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View Full Version : मन पंक्षी


sach_mishra
14-07-2011, 06:05 AM
मन पंक्षी बोले मोहे जाना है एक दिन|
बीत रहे दिन जीवन के गिन गिन|
मन पंक्षी बोले…………………….
क्षणभंगुर संसार में माया डाले हुए है डेरा|
मन पंक्षी तैयार खड़ा है बाधे माथे सेहरा|
कोई न जाने कब हो जाये मनवा एक दो तीन|
मन पंक्षी बोले…………………….
मातु पिता अरु बंधु के रूप में बहुते खेल खेलावय|
आवत खूब हसांवत पंक्षी जावत खूब रुलावय|
यही रीति है एक दिन सबकुछ जाइहै तुमसे छिन|
मन पंक्षी बोले…………………….
श्यामल गौर कृष्ण कंचन विविध रूप धरे रे|
कह ‘सचेन्द्र’ माटी के देहिया काहे रौब करे रे|
पंचतत्व क बनल खिलौना पंच मे होई विलीन|
मन पंक्षी बोले…………………….

MANISH KUMAR
03-08-2011, 06:35 PM
बहुत अच्छी कविता है सचेन्द्र जी.:bravo::bravo: