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View Full Version : मोटापा पर विशेष


anoop
31-12-2011, 06:04 PM
मोटापा कम करने के लिए अंग्रेजी पत्रिका रीडर्स-डाईजेस्ट के जनवरी २०१२ अंक के पृष्ठ ६२ पर एक बिल्कुल अनोखा लेख छपा है - "is this any way to loose weight? पत्रिका की मेरी प्रति मुझे कल मिली। आज सुबह मैंने उस लेख को पढ़ा। मेरी कोशिश थी कि मैं उस लेख के मूल रूप को पत्रिका के वेब-साईट से डाऊन्लोड करके यहाँ पोस्ट करूँ, पर वहाँ पर अभी तक, दिसम्बर २०११ वाली प्रति के बारे में हीं टँगा हुआ है।

anoop
31-12-2011, 06:16 PM
लेख मूल रूप से प्रसिद्ध विज्ञान पत्रकार गैरी टॊउब्स के शोध पलक लेख और उनके साक्षात्कार पर आधारित है। इस लेख में यह बताया गया है कि क्यों पारम्परिक डायट प्लान कामयाब नहीं होते हैं, और हमें क्या करना चाहिए कि हम अपना वजन कम कर सकें। लेख की शुरुआत हुई है यह बताने से कि पिछले ४० साल से यह कहा जा रहा है कि अगर आप मोटे नहीं होना चाहते तो अपने खाने से फ़ैट को कम कीजिए। इस बात का प्रचार जितनी जोर-शोर से हुआ मोटापा उतना हीं बढ़ता गया और उससे होने वाले रोग उतना हीं ज्यादा बढ़ने लगे।

नीचे मैं उस लेख से एक पैराग्राफ़ पोस्ट कर रहा हूँ।

anoop
31-12-2011, 06:27 PM
Taubes thinks he knows why: Obesity experts have got things just about completely backwards. If you look carefully at the research, he says, fat isn't the enemy; easily digested carbohydrates are. The very foods that we've been sold as diet staples - fat free yogurt, plain baked potatoes (hold the butter), and plain pasta (hold the olive oil, sauce, and cheese) - actually reset our physiology to make us pack on the kilos. And the foods that we've been told to shun - red meat, burgers, cheese, even the cream - can help us finally lose the weight and keep our heart healthy.

anoop
31-12-2011, 06:30 PM
लेख अनुठा है, उम्मीद है कि जनवरी में जब यह अंक पत्रिका की वेब-साईट पर आ जाएगा तो मैं आप सब को वह पढ़ा सकूँ, नहीं तो फ़िर मेरे पास जो प्रति है उसी को यहाँ पोस्ट करुँगा।

malethia
02-01-2012, 10:16 AM
लेख अनुठा है, उम्मीद है कि जनवरी में जब यह अंक पत्रिका की वेब-साईट पर आ जाएगा तो मैं आप सब को वह पढ़ा सकूँ, नहीं तो फ़िर मेरे पास जो प्रति है उसी को यहाँ पोस्ट करुँगा।
रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद ,अनूप जी...............
यदि सम्भव हो तो उस लेख का हिंदी अनुवाद कर यहाँ पोस्ट करें ताकि मुझ जैसे अल्पज्ञानी को भी समझ में आ सके ,और मैं भी अपना मोटापा घटा सकूं...............

anoop
02-01-2012, 10:33 AM
रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद ,अनूप जी...............
यदि सम्भव हो तो उस लेख का हिंदी अनुवाद कर यहाँ पोस्ट करें ताकि मुझ जैसे अल्पज्ञानी को भी समझ में आ सके ,और मैं भी अपना मोटापा घटा सकूं...............

जल्दी हीं लेख का हिन्दी अनुवाद पोस्ट कर दूँगा|
लेखक की मूल किताब भी नेट पर उपलब्ध हैं, torrent को खोज कर देखें isohunt पर. मैंने डाउण्लोड की है। करीब साढ़े नौं एम०बी० है।

sam_shp
03-01-2012, 10:17 PM
रोचक जानकारी के लिए धन्यवाद ,अनूप जी...............
यदि सम्भव हो तो उस लेख का हिंदी अनुवाद कर यहाँ पोस्ट करें ताकि मुझ जैसे अल्पज्ञानी को भी समझ में आ सके ,और मैं भी अपना मोटापा घटा सकूं...............

