View Full Version : मैं दिन ब दिन......!
Dr. Rakesh Srivastava
25-12-2011, 08:56 AM
ज्यों - ज्यों मैं पहाड़ों से उतरता चला गया ;
त्यों - त्यों मेरा आकार भी बढ़ता चला गया .
रंग जैसे - जैसे मेरे उतरते चले गए ;
चेहरा भी वैसे - वैसे निखरता चला गया .
ज्यों -ज्यों मैं गिराता गया घर के दरो दीवार ;
कुनबा हमारा दिन ब दिन बढ़ता चला गया .
पंखों को भूल जब से इरादों की मदद ली ;
मैं दिन ब दिन ऊंचाई पकड़ता चला गया .
पलकों पे सबको जब से बिठाना शुरू किया ;
हर एक के मैं दिल में उतरता चला गया .
तकलीफ से दूजों की मेरा खून जो उबला ;
मेरा नशा समाज पे चढ़ता चला गया .
दिल पे मिला था ज़ख्म जो , ताज़ा उसे रखा ;
रिस -रिस के ग़ज़ल दर ग़ज़ल ढलता चला गया .
रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड-2,गोमती नगर ,लखनऊ .
Sikandar_Khan
25-12-2011, 09:45 AM
ज्यों - ज्यों मैं पहाड़ों से उतरता चला गया ;
त्यों - त्यों मेरा आकार भी बढ़ता चला गया .
रंग जैसे - जैसे मेरे उतरते चले गए ;
चेहरा भी वैसे - वैसे निखरता चला गया .
ज्यों -ज्यों मैं गिराता गया घर के दरो दीवार ;
कुनबा हमारा दिन ब दिन बढ़ता चला गया .
पंखों को भूल जब से इरादों की मदद ली ;
मैं दिन ब दिन ऊंचाई पकड़ता चला गया .
पलकों पे सबको जब से बिठाना शुरू किया ;
हर एक के मैं दिल में उतरता चला गया .
तकलीफ से दूजों की मेरा खून जो उबला ;
मेरा नशा समाज पे चढ़ता चला गया .
दिल पे मिला था ज़ख्म जो , ताज़ा उसे रखा ;
रिस -रिस के ग़ज़ल दर ग़ज़ल ढलता चला गया .
रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड-2,गोमती नगर ,लखनऊ .
राकेश जी
बहुत ही खूबसूरत रचना लिखने के लिए आपका शुक्रिया |
ndhebar
25-12-2011, 11:36 AM
ab tak ki sabse behtarin rachna
kaviraaj ko dil se sadhubaad....
malethia
25-12-2011, 01:28 PM
पलकों पे सबको जब से बिठाना शुरू किया ;
हर एक के मैं दिल में उतरता चला गया .
रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड-2,गोमती नगर ,लखनऊ .
:fantastic::fantastic:
bahut hi khubsurat rchanaa !
Ranveer
25-12-2011, 07:56 PM
ज्यों - ज्यों मैं पहाड़ों से उतरता चला गया ;
त्यों - त्यों मेरा आकार भी बढ़ता चला गया .
रंग जैसे - जैसे मेरे उतरते चले गए ;
चेहरा भी वैसे - वैसे निखरता चला गया .
ज्यों -ज्यों मैं गिराता गया घर के दरो दीवार ;
कुनबा हमारा दिन ब दिन बढ़ता चला गया .
पंखों को भूल जब से इरादों की मदद ली ;
मैं दिन ब दिन ऊंचाई पकड़ता चला गया .
पलकों पे सबको जब से बिठाना शुरू किया ;
हर एक के मैं दिल में उतरता चला गया .
तकलीफ से दूजों की मेरा खून जो उबला ;
मेरा नशा समाज पे चढ़ता चला गया .
दिल पे मिला था ज़ख्म जो , ताज़ा उसे रखा ;
रिस -रिस के ग़ज़ल दर ग़ज़ल ढलता चला गया .
बहुत सुन्दर रचना राकेश जी ...:bravo:
एक अबोध बालक शायद जिंदगी की जटिलताओं को न समझ पाने की स्थिति में अपनी धुन में ही मगन होता है ...जैसे जैसे वो बड़ा होता है ...उसके अरमान दुबकते हैं , सहमतें हैं , सिसकते हैं ...और तब उसके आवारा पंखों पर लगाम लगती है |उसकी राह बदल जाती है , उसके मूल स्वभाव का रूपांतरण होता है ...और यही रूप उसे इंसान बनाती है ...:think:
रेप ++
naman.a
26-12-2011, 03:46 PM
बहुत ही उम्दा. राकेश जी आपके जैसे शब्दों के जादूगर तो नहीं है पर बस एक ही बात कह सकता हूँ. दिल को छू गई ये रचना .
