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View Full Version : राजस्थानी कहावतों का अद्भुत संसार


Dark Saint Alaick
20-10-2011, 07:35 PM
कहावतें अथवा लोकोक्तियां अत्यंत प्राचीन काल से ही संसार की लगभग सभी भाषाओं में मौजूद रही हैं ! इनका क्षेत्र भी काफी व्यापक है ! भारत के अन्य प्रान्तों की तरह राजस्थान में भी कहावतों का विपुल भंडार है ! राजस्थान शताब्दियों तक विभिन्न राजनीतिक इकाइयों में बंटा रहा, अतः स्थान एवं बोली-भेद के कारण इन कहावतों के स्वरुप में किंचित अंतर परिलक्षित होता है ! इस सूत्र में मैं मुख्य रूप से राजस्थानी कहावतों के शेखावाटी क्षेत्र में प्रचलित प्रारूप को ही प्रस्तुत करूंगा ! कुछ उपयुक्त कहावतों के रूप को स्पष्ट करने के लिए जहां जरूरत महसूस होती है, उसकी प्रचलित सन्दर्भ कथा भी प्रस्तुत करूंगा ! उम्मीद है आपको मेरा यह प्रयास रुचिकर लगेगा !

Dark Saint Alaick
20-10-2011, 07:35 PM
अंत भले को भला !



दूसरों की भलाई करने वाले का अंत में भला ही होता है !

Dark Saint Alaick
20-10-2011, 07:36 PM
अंत भलो सो भलो !



जिसका अंत सुधर जाए, वही भला है !

Dark Saint Alaick
20-10-2011, 07:37 PM
अंत मता सो गता !


अंतिम समय में जिसकी जैसी मति होती है, उसी के अनुसार उसकी गति होती है !

सन्दर्भ कथा !


एक स्त्री बाल विधवा थी, केवल हथलेवे की गुनाहगार ! उसने अपनी सारी ज़िंदगी संयम से बिता दी ! किसी पुरुष के हाथ का स्पर्श भी नहीं होने दिया ! जब उसका अंतिम समय आया, तो उसे दिखलाने के लिए एक वैद्य बुलवाया गया ! वह चाहती थी कि वैद्य उसका स्पर्श नहीं करे, किन्तु असमर्थता के कारण बोल नहीं पाई ! वैद्य ने नब्ज़ देखने के लिए उसका हाथ पकड़ा, तो स्त्री को आनंद की असीम अनुभूति हुई ! उसने मन ही मन पश्चाताप करते हुए सोचा कि पुरुष से अलग रह कर वह संसार के सबसे बड़े आनंद से वंचित रही है ! इसी विचार के साथ उसके प्राण पखेरू उड़ गए और अपनी अंतिम भावना के अनुसार वह अगले जन्म में एक सुन्दर लड़की के रूप में एक वेश्या के घर पैदा हुई !

Dark Saint Alaick
20-10-2011, 07:37 PM
अकल न बाड़ी नीपजै, हेत न हाट बिकाय !



वुद्धि बाड़ी में उत्पन्न नहीं होती और प्रेम बाज़ार में मोल नहीं बिकता !

Dark Saint Alaick
20-10-2011, 07:38 PM
अक्कल बिना आंधलो, पीसै बिना पांगलो !



वुद्धि के बिना मनुष्य अंधे के समान है और धन के बिना पंगु सदृश होता है !

Dark Saint Alaick
22-10-2011, 04:37 PM
अक्ल सें खुदा पिछाणे !

वुद्धि से मनुष्य चरम सत्य को भी जान सकता है !

Dark Saint Alaick
22-10-2011, 04:41 PM
1. अगस्त उगा मेह न मंडे, जे मंडे तो धार न खंडे !

अगस्त्य का तारा उदय होने पर प्रायः वर्षा नहीं होती, किन्तु यदि कभी हो जाए तो फिर खूब जोरों से होती है !

2. अगस्त ऊग्यो, मेह पूग्यो !

अगस्त्य नामक तारे का उदय होने पर वर्षा का अंत हो जाता है !

Dark Saint Alaick
22-10-2011, 04:48 PM
अजगर पड्यो उजाड़ में, दाता देवण हार !