ताराबाबू आपका मोटापा तो कचोरिया खाना बंध करने से ही कम हो जायेगा..हाहाहा..

sam_shp
03-01-2012, 10:23 PM
धन्यवाद मित्र.

anoop
04-01-2012, 07:56 PM
ताराबाबू आपका मोटापा तो कचोरिया खाना बंध करने से ही कम हो जायेगा..हाहाहा..

मित्र, इस लेख में तो आप जो कह रहे हैं उससे बिल्कुल उलट बात कही गई है - फ़ैट और प्रोटीन ज्यादा खाने और फ़ल/सब्जी तथा कार्बोहाईड्रेट्स कम.
आप थोड़ा इंतजार करें, मैं पूरा लेख हिन्दी में पोस्ट करुँगा।

naman.a
04-01-2012, 08:23 PM
इस रोग का मै भी शिकार हू तो आप से अनुरोध है लेख जल्दी डाले

malethia
05-01-2012, 06:02 PM
ताराबाबू आपका मोटापा तो कचोरिया खाना बंध करने से ही कम हो जायेगा..हाहाहा..
जय श्री कृष्ण मित्र...........
क्या बताऊं डॉ. के कहने पर मैंने कचोरी खानी बंद कर दी..............

malethia
05-01-2012, 06:03 PM
इस रोग का मै भी शिकार हू तो आप से अनुरोध है लेख जल्दी डाले
आज से आप भी मोटा भाई ....................

sima
06-01-2012, 10:24 AM
वाह क्या बात हे

anoop
10-03-2012, 06:02 PM
शीर्षक है - IS THIS ANYWAY TO LOSE WEIGHT? जो जनवरी २०१२ के रीडर्स-डायजेस्ट के भारतीय संस्करण में छपा है। मैं इस लेख को हिन्दी में टाईप करके भेजने का प्रयास कर रहा हूँ।

अगर मोटापे पर शोध करने वाले इतने हीं योग्य हैं तो भी लोग इतने मोटे क्यों हैं? यही प्रश्न गैरी टौब्स (Gary Taubes) के नई पुस्तक - Why We Get Fat - and What to Do About It - की जान है। आखिरकार पिछले ४० सालों से लोक स्वास्थ्य से संबंधित लोग लगातार यह साधारण सा संदेश देते रहे हैं - अगर आप मोटापा का शिकार नहीं होना चाहते तो अपने भोजन से वसा को हटा दें (If you do not want to be fat, cut the fat from your diet). इसके बाद भी मोटापा-दर साल दर साल सारे विश्व में बढ़ रही है, साथ हीं भारत का भी यही हाल है। सच तो यह है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेब साईट ने एक नया शब्द खोज लिया है "globesity".

टौब्स को लगता है कि उनके पास इस प्रश्न का उत्तर है, "मोटापा विशेषज्ञों ने सारी बात को बिल्कुल उल्टा समझा है। अगर आप इन शोधों को गौर से देखें तो पता चलेगा कि असल दुश्मन वसा (fat) नहीं है, आसानी से पचने वाली शर्करा (easily digested carbohydrates) है। वो सारे भोज्य पदार्थ जिन्हें मोटापा कम करने वाले भोजन के रूप में प्रचारित करके बेचा गया जैसे, fat-free yogurt, plain baked potato, plain pasta - असल में ऐसी हीं चीजें हमारे शरीर के तंत्र को प्रभावित करके कुछ किलो को बढ़ा देती हैं। और वैसे भोज्य पदार्थ जिनसे हमें बचने को कहा जाता है जैसे, red meat, burgers, cheese, even the cream - हमें अपना वजन कम करने में मदद कर सकती हैं और हमारे दिल को स्वस्थ रख सकती हैं।

