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View Full Version : 1857 की क्रान्ति का प्रथम शहीद : मंगल पांडे


ravi sharma
18-09-2011, 03:22 AM
कहा जाता है कि पूरे देश में एक ही दिन ३१ मई १८५७ को क्रान्ति आरम्भ करने का निश्चय किया गया था, पर २९ मार्च १८५७ को बैरकपुर छावनी के सिपाही मंगल पाण्डे (१९ जुलाई १८२७-८ अप्रैल १८५७) की विद्रोह से उठी ज्वाला वक्त का इन्तज़ार नहीं कर सकी और प्रथम स्वाधीनता संग्राम का आगाज़ हो गया। मंगल पाण्डे को १८५७ की क्रान्ति का पहला शहीद सिपाही माना जाता है।
२९ मार्च १८५७, दिन रविवार-उस दिन जनरल जॉन हियर्से अपने बँगले में आराम कर रहा था कि एक लेफ्टिनेन्ट बद्हवास सा दौड़ता हुआ आया और बोला कि देसी लाइन में दंगा हो गया। खून से रँगे अपने घायल लेफ्टिनेन्ट की हालत देखकर जनरल जॉन हियर्से अपने दोनों बेटों को लेकर ३४वीं देसी पैदल सेना की रेजीमेन्ट के परेड ग्राउण्ड की ओर दौड़ा। उधर धोती-जैकेट पहने ३४वीं देसी पैदल सेना का जवान मंगल पाण्डे नंगे पाँव ही एक भरी बन्दूक लेकर क्वाटर गार्ड के सामने बड़े ताव मे चहलकदमी कर रहा था और रह-रह कर अपने साथियों को ललकार रहा था- “अरे! अब कब निकलोगे? तुम लोग अभी तक तैयार क्यों नहीं हो रहे हो? ये अंग्रेज हमारा धर्म भ्रष्ट कर देंगे। आओ, सब मेरे पीछे आओ। हम इन्हें अभी ख़त्म कर देते हैं।”लेकिन अफ़सोस किसी ने उसका साथ नहीं दिया। पर मंगल पाण्डे ने हार नहीं मानी और अकेले ही अंग्रेज़ी हुकूमत को ललकारता रहा। तभी अंग्रेज़ सार्जेंट मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन ने मंगल पाण्डे को गिरफ़्तार करने का आदेश दिया। यह सुन मंगल पाण्डे का खून खौल उठा और उसकी बन्दूक गरज उठी। सार्जेंट मेजर ह्यूसन वहीं लुढ़क गया। अपने साथी की यह स्थिति देख घोड़े पर सवार लेफ्टिनेंट एडजुटेंट बेम्पडे हेनरी वॉग मंगल पाण्डे की तरफ़ बढ़ता है, पर इससे पहले कि वह उसे काबू कर पाता, मंगल पाण्डे ने उस पर गोली चला दी। दुर्भाग्य से गोली घोड़े को लगी और वॉग नीचे गिरते हुये फुर्ती से उठ खड़ा हुआ। अब दोनों आमने-सामने थे। इस बीच मंगल पाण्डे ने अपनी तलवार निकाल ली और पलक झपकते ही वॉग के सीने और कन्धे को चीरते हुये निकल गई। तब तक जनरल जान हियर्से घोड़े पर सवार परेड ग्राउण्ड में पहुँचा और यह दृश्य देखकर भौंचक्का रह गया। जनरल हियर्से ने जमादार ईश्वरी प्रसाद को हुक्म दिया कि मंगल पाण्डे को तुरन्त गिरफ़्तार कर लो पर उसने ऐसा करने से मना कर दिया। तब जनरल हियर्से ने शेख़ पल्टू को मंगल पाण्डे को गिरफ़्तार करने का हुक्म दिया। शेख़ पल्टू ने मंगल पाण्डे को पीछे से पकड़ लिया। स्थिति भयावह हो चली थी। मंगल पाण्डे ने गिरफ़्तार होने से बेहतर मौत को गले लगाना उचित समझा और बन्दूक की नाली अपने सीने पर रख पैर के अंगूठे से फायर कर दिया। लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था, सो मंगल पाण्डे सिर्फ घायल होकर ही रह गया। तुरन्त अंग्रेज़ी सेना ने उसे चारों तरफ़ से घेर कर बन्दी बना लिया और मंगल पाण्डे के कोर्ट मार्शल का आदेश हुआ। अंग्रेज़ी हुकूमत ने ६ अप्रैल को फैसला सुनाया कि मंगल पाण्डे को १८ अप्रैल को फाँसी पर चढ़ा दिया जाये। पर बाद में यह तारीख ८ अप्रैल कर दी गयी, ताकि विद्रोह की आग अन्य रेजिमेण्टो में भी न फैल जाये। मंगल पाण्डे के प्रति लोगों में इतना सम्मान पैदा हो गया था कि बैरकपुर का कोई जल्लाद फाँसी देने को तैयार नहीं हुआ। नतीजन कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाकर मंगल पाण्डे को ८ अप्रैल, १८५७ को फाँसी पर चढ़ा दिया गया। मंगल पाण्डे को फाँसी पर चढ़ाकर अंग्रेज़ी हुकूमत ने जिस विद्रोह की चिंगारी को ख़त्म करना चाहा, वह तो फैल ही चुकी थी और देखते ही देखते इसने पूरे देश को अपने आग़ोश में ले लिया।
१४ मई १८५७ को गर्वनर जनरल लार्ड वारेन हेस्टिंगस ने मंगल पाण्डे का फाँसीनामा अपने आधिपत्य में ले लिया। ८ अप्रैल १८५७ को बैरकपुर, बंगाल में मंगल पाण्डे को प्राण दण्ड दिये जाने के ठीक सवा महीने बाद, जहाँ से उसे कलकत्ता के फोर्ट विलियम कॉलेज में स्थानान्तरित कर दिया गया था। सन् १९०५ के बाद जब लार्ड कर्जन ने उड़ीसा, बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश की थल सेनाओं का मुख्यालय बनाया गया तो मंगल पाण्डे का फाँसीनामा जबलपुर स्थानान्तरित कर दिया गया। जबलपुर के सेना आयुध कोर के संग्राहलय में मंगल पाण्डे का फाँसीनामा आज भी सुरक्षित रखा है। इसका हिन्दी अनुवाद निम्नवत है-

