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View Full Version : गद्दाफ़ी :: ताज से मौत तक का सफ़र!


sanjivkumar
20-10-2011, 08:59 PM
गद्दाफ़ी :: ताज से मौत तक का सफ़र!


http://www4.pictures.gi.zimbio.com/Muammar+Gaddafi+Meets+PM+Berlusconi+Italian+51EEZm ACUUkl.jpg

sanjivkumar
20-10-2011, 09:01 PM
http://woodgatesview.files.wordpress.com/2011/02/5161-libya_s_colonel_muammar_al_gaddafi.jpg

मुआमार गद्दाफ़ी सितंबर 1969 में सत्ता में आए थे. उन्होंने सम्राट इदरिस को एक सैनिक कार्रवाई में सत्ता से हटाया था.

उस वक़्त गद्दाफ़ी 27 साल के थे. मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नासिर से प्रेरित गद्दाफ़ी उस समय अरब राष्ट्रवाद की फ़िज़ा में बिल्कुल फिट बैठे थे.

लेकिन उन्होंने इस क्षेत्र में अपने वक़्त के सभी प्रशासकों को पीछे छोड़ दिया.

sanjivkumar
20-10-2011, 09:01 PM
क़रीब 41 साल सत्ता में रहते हुए उन्होंने सरकार चलाने की अपनी ही एक व्यवस्था खोजी जिसमें उत्तरी आयरलैंड के आईआरए जैसे हथियारबंद चरमपंथी गुटों के साथ-साथ फ़िलीपीन्स में इस्लामी कट्टरपंथी गुट अबु सय्याफ़ जैसी संस्थाओं को समर्थन दिया.

उन्होंने उत्तरी अफ़्रीका के सबसे क्रूर तानाशाह के रूप में लीबिया पर राज किया.

sanjivkumar
20-10-2011, 09:02 PM
अपनी सत्ता के आख़िरी दिनों में स्कॉटलैंड में दिसंबर 1988 में पैन एम को उड़ाने के बाद अलग-थलग पड़े लीबिया को गद्दाफ़ी एक बार अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्वीकार्य बना पाने सफल रहे थे.

लीबिया को एक बार फिर पश्चिमी देशों और कंपनियों ने देश के बड़े ईंधन भंडार की वजह से गले लगाना शुरू कर दिया था.

उनको सत्ता से हटाने वाला विद्रोह फ़रबरी 2011 में लीबिया के दूसरे बड़े शहर बेनग़ाजी से शुरू हुआ था. एक ऐसा शहर जिसे गद्दाफ़ी ने नज़रअंदाज़ किया था और जहां उनके पूरे कार्यकाल के दौरान गद्दाफ़ी पर किसी ने भरोसा नहीं किया था.

sanjivkumar
20-10-2011, 09:03 PM
कर्नल गद्दाफ़ी का जन्म एक बद्दू परिवार में सिर्त में 1946 में हुआ था.

उन्होंने हमेशा अपनी कबायली पहचान को सहेज कर रखा और वो अपने मेहमानों का स्वागत अपने टेंट में करते थे और अपनी विदेश यात्राओं के दौरान भी कई बार टेंट में ही रहते थे. गद्दाफ़ी शासन को शुरूआत में उनकी गैर-औपनिवेशिक साख और बाद में देश को ‘एक लगातार चलने वाली क्रांति’ में रखने से मिलती रही.

उन्होंने अपनी राजनीतिक विचारधारा को अपनी पुस्तक ग्रीन बुक में ‘लोगों की सरकार’ के रूप में पेश किया. साल 1977 में गद्दाफ़ी ने लीबिया को एक जमाहिरिया घोषित किया. इस शब्द का अर्थ है – ‘लोगों का राज’

सिद्धांत ये था कि लीबिया लोगों का लोकतंत्र बन गया है जिसे लोकप्रिय स्थानीय क्रांतिकारी परिषदें चला रही हैं. लेकिन वास्तव में हर प्रमुख फ़ैसला और लीबिया का धन उनके मज़बूत कब्ज़े में ही रहा.

sanjivkumar
20-10-2011, 09:03 PM
गद्दाफ़ी एक दक्ष राजनीतिक व्यक्ति थे जो लीबिया की अलग-अलग जनजातीय को एक-दूसरे के विरुद्ध इस्तेमाल करते थे. इसी तरह से उन्होंने ख़ुद को एक महानायक बना लिया था.

