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View Full Version : जिद्दी मन को और न भाये


Dr. Rakesh Srivastava
02-10-2011, 08:46 AM
हुस्न सदा से रहा खिलाड़ी , इश्क ने हरदम बाज़ी हारी .
बहुत सिकन्दर बने फटीचर , उजड़ गयीं जागीरें सारी .
थोड़े दिन कश्मीर भोग , अब भुगत रहे हैं कालाहारी .
आशिक बन्दर - माफ़िक नाचे , हुस्न भी है इक अज़ब मदारी .
जिद्दी मन को और न भाये , वरना दुनिया में भरमारी .
रूठा यार न माने फिर से , इससे बढ़कर क्या लाचारी .
दिल नन्हा सा होता है पर सारी दुनिया इससे हारी .
प्यार का कर्जा एक बार ले , चुका रहा ता उम्र उधारी .
प्रेम का सावन चार दिनों था , आँख की बरखा अब तक जारी .
बिन धूवें के आग धधकती , ऐसी है दिल की बीमारी .
मरते दम फीके न पड़ें रंग , यार ने मारी वो पिचकारी .
इश्क - पिटे का जीवन घिसटे , पर्वत ने ज्यों धूप उतारी .
ये दो मिल नेमत बनते हैं , पेट में हलुवा बाँह में नारी .
जिसकी शैली अलग सुखद हो , वो लूटेगा महफ़िल सारी .

रचयिता ~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड-२,गोमती नगर,लखनऊ .
(शब्दार्थ ~~ कालाहारी = प्रतिकूल परिस्थितियों वाला अफ्रीकी रेगिस्तान )

YUVRAJ
02-10-2011, 08:50 AM
बहुत ही मस्त रचना :bravo: और बिगड़े मिजाज़ को मस्त कर दिया आपने…:cheers:

Sikandar_Khan
02-10-2011, 08:54 AM
हुस्न सदा से रहा खिलाड़ी , इश्क ने हरदम बाज़ी हारी .
बहुत सिकन्दर बने फटीचर , उजड़ गयीं जागीरें सारी
थोड़े दिन कश्मीर भोग , अब भुगत रहे हैं कालाहारी .
आशिक बन्दर - माफ़िक नाचे , हुस्न भी है इक अज़ब मदारी .
जिद्दी मन को और न भाये , वरना दुनिया में भरमारी .
रूठा यार न माने फिर से , इससे बढ़कर क्या लाचारी .
दिल नन्हा सा होता है पर सारी दुनिया इससे हारी .
प्यार का कर्जा एक बार ले , भुगते ये ता उम्र उधारी .
प्रेम का सावन चार दिनों था , आँख की बरखा अब तक जारी .
बिन धूवें के आग धधकती , ऐसी है दिल की बीमारी .
मरते दम फीके न पड़ें रंग , यार ने मारी वो पिचकारी .
इश्क - पिटे का जीवन घिसटे , पर्वत ने ज्यों धूप उतारी .
ये दो मिल नेमत बनते हैं , पेट में हलुवा बगल में नारी .
जिसकी शैली अलग सुखद हो , वो लूटेगा महफ़िल सारी .

डॉक्टर साहब मै सोच रहा था आज तो इतवार है अभी तक खुराक क्योँ नही मिली |
बहुत ही खूबसूरत रचना है आपकी दिल को छू गई
तहेदिल से दाद कुबूल करेँ |

abhisays
02-10-2011, 09:19 AM
हर बार की तरह एक और शानदार रचना. इस हफ्ते का खुराक पूरा हुआ.. :bravo::bravo:

khalid
02-10-2011, 10:00 AM
तहेदिल से आभार डाक्टर साहब इतनी अच्छी अच्छी रचना के लिए
:bravo::bravo::bravo:

Ranveer
02-10-2011, 09:21 PM
अब इसका मुख्य कारण बस अपना जिद्दी मन ही है , वरना बाज़ार में प्यार बहुत सस्ता है |

Dr. Rakesh Srivastava
02-10-2011, 09:58 PM
सर्वश्री Abhisays जी , युवराज जी , सागर जी ,
सिकंदर जी , रणवीर जी एवं खालिद जी ;
आप सभी का का बहुत - बहुत शुक्रिया .

malethia
05-10-2011, 12:30 PM
दिल नन्हा सा होता है पर सारी दुनिया इससे हारी .