अजगर जंगल में पड़ा रहता है, कोई उद्यम नहीं करता, फिर भी भगवान् उसका भरण-पोषण करते हैं !


प्रसंगवश इसी से सम्बंधित दो पद्य भी यहाँ प्रस्तुत हैं -


1 . इजगर पूछै बिजगरा, कहा करत हो मिंत !
पड्या रहा हां धूळ में, हरी करत हैं चिंत !!


2 . अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम !
दास मलूका कह गए, सबके डाटा राम !!

Dark Saint Alaick
22-10-2011, 04:56 PM
अक्ल बड़ी'क भैंस !


भैंस की तरह स्थूल रूप में दिखाई नहीं पड़ने पर भी भैंस की अपेक्षा बुद्धि बड़ी है !


सन्दर्भ कथा -

शिकार खेलता हुआ एक राजा जंगल में भटक गया ! जंगल में भेड़-बकरियां चराने वाले दो गड़रियों ने राजा को पानी पिलाया, उसकी सेवा की और राजधानी का रास्ता बता दिया ! नगर पहुंचने पर राजा ने उन दोनों को दरबार में बुलवाया और पुरस्कार मांगने को कहा ! बड़े ने एक अच्छी सी भैंस मांगी और लेकर चला गया ! छोटे ने अक्ल मांगी ! राजा ने उसे अपने यहां रख लिया ! उसे पढ़ाया-लिखाया और एक गांव का हाकिम बना दिया ! कालांतर में बड़े की भैंस तो मर गई, लेकिन छोटे ने अक्ल के बल पर खूब तरक्की की !

Sikandar_Khan
22-10-2011, 05:02 PM
अलैक जी को एक बेहतरीन ज्ञानवर्धक सूत्र के लिए बधाई |:bravo::bravo:

malethia
23-10-2011, 05:07 PM
राजस्थानी कहावतों का प्रचलन जितना शेखावाटी क्षेत्र में है वैसा शायद ही कहीं देखने को मिले ,गावों में सजने वाली चौपाल में अधिकतर बातों को कहावतों के रूप में ही कहते है,और हर बात का कहावत में जवाब देना यहाँ की खूबी........

एक शानदार शुरुआत के लिए डार्क जी का धन्यवाद !

malethia
23-10-2011, 05:44 PM
कर्जा भला ना बाप का, बेटी भली ना एक !
पेंडा भला ना कोष का, मालिक राख टेक !!

अर्थात,
कर्जा तो अपने पिता का भी अच्छा नही,ना घर में बेटी भली !
यात्रा एक कोष की भी ठीक नहीं,भगवान इन सबसे बचाए............

ये कहावत पुराने समय में काफी उपयोगी थी ,शायद आज इसका कोई महत्त्व नही है .

Dark Saint Alaick
29-10-2011, 11:41 AM
अंधेरे में गासियो किसौ कान में जावै !


चाहे कितना ही अन्धकार क्यों न हो, हाथ का ग्रास मुंह में ही जाता है, कान में नहीं ! मनुष्य हर परिस्थिति में अपने स्वार्थ के प्रति सजग रहता है !

Dark Saint Alaick
29-10-2011, 11:47 AM
अंधेरी रात में मूंग काला !


अंधेरी रात में हरे रंग के मूंग भी काले ही दिखाई देते हैं ! अज्ञान के अन्धकार में वस्तुस्थिति का सही ज्ञान नहीं हो पाता !

Dark Saint Alaick
29-10-2011, 11:51 AM
अठीनली छायां बठीनै आयां सरै !


इधर की छाया उधर आती ही है अर्थात उत्थान-पतन अवश्यम्भावी है ! इससे प्रसन्न होना या घबराना नहीं चाहिए !

Dark Saint Alaick
29-10-2011, 12:08 PM
अठै टर बठै टर, तेरै खातर छोड़ द्यूं घर ?


यहां भी टर्र, वहां भी टर्र, तो क्या तेरे लिए घर ही छोड़ दूं ! अनजान वास्तु से घबराने के बजाय उसे समझने का प्रयास करना चाहिए !


