Dr. Rakesh Srivastava
24-07-2011, 01:54 PM
इक हसीं हादसे से , इस कदर दो - चार हुआ ;
बेचारा दिल , जो धड़कता था , तार - तार हुआ .
दिल के आईने में , पहले भी , तुम्ही तुम थे बस ;
जितने टुकड़े किये , सबमें तू नमूदार हुआ .
हुस्न के दर पे , शहादत का यकीं है सबको ;
काफिला इश्क का , फिर भी सदा गुलज़ार हुआ .
खुद अपने क़त्ल की , परवाह भला है किसको ;
फ़िक्र तेरी , तेरा दामन , जो दागदार हुआ .
कितने जज़्बात ले के ,दिल में , दर ब दर भटका ;
मगर अफ़सोस ,एक भी न खरीदार हुआ .
बड़े ही सब्र से ,जो पत्थरों को गढ़ लेते ;
उन्ही के दम पे , मोहब्बत का कारोबार हुआ .
ज़िक्र होता जो , हुस्नो इश्क का , हरदम साझा ;
इश्क ही क्यों , सरे बाज़ार , गुनहगार हुआ .
तरस रहे हैं , मेरे कान , ये सुनने के लिए ;
कभी तो बोलेगा , तू खुद से शर्मसार हुआ .
कल तलक आईना , जिनको ख़ुदा बताता था ;
आज उनकी नज़र में , आईना गद्दार हुआ .
इश्क इक सोंच , अमर रूह सा , भटका है सदा ;
हुस्न बस जिस्म है , ये खुद फ़ना हर बार हुआ .
रचनाकार~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ , इंडिया .
( शब्दार्थ ~~ नमूदार = प्रकट , फ़ना = नष्ट )
बेचारा दिल , जो धड़कता था , तार - तार हुआ .
दिल के आईने में , पहले भी , तुम्ही तुम थे बस ;
जितने टुकड़े किये , सबमें तू नमूदार हुआ .
हुस्न के दर पे , शहादत का यकीं है सबको ;
काफिला इश्क का , फिर भी सदा गुलज़ार हुआ .
खुद अपने क़त्ल की , परवाह भला है किसको ;
फ़िक्र तेरी , तेरा दामन , जो दागदार हुआ .
कितने जज़्बात ले के ,दिल में , दर ब दर भटका ;
मगर अफ़सोस ,एक भी न खरीदार हुआ .
बड़े ही सब्र से ,जो पत्थरों को गढ़ लेते ;
उन्ही के दम पे , मोहब्बत का कारोबार हुआ .
ज़िक्र होता जो , हुस्नो इश्क का , हरदम साझा ;
इश्क ही क्यों , सरे बाज़ार , गुनहगार हुआ .
तरस रहे हैं , मेरे कान , ये सुनने के लिए ;
कभी तो बोलेगा , तू खुद से शर्मसार हुआ .
कल तलक आईना , जिनको ख़ुदा बताता था ;
आज उनकी नज़र में , आईना गद्दार हुआ .
इश्क इक सोंच , अमर रूह सा , भटका है सदा ;
हुस्न बस जिस्म है , ये खुद फ़ना हर बार हुआ .
रचनाकार~~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ , इंडिया .
( शब्दार्थ ~~ नमूदार = प्रकट , फ़ना = नष्ट )