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View Full Version : ग़ज़ल


Dr. Rakesh Srivastava
22-06-2011, 04:42 PM
आईना आज की तस्वीर भर दिखाता है ;
हुस्न की शमा,उमर भर नहीं जलती यारों .
जिन्हें खुशफ़हमी है, कोई तो उन्हें समझाए ;
नाव कागज की देर तक नहीं चलती यारों .
भीड़ में पत्थरों की , दिल को मत तलाश करो ;
रुई के ढेर में सुई नहीं मिलती यारों .
जो झुक के रहते , उन्हें भूल से कमतर न समझ ;
ऐसी ऊंचाई , बड़े सब्र से मिलती यारों .
यूँ तो हर चीज मयस्सर है , जमाने भर की ;
कमी सुकून की फिर भी बहुत खलती यारों .
हर इक ज़मीं से , उसका आसमान रूठा है ;
सुना है दोनों चीज , ना कहीं मिलती यारों .
बन खड़े होते हैं , जब ताज महल , देखें सभी ;
नीव में खप गईं ईंटें , नहीं दिखती यारों .

रचनाकार ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ,इंडिया .

Nitikesh
22-06-2011, 07:20 PM
राकेश जी उम्मीद करता हूँ की अब आपको आपकी गजल ज्यादा आकर्षक लग रही होगी!
यह गजल हमारे साथ बांटने के लिए धन्यवाद/