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View Full Version : ख़ुदी को छोड़ कर ..


Dr. Rakesh Srivastava
04-09-2011, 12:25 PM
जब हसीं आँख के पैमाने छलक जाते हैं ;
लोग मदहोश हो के राह भटक जाते हैं .
ये जानते हुए भी , जल्द ही मिट जाना है ;
रेत पे नाम सब लिखवाने चले जाते हैं .
पनाह हुस्न की , थोड़े दिनों तक पा के लोग ;
तमाम उम्र को बनवास चले जाते हैं .
जिंदगी जश्न के संग बीत रही हो , फिर भी ;
इश्क में खुद को सब तड़पाने चले आते हैं .
किसी के दर्द से , कोई उबर सके कैसे ;
पुराने ख़त मुए भरमाने चले आते हैं .
ख़ुदी को छोड़ कर , जिसको ख़ुदा बनाया था ;
गज़ब सितम है , वही नज़र अब चुराते हैं .
इश्क की राह भी कितनी अजीब होती है ;
सोच के निकलो कहाँ , कहाँ चले आते हैं .
तेरी चाहत में , जिस्म ओढ़ , जहाँ में आया ;
तुझे ही रास ना आया तो छोड़ जाते हैं .

रचयिता ~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
लखनऊ (यू .पी.),इंडिया
(शब्दार्थ ~~ पैमाने =प्याले [शराब के ],
ख़ुदी = आत्मसम्मान , सितम = अत्याचार )

abhisays
04-09-2011, 03:54 PM
वाह वाह वाह..

जनाब क्या बात है. ..

किसी आशिक का दर्द ऐ बयां क्या खूब किया है...

Dr. Rakesh Srivastava
04-09-2011, 04:13 PM
धन्यवाद , अभिशेष जी .मैंने तो अपने जीवन में आशिकों ko
प्रायः इन्ही हालात से गुजरते देखा है .

Dr. Rakesh Srivastava
04-09-2011, 04:18 PM
अरविन्द जी आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

YUVRAJ
04-09-2011, 04:58 PM
पतंगे को पता होता है कि लौ पर जा कर मौत ही आनी है फिर भी खुद को रोक नहीं पाता ...
आशिक बेचारें क्या करें शबाब भी लौ की मानिंद जो होता है ...:bang-head:

बहुत ही सुन्दरता से बयाँ की है आपने एक आशिक की दास्ता ...:bravo:धन्यवाद , अभिशेष जी .मैंने तो अपने जीवन में आशिकों ko
प्रायः इन्ही हालात से गुजरते देखा है .

Sikandar_Khan
04-09-2011, 05:09 PM
जब हसीं आँख के पैमाने छलक जाते हैं ;
लोग मदहोश हो के राह भटक जाते हैं .
ये जानते हुए भी , जल्द ही मिट जाना है ;
रेत पे नाम सब लिखवाने चले जाते हैं .
पनाह हुस्न की , थोड़े दिनों तक पा के लोग ;
तमाम उम्र को बनवास चले जाते हैं .
जिंदगी जश्न के संग बीत रही हो , फिर भी ;
इश्क में खुद को सब तड़पाने चले आते हैं .
किसी के दर्द से , कोई उभर सके कैसे ;
पुराने ख़त मुए भरमाने चले आते हैं .
ख़ुदी को छोड़ कर , जिसको ख़ुदा बनाया था ;
गज़ब सितम है , वही नज़र अब चुराते हैं .
इश्क की राह भी कितनी अजीब होती है ;
सोच के निकलो कहाँ , कहाँ चले आते हैं .
तेरी चाहत में , जिस्म ओढ़ , जहाँ में आया ;
तुझे ही रास ना आया तो छोड़ जाते हैं .




राकेश जी
बहुत ही खूबसूरती से हाल बयान किया है आपने |
आपकी ये पंक्तियां मुझे बहुत ही पसन्द आई

Dr. Rakesh Srivastava
04-09-2011, 11:36 PM
धन्यवाद, सिकंदर जी .आप सही हो सकते हैं
किन्तु मुझे तो अभी भी लगता है कि दर्द के
सन्दर्भ में उबर शब्द ही सटीक बैठेगा , न कि
उभर . फिर भी मैं इस पर और विचार करूँगा .

Dr. Rakesh Srivastava
04-09-2011, 11:43 PM
युवराज जी ,प्रतिक्रिया देने के लिए
आपका आभारी हूँ . बहुत धन्यवाद .