anoop
10-03-2012, 06:04 PM
अब आप आसानी से यह समझ सकते हैं कि टौब्स ने एक बड़े विवाद को जन्म दे दिया है और उनके अपने तर्क हैं। उन्हें एक जबर्दस्त पत्रकार के रूप में जाना जाता है, साथ हीं एक विज्ञान-प्रेमी के रूप में भी (उन्होंने हार्वर्ड में भौतिकी का अध्ययन किया है और फ़िर बाद में स्टैन्फ़ोर्ड से वैमानिकी की डिग्री ली है, साथ हीं उन्हें अपने विज्ञान लेखन के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं)। साथ हीं कुछ लोग उन्हें डेटा से खेलने वाला एक बेहतरीन जादूगर भी मानते हैं, जो दशकों के अध्य्यन से प्राप्त डेटा को कुछ ऐसा बुनते हैं कि वो निष्कर्ष निकल जाता हैं जो वो दुनिया को बताना/दिखाना चाहते हैं। फ़िर भी, पिछले पाँच साल के नये शोधों ने अब लोगों को कम वसा/शर्करा भोजन (low carb diet) के बारे में पुर्वाग्रह ग्रस्त नजरिए को बदलने के बारे में सोचने की तरफ़ ईशारा कर दिया है। आजकल, मिशेल लाजर, एम०डी० (निदेशक, मधुमेह संस्थान, पेन्सिलवानिया विश्वविद्यालय) और एलन स्नीडर्मन एम०डी० (कार्डियोलोजिस्ट, मैक्गिल युनिवर्सीटी) जैसे वैज्ञानिक टौब्स के निष्कर्षों को बड़ी गंभीरता से ले रहे हैं।

टौब्स अपने विचारों को "एक वैकल्पिक सिद्धान्त" के रूप में देखते हैं कि आखिर हम मोटे क्यों होते हैं। इसके बाद, पूरे आत्मविश्वास से भर कर वो बताते हैं कि उनके विचार हीं "लगभग पूरी तरह से" सही हैं। टौब्स अपने स्वास्थ्य संपादक लीसा डेविस के साथ बैठ कर रीडर्स-डायजेस्ट से अपनी बात बाँटी है।

anoop
10-03-2012, 06:05 PM
मोटापा विशेषज्ञ गलत हैं
"मोटापा और वजन बढ़ने के बारे में यह एक मूलभूत विचार है कि हम मोटे तब होते हैं जब हम जितनी कैलोरी खर्च करते हैं उससे ज्यादा हम खाने लगते हैं। It is gluttony and sloth hypothesis - हम ज्यादा खाते हैं और कम व्यायाम करते हैं। यह सिद्धान्त हमें तार्किक भी लगता है, फ़िर भी यह एक बकवास (nonsense) है। यह हमें मूल प्रश्न के उत्तर में कुछ नहीं बताता। अगर मैं मोटा हूँ तो जाहिर सी बात हैं कि मैंने ज्यादा खाया है, पर सवाल अब भी वही है - मैंने आखिर ज्यादा क्यों खाया? अब इस सवाल का जवाब कहीं नहीं है - कम से कम calorie in calorie out - वाले मोटापा के सिद्धान्त में तो बिल्कुल भी नहीं।"

"लोग मेरे इस सवाल पर ऐसे प्रतिक्रिया देते हैं जैसे मैंने उष्मा-गतिकी के सिद्धान्त (Law of Thermodynamics) पर हीं सवाल खड़े कर दिए हैं। मैं ऐसा कुछ नहीं कर रहा। दर असल मैं यह कह रहा हूँ कि यह सिद्धान्त महत्वपूर्ण नहीं है। यह सच है कि आप मोटे हैं क्योंकि आप जितनी उर्जा खर्च करते हैं उससे ज्यादा कैलोरी आप आहार के रूप में ले रहे हैं, पर ऐसा क्यों हो रहा है कि आप यह काम लगातार कर रहे हैं। मेरा वैकल्पिक सिद्धान्त यह कहता है कि आप ज्यादा खाते हैं और मोटे हैं क्योंकि आपका शरीर उस रोग को अपने अंदर ला चुका है जिसके कारण आपका शरीर वसा को सही तरीके से नियंत्रित नहीं कर पा रहा है। (You overeat because you have developed a disorder in the way your fat tissue is regulated).

