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View Full Version : नज़रिया ज़िन्दगी का


Dr. Rakesh Srivastava
25-09-2011, 11:59 AM
नज़रिया ज़िन्दगी का सरल बना कर देखो ;
जाति और धर्म नहीं , व्यक्ति का बस दिल देखो .
जो दिख रहा है , दूर से , सफ़ेद पत्थर - सा ;
क्या पता मोम हो , तुम प्यार से छूकर देखो .
किसी की आँख से दिल तक अगर पहुंचना हो ;
अपनी धुन में बढ़ो , मत मील के पत्थर देखो .
किसी की नज़रे - इनायत नहीं होती यूं ही ;
खुद की औकात भी उसके मुकाबले देखो .
तेरी ही रार ठनी रहती क्यों आजू - बाजू ;
कभी फ़ुर्सत मिले तो ख़ुद से झगड़ कर देखो .
सफल लोगों को देख कर कभी कुंठित न बनो ;
फूल के नीचे छुपा काँटों का बिस्तर देखो .
कोहिनूर आसमाँ से ख़ुद - ब - ख़ुद बरसते नहीं ;
खान में घुस के कभी ख़ाक छान कर देखो .
जब तलक पँख हैं नाजुक , उड़ान छोटी भरो ;
ख़्वाब को तुम कई किश्तों में बाट कर देखो .
चुक गया मान , बूढ़े पेड़ों से दूरी न करो ;
न सही फ़ल , महज़ साया सुकूँ लेकर देखो .
जहाँ की सबसे उम्दा ग़ज़ल जब पढ़ना चाहो ;
भर के महबूब को बाहों में , आँख में देखो .

रचयिता ~~~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड,गोमती नगर,लखनऊ.

Sikandar_Khan
25-09-2011, 12:56 PM
नज़रिया ज़िन्दगी का सरल बना कर देखो ;
जाति और धर्म नहीं, व्यक्ति का बस दिल देखो :bravo::bravo:
जो दिख रहा है , दूर से , सफ़ेद पत्थर - सा ;
क्या पता मोम हो , तुम प्यार से छूकर देखो .
किसी की आँख से दिल तक अगर पहुंचना हो ;
अपनी धुन में बढ़ो , मत मील के पत्थर देखो .
किसी की नज़रे - इनायत नहीं होती यूं ही ;
खुद की औकात भी उसके मुकाबले देखो .
तेरी ही रार ठनी रहती क्यों आजू - बाजू ;
कभी फ़ुर्सत मिले तो ख़ुद से झगड़ कर देखो .
सफल लोगों को देख कर कभी कुंठित न बनो ;
फूल के नीचे छुपा काँटों का बिस्तर देखो .
कोहिनूर आसमाँ से ख़ुद - ब - ख़ुद बरसते नहीं ;
खान में घुस के कभी ख़ाक छान कर देखो .
जब तलक पँख हैं नाजुक , उड़ान छोटी भरो ;
ख़्वाब को तुम कई किश्तों में बाट कर देखो .
चुक गया मान , बूढ़े पेड़ों से दूरी न करो ;
न सही फ़ल , महज़ साया सुकूँ लेकर देखो .
जहाँ की सबसे उम्दा ग़ज़ल जब पढ़ना चाहो ;
भर के महबूब को बाहों में , आँख में देखो .


डॉक्टर साहब बेहद खूबसूरती के साथ नजरिया जिन्दगी का पेश किया है आपने तहेदिल से दाद कुबूल करेँ |

Dr. Rakesh Srivastava
25-09-2011, 02:00 PM
Abhisays जी एवं सिकंदर जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
25-09-2011, 04:13 PM
नमन जी ,
आपने पसंद किया , आपका शुक्रिया .

abhisays
25-09-2011, 04:47 PM
राकेश जी की तरकश से एक और शानदार बाण.

