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View Full Version : अब हमारी कवितायें भी झेलिये.


ravi sharma
18-10-2011, 09:06 PM
1. सर्द-दर्द और गर्द
जब मर्द के पास
आकर जम जाते है
तो हिमालय की बर्फ
पिघलने लगती है,
लालिमा,कालिख के
साथ मिल कर
देने लगती है हुंकार
कि बता तो दो कि
तुम आखिर हो कौन?

ravi sharma
18-10-2011, 09:06 PM
2. अहसान
जिन पैरों तले कुचला गया
वह पैर अब कांटो पर चल रहे हैं
और अहसास मिट्टी में पड़े हैं.

ravi sharma
18-10-2011, 09:07 PM
3. उस दाढ़ी में
दिखे कितने तिनके
जिस पर चिड़िया ने
घौसला बना लिया.

ravi sharma
18-10-2011, 09:07 PM
4. नम जमीन पर
अकुंरित होने के लिये
मचल रहे हैं
कितने बीज
लेकिन जमीन को
कर्ज की तलाश है.

ravi sharma
18-10-2011, 09:07 PM
5. आपस की समझदारी में
इतना तो करना ही था
मेरे पीठ के दाग को
दूसरों को दिखाने से पहले
मुझे ही दिखा दिया होता

ravi sharma
18-10-2011, 09:07 PM
6. तड़पते जमाने में
उफनती नदियां
किनारों को बहाती है
और किनारे
अपना दायरा बड़ा लेते हैं.

और अब कुछ कज़ल भी देखिये

ravi sharma
18-10-2011, 09:08 PM
दिखा नहीं

देकर हम ने खुद को, देखा
क्या देखा? यह दिखा नहीं

पानी निकला नाली से जब
कैसे बिखरा दिखा नहीं

बरबादी की नादानी में
हमने पूरा गांव जलाया
लेकिन उसमें जलता सा
अपना घर तो दिखा नहीं.

ravi sharma
18-10-2011, 09:08 PM
पता नहीं

देखो हमने तीर चलाया
तुमको लगा क्या? पता नहीं

हम घी बनकर आहुति देते थे
आग लगी क्या? पता नहीं.

देखो हमसे बचकर रहना
कब सनकेंगे? पता नहीं

लाख टके की एक बात थी
पल्ले पड़ी क्या? पता नहीं

वो मुझको अब उल्लू कहता
खुद पट्ठा है पता नहीं

मैं सबको रोटी देता हूँ,
खुद के घर का पता नहीं.

ravi sharma
18-10-2011, 09:09 PM
चाँदनी को क्या हुआ कि आग बरसाने लगी
झुरमुटों को छोड़कर चिड़िया कहीं जाने लगी

पेड़ अब सहमे हुए हैं देखकर कुल्हाड़ियाँ
आज तो छाया भी उनकी डर से घबराने लगी

जिस नदी के तीर पर बैठा किए थे हम कभी
उस नदी की हर लहर अब तो सितम ढाने लगी

वादियों में जान का ख़तरा बढ़ा जब से बहुत
अब तो वहाँ पुरवाई भी जाने से कतराने लगी

जिस जगह चौपाल सजती थी अंधेरा है वहाँ
इसलिए कि मौत बनकर रात जो आने लगी

जिस जगह कभी किलकारियों का था हुजूम
आज देखो उस जगह भी मुर्दनी छाने लगी

ravi sharma
18-10-2011, 09:09 PM
तेरी इस मासूमियत का
तुझे क्*या इनाम दूं
दिल तोड़ के मेरा
तुझे कौन सा नाम दूं
तुझे बहुत से लोग बेवफा कहेंगे

पर मैं तुझे कौन सा नाम दूं
अपनों को छोड़कर जाओगी
तो लोग बेगाने कहेंगे
पर मैं तुझे कौन सा नाम दूं

सजा तो प्*यार की मैं पा लूगाँ
पर लोग तो मुझे बेजान कहेंगे
पर मैं तुझे कौन सा नाम दूं
तेरी इस मासूमियत का
तुझे क्*या इनाम दूं

ravi sharma
18-10-2011, 09:09 PM
जो पत्थर तुमने मारा था मुझे नादान की तरह
उसी पत्थर को पूजा है किसी भगवान की तरह