anoop
10-03-2012, 06:06 PM
नियंत्रित भोजन से काम नहीं चलेगा
"पिछले ४० सालों के अध्ययन से दिख रहा है कि भोजन को नियंत्रित करके (dieting) काम नहीं चलेगा। डायटिंग से कुछ खास फ़र्क नहीं पड़ने वाला, सब को पता है और इसीलिए अब मोटापा कम करने वाली दवाओं (Anti obesity pills) का फ़ैशन हो गया है जो अरबों का व्यापार करती हैं। चिकित्सक भी पीछे नहीं हैं। वो भी अब bariatric surgery की बात करते हैं, जो असल में आपके पाचन तंत्र को बदलने का हिस्सा है।"

"हमें इस बात पर बिल्कुल आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि नियंत्रित भोजन (Dieting) बेकार बात है। मोटे लोगों के अपने जीवन के कई-कई साल सिर्फ़ डायटिंग करते बिताए, फ़िर भी उनकी समस्या का कुछ खास हल नहीं हुआ। ज्यादातर लोग, यह बात समझ जाते हैं और फ़िर इस सब झमेले को छोड़ देते हैं। सही मायने में मोटापा नामक बीमारी से ऐसे लोग हीं ग्रस्त हैं जिनके लिए कम खाने वाला नुस्खा कारगर नहीं होता है। तब फ़िर डाकटरों का यह कहना कि आप मोटापा से बचने के लिए कम खाईए - कितना कारगर होने वाला है?"

"अगर आप कम खाते हैं तो आप सारे दिन भूख महसूस करते रहते हैं - यह बिल्कुल सीधी और सच्ची बात है। पर इसके परिणाम स्वरूप आपका शरीर आपके उर्जा खपत को भी धीरे-धीरे कम कर देता है ताकि आपके शरीर में उर्जा की पर्याप्त मात्रा बनी रहे। जानवरों पर किए गए परीक्षण यह बताते हैं कि जब कम भोजन दिया जाता है तो उनके शरीर की कोशिका (cells) उर्जा की खपत कम कर देती है। इसीलिए, कई मोटापा विशेषज्ञ भी अकेले में ईमानदारी पूर्वक यह स्वीकारते हैं कि कम भोजन वाला सिद्धान्त हमारी इस समस्या का सही निदान नहीं है।"

anoop
10-03-2012, 06:07 PM
कैलोरी गिनना अंभव काम है
"लोक स्वास्थ्य से जुड़े लोग हमें "उर्जा संतुलन" बनाने की सलाह देते हैं - यह सिर्फ़ एक नया शब्द है यह बताने का कि आप जितनी उर्जा खर्च करते हैं उसी हिसाब से खाएँ। अब सवाल है कि यह संतुलन होगा कैसे?

"अगर आप २७०० कैलोरी एक दिन में खाते हैं, जो कि आम है अगर आप एक स्वस्थ व्यक्ति हैं तो इसका मतलब हुआ करीब दस लाख कैलोरी प्रति वर्ष या करीब १ करोड़ कैलोरी प्रति दशक। यानि एक दशक में आपने करीब १० टन भोजन खाया है। अब आप बताईए कि आप कैसे हिसाब लगाएँगे कि आप क्या कितना खाएँ कि एक दशक में आपका वजन १० किलों भी न बढ़े। अब मान लीजिए कि आप बहुत माथापच्ची करके अपने वजन के बढ़ने की दर को १० किलों प्रति दशक से आस-पास रखने में कामयाब भी हो गए तब भी २० के दशक में आप फ़िट थे तो ३० के दशक में आप मोटे हो जाएँगे, या फ़िर ४० के दशक में पक्का (अगर आप बीच-बीच में बीमार न होते रहे तो)। और अंत में आपको पता चलेगा कि ऐसा तब हो गया जब आपने औसतन करीब २० कैलोरी हीं प्रति दिन ज्यादा खाया था। इसका मतलब हुआ कि अगर आप २० कैलोरी प्रतिदिन ज्यादा खाते हैं तब भी आप १० साल में १० किलो जरूर बढ़ जाएँगे। २० कैलोरी का मतलब हुआ, बर्गर का एक कौर, या कोला ड्रिन्क का एक घुँट, या मध्यम आकार के सेव का एक चौथाई टुकड़ा....। अब आप सोचिए, चाहे आप जितना भी कैलोरी गिने, क्या आप अपने को मोटा होने से बचा पाएँगे उस पुराने "calorie in calorie out" वाले सिद्धान्त पर चल कर? पक्का जवाब है - नहीं। तो उर्जा संतुलन के बारे में सोचते हुए हमें यह भी सोचना होगा कि आखिर-कार दुनिया में सब मोटे क्यों नहीं हैं?

