PDA

View Full Version : ग़ज़ल गा के देखो


Dr. Rakesh Srivastava
06-11-2011, 07:20 AM
जो हकीक़त में मिली ना , मिल गयी कल ख़्वाब में ;
लड़ के वो मासूम बोली , आते हो क्यों ख़्वाब में .

कुछ दिनों तक और ज़िन्दा रहने की सूरत बनी ;
खेल कर ज़ख्मों से , ताज़ा कर गई वो ख़्वाब में .

पहले भी लड़ती थी ख़ुब , लड़ने के ढँग में प्यार था ;
प्यार अपने ढँग से वो छलका गई फिर ख़्वाब में .

आग मुद्दत से जुदाई की दहकती दिल में थी ;
गरज कर , फिर बरस कर उसने बुझाई ख़्वाब में .

इक कश्मकश उसके पूरे जिस्म से थी झाँकती ;
पाँव थे उससे ख़फ़ा , रुखसत हुई जब ख़्वाब में .

आँख से ओझल हुई फिर भी दिखी वो देर तक ;
ये करिश्मा भी मुझे दिखला गई वो ख़्वाब में .

मुझको लगता था महज़ मेरे ही ख़्वाबों में है वो ;
मैं भी दिखता हूँ उसे जतला गई वो ख़्वाब में .

उस हकीक़त का करूँ क्या जिसमें वो ना मिल सके ;
काश पूरी ज़िन्दगी कट जाए यूँ ही ख़्वाब में .


रचयिता ~~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2,गोमती नगर ,लखनऊ .

abhisays
06-11-2011, 07:36 AM
एक और ख़ूबसूरत कविता के लिए धन्यवाद राकेश जी.

Sikandar_Khan
06-11-2011, 07:37 AM
जो हकीक़त में मिली ना , मिल गयी कल ख़्वाब में ;
लड़ के वो मासूम बोली , आते हो क्यों ख़्वाब में .

कुछ दिनों तक और ज़िन्दा रहने की सूरत बनी ;
खेल कर ज़ख्मों से , ताज़ा कर गई वो ख़्वाब में .

पहले भी लड़ती थी ख़ुब , लड़ने के ढँग में प्यार था ;
प्यार अपने ढँग से वो छलका गई फिर ख़्वाब में .

आग मुद्दत से जुदाई की दहकती दिल में थी ;
गरज कर , फिर बरस कर उसने बुझाई ख़्वाब में .

इक कश्मकश उसके पूरे जिस्म से थी झाँकती ;
पाँव थे उससे ख़फ़ा , रुखसत हुई जब ख़्वाब में .

आँख से ओझल हुई फिर भी दिखी वो देर तक ;
ये करिश्मा भी मुझे दिखला गई वो ख़्वाब में .

मुझको लगता था महज़ मेरे ही ख़्वाबों में है वो ;
मैं भी दिखता हूँ उसे जतला गई वो ख़्वाब में .

उस हकीक़त का करूँ क्या जिसमें वो ना मिल सके ;
काश पूरी ज़िन्दगी कट जाए यूँ ही ख़्वाब में .


:bravo::bravo:
बहुत ही खूब राकेश जी
तहेदिल से दाद क़ुबूल करें |

Dr. Rakesh Srivastava
06-11-2011, 04:50 PM
Abhisays जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
06-11-2011, 04:52 PM
Sikandar जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

ndhebar
06-11-2011, 05:47 PM
काश पूरी ज़िन्दगी कट जाए यूँ ही ख़्वाब में .


रचयिता ~~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2,गोमती नगर ,लखनऊ .

बहुत खूब बड़े भाई

Dr. Rakesh Srivastava
06-11-2011, 06:16 PM
n.dhebar जी ,
आपने पसन्द किया ,
आपका शुक्रिया .

anoop
06-11-2011, 07:57 PM
एक और...बहुत शानदार है। बधाई...

