Dr. Rakesh Srivastava
15-07-2011, 07:43 PM
किसी हसीना पे मर जाना , अच्छा लगता है ;
दिल दे करके , दर्द ले आना , अच्छा लगता है .
सामने वाली खिड़की से , गर चाँद रोज़ निकले ;
छज्जे पर से आँख लड़ाना , अच्छा लगता है .
वो दिल , क्या दिल , जिसके चर्चे दूर तलक ना हों ;
जीवन में इक -आध फ़साना , अच्छा लगता है .
क्या दिन थे , जब ज़र्रा उड़ कर , आसमान तक पहुंचा था ;
आज तलक वो गुज़रा ज़माना , अच्छा लगता है .
उसने मेरे दर से रिश्ता तोड़ दिया , फिर भी ;
उसकी गली से आना - जाना , अच्छा लगता है .
टूटे दिल का दर्द , जुबाँ से रोज छलकता है ;
बाथरूम में बिरहा गाना , अच्छा लगता है .
वो हरजाई चाहे जितनी निकल गयी ,लेकिन ;
उसके बारे में बतियाना ,अच्छा लगता है .
पहले वो ही वो बस अच्छी लगती थी , पर अब ;
अपने दर्द से ग़ज़ल बनाना , अच्छा लगता है .
रचनाकार ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ , इंडिया .
दिल दे करके , दर्द ले आना , अच्छा लगता है .
सामने वाली खिड़की से , गर चाँद रोज़ निकले ;
छज्जे पर से आँख लड़ाना , अच्छा लगता है .
वो दिल , क्या दिल , जिसके चर्चे दूर तलक ना हों ;
जीवन में इक -आध फ़साना , अच्छा लगता है .
क्या दिन थे , जब ज़र्रा उड़ कर , आसमान तक पहुंचा था ;
आज तलक वो गुज़रा ज़माना , अच्छा लगता है .
उसने मेरे दर से रिश्ता तोड़ दिया , फिर भी ;
उसकी गली से आना - जाना , अच्छा लगता है .
टूटे दिल का दर्द , जुबाँ से रोज छलकता है ;
बाथरूम में बिरहा गाना , अच्छा लगता है .
वो हरजाई चाहे जितनी निकल गयी ,लेकिन ;
उसके बारे में बतियाना ,अच्छा लगता है .
पहले वो ही वो बस अच्छी लगती थी , पर अब ;
अपने दर्द से ग़ज़ल बनाना , अच्छा लगता है .
रचनाकार ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ , इंडिया .