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View Full Version : सच और झूठ की ये रस्साकशी


ndhebar
31-05-2011, 06:18 PM
सच और झूठ की ये रस्साकशी . ...



सत्य की खोज हर कोई करना चाहता है पर सत्य को मानना नहीं चाहता.
सत्य की परिभाषा हर एक के लिए अलग अलग है, क्योंकि हर व्यक्ति का जीवन के प्रति
अपना व्यक्तिगत नजरिया होता है, अतः उसके लिए सत्य भी अलग शब्दों में ढला होगा...................

ndhebar
31-05-2011, 06:20 PM
ये बात बचपन से ही सुनते आये हैं कि 'अंत में सत्य की विजय होती है '. यह भारत की सदियों पुराणी धारणा है जो आज भी कायम है और इसकी उपस्थिति देखी या महसूस की जा सकती है. वैसे तो जीवन का प्रत्येक पहलू या प्रकृति में मौजूद हर सजीव या निर्जीव वस्तु दो पहलू लिए है, एक अच्छा और दूर बुरा. ठीक सिक्के के दो पहलुओं की तरह. 'सच' का भी बुरा पहलू है 'झूठ '. अंत में सत्य की विजय से तात्पर्य यही निकलता है की झूठ पर सच भारी पड़ता आया है. यही कारण है कि सच को झूठ के बोझ तले एक लम्बे समय तक दबे रहना पड़ता है और बेहद मशक्कत के बाद ही बाहर निकल पता है.

ndhebar
31-05-2011, 06:21 PM
ये पहलू बेहद गौर करने लायक है, जिसके अनुसार 'अंत में सत्य कि विजय होती है'. सच क्या है? इसके बारे में कुछ शब्दों में कहना अथवा उसे एक निश्चित परिभाषा में सीमित कर देना काफी कठिन है क्योंकि सच हमेशा सच रहता है पर इसके लिए एक सच यह भी है कि जो बात एक के लिए सच है वही बात दूसरे के लिए भी सच हो यह आवश्यक नहीं. किन्तु जिस व्यक्ति के लिए जो सच पूरी निष्ठा व ईमानदारी के साथ जिया गया है वह झूठ हो ही नहीं सकता.

ndhebar
04-06-2011, 12:15 AM
सच का भारतीय सच:- भारतीय मानसिकता दोहरेपन की शिकार है क्योंकि यहाँ जिन बातों का व्यवहारिक उपयोग नहीं करना होता उन्ही बातों को उपदेश या नीति वाक्यों में ढाल दिया जाता है. पूरी सामाजिक व्यवस्था यह जानती है की झूठ बोलना पाप है. किन्तु झूठ धड़ल्ले से बोला जाता है और झूठ इतना अधिक व्यवहार में लाया जाता है कि वह सामाजिक अनिवार्यता बन गया है. ऐसे वातावरण में सत्य के लिए स्थान शेष नहीं रहता. भारत जिन उच्चा-आदर्श मूल्यों की बात करता है यदि उन्हें स्थापित किया जाये तथा व्यवहार में लाया जाये तो एक ऐसे समाज की तस्वीर बनती है जिसमें अच्छाई एवं आदर्शों के अलावा कुछ भी न होगा. पर तस्वीर इसके ठीक विपरीत है. व्यवहारिकता में यहाँ इन सब बातों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं है यही कारण है कि सच झूठ एवं भ्रम के गुरुत्व के नीचे दबा पड़ा रहता है और काफी परिश्रम के बाद ही निकालने पर ही बाहर आ पाता है.भारतीय समाज में व्याप्त इसी दोहरेपन के कारण आम आदमी यह जानते हुए भी कि सच बोलना चाहिए वह सच से दूर तक वास्ता नहीं रखना चाहता. जब सच के प्रति यह अपच की भावना है तो सत्य को स्वीकार करने का प्रश्न ही नहीं उठता. इसके अलावा ये सवाल भी उठता है कि सच इतना दुरूह क्यों है? जबकि वह सहज व दो टूक हुआ करता है. सच कि इस सहजता को पचा पाना भारतीय मानसिकता के लिए सदा ही मुश्किल रहा है.जिन उच्च आदर्शों या नैतिकता कि बात ढ़ोल बजा-बजा कर करते हैं क्यों उसको आम आदमी व्यवहारिकता में लेन से परहेज करता आया है?