तुम्हारी इन उँगलियों की छुअन मौजूद है उस पर
उसे महसूस करता हूँ किसी अहसान की तरह

उसी पत्थर में मिलती है तुम्हारी हर झलक मुझको
उसी से बात करता हूँ किसी इनसान की तरह

कभी जब डूबता हूँ मैं उदासी के समंदर में
तुम्हारी याद आती है किसी तूफ़ान की तरह

मेरी किस्मत में है दोस्त तुम्हारे हाथ का पत्थर
भूल जाना नहीं मुझे किसी अंजान की तरह

ravi sharma
18-10-2011, 09:10 PM
गीत है दिल की सदा हर गीत गाने के लिए
गुनगुनाने के लिए सबको सुनाने के लिए

ज़ख़्म रहता है कहीं और टीस उठती है कहीं
दिल मचलता है तभी कुछ दर्द गाने के लिए

फूल की पत्ती से नाज़ुक गीत पर मत फेंकिए
बेसुरे शब्दों के पत्थर आज़माने के लिए

गीत के हर बोल में हर शब्द में हर छंद में
प्यार का पैग़ाम हो मरहम लगाने के लिए

फूल खिलते हैं वफ़ा के तो महकती है फ़ज़ा
हुस्न ढलता है सुरों में गुनगुनाने के लिए

आज के इस दौर में ‘जितू’ किसी को क्या कहे
गीत लिखना चाहिए दिल से सुनाने के लिए

ravi sharma
18-10-2011, 09:10 PM
दूर तक जिसकी नज़र चुपचाप जाती ही नहीं

हम समझते हैं समीक्षा उसको आती ही नहीं

आपका पिंजरा है दाना आपका तो क्या हुआ
आपके कहने से चिड़िया गुनगुनाती ही नहीं

भावना खो जाती है शब्दों के जंगल में जहाँ
शायरी की रोशनी उस ओर जाती ही नहीं

आप कहते हैं वफ़ा करते नहीं हैं इसलिए
जिस नज़र में है वफ़ा वह रास आती ही नहीं

झाड़ियों में आप उलझे तो उलझकर रह गए
आप तक बादे सबा जाकर भी जाती ही नहीं

शेर की दोस्तों अभी भी शेरीयत है ज़िंदगी
इसके बिना कोई ग़ज़ल तो गुदगुदाती ही नहीं

ravi sharma
18-10-2011, 09:10 PM
उसने जो चाहा था मुझे इस ख़ामुशी के बीच
मुझको किनारा मिल गया उस बेखुदी के बीच

घर में लगी जो आग तो लपटों के दरमियां
मुझको उजाला मिल गया उस तीरगी के बीच

उसकी निगाहेनाज़ को समझा तो यों लगा
कलियाँ हज़ार खिल गईं उस बेबसी के बीच

मेरे हजा़र ग़म जो थे उसके भी इसलिए
उसने हँसाकर हँस दिया उस नाखुशी के बीच

मेरी वफ़ा की राह में उँगली जो उठ गई
दूरी दीवार बन गई इस ज़िंदगी के बीच

दुनिया खफ़ा है आज भी तो क्या हुआ
उसका ही रंगो नूर है इस शायरी के बीच

ravi sharma
18-10-2011, 09:11 PM
बेमुरव्वत है मगर दिलबर है वो मेरे लिए
हीरे जैसा कीमती पत्थर है वो मेरे लिए

हर दफा उठकर झुकी उसकी नज़र तो यों लगा
प्यार के पैग़ाम का मंज़र है वो मेरे लिए

आईना उसने मेरा दरका दिया तो क्या हुआ
चाहतों का खूबसूरत घर है वो मेरे लिए

एक लम्हे के लिए खुदको भुलाया तो लगा
इस अंधेरी रात में रहबर है वो मेरे लिए

उसने तो मुझको जलाने की कसम खाई मगर
चिलचिलाती धूप में तरुवर है वो मेरे लिए

जिस्म छलनी कर दिया लेकिन मुझे लगता रहा
ज़िंदगी भर की दुआ का दर है वो मेरे लिए

ravi sharma
18-10-2011, 09:11 PM
यादों ने आज फिर मेरा दामन भिगो दिया
दिल का कुसूर था मगर आँखों ने रो दिया