गद्दाफ़ी लगातार लीबिया पर एक ‘पुलिस राज्य’ की तर्ज पर मज़बूत नियंत्रण बढ़ाते गए. लीबिया वासियों के लिए 1980 का दशक काफ़ी मुसीबतों भरा रहा. इस दौरान गद्दाफ़ी ने अपने सामाजिक सिद्धांतों के कई प्रयोग किए.

अपनी सांस्कृतिक क्रांति के तहत उन्होंने सभी निजी व्यवसाय बंद कर दिए और साथ ही कई किताबों को जला डाला.

उन्होंने विदेशों में रह रहे अपने विरोधियों की हत्याएं भी करवाईं. गद्दाफ़ी ने लीबिया में बोलने की स्वतंत्रता पर पुरी तरह से रोक लगाई. उन्होंने कई बार अपने विरोधियों का हिंसक दमन किया.

sanjivkumar
20-10-2011, 09:04 PM
इसके बाद लॉकर्बी में एक हवाई जहाज़ को उड़ाने के बाद गद्दाफ़ी और लीबिया अंतरराष्ट्रीय पटल पर अलग-थलग पड़ गया. गद्दाफ़ी के आलोचकों के लिए उनका सबसे बड़ा गुनाह अपनी विदेश यात्राओं पर राष्ट्रीय धन की बर्बादी और भ्रष्टाचार रहा है.

sanjivkumar
20-10-2011, 09:04 PM
साल 2010 में साठ लाख लोगों वाले इस देश को तेल से 32 बिलियन अमरीकी डॉलर की कमाई हो रही थी. लेकिन अधिकतर लीबियाई लोगों को इस अपार धन से कोई फ़ायदा नहीं हुआ था क्योंकि उनका रहन-सहन किसी ग़रीब मुल्क़ के निवासियों जैसा ही था.

सरकार के बाहर नौकरियों की कमी के कारण लीबिया में बेरोज़गारी की दर क़रीब 30 प्रतिशत है. लीबिया के ‘समाजवाद’ में मुफ़्त शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और रियायत पर आवास एंव यातायात शामिल है लेकिन देश में वेतन बहुत ही कम है.

sanjivkumar
20-10-2011, 09:04 PM
विदेशी निवेशों से मिलने वाला अधिकतर धन देश के चुनींदा लोगों की जेब में ही जाता रहा है. साल 1999 में गद्दाफ़ी ने लॉकर्बी विमान की उड़ाने की ज़िम्मेदारी स्वीकार कर अंतरराष्ट्रीय पटल पर वापसी की.

अमरीका पर 11 सितंबर 2001 को हुए हमले के बाद गद्दाफ़ी ने अमरीका के ‘आतंक के ख़िलाफ़ युद्ध’ का समर्थन किया. इराक़ पर साल 2003 में अमरीकी हमले के बाद लीबिया ने अपने जैविक और परमाणु हथियारों को बनाने की योजना को छोड़ने के ऐलान किया.

अपने शासन के अंतिम दिनों में उनके उत्तराधिकारी को लेकर प्रश्न उठने शुरू हो गए थे. उनके दो पुत्रों में इसके लिए खुलेआम प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई थी.

sanjivkumar
20-10-2011, 09:05 PM
आख़िरी दिनों में उनके बड़े पुत्र सैफ़ अल-इस्लाम जो मीडिया में दिलचस्पी रखते थे, अपने छोटे भाई मुत्तसिम से पिछड़ते नज़र आ रहे थे. मुत्तसिम लीबिया के सुरक्षाबलों में एक ताक़तवर भूमिका रखते थे.

