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View Full Version : क्या है प्रेम (What is love)


deepkukna
05-06-2011, 06:16 AM
प्रेम क्या है । इस सवाल ने मुझे बहुत परेशान कर रखा है जिस तरह से लोगो को प्यार को आज के युग मेँ प्यार हो रहा हैँ उससे लगता है कि प्यार की समझ धीरे-धीरे खत्म होती जा रही! मेरी जितनी समझदारी ओर मेरे अनुभव के अनुसार जेसा मैने देखा है उसके हिसाब से प्रेम को कुछ लाइनो मेँ लिख रहा हुँ

deepkukna
05-06-2011, 06:29 AM
"उम्र की बदिँशो से आजाद है प्रेम..
"समाज की नजर मेँ पाप है प्रेम..
"परमात्मा के सबसे निकट है प्रेम..
"आदमी का आदमी से समबन्ध है प्रेम..
"दौ दिलो को जोडता है बस प्रेम..
"पतझड मे भी फुल खिलाता है प्रेम..
"रोते हुये बच्चे कौ हंसाता है प्रेम..
"सुबह की लाली है प्रेम..
"बादलो से जो बरसता है वो अर्मत है प्रेम..
"प्रेम शाक्षत है, अनश्रर हैँ, सनातन सत्य है प्रेम, ये धरती , अम्बर , सारा ससाँर सब है सिर्फ प्रेम..

deepkukna
05-06-2011, 06:35 AM
"दरअसल प्रेम मुकबुधिर, ओर अधाँ होते हुये भी इतना शक्तिशाली है जिसका असर हर इन्सान की जिदगीँ मेँ बरसो तक रहता है"

deepkukna
05-06-2011, 07:25 AM
दोस्तो प्रेम एक शब्द नहीँ, बल्कि एक भावना है अहसास है! यह जिस दिल मे उपजता है तो सुख-दुख,लाभ-हानि,मान-अपमान,अपना-पराया का भेद मिटा देता हैँ. प्रेम सबके लिये हर समय एक जैसा रहना चाहिये! एक प्रेम ही ऐसा है जिससे दुश्मन भी अपने हो जाते है, बिना प्रेम के जीवन तौ नीरस है प्रेम है तो खुशी होती है ओर चेहरे पर मुस्कराहट बनी रहती हैँ..

deepkukna
05-06-2011, 07:29 AM
प्रेम है तो हम जीवन जीते है नहीँ तो हम काटते है जहाँ पुरी मेहनत ओर अच्छी भावना से प्रेम पैदा होता हैँ वह जीवन तौ खुशियो से भर जाता हैँ

deepkukna
05-06-2011, 07:32 AM
तभी तो कबीरजी ने कहा है...
"प्रेम न बाङी उपजै,
"प्रेम न हाट बिकाय,
"राजा प्रजा जो चाहे,
"शीश देये ले जाये

deepkukna
05-06-2011, 08:02 AM
प्लीज दोस्तो अगर आपके पास प्रेम के बारे मे ओर जानकारियाँ है तौ जरुर पोस्ट करे

deepkukna
05-06-2011, 08:05 AM
प्रेम क्या है एक ऐसा प्रशन जिसके लिये हर किसी के पास अपना अलग-अलग उतर है प्लीज अपने विचार जरुर रखे

deepkukna
05-06-2011, 08:08 AM
मै सोच रहा हुँ कि क्या प्रेम वास्तव में ऐसा है जिसकी कोई नियत परिभाषा ही नहीँ बन पाई हैं

deepkukna
05-06-2011, 08:11 AM
क्या प्रेम सचमुच ही ऐसा हैँ, कि इसका स्वरुप देशकाल और परिस्थिती के अनुसार परिवर्तन होता रहता है

deepkukna
05-06-2011, 08:14 AM
क्या प्रेम का अपना कोई स्वरुप , अपनी कोई पहचान नहीँ है

deepkukna
05-06-2011, 08:16 AM
सुत्र पसंद आने पर प्लीज ध्नयवाद जरुर लिखे

deepkukna
05-06-2011, 08:20 AM
यह तो प्रेम नही हो सकता..प्रेम तो स्वयं एक सम्पुर्ण भाव हैँ प्रेम किसी के चरित्र का हिस्सा नही वरन स्वंय मेँ एक पुर्ण चरित्र है

deepkukna
05-06-2011, 08:24 AM
प्रेम तो कृष्ण हैं, वह कृष्ण है जिनकी एक आवाज से गोपियाँ, गवाले और गायें सब के सब चले आते थे

deepkukna
05-06-2011, 08:26 AM
प्रेम तो ईसा है वह ईसा जो मरते समय भी मारने वाले के लिये भी जीवनदान की दुआ करता हैँ

abhisays
05-06-2011, 08:45 AM
बहुत बढ़िया दीप जी.. प्रेम को काफी अच्छी तरह परिभाषित कर रहे हैं आप.