Dr. Rakesh Srivastava
26-12-2011, 08:19 PM
राकेश जी
बहुत ही खूबसूरत रचना लिखने के लिए आपका शुक्रिया |
सम्माननीय सिकंदर जी ;
आपने पढ़ा और पसन्द किया
आपका बहुत - बहुत आभार .
Dr. Rakesh Srivastava
26-12-2011, 08:21 PM
ab tak ki sabse behtarin rachna
kaviraaj ko dil se sadhubaad....
सम्माननीय n. dhebar जी ;
आपने पढ़ा और पसन्द किया
आपका बहुत - बहुत आभार .
Dr. Rakesh Srivastava
26-12-2011, 08:24 PM
:fantastic::fantastic:
bahut hi khubsurat rchanaa !
सम्माननीय malethia जी ;
आपने पढ़ा और पसन्द किया
आपका बहुत - बहुत आभार .
Dr. Rakesh Srivastava
26-12-2011, 08:28 PM
बहुत सुन्दर रचना राकेश जी ...:bravo:
एक अबोध बालक शायद जिंदगी की जटिलताओं को न समझ पाने की स्थिति में अपनी धुन में ही मगन होता है ...जैसे जैसे वो बड़ा होता है ...उसके अरमान दुबकते हैं , सहमतें हैं , सिसकते हैं ...और तब उसके आवारा पंखों पर लगाम लगती है |उसकी राह बदल जाती है , उसके मूल स्वभाव का रूपांतरण होता है ...और यही रूप उसे इंसान बनाती है ...:think:
रेप ++
सम्माननीय रणवीर जी ;
आपने पढ़ा और पसन्द किया
आपका बहुत - बहुत आभार .
Dr. Rakesh Srivastava
26-12-2011, 08:33 PM
बहुत ही उम्दा. राकेश जी आपके जैसे शब्दों के जादूगर तो नहीं है पर बस एक ही बात कह सकता हूँ. दिल को छू गई ये रचना .
सम्माननीय naman . a जी ;
आपने पढ़ा और पसन्द किया
आपका बहुत - बहुत आभार .
Dr. Rakesh Srivastava
26-12-2011, 08:35 PM
सम्माननीय अरविन्द जी ;
आपने पढ़ा और पसन्द किया
आपका बहुत - बहुत आभार .
Dark Saint Alaick
27-12-2011, 02:14 AM
पंखों को भूल जब से इरादों की मदद ली ;
मैं दिन ब दिन ऊंचाई पकड़ता चला गया .
रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड-2,गोमती नगर ,लखनऊ .
अति श्रेष्ठ पंक्तियां हैं कविवर ! जैसे जीवन का निचोड़ ! यह श्रेष्ठ सृजन पढ़वाने के लिए आपका हृदय से आभारी हूं !
Dr. Rakesh Srivastava
27-12-2011, 07:48 AM
अति श्रेष्ठ पंक्तियां हैं कविवर ! जैसे जीवन का निचोड़ ! यह श्रेष्ठ सृजन पढ़वाने के लिए आपका हृदय से आभारी हूं !
सम्माननीय Dark Saint Alaick जी ;
आपने पढ़ा व पसन्द किया
आपका बहुत आभारी हूँ .
rafik
29-04-2014, 09:35 AM
ज्यों - ज्यों मैं पहाड़ों से उतरता चला गया ;
त्यों - त्यों मेरा आकार भी बढ़ता चला गया .
रंग जैसे - जैसे मेरे उतरते चले गए ;
चेहरा भी वैसे - वैसे निखरता चला गया .
ज्यों -ज्यों मैं गिराता गया घर के दरो दीवार ;
कुनबा हमारा दिन ब दिन बढ़ता चला गया .
पंखों को भूल जब से इरादों की मदद ली ;
मैं दिन ब दिन ऊंचाई पकड़ता चला गया .
पलकों पे सबको जब से बिठाना शुरू किया ;
हर एक के मैं दिल में उतरता चला गया .
तकलीफ से दूजों की मेरा खून जो उबला ;
मेरा नशा समाज पे चढ़ता चला गया .
दिल पे मिला था ज़ख्म जो , ताज़ा उसे रखा ;
रिस -रिस के ग़ज़ल दर ग़ज़ल ढलता चला गया .
रचयिता ~~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड-2,गोमती नगर ,लखनऊ .
आप भी हमारे दिल में उतरते चले गये :clappinghands:
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