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View Full Version : पहली बोलती फिल्म आलम आरा


bhavna singh
21-09-2011, 07:33 AM
मुंबई, १५ मार्च. हिंदी सिनेमा की पहली बोलती फिल्म आलम आरा का प्रिंट ही नहीं गायब हुआ है /बल्कि इस फिल्म के प्रदर्शन का साक्षी रहे मैजेस्टिक सिनेमा का भी नामो-निशां मिट चुका है
/ दक्षिण मुंबई में गिरगांव में स्थित मैजेस्टिक सिनेमा के स्थान पर अब बहुमंजिला मैजेस्टिक शॉपिंग सेंटर खड़ा हो चुका है/
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11835&stc=1&d=1316572333

bhavna singh
21-09-2011, 07:36 AM
चौदह मार्च, 1931 को मैजेस्टिक सिनेमा में प्रदर्शित हुई आलम आरा फिल्म के अस्सी वर्ष पूरे होने पर अखबार, न्यूज चैनल एवं पत्र-पत्रिकाओं में जश्न मनाया जा रहा है, लेकिन मैजेस्टिक सिनेमा की जमीं पर खड़ी व्यावसायिक इमारत में लोग आलम-आरा के प्रदर्शन के अस्सी साल के जश्न से अंजान हैं। डायमंड व्यापारी रोज की तरह लेन-देन और ग्राहकों के इंतजार में बैठे हैं। दिलचस्प बात यह है कि गिरगांव की नई पीढ़ी इस बात से भी अंजान है कि उनके इलाके में मैजेस्टिक सिनेमा हुआ करता था। मैजेस्टिक शॉपिंग सेंटर में ग्राउंड फ्लोर पर चौबीस वर्षो से ट्रवेल एजेंसी चला रहे प्रकाश दलवी बताते हैं, बचपन में हम परिवार के साथ मैजेस्टिक सिनेमा में फिल्में देखने आते थे। मराठी फिल्में ज्यादा चलती थीं, लेकिन टॉवर कल्चर ने मैजेस्टिक सिनेमा को कुचल दिया। अब तो हमारी यादों में ही मैजेस्टिक सिनेमा है/
गौरतलब है कि मैजेस्टिक शॉपिंग सेंटर के मालिक गोवाली बिल्डर्स हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि गोवाली बिल्डर्स ने जब मैजेस्टिक सिनेमा के स्थान पर शॉपिंग सेंटर बनाना शुरू किया तो शिवसेना के नेता प्रमोद नवलकर ने उनका विरोध किया। शिवसेना की मांग पर गोवाली बिल्डर्स ने मैजेस्टिक थिएटर के लिए स्थान छोड़ा था, लेकिन बाद में पार्किग स्पेस की कमी के कारण थिएटर बनाने का विचार छोड़ना पड़ा। मैजेस्टिक शॉपिंग सेंटर के सामने स्थित मैजेस्टिक सिनेमा बस स्टॉप के जरिए ही पता चलता है कि यहां मैजेस्टिक सिनेमा हॉल हुआ करता था। अब बस स्टॉप में ही मैजेस्टिक सिनेमा का इतिहास शेष है /
चौदह मार्च 1931 में हंड्रेड परसेंट टॉकी का दावा करती फिल्म आलम आरा का प्रदर्शन मैजेस्टिक सिनेमा में हुआ था। अर्देशिर ईरानी निर्देशित आलम-आरा का जादू देखने भारी भीड़ इस थिएटर के बाहर उमड़ी थी। प्रतिदिन आलम आरा के तीन शो साढ़े शाम पांच बजे, आठ बजे और दस बजे चलाया जाता था। शनिवार, रविवार और बैंक की छुट्टियों के दिन तीन बजे का स्पेशल शो चलाया जाता था। स्कूल और कॉलेज के लड़के-लड़कियों के लिए रविवार को सुबह दस बजे एक स्पेशल शो रखा गया था। अखबार में आलम-आरा का विज्ञापन प्रकाशित होने के बाद कुछ सप्ताह के टिकट बिक गए थे और हिंदी सिनेमा की इस पहली बोलती फिल्म ने सफलता का कीर्तिमान रच दिया, पर अफसोस की बात यह है कि आज न तो आलम आरा के प्रिंट उपलब्ध हैं और न ही फिल्म के प्रदर्शन का साक्षी बना मैजेस्टिक सिनेमा हॉल /

