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View Full Version : चल पड़े जिधर दो डग मग में


ravi sharma
18-09-2011, 04:02 PM
महात्मा गाँधी पर लिखी उपरोक्त पंक्तियाँ आज पुनः कुछ सीमा तक सार्थक हुई हैं,.परन्तु क्या वास्तव में गाँधी जी की तुलना अन्ना हजारे से करना न्यायसंगत है?

जागरण जंक्शन द्वारा दिया गया विषय एक प्रकार से है तो समीचीन ,क्योंकि आज प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रोनिक मीडिया,अन्ना के अनुयायी हों या फिर आमजन अन्ना को आधुनिक गाँधी या दूसरे गाँधी कह कर ही पुकारते हैं. (गाँधी, जिनको सारा देश बापू,महात्मा,राष्ट्रपिता आदि विविध नामों से पुकारता था. ). अन्ना को गाँधी मानने के पीछे सम्भवतः एक कारण ये है कि आज की पीढी या इन अनुयायियों में से अधिकांश ऩे बापू को नहीं देखा है न ही उनका स्वाधीनता संघर्ष देखा है .गाँधी जी तो आज़ादी के लगभग साढ़े पांच माह पश्चात ही स्वर्गवासी हो गये थे.अतः उनके विषय में समस्त ज्ञान इतिहास की पुस्तकों,फिल्म या फिर उस पीढी द्वारा बताये गये आख्यानों या वृतांतों से ही है.राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का योगदान अंग्रेजों से मुक्त कराने में अप्रतिम रहा है,(यद्यपि ये भी उतना ही सत्य है कि हमें स्वाधीनता दिलाने में हमारे क्रांतिवीरों का योगदान कम महत्वपूर्ण नहीं.),बापू ऩे देश को स्वाधीन कराने में अहिंसात्मक आन्दोलन को अपना ब्रह्मास्त्र बनाया.एक धोती और हाथ में लाठी था उनका बाना और और सत्य व् अहिंसा थे उनके अस्त्र शस्त्र और निहत्थी जनता उन की

ravi sharma
18-09-2011, 04:04 PM
आज गाँधी जी के देहावसान के ६३ वर्ष पश्चात एक व्यक्तित्व उन्ही जैसी वेशभूषा , उन्ही के पथ का अनुसरण कर रहा हो और उद्देश्य हो आम आदमी का हित तो आमजन द्वारा उनको गाँधी की संज्ञा प्रदान करना कुछ आश्चर्यजनक नहीं .
अन्ना को गांधी कहा जाना उपयुक्त है या नहीं किस सीमा तक उचित है ये जानने के लिए दोनों अहिंसा प्रेमी जन नेताओं के आन्दोलन तथा कार्य प्रणाली के विषय में संक्षेप में विचार करना आवश्यक है.

ravi sharma
18-09-2011, 04:06 PM
केवल अंग्रेज ही नहीं सम्पूर्ण विश्व के लिए अकल्पनीय घटना थी भारत की आज़ादी .अब तक उन्होंने रक्त रंजित क्रांतियों के विषय में सुना या देखा था परन्तु ये परिदृश्य उससे सर्वथा भिन्न.हमारे स्वाधीनता आन्दोलन को नेतृत्व प्रदान करने से पूर्व दक्षिण अफ्रीका में भी गांधी जी ऩे संघर्ष किया. अनेकानेक अपमान सह कर या कष्ट सह कर भी वे अपने पथ पर दृढ रहे

ravi sharma
18-09-2011, 04:07 PM
भारत आगमन पर भी उन्होंने अस्पृश्यता,नारी शिक्षा,मद्य निषेध,रंग भेद ,अस्वच्छता ,पर्दाप्रथा,कृषकों पर लगाये गये दमनकारी करों के विरुद्ध आन्दोलन किये.स्वाधीनता आन्दोलन में असहयोग आन्दोलन,नमक आन्दोलन,सविनय अवज्ञा आन्दोलन ,भारत छोड़ों आन्दोलन,विदेशी वस्त्रों की होली जलाने,स्वदेशी को प्रोत्साहन आदि के माध्यम से निरंतर सक्रिय रह कर अंग्रेजों को शांति की श्वास नहीं लेने दी.सत्य,अहिंसा,असहयोग की राह पर सदैव अग्रसर रहे.गाँधी जी को अपने ब्रह्मास्त्रों पर इतना विश्वास था कि नेता जी सुभाष, सरदार पटेल ,भगत सिंह,राजगुरु,चंदशेखर आदि के साथ उनका विचार साम्य नहीं हो सका.कांग्रेस के गरम दल के नेताओं की नीतियों से भी वो कभी सहमत नहीं रहे.परन्तु सम्मान उनको सबसे मिला केवल भारत में ही नहीं विदेशों में भी. गाँधी जी के संघर्ष को अंततः सफलता मिली और अंग्रेज भारत छोड़ कर चले गये.देश आज़ाद हुआ