मुझको नसीब था कभी सोहबत का सिलसिला
लेकिन मेरा नसीब कि उसको भी खो दिया

उनकी निगाह की कभी बारिश जो हो गई
मन में जमी जो मैल थी उसको भी धो दिया

गुल की तलाश में कभी गुलशन में जब गया
खुशबू ने मेरे पाँव में काँटा चुभो दिया

सोचा कि नाव है तो फिर मँझधार कुछ नहीं
लेकिन समय की मार ने मुझको डुबो दिया

दोस्तों वफ़ा के नाम पर अरमाँ जो लुट गए
मुझको सुकून है मगर लोगों ने रो दिया

ravi sharma
18-10-2011, 09:12 PM
सितम जिसने किया मुझ पर उसे अपना बनाया है
तभी तो ऐसा लगता है कि वो मेरा ही साया है

उदासी के अँधेरों ने जहाँ रस्ता मेरा रोका
तबस्सुम के चरागों ने मुझे रस्ता दिखाया है

कभी जब दिल की बस्ती में चली जज़्बात की आँधी
उसी आँधी के झोंकों ने ग़ज़ल कहना सिखाया है

भले दुनिया समझती है इसे दीवानगी मेरी
इसी दीवानगी ने तो मुझे शायर बनाया है

इसी दुनिया में बसती है जो रंगो नूर की दुनिया
नज़र आएगी क्या उसको जो घर में भी पराया है

मुझे इस लोक से मतलब नहीं उस लोक से दोस्तों
मुझे उस नूर से मतलब जो इस दिल में समाया है

ravi sharma
18-10-2011, 09:12 PM
हर सितम हर ज़ुल्म जिसका आज तक सहते रहे
हम उसी के वास्ते हर दिन दुआ करते रहे

दिल के हाथों आज भी मजबूर हैं तो क्या हुआ
मुश्किलों के दौर में हम हौसला रखते रहे

बादलों की बेवफ़ाई से हमें अब क्या गिला
हम पसीने से ज़मीं आबाद जो करते रहे

हमको अपने आप पर इतना भरोसा था कि हम
चैन खोकर भी हमेशा चैन से रहते रहे

चाँद सूरज को भी हमसे रश्क होता था कभी
इसलिए कि हम उजाला हर तरफ़ करते रहे

हमने दुनिया को बताया था वफ़ा क्या चीज़ है
आज जब पूछा गया तो आसमाँ तकते रहे

हम तो पत्थर हैं नहीं फिर पिघलते क्यों नहीं
भावनाओं की नदी में आज तक बहते रहे

ravi sharma
18-10-2011, 09:12 PM
गम ही गम है मेरी जिन्दगी मैं ख़ुशी मुझे रास नहीं,
दिल भी उससे लगाया है जिसके मिलने की आस नहीं.

abhisays
18-10-2011, 09:12 PM
इतनी अच्छी कविताओ को झेला नहीं जाता, इनका आनंद उठाया जाता है. :fantastic:

ravi sharma
18-10-2011, 09:13 PM
दिन भी तुमारी याद में यूँ ही बीत जाता है,
नींदों में तुमारा ही ख्याल आता है,
दर्द कभी एस कदर बढ़ जाता है,
आइना देखता हूँ तो चेहरा तुमारा ही नज़र आता है .

ravi sharma
18-10-2011, 09:13 PM
कलि घटा छाने से बादल बरस जाते है,
तुमारी याद आने से हम तरस जाते ही
क्या दूर रहकर भी दिल दूर हुआ करते हैं,
वो रोते है प्यार में जो मजबूर हुआ करते हैं/

ravi sharma
18-10-2011, 09:14 PM
अब आगे से साहित्यकारों से पंगा लेने की जुर्रत ना करें.

Dark Saint Alaick
18-10-2011, 09:19 PM
जनाब ! झेलने लायक तो बिलकुल हैं ! धन्यवाद !

ravi sharma
18-10-2011, 09:24 PM
रेबीज के नये इंजेक्शन की कसम,
किसी कुत्ते में कहां है वह दम,
जो भोंकता भी हो, चाटता भी हो,
गरियाता भी हो, काटता भी हो,
हम तो ऐसे ही थे,
और
ऐसे ही रहेंगे सनम

ravi sharma
18-10-2011, 09:37 PM
अनरुध के पास एक झोपड़ी है
एक घरनी
एक छोटा सा बच्चा
बच्चे के लिए लाएगा अमरूद
घरनी के लिए पाव भर शकरकंद
झोपड़ी के सामने बंधे बाछे के लिए
लाएगा एक टोकरी घास
थोड़ी सी डूब की लत्तरें.....

