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View Full Version : ||कहानी शीला, मुन्नी, रज़िया और शालू की||


Sikandar_Khan
03-08-2011, 04:25 PM
डिस्क्लेमर - इस कहानी के पात्रो का किसी भी टी वी पे दिखाए जाने वाले गानों के नामो से कोई सम्बन्ध नहीं है और यदि है तो वो नाजायज़ सम्बन्ध है |
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11449&stc=1&d=1312370586

Sikandar_Khan
03-08-2011, 04:50 PM
चेतावनी - " कृपया पढ़ते वक़्त अपनी किडनी फ्रीज़र में रखकर पढ़े अन्यथा उसके जाम हो जाने का खतरा है "

Sikandar_Khan
03-08-2011, 04:54 PM
तो क्या शीला जवान होने वाली थी?
नहीं ऐसा कुछ था तो नहीं.. यूँ उम्र उसकी जवानी की दहलीज़ तक पहुची नहीं थी.. पर कुछ मोहल्ले वालो ने... कुछ कोंलेज के लडको ने..., अपनी अपनी नजरो से उसे जवानी की दहलीज़ तक पंहुचा ही दिया था.. शीला समझ चुकी थी कि उसकी जवानी आने में अब टेम नहीं है.. सो टेम खोटी नहीं करना चाहिए..

MANISH KUMAR
03-08-2011, 05:12 PM
डिस्क्लेमर - .....यदि है तो वो नाजायज़ सम्बन्ध है |



:surprise: :surprise: :surprise:

:tomato: :lol:

Sikandar_Khan
03-08-2011, 05:16 PM
इधर रजिया
टेलर मास्टर की बेटी, बचपन से ही समझदार, चाय में कितनी शक्कर और कितनी पत्ती.. इसका बखूबी हिसाब रखने वाली.. खूबसूरत इतनी कि गाल छू लो तो लाल पड़ जाए.. अब्बू की दुकान पे सिलाई मशीन चलाती.. रजिया के साथ साथ उसके अब्बू भी जानते थे कि लड़के जींस को ऑल्टर कराने उनकी दुकान में क्यों आते थे?? पर आने वाले को कौन रोंक सका है भला? (नोट : ये भला 'भला बुरा' वाला भला नहीं है)

Sikandar_Khan
03-08-2011, 08:51 PM
और उधर मुन्नी
मुन्नी आज़ाद खयालो वाली लड़की.. जिसे हर जंग में जीतना और हर दुश्मन को पीटना ही गवारा था.. ऐसा नहीं था कि उसके मन में प्रेम नहीं था.. पर बचपन से अब तक जो भी उसने देखा.. या यू कहे कि झेला उसके बाद उसने नफरत को गोद ले लिया..

Sikandar_Khan
03-08-2011, 08:57 PM
इन सबके बीच शालू
शालू ज्यादा समझदार नहीं थी पर उसकी समझ में एक बात आ गयी थी कि दुनिया जाए तेल लेने.. !! शालू को दुनिया से कोई मतलब नहीं था.. यू मतलब उसको इस बात से भी नहीं था कि दुनिया तेल लेने भला जाएगी कहा? वैसे शालू का एक ही उसूल था कि जैसे जीना है वैसे जियो.. बस जी..!!!

Sikandar_Khan
03-08-2011, 09:26 PM
तो शीला
शीला जब भी घर से बाहर निकलती कुछ आँखे उसका दामन थाम लेती..
उसको घर से निकालकर गली के लास्ट कोर्नर तक छोडके आती.. ( ऐसी आँखों का राम भला करे )
इधर शीला को मोहल्ले की आँखों ने छोड़ा और उधर बस स्टॉप पे खड़े लडको ने थामा..
साथी हाथ बढ़ाना की तर्ज़ पे शीला के दामन को थामती आँखों की रिले रेस चलती रहती..
और जैसे ही शीला बस में चढ़ती कि वो टच स्क्रीन फोन बन जाती..
सब पट्ठे उसके सारे फीचर्स चेक कर लेना चाहते थे..
वैसे भी मोबाईल वही लेना चाहिए जिसमे सारे फीचर्स मौजूद हो..