अरब जगत में पिछले डेढ़ साल से आए राजनीतिक बदलावों और आंदोलनों का असर लीबिया पर भी पड़ा और लोग साल 2011 की शुरूआत में 40 साल पुराने शासन के ख़िलाफ़ खड़े हो गए.

khalid
20-10-2011, 11:23 PM
संजीव जी आपने बहुत अच्छी जानकारी प्रदान किया
:bravo::bravo::bravo:

ndhebar
20-10-2011, 11:36 PM
संजीव जी
गद्दाफी यात्रा जारी रखें

sanjivkumar
21-10-2011, 08:02 AM
जब दिसंबर 2010 में टयूनीशिया से अरब जगत में बदलाव की क्रांति का प्रारंभ हुआ, तो उस संदर्भ में जिन देशों का नाम लिया गया, उसमें लीबिया को पहली पंक्ति में नहीं रखा गया था.

क्योंकि कर्नल ग़द्दाफ़ी को पश्चिमी देशों का पिट्ठू नहीं समझा जाता था, जो क्षेत्र में जनता की नाराज़गी का सबसे बड़ा कारण समझा जाता था.

उन्होंने तेल से मिले धन को भी दिल खोलकर बांटा था. ये अलग बात है कि इस प्रक्रिया में उनका परिवार भी बहुत अमीर हुआ था.

ग़द्दाफ़ी ने देश की प्रगति के लिए और भी कई अहम काम किए थे जैसे एक मानव-निर्मित नदी बनाकर देश के उत्तरी सूखे हिस्से में पानी पहुंचाया गया था.

इसीलिए जब क्रांति की बात शुरू हुई, तो उन्होंने कहा कि वो लोगों के साथ हैं क्योंकि उनके पास कोई सत्ता नहीं है और देश में जम्हीरिया है.

लेकिन बाद में लोगों की भारी नाराज़गी सामने आई और ज़ाहिर है कर्नल ग़द्दाफ़ी ने पूरी ताक़त से साथ उसका विरोध किया.

sanjivkumar
21-10-2011, 08:03 AM
http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=12819&stc=1&d=1319166181

sanjivkumar
21-10-2011, 08:04 AM
लीबिया में अधिकारियों का कहना है कि पूर्व शासक कर्नल मुअम्मर गद्दाफ़ी सिर्त में उनके वफ़ादारों और अंतरिम सरकार के सैनिकों के बीच हुई गोलीबारी में मारे गए.

कार्यवाहक प्रधानमंत्री महमूद जिब्रील ने कहा कि अंतरिम सरकार के सैनिकों और गद्दाफ़ी के वफ़ादारों के बीच गोलीबारी हुई जिसमें उन्हें सिर में गोली लगी.

उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि कर्नल गद्दाफ़ी को ज़िंदा पकड़ा गया था मगर अस्पताल पहुँचने से पहले उनकी मौत हो गई

sanjivkumar
21-10-2011, 08:05 AM
nsGkwFBByuQ

sanjivkumar
21-10-2011, 08:08 AM
गद्दाफ़ी का मृत शरीर


http://myhindiforum.com/attachment.php?attachmentid=12820&stc=1&d=1319166436

sanjivkumar
21-10-2011, 08:10 AM
कर्नल गद्दाफ़ी के बारे में ख़बर है कि पहले उन्हें ज़िंदा पकड़ा गया था


http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2011/10/20/111020181744_gaddafi_304x171_reuters.jpg

sanjivkumar
21-10-2011, 08:11 AM
http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2011/10/20/111020172209_sp_khadafi_morto_304x171_reuters.jpg


इस बीच गद्दाफ़ी को पकड़े जाने का जो वीडियो सामने आया है उससे पता चलता है कि गद्दाफ़ी को सड़कों पर घसीटा गया था.

अल-जज़ीरा टेलीविज़न पर प्रसारित वीडियो फ़ुटेज से ये पता नहीं चल पा रहा है कि उस समय वह ज़िंदा थे या उनकी मौत हो चुकी थी.

