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View Full Version : जन गण मन अधिनायक जय हे


Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:40 PM
जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब सिंध गुजरात मराठा
द्रविड़ उत्कल बंग
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशीष माँगे
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगलदायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे, जय हे, जय हे जय जय जय, जय हे!!!

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:41 PM
प्यारे दोस्तों अपना राष्ट्र गान आज से सौ वर्ष पूर्व २७/१२/१९११ को कांग्रेस के २७वें अधिवेशन के दूसरे दिन पहली बार सर्वजनिक रूप में इस को गाया गया था |

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:42 PM
* राष्ट्रगान का गायन समय 52 सेकंड है। विशेष अवसरों पर शुरू और अंत की पंक्तियों को भी लघु राष्ट्रगान के रूप (लगभग 20 सेकंड) में गाया जाता है।

* जब कहीं राष्ट्रगान बज रहा हो तब प्रत्येक भारतीय नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह सावधान की मुद्रा में खड़े होकर उसे पूर्ण सम्मान दे।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:44 PM
राष्ट्रगीत बंगला भाषा मे |


জনগণমন-অধিনায়ক জয় হে ভারতভাগ্যবিধাতা!
পঞ্জাব সিন্ধু গুজরাট মরাঠা দ্রাবিড় উত্কল বঙ্গ
বিন্ধ্য হিমাচল যমুনা গঙ্গা উচ্ছলজলধিতরঙ্গ
তব শুভ নামে জাগে, তব শুভ আশিস মাগে,
গাহে তব জয়গাথা।
জনগণমঙ্গলদায়ক জয় হে ভারতভাগ্যবিধাতা!
জয় হে, জয় হে, জয় হে, জয় জয় জয়, জয় হে॥
जॉनोगॉनोमोनो-ओधिनायोको जॉयॉ हे भारोतोभाग्गोबिधाता!
पॉन्जाबो शिन्धु गुजोराटो मॉराठा द्राबिड़ो उत्कॉलो बॉङ्गो,
बिन्धो हिमाचॉलो जोमुना गॉङ्गा उच्छॉलोजॉलोधितोरोङ्गो,
तॉबो शुभो नामे जागे, तॉबो शुभ आशिश मागे,
गाहे तॉबो जॉयोगाथा।
जॉनोगॉनोमोङ्गोलोदायोको जॉयॉ हे भारोतोभाग्गोबिधाता!
जॉयो हे, जॉयो हे, जॉयो हे, जॉयो जॉयो जॉयो, जॉयो हे॥

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:46 PM
हिन्दी कौमी तराना
सम सुख चैन की बरखा बरसे
भारत भाग है जागा
पंजाब सिन्ध गुजरात मराठा उत्कल बंग
चंचल सागर विंध्य हिमालय नीला जमुना गंगा
तेरा मिल गुण गाएं
तुझसे जीवन पाएं
सब तन पाएं आशा
सूरज बन कर जग पर चमका भारत नाम सुभागा
जय हो जय हो
जय जय जय जय हो
सब के दिल में प्रीत बरसे तेरी मीठी वाणी
हर सूबे के रहने वाले हर मजहब के प्राणी
सब भैद-ओ-फर्क मिटा कर
सब गोद मे तेरी आके
गूंथे प्रेम की माला
सूरज बन कर जग पर चमका भारत नाम सुभागा
जय हो जय हो
जय जय जय जय हो
सुबह सवेरे पन्ख पखेरू तेरे ही गुण गाएं
बर भारी भरपूर हवाएं जीवन में ऋतु लाएं
सब मिल का हिन्दी पुकारें
जय आजाद हिन्द के नारे
प्यारा देश हमारा
सूरज बन कर जग पर चमका भारत नाम सुभागा
जय हो जय हो
जय जय जय जय हो
भारत नाम सुभागा