एक बार फिर से बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुती,
आपको हमारे नन्हे से दिल की तरफ से धन्यवाद !

Dr. Rakesh Srivastava
05-10-2011, 01:07 PM
माननीय मलेथिया जी ,
आपने समानुभूति व्यक्त की ,
सो मै आपका आभार व्यक्त करता हूँ .

bhavna singh
05-10-2011, 04:27 PM
हुस्न सदा से रहा खिलाड़ी , इश्क ने हरदम बाज़ी हारी .
बहुत सिकन्दर बने फटीचर , उजड़ गयीं जागीरें सारी .
थोड़े दिन कश्मीर भोग , अब भुगत रहे हैं कालाहारी .
आशिक बन्दर - माफ़िक नाचे , हुस्न भी है इक अज़ब मदारी .
जिद्दी मन को और न भाये , वरना दुनिया में भरमारी .
रूठा यार न माने फिर से , इससे बढ़कर क्या लाचारी .
दिल नन्हा सा होता है पर सारी दुनिया इससे हारी .
प्यार का कर्जा एक बार ले , चुका रहा ता उम्र उधारी .
प्रेम का सावन चार दिनों था , आँख की बरखा अब तक जारी .
बिन धूवें के आग धधकती , ऐसी है दिल की बीमारी .
मरते दम फीके न पड़ें रंग , यार ने मारी वो पिचकारी .
इश्क - पिटे का जीवन घिसटे , पर्वत ने ज्यों धूप उतारी .
ये दो मिल नेमत बनते हैं , पेट में हलुवा बाँह में नारी .
जिसकी शैली अलग सुखद हो , वो लूटेगा महफ़िल सारी .

रचयिता ~~डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड-२,गोमती नगर,लखनऊ .
(शब्दार्थ ~~ कालाहारी = प्रतिकूल परिस्थितियों वाला अफ्रीकी रेगिस्तान )
डॉक्टर राकेश साहब आपकी ये पंक्तियाँ दिल को छु गयीं ........!

Dr. Rakesh Srivastava
05-10-2011, 04:43 PM
भावना सिंह जी ,
आपको पंक्तियाँ पसंद आयीं ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

naman.a
05-10-2011, 05:27 PM
शब्दरुपी मोतियो को इतने सुन्दर रुप मे पिरो कर प्रस्तुत करना किसी कवि के ह्रदय के बस की बात है । हम तो बस ये ही कह सकते है

जब तक ना पढे कविता आपकी, फ़ोरम को निहारे आंखे सारी
बहुत समजाया जिद्दी मन को, पर क्या करे, जिद्दी मन से दुनिया हारी । ;)

bhavna singh
05-10-2011, 05:55 PM
भावना सिंह जी ,
आपको पंक्तियाँ पसंद आयीं ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

सिर्फ शुक्रिया से काम नहीं चलेगा आपको कल तक एक रचना और प्रस्तुत करनी होगी .....

Dr. Rakesh Srivastava
07-10-2011, 11:29 PM
naman.a जी ,

आपका बहुत - बहुत धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava
07-10-2011, 11:38 PM
भावना सिंह जी ,
विनम्रता पूर्वक कह रहा हूँ कि आपके वाक्य से
आपकी फरमाइश की समय - सीमा पूर्णतः स्पष्ट नहीं हो रही है .

bhavna singh
07-10-2011, 11:43 PM
भावना सिंह जी ,
विनम्रता पूर्वक कह रहा हूँ कि आपके वाक्य से
आपकी फरमाइश की समय - सीमा पूर्णतः स्पष्ट नहीं हो रही है .

जब आपकी इच्छा हो तब ..........!