abhisays
03-08-2011, 10:49 PM
क्या बात है. सिकंदर जी आप तो छा गए. :cheers::cheers:

Sikandar_Khan
04-08-2011, 09:28 AM
क्या बात है. सिकंदर जी आप तो छा गए. :cheers::cheers:

उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद

Sikandar_Khan
04-08-2011, 09:30 AM
हाँ तो शीला
बस से उतरते ही शीला को कोंलेज के लड़के संभाल लेते..
उनका बस चलता तो वो शीला को लेने उसके घर तक चले जाते..
लेकिन वे लडकियों के आत्मनिर्भर होने वाली सोच के पक्षधर थे.. लडकियों और लडको को समान अधिकार मिलने चाहिए.. ऐसा उनका मानना था (और लेखक का भी यही मानना है)
तो कोंलेज के गेट से वो हैंडल विद केयर टाईप से शीला को क्लासरूम में ले जाते..
यू ले जाना तो वो बैडरूम में चाहते थे पर इस दुष्ट समाज के ओछेपन जिसमे कि
लडकियों को छेड़ना एक अपराध था,
वो राम राज की उम्मीद करके बस क्लासरूम से ही काम चला लेते..
उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि कम से कम रूम शब्द तो आ ही रहा है..

Sikandar_Khan
04-08-2011, 09:31 AM
रज़िया याद है ना..
अब्बू की टेलर की दुकान में बैठी सिलाई मशीन का पहिया घुमाती रहती...
यू उसकी ज़िन्दगी की गाडी खुद बिना पहियों वाली थी..
उमर उसकी बढती जा रही थी और बढती उमर में होने वाले परिवर्तन भी हो रहे थे..
अम्मी तो उसको अब्बू के हवाले करके निकल ली दुनिया से..
और अब्बू बेचारे हर सलवार कमीज़ सिलवाने आने वाली महिलाओ में उसकी अम्मी ढूंढते रहते..
इसी के चलते उनके चश्मे का नंबर बढ़ गया और धंधा घट गया..
"अब मियां आजकल कौन सिलवाने बैठा है कपडे.."
इन्ही जुमलो के साथ रज़िया के अब्बू रंगे हाथो पकडे जाते..

Sikandar_Khan
04-08-2011, 09:33 AM
रज़िया जो कि आपको याद है..
वो दिन भर लडको की जींसो को ऑल्टर करते करते ऐसी ऊब गयी थी कि उसकी शक्ल खुद टॉम अल्टर जैसी हो गयी.. पर उसकी शक्ल से ना किसी को कुछ देना था ना लेना था.. सो जींस ऑल्टर होने के लिए आये जा रही थी और उसके अब्बू को उसकी चिंता खाए जा रही थी... पर लड़की की शादी कराना कोई आस्तीन काटने जितना सरल काम तो था नहीं.. हाँ जेबे काटी जाती तो बात बन सकती थी.. पर ये काम भी उनके बस का नहीं था.. अब सलवार कमीज़ में जेबे जो नहीं होती..

Sikandar_Khan
04-08-2011, 09:34 AM
तो रज़िया जो कि आपको अभी तक याद है
दुसरो की जींस ऑल्टर करके छोटी करती रही पर अपनी बढती उम्र को छोटा करने का हुनर जानती नहीं थी.. सो जैसे जैसे उम्र बढ़ी वैसे वैसे जींस भी ऑल्टर के लिए कम आने लगी.. अब तो इक्का दुक्का जींस आती वो भी कोई तलाकशुदा लोगो की.. रज़िया चुपचाप ऑल्टर करती रहती.. जींस काटना तो उसके लिए आसान था पर दिन काटना उतना ही मुश्किल..