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:47 PM
याद रहे इसके दूसरे ही दिन ब्रिटीश-हिन्द के सर्वेसर्वा ज्योर्ज पंचम साहब कोलकाता पधारने वाले थे. दिसम्बर २८, १९११ के दिन The Englishman नामक कोलकाता के अंग्रेजी दैनिक ने छापा ‘ अधिवेशन की कार्यवाही बाबू रविन्द्रनाथ द्वारा राजा पंचम ज्योर्ज के स्वागत के लिये खाश तौर पर रचे गये गीत के साथ हूई.’ आने वाले २५ वर्षो तक रविन्द्रनाथ टैगोर ने कोई स्पष्टिकरण नहीं दिया, नतीजतन देशभर में उग्र विवाद होता रहा कि आखिर यह भारत का भाग्यविधाता है कौन? अंत में १९३७ में उन्होने कहाकी गीत का भाग्य विधाता सर्वश्क्तिमान विधाता ही है. लेकिन गीत के कुछ शब्दो को जैसे कि राजराजेश्वर ( गीत के अपने अंग्रेजी अनुवाद में बाबू रविन्द्रनाथ ने Thou King of all kings लिखा है) वगेरे को देखते हुए कुछेक लोगो को ही यह स्पष्टिकरण गले उतरा. विडम्बना देखीये, १८७५ में रचे गये वन्देमातरम ने देशभर मे स्वतन्त्रता सेनानीयों के हृदय में आजादी की ऐसी लौ जलाई की वो आजादी का मूलमंत्र बन गया. वन्देमातरम पर प्रतिबन्ध लगा, आजादी के लङवैये वन्देमातरम कहते हूए फांसी पर झुल गये. पर इस सच्चे रष्ट्रगीत मे की गयी भारतमाता की वन्दना से मुस्लीम नेताओं को आपत्ती थी. आजाद हिन्द फोज में कर्नल हबीबुर रहमान सहीत कई मुस्लीम सैनिक थे, इस लिए नेताजी सुभाषचन्द्र ने सम्भावित टक्कराव को टालने के लिए वन्देमातरम के स्थान पर जन-गण-मन को अपनाया तथा कुछ समय बाद इस का हिन्दी अनुवाद सम सुख चैन तैयार करवाया जीसे हिन्दी कौमी तराना नाम दिया गया. इस की संगीतमय धून केप्टन रामसिंह ने तैयार की थी|

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:48 PM
जन गण मन की कहानी…
सन 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था। सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजो के खिलाफ बंग-भंग आन्दोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेजो ने अपने आपको बचाने के लिए के कलकत्ता से हटाकर राजधानी को दिल्ली ले गए और 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। पूरे भारत में उस समय लोग विद्रोह से भरे हुए थे तो अंग्रेजो ने अपने इंग्लॅण्ड के राजा को भारत आमंत्रित किया ताकि लोग शांत हो जाये। इंग्लैंड का राजा जोर्ज पंचम 1911 में भारत में आया। रविंद्रनाथ टैगोर पर दबाव बनाया गया कि तुम्हे एक गीत जोर्ज पंचम के स्वागत में लिखना ही होगा।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:49 PM
उस समय टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था, उनके परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम किया करते थे, उनके बड़े भाई अवनींद्र नाथ टैगोर बहुत दिनों तक ईस्ट इंडिया कंपनी के कलकत्ता डिविजन के निदेशक (Director) रहे। उनके परिवार का बहुत पैसा ईस्ट इंडिया कंपनी में लगा हुआ था। और खुद रविन्द्र नाथ टैगोर की बहुत सहानुभूति थी अंग्रेजों के लिए। रविंद्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जो गीत लिखा उसके बोल है “जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता”। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जोर्ज पंचम का गुणगान है, जिसका अर्थ समझने पर पता लगेगा कि ये तो हकीक़त में ही अंग्रेजो की खुशामद में लिखा गया था।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:54 PM
इस राष्ट्रगान का अर्थ कुछ इस तरह से होता है “भारत के नागरिक, भारत की जनता अपने मन से आपको भारत का भाग्य विधाता समझती है और मानती है। हे अधिनायक (Superhero) तुम्ही भारत के भाग्य विधाता हो। तुम्हारी जय हो ! जय हो ! जय हो ! तुम्हारे भारत आने से सभी प्रान्त पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा मतलब महारास्त्र, द्रविड़ मतलब दक्षिण भारत, उत्कल मतलब उड़ीसा, बंगाल आदि और जितनी भी नदिया जैसे यमुना और गंगा ये सभी हर्षित है, खुश है, प्रसन्न है , तुम्हारा नाम लेकर ही हम जागते है और तुम्हारे नाम का आशीर्वाद चाहते है। तुम्हारी ही हम गाथा गाते है। हे भारत के भाग्य विधाता (सुपर हीरो ) तुम्हारी जय हो जय हो जय हो। “

