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View Full Version : मशहूर ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह नहीं रहे.


abhisays
10-10-2011, 12:12 PM
प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक जगजीत सिंह का मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल में ब्रेन हेमरेज की वजह से निधन हो गया है. वो ७० साल के थे.
इससे पहले १९९८ में उन्हें दिल का दौरा भी परा था. २००७ में एक बार खून की कमी के कारण हॉस्पिटल में भर्ती भी हुए थे.

http://www.sweetslyrics.com/images/img_gal/6831_jagjit_singh-.jpg

उनका संगीत काफ़ी मधुर था, और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से विलय होती है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया।

naman.a
10-10-2011, 12:54 PM
इस महान संगीतकार और गजल सम्राट को मेरी तरफ़ से भावभीनी श्रद्धाजंली । इनकी गजलो मे एक अलग ही जादू था ।

कुछ गजले मुझे बहुत ही पसंद है जो सदाबहार है उनमे से

1 ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा तो बचपन की यादे वो कागज की कश्ति वो बारिश का पानी

2 मुझको यकी है सच कहती थी जो भी अम्मी कहती थी

3 तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या गम है जिनको छुपा रहे हो ।

malethia
10-10-2011, 01:06 PM
जगजीत सिंह का निधन गजल गायकी की अपूरणीय क्षति है,
राजस्थान के ही एक शहर श्री गंगानगर में जन्मे जगजीत सिंह ने गजल गायकी में बहुत ऊँचा मुकाम हासिल किया है,जहां तक पहुँच पाना हर किसी के बस की बात नहीं है,अक्सर अपने जन्म दिवस के अवसर जगजीत सिंह अपनी जन्म स्थली पर प्रोग्राम किया करते थे !
ऐसे महान गायक को मेरा शत शत नमन.............

malethia
10-10-2011, 01:12 PM
इस दुःख की घड़ी में जगजीत सिंह द्वारा गाई गयी स्वरांजली उन्ही को अर्पित है ...
हे राम

oGVGcJvImpA

Gaurav Soni
10-10-2011, 02:29 PM
ऐसे महान गायक को मेरा शत शत नमन.............

malethia
10-10-2011, 03:11 PM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=12368&stc=1&d=1318241359



जगजीत सिंह (8 फरवरी 1941- 10 अक्टूबर, 2011) एक बहुत लोकप्रिय गजल गायक थे। उनका संगीत काफ़ी मधुर है, और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से विलय होती है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया।

malethia
10-10-2011, 03:16 PM
जगजीत जी का जन्म 8 फरवरी 1941 को राजस्थान के श्री गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत जी का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ ज़िले के दल्ला गांव का रहने वाला है। मां बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गांव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए। शुरूआती शिक्षा श्री गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया.
बहुतों की तरह जगजीत जी का पहला प्यार भी परवान नहीं चढ़ सका। बहुत ही मनमौजी किस्म के इंसान था जगजीत सिंह ! अपने उन दिनों की याद करते हुए वे कहते हैं, ”एक लड़की को चाहा था। जालंधर में पढ़ाई के दौरान साइकिल पर ही आना-जाना होता था। लड़की के घर के सामने साइकिल की चैन टूटने या हवा निकालने का बहाना कर बैठ जाते और उसे देखा करते थे। बाद मे यही सिलसिला बाइक के साथ जारी रहा। पढ़ाई में दिलचस्पी नहीं थी। कुछ क्लास मे तो दो-दो साल गुज़ारे.” जालंधर में ही डीएवी कॉलेज के दिनों गर्ल्स कॉलेज के आसपास बहुत फटकते थे। एक बार अपनी चचेरी बहन की शादी में जमी महिला मंडली की बैठक मे जाकर गीत गाने लगे थे। पूछे जाने पर कहते हैं कि सिंगर नहीं होते तो धोबी होते। पिता के इजाज़त के बग़ैर फ़िल्में देखना और टाकीज में गेट कीपर को घूंस देकर हॉल में घुसना आदत थी।

malethia
10-10-2011, 03:18 PM
बचपन मे अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। श्री गंगानगर मे ही पंडित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरूआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे १९६५ में मुंबई आ गए। यहां से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। वे पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे। १९६७ में जगजीत जी की मुलाक़ात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों १९६९ में परिणय सूत्र में बंध गए।