bhavna singh
21-09-2011, 07:40 AM
सूचना व प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त सचिव वी. बी. प्यारेलाल ने कहा कि 1931 में बनी आलम आरा के सभी प्रिंट नष्ट हो चुके हैं/ इंपिरियल मूवी कपनी द्वारा बनाई गई यह फिल्म देश भर के सिनेमा घरो में 14 मार्च 1931 को प्रदर्शित की गई थी/ इसकी लंबाई 2 घंटे 4 मिनट की थी/ देश में कहीं भी अब इस फिल्म का कोई प्रिंट नहीं बचा है/ आलम आरा के प्रिंट राष्ट्रीय अभिलेखागार सहित कहीं भी मौजूद नहीं हैं/
राष्ट्रीय अभिलेखागार में अब केवल इस फिल्म से जुड़े फोटोग्राफ और कुछ मीडिया चित्र ही मौजूद हैं/ 1931 में प्रदर्शित हुई आलम आरा अर्देशर ईरानी के निर्देशन में बनी भारत की पहली बोलती फिल्म थी/ राजकुमार और बंजारिन की प्रेम कहानी पर आधारित यह फिल्म एक पारसी नाटक से प्रेरित थी/ फिल्म में मुख्य भूमिका मास्टर विट्ठल और जुबैदा ने निभाई थी/ फिल्म में पृथ्वीराज कपूर की भी एक महत्वपूर्ण भूमिका थी/ इसका संगीत फिरोज़ मिस्त्री ने दिया था/ इसमें आवाज देने के लिए उस समय तरन ध्वनि तकनीक का इस्तेमाल किया गया था/ जब यह फिल्म सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी तो लोग फिल्म के बीच बीच में उठकर परदे के पास जाकर देखते थे कि इसमें से आवाज कहाँ से आ रही है/
इसका गीत दे दे खुदा के नाम पे प्यारे, ताक़त हो अगर देने की, कुछ चाहे अगर तो मांग ले मुझसे हिम्मत हो अगर लेने की, भारतीय फिल्म जगत का पहला गीत था और आज भी देश भर में गाँवों, शहरों से लेकर मंदिरों और रेल गाड़ियों में भीख मांगने वाले भिखारियों का यह पसंदीदा गीत है। इस गीत को हारमोनियम और तबले पर तैयार किया गया था/ वजीर मोहम्मद खान ने इस फिल्म में फकीर की भूमिका की थी। इस फिल्म की शूटिंग दिन की बजाय रात के समय की गई थी ताकि फिल्म में आवाज की रेकॉर्डिग में दन का शोर-शराबा रिकॉर्ड न हो जाए/ इसके अलावा इसमें बदला दिलवाएगा, या रब तू सितमगरों से, रुठा है आसमान गुम हो गए मेहताब, तेरी कटीली निगाहों ने मारा, दे दिल को आराम ऐ साकी गुलफाम, भर भर के जाम पिला जा, दरस बिन मेरे है नैना तरसे प्यारे जैसे गीत भी शामिल थे/
इसके पहले अमरीका में वार्नर ब्रदर्स 1926 में डॉन जुआन के नाम से एक बोलती फिल्म बना चुके थे, लेकिन इस फिल्म में अलग से रिकॉर्ड की गई आवाज सुनाई जाती थी/ 1928 में बनी लाईट्स ऑफ न्यूयॉर्क पहली बोलती फिल्म थी/

bhavna singh
21-09-2011, 07:43 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11836&stc=1&d=1316572964


दे दे खुदा के नाम पे प्यारे, ताक़त हो अगर देने की/

bhavna singh
21-09-2011, 07:50 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11838&stc=1&d=1316573401