ravi sharma
18-09-2011, 04:08 PM
अन्ना हजारे की यदि बात करें तो महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव रालेगन सिद्धि में ,१९३७ में एक निर्धन बहुत बड़े कृषक परिवार में जन्म लेने वाले अन्ना का बचपन बहुत हो कष्टों में व्यतीत हुआ.शिक्षा-दीक्षा भी अधिक न हो सकी,कभी फूल विक्रेता के यहाँ नौकरी तो कभी फूल विक्रेता का कार्य जीवन यापन के लिए किया.१९६२ में भारत-चीन युद्ध के समय जब देश में सेना में नवयुवकों को भर्ती के लिए आह्वान किया जा रहा था , तो शारीरिक मापदंड सेना के अनुरूप न होने पर भी एक ड्राईवर के रूप में अन्ना सेना में प्रविष्ट हुए.१९६५ के युद्ध के समय अन्ना के सामने ही सैनिकों के गोलाबारी में शहीद हो जाने के बाद अन्ना का मन कुछ विचलित हुआ और १५ वर्ष सेना में नौकरी कर स्वेच्छा से निवृत्ति ले ली सेना से.उनके अनुसार स्वामी विवेकनद की एक पुस्तक पढ़कर उन्होंने प्रेरित हो कर जन सेवा का व्रत लिया .
अपने छोटे से पिछड़े गाँव में अन्ना वापस आ गये,गाँव में शिक्षा के लिए एक स्कूल की व्यवस्था के लिए अन्ना का प्रयास रंग लाया और गाँव के विकास के लिए प्रयासरत अन्ना की पहिचान बढी स्वयं गाँव वासियों के साथ कृषि में जल संरक्षण जैसे उपायों का सहारा ले कर अन्ना ऩे अपने गाँव को विश्व स्तर पर पहिचान

ravi sharma
18-09-2011, 04:08 PM
दिलाई..महाराष्ट्र में कभी शिव सेना और भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन वाली सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों को पद से हटाने को लेकर तो कभी एन.सी पी +कांग्रेस के भ्रष्ट मंत्रियों को उनके पद से हटवाने को अन्ना संघर्ष रत,रहे,राष्ट्रीय स्तर पर उनका महान योगदान रहा सूचना अधिकार दिलवाने के लिए कार्य करने हेतु.
सूचना का अधिकार दिलाने के लिए अन्ना ऩे १९९७ में अभियान प्रारम्भ किया .२००३ तक प्रयासरत रहकर भी कुछ ठोस सफलता न मिलने पर अन्ना अगस्त में ही अनशन पर बैठे .१२ दिन तक निरंतर अनशन पर डटे रहे.. अंततः संसद में बिल पारित हुआ.सरकार इस क़ानून को कुछ ढीला बनाना चाह रही थी परन्तु अन्ना के प्रयासों के चलते सफल न हो सकी और अन्ना को पुनः अनशन का सहारा लेना पड़ा.और सरकार ऩे अपना इरादा बदला.
देश में व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता को मुक्ति दिलाने हेतु अन्ना ऩे ५ अप्रैल २०११ को दिल्ली में जन्तर-मन्तर पर अनशन प्रारंभ किया अपने कर्मठ सेनानियों सुश्री किरण बेदी, उच्च प्रशासनिक पदासीन रहे अरविन्द केजरीवाल ,विधिवेत्ता शांति भूषण व प्रशांत भूषण तथा संतोष हेगड़े आदि उनके साथ डटे रहे.प्रारम्भ में तो सरकार ऩे इस आन्दोलन के प्रति उपेक्षा ही बरती परन्तु मीडिया के प्रयासों से आन्दोलन जन जन तक पहुंचा और अगाध जन समर्थन के चलते सरकार ऩे बला टालने के उद्देश्य से १६ अगस्त तक लोकपाल बिल प्रस्तुत करने की मांग स्वीकार कर ली.