YUVRAJ
25-09-2011, 05:27 PM
बहुत कुछ सिखाती हुई रचना .... वाह क्या बात है ...:bravo::bravo::bravo:

Ranveer
25-09-2011, 08:39 PM
नज़रिया ज़िन्दगी का सरल बना कर देखो ;
जाति और धर्म नहीं , व्यक्ति का बस दिल देखो .
जो दिख रहा है , दूर से , सफ़ेद पत्थर - सा ;
क्या पता मोम हो , तुम प्यार से छूकर देखो .
किसी की आँख से दिल तक अगर पहुंचना हो ;
अपनी धुन में बढ़ो , मत मील के पत्थर देखो .
किसी की नज़रे - इनायत नहीं होती यूं ही ;
खुद की औकात भी उसके मुकाबले देखो .
तेरी ही रार ठनी रहती क्यों आजू - बाजू ;
कभी फ़ुर्सत मिले तो ख़ुद से झगड़ कर देखो .
सफल लोगों को देख कर कभी कुंठित न बनो ;
फूल के नीचे छुपा काँटों का बिस्तर देखो .
कोहिनूर आसमाँ से ख़ुद - ब - ख़ुद बरसते नहीं ;
खान में घुस के कभी ख़ाक छान कर देखो .
जब तलक पँख हैं नाजुक , उड़ान छोटी भरो ;
ख़्वाब को तुम कई किश्तों में बाट कर देखो .
चुक गया मान , बूढ़े पेड़ों से दूरी न करो ;
न सही फ़ल , महज़ साया सुकूँ लेकर देखो .
जहाँ की सबसे उम्दा ग़ज़ल जब पढ़ना चाहो ;
भर के महबूब को बाहों में , आँख में देखो .

बहुत खूब राकेश जी .....

चला जाता हूँ हंसता खेलता , मौजे हवा दिश से
अगर आसानियाँ हो जिंदगी , दुश्वार हो जाए ||

anoop
25-09-2011, 08:47 PM
डा० साहब, आपकी कविताएँ बेजोड़ होती हैं।

malethia
25-09-2011, 08:56 PM
डॉ.साहेब ,जिन्दी जीने का बहुत अद्भुत नजरिया पेश किया है ,धन्यवाद!

Dr. Rakesh Srivastava
25-09-2011, 11:37 PM
सर्वश्री अनूप जी , मलेथिया जी , रणवीर जी
एवं युवराज जी को बहुत - बहुत धन्यवाद .

sagar -
26-09-2011, 07:17 AM
नज़रिया ज़िन्दगी का सरल बना कर देखो ;
जाति और धर्म नहीं , व्यक्ति का बस दिल देखो .
जो दिख रहा है , दूर से , सफ़ेद पत्थर - सा ;
क्या पता मोम हो , तुम प्यार से छूकर देखो .
किसी की आँख से दिल तक अगर पहुंचना हो ;
अपनी धुन में बढ़ो , मत मील के पत्थर देखो .
किसी की नज़रे - इनायत नहीं होती यूं ही ;
खुद की औकात भी उसके मुकाबले देखो .
तेरी ही रार ठनी रहती क्यों आजू - बाजू ;
कभी फ़ुर्सत मिले तो ख़ुद से झगड़ कर देखो .
सफल लोगों को देख कर कभी कुंठित न बनो ;
फूल के नीचे छुपा काँटों का बिस्तर देखो .
कोहिनूर आसमाँ से ख़ुद - ब - ख़ुद बरसते नहीं ;
खान में घुस के कभी ख़ाक छान कर देखो .
जब तलक पँख हैं नाजुक , उड़ान छोटी भरो ;
ख़्वाब को तुम कई किश्तों में बाट कर देखो .
चुक गया मान , बूढ़े पेड़ों से दूरी न करो ;
न सही फ़ल , महज़ साया सुकूँ लेकर देखो .
जहाँ की सबसे उम्दा ग़ज़ल जब पढ़ना चाहो ;
भर के महबूब को बाहों में , आँख में देखो .

रचयिता ~~~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड,गोमती नगर,लखनऊ.
:bravo::bravo::bravo::bravo: :cheers:
नजरिया जिंदगी का अच्छा हे डॉ. राकेश श्रीवास्तव जी

Dr. Rakesh Srivastava
26-09-2011, 11:03 PM
:bravo::bravo::bravo::bravo: :cheers:
नजरिया जिंदगी का अच्छा हे डॉ. राकेश श्रीवास्तव जी

धन्यवाद सागर जी .

aksh
26-09-2011, 11:05 PM
बहुत अच्छी रचना है डॉक्टर साहब...!!:bravo::cheers:

abhisays
26-09-2011, 11:59 PM
मैं तो कहूँगा, डॉक्टर साहब आप जल्द ही अपनी कविताओं की किताब छपवा दे.

Dr. Rakesh Srivastava
28-09-2011, 07:48 AM
बहुत अच्छी रचना है डॉक्टर साहब...!!:bravo::cheers:
शुक्रिया अक्ष जी .