ये इस फिल्म का सबसे हीट गाना था /
दे दे खुदा के नाम पे प्यारे, ताक़त हो अगर देने की

sagar -
21-09-2011, 07:54 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11838&stc=1&d=1316573401


ये इस फिल्म का सबसे हीट गाना था /
दे दे खुदा के नाम पे प्यारे, ताक़त हो अगर देने की

क्या ये गीत अब भी उपलब्ध हे

bhavna singh
21-09-2011, 07:54 AM
भारत की पहली बोलती फ़िल्म है. कहा जाता है कि इस फ़िल्म के कोई सुबूत अब हमारे यहां बचे नहीं हैं. डब्ल्यू.एम.खान यानी वज़ीर मोहम्मद खां और ज़ुबेदा इसके प्रमुख सितारे थे, जिन्हें आप यहां फोटो में देख सकते हैं. ज़ाहिर है कि इस फिल्म के गाने भी इन्हीं लोगों ने गाये थे. इत्तेफ़ाक से थोड़ा अर्सा पहले तक ज़ुबेदा ज़िंदा थीं और एक फ़ंक्शन में लोगों के बहुत इसरार पर आलमआरा के एक गाने की शुरुआती लाइन उन्होंने खुद गाकर सुनाई.
आप भी सुनिये...और कहिये कि कबाड़ियों का काम ही है कबाड़ जुटाना

bhavna singh
21-09-2011, 08:01 AM
क्या ये गीत अब भी उपलब्ध हे

आप एक बार you tube पर सर्च करके देखिये शायद मिल जाये /

bhavna singh
21-09-2011, 08:04 AM
ये रहा इस फिल्म का एक और चित्र /
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11839&stc=1&d=1316574282

bhavna singh
21-09-2011, 08:06 AM
पहली सवाक फ़िल्म होने के कारण सामने आने वाली तमाम समस्याओं के बावजूद अर्देशिर ने साढ़े दस हजार फ़ीट लंबी इस फ़िल्म का निर्माण चार महीने में ही पूरा किया/ इस पर कुल मिलाकर चालीस हज़ार रुपए की लागत आई थी/ आख़िरकार 14 मार्च 1931 को इसे मैजेस्टिक सिनेमा में प्रदर्शित किया गया, तो वह दिन सिने इतिहास का एक सुनहरा पन्ना बन गया/
आलम आरा मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा हॉल में प्रदर्शित हुई थी/ यह भारत की पहली बोलती फ़िल्म थी जिसने मूक फ़िल्मों के दौर की समाप्ति का एलान किया था/ दादा साहेब फ़ाल्के की फ़िल्म 'राजा हरिश्चंद्र' के 18 वर्ष बाद आने वाली फ़िल्म 'आलम आरा' ने हिट फ़िल्मों के लिए एक मापदंड स्थापित किया, क्योंकि यह भारतीय सिनेमा में इस संदर्भ में पहला क़दम था/

bhavna singh
21-09-2011, 08:09 AM
सवाक फ़िल्मों का श्रीगणेश अर्देशिर ईरानी ने 1930-31 में प्रथम बोलती फ़िल्म ‘आलमआरा’ बनाकर किया/ पुणे में जन्में ख़ान बहादुर अर्देशिर एम. ईरानी अध्यापक से मिट्टी तेल इंस्पेक्टर, फिर पुलिस इंस्पेक्टर की नौकरी के बाद संगीत न फ़ोटाग्राफी उपकरण के विक्रेता बने/ छात्र-जीवन से ही फोटोग्राफी के प्रति दीवानगी ने उन्हें सिनेमा की तरफ प्रेरित किया/ पहले वे हॉलीवुड की प्रख्यात निर्माण संस्था ‘यूनीवर्सल पिक्चर्स’ के भारत में (मुंबई) प्रतिनिधि बने, फिर मुंबई में ही मैजेस्टिक सिनेमाघर का निर्माण किया और एलैक्जैंडर सिनेमाघर में भागीदारी भी की/ 1926 में उन्होंन इंपीरियल सिनेमा की स्थापना की और इस बैनर के अंतर्गत प्रथम सवाक फ़िल्म में गानों का भी पिक्चराइजेशन किया/ 1939 में उन्होंने ज्योति स्टूडियो का निर्माण किया जहाँ 20वीं शती तक फ़िल्मों की शूर्टिंग होती रही/