Dr. Rakesh Srivastava
06-11-2011, 08:47 PM
अनूप जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
07-11-2011, 12:29 PM
http://myhindiforum.com/showthread.php?t=3653

ravi sharma
07-11-2011, 08:44 PM
बहुत ही खूब राकेश जी

MissK
07-11-2011, 09:17 PM
शानदार!:bravo: एक और रचनात्मकता भरी कृति शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद राकेश जी!:)

Dr. Rakesh Srivastava
07-11-2011, 10:07 PM
बहुत ही खूब राकेश जी
माननीय रवि शर्मा जी ,
आपने मेरे एकमात्र विशेष अनुरोध
पर मुझे पढ़ा , आपका बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
07-11-2011, 10:11 PM
[QUOTE=MissK;120407]शानदार!:bravo: एक और रचनात्मकता भरी कृति शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद राकेश जी!:)[/QUOTमाननीया MissK जी ,
आपने मेरे एकमात्र विशेष अनुरोध
पर मुझे पढ़ा , आपका बहुत शुक्रिया .













E]

Dr. Rakesh Srivastava
07-11-2011, 10:17 PM
माननीय naman.a जी ,
आपने मेरे एकमात्र विशेष अनुरोध

पर मेरी प्रिय गायन - योग्य ग़ज़ल
को पढ़ा , आपका बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
07-11-2011, 10:21 PM
माननीय Ranveer जी ,
आपने मेरे एकमात्र विशेष अनुरोध

पर मेरी प्रिय गायन - योग्य ग़ज़ल
को पढ़ा , आपका बहुत शुक्रिया .

Dark Saint Alaick
07-11-2011, 11:56 PM
बंधुवर ! सूत्र का लिंक भेजने के लिए आभारी हूं ! आपकी रचना की जमीन में ही आपका शुक्रिया अदा करने की एक कोशिश की है ! मुलाहिजा फरमाएं -

जो हकीक़त ख्वाब थी कल, रू-ब-रू है आज मेरे
आपका ख़त क्या मिला, सब सुर्खरू हैं साज़ मेरे

कुछ दिनों तक और ज़िंदा रहने की सूरत बन गई
फूल से भी कम वज़न के, बार सब हैं आज मेरे

आपकी आमद ही है कि ख्वाब अब इतने हसीं हैं
आपकी आमद ही है कि ख्वाब हैं हमराज़ मेरे

singhtheking
08-11-2011, 08:00 AM
राकेश जी की एक और बेहतरीन कविता.. :fantastic:

VIDROHI NAYAK
08-11-2011, 08:03 AM
जो हकीक़त में मिली ना , मिल गयी कल ख़्वाब में ;
लड़ के वो मासूम बोली , आते हो क्यों ख़्वाब में .

कुछ दिनों तक और ज़िन्दा रहने की सूरत बनी ;
खेल कर ज़ख्मों से , ताज़ा कर गई वो ख़्वाब में .

पहले भी लड़ती थी ख़ुब , लड़ने के ढँग में प्यार था ;
प्यार अपने ढँग से वो छलका गई फिर ख़्वाब में .

आग मुद्दत से जुदाई की दहकती दिल में थी ;
गरज कर , फिर बरस कर उसने बुझाई ख़्वाब में .

इक कश्मकश उसके पूरे जिस्म से थी झाँकती ;
पाँव थे उससे ख़फ़ा , रुखसत हुई जब ख़्वाब में .

आँख से ओझल हुई फिर भी दिखी वो देर तक ;
ये करिश्मा भी मुझे दिखला गई वो ख़्वाब में .

मुझको लगता था महज़ मेरे ही ख़्वाबों में है वो ;
मैं भी दिखता हूँ उसे जतला गई वो ख़्वाब में .

उस हकीक़त का करूँ क्या जिसमें वो ना मिल सके ;
काश पूरी ज़िन्दगी कट जाए यूँ ही ख़्वाब में .


रचयिता ~~~डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2,गोमती नगर ,लखनऊ .
बहुत खुशी हुई राकेश जी की आप जैसा इंसान हमारे शहर का ही है ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !

I am the best
08-11-2011, 08:15 AM
best poem hai Sir.

malethia
08-11-2011, 10:28 AM
वैसे तो आपकी रचना का इंतजार रहता है,
लेकिन इस बार आपकी रचना को पढने में देरी के लिए क्षमा चाहूँगा...............
फिर से लाजवाब प्रस्तुती के लिए आपका धन्यवाद ,डॉ.साहेब !

malethia
08-11-2011, 10:33 AM
बंधुवर ! सूत्र का लिंक भेजने के लिए आभारी हूं ! आपकी रचना की जमीन में ही आपका शुक्रिया अदा करने की एक कोशिश की है ! मुलाहिजा फरमाएं -

जो हकीक़त ख्वाब थी कल, रू-ब-रू है आज मेरे
आपका ख़त क्या मिला, सब सुर्खरू हैं साज़ मेरे

कुछ दिनों तक और ज़िंदा रहने की सूरत बन गई
फूल से भी कम वज़न के, बार सब हैं आज मेरे

आपकी आमद ही है कि ख्वाब अब इतने हसीं हैं
आपकी आमद ही है कि ख्वाब हैं हमराज़ मेरे

बहुत ही लाजवाब प्रस्तुती ,
इस शानदार रचना के लिए आपका आभार !

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 12:05 PM
बंधुवर ! सूत्र का लिंक भेजने के लिए आभारी हूं ! आपकी रचना की जमीन में ही आपका शुक्रिया अदा करने की एक कोशिश की है ! मुलाहिजा फरमाएं -

जो हकीक़त ख्वाब थी कल, रू-ब-रू है आज मेरे
आपका ख़त क्या मिला, सब सुर्खरू हैं साज़ मेरे

कुछ दिनों तक और ज़िंदा रहने की सूरत बन गई
फूल से भी कम वज़न के, बार सब हैं आज मेरे

आपकी आमद ही है कि ख्वाब अब इतने हसीं हैं
आपकी आमद ही है कि ख्वाब हैं हमराज़ मेरे
Moderator Dark Saint Alaick ji,
आपका पढ़ने और विशेष तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करने हेतु शुक्रिया .
मुझे मालूम नहीं कि आप क्या करते हैं किन्तु मै कह सकता हूँ कि आप
निश्चित ही कविता बहुत अच्छी कर सकते हैं .
मुझे ये कहने में कोई झिझक नहीं कि गायन- तत्व- युक्त ये ग़ज़ल मैंने
इरादतन लिखी थी कि ये सामान्य से अधिक लोगों की नज़रों से गुजरेगी
किन्तु इत्तेफाकन इसे सामान्य से भी कम पाठक नसीब हुए थे . इससे मुझे
मेरी लेखनी बाधित होने की शंका सताने लगी इसीलिये मै इस रचना के जायज
हक़ हेतु इसे अधिकतम विस्तार देने का लोभ संवरण न कर सका , तभी मैंने
पहली और शायद आखिरी बार इसका लिंक आपके साथ - साथ बहुत से लोगों
को अनेक फोरम पर भेजा था .आशा है आप मेरी बेबाकी को अन्यथा नहीं लेंगे .

Dark Saint Alaick
08-11-2011, 12:38 PM
बंधुवर ! अवश्य ही मेरे सृजन-कर्म में कहीं न कहीं कुछ कमी रह गई, अन्यथा आप ऐसा न कहते ! 'अन्यथा' लेने का तो प्रश्न ही दूर, आप यदि लिंक न भेजते तो मैं इतनी श्रेष्ठ रचना से वंचित रखे जाने के लिए आपको संभवतः कभी माफ़ नहीं कर पाता ! निश्चय ही आप एक श्रेष्ठ रचनाकार हैं और मुझे यह कहने में तनिक संकोच नहीं है कि आपके सान्निध्य में इस समुदाय का सदस्य होने में मुझे गौरव का अनुभव होता है ! जहां तक मेरा प्रश्न है, मैं एक अदना सा मसिजीवी हूं अर्थात लेखनी के बल पर ही आजीविका कमाता हूं ! आपकी सदाशयता के लिए आभारी हूं ! धन्यवाद !

GForce
08-11-2011, 01:10 PM
अत्यंत श्रेष्ठ सृजन कविवर ! आप दोनों सज्जनों का वार्तालाप भी अद्भुत आनंद प्रदान कर रहा है ! आभार !

