहीं आती।
Khudkushi Ke Liye Thoda Sa Zahar Hi Kafi Hai Magar... Zinda Rahne Ke Liye Kafi Zahar Peena Padta Hai...
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तेरे बिना हर पल ,एक कसक सी रहती है...
तुझसे ना मिलने की ,तड़प सी लगती है ....
कभी कभी सोचती हूँ ,शायद इसी का नाम मुहब्बत है ...
तेरे बिन ये हसीं रुत भी ,बेमुरव्वत सी लगती है ....
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