बाद में जिब्रील ने संवाददाताओं को बताया कि 'फ़ोरेंसिक जाँच' में इस बात की पुष्टि हो गई है कि कर्नल गद्दाफ़ी की पकड़े जाने के बाद ले जाए जाते समय गोलियों की चोट से मौत हो गई.

sanjivkumar
21-10-2011, 08:12 AM
http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2011/10/21/111021030200_muammar_gaddafi_304x171_reuters.jpg

जब कार जा रही थी तो क्रांतिकारियों और गद्दाफ़ी के सैनिकों के बीच गोलीबारी हुई जिसमें एक गोली उनके सिर में लगी"

महमूद जिब्रील, अंतरिम प्रधानमंत्री

Dark Saint Alaick
21-10-2011, 04:02 PM
ग्वालियर के युवा दखल विचार मंच के साथियों ने आज अपने ब्लॉग पर यह आलेख प्रकाशित किया है ! आप सभी के लिए यहां प्रस्तुत है ! आलेख में मात्राओं की कुछ ग़लतियां हैं ! इन्हें मैं समय रहते सुधार नहीं पाया ! इसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं !


यह गद्दाफी की हार नहीं अमरीका की जीत है..




जिस धज से कोई मकतल को गया वो शान सलामत रहती है,
ये जान तो आनी-जानी है इस जाँ की तो कोई बात नहीं.
--फैज़


लीबिया पर नाटो के हमले के बाद गद्दाफी की हार तय थी. अचरज यह नहीं कि गद्दाफी को क़त्ल कर दिया गया या अमरीकी चौधराहट में नाटो की दैत्याकर फौज के दम पर वहाँ के साम्रज्यवादपरस्त बागियों ने लीबिया पर कब्ज़ा कर लिया. अचरज तो यह है कि गाद्दफी और उनके समर्थक नौ महीने तक उस साम्राज्यवादी गिरोह की बर्बरता के आगे डटे रहे. फिदेल कास्त्रो ने 28 मार्च 2011को अपने एक विमर्श में कहा था कि...
"उस देश (लीबिया) के नेता के साथ मेरे राजनीतिक या धार्मिक विचारों का कोई मेल नहीं है। मैं मार्क्सवादी-लेनिनवादी हूँ और मार्ती का अनुयायी हूँ, जैसा कि मैंने पहले ही कहा है।

मैं लीबिया को गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के एक सदस्य और संयुक्त राष्ट्रसंघ के लगभग 200 सदस्यों में से एक सम्प्रभु देश मानता हूँ।

कोई भी बड़ा या छोटा देश, एक ऐसे सैनिक संगठन की वायु सेना द्वारा जघन्य हमले का इस तरह शिकार नहीं हुआ था, जिसके पास हजारों लड़ाकू बमवर्षक विमान, 100 से भी अधिक पनडुब्बी, नाभिकीय वायुयान वाहक और धरती को कई बार तबाह करने में सक्षम शस्त्र-अस्त्रों का जखीरा है। हमारी प्रजाति के आगे ऐसी परिस्थिति कभी नहीं आयी और 75 साल पहले भी इससे मिलती-जुलती कोई चीज नहीं रही है जब स्पेन को निशाना बनाकर नाजी बमवर्षकों ने हमले किये थे।

हालाँकि अपराधी और बदनाम नाटो अब अपने ‘‘लोकोपकारी’’ बमबारी के बारे में एक ‘‘खूबसूरत’’ कहानी गढ़ेगा।

अगर गद्दाफी ने अपनी जनता की परम्पराओं का सम्मान किया और अन्तिम साँस तक लड़ने का निर्णय लिया, जैसा कि उसने वादा किया है और लीबियाई जनता के साथ मिलकर मैदान में डटा रहा जो एक ऐसी निकृष्टतम बमबारी का सामना कर रही है जैसा आज तक किसी देश ने नहीं किया, तो नाटो और उसकी अपराधिक योजना शर्म के कीचड़ में धँस जायेगी।
जनता उसी आदमी का सम्मान करती है और उसी पर भरोसा करती है जो अपने कर्तव्य का पालन करते हैं।...अगर वे (गद्दाफी) प्रतिरोध करते हैं और उनकी (नाटो) माँगों के आगे समर्पण नहीं करते तो वे अरब राष्ट्रों की एक महान विभूति के रूप में इतिहास में शामिल होंगे।"

गद्दाफी ने फिदेल को हू-ब-हू सही साबित किया और पलायन की जगह संघर्ष का रास्ता अपनाया।