malethia
10-10-2011, 03:22 PM
जगजीत सिंह फ़िल्मी दुनिया में प्लेबैक सिंगिंग (पार्श्वगायन) का सपना लेकर आए थे। तब पेट पालने के लिए कॉलेज और ऊंचे लोगों की पार्टियों में अपनी पेशकश दिया करते थे। उन दिनों तलत महमूद और रफी साहब जैसों के गीत लोगों की पसंद हुआ करते थे। रफ़ी-किशोर-मन्नाडे जैसे महारथियों के दौर में पार्श्व गायन का मौक़ा मिलना बहुत दूर था। जगजीत जी याद करते हैं, ”संघर्ष के दिनों में कॉलेज के लड़कों को ख़ुश करने के लिए मुझे तरह-तरह के गाने गाने पड़ते थे क्योंकि शास्त्रीय गानों पर लड़के हूट कर देते थे.” तब की मशहूर म्यूज़िक कंपनी h.m.v. (हिज़ मास्टर्स वॉयस) को लाइट क्लासिकल ट्रेंड पर टिके संगीत की दरकार थी। जगजीत जी ने वही किया और पहला एलबम ‘द अनफ़ॉरगेटेबल्स (१९७६)’ हिट रहा। जगजीत जी उन दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ”उन दिनों किसी सिंगर को एल पी (लॉग प्ले डिस्क) मिलना बहुत फ़ख्र की बात हुआ करती थी.” बहुत कम लोग जानते हैं कि सरदार जगजीत सिंह धीमान इसी एलबम के रिलीज़ के पहले जगजीत सिंह बन चुके थे। बाल कटाकर असरदार जगजीत सिंह बनने की राह पकड़ चुके थे। जगजीत ने इस एलबम की कामयाबी के बाद मुंबई में पहला फ़्लैट ख़रीदा था।

malethia
10-10-2011, 03:30 PM
जगजीत सिंह ने ग़ज़लों को जब फ़िल्मी गानों की तरह गाना शुरू किया तो आम आदमी ने ग़ज़ल में दिलचस्पी दिखानी शुरू की लेकिन ग़ज़ल के जानकारों की भौहें टेढ़ी हो गई। ख़ासकर ग़ज़ल की दुनिया में जो मयार बेग़म अख़्तर, कुन्दनलाल सहगल, तलत महमूद, मेहदी हसन जैसों का था.। उससे हटकर जगजीत सिंह की शैली शुद्धतावादियों को रास नहीं आई। दरअसल यह वह दौर था जब आम आदमी ने जगजीत सिंह, पंकज उधास सरीखे गायकों को सुनकर ही ग़ज़ल में दिल लगाना शुरू किया था। दूसरी तरफ़ परंपरागत गायकी के शौकीनों को शास्त्रीयता से हटकर नए गायकों के ये प्रयोग चुभ रहे थे। आरोप लगाया गया कि जगजीत सिंह ने ग़ज़ल की प्योरटी और मूड के साथ छेड़खानी की। लेकिन जगजीत सिंह अपनी सफ़ाई में हमेशा कहते रहे हैं कि उन्होंने प्रस्तुति में थोड़े बदलाव ज़रूर किए हैं लेकिन लफ़्ज़ों से छेड़छाड़ बहुत कम किया है। बेशतर मौक़ों पर ग़ज़ल के कुछ भारी-भरकम शेरों को हटाकर इसे छह से सात मिनट तक समेट लिया और संगीत में डबल बास, गिटार, पिआनो का चलन शुरू किया..यह भी ध्यान देना चाहिए कि आधुनिक और पाश्चात्य वाद्ययंत्रों के इस्तेमाल में सारंगी, तबला जैसे परंपरागत साज पीछे नहीं छूटे।
प्रयोगों का सिलसिला यहीं नहीं रुका बल्कि तबले के साथ ऑक्टोपेड, सारंगी की जगह वायलिन और हारमोनियम की जगह कीबोर्ड ने भी ली। कहकशां और फ़ेस टू फ़ेस संग्रहों में जगजीत जी ने अनोखा प्रयोग किया। दोनों एलबम की कुछ ग़ज़लों में कोरस का इस्तेमाल हुआ। जलाल आग़ा निर्देशित टीवी सीरियल कहकशां के इस एलबम में मजाज़ लखनवी की ‘आवारा’ नज़्म ‘ऐ ग़मे दिल क्या करूं ऐ वहशते दिल क्या करूं’ और फ़ेस टू फ़ेस में ‘दैरो-हरम में रहने वालों मयख़ारों में फूट न डालो’ बेहतरीन प्रस्तुति थीं। जगजीत ही पहले ग़ज़ल गुलुकार थे जिन्होंने चित्रा जी के साथ लंदन में पहली बार डिजीटल रिकॉर्डिंग करते हुए ‘बियॉन्ड टाइम अलबम’ जारी किया।
इतना ही नहीं, जगजीत जी ने क्लासिकी शायरी के अलावा साधारण शब्दों में ढली आम-आदमी की जिंदगी को भी सुर दिए। ‘अब मैं राशन की दुकानों पर नज़र आता हूं’, ‘मैं रोया परदेस में’, ‘मां सुनाओ मुझे वो कहानी’ जैसी रचनाओं ने ग़ज़ल न सुनने वालों को भी अपनी ओर खींचा।
शायर बशीर बद्र जगजीत सिंह जी के पसंदीदा शायरों में हैं। निदा फ़ाज़ली के दोहों का एलबम ‘इनसाइट’ कर चुके हैं। जावेद अख़्तर के साथ ‘सिलसिले’ ज़बर्दस्त कामयाब रहा। लता मंगेशकर जी के साथ ‘सजदा’, गुलज़ार के साथ ‘मरासिम’ और ‘कोई बात चले’, कहकशां, साउंड अफ़ेयर, डिफ़रेंट स्ट्रोक्स और मिर्ज़ा ग़ालिब अहम हैं। जगजीत जी ने राजेश रेड्डी, कैफ़ भोपाली, शाहिद कबीर जैसे शायरों के साथ भी काम किया है।