Sikandar_Khan
04-08-2011, 09:36 AM
मुन्नी को भूल तो नहीं गए आप?
क्या कहा? उसे कैसे भूल सकते है भला... !! सो तो है. (लेखक आपके इस कथन से सहमत है कि मुन्नी को नहीं भूला जा सकता) तो जनाब मुन्नी जो है उसको जीतना और पीटना तो पसंद है ही.. बचपन में भी या तो वो किसी खेल को जीत लेती थी या हारने पर जीतने वाले को पीट देती थी.. लेन देन के मामले में बच्ची बचपन से ही बड़ी मुखर थी.. और वो लोग जो ये कहते फिरते है कि पूत के पांव पालने में ही नज़र आ जाते है.. उनको भी मुन्नी यदा कदा ढूंढती रहती.. कि यदि वो लोग मिल जाए तो उनके पालनो (आप समझ ही गए होंगे) पे दो लात जमा के बताये कि पूत ही नहीं पुत्रियों के पांव भी पालने में ही नज़र आते है..

Sikandar_Khan
04-08-2011, 09:36 AM
मुन्नी जिसे कि आप भूल नहीं सकते
मुन्नी उस वक़्त से मुन्नी नहीं रही जब वो मुन्नी थी.. और उसकी इस समझ को डेवलप कराने में जिन लोगो ने उसकी सहायता कि उनमे थे उसके पिताजी के दोस्त, मकान मालिक का साला, गणित की ट्यूशन वाले मास्टरजी, पुरानी कंपनी के मैनेजर और ऐसे कई सारे भले लोग जिनका जन्म ही मानव कल्याण हेतु हुआ है.. वे यथा संभव मुन्नी का कल्याण करने के प्रयास में लगे रहते.. हालाँकि मुन्नी बड़ी निष्ठुर हृदयी थी वो नहीं चाहती थी कि उसका कल्याण हो.. किसी न किसी बहाने से वो उन कल्याण कार्यो पर पानी फेर ही देती थी..

Sikandar_Khan
04-08-2011, 09:38 AM
मुन्नी जिसे कि भूला ही नहीं जा सकता
वो ऐसे ही कल्याणों के खिलाफ आवाज़ उठाने लगी.. कोई सेक्स्युअल हर्रेस्मेंट नाम की किसी चीज़ के विरोध में अभियान भी चलाया उसने.. बाद में सुनने में आया कि ये अभियान समाज के विरोध में था.. मुन्नी नहीं चाहती थी कि ऑफिस में फ्रेंडली एन्वायरमेंट रहे.. उसके ऐसा करने से लोग तनाव में रहने लगे.. सुबह होते ही परेशान हो जाते कि आज ऑफिस में करेंगे क्या? वही कुछ मूर्ख महिलाये ना जाने क्यों इस अभियान से खुश थी.. खैर उन्होंने मुन्नी को फेमस कर दिया.. बोले तो मुन्नी का बहुत नाम हो गया..

Sikandar_Khan
06-08-2011, 07:54 AM
कि आयी अब शालू की बारी
शालू को मुन्नी शीला या रज़िया से कोई मतलब नहीं था.. (वैसे लेखक ने आपको पूर्व में ही बता दिया है कि शालू को दुनिया से कोई मतलब नहीं है और दुर्भाग्य से रज़िया, मुन्नी और शालू भी इसी दुनिया में है तो शालू को उनसे कोई मतलब नहीं था..) शालू बचपन से ही नृत्य कला में प्रवीण थी.. जब भी घर में मेहमान आते शालू की मम्मी उसे अपने नृत्य का नमूना दिखाने को कहती.. और शालू नमूनों की तरह नमूनों के सामने अपने नृत्य का नमूना पेश करती.. वे लोग नृत्य के अंत में यही कहते पाए जाते कि बहनजी आपकी लड़की तो बड़ी होशियार है.. पर इसी होशियारी के चलते शालू पढाई में होशियार नहीं हो पाई.. हालाँकि उसे अंग्रेजी बोलना अच्छा लगता.. अंग्रेजी में ग्रामर व्रामर जैसे दिखावो और आडम्बरो से वो कोसो दूर थी.. भाषा में ग्रामर के दखल के खिलाफ थी शालू..