जनरल आर्डर्स
बाय हिज़ एक्सीलेन्स
द कमान्डर इन चीफ़, हेड क्वार्टर्स, शिमला
१८ अप्रैल १८५७
गत १८ मार्च १८५७, बुधवार को फोर्ट विलियम्स में सम्पन्न कोर्ट मार्शल के बाद कोर्ट मार्शल समिति ६ अप्रैल १८५७,सोमवार के दिन बैरकपुर में पुनः इकट्ठा हुई तथा पाँचवी कंपनी की ३४वीं रेजीमेंट नेटिव इनफेन्ट्री के १४४६ नं. के सिपाही मंगल पाण्डे के ख़िलाफ़ लगाये गये निम्न आरोपों पर विचार किया।
आरोप (१) बगावतः- २९ मार्च १८५७ के बैरकपुर में परेड मैदान पर अपनी रेजीमेन्ट की क्वार्टर गार्ड के समक्ष तलवार और राइफल से लैस होकर अपने साथियों को ऐसे शब्द में ललकारा, जिससे वे उत्तेजित होकर उसका साथ दें तथा कानूनों का उल्लंघन करें।
आरोप (२) इसी अवसर पर पहला वार किया गया तथा हिंसा का सहारा लेते हुए अपने वरिष्ठ अधिकारियों, सार्जेन्ट-मेजर जेम्स थार्नटन ह्यूसन और लेफ्टिनेंट-एडजुटेंट बेम्पडे हेनरी वॉग जो ३४वीं रेजेमेन्ट नेटिव इनफेन्ट्री के ही थे, पर अपनी राइफल से कई गोलियाँ दागीं तथा बाद में उल्लिखित लेफ्टिलेन्ट वॉग और सार्जेंट मेजर ह्यूसन पर तलवार के कई वार किये।
निष्कर्ष- अदालत पाँचवी कंपनी की ३४वीं रेजीमेन्ट नेटिव इनफेन्ट्री के सिपाही नं० १४४६, मंगल पाण्डे को उक्त आरोपों का दोषी पाती है।
सजाः- अदालत पाँचवी कंपनी की ३४वीं रेजीमेन्ट नेटिव इनफेन्ट्री के सिपाही नं० १४४६,मंगल पाण्डे को मृत्युपर्यन्त फाँसी पर लटकाये रखने की सजा सुनाती है।

अनुमोदित एवं पुष्टिकृत
(हस्ताक्षरित) जे.बी.हरसे, मेजर जनरल कमांडिंग,
प्रेसीडेन्सी डिवीजन
बैरकपुर, ७ अप्रैल १८५७

टिप्पणीः-
पाँचवी कंपनी की ३४वीं रेजीमेन्ट नेटिव इनफेन्ट्री के सिपाही नं० १४४६, मंगल पाण्डे को कल ८ अप्रैल को प्रातः साढ़े पाँच बजे ब्रिगेड परेड पर समूची फौजी टुकड़ी के समक्ष फाँसी पर लटकाया जायेगा।
(हस्ताक्षरित) जे.बी.हरसे, मेजर जनरल, कमांडिंग प्रेसीडेन्सी डिवीजन

इस आदेश को प्रत्येक फौजी टुकड़ी की परेड के दौरान और खास तौर से बंगाल आर्मी के हर हिन्दुस्तानी सिपाही को पढ़कर सुनाया जाये।
बाय ऑर्डर ऑफ हिज एक्सीलेन्सी
द कमांडर-इन-चीफ
सी.चेस्टर, कर्नल।