अनरुध सूर्य के साथ उठता है
गाँव की नदी की ओर भागता है
अनरुध नदी नहीं उलान्घता
मानो तीनों लोक हैं उसके लिए
उस की पर्णकुटी
और उसकी पत्नी
और उसका बच्चा
और खूंटे से बंधा हुआ बाछा
अनरुध सारी दुनिया का चक्कर नहीं लगाएगा
उसका पूरा संसार है
झोपड़ी से नदी तक
पर्णकुटी की परिक्रमा करेगा वह नृत्य के छंद में
अनरुध मानो तीनो लोक
घूम लेगा।

ravi sharma
18-10-2011, 09:38 PM
कविता कोई पत्थर नहीं है
कि आप मारें
और सामने वाला हाथ ऊँचे कर दे
साफ़ा उतारे
और आप के पैरों में
रख दे।
कविता का असर
तन पर नहीं
मन पर होता है
मन की जंग लगी तलवार को
यह
पानी दे-दे कर धार देती है
उसे धो-पोंछ कर
नए संस्कार देती है

यह व़क्त के घोड़ों को लगाम
और सवारों के लिए
काठी का बंदोबस्त करती है
यह हथेली पर
सरसों नहीं उगाती
बल्कि उसे उगाने के लिए
ज़मीन का बंदोबस्त करती है।

ravi sharma
18-10-2011, 09:42 PM
प्राइवेट बस का ड्राइवर है तो क्या हुआ,
सात साल की बच्ची का पिता तो है!
सामने गियर से उपर
हुक से लटका रक्खी हैं

ravi sharma
18-10-2011, 09:43 PM
कहते कहते होंठ मे छाले निकल गए ,
हाय ! पर मुझको सुनने वाले निकल गए |

सोचता था अब कि एक छत मेरे सर पे हो ,
ये क्या खुदा कि मुहँ के निवाले निकल गए |

कोशिशें कि जीत लूँ दुश्मनों के भी दिल
देखता हूँ कि चाहने वाले निकल गए |

सोंचता हूँ मैं अब चुप ही रहूँ 'अति' ,
क्या करूँ पर - जुबां के ताले निकल गए |

कह तो लूँगा मैं खामोशियों की शायरी ,
दर्द-ए- दिल मगर, समझने वाले निकल गए |

ये कैसा वक्त आ गया है देखिए ,
खुदा के बन्दों के दिवाले निकल गए |

चलो , चलें यहाँ से ऐ मेरे हमसफ़र !
यहाँ से सारे जाने वाले निकल गए |

कब्र जब हमने अपनी खुद ही खोद ली ,
आस्तीन के सांप जो पाले निकल गए |

आज कौन जिसको हम अपना कह सकें ,
अपने सभी गैरों के हवाले निकल गए |

ख्वाइश थी आस्मां की मगर मुझको जब मिला ,
उसमें चमकने वाले सभी सितारे निकल गए |

ravi sharma
18-10-2011, 09:44 PM
जो यार देखा नैन भर, दिल की गई चिंता उतर।
ऐसा नहीं कोई अजब, राखे उसे समझाय कर।

जब आँख से ओझल भया, तड़पन लगा मेरा जिया।
हक्का इलाही क्या किया आँसू चले भर लाय कर।

मेरो जो मन तुमने लिया, तुम उठा गम को दिया।
तुमने मुझे ऐसा किया जैसा पतंगा आग पर।

खुसरो कहे बातें गजब दिल में न लावे कुछ अजब।
कुदरत खुदा की है अजब, जब जिव दिया गुल लाय कर।

ravi sharma
18-10-2011, 09:45 PM
मैंने सोचा था प्यार है वो,
पर था एक छलावा ही,
बारिश का एक झोंका था,
जो आता और बह जाता है,
और मैंने सोचा हवा है वो,
चुप रहेगा पर साथ रहेगा,
जीने के लिए जरूरी हूँ
इसका एहसास कराएगा।
पर एक हल्का तूफान था वो,
किसी और का ख्वाब भी,
आकर जो उजाड़ गया,
ओर मैंने सोचा प्यार है वो।
पर वो भी एक मुसाफिर था,
वो भी एक अनोखा राही था,
मिल गया था अचानक कहीं,
जिंदगी या सहारा नहीं,
और मैंने सोचा प्यार है वो।