:cheers:

deepkukna
05-06-2011, 11:16 AM
दोस्तो प्रेम तो उस प्रकाश कि तरह है जिस पर चिपकर कीट पतंगे अपनी जान दे देते है लेकिन उनसे दुर नही होते

deepkukna
05-06-2011, 11:19 AM
प्रेम, मोहब्बत, ओर इशक परस्पर सामानार्थी नहीँ हैँ! ब्लकि इनके अपने अर्थ ओर अपनी मुल भावनाये है

deepkukna
05-06-2011, 11:22 AM
प्रेम शक्ति चाहता है..
प्यार को अपनी अभिळक्ति के लिये काया चाहिये..
मोहब्बत मार्धुय चाहता है...
इशक आकर्षण चाहता हैँ

deepkukna
05-06-2011, 02:39 PM
""आज का प्यार""
'कागजी प्यार करके मैने तुमसे क्या पाया, सिवाय तेरे प्रेमपत्र पढकर अपने दिल को बहलाया....
'आज के प्रेमियो को जब मै देखता हुँ, तो अपने आप को देख कर पछताता हुँ'..

deepkukna
05-06-2011, 02:47 PM
'झुठे वादो पे मैने पाया नहीँ बहुत कुछ खोया है, तुम तो शादी करके खुश हो ली लेकिन मेरा मन आज तक रोया है....
'आज भी तुम्हारे लिखे खत कागजो की पोटली से निकालकर पढ लेता हू., कुँवारा ही मरना लिखा था किस्मत को दोष देकर खत समेट लेता हुँ..

deepkukna
05-06-2011, 02:49 PM
दोस्तो सुत्र के बारे मे अपने विचार जरुर लिखे

jai_bhardwaj
05-06-2011, 06:44 PM
सूत्र की आत्मा अत्यंत हृदयस्पर्शी है किन्तु प्रस्तुतीकरण (एक एक पंक्ति की प्रविष्टियाँ) अत्यंत पीड़ा कारक हैं /

प्रेम प्रदर्शन का विषय नहीं है / प्रेम तो मस्तिष्क में उभरे किसी के चित्र के लिए उत्पन्न होने वाले संवेगों की लहरें मात्र हैं जो किसी भी प्राणी के अंतर्मन को लगातार भिगोती रहती हैं और फिर उसका मस्तिष्क इन्ही लहरों के दबाव में कार्य करने लगता है / यह दबाव सकारात्मक हो सकता है और नकारात्मक भी / सभी कुछ समय-स्थान-स्थिति के अनुरूप होता है /

प्रेम केवल किसी अपने के प्रति ही नहीं उपजता बल्कि यह किसी भी रिश्ते ( माँ, पिता, बहन, भाई, पुत्र, पुत्री, पत्नी, पति, प्रेयसी अथवा प्रेमी) , प्राणी (पालतू पशु, पक्षी इत्यादि) अथवा किसी स्थान विशेष के प्रति भी ऐसे ही संवेगों का ज्वार उमड़ उठता है /

इन संवेगों की अधिकता प्राणी को मानसिक रोगी बना देता है / अतः प्रेम की राह में चल रहे पथिकों को अपनी मानसिक दृढ़ता को नहीं खोना चाहिए /
(ये व्यक्तिगत विचार हैं अतः वैचारिक मतभेद संभव हैं/ धन्यवाद )

deepkukna
05-06-2011, 06:54 PM
आगे कभी किसी हसीना पे नही विशवाश करुगां
फिर इस युग पर हसंता हु कि क्या इस युग मै किसी से प्यार करुगाँ

deepkukna
05-06-2011, 06:58 PM
'मुझसे तो आज के प्रेमी अक्लमंद निकले..
'जो कोरे लिखे कागजो पर ना फिसला..
'इस युग का प्रेमी तौ प्यार की चिठठी बदन पे लिख डालता है..
'मेरी तरह कागज पे लिखे प्यार का रोग नहीँ पालता है..

