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View Full Version : संभल कर चलिए


Dr. Rakesh Srivastava
04-12-2011, 09:58 AM
आप हैं , हम हैं , मोहब्बत है , संभल कर चलिये;
बिन पते वाला ये इक ख़त है ,संभल कर चलिये.

ठोकरें दर - ब - दर अब तो नसीब होनीं हैं ;
सबकी नज़रों में मज़म्मत है , संभल कर चलिये.

अभी तो पार किये सिर्फ आग के दरिया ;
अभी तो बाकी समन्दर है , संभल कर चलिये.

आँख में ख़्वाब हसीं पाल तो बैठी उल्फत ;
सिर्फ पलकों की हिफाज़त है , संभल कर चलिये.

चराग़ अपनी उम्मीदों के संभाले रखिये ;
हवा में आंधी की आहट है , संभल कर चलिये.

हीर - राँझा जुदा करके फ़साने गढ़ता है ;
अज़ब ज़माने की फ़ितरत है , संभल कर चलिये.

कोई भी साफ़ निग़ाहों से न देखेगा हमें ;
रूढ़ियों का बड़ा घूँघट है , संभल कर चलिये.

रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2, गोमती नगर ,लखनऊ .
(शब्दार्थ ~~ मज़म्मत = अस्वीकार / नापसंद करना / disapproval )

ndhebar
04-12-2011, 04:46 PM
बहुत खूब बड़े भाई

Dr. Rakesh Srivastava
04-12-2011, 09:47 PM
सम्माननीय Abhisays जी एवं Dark Saint Alaick जी ;
आप दोनों जनों का बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
04-12-2011, 09:50 PM
बहुत खूब बड़े भाई

सम्माननीय n.dhebar जी ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

malethia
05-12-2011, 10:18 AM
बहुत खूब डॉ. साहेब ...........

Dr. Rakesh Srivastava
05-12-2011, 08:35 PM
बहुत खूब डॉ. साहेब ...........

सम्माननीय मलेथिया जी ,
आपने पढ़ा , सराहा ,
आपका शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
05-12-2011, 08:38 PM
माननीया bhoomi जी ,
आपने पढ़ा , सराहा ,
आपका शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
05-12-2011, 08:40 PM
सम्माननीय अरविन्द जी ,
आपने पढ़ा , सराहा ,
आपका शुक्रिया .

sunoanuj
07-01-2012, 12:44 PM
Ati sundar ! Bahut hi badiya !

Dr. Rakesh Srivastava
07-01-2012, 08:05 PM
Ati sundar ! Bahut hi badiya !

सम्माननीय Sunoanuj जी ;
पढ़ने व पसंद करने के लिये
आपका बहुत - बहुत आभार .

rafik
28-04-2014, 03:28 PM
आप हैं , हम हैं , मोहब्बत है , संभल कर चलिये;
बिन पते वाला ये इक ख़त है ,संभल कर चलिये.

ठोकरें दर - ब - दर अब तो नसीब होनीं हैं ;
सबकी नज़रों में मज़म्मत है , संभल कर चलिये.

अभी तो पार किये सिर्फ आग के दरिया ;
अभी तो बाकी समन्दर है , संभल कर चलिये.

आँख में ख़्वाब हसीं पाल तो बैठी उल्फत ;
सिर्फ पलकों की हिफाज़त है , संभल कर चलिये.

चराग़ अपनी उम्मीदों के संभाले रखिये ;
हवा में आंधी की आहट है , संभल कर चलिये.

हीर - राँझा जुदा करके फ़साने गढ़ता है ;
अज़ब ज़माने की फ़ितरत है , संभल कर चलिये.

कोई भी साफ़ निग़ाहों से न देखेगा हमें ;
रूढ़ियों का बड़ा घूँघट है , संभल कर चलिये.

रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2, गोमती नगर ,लखनऊ .
(शब्दार्थ ~~ मज़म्मत = अस्वीकार / नापसंद करना / disapproval )


बहूत सुन्दर