ndhebar
07-08-2011, 10:21 AM
मजा आ गया सिकंदर भाई
इन सारी हसीनाओं की बायोग्राफी पढ़कर
आज काफी दिनों के बाद फोरम पर कुछ रोचक मिला और पुराने दिनों की यादें ताजा हो गयी
जरी रखिये बस ......................

Sikandar_Khan
09-08-2011, 07:01 AM
मजा आ गया सिकंदर भाई
इन सारी हसीनाओं की बायोग्राफी पढ़कर
आज काफी दिनों के बाद फोरम पर कुछ रोचक मिला और पुराने दिनों की यादें ताजा हो गयी
जरी रखिये बस ......................
बहुत बहुत शुक्रिया निशांत भाई
आपको फोरम पर देखकर बस अपनी भावनाओं को काबू में रखियेगा इस उम्र में |

Sikandar_Khan
09-08-2011, 07:02 AM
चलिए अब कहानी को आगे बढ़ाते हैं .......................

Sikandar_Khan
09-08-2011, 07:03 AM
शालू, जो भाषा में ग्रामर के दखल के खिलाफ थी..
वो उन लोगो के भी खिलाफ थी जिनका ये कहना था कि शालू का नृत्य और उसकी भंगिमाए स्वस्थ समाज के अनुकूल नहीं है.. शालू का ये मानना था कि ये लोग जो उसके खिलाफ है घर में सी डी पे उसका नृत्य देखते है.. शालू को कतई ये गवारा नहीं था कि उसकी सीडी घर पे देखने वाले बाहर आकर उसको सीढ़ी बनाकर अपना उल्लू सीधा करे.. इसीलिए वो हमेशा उल्टी बात करती थी..

ndhebar
09-08-2011, 09:30 AM
बहुत बहुत शुक्रिया निशांत भाई
आपको फोरम पर देखकर बस अपनी भावनाओं को काबू में रखियेगा इस उम्र में |
ये गलत बात है सिकंदर भाई
अमाँ ये उम्र बिच में कहाँ से गया, अभी तो खेलने खाने के दिन हैं

Sikandar_Khan
10-08-2011, 09:53 AM
ये गलत बात है सिकंदर भाई
अमाँ ये उम्र बिच में कहाँ से गया, अभी तो खेलने खाने के दिन हैं

भाई खेल खा सकते हो तो खाओ किसने मना किया है |:cryingbaby:

Sikandar_Khan
10-08-2011, 10:01 AM
शालू, जो हमेशा उल्टी बात करती थी..
उसको कई बार उल्टी करते देख मोहल्ले वाले उल्टी सीधी बाते करते.. कई लोगो का ये भी कहना था कि शालू को नृत्य प्रेम के अलावा प्रकृति से भी प्रेम है..क्योंकि वो पृकृति प्रदत कुछ ऐसी क्रियाये.. ऐसे लोगो के साथ करती थी जिन लोगो की प्रकृति ठीक नहीं थी.. साथ ही उन लोगो का ये भी मानना था कि वे प्रकृति प्रेमी शालू के ऐसे प्रकृति प्रेम को देखते हुए उसे कुछ आर्थिक सहायता भी कर देते थे.. और ये बाते वो इतनी विश्वसनीयता से कहते थे जैसे पुरे घटनाक्रम के वे चश्मदीद गवाह हो.. या फिर शालू उनके खालू के घर ही गयी हो.. पर शालू को इन बातो से कोई फर्क नहीं पड़ता था... आपको याद होगा ही कि शालू का ये मानना था कि दुनिया जाए तेल लेने...