Dark Saint Alaick
21-10-2011, 04:06 PM
लीबियाई जनता पर बर्बर नाजी-फासीवादी हमले का प्रतिरोध करते हुए जिस तरह गद्दाफी ने शहादत का जाम पिया, वह निश्चय ही उन्हें साम्राज्यवाद-विरोधी अरब योद्धाओं की उस पंक्ति में शामिल कर देता है, जिसमें लीबियाई मुक्ति-योद्धा उमर मुख़्तार का नाम शीर्ष पर है। गद्दाफी की साम्राज्यवादविरोधी दृढता को सलाम करते हुए प्रस्तुत है फ्रेड पियर्स का यह लेख-


आतंकी और बर्बर अमरीका का शिकार एक और राष्ट्र. लीबिया

-फ्रेड पीयर्स

मैं लीबिया में 12 वर्ष रहा हूँ। वहां नागरिको को संपूर्ण शिक्षा (जिसमें विदेश में जाकर शिक्षा लेना भी शामिल है), चिकित्सा (जिसमें विदेश में जाकर उपचार लेने का खर्चा भी शामिल है) और लोगो को घर बना कर देना सब कुछ सरकार करती है। उसने पूरे देश में नई सड़कें (जिन पर कोई टोल नहीं लगता है), अस्पताल, स्कूल, मस्जिदें, बाजार सब कुछ नया बनवाया था। मुझसे भी पूरे 12 वर्षो में नल, बिजली, टेलीफोन का कोई पैसा नहीं लिया। मुझे खाने.पीने, पेट्रोल, सब्जी, फल, मीट, मुर्गे, गाड़ियां, फ्रीज, टीवी, बाकी घर की सुविधाएं, एयर ट्रेवल और सब कुछ सुविधाएँ मुफ्त में मिली हुई थी।


उसने लीबिया को जो एक रेगिस्तान है, हरा-भरा ग्रीन बना दिया था। एक बार हमारे भारत के राजदूत ने मेरे डायरेक्टर को कहा था कि हम भारतवासी हरे भारत को काट कर रेगिस्तान बना रहे हैं और मैं यहां आकर देखता हूँ कि आपने रेगिस्तान को हरा-भरा बना दिया है। गद्दाफी ने लीबिया में मेन मेड रीवर बनवाई थी जो दुनिया का सबसे मंहगा प्रोजेक्ट है, जिसके बारे में कहा गया था कि यह प्रोजेक्ट इतना अनाज पैदा कर सकता है जिससे पूरे अफ्रीका का पेट भर जाये, और जिसका ठेका कोरिया को दिया गया था। जब गद्दाफी यह ठेका देने कोरिया गया था तो उसके स्वागत में कोरिया ने चार दिन तक स्वागत समारोह किये थे और उसके स्वागत में चालीस किलोमीटर लंबा कालीन बिछाया था। इस ठेके से कोरिया ने इतना कमाया था कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था जापान जैसी हो गई थी। मुझ पर विश्वास नहीं हो तो गूगल की पुरानी गलियों में जाओ, आपको सारे सबूत मिल जायेंगे। मैं उस महान शासक को श्रद्धांजलि देता हूँ और उसकी आत्मा की शांति के लिए दुआ करता हूँ। उसे मिस्र के जमाल अब्दुल नासर नें मात्र 28 वर्ष की उम्र में लीबिया का शासक बना दिया था। वह भारत का अच्छा मित्र था। मालूम हो कि गद्दाफी ने 41 साल तक लीबिया पर राज किया है।

गद्दाफी था महान नदी निर्माता

लीबीया और गद्दाफी का नाम आजकल हम सिर्फ इसलिए सुन रहे हैं क्योंकि गद्दाफी को गद्दी से हटाने के लिए अमेरिका बमबारी कर रहा है, लेकिन गद्दाफी के दौर में उनके काम का जिक्र करना भी जरूरी है जो न केवल लीबीया बल्कि विश्व इतिहास में अनोखा है- गद्दाफी की नदी। अपने शासनकाल के शुरूआती दिनों में ही उन्होंने एक ऐसे नदी की परियोजना पर काम शुरू करवाया था जिसका अवतरण और जन्म जितना अनोखा था शायद इसका अंत उससे अनोखा होगा।