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:55 PM
जोर्ज पंचम भारत आया 1911 में और उसके स्वागत में ये गीत गाया गया। जब वो इंग्लैंड चला गया तो उसने उस जन गण मन का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया। क्योंकि जब भारत में उसका इस गीत से स्वागत हुआ था तब उसके समझ में नहीं आया था कि ये गीत क्यों गाया गया और इसका अर्थ क्या है। जब अंग्रेजी अनुवाद उसने सुना तो वह बोला कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो मेरी आज तक इंग्लॅण्ड में भी किसी ने नहीं की। वह बहुत खुश हुआ। उसने आदेश दिया कि जिसने भी ये गीत उसके (जोर्ज पंचम के) लिए लिखा है उसे इंग्लैंड बुलाया जाये। रविन्द्र नाथ टैगोर इंग्लैंड गए। जोर्ज पंचम उस समय नोबल पुरस्कार समिति का अध्यक्ष भी था।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:57 PM
उसने रविन्द्र नाथ टैगोर को नोबल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया। तो रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस नोबल पुरस्कार को लेने से मना कर दिया। क्यों कि गाँधी जी ने बहुत बुरी तरह से रविन्द्रनाथ टेगोर को उनके इस गीत के लिए खूब डांटा था। टैगोर ने कहा की आप मुझे नोबल पुरस्कार देना ही चाहते हैं तो मैंने एक गीतांजलि नामक रचना लिखी है उस पर मुझे दे दो लेकिन इस गीत के नाम पर मत दो और यही प्रचारित किया जाये क़ि मुझे जो नोबेल पुरस्कार दिया गया है वो गीतांजलि नामक रचना के ऊपर दिया गया है। जोर्ज पंचम मान गया और रविन्द्र नाथ टैगोर को सन 1913 में गीतांजलि नामक रचना के ऊपर नोबल पुरस्कार दिया गया।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 10:58 PM
रविन्द्र नाथ टैगोर की ये सहानुभूति ख़त्म हुई 1919 में जब जलिया वाला कांड हुआ और गाँधी जी ने लगभग गाली की भाषा में उनको पत्र लिखा और कहा क़ि अभी भी तुम्हारी आँखों से अंग्रेजियत का पर्दा नहीं उतरेगा तो कब उतरेगा, तुम अंग्रेजों के इतने चाटुकार कैसे हो गए, तुम इनके इतने समर्थक कैसे हो गए ? फिर गाँधी जी स्वयं रविन्द्र नाथ टैगोर से मिलने गए और बहुत जोर से डाटा कि अभी तक तुम अंग्रेजो की अंध भक्ति में डूबे हुए हो ? तब जाकर रविंद्रनाथ टैगोर की नीद खुली। इस काण्ड का टैगोर ने विरोध किया और नोबल पुरस्कार अंग्रेजी हुकूमत को लौटा दिया। सन 1919 से पहले जितना कुछ भी रविन्द्र नाथ टैगोर ने लिखा वो अंग्रेजी सरकार के पक्ष में था और 1919 के बाद उनके लेख कुछ कुछ अंग्रेजो के खिलाफ होने लगे थे।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:01 PM