Sikandar_Khan
10-08-2011, 10:02 AM
पोस्ट लम्बी हो रही है.. लगता है ऑल्टर करना पड़ेगा..
तो पोस्ट जो कि लम्बी हो रही है उसमे हमने तीन साल का लीप ले लिया है.. (तीन साल बाद)

Sikandar_Khan
10-08-2011, 10:14 AM
तीन साल बाद शीला
शीला जिसको कि इन तीन सालो में इतने प्रेम पत्र मिले कि उनको रद्दी में बेचने पर उसे साढे तीन सौ रूपये मिले (दरअसल लेखक ही वो रद्दी वाला है, जो भेष बदल कर रद्दी खरीदता है और उनमे मिली चिट्ठियों को अपने नाम से छापता है.. उनमे भी कुछ प्रेम पत्र ऐसे है जो छपने लायक है, पर वो फिर कभी) तो शीला ने दो साल तक उन पत्रों को एक करियर ऑप्शन की तरह चुना और कुछ को जवाब भेजकर अपने लिए दैनिक जीवन की आवश्यकताओ की पूर्ति भी की.. मसलन अपना मोबाईल रिचार्ज करवाना, सूने कानो के लिए टॉप्स खरीद्वाना, अपने लिए हैण्ड बैग्स, फास्टट्रेक की घडी और भी ऐसी कई चीज़े.. साथ ही कभी कभी हलवाई की जलेबिया और कचोरिया भी.. और सिनेमा तो आप खुद ही समझ जायेंगे..
खैर तीसरे साल शीला की ज़िन्दगी में आया रमेश जो कि शीला की ही तरह लुक्खा था.. बस दोनों की जोड़ी जम गयी.. पर शीला जो कि दीक्षित परिवार की बेटी थी उनको रमेश जैसे सिन्धी लड़के से अपनी बेटी की शादी नागवार गुजरी.. पर शीला ने हार नहीं मानी और घर से भाग गयी.. वो ये बात जानती थी कि माता पिता के आशीर्वाद के बिना कोई संतान खुश नहीं रह सकती.. इसलिए तिजोरी में से दस तोला सोना माता पिता के आशीर्वाद स्वरुप साथ ले गयी.. (भगवान ऐसी औलाद सबको दे)..

रमेश कीजवानी से शादी हो गयी उसकी... सिन्धी फैमिली होने के बावजूद शीला वहा खुश है.. और अब कोई उसका नाम पूछता है तो वो कहती है कि माय नेम इज शीला... शीला कीजवानी

Sikandar_Khan
10-08-2011, 10:17 AM
तीन साल बाद रज़िया
आज से दो साल पहले एक साहब अपनी जींस ऑल्टर करवाने आये और रज़िया को दिल दे बैठे.. उम्र में वे रज़िया के अब्बू से ज्यादा तो नहीं थे पर कुछ कम भी नहीं थे.. रज़िया के पिता पहले तो बेटी के भविष्य के प्रति आशंकित थे.. पर जब उनकी आशंका देखते हुए उन साहब ने उन्हें पचास हज़ार रुपी विश्वास जताया तो वे खुदा की मर्ज़ी जानकर निकाह को राजी हो गए.. रज़िया दुल्हन बनके ससुराल पहुच गयी.. और साथ में ले गयी अपनी कैंची.. पगली, समझती होगी कि ज़िन्दगी भी इससे कट जायेगी..