jai_bhardwaj
04-06-2011, 12:47 AM
सच का भारतीय सच:- भारतीय मानसिकता दोहरेपन की शिकार है ----------------------------------- भारत जिन उच्चा-आदर्श मूल्यों की बात करता है यदि उन्हें स्थापित किया जाये तथा व्यवहार में लाया जाये तो एक ऐसे समाज की तस्वीर बनती है जिसमें अच्छाई एवं आदर्शों के अलावा कुछ भी न होगा. पर तस्वीर इसके ठीक विपरीत है. व्यवहारिकता में यहाँ इन सब बातों को कोई भी अपनाने को तैयार नहीं है यही कारण है कि सच झूठ एवं भ्रम के गुरुत्व के नीचे दबा पड़ा रहता है --------

आपने सच ही लिखा है बन्धु कि भारतीय मानसिकता दोहरेपन की शिकार है किन्तु क्या यह विचार किया कि यह भारतीय हैं कौन .... हम आप और हमारे जैसे अन्य संगी साथियों का वृहद् जन समुदाय ही तो / जिस तरह से हम अपने किसी उच्च पदस्थ या उज्जवल व्यक्तित्व वाले पूर्वज का विवरण समाज में अनायास बारम्बार देते रहते हैं उसी प्रकार भारतीय परम्पराओं और मान्यताओं का वर्णन भी हम करते रहते हैं/ पहले हमारे पूर्वज इन सनातन सिद्धांतो को आजीवान सम्मान देते थे और इनको आचरित भी करते थे किन्तु अब हम इन सिद्धांतों, परम्पराओं और मान्यताओं को मात्र अपने बच्चों को सीख देने के लिए उल्लिखित करते हैं और स्वयम के जीवन मे इनसे उलट आचरण करते हैं और दुहाई देते हैं इन्ही संतानों के पालन पोषण और शिक्षा की /
सच तो सदैव सच ही रहता है / यह भी सच है कि सभी का सच पृथक पृथक होता है / फिर वास्तविक सच क्या है ?
प्राकृतिक सच ही वास्तविक सच है / सूरज, चन्द्रमा, नदिया, सागर, पर्वत, मरुस्थल और हरी भरी धरती ................ ये सब सच ही तो हैं / रक्त के सम्बन्ध सच हैं / यह जीवन सच है /
प्रदर्शनप्रियता, अतिमहत्वाकांक्षा और सबसे आगे रहने की लालसा ही तो झूठ को प्रोत्साहित करती हैं / धन्यवाद /(ये नितांत व्यक्तिगत विचार हैं / मत भिन्नता संभव है )

prashant
04-06-2011, 06:50 AM
इसे ही कथनी और करनी में अंतर कहते हैं/
जब हम दूसरों को गलत करते हुए देखते हैं तो हम तुरंत बोल देते हैं की ऐसा नहीं करना चाहिए/
लेकिन जब हमारी बारी आती है तो वास्तविकता से मुंह फेर कर,नियति को दोष देते हुए वही कार्य करते हैं जिसे दुसरो को करने से रोका था/