ravi sharma
18-10-2011, 10:04 PM
बोर्ड की परीक्षा में

हाई स्कूल की कक्षा में

एक भाई साहब

मेज पर चाकू गाड़े

परीक्षा देने में तल्लीन थे ।

निरीक्षक ने देखा

पहले खिसिआया

फिर झल्लाया

अंत में छात्र के समक्ष

करबद्ध हो कर

धीरे से बड़बड़ाया ।

हे आर्य ! हे करूश्रेष्ठ

आप कॉपी रूपी रणक्षेत्र में

युद्ध खंजर से क्यूं लड़ रहे हैं घ्

कॉपी पर जूझ रहा छात्र

गुरू को कुपित नेत्रों से घूर कर

ज़ोर से चिघांड़ा ।

हे विद्यापति ! हे गुरूवर !

भगवान ने आपको

दो आंखें मुफ्त में दीए

ऊपर से आपने

लालटेन भी लगा ली ।

पर आप ये न समझ पाये

कि मैंने चाकू

प्रश्नपत्र पर क्यूं गाड़ा है ।

हे विद्यानिधि !

आपके पंखे में रेग्युलेटर नहीं है ।

ये तीन पंखों की चिरईया

फुल स्पीड पर फड़फड़ा रही है ।

मेरा प्रश्न पत्र

इसकी तीव्र वायु से

उड़ा जा रहा था ।

अतः

मैंने इसकी लाश पर

चाकू गाड़ कर

इसको उड़ने से वंचित कर दिया है ।

और कोई बात नहीं

ये तो मात्र पेपरवेट है ।

ravi sharma
18-10-2011, 10:07 PM
दर्द मे हंसी खोज रही थी,
पत्थर मे जिंदगी खोज रही थी,
पता नहीं था
क्या कर रही हूँ,
मैं मिट्टी मे खुशी खोज रही थी।
पानी की प्यास थी,
पर कुआं सूखा था,
रेगिस्तान मे नदी खोज रही थी,
कांटो से जख्मी
फूल से भी चोटिल हुई,
सूखे मे नमी खोज रही थी,
आंसुओं ने साथ न दिया आंखो का
और बाहर अ गयीं
दया के गरीबो मे धनी खोज रही थी।

malethia
19-10-2011, 11:35 AM
शानदार कलेक्शन,हमेशा की तरह .................

arvind
19-10-2011, 12:05 PM
शर्मा जी, आप तो छा गए। बहुत बढ़िया।

:fantastic::fantastic:

malethia
19-10-2011, 12:11 PM
शर्मा जी, आप तो छा गए। बहुत बढ़िया।

:fantastic::fantastic:
अरविन्द जी,अब ये शर्मा जी नहीं ,पंडित जी (अवतार)हो गये है ................

sombirnaamdev
01-05-2012, 06:31 PM
बोर्ड की परीक्षा में

हाई स्कूल की कक्षा में

एक भाई साहब

मेज पर चाकू गाड़े

परीक्षा देने में तल्लीन थे ।

निरीक्षक ने देखा

पहले खिसिआया

फिर झल्लाया

अंत में छात्र के समक्ष

करबद्ध हो कर

धीरे से बड़बड़ाया ।

हे आर्य ! हे करूश्रेष्ठ

आप कॉपी रूपी रणक्षेत्र में

युद्ध खंजर से क्यूं लड़ रहे हैं घ्

कॉपी पर जूझ रहा छात्र

गुरू को कुपित नेत्रों से घूर कर

ज़ोर से चिघांड़ा ।

हे विद्यापति ! हे गुरूवर !

भगवान ने आपको

दो आंखें मुफ्त में दीए

ऊपर से आपने

लालटेन भी लगा ली ।

पर आप ये न समझ पाये

कि मैंने चाकू

प्रश्नपत्र पर क्यूं गाड़ा है ।

हे विद्यानिधि !

आपके पंखे में रेग्युलेटर नहीं है ।

ये तीन पंखों की चिरईया

फुल स्पीड पर फड़फड़ा रही है ।

मेरा प्रश्न पत्र

इसकी तीव्र वायु से

उड़ा जा रहा था ।

अतः

मैंने इसकी लाश पर

चाकू गाड़ कर

इसको उड़ने से वंचित कर दिया है ।

और कोई बात नहीं

ये तो मात्र पेपरवेट है ।


kya baat hai ji
ये तो मात्र पेपरवेट है ।