ज़िन्दगी में जो लोग सरप्राईजेस में बिलीव करते है उन्हें रज़िया की ज़िन्दगी देखनी चाहिए.. जिसे ससुराल में आकर कई सरप्राईजेस मिले.. आने के छ महीने बाद ही उसके पति ने उसके अन्दर छिपी प्रतिभा को खोज लिया.. और पहले से प्रतिभावान अपनी दो पत्नियों के सुपुर्द कर दिया... ये था रज़िया का दूसरा सरप्राईज़ कि उसकी माँ की उम्र की दो सौतन का होना.. वे दोनों थी भले सौतन लेकिन रज़िया का बहुत ख्याल रखती थी.. हालाँकि शुरू शुरू में रज़िया ने अपनी प्रतिभा से दुसरो को लाभान्वित करने में आनाकानी की.. पर उसकी दोनों सौतनो ने लोहे के गर्म चिमटे का सहारा लेकर उसे समझा ही दिया.. आखिर चोट खाकर ही पत्थर हीरा बनता है.. अब रज़िया से सब खुश है.. और उसके शौहर भी जो ये जानते थे कि पचास हज़ार तो यू ही निकाल आयेंगे..

रजिया अब कुछ बोलती नहीं बस मन ही मन अल्लाह से दुआ करती है.. कि अल्लाह बचाए मेरी जान कि रज़िया गुंडों में फस गयी..

Sikandar_Khan
12-08-2011, 08:00 AM
तीन साल बाद मुन्नी
मुन्नी जिसने कि महिलाओ की सेवा करके बहुत नाम कम लिया था वो अब और भी बड़ी समाज सुधारक बन गयी थी.. पर दो साल पहले ऐसा हुआ कि लेखक को भी अचंभा हुआ.. हुआ यू कि मुन्नी केरल गयी थी एक विधवा आश्रम का उद्घाटन करने.. बस वही पर उसकी मुलाक़ात डार्विन नामक व्यक्ति से हुई.. जो वहा एक एन जी ओ चलाता था.. और चाहता था कि मुन्नी जैसी समाज सुधारक उसके मिशन में उस से जुड़े.. पहले तो मुन्नी तैयार नहीं हुई लेकिन फिर जब उसने गाँधी जी की कई सारी तस्वीरो वाला बैग दिखाया.. तो गाँधी वादी विचारधारा वाली मुन्नी मना नहीं कर सकी..

बस फिर क्या था मुन्नी ने अब तक जितने भी महिला आश्रम खुलवाए थे वहा की महिलाओ को प्रभु के मार्ग पे चलने हेतु प्रेरित किया.. और साथ ही ये भी समझाया कि ईश्वर तो ईश्वर है फिर चाहे वो राम हो या ईशु.. जो महिलाये ये समझ गयी उन्होंने तो बात माँ ली पर जो नहीं मानी उन्हें भी गांधीवादी विचारो से मुन्नी ने मनवा ही लिया.. हालाँकि इस से कुछ मूढ़ मति लोग ये भूलकर कि ईश्वर एक है.. मुन्नी जैसी भली महिला के बारे में अनाप शनाप बकने लगे.. और तब तो उसके पुतले भी जलाये जब वो मुन्नी से मार्ग्रेट बन गयी और उसने डार्विन से शादी कर ली..

डार्विन का पूरा नाम डार्विन लिंगानुराजन था.. और मुन्नी उसे प्यार से डार्लिंग कहती थी.. अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि सुहागरात पर मुन्नी ने डार्विन से क्या कहा होगा.. जी हाँ! मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए..

Sikandar_Khan
12-08-2011, 08:34 AM
तीन साल बाद शालू
अब जनाब शालू का क्या कहे.. दुनिया उसके बारे में उल्टी बाते करती रही और वो उल्टिया करती रही.. टी वी पे तो वो हिट थी ही बाद में मोबाईल पर भी उसने झंडे गाद दिए.. जो लोग बड़े परदे पर काम नहीं मिलने की वजह से छोटे परदे पर आये थे वो शालू की उससे भी छोटे परदे पर कामयाबी देखकर जलने लगे.. शालू से जलने वालो की लिस्ट लम्बी होती गयी.. पर शालू को काम की कोई कमी नहीं रही..