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 02:19 PM
वैसे तो आपकी रचना का इंतजार रहता है,
लेकिन इस बार आपकी रचना को पढने में देरी के लिए क्षमा चाहूँगा...............
फिर से लाजवाब प्रस्तुती के लिए आपका धन्यवाद ,डॉ.साहेब !
सम्माननीय मलेथिया जी ,
आप तो ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा ही कर रहे है .
दरअसल इस बार मैंने लिंक इसलिए भेजा था
क्योंकि मुझे लगता है कि मॉस को ध्यान में
रखकर लिखी गयी ये गायन योग्य ग़ज़ल
त्यों - त्यों जवान होगी ज्यों -ज्यों मेरी उम्र बढ़ेगी
और शायद ये जुबानों पर भी चढ़ जाये . यही सोचकर मै
इसे अधिकतम विस्तार देना चाहता हूँ .अगर इसे अच्छी
संगत मिली तो शायद ये मेरी
पहचान बन सके .
बहरहाल आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

malethia
08-11-2011, 03:03 PM
सम्माननीय मलेथिया जी ,
आप तो ऐसा कह कर मुझे शर्मिंदा ही कर रहे है .
दरअसल इस बार मैंने लिंक इसलिए भेजा था
क्योंकि मुझे लगता है कि मॉस को ध्यान में
रखकर लिखी गयी ये गायन योग्य ग़ज़ल
त्यों - त्यों जवान होगी ज्यों -ज्यों मेरी उम्र बढ़ेगी
और शायद ये जुबानों पर भी चढ़ जाये . यही सोचकर मै
इसे अधिकतम विस्तार देना चाहता हूँ .अगर इसे अच्छी
संगत मिली तो शायद ये मेरी
पहचान बन सके .
बहरहाल आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .
डॉ.साहेब ,आपने लिंक भेजा ये बहुत अच्छा किया,
जो सदस्य आपकी कविता से महरूम रह गये थे ,
उन्हें भी इतनी शानदार रचना पढने का सौभाग्य प्राप्त होगा,

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 04:17 PM
बहुत ही खूब राकेश जी
रवि शर्मा जी ,
आपने पढ़ा और पसन्द किया ,
आपका बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 04:21 PM
शानदार!:bravo: एक और रचनात्मकता भरी कृति शेयर करने के लिए आपका धन्यवाद राकेश जी!:)
Miss K साहिबा ,
आपने पढ़ा और पसन्द किया ,
आपका बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 04:25 PM
राकेश जी की एक और बेहतरीन कविता.. :fantastic:
Singhthekingh जी ,
आपने पढ़ा और पसन्द किया ,
आपका बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 04:28 PM
बहुत खुशी हुई राकेश जी की आप जैसा इंसान हमारे शहर का ही है ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
vidrohi naayak जी ,
आपने पढ़ा और पसन्द किया ,
आपका बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 04:33 PM
best poem hai Sir.
I am the best जी ,
आपने पढ़ा और पसन्द किया ,
आपका बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 04:38 PM
अत्यंत श्रेष्ठ सृजन कविवर ! आप दोनों सज्जनों का वार्तालाप भी अद्भुत आनंद प्रदान कर रहा है ! आभार !
GForce जी ,
आपने पढ़ा और पसन्द किया ,
आपका बहुत शुक्रिया .

arvind
08-11-2011, 04:38 PM
मैंने ये रचना पढ़ी..... लेकिन इस बार टिप्पणी करने मे कंजूसी कर गया.... इसका कारण है है डॉ साहेब के इस उम्दा रचना के तारीफ मे कुछ नए शब्द खोज रहा था। मगर हाय हे प्रारब्ध - अभी तक वो शब्द नहीं मिला

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 04:51 PM
बहुत खुशी हुई राकेश जी की आप जैसा इंसान हमारे शहर का ही है ! बहुत सुन्दर प्रस्तुति !Vidrohi nayak जी ,
अपने आस पास का कोई कहीं भी मिल जाए ,
अच्छा तो लगता ही है .