ravi sharma
18-09-2011, 04:09 PM
नियत में खोट होने के कारण सरकार ऩे स्वयं को तथा प्रशासनिक मशीनरी को सुरक्षित बनाने के प्रयास में एक अति कमजोर विधेयक तैयार किया जो अन्ना के प्रस्तावित जन लोक पाल से बिल्कुल भिन्न, नख-दंत विहीन था.१६ अगस्त को अन्ना द्वारा दी गयी समय सीमा पर जब सरकार ऩे अड़ियल रुख अपनाया तथा सरकार में सम्मिलित मंत्रियों ऩे अनर्गल प्रलाप करते हुए साम-दाम-दंड-भेद की नीति का आश्रय लेते हुए आरोप प्रत्यारोप की कुटिल नीति अपनाई तो अन्ना पुनः अनशन पर बैठने वाले थे कि उनको उससे पूर्व ही गिरफ्तार कर .तिहाड़ जेल भेज दिया . अन्ना को.जेल भेजना सरकार के गले की फांस बन गया और अपार जन समर्थन देश-विदेश में मिलता देख कर सरकार को ससम्मान अन्ना को सिविल सोसाईटी की शर्तों पर रिहा करना पड़ा.सरकार की किरकिरी तो हुई साथ ही अन्ना के रंग में सारा देश रंग गया.–
अन्ना के इस आन्दोलन की सबसे बड़ी विशेषता रही ,आम जनता का समर्थन और जनता का अनुशासित एवं अहिंसात्मक बने रहना.———————————————————————————————-
जागरण द्वारा दिए गये विषय पर यदि विचार किया जाय तो मेरे विचार से दो व्यक्तित्त्वों की तुलना करने से पूर्व तत्कालीन परिस्थितियों पर विचार करना आवश्यक है. वैसे भी तुलना करने के लिए देश, काल परिस्थिति का समान होना आवश्यकहै..———————————————————————————————

ravi sharma
18-09-2011, 04:09 PM
महात्मा गाँधी का सम्पूर्ण कार्य-काल पराधीनता का युग था अंग्रेज विश्व में उस समय सर्वशक्तिशाली थे,कहा जाता था कि “ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता”अर्थात विश्व में सर्वत्र उनकी सत्ता विद्यमान थी.ऐसी शक्ति से अपने अचूक अस्त्रों से
निरंतर लोहा लेना ! ……………………..
उस समय सत्ता अंग्रेजों की थी ,हम मात्र दास थे और विश्व के अन्य देशों से समर्थन मिलना भी दुष्कर था.वैसे भी सब समर्थ का साथ देते हैं.
उस समय संचार साधन भी सीमित थे,और जो थे भी उनपर तत्कालीन सत्ता का आधिपत्य था.
उस काल में लडाई थी एक विदेशी सत्ता के विरुद्ध ,और दासता की बेड़ियों से सभी मुक्ति चाहते थे.
गाँधी जी के आंदोलनों का स्वरूप भिन्न था,क्योंकि परिस्थिति की मांग थी .
इन सब परिस्थितियों के विपरीत आज अन्ना ऩे बिगुल बजाया है,स्वाधीन भारत की भ्रष्ट सरकार के विरुद्ध,जिसको जनता ऩे स्वयं चुना है..ऐसे में सरकार को अपनी आगामी कुर्सी की भी चिंता करनी पड़ रही है.
संचार साधन अपरिमित हैं,पल पल की खबर सुर्खियाँ बन विश्व के कोने कोने में पहुँच जाती है,
एक तथ्य और गाँधी जी जहाँ विदेश में शिक्षा प्राप्त कर बैरिस्टर बने थे और देश-विदेश में घूम कर अनुभव अर्जित कर चुके थे,वहां अन्ना बहुत ही कम शिक्षा प्राप्त कर सके .
स्वार्थ की राजनीति में सत्ता पक्ष आन्दोलन को कुचलना चाह रहा है पर विवश है.
अतः दोनों महान नेताओं की तुलना करना दोनों के साथ अन्याय है.गाँधी जी के पथ पर चलने वाला स्वयं गाँधी नहीं उनका शिष्य ही हो सकता है.अन्ना स्वयं को गाँधी का अनुयायी मानते हैं,क्योंकि वह उसी पथ पर चलने का प्रयास कर रहे हैं,जिस पथ के राही बापू थे.यही कारण है कि प्रेरणा ग्रहण करने वो सदा राजघाट जाते हैं