दो साल पहले शालू ने टी वी पे अपना स्वयंवर भी रचाया था और एक बेचारे पे तरस खाके उससे शादी भी कर ली थी.. पर वो लड़का नालायक निकला उस ने शालू को सिर्फ इस बात पे तलाक दे दिया कि शालू ने उसे बिना बताये स्वयंवर पार्ट टू के कोंट्राक्ट पे साईन कर दिया.. हालाँकि शालू ने स्वयंवर पार्ट टू किया तो सही पर उसकी टी आर पी पिछले शो के मुकाबले कम रही.. तीसरे स्वयंवर में किसी और को लेने की बात पर शालू ने ही चैनल वालो को आईडिया दिया कि शादी ना सही तो तलाक पर ही प्रोग्राम बना दो.. चैनल वालो को ये सुझाव पसंद आया.. टी वी पे ही शालू ने दुसरे स्वयंवर में हुई जिस लड़के से शादी हुई थी उसी से तलाक ले लिया.. सुना है वो लड़का तीसरे स्वयंवर में फिर से पार्टिसिपेट कर रहा है..

जिस दुनिया ने शालू के बारे में लाख बाते कही पर फिर भी शालू सफल हो गयी.. उसी दुनिया को जवाब देते हुए शालू अपने किसी डांस शो में ये गाना गा रही थी.. कि मुन्नी भी मानी और शीला भी मानी.. शालू के ठुमके की दुनिया दीवानी

Sikandar_Khan
12-08-2011, 08:56 AM
रिक्वेस्ट -
जैसा कि आप जानते है कि महंगाई दिन ब दिन बढ़ रही है.. और लेखन पर सरकार द्वारा कोई सब्सिडी भी नहीं मिलती इसलिए लेखक ने लेखन के साथ साथ पार्ट टाईम दुकान भी खोली है जिसमे कहानी में प्रयुक्त वस्तुओ को बेचा जाएगा.. यदि आप खरीदना चाहे तो निम्न वस्स्तुओ का ऑर्डर दे सकते है.. दस परसेंट की विशेष छूट के साथ

Sikandar_Khan
12-08-2011, 09:19 AM
1. शीला के पांच प्रेम पत्रों के सेट (जिसमे पांच के साथ एक फ्री है)
2. रज़िया की कैंची
3. मुन्नी द्वारा लिखी किताब "ईश्वर एक है"
4. और शालू के डांस की सीडी मय होंठोग्राफ (जो खुद शालू के होंठो द्वारा दिया गया है)

jitendragarg
19-08-2011, 03:53 PM
itne din baad aane ka mauka mila aur aate hi sabse pehle ye sutr khola.. kasam se kya gajab kalpana hai bhai! :good:

hey bhagwaan, ye kya kiya maine.. pata chala, agli baar waapis aaya aur kalpana ki kahani ka bhi sutr likha mil jaye! :lol:

Sikandar_Khan
25-08-2011, 03:26 PM
जीतू भाई की कल्पना
जैसा कि आप जानते है कि कल्पना एक जादू की छड़ी है |
जो सरकारेँ बदल सकती है उसके लिए प्रेमी बदलना क्या बड़ी बात है |
आजकल वो गजनी की सजनी बनकर दो नम्बर के काम मे खुब नोट कमा रही है |
तीन अम्बेसडर गाड़ियाँ खरीदने का उसका सपना अब सपना नही रहेगा |
क्योँ कि कल्पना जादू की छड़ी है |

MANISH KUMAR
25-08-2011, 05:32 PM
बाप रे!!!!!!!!!!!!!!!!!! :omg:
:giggle:
चलो अच्छा हुआ हमारी भाभी जलेबी जी का नंबर नहीं आया. :lol::lol::lol: :tomato:

bhavna singh
09-09-2011, 08:11 PM
खान साहब आपकी जितनी प्रश्नंसा की जाये कम होगी ये एक जबरजस्त सूत्र है /
मजा आ गया कसम से

jitendragarg
09-09-2011, 09:52 PM
बाप रे! ये क्या हुआ! सचमुच कहानी लिख मारी कल्पना की भी! :O