लीबिया की गिनती दुनिया के कुछ सबसे सूखे माने गए देशों में की जाती है। देश का क्षेत्रफल भी कोई कम नहीं। बगल में समुद्रए नीचे भूजल खूब खारा और ऊपर आकाश में बादल लगभग नहीं के बराबर। ऐसे देश में भी एक नई नदी अचानक बह गई। लीबिया में पहले कभी कोई नदी नहीं थी। लेकिन यह नई नदी दो हजार किलोमीटर लंबी है, और हमारे अपने समय में ही इसका अवतरण हुआ है! लेकिन यह नदी या कहें विशाल नद बहुत ही विचित्र है। इसके किनारे पर आप बैठकर इसे निहार नहीं सकते। इसका कलकल बहता पानी न आप देख सकते हैं और न उसकी ध्वनि सुन सकते हैं। इसका नामकरण लीबिया की भाषा में एक बहुत ही बड़े उत्सव के दौरान किया गया था। नाम का हिंदी अनुवाद करें तो वह कुछ ऐसा होगा। महा जन नद।
हमारी नदियां पुराण में मिलने वाले किस्सों से अवतरित हुई हैं। इस देश की धरती पर न जाने कितने त्याग, तपस्या, भगीरथ प्रयत्नों के बाद वे उतरी हैं। लेकिन लीबिया का यह महा जन नद सन् 1960 से पहले बहा ही नहीं था। लीबिया के नेता कर्नल गद्दाफी ने सन् 1969 में सत्ता प्राप्त की थी। तभी उनको पता चला कि उनके विशाल रेगिस्तानी देश के एक सुदूर कोने में धरती के बहुत भीतर एक विशाल मीठे पानी की झील है। इसके ऊपर इतना तपता रेगिस्तान है कि कभी किसी ने यहां बसने की कोई कोशिश ही नहीं की थी। रहने-बसने की तो बात ही छोड़िए, इस क्षेत्र का उपयोग तो लोग आने-जाने के लिए भी नहीं करते थे। बिल्कुल निर्जन था यह सारा क्षेत्र।
नए क्रांतिकारी नेता को लगा कि जब यहां पानी मिल ही गया है तो जनता उनकी बात मानेगी और यदि इतना कीमती पानी यहां निकालकर उसे दे दिया जाए तो वह हजारों की संख्या में अपने-अपने गांव छोड़कर इस उजड़े रेगिस्तान में बसने आ जाएगी। जनता की मेहनत इस पीले रेगिस्तान को हरे उपजाऊ रंग में बदल देगी।
अपने लोकप्रिय नेता की बात लोक ने मानी नहीं। पर नेता को तो अपने लोगों का उद्धार करना ही था। कर्नल गद्दाफी ने फैसला लिया कि यदि लोग अपने गांव छोड़कर रेगिस्तान में नहीं आएंगे तो रेगिस्तान के भीतर छिपा यह पानी उन लोगों तक पहुंचा दिया जाए। इस तरह शुरू हुई दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे महंगी सिंचाई योजना। इस मीठे पानी की छिपी झील तक पहुंचने के लिए लगभग आधे मील की गहराई तक बड़े-बड़े पाईप जमीन से नीचे उतारे गए। भूजल ऊपर खींचने के लिए दुनिया के कुछ सबसे विशालकाय पंप बिठाए गए और इन्हें चलाने के लिए आधुनिकतम बिजलीघर से लगातार बिजली देने का प्रबंध किया गया।
तपते रेगिस्तान में हजारों लोगों की कड़ी मेहनत, सचमुच भगीरथ-प्रयत्नों के बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया, जिसका सबको इंतजार था। भूगर्भ में छिपा कोई दस लाख वर्ष पुराना यह जल आधुनिक यंत्रों, पंपों की मदद से ऊपर उठाए ऊपर आकर नौ दिन लंबी यात्रा को पूरा कर कर्नल की प्रिय जनता के खेतों में उतरा। इस पानी ने लगभग दस लाख साल बाद सूरज देखा था।