anoop
10-03-2012, 06:09 PM
व्यायाम हमें आजीवन पतला नहीं रख सकते
"पोषण के क्षेत्र में काम कर रहे लोग हमें व्यायाम के जरिए पतला होने की बात इतनी शिद्दत से बताते रहते हैं कि वे इस मूल बात को भूल जाते हैं कि जितनी उर्जा हम खर्च करें गे उतना हीं ज्यादा हम भूख महसूस करेंगे। आप कल्पना करें कि मैं एक शानदार दावत दूँ जिसमें बेहतरीन रसोईओं क बनाया हुआ बेहद लजीज और बेहतरीन किस्म के भोजन का इंतजाम हों और मैं आपको उस दावत में आमंत्रित करूँ।"

"अब आप दो काम कर सकते हैं, एक तो आप आज का अपना लंच छोड़ दें अये फ़िर आप आज कुछ ज्यादा कसरत करें। या फ़िर आप यह भी कह सकते हैं, देखो टौब्स तुम मेरे घर से पाँच कि०मी० की दूरी पर रहते हो। मैं शाम को टहलता हुआ तुम्हारे घर आऊँगा ताकि जब तक मैं तुम्हारे उस दावत में पहुँचू, मेरी भूख अच्छी तरह से जाग जाए। कहने क मतलब यह कि जिन दो बातों को हम वजन कम करने के लिए करने को कहते है, वही दो बात हमें अपने को भूखा बनाने के लिए भी करनी होती है।"

"जब आप गौर से मोटापा और व्यायाम पर किए गए शोधपत्रों पर नजर डालेंगे तब आपको पता लगेगा कि व्यायाम का असर मोटापे पर वैसा नहीं होता जैसा कि हमें बताया जाता है। अमेरिकन कौलेज औफ़ स्पोर्ट्स मेडीसीन अपने एक रिपोर्ट में, जो अमेरिकन हार्ट ऐसोसिएशन के सहयोग से जारी किया गया है, कहता है कि आप यह मान कर चल सकते हैं कि अगर आप ज्यादा व्यायाम करेंगे तो आपके लंबे समय में ज्यादा वजन बढ़ने की संभावना कम होगी। पर उसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस तथ्य को सच साबित करने के लिए पर्याप्त डेटा उपलब्ध नहीं है (...so far, data to support this hypothesis are not particularly compelling)। यह बड़ी अजीब बात है। अगर लगभग १०० साल से चल रहे अध्ययन के बाद भी डेटा उपलब्ध नहीं हुआ, तब आप निश्चित मानिए कि यह सिद्धान्त गलत है।