MANISH KUMAR
08-11-2011, 04:54 PM
वाह-वाह, आनंद आ गया, राकेश जी. काफी दिनों बाद कोई रचना पढ़ पाया हूँ. आपकी कविताओं के लिए हम सबकी तरफ से जोरदार तालियाँ. :cheers:

:clap:

:hurray:

:clapping:

:bravo:

:clappinghands:
और हाँ, वैसे तो मौका मिलते ही आपकी रचनाएं पढ़ते है, लेकिन कभी-कभार नए सूत्रों की भीड़ में समय की कमी के कारण कई सूत्र नजर से बच जाती है. इसलिए अपनी इच्छानुसार लिंक शेयर करने में न झिझकें.

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 05:08 PM
मैंने ये रचना पढ़ी..... लेकिन इस बार टिप्पणी करने मे कंजूसी कर गया.... इसका कारण है है डॉ साहेब के इस उम्दा रचना के तारीफ मे कुछ नए शब्द खोज रहा था। मगर हाय हे प्रारब्ध - अभी तक वो शब्द नहीं मिला
हा ....हा .... हा ....
प्रिय अरविन्द जी ,
आप सही ही फरमा रहे होंगे .
दरअसल मै ही कौन सा सभी कुछ
पढ़कर जवाब देता हूँ .
बहरहाल आपका बहुत - बहुत धन्यवाद .

arvind
08-11-2011, 05:14 PM
हा ....हा .... हा ....
प्रिय अरविन्द जी ,
आप सही ही फरमा रहे होंगे .
दरअसल मै ही कौन सा सभी कुछ
पढ़कर जवाब देता हूँ .
बहरहाल आपका बहुत - बहुत धन्यवाद .
चलिये कोई बात नहीं, आगे से दे दीजिएगा।

anjaan
08-11-2011, 05:21 PM
बहुत ही अच्छी कविता है.

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 07:14 PM
बहुत ही अच्छी कविता है.
अन्जान जी
पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
08-11-2011, 09:32 PM
वाह-वाह, आनंद आ गया, राकेश जी. काफी दिनों बाद कोई रचना पढ़ पाया हूँ. आपकी कविताओं के लिए हम सबकी तरफ से जोरदार तालियाँ. :cheers:

:clap:

:hurray:

:clapping:

:bravo:

:clappinghands:

और हाँ, वैसे तो मौका मिलते ही आपकी रचनाएं पढ़ते है, लेकिन कभी-कभार नए सूत्रों की भीड़ में समय की कमी के कारण कई सूत्र नजर से बच जाती है. इसलिए अपनी इच्छानुसार लिंक शेयर करने में न झिझकें.
मनीष कुमार जी ,
पढ़ने और पसंद करने के लिए आपका धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava
09-11-2011, 05:30 AM
साजिद जी ,
आपको शुक्रिया .

abhisays
09-11-2011, 06:16 AM
बंधुवर ! सूत्र का लिंक भेजने के लिए आभारी हूं ! आपकी रचना की जमीन में ही आपका शुक्रिया अदा करने की एक कोशिश की है ! मुलाहिजा फरमाएं -

जो हकीक़त ख्वाब थी कल, रू-ब-रू है आज मेरे
आपका ख़त क्या मिला, सब सुर्खरू हैं साज़ मेरे

कुछ दिनों तक और ज़िंदा रहने की सूरत बन गई
फूल से भी कम वज़न के, बार सब हैं आज मेरे

आपकी आमद ही है कि ख्वाब अब इतने हसीं हैं
आपकी आमद ही है कि ख्वाब हैं हमराज़ मेरे


किसी कविता की प्रशंसा अगर तरन्नुम में की जाए तो उसका कोई मुकाबला नहीं होता. बहुत ही उम्दा पंक्तिया है अलैक जी. :fantastic:

neelam
11-11-2011, 07:34 AM
बहुत खूब राकेश जी. :bravo:

Dr. Rakesh Srivastava
11-11-2011, 11:18 AM
बहुत खूब राकेश जी. :bravo:
नीलम जी ,
आपने पढ़ा , आपकी मेहरबानी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
12-11-2011, 08:44 PM
b vaibhavi जी ,
आपने पढ़कर मुझे मान दिया ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

khalid
13-11-2011, 11:35 AM
एक और बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक आभार

Dr. Rakesh Srivastava
13-11-2011, 12:54 PM
एक और बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक आभार

खालिद जी ,
आपका शुक्रिया .