deepkukna
05-06-2011, 07:01 PM
"इसलिये कोई प्रेमिका अपने प्रेमी को नही भुला पाती है"
"बदन पर चिठठी देखकर उसे अपने प्रेमी की याद आती है"

deepkukna
05-06-2011, 07:04 PM
"काश मै भी उसके बदन पर चिठठी लिख डालता".....
युँ कुवाराँ ना घुमता आज अपने छोटे-छोटे बच्चो को पालता

deepkukna
05-06-2011, 08:50 PM
"""""इशक कमीना कैसे हो गया""""दोस्तो जी हा मै यहा आपको बताऊगा कि किस तरह से इशक कमीना या इशक करने वाले कमीने हो गये

Ranveer
05-06-2011, 08:53 PM
प्रेम--

सामान्य - वह मनोवृत्ति जिसके अनुसार किसी वस्तु या व्यक्ति आदि के संबंध में यह इच्छा होती है कि वह सदा हमारे पास या हमारे साथ रहे, उसकी वृद्धि, उन्नति या हित ही अथवा हम उसका भोग करें । वह भाव जिसके अनुसार किसी दृष्टि से अच्छी जान पड़नेवाली किसी चीज या व्यक्ति को देखने, पाने, भोगने, अपने पास रखने अथवा रक्षित करने की इच्छा हो । स्नेह । मुहब्बत । अनुराग । प्रीति ।

विशेष— परम शुद्ध और विस्तृत अर्थ में प्रेम ईश्वर का ही एक रूप माना जाता है ।
इसलिये अधिकांश धर्मों के अनुसार प्रेम ही ईश्वर अथवा परम धर्म कहा गया है ।
हमारे यहाँ शास्त्रों में प्रेम अनिवर्चनीय कहा गया है और उसे भक्ति का दूसरा रूप और मोक्षप्राप्ति का साधन बतलाया है ।

फ्रायड के मुताबिक प्रेम सिर्फ यौन संवेगों की अभिव्यक्ति है।
ये यौन संवेग शरीर में कुछ रासायनिक क्रियाओं और तनाव को जन्म देते हैं।
इस तनाव या यौन इच्छा से मुक्ति के लिए मनुष्य यौन संबंध बनाता है, मनुष्य की अकेलेपन की भावना और एकात्म द्वारा उससे उबरने की तीव्र इच्छा ही प्रेम को जन्म देती है।
किसी के प्रेम में इतना डूब जाना कि सारी दुनिया को भूल जाओ, आपके प्रेम की गहराई का नहीं, बल्कि इससे पहले के अकेलेपन की निशानी है।

deepkukna
05-06-2011, 08:53 PM
इशक कमीना या आशिक कमीने

deepkukna
05-06-2011, 08:57 PM
"ढाई अक्षर प्रेम के इस पक्तिँ के पिछे बेशुमार बाते है इशक खुदाई है, इशक इबादत है, इशक ईमान है, इशक ही दुनिया है ओर इशक ही जहान है

deepkukna
05-06-2011, 09:03 PM
दोस्तो या फिर इशक त्याग का दुसरा नाम है ओर भी न जाने कितने मतलब बताये है इशक के..न जाने कितने नामो से नवाजा है मोहब्बत को

deepkukna
05-06-2011, 09:05 PM
प्लीज सुत्र के बारे में आपके पास जो भी जानकारी है सहयोग जरुर दे

Ranveer
05-06-2011, 09:06 PM
अरे जनाब सिर्फ पोस्ट ही बढ़ने में लगे हैं |:lol:
कुछ काम की बात तो बताइये :crazyeyes:

deepkukna
05-06-2011, 09:10 PM
"ढाई आखर प्रेम के पढै सो पंडित होय"..
गोपिया, राधा , मीरा, रैदास, मलिक मुहम्मद जायसी आदि वास्तव मेँ प्रेम के ढाई आखर पढ कर पडिँत हो गये थे

jitendragarg
05-06-2011, 10:33 PM
दीप भाई, इतेक सारी बाते लिख दिए, पर इन कहावतों पर अपना खुद का नजरिया भी रखिये, सूत्र और बेहतर हो जायेगा.

