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View Full Version : मन के औज़ार


Dr. Rakesh Srivastava
18-09-2011, 07:47 AM
कुछ अलग सोच ज़रा अमल में लाकर देखो ;
मन के औज़ार को हथियार बना कर देखो .
जिन्होंने ज़ख्म दिए हैं , उन्हें बख्शो न कभी ;
उनकी मेहँदी में अपना खून मिला कर देखो .
बहुत मुमकिन है कल को दोस्त वो बन जाये फिर ;
दुश्मनी ठानो मत , कुछ वक्त भुलाकर देखो .
कुछ एक ढीठ हैं ऐसे , के जो साधे न सधें ;
खुद को थोपो न उन पे , दिल में समा कर देखो .
उम्र झगड़ों में गुज़र जाये , इससे बेहतर है ;
थोड़े अधिकार को दूजे में बाट कर देखो .
लाख दुश्मन हो , मगर जब बहुत बीमार पड़े ;
तुम ऐन वक़्त उसे , उसके घर जाकर देखो .
हर बड़े फैसले से पहले सबकी बात सुनो ;
जिनसे मतभेद हैं उनको भी बुलाकर देखो .
सामने वाला अगर आग - बबूला हो तो ;
पलीता मौन का तुम उसके लगाकर देखो .

रचयिता ~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
गोमती नगर,लखनऊ,इंडिया .

abhisays
18-09-2011, 08:31 AM
सन्डे की सुबह सुबह इतनी अच्छी कविता पढने को मिली, अब दिन अच्छा गुज़रेगा. :bravo:

malethia
18-09-2011, 10:29 AM
बहुत ही शानदार प्रस्तुती............
जिन्दगी को जीने का बेहतरीन नजरिया पेश किया है आपने.................

ndhebar
18-09-2011, 11:04 AM
बहुत मुमकिन है कल को दोस्त वो बन जाये फिर ;
दुश्मनी ठानो मत , कुछ वक्त भुलाकर देखो .
लाख दुश्मन हो , मगर जब बहुत बीमार पड़े ;
तुम ऐन वक़्त उसे , उसके घर जाकर देखो .

रचयिता ~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
गोमती नगर,लखनऊ,इंडिया .

मैंने मेरी पसंदीदा पंक्ति उद्धृत की है
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

bhavna singh
18-09-2011, 11:28 AM
जिन्होंने ज़ख्म दिए हैं , उन्हें बख्शो न कभी ;
दुश्मनी ठानो मत , कुछ वक्त भुलाकर देखो .




राकेश जी आपकी ये पंक्तियाँ कुछ समझ से परे हैँ /

YUVRAJ
18-09-2011, 11:34 AM
वाह क्या बात है ...वक्त का मरहम शायद दुनियाँ की सबसे कारगर दवा है ...
गजब का पतीला लगाया है डाँक्टर सर जी ...:)
मिजाज मस्त हो गया ...:bravo::bravo::bravo:

जिन्होंने ज़ख्म दिए हैं , उन्हें बख्शो न कभी ;
उनकी मेहँदी में अपना खून मिला कर देखो .
बहुत मुमकिन है कल को दोस्त वो बन जाये फिर ;
दुश्मनी ठानो मत , कुछ वक्त भुलाकर देखो .
........
............
.............
सामने वाला अगर आग - बबूला हो तो ;
पलीता मौन का तुम उसके लगाकर देखो .

रचयिता ~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
गोमती नगर,लखनऊ,इंडिया .

Dr. Rakesh Srivastava
18-09-2011, 06:16 PM
वरिष्ट सदस्या , परम माननीया भावना सिंह जी ;
स्त्री होने के बावजूद आपने जाने - अनजाने स्त्री
के चाँद से मुखड़े पर मर्द की मूंछ लगाकर उसका
विश्लेषण करने का प्रयास किया है , इसीलिए आपको
परेशानी पेश आ रही है . दरअसल ग़ज़ल के दो अलग -
अलग शेर का एक - एक मिसरा जोड़ कर एक नया शेर
ही गढ़ डाला है . इसीलिए आपको भ्रम हो रहा है .
कृपया इन दोनों पंक्तियों को सही जगह पर लगा कर पढ़ें .
अर्थ स्वयं स्पष्ट हो जायेगा .

sagar -
18-09-2011, 06:49 PM
लाजवाब प्रस्तुति .......

~VIKRAM~
18-09-2011, 06:51 PM
कुछ अलग सोच ज़रा अमल में लाकर देखो ;
मन के औज़ार को हथियार बना कर देखो .
जिन्होंने ज़ख्म दिए हैं , उन्हें बख्शो न कभी ;
उनकी मेहँदी में अपना खून मिला कर देखो .
बहुत मुमकिन है कल को दोस्त वो बन जाये फिर ;
दुश्मनी ठानो मत , कुछ वक्त भुलाकर देखो .
कुछ एक ढीठ हैं ऐसे , के जो साधे न सधें ;
खुद को थोपो न उन पे , दिल में समा कर देखो .
उम्र झगड़ों में गुज़र जाये , इससे बेहतर है ;
थोड़े अधिकार को दूजे में बाट कर देखो .
लाख दुश्मन हो , मगर जब बहुत बीमार पड़े ;
तुम ऐन वक़्त उसे , उसके घर जाकर देखो .
हर बड़े फैसले से पहले सबकी बात सुनो ;
जिनसे मतभेद हैं उनको भी बुलाकर देखो .
सामने वाला अगर आग - बबूला हो तो ;
पलीता मौन का तुम उसके लगाकर देखो .