कहा जाता है कि इस नदी पर लीबिया ने अब तक 27 अरब डालर खर्च किए हैं। अपने पैट्रोल से हो रही आमदनी में से यह खर्च जुटाया गया है। एक तरह से देखें तो पैट्रोल बेच कर पानी लाया गया है। यों भी इस पानी की खोज पैट्रोल की खोज से ही जुड़ी थी। यहां गए थे तेल खोजने और हाथ लग गया इतना बड़ा, दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञात भूजल भंडार।

बड़ा भारी उत्सव था। 1991 के उस भाग्यशाली दिन पूरे देश से, पड़ौसी देशों से, अफ्रीका में दूर-दूर से, अरब राज्यों से राज्याध्यक्ष, नेता, पत्रकार जनता- सबके सब जमा थे। बटन दबाकर उद्घाटन करते हुए कर्नल गद्दाफी ने इस आधुनिक नदी की तुलना रेगिस्तान में बने मिस्र के महान पिरामिडों से की थी।

लोग बताते हैं कि इन नद से पैदा हो रहा गेहूं आज शायद दुनिया का सबसे कीमती गेहूं है। लाखों साल पुराना कीमती पानी हजारों-हजार रुपया बहाकर खेतों तक लाया गया है- तब कहीं उससे दो मुट्ठी अनाज पैदा हो रहा है। यह भी कब तक? लोगों को डर तो यह है कि यह महा जन नद जल्दी ही अनेक समस्याओं से घिर जाएगा और रेगिस्तान में सैकड़ों मीलों में फैले इसके पाईप जंग खाकर एक भिन्न किस्म का खंडहर, स्मारक अपने पीछे छोड़ जाएंगे।

लीबिया में इस बीच राज बदल भी गया तो नया लोकतंत्र इस नई नदी को बहुत लंबे समय तक बचा नहीं सकेगा। और देशों में तो बांधों के कारण, गलत योजनाओं के कारण, लालच के कारण नदियां प्रदूषित हो जाती हैं, सूख भी जाती हैं। पर यहां लीबिया में पाईपों में बह रही इस विशाल नदी में तो जंग लगेगी। इस नदी का अवतरण, जन्म तो अनोखा था ही, इसकी मृत्यु भी बड़ी ही विचित्र होगी।

(फ्रेड पीयर्स का यह लेख 'गांधी मार्ग' में प्रकाशित हुआ है, प्रस्तुति- अनुपम मिश्र)

khalid
21-10-2011, 05:57 PM
:bravo::bravo::bravo:
क्या बात हैँ भाई जान आप ने इतने अनछुए पहलु को खोज कर लाऐँ
हार्दिक आभार

arvind
21-10-2011, 05:59 PM
बड़ी अजीब बात है। अपने देश का मीडिया तो बिल्कुल अलग ही छवि पेश कर रहा है।

sanjivkumar
21-10-2011, 06:06 PM
बड़ी अजीब बात है। अपने देश का मीडिया तो बिल्कुल अलग ही छवि पेश कर रहा है।

जनाब, अपनी देश की मीडिया और सरकार ने अपना ईमान धर्म अमेरिका को बेच दिया है. :bang-head::bang-head::bang-head:

Dark Saint Alaick
21-10-2011, 06:15 PM
बड़ी अजीब बात है। अपने देश का मीडिया तो बिल्कुल अलग ही छवि पेश कर रहा है।

बन्धु ! हमारे देश के ज्यादातर पत्र-पत्रिकाओं और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के मालिक धन्ना सेठ अथवा राजनीति से जुडे लोग हैं, जिनके हित पश्चिमी देशों और उनकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से जुडे हैं ! यही कारण है कि आप को वही पढ़वाया जाता है, जो उनके हित साधता है अर्थात भारतीय अखबार पढ़ते समय आप एक ऐसा शानदार रंगीन चश्मा लगाए होते हैं, जिसे आपकी अनभिज्ञता में पहना दिया गया होता है !

sagar -
22-10-2011, 05:49 AM
गदाफी के बारे में जानकारी देने के लिए थैंक्स !