malethia
10-10-2011, 04:39 PM
१९८१ में रमन कुमार निर्देशित ‘प्रेमगीत’ और १९८२ में महेश भट्ट निर्देशित ‘अर्थ’ को भला कौन भूल सकता है। ‘अर्थ’ में जगजीत जी ने ही संगीत दिया था। फ़िल्म का हर गाना लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया था। इसके बाद फ़िल्मों में हिट संगीत देने के सारे प्रयास बुरी तरह नाकामयाब रहे। कुछ साल पहले डिंपल कापड़िया और विनोद खन्ना अभिनीत फ़िल्म लीला का संगीत औसत दर्ज़े का रहा। १९९४ में ख़ुदाई, १९८९ में बिल्लू बादशाह, १९८९ में क़ानून की आवाज़, १९८७ में राही, १९८६ में ज्वाला, १९८६ में लौंग दा लश्कारा, १९८४ में रावण और १९८२ में सितम के गीत चले और न ही फ़िल्में। ये सारी फ़िल्में उन दिनों औसत से कम दर्ज़े की फ़िल्में मानी गईं। ज़ाहिर है कि जगजीत सिंह ने बतौर कम्पोज़र बहुत पापड़ बेले लेकिन वे अच्छे फ़िल्मी गाने रचने में असफल ही रहे। इसके उलट पार्श्वगायक जगजीत जी सुनने वालों को सदा जमते रहे हैं। उनकी सहराना आवाज़ दिल की गहराइयों में ऐसे उतरती रही मानो गाने और सुनने वाले दोनों के दिल एक हो गए हों। कुछ हिट फ़िल्मी गीत ये रहे-
"प्रेमगीत" का ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’ "खलनायक " का ‘ओ मां तुझे सलाम’ "दुश्मन" का ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’ "जोगर्स पार्क" का ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल’ "साथ साथ" का ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ और ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’ "सरफरोश" का ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’ :"ट्रेफिक सिग्नल" का ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ (फ़िल्मी वर्ज़न) "तुम बिन " का ‘कोई फ़रयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’ "वीर ज़ारा" का ‘तुम पास आ रहे हो’

MissK
10-10-2011, 04:46 PM
जगजीत सिंह (8 फरवरी 1941- 10 अक्टूबर, 2011) एक बहुत लोकप्रिय गजल गायक थे। उनका संगीत काफ़ी मधुर है, और उनकी आवाज़ संगीत के साथ खूबसूरती से विलय होती है। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली, नवाबों-रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को पहले पहल दिया जाना हो तो जगजीत सिंह का ही नाम ज़ुबां पर आता है। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया।


जगजीत सिंह की जिंदगी से परिचय करने वाली इस उम्दा जानकारी के लिए आपका धन्यवाद मलेठिया जी. :bravo: निःसंदेह गजल गायकी की दुनिया में जगजीत सिंह का स्थान और कोई नहीं ले सकता...

