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View Full Version : कुर्सियां गढ़ने का सामान


Dr. Rakesh Srivastava
14-08-2011, 08:45 AM
मुफलिसी ने उन्हें , इस क़दर तोड़ रक्खा है ;
ज़मीं बिछा के , आसमान ओढ़ रक्खा है .
छाँव को छीन लिया , किसने उनके हिस्से की ;
धूप में तप के , बदन स्याह बना रक्खा है .
पलटनें कूच कर रही हैं , बड़े शहरों को ;
ये देख -जान के , अब गाँव में क्या रक्खा है .
पेट की भूख , सभी भूख पे भारी है, तभी ;
नयी नवेली को , घर पे ही छोड़ रक्खा है .
बेचकर ख्वाब तरक्की का , सियासत ने इन्हें ;
कुर्सियां गढ़ने का , सामान बना रक्खा है .
समय सफाई का आया , तो मुरव्वत उमड़ी ;
खुद अपने जिस्म में ,घुन तुमने बसा रक्खा है .
मुल्क दो भाग में ,तकसीम साफ़ दिखता है ;
बड़ा , जो लुट रहा , छोटे ने लूट रक्खा है .
कोई मजबूत बनके , इंक़लाब न कर दे ;
तमाम मुल्क को , बीमार बना रक्खा है .
जिसने आवाज उठाई , उसे कालिख मल दी ;
ये कह के उसने , कि उत्पात मचा रक्खा है .
आओ मिल -बैठ के , सूरत निकालें , जल्द कोई ;
हुक्मरानों ने , बहुत ज़ुल्म मचा रक्खा है .

रचयिता --डॉ . राकेश श्रीवास्तव .
लखनऊ, (यू.पी.),इंडिया .

abhisays
14-08-2011, 01:36 PM
आज के सत्ता के भूखे भेडियो को करारा जवाब दिया है राकेश जी आपने.

dipu
14-08-2011, 03:19 PM
मुफलिसी ने उन्हें , इस क़दर तोड़ रक्खा है ;
ज़मीं बिछा के , आसमान ओढ़ रक्खा है .
छाँव को छीन लिया , किसने उनके हिस्से की ;
धूप में तप के , बदन स्याह बना रक्खा है .
पलटनें कूच कर रही हैं , बड़े शहरों को ;
ये देख -जान के , अब गाँव में क्या रक्खा है .
पेट की भूख , सभी भूख पे भारी है, तभी ;
नयी नवेली को , घर पे ही छोड़ रक्खा है .
बेचकर ख्वाब तरक्की का , सियासत ने इन्हें ;
कुर्सियां गढ़ने का , सामान बना रक्खा है .
समय सफाई का आया , तो मुरव्वत उमड़ी ;
खुद अपने जिस्म में ,घुन तुमने बसा रक्खा है .
मुल्क दो भाग में ,तकसीम साफ़ दिखता है ;
बड़ा , जो लुट रहा , छोटे ने लूट रक्खा है .
कोई मजबूत बनके , इंक़लाब न कर दे ;
तमाम मुल्क को , बीमार बना रक्खा है .
जिसने आवाज उठाई , उसे कालिख मल दी ;
ये कह के उसने , कि उत्पात मचा रक्खा है .
आओ मिल -बैठ के , सूरत निकालें , जल्द कोई ;
हुक्मरानों ने , बहुत ज़ुल्म मचा रक्खा है .

रचयिता --डॉ . राकेश श्रीवास्तव .
लखनऊ, (यू.पी.),इंडिया .

:bravo::bravo::bravo::bravo:

Dr. Rakesh Srivastava
14-08-2011, 11:50 PM
प्रशासक महोदय एवं दीपू जी ,
मेरे लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण ,
आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए
आप दोनों लोगों का संयुक्त रूप से
हार्दिक धन्यवाद .

sach_mishra
16-08-2011, 05:46 PM
धन्यवाद बहुत ही अच्छा ... दिल को छू गया |

Dr. Rakesh Srivastava
16-08-2011, 11:36 PM
arvind ji,sach mishra ji को बहुत -बहुत धन्यवाद .

ndhebar
17-08-2011, 06:56 AM
अगर हम इसी तरह प्रयास जारी रखेंगे तो जल्द ही कोई सूरत अवश्य निकलेगी

Sikandar_Khan
17-08-2011, 09:52 AM
मुफलिसी ने उन्हें , इस क़दर तोड़ रक्खा है ;
ज़मीं बिछा के , आसमान ओढ़ रक्खा है .
छाँव को छीन लिया , किसने उनके हिस्से की ;
धूप में तप के , बदन स्याह बना रक्खा है .
पलटनें कूच कर रही हैं , बड़े शहरों को ;
ये देख -जान के , अब गाँव में क्या रक्खा है .
पेट की भूख , सभी भूख पे भारी है, तभी ;
नयी नवेली को , घर पे ही छोड़ रक्खा है .
बेचकर ख्वाब तरक्की का , सियासत ने इन्हें ;
कुर्सियां गढ़ने का , सामान बना रक्खा है .
समय सफाई का आया , तो मुरव्वत उमड़ी ;
खुद अपने जिस्म में ,घुन तुमने बसा रक्खा है .
मुल्क दो भाग में ,तकसीम साफ़ दिखता है ;
बड़ा , जो लुट रहा , छोटे ने लूट रक्खा है .
कोई मजबूत बनके , इंक़लाब न कर दे ;
तमाम मुल्क को , बीमार बना रक्खा है .
जिसने आवाज उठाई , उसे कालिख मल दी ;
ये कह के उसने , कि उत्पात मचा रक्खा है .
आओ मिल -बैठ के , सूरत निकालें , जल्द कोई ;
हुक्मरानों ने , बहुत ज़ुल्म मचा रक्खा है .

रचयिता --डॉ . राकेश श्रीवास्तव .
लखनऊ, (यू.पी.),इंडिया .

बहुत ही खूबसूरती से एहसासोँ को बयान किया है
:bravo::bravo::bravo:

Dr. Rakesh Srivastava
17-08-2011, 01:42 PM
सिकंदर जी , ndhebar जी को
मेरे लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण ,
अपनी -अपनी लिखित प्रतिक्रियाएं
देने हेतु बहुत -बहुत धन्यवाद .

MANISH KUMAR
25-08-2011, 06:32 PM
वाह............ :cheers:

Dr. Rakesh Srivastava
25-08-2011, 11:34 PM
मनीष जी ,
आपका बहुत -बहुत शुक्रिया .

Nitikesh
26-08-2011, 06:46 AM
बहुत ही बढियाँ कविता है.

:bravo::bravo:

Sikandar_Khan
26-08-2011, 08:07 AM
राकेश जी
आपकी रचनाएं पढ़कर दिल वाह वाह कहने पर मजबूर हो जाता है |
:bravo::bravo:

Dr. Rakesh Srivastava
26-08-2011, 02:45 PM
सिकंदर जी ,
आपका पुनः बहुत -बहुत धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava
26-08-2011, 02:49 PM
Nitikesh ji ,
आपका बहुत -बहुत धन्यवाद .