रविन्द्र नाथ टेगोर के बहनोई, सुरेन्द्र नाथ बनर्जी लन्दन में रहते थे और ics ऑफिसर थे। अपने बहनोई को उन्होंने एक पत्र लिखा था (ये 1919 के बाद की घटना है) । इसमें उन्होंने लिखा है कि ये गीत ‘जन गण मन’ अंग्रेजो के द्वारा मुझ पर दबाव डलवाकर लिखवाया गया है। इसके शब्दों का अर्थ अच्छा नहीं है। इस गीत को नहीं गाया जाये तो अच्छा है। लेकिन अंत में उन्होंने लिख दिया कि इस चिठ्ठी को किसी को नहीं दिखाए क्योंकि मैं इसे सिर्फ आप तक सीमित रखना चाहता हूँ लेकिन जब कभी मेरी म्रत्यु हो जाये तो सबको बता दे। 7 अगस्त 1941 को रबिन्द्र नाथ टैगोर की मृत्यु के बाद इस पत्र को सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने ये पत्र सार्वजनिक किया, और सारे देश को ये कहा क़ि ये जन गन मन गीत न गाया जाये।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:08 PM
1941 तक कांग्रेस पार्टी थोड़ी उभर चुकी थी। लेकिन वह दो खेमो में बट गई। जिसमे एक खेमे के समर्थक बाल गंगाधर तिलक थे और दुसरे खेमे में मोती लाल नेहरु थे। मतभेद था सरकार बनाने को लेकर। मोती लाल नेहरु चाहते थे कि स्वतंत्र भारत की सरकार अंग्रेजो के साथ कोई संयोजक सरकार (Coalition Government) बने। जबकि गंगाधर तिलक कहते थे कि अंग्रेजो के साथ मिलकर सरकार बनाना तो भारत के लोगों को धोखा देना है। इस मतभेद के कारण लोकमान्य तिलक कांग्रेस से निकल गए और उन्होंने गरम दल बनाया। कोंग्रेस के दो हिस्से हो गए। एक नरम दल और एक गरम दल।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:09 PM
गरम दल के नेता थे लोकमान्य तिलक जैसे क्रन्तिकारी। वे हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे। और नरम दल के नेता थे मोती लाल नेहरु (यहाँ मैं स्पष्ट कर दूँ कि गांधीजी उस समय तक कांग्रेस की आजीवन सदस्यता से इस्तीफा दे चुके थे, वो किसी तरफ नहीं थे, लेकिन गाँधी जी दोनों पक्ष के लिए आदरणीय थे क्योंकि गाँधी जी देश के लोगों के आदरणीय थे)। लेकिन नरम दल वाले ज्यादातर अंग्रेजो के साथ रहते थे। उनके साथ रहना, उनको सुनना, उनकी बैठकों में शामिल होना। हर समय अंग्रेजो से समझौते में रहते थे। वन्देमातरम से अंग्रेजो को बहुत चिढ होती थी। नरम दल वाले गरम दल को चिढाने के लिए 1911 में लिखा गया गीत “जन गण मन” गाया करते थे और गरम दल वाले “वन्दे मातरम”।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:09 PM
नरम दल वाले अंग्रेजों के समर्थक थे और अंग्रेजों को ये गीत पसंद नहीं था तो अंग्रेजों के कहने पर नरम दल वालों ने उस समय एक हवा उड़ा दी कि मुसलमानों को वन्दे मातरम नहीं गाना चाहिए क्यों कि इसमें बुतपरस्ती (मूर्ति पूजा) है। और आप जानते है कि मुसलमान मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी है। उस समय मुस्लिम लीग भी बन गई थी जिसके प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना थे। उन्होंने भी इसका विरोध करना शुरू कर दिया क्योंकि जिन्ना भी देखने भर को (उस समय तक) भारतीय थे मन,कर्म और वचन से अंग्रेज ही थे उन्होंने भी अंग्रेजों के इशारे पर ये कहना शुरू किया और मुसलमानों को वन्दे मातरम गाने से मना कर दिया। जब भारत सन 1947 में स्वतंत्र हो गया तो जवाहर लाल नेहरु ने इसमें राजनीति कर डाली। संविधान सभा की बहस चली। संविधान सभा के 319 में से 318 सांसद ऐसे थे जिन्होंने बंकिम बाबु द्वारा लिखित वन्देमातरम को राष्ट्र गान स्वीकार करने पर सहमति जताई।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:10 PM