bhavna singh
21-09-2011, 08:16 AM
इसका संगीत फिरोज़ मिस्त्री ने दिया था। इसमें आवाज़ देने के लिए उस समय तरन ध्वनि तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। इस फ़िल्म के गीतों के बारे में कहा जाता है कि उनकी धुनों का चुनाव ईरानी ने किया था। गीतों के चुनाव के बाद समस्या रही होगी उनके फ़िल्मांकन की। उसका कोई आदर्श ईरानी के सामने नहीं था और ना ही बूम जैसा कोई ध्वनि उपकरण था। सारे गाने "टैनार सिंगल सिस्टम" कैमरे की मदद से सीधे फ़िल्म पर ही रिकॉर्ड होने थे और यह काम काफ़ी मुश्किल था। जरा सी खाँसी आ जाए या उच्चारण में कोई कमी आ जाए तो पूरा गाना नए सिरे से करो।
यह बात हैरत की है कि पहली सवाक फ़िल्म में संगीतकार, गीतकार या गायकों के नामों का उल्लेख नहीं है। इस बात के साक्ष्य मौजूद हैं कि आलम आरा पूरे एशिया में मशहूर हुई। अकेले मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में यह लगातार आठ हफ़्ते तक चली थी। लोगों ने सिर्फ़ गाने सुनने के लिए इस फ़िल्म को देखा। दुर्भाग्य से इस फ़िल्म के गाने रिकॉर्ड नहीं किए जा सके। बताते हैं कि फ़िल्म में कुल सात गाने थे। जिनमें से एक फ़क़ीर की भूमिका करने वाले अभिनेता वज़ीर मुहम्मद ख़ान ने गाया था। उसके बोल थे- "दे दे ख़ुदा के नाम पर प्यारे, ताक़त है ग़र देने की।", एक और गाने के बारे में एल वी प्रसाद ने अपने संस्मरण में लिखा है- वह गीत सितारा की बहन अलकनंदा ने गाया था- बलमा कहीं होंगे। बाक़ी पाँच गानों के बोल क्या थे और किसने गाया, पता नहीं। फ़िल्म के संगीत में केवल तीन साजों का इस्तेमाल किया गया था- तबला, हारमोनियम और वायलिन।
'आलम आरा' के लिए अमेरिका से टैनार साउंड सिस्टम आयात किया गया। उसके साथ उपकरण का प्रशिक्षण देने के लिए विलफोर्ड डेमिंग नाम के साउंड इंजीनियर आए थे। अर्देशिर और उनके सहयोगी रुस्तम भड़ूचा ने उनसे एक महीने में ही बारीकियाँ सीखीं और पूरी फ़िल्म की रिकॉर्डिंग ख़ुद की।

bhavna singh
21-09-2011, 08:18 AM
पार्श्व संगीत

हिन्दी-उर्दू भाषा में बनी इस फ़िल्म के प्रदर्शन के साथ ही शुरू हुआ भारतीय फ़िल्म जगत में पार्श्व गायिकी और पार्श्व संगीत का एक ऐसा दौर जो आज तक भारतीय फ़िल्म की जान और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान बना हुआ है। प्रसिद्ध गीत
इसका गीत "दे दे ख़ुदा के नाम पे प्यारे, ताक़त हो अगर देने की, कुछ चाहे अगर तो मांग ले मुझसे हिम्मत हो अगर लेने की", भारतीय फ़िल्म जगत का पहला गीत था और आज भी देश भर में गाँवों, शहरों से लेकर मंदिरों और रेल गाड़ियों में भीख मांगने वाले भिखारियों का यह पसंदीदा गीत है। इस गीत को हारमोनियम और तबले पर तैयार किया गया था।