आगे से ध्यान रखना पड़ेगा, की पोस्ट में किसी लड़की का नाम न आये! :giggle:

naman.a
11-10-2011, 01:46 AM
अब मालूम पड़ा आपका नाम सिकंदर यु ही नही पड़ा । दिलो को जीत ने के आपके हौसले भी आली है ।

बहुत ही उम्दा । आगे भी नजरे बिछाये बैठे है ।

Sikandar_Khan
11-10-2011, 08:07 AM
अब मालूम पड़ा आपका नाम सिकंदर यु ही नही पड़ा । दिलो को जीत ने के आपके हौसले भी आली है ।

बहुत ही उम्दा । आगे भी नजरे बिछाये बैठे है ।

नमन भाई
हौसलाअफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया
आपके लिए कुछ पेश किया जाए |

Sikandar_Khan
11-10-2011, 08:36 AM
मनीष बाबू की जलेबी भाभी ..
जैसा कि आप सभी जलेबी भाभी को जानते ही होँगे सो मुझे उसने आपका परिचय कराकर टाईम खोटी करने की कोई आवश्यकता नही है |
आज से दो साल पहले तक तो सब ठीक ठाक चल रहा था
लेकिन अब बाजार मे उनकी जलेबियोँ की डिमांड अच्छी थी लेकिन अब उनकी जलेबियोँ मे वो मिठास ही नही बची थी
आप चाहे इसे कांग्रेस सरकार की बढ़ती मंहगाई समझो या उनकी घटती फैन फ्लोइंग का नतीजा
अब तो उनकी जलेबियोँ पर मक्खी भी बैठने से कतराती हैँ यूं तो बाजार मे उनके मुकाबले एक से बढकर एक जलेबियां मिल जाएंगी लेकिन आजकल तो लोग नमकीन ज्यादा पसन्द करते हैँ लालपरी के साथ मुंह लगाने के लिए
अगर उनमे कुछ नमकीन बचा होता तो हर कोई चखने की कोशिश करता है
लेकिन अब उनसे नमकीन की उपेक्षा करना बेकार है |
क्योँकि जवानी चार दिन की है यारोँ बाद मे तो बहता पानी..

MANISH KUMAR
12-10-2011, 06:35 PM
मनीष बाबू की जलेबी भाभी ..
जैसा कि आप सभी जलेबी भाभी को जानते ही होँगे सो मुझे उसने आपका परिचय कराकर टाईम खोटी करने की कोई आवश्यकता नही है |
आज से दो साल पहले तक तो सब ठीक ठाक चल रहा था


:bravo::bravo:
बाप रे बाप, भाभी जी का नंबर भी आ ही गया.:fantastic:
वैसे जितना मुझे पता है, जलेबी जी हमारी भाभी ५-६ महीने पहले ही बनी हैं. फिर सिकंदर जी २ साल से कैसे जानते हैं. जरूर कुछ घोटाला है.

Sikandar_Khan
13-10-2011, 07:22 PM
:bravo::bravo:
बाप रे बाप, भाभी जी का नंबर भी आ ही गया.:fantastic:
वैसे जितना मुझे पता है, जलेबी जी हमारी भाभी ५-६ महीने पहले ही बनी हैं. फिर सिकंदर जी २ साल से कैसे जानते हैं. जरूर कुछ घोटाला है.
ये अंदर की बात है तब आप बच्चे थे |:cryingbaby::cryingbaby:

MANISH KUMAR
13-10-2011, 07:41 PM
ये अंदर की बात है तब आप बच्चे थे |:cryingbaby::cryingbaby:

हम्मम्मम्म....... :thinking: :thinking:

Sikandar_Khan
13-10-2011, 08:05 PM
हम्मम्मम्म....... :thinking: :thinking:
कभी पीपल के पेड़ के नीचे मिलना सब बता देंगे |