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View Full Version : दर्पण सीरत नहीं दिखाता


Dr. Rakesh Srivastava
01-01-2012, 01:39 PM
सुख सँग पूरा जग है यारों , दुःख सँग कौन चला है यारों ;
फूट - फूट जो रोता दिखता , ख़ुद से आज मिला है यारों .

दुश्मन बन जब पार न पाया , बनकर दोस्त छला है यारों ;
अँगारों से बच निकला जो , गुल से मगर जला है यारों .

प्यार की राह में काँटे पाये , जो भी इधर चला है यारों ;
एक बार सिर चढ़ , न उतरे , उल्फ़त एक बला है यारों .

बस उसका ही दिल ना पिघला , पत्थर तक पिघला है यारों ;
सबसे प्रीत की रीत न निभती , ये भी एक कला है यारों .

मुझपे आज नशा छाया है , उसका जिक्र चला है यारों ;
जिसने जीवन भर तड़पाया , लगता बहुत भला है यारों .

भरम बढ़ेगा धीरे - धीरे , सजने हुस्न चला है यारों ;
दर्पण सीरत नहीं दिखाता , सबको बहुत छला है यारों .

सागर से वो ही मिलता , जो पर्वत सदा गला है यारों ;
जिसने उजियारे फैलाये , वो खुद बहुत जला है यारों .

रचयिता~ ~ ~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2, गोमती नगर ,लखनऊ .

( शब्दार्थ ~~ सीरत = Inner Character / आन्तरिक गुण )

MANISH KUMAR
01-01-2012, 02:07 PM
:bravo:बहुत अच्छे डोक्टर साहब. आज बहुत दिनों बाद नेट पर ऑनलाइन हुआ, और इतने दिनों की आपके द्वारा रचित सभी रचनाए पढ़कर मन भाव-विभोर हो गया. :fantastic:
क्योंकि कई रचने थी इसलिए सभी रचनाओ के लिए अलग प्रत्युतर न देकर सबका एक ही जगह पर दे दिया है. उम्मीद है क्षमा करेंगे. :cheers:

Ranveer
02-01-2012, 11:37 AM
इस बार अर्थ समझ पाने में मुझे कुछ कठिनाई हुई =

सुख सँग पूरा जग है यारों , दुःख सँग कौन चला है यारों ;
फूट - फूट जो रोता दिखता , ख़ुद से आज मिला है यारों .
दुश्मन बन जब पार न पाया , बनकर दोस्त छला है यारों ;
अँगारों से बच निकला जो , गुल से मगर जला है यारों .
प्यार की राह में काँटे पाये , जो भी इधर चला है यारों ;
एक बार सिर चढ़ , न उतरे , उल्फ़त एक बला है यारों .
बस उसका ही दिल ना पिघला , पत्थर तक पिघला है यारों ;
सबसे प्रीत की रीत न निभती , ये भी एक कला है यारों .
मुझपे आज नशा छाया है , उसका जिक्र चला है यारों ;
जिसने जीवन भर तड़पाया , लगता बहुत भला है यारों .
भरम बढ़ेगा धीरे - धीरे , सजने हुस्न चला है यारों ;
दर्पण सीरत नहीं दिखाता , सबको बहुत छला है यारों .
सागर से मिलने की धुन में , पर्वत बहुत गला है यारों ;
जग में उजियारे के खातिर , सूरज सदा जला है यारों .

arvind
02-01-2012, 12:42 PM
सुख सँग पूरा जग है यारों , दुःख सँग कौन चला है यारों ;
फूट - फूट जो रोता दिखता , ख़ुद से आज मिला है यारों .
............

सागर से मिलने की धुन में , पर्वत बहुत गला है यारों ;
जग में उजियारे के खातिर , सूरज सदा जला है यारों .

रचयिता~ ~ ~ डॉ. राकेश श्रीवास्तव
विनय खण्ड -2, गोमती नगर ,लखनऊ .

( शब्दार्थ ~~ सीरत = inner beauty / आन्तरिक सौन्दर्य )
बहुत ही उम्दा रचना है।

ndhebar
02-01-2012, 01:26 PM
bahut umda prastuti

rajivdas
02-01-2012, 03:51 PM
nice poem.. Sir!

Sikandar_Khan
02-01-2012, 10:41 PM
फोरम पर एक और सुन्दर रचना देने के लिए डॉक्टर साहब का हार्दिक आभार |

malethia
03-01-2012, 03:49 PM
नववर्ष के इस अमूल्य तोहफे के लिए डॉ.साहेब का धन्यवाद !

Dr. Rakesh Srivastava
05-01-2012, 07:47 AM
इस बार अर्थ समझ पाने में मुझे कुछ कठिनाई हुई =


सम्माननीय रणवीर जी ,
मुझे आईना दिखाने के लिए आपका शुक्रिया .
आपको समझने में जो कठिनाई हुई है , वो
निश्चित ही मेरी असफलता है . इसका मुझे खेद है .
भविष्य में आपको ऐसी कठिनाई का सामना न करना
पड़े ; इसका मैं विशेष ध्यान रखूंगा क्योंकि मेरी भी यही
धारणा है कि वो कविता ही नहीं , जो समझ से परे हो .