bhavna singh
21-09-2011, 08:24 AM
पटकथा और संवाद

यह जोसफ़ डेविड द्वारा लिखित एक पारसी नाटक पर आधारित है। जोसफ़ डेविड ने बाद में ईरानी की फ़िल्म कम्पनी में लेखक का काम किया। फ़िल्म की कहानी एक काल्पनिक, ऐतिहासिक कुमारपुर नगर के शाही परिवार पर आधारित है।

bhavna singh
21-09-2011, 08:27 AM
कलात्मकता और तकनीकी गुणवत्ता
'आलम आरा' में कलात्मकता और तकनीकी गुणवत्ता अधिक नहीं थी, लेकिन पहली सवाक फ़िल्म होने के कारण उसके महत्त्व को किसी तरह कम करके नहीं आंका जा सकता। 'द बांबे क्रोनिकल' के दो अप्रैल 1931 के अंक में 'आलम आरा' को लेकर कुछ ऐसे ही विचार व्यक्त किए गए थे। किसी ख़ास व्यक्तिगत भारतीय फ़िल्म के दोषों पर बात करने का मतलब ज़्यादातर मामलों में ऐसे दोषों पर बात करना है जो सभी फ़िल्म में समान रूप से पाए जाते हैं। इन दोषों से आलम आरा भी पूरी तरह मुक्त नहीं है। लेकिन एक सांगोपांग कहानी पर फ़िल्म बनाने में ध्वनि का अपेक्षित उतार-चढ़ाव और वैविध्य मौजूद है इसने दिखा दिया कि यथोचित संयम और गंभीर निर्देशन हो तो विट्ठल, पृथ्वीराज और ज़ुबेदा सरीखे कलाकार अपनी प्रभावशाली अभिनय क्षमता और वाणी से ऐसे नाटकीय प्रभाव पैदा कर सकते हैं, जनकी मूक चित्रपट पर कल्पना भी नहीं की जा सकती है। पुनर्निर्माण
अर्देशिर ईरानी के साझीदार अब्दुल अली यूसुफ़ अली ने फ़िल्म के प्रीमियर की चर्चा करते हुए लिखा था- 'जरा अंदाजा लगाइए, हमें कितनी हैरत हुई होगी यह देखकर कि फ़िल्म प्रदर्शित होने के दिन सुबह सवेरे से ही मैजेस्टिक सिनेमा के पास बेशुमार भीड़ जुटना शुरू हो गई थी और हालात यहाँ तक पहुँचे कि हमें ख़ुद को भी थिएटर में दाख़िल होने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ी। उस ज़माने के दर्शक क़तार में लगना नहीं जानते थे और धक्कम-धक्का करती बेलगाम भीड़ ने टिकट खिड़की पर सही मायनों में धावा बोल दिया था हर कोई चाह रहा था कि जिस ज़बान को वे समझते हैं उसमें बोलने वाली फ़िल्म देखने का टिकट किसी तरह हथिया लिया जाए। चारों तरफ यातायात ठप हो गया था और भीड़ को काबू करने के लिए पुलिस की मदद लेनी पड़ी थी। बाद में नानू भाई वकील ने 1956 और 1973 में, दो बार इस फ़िल्म का पुनर्निर्माण किया।

bhavna singh
21-09-2011, 08:32 AM
मुख्य कलाकार
मास्टर विट्ठल- राजकुमार
ज़ुबेदा- आलम आरा
वज़ीर मोहम्मद ख़ान- फक़ीर
पृथ्वीराज कपूर

malethia
21-09-2011, 09:17 AM
क्या आपके पास इसका विडियो लिंक है,
क्यूंकि आज कहीं पर भी इस फिल्म का प्रिंट उपलब्ध नहीं है ...........

bhavna singh
21-09-2011, 09:29 AM
क्या आपके पास इसका विडियो लिंक है,
क्यूंकि आज कहीं पर भी इस फिल्म का प्रिंट उपलब्ध नहीं है ...........