सन्दर्भ कथा-

एक गड़रिया भेड़-बकरियां चराने के लिए जंगल में जाया करता था ! दोपहर की रोटी अपने साथ ले जाता और उन्हें खाकर पास के तालाब से पानी पी लिया करता ! एक दिन जैसे ही उसने पानी पीना शुरू किया, एक मेंढक जोरों से टर्र-टर्र बोल उठा ! बेचारा गड़रिया डर गया कि न जाने क्या बला है और प्यासा ही घर की ओर दौड़ पड़ा ! घर आकर जैसे ही पानी पीने को हुआ, तो यहां भी जोर से टर्र की आवाज़ सुनाई दी, लेकिन इस बार उसकी नज़र घड़े के पीछे बैठे मेंढक पर पड़ गई और वह समझ गया कि यह आवाज़ यह मेंढक ही कर रहा है ! तब उसे अपनी जल्दबाजी और मूर्खता पर बहुत हंसी आई और वह बोल उठा-

अठै टर बठै टर, तेरै खातर छोड़ द्यूं घर ?
(यहां भी टर्र और वहां भी टर्र, तो क्या तेरे लिए अपना घर ही छोड़ दूं ?)

Dark Saint Alaick
29-10-2011, 12:12 PM
अभागिये चोर नै बिल्ली घूंसै !


चोर को देख कर कुत्ता तो भौंकता ही है, लेकिन अभागे चोर को देख कर बिल्ली भी गुर्राने लगती है ! अगर समय और परिस्थिति विपरीत है तो अनुकूल चीज़ें भी आपके खिलाफ परिणाम देने लगती हैं, ऎसी परिस्थिति में धैर्य से काम लेना चाहिए !

Dark Saint Alaick
06-11-2011, 11:27 AM
अनजी का बाजा अर अनजी का गाजा !


सारे गाजे-बाजे अन्न के पीछे ही हैं अर्थात अगर खाने के लिए है, तो सभी चीजें अच्छी लगती हैं !

Dark Saint Alaick
25-11-2011, 11:23 AM
आं तिलां में तेल कोनी !


इन तिलों में तेल नहीं है !

अर्थात यहां कोई सार नहीं है ! यहां से किसी प्रकार के लाभ की आशा नहीं है !

Dark Saint Alaick
25-11-2011, 11:28 AM
आंत भारी तो माथ भारी !


पेट में भारीपन हो तो सर भी भारी रहता है !

Dark Saint Alaick
25-11-2011, 11:29 AM
आंगी में सें बेस कोनी नीकले !

अंगिया में से पूरी पोशाक नहीं निकल सकती अर्थात असंभव कार्य की उम्मीद नहीं करनी चाहिए !

Dark Saint Alaick
25-11-2011, 11:32 AM
आंटे आई मरै बिलाई !

दांव में आई बिल्ली ही मारी जाती है !

अर्थात चालाक और धूर्त आदमी को भी दांव में फंसने पर मरना पड़ता है !

Dark Saint Alaick
25-11-2011, 11:32 AM
आन्गलियाँ सें नूं न्यारा कोनी होवै !


उंगलियों से नाखून अलग नहीं होते !

अर्थात मनमुटाव होने पर भी आत्मीयजन अपने ही होते हैं, उन्हें अपने से अलग नहीं किया जा सकता !

Dark Saint Alaick
03-11-2012, 11:31 PM
ऊगन्ते का गीत, ढलतो बिकै न सींत !


जिसका अभ्युदय हो, उसकी प्रशस्ति सब कोई गाते हैं, लेकिन पतनोन्मुख को कोई नहीं पूछता !

rajnish manga
15-11-2012, 05:47 PM
सेंट अलैक जी, ‘राजस्थानी कहावतों का अदभुत संसार’ नामक सूत्रजारी करने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद. कहावतों का संसार बड़ा व्यापक और दिलचस्प होता है. इनकी विशेषता यही है कि यह लोक जीवन से प्रसूत हैं और युगों युगों तजुर्बों का निचोड़ व ज्ञान इनमे दिखायी देता है. राजस्थान के शेखावाटी इलाके में प्रचलित कहावतों से फोरम के सदस्यतों को परिचित कराने का बीड़ा उठाना बड़े जीवट का काम है. कहावतों के साथ साथ आपने उनका सारगर्भित विवेचन ही नहीं किया बल्कि सन्दर्भ कथाओं से भी अपने पाठकों को अवगत कराया है. आपके इस प्रयास की जितनी प्रशंसा करें कम है.