ndhebar
05-06-2011, 09:34 AM
सच का शब्द सौष्ठव :- सच कुछ ही शब्दों व बहुत छोटे आयाम में सिमटा रहता है. यह वस्तुतः शब्द सौष्ठव रहित, स्वर मधुर्यहीन, अलंकारिक भाषा व अतिश्योक्ति से परे सरल व सपाट शब्दों में बोला जाता है.यही सच का यथार्थ है. जबकि झूठ इन सब शस्त्रों से सज्जित होता है. अतः गीत-संगीत की कर्णप्रिय स्वरलहरी की तरह सब के कानों में रस घोलता सा प्रतीत होता है. सच जो सभी भी सुनने में अच्छा नहीं लगता, यदि जोर से बोला जाये तो कान के परदे फाड़ देने वाला लगता है और धीरे स बोला जाये तो कोई उसे मानने को तैयार नहीं होता है. जबकि धीरे से बोला गया झूठ भी लोगों के कान खड़े कर देने के लिए काफी है और चिल्लाकर बोले गए झूठ को हर कोई विश्वासपूर्वक सुनना चाहता है.झूठ के विषय में एक बात और भी प्रसिद्ध है बार-बार बोला गया झूठ स्वतः ही सत्य के रूप में प्रतिष्ठित हो जाता है. ये बाते झूठ के सामने सच का कद बौना करने के लिए काफी हैं. इसकाकारण बाह्य न होकर आंतरिक ही है.इसके मूल में हजारों सालों पुरानी वह धारणा है जिसने सच के विषय में यही स्थापित किया है कि ' अंत में सत्य कि विजय होती है '. कोई भी धारणा या मान्यता सभ्यता तथा संस्कृति के विकास के साथ-साथ जनमानस के दिलों-दिमाग में इतनी गहरी जड़ें जमा चुका होता होता है कि वह धारणा या विचार सब प्रकार के तर्कों से परे जो जाता है और सामान्य व्यवहार की बात बन जाता है.

ndhebar
17-06-2011, 05:19 PM
शक्तिशाली सच या झूठ :- जैसे कि सब जानते हैं कि झूठ सब को आकर्षित करता है, क्योंकि यह इन्सान के अहम् को सहलाता है और उसे और अधिक महिमामंडित करता है. झूठ मानव कि साधारण से साधारण कमजोरी को भी आवृत करता है जबकि सच उसे अनावृत करता है. अतः इन्सान का अहम् आहत हो जाता है.यही कारण है कि यदि मानव को उसकी खामी बताई जाये तो वह उग्र हो जाता है. किसी भी व्यक्ति के नैतिक चरित्र पर अंगुली उठाने का मतलब उसकी प्रतिष्ठा की धज्जियां उड़ाना और यह व्यक्ति की स्वभावगत कमजोरी या गलती को भी उसके चरित्र से जोड़कर देखा जाता है. यही कारण है कि वह सबके सामने स्वयं के विषय में सच को आने ही नहीं देना चाहता. इस शर्मिंदगी से या अपमान से बचने के लिए वह ' सच' पर पर्दा पड़े रहने देना चाहता है. उक्त परिस्थिति में जो झूठ या भ्रम खड़ा किया जाता है लोगों को उसे ही सच समझने कि आदतपड़ जाती है और सच हाशिये पर चला जाता है.
भारतीय सामाजिक तथा राष्ट्रीय चरित्र में सच से परहेज रखना एक आम बात है. ऐसे में प्रथम बार में देखी या सुनी जाने वाली सच्चाई पर कोई भी विश्वास नहीं करना चाहता. ऐसा माना गया है कि सरलता से प्राप्त होने वालीवस्तु का कोई मूल्य नहीं होता और सच कि विडंबना ये है कि ये सहजता से प्राप्त हो जाता है.

ndhebar
28-07-2011, 08:28 PM
सच कड़वा होता है और झूठ लोगों को मिठास से भरी गोली कि तरह लगता है. सच यथार्थ है और जीवन के यथार्थ से दूर भागने कि हमारी पुरानी आदत है.झूठ सच का भ्रम बनाये रखते हुए मनुष्य के अहम् को सहलाता है अतः सच कि अपेक्षा अधिक सहमतिपूर्ण लगता है.कहते है कि प्रकृति न्याय करती है अतः सच को कितना भी गहरे दफ़न करो या करने कि कोशिश करो वह एक समय बाहर निकल ही आएगा और अंत में विजयी होगा. सच के इस सच को हम चाहे या न चाहे स्वीकार करना ही होगा.

बकौल दुष्यंत कुमार:-
" हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग
रो-रो के बात कहें कि आदत नहीं रही."

Ranveer
08-09-2011, 12:10 AM
achha sutr .... ....Vastav me ......sach koi aadarsh nahi hai.

abhisays
08-09-2011, 07:36 AM
वास्तविकता के काफी नजदीक.. :cheers::cheers: