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View Full Version : वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो।


arvind
16-10-2011, 07:39 PM
दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में आर्थिक असमानता बढ़ रही है। अमीर और अमीर हो रहे हैं, गरीबों की गरीबी बढ़ रही है। इस असमानता की वजह क्या है और उसका असर लोगों पर किस तरह दिख रहा है। अमेरिका में शुरु हुए इस आन्दोलन को "वाल स्ट्रीट आन्दोलन" के नाम से जाना जाता है और यह आन्दोलन आज दुनियां के ८५ देशो के लगभग ९५० शहरो में पहुच चुका है। आईये जानते है कि आखिर इसकी वजह क्या है?

arvind
16-10-2011, 07:46 PM
बेरोजगारी
1930 के दशक की भीषण मंदी के बाद बेरोजगारी चरम पर है। नौ फीसदी बेरोजगारी के हिसाब से अभी करीब 140 लाख लोग ऐसे हैं जो काम करना चाहते हैं पर उनके पास काम नहीं है। इसमें पार्ट टाइम काम करने वालों और नौकरी की तलाश नहीं करने वालों को जोड़ा जाए तो बेरोजगारी 17 फीसदी हो जाती है। पिछले करीब तीन दशक में यह उच्चतम है।

arvind
16-10-2011, 07:49 PM
कॉरपोरेट, एक्जीक्यूटिव और कर्मचारी
2007 के थोड़े समय को छोड़ दें तो अर्थव्यवस्था की तुलना में कॉरपोरेट प्रॉफिट सर्वोच्च स्तर पर हैं। अमेरिकी सीईओ का वेतन इस समय सामान्य कर्मचारी के औसत वेतन का 350 गुणा है। 1960-1985 के दौरान यह 50 गुणा था। 1990 के बाद सीईओ का वेतन 300 फीसदी बढ़ा है और कंपनियों का मुनाफा दोगुना हो गया है। दूसरी ओर प्रोडक्शन कर्मचारियों का वेतन इस दौरान सिर्फ चार फीसदी बढ़ा है। महंगाई समायोजित करने के बाद घंटे के हिसाब से आमदनी 50 साल में नहीं बढ़ी है।

arvind
16-10-2011, 08:00 PM
नेटवर्थ
शीर्ष एक फीसदी अमेरिकियों का कब्जा देश की 42 फीसदी वित्तीय संपत्ति पर है। अमेरिका की 70 फीसदी वित्तीय संपत्ति शीर्ष 5 फीसदी लोगों के पास है। अमेरिका की कुल नेटवर्थ के 60 फीसदी पर पांच फीसदी लोग काबिज हैं।

arvind
16-10-2011, 08:02 PM
असमानता
अमेरिका की आधी आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का सिर्फ 2.5 फीसदी हिस्सा है। एक तिहाई संपत्ति शीर्ष एक फीसदी लोगों के पास है। आधे अमेरिकी के पास कुल स्टॉक और बांड का 0.5 फीसदी है। आधे स्टॉक और बांड पर कब्जा शीर्ष एक फीसदी लोगों का है। 2001 से 2007 के दौरान आमदनी में जो वृद्धि हुई उसका 66 फीसदी शीर्ष एक फीसदी लोगों को गया।

अगर आप अमेरिका के शीर्ष एक फीसदी में हैं तो आप बहुत अच्छा जीवन बिता रहे हैं। आय में असमानता के मामले में अमेरिका दुनिया में 93वें स्थान पर पहुंच गया है। अमेरिका के कुल कर्ज का सिर्फ पांच फीसदी उनके ऊपर है। आर्थिक संकट के बावजूद अमेरिका में करोड़पतियों की संख्या 2009 में 16 फीसदी बढ़कर 78 लाख हो गई।

arvind
16-10-2011, 08:04 PM
टैक्स
सर्वाधिक आमदनी वाले लोग इस समय सबसे कम टैक्स का आनंद ले रहे हैं। शीर्ष एक फीसदी लोगों के लिए औसत टैक्स 9 फीसदी है। करीब इतना ही टैक्स दूसरे लोग भी दे रहे हैं। कर देनदारी में सबसे अमीर 20 फीसदी लोगों की हिस्सेदारी 64 फीसदी है।

arvind
16-10-2011, 08:05 PM
अमेरिकी बैंकों का खेल
लेहमैन संकट के बाद बैंक को बचाया तो गया लेकिन बिजनेस जगत को वे कर्ज नहीं दे रहे हैं। वे बिना जोखिम वाले ट्रेजरी बांड और अन्य सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश कर रहे हैं। बैंक अब भी मुफ्त में पैसे जुटा रहे हैं क्योंकि फेडरल रिजर्व की ब्याज की दर शून्य के करीब है। डिपॉजिट पर भी बैंक बहुत कम ब्याज दे रहे हैं। यानी उन्हें जो पैसा मिल रहा है, वह मुफ्त में। यानी बैंक फ्री में पैसे लेकर उसे जोखिम-मुक्त सरकारी बांड में लगा रहे हैं। इससे उनकी कमाई बढ़ रही है। इस साल पहले छह महीने में अमेरिकी बैंकों का शुद्ध लाभ मार्जिन 211 अरब डॉलर था।

arvind
16-10-2011, 08:07 PM
रिटायरमेंट का संकट
36 फीसदी अमेरिकी रिटायरमेंट के लिए कोई बचत नहीं कर पा रहे हैं। 43 फीसदी लोगों का कहना है कि रिटायरमेंट के लिए उनके पास 10,000 डॉलर से भी कम है। 24 फीसदी कर्मचारी अब पहले से ज्यादा उम्र में रिटायर होने की सोच रहे हैं।

arvind
16-10-2011, 08:08 PM
दिवाला होते लोग
वर्ष 2009 में 14 लाख अमेरिकियों ने व्यक्तिगत तौर पर दिवाला होने का आवेदन किया था। 2008 की तुलना में यह 32 फीसदी ज्यादा। इस कारण लोन लेकर खरीदने वाले लोग घर सरेंडर कर रहे हैं। अमेरिका के इतिहास में पहली बार जितनी आवासीय संपत्ति व्यक्तिगत रूप से लोगों के पास है, उससे कहीं ज्यादा बैंकों के पास है।

arvind
16-10-2011, 08:09 PM
फूड स्टांप का सहारा
नौकरी करने वालों में 40 फीसदी से ज्यादा सेवा क्षेत्र में हैं जहां उन्हें बहुत कम वेतन मिल रहा है। अमेरिकी इतिहास में पहली बार चार करोड़ लोग फूड स्टांप के सहारे जी रहे हैं। इस वर्ष यह संख्या 4.3 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है।

arvind
16-10-2011, 08:22 PM
भारत में अन्ना का आन्दोलन, पुरे विश्व में वाल स्ट्रीट आन्दोलन की लहर चल रही है। ये दोनो ही आन्दोलन भारत और विश्व में एक निर्णनायक बदलाव की तस्वीर पेश करने वाले है।

इस विषय पर आप सभी के विचारो और तथ्यो का इन्तज़ार रहेगा।

arvind
16-10-2011, 08:25 PM
कुछ लोग वालस्ट्रीट आंदोलन की तुलना अन्ना के लोकपाल बहाली आंदोलन से कर रहे हैं. जो सच्चाई मेल नहीं खाती. वालस्ट्रीट पर कब्ज़ा आंदोलन दुनिया भर में उदारीकरण-निजीकरण की नीतियाँ थोप कर जनता को तबाह करने वाले विश्व पूंजीवाद के गढ़ पर सीधा हमला है. यह कार्पोरेट और सट्टेबाजों पर हमला है जिन्हें अन्ना का लोकपाल अपने दायरे में लाने से परहेज करता है.

अन्ना की मांग लोकपाल का पद सृजन करना भर था जो एक सुधारवादी, व्यवस्था पोषक, एनजीओवादी आंदोलन था.भ्रष्टाचार की जड़ खोदने की बजाय डाल-पत्ती तोड़ने से आगे अन्ना टीम नहीं सोचती थी. जबकि वालस्ट्रीट पर कब्ज़ा आंदोलन का नारा है- बाजारवाद, नव-उदारवादी पूंजीवाद, परजीवी सटोरिया पूंजीवाद, अल्पतंत्री पूंजीवाद का नाश हो !

वैश्वीकरण और वाशिंगटन आम सहमति का झंडाबरदार अमरीका ने अपने ही देश की जनता को जिस तबाही की गर्त में पहुँचाया है उसके चलते लोग वहाँ बगावत के रास्ते पर उतरे हैं, जबकी अन्ना आन्दोलन से भारत के वंचितों का कोई खास लेना-देना नहीं था, नव-उदारवाद के लाभार्थी ही इसकी मुख्य ताकत थे जो उत्सवधर्मी, मीडिया प्रेरित, निरापद आन्दोलन में कूद पड़े थे.

वालस्ट्रीट पर कब्जा आन्दोलन को कार्पोरेट मीडिया का वह स्नेह और कृपा दृष्टि प्राप्त नहीं है जो अन्ना टीम को सहज ही हासिल हो गयी थी. शांतिपूर्ण होने के बावजूद अमरीकी वंचित समुदाय को पुलिस कि बर्बरता सहनी पड़ी, जबकि दिल्ली पुलिस अन्ना की वीआईपी भीड़ की सुरक्षा में लगी रही.

यह सही है की वाल स्ट्रीट पर कब्जा आंदोलन भी सुसंगठित नहीं है. यह उसकी सीमा है लेकिन उसे ट्रेड यूनियनों और अन्य वंचित तबकों का भरपूर समर्थन प्राप्त है और भी बहुत सारे पहलू हैं, जिनके आधार पर वालस्ट्रीट पर कब्जा आंदोलन और अन्ना टीम के लोकपाल बहाली मुहिम के फर्क को तथ्यों की रौशनी में आसानी से समझा जा सकता है.

बर्फ की मोटी तहों के अंदर दबी वासिंगटन, जेफरसन और टोमास पैन कि आत्मा अंगडाई लेकर जागी है. लेकिन इस शातिर दौर मे एक मजबूत संगठन के बगैर वह कितने दिन कायम रहेगी, कहना मुश्किल है. बहरहाल ये उभर दुनिया को आगे ले जायेगी.

Dark Saint Alaick
16-10-2011, 09:07 PM
आज इस विषय में संसार के अनेक देशों में जबरदस्त प्रदर्शन हुए ! यहां प्रस्तुत कर रहा हूं एक चित्रमय झांकी ! सबसे पहले न्यूयॉर्क !


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=12575&stc=1&d=1318781196

Dark Saint Alaick
16-10-2011, 09:10 PM
यह देखिए टोरंटो का हाल !


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=12576&stc=1&d=1318781400

Dark Saint Alaick
16-10-2011, 09:15 PM
यह रोम की एक झलक !


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=12577&stc=1&d=1318781704

Dark Saint Alaick
16-10-2011, 09:16 PM
... और यह मेड्रिड !


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=12578&stc=1&d=1318781772

arvind
17-10-2011, 12:32 PM
चित्रो को प्रदर्शित करने से सूत्र ज्यादा ज्ञानवर्धक हो गया है। डार्क संत जी, आपके योगदान के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद। आपसे और भी सहयोग की उम्मीद है।

ndhebar
18-10-2011, 05:15 PM
अरविन्द भाई
मैंने इस सूत्र की लगभग सारी प्रविष्टि पढ़ डाली पर मुझे ये समझ नहीं आया की ये आन्दोलन है क्या और इससे होगा क्या
जरा मेरे मूढ़ दिमाग में भी कुछ डालो

arvind
18-10-2011, 05:22 PM
अरविन्द भाई
मैंने इस सूत्र की लगभग सारी प्रविष्टि पढ़ डाली पर मुझे ये समझ नहीं आया की ये आन्दोलन है क्या और इससे होगा क्या
जरा मेरे मूढ़ दिमाग में भी कुछ डालो
इस पर विस्तार से बहुत जल्द प्रकाश डालूँगा।

Dark Saint Alaick
18-10-2011, 08:20 PM
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने आज वाल स्ट्रीट प्रदर्शनकारियों के सरोकारों का समर्थन करते हुए कहा कि विकसित देशों के संगठन जी -20 को लोगों की समस्यायों को सुनना और उनके समाधान में तत्पर रहना चाहिए ! इससे प्रदर्शनकारियों के आन्दोलन को नया जोश मिला है ! स्विटज़रलैंड के दौरे पर आए मून ने राजधानी बर्न में संवाददाताओं से कहा कि वाल स्ट्रीट से शुरू होकर दुनिया भर में फ़ैल गए आन्दोलन लोगों का गुस्सा ज़ाहिर करते हैं ! इससे अवाम के भीतर पनप रहे आक्रोश को साफ़ महसूस किया जा सकता है ! जी-20 देशों को समझना होगा कि सिर्फ अपने व्यापार या अपने आतंरिक आर्थिक कारणों पर ध्यान देने से ही कुछ नहीं होगा ! मून का यह बयान ऐसे समय आया है, जब फ्रांस की राजधानी में जी-20 देशों का सम्मलेन शुरू हुआ है और इसके दूरगामी परिणाम होने की उम्मीद है !

sanjivkumar
18-10-2011, 09:01 PM
http://upload.wikimedia.org/wikipedia/en/5/57/Wall-Street-1.jpg

sanjivkumar
18-10-2011, 09:08 PM
पिछले कुछ वर्षो में भवन निर्माण वित्तीय शक्ति के संदर्भ में वाल स्ट्रीट अमरीका में कुख्यात हो गया है. न्यूयॉर्क में वाल स्ट्रीट के सामने कुछ लोगों द्वारा शुरू किया गया प्रदर्शन देखते ही देखते अमरीका के कोने-कोने में फैल गया. 'वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो' के नारे के साथ शुरू हुआ जन आंदोलन लाभ के निजीकरण और घाटे के सामाजीकरण की अवधारणा के खिलाफ गुस्से की अभिव्यक्ति है.
आर्थिक नीतियों और राहत पैकेज का लाभ अमरीका की मात्र एक प्रतिशत जनता को ही मिला है. अनुमान है कि अमरीका के चार सौ धनी परिवारों का देश की कुल आर्थिक संपदा के 50 फीसदी पर कब्जा है. राजनीतिक दलों और सत्तारूढ़ कुलीन तबके के खिलाफ लोग शांति मार्च निकाल रहे हैं.
उद्योगपतियों के हाथों में होने के कारण मीडिया घराने भी इन विरोध प्रदर्शनों को अधिक कवरेज नहीं दे रहे हैं. 'हम 99 प्रतिशत हैं' युवाओं में यह नारा लोकप्रिय हो रहा है. दूसरी आर्थिक मंदी के कारण बढ़ती बेरोजगारी लोगों के गुस्से की आग में ईंधन का काम रही है.
वाल स्ट्रीट पर कब्जा करो अभियान एक ऑस्ट्रेलियन वैज्ञानिक द्वारा मौत की चेतावनी जारी करने के एक साल बाद शुरू हुआ है. ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर फ्रेंक फैनर ने दावा किया है कि मानव जाति जनसंख्या विस्फोट से पैदा हुए बेकाबू उपभोग के कारण अपना अस्तित्व नहीं बचा पाएगी और आने वाले सौ सालों में खत्म हो जाएगी. साथ ही कुछ अन्य जीव-जंतुओं का अस्तित्व भी समाप्त हो जाएगा.
अनियंत्रित उपभोग स्टॉक मार्केट की बुनियाद है. यह प्राकृतिक संसाधनों, जलवायु, प्रकृति और साथ ही मानव जाति के खिलाफ हिंसक व्यवहार करता है. यह प्राकृतिक, भौतिक और वित्तीय संसाधनों को गरीबों से छीनकर अमीरों की झोली में डाल देता है. वैश्वीकरण एकाधिकार नियंत्रण को और मजबूत करने का औजार बन गया है. इन सबके खिलाफ ही अमरीकी जनता उठ खड़ी हुई है.
वित्तीय बाजार पहले अर्थशास्त्रियों को अपने पक्ष में करता है और फिर मीडिया को भी लपेटे में ले लेता है. अर्थशास्त्री नियम बनाते हैं. वे सकल घरेलू उत्पाद को विकास का संकेतक बताते हैं. वे इसे इतनी सफाई से बताते हैं कि हम व्यक्तिगत संपदा को राष्ट्रीय विकास के संकेतक के रूप में स्वीकार कर लेते हैं. वे हर चीज को यहां तक कि वैश्विक जलवायु को भी खरीद-फरोख्त और दोहन का विषय बना देते हैं.
जब विश्व का जीडीपी में भरोसा कायम हो गया तो बड़े अर्थशास्त्रियों और सलाहकार फर्मो ने स्टॉक मार्केट का हवामहल खड़ा कर दिया. मेरे ख्याल से हालिया वर्षो में अनियंत्रित उपभोग की प्रक्रिया को तीव्र करने में सबसे बड़ा योगदान वाल स्ट्रीट का रहा है. सलाहकार फर्मे यह स्वीकार करने से इंकार करेंगी, किंतु यह कारण स्पष्ट है कि फैनर ने मानव जाति के अस्तित्व के अंत की जो चेतावनी जारी की थी उसका कारण स्टॉक मार्केट ही बनेगा.
मुझे स्टॉक मार्केट की कार्यपद्धति को देखकर हैरानी होती है. इन बाजारों ने हर चीज का उपभोगीकरण कर दिया है. पर्यावरण की अधिकांश बुराइयों के पीछे भी स्टॉक मार्केट का प्रत्यक्ष हाथ है. स्टॉक मार्केट पानी की हर बूंद और अन्य तमाम प्राकृतिक संसाधनों को चूस लेगा. हर चीज की कीमत है, यहां तक कि जिस हवा में आप सांस लेते हैं उसकी भी. निश्चित तौर पर स्टॉक मार्केट लंबे समय तक नहीं टिक पाएंगे.
2008-09 में जो आर्थिक संकट पैदा हुआ था, वह इसी स्टॉक मार्केट की व्यवस्थित विफलता का नतीजा था, किंतु यह मामला इतनी बड़ी रकम का है कि सबसे ताकतवर सरकारें भी दोषपूर्ण व्यवस्था को बदलने को तैयार नहीं हैं. वैश्विक जगत में आर्थिक राहत पैकेज एक अनिवार्य बुराई बन गया है. आर्थिक संकट के जिम्मेदार भ्रष्ट बैंकर्स और हेज फंड मैनेजरों में से किसी को भी जेल नहीं भेजा गया है. इस तरह का अनियंत्रित उपभोग विश्व के अंत की शुरुआत बन जाएगा.
वास्तव में यह प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है. केवल अर्थशास्त्री इसे देखने से इंकार करते हैं, क्योंकि अर्थशास्त्रियों को चुप रहने के लिए पैसा दिया जाता है, इसलिए मीडिया भी इस बुराई को स्वीकार नहीं करता. स्टॉक मार्केट खुद ही आर्थिक विकास के संकेतक बन गए हैं. जब आर्थिक लाभ केवल अमीर लोग ही उठाएंगे तो आम जनता को इसके कारण भड़की हिंसा के बीच ही रहना होगा.
न्यूयॉर्क में एक प्रदर्शनकारी डेनियल ब्रूक का कहना है, 'यह एक ऐसा देश है जहां 90 प्रतिशत संपदा पर मात्र एक प्रतिशत लोगों का कब्जा है.' इसी अन्याय के खिलाफ आज आम अमरीकी उठ खड़ा हुआ है. अगर वाल स्ट्रीट पर कब्जा करने में लोग सफल हो गए तो यह आर्थिक स्वतंत्रता और न्याय का चेहरा बदल देगा.

Dark Saint Alaick
19-10-2011, 08:20 PM
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कल 'वाल स्ट्रीट पर कब्ज़ा करो' आन्दोलन के दुनियाभर में फैलने पर चिंता प्रकट करते हुए यूरोपीय नेताओं को सतर्क किया था ! उससे कोई सबक नहीं लेते हुए अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने एक दिन बाद ही आज आन्दोलन का उपहास करते हुए इसे 'एक टी पार्टी' की तरह बताया है ! उन्होंने कहा कि 'वाल स्ट्रीट' तथा 'कंजरवेटिव टी पार्टी' आन्दोलनों में काफी समानता दिखती है, जो अमेरिकी राजनीतिक परिदृश्य पर हावी है ! इन प्रदर्शनों में अभिव्यक्त हो रही निराशा को मैं समझ रहा हूं, किन्तु ये प्रदर्शन उन टी पार्टियों में प्रकट किये जाने वाले विरोध एवं निराशा से ज्यादा अलग नहीं हैं !

khalid
19-10-2011, 08:56 PM
अपने पल्ले तो भाई लोगो इतनी उँची लेवल की बातेँ आती ही नहीँ
अपना तो एक फंडा हैँ
मिले तो खाकर शुक्र अदा करो
नहीँ मिले तो शब्र करो

Dark Saint Alaick
19-10-2011, 09:03 PM
ऐसा नहीं है, मित्र ! इसमें बड़ी बातों का प्रश्न नहीं है ! आर्थिक मुद्दे अर्थशास्त्र पढ़े-लिखे व्यक्ति ही समझ सकते हैं अथवा उन देशों के निवासी जहां की आर्थिक स्थिति को वहां की सरकारी नीतियों ने तबाह कर दिया है !

khalid
19-10-2011, 10:20 PM
ऐसा नहीं है, मित्र ! इसमें बड़ी बातों का प्रश्न नहीं है ! आर्थिक मुद्दे अर्थशास्त्र पढ़े-लिखे व्यक्ति ही समझ सकते हैं अथवा उन देशों के निवासी जहां की आर्थिक स्थिति को वहां की सरकारी नीतियों को तबाह कर दिया है !

क्षमा चाहुँगा बडे भाई अर्थशास्त्र ना तो मैँने पढ़ा हैँ ना अपने को पता हैँ
जमीन का सीना चीड कर फसल उगाना अपना काम हैँ
बोले तो जय किसान

ndhebar
19-10-2011, 10:41 PM
विस्तार पूर्वक समझाने के लिए संजीव कुमार जी का बहुत आभार
पर भाई लोग ये तो सीधे सीधे अपने(मेरे) पेट पट लात है

abhisays
19-10-2011, 11:17 PM
विस्तार पूर्वक समझाने के लिए संजीव कुमार जी का बहुत आभार
पर भाई लोग ये तो सीधे सीधे अपने(मेरे) पेट पट लात है

यह समूची पूंजीवादी व्यवस्था जनहित में नहीं है कभी ना कभी तो इसका पतन तो निश्चित है. हो सकता है वो घडी समीप ही है.

ऐसा कब तक होगा की मुकेश अम्बानी जैसे लोग २००० करोड़ रुपैये से बने घरो में रहे और उसके नजदीक ही लाखो लोग झुग्गी झोपड़ियो में गूट गूट कर जिए.

Dark Saint Alaick
20-10-2011, 12:12 AM
आपने सही कहा मित्र ! आज समाचार पत्रों में खबर है कि अब शराब व्यवसायी विजय माल्या अपने और सम्बन्धियों के रहने के लिए बेंगलूरू के मध्य के एक पॉश इलाके में एक ऎसी इमारत बनाने जा रहे हैं, जो मुम्बई में बने अम्बानी के भव्य आवास 'एंटिला' को पीछे छोड़ देगी ! निश्चय ही ऐसे समाचार इस देश की अधिकाँश जनता को हर्षित तो कतई नहीं कर सकते ... और फिर इसका अंत वही होगा, जो जारकालीन रूस का हुआ था !

Dark Saint Alaick
13-11-2011, 11:25 PM
आज फिर हुआ प्रदर्शन !


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=13658&stc=1&d=1321212286