बस एक सांसद ने इस प्रस्ताव को नहीं माना। और उस एक सांसद का नाम था पंडित जवाहर लाल नेहरु। उनका तर्क था कि वन्दे मातरम गीत से मुसलमानों के दिल को चोट पहुचती है इसलिए इसे नहीं गाना चाहिए (दरअसल इस गीत से मुसलमानों को नहीं अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचती थी)। अब इस झगडे का फैसला कौन करे, तो वे पहुचे गाँधी जी के पास। गाँधी जी ने कहा कि जन गन मन के पक्ष में तो मैं भी नहीं हूँ और तुम (नेहरु ) वन्देमातरम के पक्ष में नहीं हो तो कोई तीसरा गीत तैयार किया जाये। तो महात्मा गाँधी ने तीसरा विकल्प झंडा गान के रूप में दिया “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा झंडा ऊँचा रहे हमारा”। लेकिन नेहरु जी उस पर भी तैयार नहीं हुए।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:10 PM
नेहरु जी का तर्क था कि झंडा गान ओर्केस्ट्रा पर नहीं बज सकता और जन गन मन ओर्केस्ट्रा पर बज सकता है। उस समय बात नहीं बनी तो नेहरु जी ने इस मुद्दे को गाँधी जी की मृत्यु तक टाले रखा और उनकी मृत्यु के बाद नेहरु जी ने जन गण मन को राष्ट्र गान घोषित कर दिया और जबरदस्ती भारतीयों पर इसे थोप दिया गया जबकि इसके जो बोल है उनका अर्थ कुछ और ही कहानी प्रस्तुत करते है, और दूसरा पक्ष नाराज न हो इसलिए वन्दे मातरम को राष्ट्रगीत बना दिया गया लेकिन कभी गया नहीं गया। नेहरु जी कोई ऐसा काम नहीं करना चाहते थे जिससे कि अंग्रेजों के दिल को चोट पहुंचे, मुसलमानों के वो इतने हिमायती कैसे हो सकते थे जिस आदमी ने पाकिस्तान बनवा दिया जब कि इस देश के मुसलमान पाकिस्तान नहीं चाहते थे, जन गण मन को इस लिए तरजीह दी गयी क्योंकि वो अंग्रेजों की भक्ति में गाया गया गीत था और वन्देमातरम इसलिए पीछे रह गया क्योंकि इस गीत से अंगेजों को दर्द होता था।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:11 PM
बीबीसी ने एक सर्वे किया था। उसने पूरे संसार में जितने भी भारत के लोग रहते थे, उनसे पुछा कि आपको दोनों में से कौन सा गीत ज्यादा पसंद है तो 99 % लोगों ने कहा वन्देमातरम। बीबीसी के इस सर्वे से एक बात और साफ़ हुई कि दुनिया के सबसे लोकप्रिय गीतों में दुसरे नंबर पर वन्देमातरम है। कई देश है जिनके लोगों को इसके बोल समझ में नहीं आते है लेकिन वो कहते है कि इसमें जो लय है उससे एक जज्बा पैदा होता है।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:11 PM
राष्ट्रगान

