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View Full Version : वन्दे मातरम !


miss.dabangg
24-05-2011, 01:17 AM
1857 के स्वतन्त्रता संग्राम को 10 मई को 154 वर्ष पूरे हो गए . इस संग्राम को याद करके आज भी यूरोपियनों की नीद हराम हो जाति है. इस संग्राम की यादों को दफन करने, इससे बदनाम करने, तथ्यों को छुपाने व तोड़ने-मरोड़ने के अनगिनत प्रयास तब भी हुए और आज भी चल रहे हैं. अंग्रेजों ने इसे एक छोटा सा सैनिक विद्रोह बतलाया.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:17 AM
जबकि सच्चाई यह है कि यह संग्राम देश के हर कोने में लड़ा गया. एक ही दिन में १०,१५,२० जगह पर युद्ध चलता था. छोटे बड़े नगरों से लेकर वनवासियों तक ने इस युद्ध में भाग लिया. इस युद्ध के संचालकों की अद्भुत कुशलता और योग्यता का पता इस बात से चलता है कि जिस युद्ध की योजना में करोड़ों लोग भाग ले रहे थे उसका पता अंग्रजों के गुप्तचर विभाग को अंतिम दिन तक तक न चल सका. ऐसा एक भी कोई दूसरा उदाहरण संसार के इतिहास में नहीं मिलता.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:18 AM
आज भी हमारे उपलब्ध साहित्य में तथा नेट पर विश्व के इस सबसे बड़े स्वतंत्रता संग्राम को एक छोटा सैनिक विद्रोह बतलाने का झूठ चल रहा है. उस संग्राम में में 300000 ( तीन लाख ) वनवासियों, नागरिकों व सैनिकों की हत्या हुई थी. फ्रांस, जापान, अफ्रीका अदि संसार का एक भी देश ऐसा नहीं जिसके वीरों ने अपने देश की आजादी के लिए इतना लंबा संघर्ष किया हो या इतने लोगों के जीवन बलिदान हुए हों. ऐसा देश भी केवल भारत ही है जहां स्वतन्त्रता के बाद भी अपने देश के इतिहास को अपनी दृष्टी से न लिख कर देश के दुश्मनों द्वारा लिखे इतिहास को पढ़ा-पढ़ाया जा रहा हो. इससे लगता है कि अभी तक यह देश आज़ाद नहीं हुआ है. केवल एक भ्रम है कि हम आज़ाद है. वरना कोई कारण नहीं कि हम अपने देश के सही,