ravi sharma
18-09-2011, 04:09 PM
महात्मा गाँधी का सम्पूर्ण कार्य-काल पराधीनता का युग था अंग्रेज विश्व में उस समय सर्वशक्तिशाली थे,कहा जाता था कि “ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता”अर्थात विश्व में सर्वत्र उनकी सत्ता विद्यमान थी.ऐसी शक्ति से अपने अचूक अस्त्रों से
निरंतर लोहा लेना ! ……………………..
उस समय सत्ता अंग्रेजों की थी ,हम मात्र दास थे और विश्व के अन्य देशों से समर्थन मिलना भी दुष्कर था.वैसे भी सब समर्थ का साथ देते हैं.
उस समय संचार साधन भी सीमित थे,और जो थे भी उनपर तत्कालीन सत्ता का आधिपत्य था.
उस काल में लडाई थी एक विदेशी सत्ता के विरुद्ध ,और दासता की बेड़ियों से सभी मुक्ति चाहते थे.
गाँधी जी के आंदोलनों का स्वरूप भिन्न था,क्योंकि परिस्थिति की मांग थी .
इन सब परिस्थितियों के विपरीत आज अन्ना ऩे बिगुल बजाया है,स्वाधीन भारत की भ्रष्ट सरकार के विरुद्ध,जिसको जनता ऩे स्वयं चुना है..ऐसे में सरकार को अपनी आगामी कुर्सी की भी चिंता करनी पड़ रही है.
संचार साधन अपरिमित हैं,पल पल की खबर सुर्खियाँ बन विश्व के कोने कोने में पहुँच जाती है,
एक तथ्य और गाँधी जी जहाँ विदेश में शिक्षा प्राप्त कर बैरिस्टर बने थे और देश-विदेश में घूम कर अनुभव अर्जित कर चुके थे,वहां अन्ना बहुत ही कम शिक्षा प्राप्त कर सके .
स्वार्थ की राजनीति में सत्ता पक्ष आन्दोलन को कुचलना चाह रहा है पर विवश है.
अतः दोनों महान नेताओं की तुलना करना दोनों के साथ अन्याय है.गाँधी जी के पथ पर चलने वाला स्वयं गाँधी नहीं उनका शिष्य ही हो सकता है.अन्ना स्वयं को गाँधी का अनुयायी मानते हैं,क्योंकि वह उसी पथ पर चलने का प्रयास कर रहे हैं,जिस पथ के राही बापू थे.यही कारण है कि प्रेरणा ग्रहण करने वो सदा राजघाट जाते हैं

ravi sharma
18-09-2011, 04:10 PM
गाँधी जी ने अपने समय में तत्कालीन परिस्थितियों में अप्रतिम साहस का परिचय देते हुए देश की आज़ादी में बहुत महत्पूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था.अन्ना आज के दौर में हमारे देश के विकास की सबसे बड़ी बाधा भ्रष्टाचार के अंत का प्रयास कर रहे हैं,दोनों का योगदान अपने अपने स्तर पर महान है.
अतः आवश्यक है कि हम अपनी दुर्बलता व्यक्ति पूजा का परित्याग करें,और एक स्वच्छ व्यवस्था के निर्माण अभियान में अन्ना के हाथ मज़बूत करें.

arvind
20-09-2011, 01:18 PM
रवि जी, आपने बहुत ही सही बात उठाई है। गांधी के समय मे तो हम देश के चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे, मगर इस समय अन्ना हज़ारे ने जो मिशाल पेश की है, वह हम सभी के लिए अनुकरणीय है।