Dr. Rakesh Srivastava
07-08-2011, 02:56 PM
अब वो कुछ आवारा है , भटक रहा बंजारा है ;
जाल फेंकता , जगह - जगह पर , सागर का मछुवारा है .
गुलशन में छुट्टा घूमें , जिसका चाहे मुंह चूमे ;
भंवरा बनकर डोल रहा है , फूल - फूल को प्यारा है .
कली -कली की चाहत है , हसीं दिलों की राहत है;
उसने उसकी कद्र न जानी , वो समझी नक्कारा है.
कूचे - कूचे जाता है , सबमें आस जगाता है;
बादल बनकर घूम रहा है , मौसम का हरकारा है .
सावन का वो झोंका है , चाहे जिसे भिगोता है ;
विरह - व्यथा से सुलग रहीं जो , उनके लिये फव्वारा है .
आसानी से आता है , सबके हाथ सध जाता है ;
जी चाहे जो राग छेड़ ले , ऐसा वो इकतारा है .
हसीं चोट से घायल है , किसी का उतरा पायल है ;
जैसा बेबस उसने समझा , वैसा नहीं बेचारा है .
गैरत उसकी जाग उठी , आशिक अब विद्रोही है ;
खब्त उतारे पूरी जात पे , किसी के इश्क का मारा है .
रचनाकार ~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ ,इंडिया .
(शब्दार्थ ~~ हरकारा = संदेशवाहक , इकतारा = एक प्रकार
का सरल सुलभ वाद्य यन्त्र , खब्त = झक्क ,उन्माद .)
जाल फेंकता , जगह - जगह पर , सागर का मछुवारा है .
गुलशन में छुट्टा घूमें , जिसका चाहे मुंह चूमे ;
भंवरा बनकर डोल रहा है , फूल - फूल को प्यारा है .
कली -कली की चाहत है , हसीं दिलों की राहत है;
उसने उसकी कद्र न जानी , वो समझी नक्कारा है.
कूचे - कूचे जाता है , सबमें आस जगाता है;
बादल बनकर घूम रहा है , मौसम का हरकारा है .
सावन का वो झोंका है , चाहे जिसे भिगोता है ;
विरह - व्यथा से सुलग रहीं जो , उनके लिये फव्वारा है .
आसानी से आता है , सबके हाथ सध जाता है ;
जी चाहे जो राग छेड़ ले , ऐसा वो इकतारा है .
हसीं चोट से घायल है , किसी का उतरा पायल है ;
जैसा बेबस उसने समझा , वैसा नहीं बेचारा है .
गैरत उसकी जाग उठी , आशिक अब विद्रोही है ;
खब्त उतारे पूरी जात पे , किसी के इश्क का मारा है .
रचनाकार ~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ ,इंडिया .
(शब्दार्थ ~~ हरकारा = संदेशवाहक , इकतारा = एक प्रकार
का सरल सुलभ वाद्य यन्त्र , खब्त = झक्क ,उन्माद .)