miss.dabangg
24-05-2011, 01:18 AM
सच्चे इतिहास को फिर से न लिखते. क्या इसका यह अर्थ नहीं कि अँगरेज़ जाते हुए भारत की सत्ता उन लोगों के हाथ में सौंप गए जो उनके ख़ास अपने थे, जो भारत में रह कर उनके हितों के रक्षा करते ? कथित आज़ादी के बाद के 64 वर्ष के इतिहास पर एक नज़र डालें तो इस बात के अनगिनत प्रमाण मिलते हैं कि देश का शासन भारत के शासकों ने अपने ब्रिटिश आकाओं के हित में, अनके अनुसार चलाया. स्वतंत्र इतिहासकरों के अनुसार देश आज़ाद तो हुआ ही नहीं, सत्ता का हस्तांतरण हुआ. कई गुप्त देश विरोधी समझौते भी हुए जिन पर अभीतक पर्दा पड़ा हुआ है. जैसे कि एडविना बैटन के सम्मोहन में नेहरू जी ने बिना किसी को भी विश्वास में लिए देश के विभाजन का पत्र माउंट बैटन को सौंप दिया था.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:19 AM
महान क्रांतिकारी नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को अंग्रेजों की कैद में भेजने का गुप्त समझौता आदी. क्या इन सब तथ्यों और आजकल घट रही अनगिनत देश विरोधी घटनाओं व कार्यों के बाद भी कोई संदेह रह जता है कि यह सताधारी भारत में, भारत के लोगों द्वारा चुने जाकर विदेशी आकाओं के हित में, विदेशी आकाओं के इशारों पर काम कर रहे हैं ? अंतर है तो बस केवल इतना कि पर्दे के पीछे भारत के सत्ता के सूत्र संचालित करने वाला, इन विदेशी ताकतों का मुखिया पहले ब्रिटेन होता था जबकि अब इनका मुखिया अमेरिका है.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:20 AM
आपको याद होगा कि पहले हमारी पाठ्य पुस्तकों में 1857 के वीरों की कथाएं होती थीं. '' खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी'' हम बच्चे पढ़ते थे. रानी झांसी पर नाटक होते थे. धीरे, धीरे वह सब हमारे स्कूली पाट्यक्रम में से कब गायब होता गया, पता भी न चला. इससे भी लगता है कि देश के शासक काले अँगरेज़ आज भी विदेशी इशाकारों पर देश का अराष्ट्रीयकरण करने के काम में लगे हुए है और देश की जड़ें चुपके, चुपके काट रहे है.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:20 AM
संसार के देश कभी न कभी गुलाम रहे पर आज़ादी के बाद उन सब ने अपना इतिहास अपनी दृष्टी से लिखा. इसका एक मात्र अपवाद भारत है जहाँ आज भी देश के दुश्मनों द्वारा लिखा, देश के दुश्मनों का इतिहास यह कह कर हमें पढ़ाया जाता है कि यह हमारा इतिहास है. जर्मन के एक विद्वान ' पॉक हैमर' ने भारत के प्रचलित इतिहास को पढ़ कर भारत पर लिखी एक पुस्तक ''इंडिया-रोड टू नेशनहुड'' की भूमिका में लिखा कि जब मैं भारत का इतिहास पढता हूँ तो मुझे नहीं लगता कि यह भारत का इतिहास है. यह तो भारत को लूटने वाले, हत्याकांड करने वाले आक्रमणकारियों का इतिहास है. जिस दिन ये लोग अपने सही इतिहास को जान जायेंगे, उसदिन ये दुनिया को बतला देंगे कि ये कौन हैं.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:20 AM
बस इसी बात से तो डरते हैं भारत के विदेशी आका. वे नहीं चाहते कि हम अपने सही और सच्चे इतिहास को जानें. हम समझें या न समझें पर वे अच्छी तरह जानते है कि हमारे अतीत में, हमारे वास्तविक इतिहास में इतनी ताकत है कि जिसे जानने के बाद हमें संसार का सिरमौर बनने से कोई भी ताकत रोक नहीं पाएगी. इसी लिए उन लोगों ने अनेक दशकों की मेहनत से भारत का झूठा इतिहास लिखा और मैकाले के मानस पुत्रों की सहायता से आज भी उसे भारत में पढवा रहे हैं.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:21 AM
भारत का इतिहास विकृत करने वालों में एक अंग्रेज जेम्स मिल का नाम प्रसिद्ध है. उसके लिखे को प्रमाणिक माना जाता है. ज़रा देखे कि वह स्वयं अपने लिखे इतिहास की भूमिका में अपनी नीयत को स्पष्ट करते हुए क्या कहता है. वह कम से कम एक बात तो सच लिख रहा है कि ये लोग ( भारतीय ) संसार में सभ्य समझे जाते हैं, ये हम लोगों को असभ्य समझते है. हमें इन लोगों का इतिहास इस प्रकार से लिखना है कि हम इन पर शासन कर सकें.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:21 AM
इस कथन से तीन बातें स्पष्ट हो जाती हैं कि (१) सन 1800 तक संसार में भारतीयों की पहचान सभ्य समाज के रूप में थी. इस तथ्य को तो हम नहीं जानते न ? (२) तब तक भारत के लोग इन अंग्रेजों को असभ्य समझते थे जो कि वे थे भी. गो मांस खाना, कई- कई दिन न नहाना, स्त्री- पुरुष संबंधों में कोई पवित्रता नहीं, झूठ, ठगी, रिश्वत आदि ये सब अंग्रेजों में सामान्य बात थी जबकि आम भारतीय तब बड़ा चरित्रवान होता था. अधिकाँश लोग शायद मेरे बात पर विश्वास नहीं करेंगे, अतः इस बात के प्रमाण के लिए 2 फवरी, 1835 का टी. बी. मैकाले का ब्रिटिश पार्लियामेंट में दिया वक्तव्य देख लें. उसे कभी बाद में उधृत करूंगा. (३) तीसरा महत्वपूर्ण निष्कर्स मिल के कथन से यह निकालता है कि उसने भारतीयों को गुलाम बनाए रखने की दृष्टी से जो भी लिखना पड़े वह लिखा. यानी सच नहीं लिखा.भारतीयों में हीनता जगाने, गौरव मिटाने की दृष्टे से लिखा.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:22 AM
इसी प्रकार उन्होंने भारत के सभी महल, किले, नगर, भवन भारतीयों की निर्मिती न बतला कर अरबी अक्रमंकारियों की कृती लिखा और हम भोले भारतीयों ने उसी को सच मान लिया. इतना तो सोच लेते कि जो हज़ारों साल से इस भारत भूमि में रह रहे हैं, उनके कोई भवन, महल, किला हैं कि नहीं ? जिन विदेशी आक्रमक अरब वासियों को भारत के सारे वास्तु का निर्माता बतला रहे हैं उन्हों ने अपने देश में ऐसे कितने, कौनसे भवन बनाए ? वहाँ क्यूँ नहीं बनाए ? इसी प्रकार हमारा इतिहास झूठ, विकृतीकरण व विदेशी षड्यंत्रों का शिकार है. कथित भारतीय इतिहासकार भी यूरोपीय झूठे लेखकों के लिखे पर संदेह योग्य स्वाभिमानी व दूरद्रष्टा नहीं थे. ऐसे ही लोगों द्वारा 1857 के महान स्वतन्त्रता संग्राम के सत्य को दबाया, छुपाया गया है.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:22 AM
अतः यदि सदीप्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के सच्चे इतिहास को जानना है तो वीर सावरकर के लिखे 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास को पढ़ना होगा. यदि संक्षेप में सारे तथ्यों और प्रमाणों को जानना चाहें तो डा. सतीश मित्तल जी की लिखित पुस्तिका पढ़े जो कि '' सुरुचि साहित्य प्रकाशन, नई दिल्ली- 55'' से प्राप्त हो जाएगी.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:22 AM
इतना तो हम सब को समझने का प्रयास करना ही चाहिए कि हमारे सही, सच्चे इतिहास में कुछ ऐसी ताकत है कि जिस से हम संसार का सिरमौर बन सकते हैं, अपनी ही नहीं तो दुनिया की समस्याओं को हल कर सकते हैं. तभी तो अंग्रजों ने १०० साल से अधिक समय तक अथक प्रयास करके हमारे आतीत को विकृत किया. किसी अज्ञात विद्वान ने कहा है कि यदि किसी देश को तुम नष्ट करना चाहते हो तो उसके अतीत को नष्ट करदो, वह देश स्वयं नष्ट हो जाएगा. क्या हमरे साथ यही नहीं हुआ और आज भी हो रहा है.