anoop
10-03-2012, 06:10 PM
लेकिन वजन कम करने का एक तरीका है
"हमारे दादी-नानी को पता था कि refined carbohydrates और starches हमें मोटा बना सकते हैं, जैसे - पास्ता, आलू, मिठाई, पावरोटी, चावल, मकई आदि। वो सही थीं, असल में ये सारी चीजें हीं हमें मोटा बनाती हैं, मिठाई सबसे ज्यादा। इसके बाद नम्बर है उन चीजों का जिसमें चीनी-पानी का मेल होता है और यह होता है फ़लों के रस से ले कर कोला ड्रिंक्स तक। इसका कारण यह है कि ये सब चीजें हमारे शरीर में इंसुलिन के स्तर को बढ़ाती है। १९६० के आस-पास से वैज्ञानिकों को पता है कि इंसुलिन हीं वह मुख्य हारमोन है जो वसा उत्तकों (Fat Tissues) को नियंत्रित करता है। इस बात में कोई विवाद भी नहीं है। किसी भी संबंधित विषय के टेक्स्टबुक से इस बात की तसदीक की जा सकती है। जब आप उसमें कारण खोजेंगे कि क्यों fat cell fat होता है तो जवाब में यह बात विस्तार से मिलेगा कि कैसे इंसुलिन इस काम को करता है। इसके बाद आप मोटापा (obesity) के बारे में तलाशना शुरु कीजिए तो आपको फ़िर वही बात बताई जाएगी - आदमी मोटे इसलिए होतें है कि वो ज्यादा खाते हैं और कम व्यायाम करते हैं। अब आप समझ जाएँगे कि मूल विज्ञान और मोटापा के सिद्धान्त आपस में कितने अलग दिखते हैं।"

"मोटापा नियंत्रण के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों से मैं बस इतना कहना चाहता हूँ कि आप "हारमोन और एंजाईम के जरिए वसा नियंत्रण" की तरफ़ भी द्यान दीजिए। जब आप इस दिशा में देखेंगे तब आपको मोटापे के कारण और उसके इलाज के बारे में बिल्कुल अलग बात का पता चलेगा। सच कहूँ तो डा० एट्किन्स ने अपने "एट्किन्स डायट" के जरिए इस बात को कुछ हद तक समझा था, फ़िर भी इसका पूरा विज्ञान सही तरह से उनकी पकड़ में नहीं आया था।

anoop
10-03-2012, 06:13 PM
आपको उन चीजों को खाना होगा जो इंसुलिन के स्तर को कम रखते हैं
हम अपने वसा कोशिकाओं को बैंक-खाता की तरह मानते हैं जहाँ हमारा शरीर अतिरिक्त उर्जा को वसा-अम्लों के रूप में जमा करता रहता है उस दिन के लिए जब हम भूखे होंगे और हमें अपना जीवन चलाने के लिए उर्जा की जरुरत पड़ेगी। पर सच्चाई यह है कि वसा कोशिका बैंक-खाता नहीं हमारी जेब में पड़ा पर्स (wallet) है और हमारा भोजन है ATM । हम जानते है कि जेब के पैसे और ATM का प्रयोग कैसे करना है। हम पहले अपने जेब के पैसे को धीरे-धीरे खर्च करते हैं, फ़िर जब जेब काफ़ी हल्की हो जाती है तो ATM जा कर पैसे निकालते हैं और जेब को एक सीमा तक भर लेते है। पर इंसुलिन हमारी जेब में ताला लगा देता है। मतलब हम जेब के पैसे नहीं खर्च पाते और बार-बार ATM जा कर पैसे निकालते रहते है, जेब भारी करते रहते हैं। अर्थात, हमारी वसा कोशिका लगातार मोटी, और मोटी होती रहती है और हम कभी भी उन वसा अम्लों का प्रयोग नहीं कर पाते जो वहाँ जमा है। हमें भूख लगता रहता है और हम खाते रहते है...बार-बार ATM जाने की तरह।

anoop
10-03-2012, 06:15 PM
आगे भी पोस्ट करुँगा, पहले जरा हिन्दी में अनुवाद कर लूँ। अभी परीक्षा के मौसम में समय की थोड़ी किल्लत है।

Sikandar_Khan
10-03-2012, 10:44 PM
आपके द्वारा दी गई जानकारी अति महत्वपूर्ण है
आगे भी आपकी प्रविष्टियोँ का इंतेजार रहेगा |

abhisays
13-03-2012, 06:39 PM
Green Tea.. weight kam karne ka ek accha upaay hai.

anoop
19-03-2012, 04:39 PM
सही बात है.....पर सिर्फ़ लीकर कितने लोग पी सकते हैं

anoop
19-03-2012, 04:39 PM
आपके द्वारा दी गई जानकारी अति महत्वपूर्ण है
आगे भी आपकी प्रविष्टियोँ का इंतेजार रहेगा |

२३/२४ को शेष भाग जरुर पोस्ट कर दुँगा।