Dark Saint Alaick
22-10-2011, 05:29 PM
यह खबर कुछ ही देर पहले समाचार एजेंसी 'एऍफ़पी' ने जारी की है !


युवा लीबियाई लड़ाके ने गद्दाफी को मारने का दावा किया : वीडियो

त्रिपोली (एएफपी) ! इंटरनेट पर दिखाये जा रहे एक वीडियो में एक युवा लीबियाई लड़ाके ने दावा किया है कि उसने लीबिया के अपदस्थ नेता मुअम्मर गद्दाफी को पकड़ने के बाद उसे दो गोलियां मारी थी, जो उसकी मौत का कारण बनी।

बेनगाजी के इस युवक सनद अल-सादिक अल उरीबी के दावे के बाद गुरूवार को हुई गद्दाफी की मौत को लेकर चल रही अटकले और बढ गयी हैं। यह दावा लीबिया की सत्ताधारी परिषद नेशनल ट्रांजिशनल कौंसिल के इस दावे का भी जाहिरा तौर पर विरोधाभासी है जिसमें कहा गया था कि गद्दाफी को सिर में उस समय गोली लग गयी थी जब वह पकड़े जाने के बाद अपने समर्थकों और नयी सत्ता के लड़ाकों के बीच गोलीबारी में फंस गया था।

वीडियो में अनेक अज्ञात लोगों द्वारा उरीबी का साक्षात्कार लिये जाते दिखाया गया है जिनमें से कुछ ने सेना की वर्दी पहनी हुई है और वे उसे बधाई दे रहे हैं। उरीबी के बारे में कहा जा रहा है कि उसका जन्म 1989 में हुआ था। सेना की वर्दी पहने यह लोग वीडियो कैमरे की ओर एक अंगूठी और खून से सनी कथित तौर पर कज्जाफी की एक जैकेट दिखा रहे हैं। अंगूठी पर गद्दाफी की दूसरी पत्नी साफिया का नाम और उसकी विवाह की तारीख ‘दस सितंबर 1970’ खुदा हुआ है।

उरीबी ने कहा, ‘‘मैंने उस पर दो गोलियां चलायी, एक उसकी बगल में लगी और दूसरी सिर में। उसकी मौत तुरंत नहीं हुई थी। वह घंटे भर बाद मरा।’’

उसने कहा कि वह बेनगाजी में अपनी ब्रिगेड के सदस्यों से अलग कर दिया गया था और जब नयी सत्ता के लड़ाकों ने गद्दाफी के गृहनगर सिर्ते पर हमला किया तो उसने मिसराता के लड़ाकों में शामिल होने का फैसला किया।

उरीबी ने कहा, ‘‘हमारा गद्दाफी से एक गली में सामना हुआ जहां वह कुछ बच्चों और लड़कियों के साथ जा रहा था। उसने एक हैट पहना हुआ था। हमने उसे उसके बालों से पहचाना और मिसराता के एक लड़ाके ने मुझसे कहा, ‘‘वह गद्दाफी है। आओ, उसे पकड़ते हैं।’’

उरीबी ने कहा कि उसने लीबिया के पूर्व नेता को उसकी बांह मरोड़कर काबू किया। गद्दाफी के पास सोने की एक पिस्तौल भी थी। उरीबी ने कहा, ‘‘मैंने उसे थप्पड़ मारा। उसने मुझसे कहा, ‘तुम मेरे बेटे की तरह हो।’ मैंने उसे एक और थप्पड़ मारा। उसने कहा, ‘मैं तुम्हारे पिता की तरह हूं।’ इसके बाद मैंने उसे बालों से पकड़ा और उसे जमीन पर गिरा दिया।’’

लड़ाके ने कहा कि वह गद्दाफी को बेनगाजी ले जाना चाहता था लेकिन जब मिसराती लड़ाकों ने गिरे हुए नेता को अपने शहर ले जाने पर जोर दिया तो उसने गोली चलाने का फैसला किया और गद्दाफी को दो गोलियां मारी। उसने कहा कि मिसराता के लड़ाकों ने उसकी पिस्तौल ले ली और उसे कहा कि अगर वह लीबिया के तीसरे शहर लौटा तो उसे जान से मार दिया जाएगा।