Dr. Rakesh Srivastava
05-01-2012, 07:57 AM
:bravo:बहुत अच्छे डोक्टर साहब. आज बहुत दिनों बाद नेट पर ऑनलाइन हुआ, और इतने दिनों की आपके द्वारा रचित सभी रचनाए पढ़कर मन भाव-विभोर हो गया. :fantastic:
क्योंकि कई रचने थी इसलिए सभी रचनाओ के लिए अलग प्रत्युतर न देकर सबका एक ही जगह पर दे दिया है. उम्मीद है क्षमा करेंगे. :cheers:

सम्माननीय मनीष कुमार जी ,
आपने पढ़ा और पसंद किया ,
आपका धन्यवाद .
आप भले ही काफी अंतराल पर
ऑनलाइन होते हों , किन्तु मेरे लिए
तो यही संतोष की बात है कि फिर भी
आप मुझे याद रख पाते हैं .
इस हेतु भी शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
05-01-2012, 08:01 AM
बहुत ही उम्दा रचना है।

सम्माननीय अरविन्द जी ,
आपने पढ़ा और पसंद किया ,
आपका बहुत - बहुत धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava
05-01-2012, 08:05 AM
bahut umda prastuti

सम्माननीय n .dhebar जी ,
सदा की भाँति आपने पढ़ा और पसंद किया ,
आपका बहुत - बहुत धन्यवाद .

Dr. Rakesh Srivastava
05-01-2012, 08:12 AM
nice poem.. Sir!

सम्माननीय rajivdas जी ,
आपने पढ़ा और पसंद किया ,
आपका बहुत - बहुत धन्यवाद .
फोरम पर आपका स्वागत है .

Dr. Rakesh Srivastava
05-01-2012, 08:15 AM
फोरम पर एक और सुन्दर रचना देने के लिए डॉक्टर साहब का हार्दिक आभार |

सम्माननीय सिकंदर खान जी ,
आपने पढ़ा और पसंद किया ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
05-01-2012, 08:19 AM
नववर्ष के इस अमूल्य तोहफे के लिए डॉ.साहेब का धन्यवाद !

सम्माननीय मलेथिया जी ,
आपने सदैव पढ़ा और पसंद किया ,
आपका बहुत - बहुत शुक्रिया .

Dr. Rakesh Srivastava
05-01-2012, 08:23 AM
सम्माननीय Dark Saint Alaick जी ,
आपने पढ़ा और पसंद किया ,
आपका बहुत शुक्रिया .

sombirnaamdev
19-01-2012, 07:23 PM
सूरज का उगना याद रहा, पर दिन का ढलना भूल गए |
पलकों में सपने मंजिल के, पावों से चलना भूल गए ||
१. गंभीर समस्यायों का सागर, इधर उधर लहराता है |
लहरों के साथ बहे जाते, बाहों से तरना भूल गए ||
२. सुख बांट-बांट भोगा जाता, दुख भोगे सभी अकेले ही |
जीते हैं औरों की खातिर, अस्तित्व स्वयं का भूल गए ||
३. अविराम बही जाती जीवन की, धारा समय धरातल पर |
क्यों भोर भरी दास्तान शांति, समता की लिखना भूल गए ||
४. सब खड़े मौत की लाईन में, कब किसका नंबर आ जाए |
तुम रचा अमरता की मेहंदी, मृत्युंजय बनना भूल गए ||
५. मंदिर-मंदिर में ढूंढ रहे, कब से ज्योतिर्मय इश्वर को |
जीवन मंदिर में सदाचार का, दीप जलाना भूल गए ||
६. जब कल्पवृक्ष बीज और अमृत के कलश पास में हैं |
तब 'कनक' स्वयं की राहों में, क्यों फूल खिलाना भूल गए |
~ साध्वी कनकश्रीजी - पुस्तक " धम्म जागरणा " से

sombirnaamdev
19-01-2012, 07:24 PM
नर और नारी



भयानक जंगल में वे दोनों मिले-अचानक और खोये-खोये से|पुरुष ने कहा –




‘आओ अब हम साथ रहें|’ नारी ने सिर झुका लिया|पुरुष ने उसके कोमल हाथ अपने बलिष्ठ बाहुओं में थाम लिये|पुरुष ने कहा –मै कठोर हूं|आदेश देना मेरा स्वाभाव है और उसके विरुद्ध कुछ भी सुनने कि मुझे आदत नहीं है|क्या तुम मेरे साथ रह सकोगी?नारी ने कहा –“मै कोमल हूं|जीवन में उफान लाती हूं और उसे अपने में समाती भी हूं|मै सदा एक मुद्रा में रहने वाले पर्वत का शिखर नहीं,लहरों में इठलाने वाली सरिता हूं |”पुरुष ने कहा –“तब तुममें मुझे अपना सेवक बनाकर रखने की क्षमता है|”


मुनि श्री 108प्रमाण सागर जी की पुस्तक “दिव्य जीवन का द्वार”से

सभी मुनि,आर्यिकाओं,साधु,साध्वियो,श्रावक श्राविकाओं

को मेरा यथोचित नमोस्तु,वन्दामी,मथे वन्दना,जय जिनेन्द्र,नमस्कार