एक सुझाब है, चाहे तो अमल करे. रोज एक कहावत और उसके बारे में अपनी विचार लिखे और सभी से उनके विचार मांगे. सभी मिल बाँट कर काम करेंगे तो ज्यादा मजा आएगा, और अपना नजरिया भी बेहतर होगा. क्या ख्याल है?

deepkukna
06-06-2011, 05:25 AM
दोस्तो यह तो मैने पहले भी लिखा था कि मुझे सहयोग करे मै नया हू अपना विचार जरुर साझां करे

deepkukna
06-06-2011, 05:32 AM
बाकी रहा प्रेम के बारे मेँ मेरा विचार...
21 शताब्दी मे अच्छी सोच ओर भावना वाला प्रेम लगभग ख्तम हो गया है दोस्तो प्रेम ऐसी तो कोई चीज है नही जौ किया जाये यह तो हो जाता है चाहे वह अमीर हो, गरीब हो, सुदंर होँ.। यह ना तौ रगँ रुप देखता है ओर नाही ऊचं नीच

deepkukna
06-06-2011, 05:36 AM
मेरा विचार.. प्रेम कभी भी, कहीँ भी, किसी से हो सकता यह जरुरी नही कि वह लडका हो या लडकी है यह तो कोनसे भी प्राणी, जीव पेड पोधो से भी हो सकता है

deepkukna
06-06-2011, 01:58 PM
"इशक कमीना"
सगीँत प्रेमियो को याद होगा एक फिल्मी गीत मे कहा गया है "इशक खुदाई रब ने बनाई" कविताओ , गीतो ओर गजलो मेँ इशक को पुजा जाता था, लेकिन आज के युग मै इशक का स्वरुप ही बदल गया है अब मोहब्बत एक तिजारत बन गई है आजकल आम आदमी के विचार भी इशक के प्रति बदलते जा रहै है ऐसे शख्स इशक का व्यापार करने लगे है

deepkukna
06-06-2011, 01:59 PM
दोस्तो इशक के प्रति अपने भी विचार रखे

deepkukna
07-06-2011, 05:31 AM
कहते है कि जिदंगी में सच्चा प्यार एक बार होता है! लेकिन नये आशिको ने तो इस परिभाषा को ही बदल दिया है! जिदगीँ मे एक के रहते दुसरो से इशकिया करना आज के दौर का फैशंन बन गया है

deepkukna
07-06-2011, 05:34 AM
21वी शताब्दी मे पता नही इशक को क्या क्या नाम दे रखा है! अब तो इशक से मीठा कुछ रहा ही नही रगीँन पार्टियो मे तो "इशक कमबख्त" ओर "इशक कमीना हो गया है

deepkukna
07-06-2011, 05:38 AM
इशक आजकल त्याग का नही वासना का दुसरा नाम बन गया है! अब तो इशक को बाजारु बनाना शुर कर दिया है सवाल है कि अगर इशक खुदाई है ओर इसे रब ने बनाया है तौ यह इतना "कमीना" कैसे बन गया

deepkukna
07-06-2011, 05:41 AM
दरअसल अब के दोर मे शार्टकट से प्रसिधि पाने की होड है, सो गीतकारो ने भी गालियो के जरिये इशक की नई इबारत लिखने की योजना बनाई है

deepkukna
07-06-2011, 05:44 AM
आजकल कवि और शायर भी वैसा लिख रहै है जैसा लोग सुनना ओर पढनां पसंद करते है तभी तो ""दिल एक मन्दिर मेँ था वह अब चोली मे आ गया है""

deepkukna
07-06-2011, 05:49 AM
आज जिसे देखो इशक फरमाता घुम रहा है, आज कै युवा वर्ग के अलावा प्रोढ भी अपनी भुमीका बङी ईमानदारी से निभा रहै है.

deepkukna
07-06-2011, 05:53 AM
आज प्रोढो मेँ घरवाली ओर बाहरवाली का सिदान्त खुब चल रहा है ओर महिलाओ मे भी घरवाला- बाहरवाला का सिदाँत चल रहा है नतीजा परिवार टुटने के कगार पर है ओर आपकै सामने है

deepkukna
07-06-2011, 05:54 AM
"क्या भद्रजन इस पर सोचने की फुर्सत निकालेगेँ