miss.dabangg
24-05-2011, 01:23 AM
तो आईये हम अपने अतीत को सुधारने के क्रम में अपने उन शहीदों को याद करें जो इस लिए बलिदान हो गये कि हम सुखी, स्वतंत्र रह सकें. 1857 की अविस्मर्णीय क्रान्ति और उसके क्रांतिकारियों की याद में अपनी आँखों को नम हो जाने दें और सकल्प लें कि उनके बलिदानों से प्ररेणा लेकर हम आज के इन विदेशी आकाओं के पिट्ठुओं से देश को स्वतंत्र करवाने के लिए संघर्ष करेंगे, भारत को भिखारी बना रहे बेईमानों के चुंगल से स्वतंत्र होने के लिए एक जुट होकर कार्य करेंगे. विश्वास रखें कि हमारे सामूहिक संकल्प से सबकुछ सही होने लगेगा. ध्यान रहे कि हमें टुकड़ों में बांटने के षड्यंत्र अब सफल न होने पाए.
वन्दे मातरम !

jai_bhardwaj
24-05-2011, 01:30 AM
बहुत ही यथार्थपरक और जीवंत प्रविष्टियाँ की हैं आपने रिया / कृपया विषय पर निरंतरता और गंभीरता बनाए रखें /:thanks:

prashant
24-05-2011, 06:29 AM
इस कथन से तीन बातें स्पष्ट हो जाती हैं कि (१) सन 1800 तक संसार में भारतीयों की पहचान सभ्य समाज के रूप में थी. इस तथ्य को तो हम नहीं जानते न ? (२) तब तक भारत के लोग इन अंग्रेजों को असभ्य समझते थे जो कि वे थे भी. गो मांस खाना, कई- कई दिन न नहाना, स्त्री- पुरुष संबंधों में कोई पवित्रता नहीं, झूठ, ठगी, रिश्वत आदि ये सब अंग्रेजों में सामान्य बात थी जबकि आम भारतीय तब बड़ा चरित्रवान होता था. अधिकाँश लोग शायद मेरे बात पर विश्वास नहीं करेंगे, अतः इस बात के प्रमाण के लिए 2 फवरी, 1835 का टी. बी. मैकाले का ब्रिटिश पार्लियामेंट में दिया वक्तव्य देख लें. उसे कभी बाद में उधृत करूंगा. (३) तीसरा महत्वपूर्ण निष्कर्स मिल के कथन से यह निकालता है कि उसने भारतीयों को गुलाम बनाए रखने की दृष्टी से जो भी लिखना पड़े वह लिखा. यानी सच नहीं लिखा.भारतीयों में हीनता जगाने, गौरव मिटाने की दृष्टे से लिखा.


आपका यह सूत्र अच्छा है लेकिन आपने एक प्रमाण दी की बात कही है/यदि वह भी दें तो ज्यादा जानकारी मिलेगी/

Sikandar_Khan
24-05-2011, 06:38 AM
रिया जी
एक बेहतरीन सूत्र रूबरू कराने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया |

abhisays
24-05-2011, 08:20 AM
बहुत ही बढ़िया रिया जी, आपने शुरुआत एक शानदार सूत्र से की है, आपकी आगे की प्रविस्तियो और सूत्रों का इंतज़ार रहेगा. :bravo::bravo::bravo:

khalid
24-05-2011, 02:45 PM
:bravo::bravo:
बहुत अच्छी जानकारी हैँ रिया जी