रचयिता ~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
गोमती नगर,लखनऊ,इंडिया .
दुश्मनी कर ली है उन्होंने हमसे, जब मतलब निकल गया,
वो वफ़ा न कर सकेंगी-हम बेवफाई न कर सकेंगे ये हमें मालूम था,
हम उनकी बेवफाई से अनजान थे, उनके अचानक पलटने से हैरान थे वो रुसवा करेंगी हमें सरेआम इस बात से हम paresan थे |


kuch tuti futi si likha hun ....pasand aae to aah bharna hosake to kabhi na kisi se tum pyr karna...

Dr. Rakesh Srivastava
18-09-2011, 11:34 PM
सर्वश्री युवराज जी , रणवीर जी , मलेठिया जी ,

सागर जी , विक्रम जी , Abhisays ji , ndhebar जी
एवं सुश्री भावना सिंह का बहुत - बहुत धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava
19-09-2011, 10:56 AM
वाह क्या बात है ...वक्त का मरहम शायद दुनियाँ की सबसे कारगर दवा है ...
गजब का पतीला लगाया है डाँक्टर सर जी ...:)
मिजाज मस्त हो गया ...:bravo::bravo:
______________________________________
युवराज जी , भूल से ही सही , पर आपने तो पलीता का पतीला बनाकर मुस्कराने पर मजबूर कर दिया .

YUVRAJ
19-09-2011, 11:18 AM
अहा हा हा हा ...:lol:
सारी सर जी टाईपिंग मिस्टेक ...:(युवराज जी , भूल से ही सही , पर आपने तो पलीता का पतीला बनाकर मुस्कराने पर मजबूर कर दिया .

naman.a
19-09-2011, 11:07 PM
बहुत ही उम्दा कविता । राकेश जी, एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति । बहुत धन्यवाद आपका । आपकी कविताओ का काव्यरस पान हमे आगे भी ऐसे ही मिलता रहे ये ही आशा है ।

Dr. Rakesh Srivastava
19-09-2011, 11:19 PM
नमन जी , आपको रचना पसंद आई .
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

arvind
20-09-2011, 01:26 PM
राकेश जी, अब क्या कहु... ?, आपके और आपके कविताओ के बारे में। पढ़ कर अभिभूत हो जाता हूँ। ये हमारा और हमारे फोरम का सौभाग्य है की आप जैसे लोग इस फोरम के सदस्य है। इस फोरम के माध्यम से आप जैसे लोग का सानिध्य प्राप्त हुआ, तो फोरम पर आना सफल हुआ।

Dr. Rakesh Srivastava
20-09-2011, 05:37 PM
अरविन्द जी , आप लोग मेरे और मेरी रचनाओं के बारे में ऐसे अच्छे ख़याल रखते हैं ,
ये जानकर सुखद आश्चर्य होता है . प्रेरणा भी मिलती है . आप सबकी उम्मीदों पर सदा
खरा उतरते रहने का कितना दबाव रहता है , ये मैं ही जानता हूँ . बड़े मजे और सुकून
से चिकित्सा - कर्म कर रहा था , पता नहीं कब चुपके से हाल - फिलहाल ससुरा ये
कविता का कीड़ा काटकर खुजली छोड़ गया .देखना है
ये खुजली कब तक सलीके से जारी रहती है .
बहरहाल आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

malethia
20-09-2011, 05:49 PM
अरविन्द जी , आप लोग मेरे और मेरी रचनाओं के बारे में ऐसे अच्छे ख़याल रखते हैं ,
ये जानकर सुखद आश्चर्य होता है . प्रेरणा भी मिलती है . आप सबकी उम्मीदों पर सदा
खरा उतरते रहने का कितना दबाव रहता है , ये मैं ही जानता हूँ . बड़े मजे और सुकून
से चिकित्सा - कर्म कर रहा था , पता नहीं कब चुपके से हाल - फिलहाल ससुरा ये
कविता का कीड़ा काटकर खुजली छोड़ गया .देखना है
ये खुजली कब तक सलीके से जारी रहती है .
बहरहाल आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .
डॉ.साहेब ये भी एक तरह का चिकित्सा-कर्म ही है,
आपकी रचनाओं से हृदय और दिमाग को जो सकून मिलता है वह क्या किसी दवा से कम है ,

arvind
20-09-2011, 06:19 PM
अरविन्द जी , आप लोग मेरे और मेरी रचनाओं के बारे में ऐसे अच्छे ख़याल रखते हैं ,
ये जानकर सुखद आश्चर्य होता है . प्रेरणा भी मिलती है . आप सबकी उम्मीदों पर सदा
खरा उतरते रहने का कितना दबाव रहता है , ये मैं ही जानता हूँ . बड़े मजे और सुकून
से चिकित्सा - कर्म कर रहा था , पता नहीं कब चुपके से हाल - फिलहाल ससुरा ये
कविता का कीड़ा काटकर खुजली छोड़ गया .देखना है
ये खुजली कब तक सलीके से जारी रहती है .
बहरहाल आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .
डॉ0 साहब, सच तो ये है मन की उड़ान का व्यासायिक मन मस्तिष्क से कोई संबंध नहीं होता। दोनों की अलग दुनियाँ और अलग परिदृश्य होते है। भले ही आप अपने एक हुनर (चिकित्सा) के माध्यम से दूसरों की पीड़ा हरते है, वही दूसरे हुनर (काव्य) से आप खुद को निरोग और खुश रखते है। ऐसा संयोग काफी बिरले ही मिलते है।