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View Full Version : रहनुमाओं की ख़ुशी के वास्ते ...!


Dr. Rakesh Srivastava
18-07-2011, 10:14 PM
तख़्त को यारों रिझाना ही पड़ेगा ;
राग दरबारी सुनाना ही पड़ेगा .
बी सियासत जब भी गुदगुदाएंगी ;
भूल कर गम , मुस्कराना ही पड़ेगा .
कुछ तवायफ हैं , ओ मुजरे भी जरुरी ;
घूम - फिर कर एक को लाना पड़ेगा .
बी सियासत की अदा के तीर खाकर ;
आदतन हमको ही शर्माना पड़ेगा .
हुक्मे ताज , दरबारी या मातमी ;
बस इन्ही रागों को अपनाना पड़ेगा .
पंचमी त्योहार है जब हम सभी का ;
ढूध नागों को पिलाना ही पड़ेगा .
रहनुमाओं की ख़ुशी के वास्ते ;
जीभ को ताले में रख आना पड़ेगा .
नव जवां बी जी को ये मालूम हो ;
एक दिन उनको भी ढल जाना पड़ेगा .

रचनाकार ~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ , इंडिया .
शब्दार्थ ~ तख़्त = सत्ता , बी सियासत = सत्ता प्रमुख .

YUVRAJ
19-07-2011, 07:17 AM
बहुत ही सुन्दर ... :clap:...:clap:...:clap:...:bravo:
क्या यह राजनीतिक व्यंग है !!!

Dr. Rakesh Srivastava
19-07-2011, 08:02 AM
बहुत ही सुन्दर ... :clap:...:clap:...:clap:...:bravo:
क्या यह राजनीतिक व्यंग है !!!
हाँ यह राजनीतिक व्यंग के साथ साथ जन सामान्य की विवशता भी है .

ndhebar
19-07-2011, 08:06 AM
हाँ यह राजनीतिक व्यंग के साथ साथ जन सामान्य की विवशता भी है .

जन सामान्य तो हमेशा ही भेड़ रहा है जिसे गड़ेडीए जब जिधर चाहे हांक दें

YUVRAJ
19-07-2011, 08:07 AM
@Dr. Rakesh Srivastava;सच कहा आपने…:)
हम कर भी क्या सकते हैं जब समाज का मूलभूत ढाँचा ही वैसा हो।

arvind
19-07-2011, 02:29 PM
एक बार फिर शानदार प्रस्तुति........

MANISH KUMAR
03-08-2011, 06:44 PM
:bravo::bravo::bravo::bravo:
बहुत अच्छा लिखा है, राकेश जी.
सचमुच सुन्दर पंक्तियाँ हैं.

Bhuwan
08-09-2011, 11:50 PM
एक और शानदार कविता. बहुत ही सुन्दर.:cheers:

Dr. Rakesh Srivastava
09-09-2011, 12:24 AM
भुवन जी ,abhisays ji
को बहुत - बहुत धन्यवाद .