Dr. Rakesh Srivastava
09-07-2011, 01:42 PM
दुनिया है अगर गीत तो उन्वान है औरत ;
गजलों की पंक्तियों के लिए जान है औरत .
गेसू अगर बिखेरे तो काली घटा छा जाए ;
जूडे में फूल टाँकें तो गुलदान है औरत .
है माँ - बहन किसी की ,किसी की ये महबूबा ;
आशिक के लिए धर्म और ईमान है औरत.
जी भर के खुद को ये कभी भी जी नहीं सकी ;
घर और गृहस्ती पे ही कुर्बान है औरत.
वो आदमी जन्नत की दुआ क्यों भला करे;
किस्मत में जिसकी कोई कद्रदान है औरत.
आईना हर समाज का , हर युग में ये रही ;
पिछड़ी हुई कौमों में परेशान है औरत .
बेबस हो अगर आँख से हों अश्क बरसते ;
तो वायेलिन पर छेड़ी हुई तान है औरत .
कुदरत ने अपना काम इसे जब से था सौपा ;
पुतलों को गढ़ के डाल रही जान है औरत .
रचनाकार ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ,इंडिया. ( उन्वान = शीर्षक )
गजलों की पंक्तियों के लिए जान है औरत .
गेसू अगर बिखेरे तो काली घटा छा जाए ;
जूडे में फूल टाँकें तो गुलदान है औरत .
है माँ - बहन किसी की ,किसी की ये महबूबा ;
आशिक के लिए धर्म और ईमान है औरत.
जी भर के खुद को ये कभी भी जी नहीं सकी ;
घर और गृहस्ती पे ही कुर्बान है औरत.
वो आदमी जन्नत की दुआ क्यों भला करे;
किस्मत में जिसकी कोई कद्रदान है औरत.
आईना हर समाज का , हर युग में ये रही ;
पिछड़ी हुई कौमों में परेशान है औरत .
बेबस हो अगर आँख से हों अश्क बरसते ;
तो वायेलिन पर छेड़ी हुई तान है औरत .
कुदरत ने अपना काम इसे जब से था सौपा ;
पुतलों को गढ़ के डाल रही जान है औरत .
रचनाकार ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ,इंडिया. ( उन्वान = शीर्षक )