दरअसल, आजादी के लडाई के दौरान यह महसूस किया जाने लगा कि कोई ऐसा गीत होना चाहिए, जो सेनानियों में नया जोश भर दे। इसके लिए 27 दिसम्बर, 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पहली बार जन-गण-मन को गाया गया। इसके बाद, स्वतंत्रता संग्राम के प्रत्येक आयोजन में इस गीत की गूंज सुनाई देने लगी। 15 अगस्त, 1947 की मध्य रात्रि को ऐतिहासिक संविधान सभा में भी यह गीत गाया गया था। 24 जनवरी, 1950 को जन-गण-मन के हिंदी संस्करण को राष्ट्रगान के रूप में संविधान सभा की मान्यता मिल गई। पूरे गीत के 5 छंदों (स्टैंजा) में से मात्र एक छंद को ही राष्ट्रगान के रूप में गाया जाता है। इसके गायन की अवधि लगभग 52 सेकॅन्ड है। कुछ अवसरों पर इसे संक्षिप्त रूप से गाया जाता है, जिसमें इसकी प्रथम और अंतिम पंक्तियां (गाने का समय करीब 20 सेकॅन्ड) होती हैं। वर्तमान में विभिन्न राष्ट्रीय समारोहों के आयोजन पर राष्ट्रगान की जो धुन बजाई जाती है, उसे राम सिंह ठाकुर ने तैयार की है।
क्या आप जानते हैं कि वर्ष 2005 में राष्ट्रगान से सिंध शब्द को हटाकर कश्मीर शब्द जोडने की बात चल रही थी। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही थी कि सिंध प्रांत अब पाकिस्तान का हिस्सा है। लेकिन कई लोगों के विचार में सिंध शब्द सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में कहा गया है, जो भारत के अतीत में गौरवशाली सभ्यता का प्रतीक है। इस तरह राष्ट्रगान में सिंध शब्द मौजूद रह गया।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:12 PM
राष्ट्रगीत
वंदेमातरम् हमारे देश का राष्ट्रगीत है। इसकी रचना बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने की थी। इस गीत को बांग्ला तथा संस्कृत भाषा में तैयार किया गया था। दरअसल, बंकिमचंद्र ने बांग्ला भाषा में लिखे गए अपने उपन्यास आनन्द मठ में इस गीत को लिखा था। वास्तव में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में तेजी लाने के लिए वंदेमातरम् गीत की रचना की गई। 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में रबींद्रनाथ टैगोर ने पहली बार वंदेमातरम् गाया था। कांग्रेस अधिवेशन में गाने के बाद इस गीत का इतना प्रभाव पडा कि लाखों लोग आजादी की लडाई में कूद पडे। इससे बौखलाकर अंग्रेजों ने इस गीत पर प्रतिबंध लगा दिया था। पांच वर्ष के बाद 1901 में दखिना चरण सेन तथा 1905 में सरला देवी ने क्रमश: कलकत्ता तथा बनारस में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में यह गीत गाया। इसका अंग्रेजी में अनुवाद अरविंदो घोष ने किया था।
क्या आप जानते हैं कि 1907 में जर्मनी में पहली बार भारत के झंडे को तैयार किया गया था। उस झंडे के मध्य में भी वंदेमातरम् लिखा हुआ था। दरअसल, वंदेमातरम् गीत में प्रत्यक्ष रूप में देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना की गई है, लेकिन अप्रत्यक्ष रूप में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन तेज करने का संदेश दिया गया है। बंकिम चंद्र ने दुर्गा के दस हाथों में एक अविभाजित बंगाल को भी दर्शाया है। लेकिन
रबींद्रनाथ टैगोर ने इस संबंध में कहा था कि भारत में एक खास समुदाय इस गीत के रूप में दस हाथों वाली देवी की पूजा नहीं कर सकता है। इसलिए यह गीत अखंड भारत का गीत नहीं बन सकता है। इसलिए बाद में जन-गण-मन को राष्ट्रगान तथा वंदेमातरम् को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया।

Sikandar_Khan
28-12-2011, 11:13 PM
ये इतिहास है वन्दे मातरम का और जन गण मन का। अब ये आप को तय करना है कि आपको क्या गाना है ?
आप अगर और भारतीय भाषाएँ जानते हों तो इसे उस भाषा में अनुवादित कीजिये अंग्रेजी छोड़ कर।

जय हिंद