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View Full Version : प्यार की तासीर


Dr. Rakesh Srivastava
05-07-2011, 05:47 PM
क्यों कोई अच्छा लगने लगता है , आहिस्ता - आहिस्ता ;
खुमार इश्क का चढ़ता है क्यों , आहिस्ता - आहिस्ता .
सफर में ज़िन्दगी के,लोग तो बहुत मिलते ;
दिल में बस जाता कोई शख्स क्यों, अहिस्ता - आहिस्ता .
हर घड़ी सजने संवरने का जी क्यों करता है ;
हसीन लगने लगी ज़िन्दगी क्यों , आहिस्ता - आहिस्ता .
पाँव क्यों इन दिनों , ज़मीन पर नहीं टिकते ;
पंख क्यों उगने लगे मेरे , आहिस्ता - आहिस्ता .
किसी का इंतज़ार , हर घड़ी क्यों रहने लगा ;
जवाब देने लगा सब्र क्यों , आहिस्ता - आहिस्ता .
दिन गुज़र जाता , नए हवा महल गढ़ने में ;
रात में नींद क्यों उड़ने लगी, आहिस्ता - आहिस्ता .
क्यों बार - बार खुद को देखता , आईने में ;
किसी का अक्स उसमें उभरता क्यों, आहिस्ता - आहिस्ता .
अभी कमसिन हैं , उनको प्यार की रस्में नहीं आतीं ;
कली बन जाएगी , खिल के गुलाब ,आहिस्ता - आहिस्ता .
आज नेमत मिली जो इश्क की ,जी भर , जी लूँ ;
सुना है , हुस्न बदलता है रंग , आहिस्ता - आहिस्ता .
किसी को रंग के , अपने इश्क से , गर कोई फिरा ;
कोई जायेगा , अपनी जान से , आहिस्ता - आहिस्ता .

रचनाकार ~~ डॉ. राकेश कुमार श्रीवास्तव
लखनऊ , इंडिया .

rafik
28-04-2014, 03:51 PM
आपकी गजल हमारे दिल में बस गयी , आहिस्ता - आहिस्ता .