आपने सही कहा ये उपलब्ध नहीं है /

Gaurav Soni
21-09-2011, 09:55 AM
एक अच्छे सूत्र के लिए बधाई भावना जी

bhavna singh
21-09-2011, 10:33 AM
एक अच्छे सूत्र के लिए बधाई भावना जी

हार्दिक धन्यवाद गौरव जी /

Gaurav Soni
21-09-2011, 10:53 AM
karta hai ek raavi mohd rafi in alam aara

Gaurav Soni
21-09-2011, 10:54 AM
http://www.youtube.com/watch?v=Rf-r0HE5X6w&feature=player_detailpage

bhavna singh
21-09-2011, 11:32 AM
Rf-r0HE5X6w&feature=player_detailpage

Sikandar_Khan
21-09-2011, 12:03 PM
भावना जी
आपकी मेहनत काबिले तारीफ है |

ndhebar
21-09-2011, 12:20 PM
बहुत ही अच्छी जानकारी
आपकी फिल्मों में अच्छी रूचि प्रतीत होती है

arvind
21-09-2011, 12:42 PM
भावना जी, बहुत बढ़िया जानकारी जुटाई है आपने। आपका बहुत-बहुत आभार।

MissK
21-09-2011, 12:57 PM
बहुत ज्ञानवर्धक सूत्र है बनाया है आपने भावना जी! इस फिल्म की कुछ तस्वीरें मेरे पास भी थी जो शेयर करना चाहूंगी आपके इस सूत्र पर :)

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11843&stc=1&d=1316591532


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11842&stc=1&d=1316591532

khalid
21-09-2011, 01:04 PM
लजवाब जानकारी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद

bhavna singh
26-11-2012, 06:54 PM
भावना जी
आपकी मेहनत काबिले तारीफ है |

बहुत ही अच्छी जानकारी
आपकी फिल्मों में अच्छी रूचि प्रतीत होती है

भावना जी, बहुत बढ़िया जानकारी जुटाई है आपने। आपका बहुत-बहुत आभार।

बहुत ज्ञानवर्धक सूत्र है बनाया है आपने भावना जी! इस फिल्म की कुछ तस्वीरें मेरे पास भी थी जो शेयर करना चाहूंगी आपके इस सूत्र पर :)

http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11843&stc=1&d=1316591532


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=11842&stc=1&d=1316591532

लजवाब जानकारी देने के लिए हार्दिक धन्यवाद

सूत्र भ्रमण करने वाले सभी सदस्यों का धन्यवाद ......................!

rajnish manga
01-12-2012, 11:15 PM
भावना जी, आपके द्वारा संकलित की गयी जानकारी गज़ब की है. आलम आरा के बारे में मैंने पहले भी पढ़ा है और उसके चित्र भी देखे हैं. किन्तु जो जानकारी आपने उपलब्ध करवाई है वह लाजवाब है. विशेष रूप से मजेस्टिक सिनेमा का हाल या कहें कि उसका बेहाल. बड़े दुःख की बात है की इस ऐतिहासिक फिल्म की कोई कापी भारतीय फिल्मों से जुड़े किसी आर्काईव में मौजूद नहीं है. खैर, इसके निर्माता, निर्देशक, कलाकार व इस फिल्म से जुड़े अन्य लोग भारतीय फिल्मों के इतिहास का अटूट हिस्सा हैं जिन्होंने पश्चिम जगत के साथ ही यहाँ भी लगभग उसी समय वही उपलब्धियां हासिल की. उस टीम ने वह आधारशिला यहाँ रखी जिस पर अगले अस्सी वर्षों में जो इमारत बनी उसका सारे संसार में इज्ज़त से नाम लिया जाता है और लाखों लोंग इस व्यवसाय से जुड़े हैं व करोड़ों लोग प्रतिदिन इन फिल्मों से अपने मनोरंजन की खुराक लेते हैं. धन्यवाद.