sagar -
10-10-2011, 04:55 PM
गजल गायकी की दुनिया में जगजीत सिंह का नाम हमेशा अमर रहेगा ! गजलो में में उनकी गजल सबसे जायदा सुनता हे ! होटो से छु लू तो मेरा गीत अमर कर दो ,चिठ्ठी ना कोई संदेश .

aksh
10-10-2011, 08:51 PM
इस मशहूर और बेहतरीन प्रतिभा के धनी गजल गायक और उतने ही महान संगीतकार के निधन से भारतीय संगीत को एक अपूरणीय क्षति हुयी है....मैं उनको फोरम की ओर से और अपने स्वयं की ओर से श्रद्धांजलि देता हूँ..

भगवान उनकी आत्मा को शान्ति दे और उनके परिवार को और उनके चाहने वाले को हिम्मत दे...इस महान कष्ट को सहन करने के लिए...

Ranveer
10-10-2011, 09:19 PM
मै बचपन से इनकी आवाज का दीवाना रहा हूँ , आज सुबह सहसा न्यूज देखा तो मै सन्न रह गया |

इनकी गायकी को मेरा सलाम ,
ये हमेशा हमारे दिलों में मौजूद रहेंगें |

Sikandar_Khan
10-10-2011, 10:44 PM
ये एक बहुत बडी क्षति है जिसकी भरपाई नही हो सकती है मुझे बेहद दुःख है कि संगीत की दुनिया एक अनमोल हीरा हमने खो दिया है |
इनका एक एल्बम मै बहुत सुनता हूं .....जब सामने तुम आ जाते हो क्या जानिए क्या हो जाता है |
इस गीत जगजीत सिँह जी की ये पंक्तियां हम कोई वक्त नही हैँ हमदम ,जब बुलाओगे चले आएंगे.....
लेकिन आज वो हम सबसे बहुत दूर चले गए हैँ जो कभी वापस नही आएंगे लेकिन उनकी आवाज हमेशा हम सभी के साथ रहेगी |

anoop
11-10-2011, 09:16 AM
मेरे प्रिय गजल गायक "जगजीत सिंह" को मेरी तरफ़ से कोटि-कोटि नमन। भगवान उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें।
पिछले कुछ दिनों में हीं मेरे दो प्रिय "स्टीव जौब्स" और "जगजीत सिंह जी" ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। दिल भर आता है जब ये खबरें मैं अखबार में देखता हूँ। जो महान होते हैं, वो समय की कसौटी पर खड़े उतरते हैं....इन लोगों मे अपने जीवन-काल में भी अपने को समय की कसौटी पर सही साबित किया और आगे भी ये सदा प्रेरणाश्रोत बनकर कई लोगों को राह दिखाते रहेंगे।

anoop
11-10-2011, 09:19 AM
मलेथिय़ा जी आपको मेरी तरफ़ से बधाई, ऐसी जानकारी हम सब से बाँटने के लिए...

sagar -
11-10-2011, 01:31 PM
जाने वाले कभी नही आते जाने वालो की याद आती हे ........

anoop
11-10-2011, 06:58 PM
जाने वाले कभी नही आते जाने वालो की याद आती हे ........

बिल्कुल सही बात कही अपने दोस्त...

Dark Saint Alaick
11-10-2011, 08:52 PM
जग को सूना कर गए जगजीत ! मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !

ndhebar
12-10-2011, 02:16 PM
ना जाने क्यों. अच्छी चीजें जल्दी खत्म हो जाती हैं.

MANISH KUMAR
12-10-2011, 07:22 PM
मशहूर गजल गायक जगजीत सिंह मेरी तरफ से श्रद्धांजली.
उनका गई ये गजल, होठों से छो लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो....... जो मुझे बेहद पसंद है, उन्ही के लिए.
BPsLGo5Dg_Q

ndhebar
12-10-2011, 07:56 PM
5605xWDGWfo

swati
13-10-2011, 12:58 AM
ना जाने क्यों. अच्छी चीजें जल्दी खत्म हो जाती हैं.


आनंद फिल्म का एक संवाद है ज़िन्दगी बड़ी होनी चाहिए लम्बी नहीं.

AdinWilliam
23-12-2011, 12:31 PM
Jagjit Singh was one of the best singer. I have listen all the songs of Jagjit Singh.



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bhaji
31-01-2012, 03:17 PM
ना जाने क्यों. अच्छी चीजें जल्दी खत्म हो जाती हैं.



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